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लेखिका : माया सिंह
मेरी कहानियों को पढ़ने वाले अनेक व्यक्ति मुझे कुछ गलत समझ लेते हैं और ऐसे प्रस्ताव भेजते है जैसे मैं कोई धंधा करने वाली हूँ, कुछ चैटिंग में ऐसे प्रस्ताव रखते हैं कि इस प्रकार या उस प्रकार से हम किसी होटल या एकांत में मिल कर चुदाई का आनन्द ले सकते हैं। वे अपने लण्ड के आकार और अन्य आकर्षक विवरण भी देते हैं, मेरी बात पर विश्वास नहीं भी करते कि ऐसा करना कितना रिस्की हो सकता है। ऐसा नहीं कि उनके प्रस्ताव का मुझ पर कोई असर न होता हो, मेरा मन भी कभी कभी डांवाडोल हो जाता है परन्तु मैं एक बार रिस्क लेकर फंसते फंसते बची थी।
ऐसे ही सेक्स चैटिंग करते करते भोपाल के ही एक युवक ने शंका जाहिर की कि मैं कोई महिला न होकर ऐसे ही फर्जी बन कर चैटिंग करती हूँ। उसने फोटो माँगा, मैंने मना कर दिया, उसने फोन माँगा वो भी नहीं दिया।
लेकिन मैंने उसको कहा- मैं तुम्हें किसी रेस्तराँ में मिल सकती हूँ।
वो तैयार हो गया। अब यह तय हुआ कि मैं उसको पहले से होटल का नाम और दिन बता दूँगी नेट पर और अपनी पहचान भी बता दूंगी कि मैंने किस रंग की साड़ी पहनी है, समय भी बता दूँगी लेकिन मेरे पति भी मेरे साथ होंगे। इसलिए थोड़ा सावधानी और संयम से काम करना पड़ेगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
अब मैंने पति से कहा- चलो, किसी दिन बाहर खाने चलें !
ऐसा बाहर होटल में खाना खाने जाना हमारे लिए कोई खास बात नहीं होती थी।
वे बोले- शनिवार को चलते हैं।
मैंने अपने उस अनजाने पुरुष मित्र को नेट पर बता दिया कि फ़लाँ रेस्टोरेंट में शनिवार को आठ बजे हम पहुँच जायेंगे और मैं सिल्क की क्रीम रंग की साड़ी में रहूँगी।
अब शनिवार आने तक मेरा दिल असाधारण सा धड़कता रहा। दुर्भाग्य से शनिवार को शाम को ठीक आठ बजे ही तेज बारिश शुरू हो गई।
पति जी ने कहा- ऐसे मौसम में नहीं जायेंगे !
मैंने खूब कहा पर वो नहीं माने। मौका देख कर अगले दिन मैंने नेट पर मित्र को जब संपर्क किया तो उसने नाराजी से आरोप लगाया कि वो तो पहले से ही जानता था कि उसे बेवकूफ बनाया जा रहा था।
खैर उसे मैंने बताया कि अगली बार यह सब बात साफ हो जाएगी।
अब हमने अगले शनिवार का प्रोग्राम बनाया। मैंने अपनी सबसे पसंद वाली नीले रंग की साड़ी पहनने की सूचना, टाइम और रेस्टोरेंट का नाम आदि सब उस मित्र को बता दिया। जब जाने का समय हुआ तो पति महाराज आराम से तैयार होते रहे और मुझे बोले- यह नीली वाली नहीं, दूसरी एक साड़ी पहनो।
मैं साड़ी बदल नहीं कर सकती थी क्योंकि मित्र को इस बदलाव की सूचना देने का कोई रास्ता अब नहीं था। इसलिए मैंने कहा- अब मैं यही साड़ी पहनूँगी !
और जल्दी चलने की कहती रही।
पति बोले भी कि तुमको आज क्या हो गया है, तो मैं थोड़ी डरी भी।
खैर हम रेस्टोरेंट में पहुँच गए उसी में ही, जो निश्चित करके मित्र को बताया था, एक मेज पर बैठ गए और मेरी निगाहें उस अनदेखे मित्र को खोज रही थी।
थोड़ी देर बाद एक अकेला युवक उम्र 25-26 साल और सुन्दर, आकर्षक व्यक्तित्व का बैठा दिखा जो मेरी नीली साड़ी देख कर मुझसे आँखें मिलते ही थोड़ा सा मुस्कुराया।
मैं भी दबी सी हंस दी। पति सामने ही बैठे थे।थोड़ी देर बाद मेरे ने वाशरूम जाने के लिए उठे। उनके जाते ही वो लड़का उठा और हमारी मेज के पास आकर बोला- थैंक यू ! बहुत अच्छी लग रही हो !
कह कर फिर अपनी मेज पर जाकर बैठ गया और मुझसे इशारो में ही तब तक बोलता रहा जब तक मेरे पति वापस नहीं आ गए। उन्होंने आकर थोड़ी देर बाद खाने का आर्डर दिया। अब मैंने सोचा कि थोड़ा सा टाइम निकाल कर मित्र से मिल लूँ।
मेरा इशारा उसे मिल चुका था, मैं उठकर वाशरूम के बहाने चली गई, मेरे पीछे वो भी आ गया। मेल फिमेल के वाशरूम के पास कुछ एकांत सी और पर्याप्त सुरक्षित सी जगह में हम दोनों मिले।
इस युवक को आज ही पहली बार देखा था और मैं उससे लिपटने को उतावली हो रही थी, दिल धक-धक धड़क रहा था, मेरी हालत बहुत ही ख़राब थी। मैंने अपने को संभाला हुआ था, पता नहीं कैसे।
वो लड़का भी इतना अधिक उत्तेजित था कि जैसे आग का गोला बन गया हो। उसने लपक कर मुझे अपने सीने से चिपटा लिया और बेतहाशा सब जगह चूमने लगा। उसकी पैंट में से बाहर निकलने को बेताब उसका लंड मुझे चुभ रहा था।
इतनी सी मुलाकात में ही मुझे ऐसा लगा जैसे कि उसने कोई आग भड़का दी है मेरे बदन में और इसे वो ही शांत कर सकता है।
उसने मोका देख कर वाशरूम के ही एक टॉयलेट में मुझे खींच लिया और फटाफट अपनी ज़िप खोलकर लंड मेरे हाथ में देकर बोला- एक बार इसको अपने होंठों से चूम दो।
मैं तो जैसे यंत्रवत हो गई थी, उसने कहा और मैंने लपक कर वो सनसनाता लंड मुँह में गपक लिया।
मैं सोच रही थी कि यहाँ तो इतना ही संभव है पर उसने तो मुझे दीवार से सटाया और मेरी साड़ी ऊपर खींच कर मेरी टांगें थोड़ी चौड़ी करवा कर खड़े खड़े ही मेरी चूत के मुँह पर अपना मोटा लम्बा और कड़क लंड एक ही झटके में आधा अन्दर ठूंस दिया और फिर दे धक्के और धक्के मिनटों में ही दोनों खलास हो गए।
मैंने जल्दी से अपने को ठीकठाक किया, सब चैक किया और वापिस अपनी मेज पर पहुँच गई। बहुत सावधानी और हड़बड़ी दिखने से बचने की कोशिश के बाद भी मेरे हाथ से मेज पर रखा हुआ कांच का एक जग नीचे गिर गया और टूट गया।
मेरे पति भी परेशान से बोले- क्या हो गया है तुमको?
मैंने ऐसे ही कुछ बात बनाई और खाना खाकर घर आ गये।
उस रात को मैंने अपने पति के साथ भी असाधारण चुदाई की।
उनको बहुत मज़ा आया और उन्होंने कहा भी कि ऐसी चुदाई की खातिर वो मुझे रोज़ रेस्तराँ में खाना खिलाने को तैयार हैं।
उनको क्या मालूम था कि यह रेस्तराँ का खाना नहीं, उस नौजवान की दी हुई खुराक थी जो उछाले मार रही थी।
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