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कहानी का चौथा भाग : एक कुंवारे लड़के के साथ-4 अब आगे : एक बार मनीष ने मुझे फोन करके मिलने की इच्छा की। मैंने उसे शाम को मिलने के लिये जगह बता दी।
शाम को कोई 07.00 बजे मनीष आया तो उसके साथ एक लड़का और भी था। मनीष ने परिचय करवाते हुए बताया- यह मेरे मामा का लड़का आशीष है और इसी साल इसने भी दिल्ली में कॉलेज में दाखिला लिया है। हम तीनों ने ठण्डा पेय लिया और बातें करने लगे, जैसे घर के बारे में, पढ़ाई के बारे में इत्यादि।
मैंने देखा कि आशीष भी मनीष से सेहत के बारे में उन्नीस नहीं था। वैसी ही फूली हुई छाती चौड़े कंधे छोटे छोटे बाल। मैं सोचने लगी कि क्या उसका लंड भी मनीष के लंड की तरह दमदार होगा या नहीं। फिर मैंने खाना मंगवा लिया और खाना खाकर वे दोनों चले गए।
अगले दिन मैंने मनीष को फोन किया और पूछा,’ मनु, कल शाम को मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ कहना चाहते थे परंतु शायद आशीष के सामने कह नहीं सके। बताओ क्या बात थी?’
मनीष ने कहा,’शालिनी, अब मेरा आप से अकेले में मिलना मुश्किल है। क्योंकि जब पिताजी और मामा जी आशीष के दाखिले के समय आये थे तब उन लोगों ने हम दोनों को एक कमरा किराये पर ले दिया है और अब चूँकि आशीष भी मेरे साथ ही रहता है इसलिए उसके सामने मैं आपके पास नहीं आ सकता !’
मैंने विचार किया कि मनीष की बात ठीक थी क्योंकि किसी को भी हमारे संबंधों के बारे में पता नहीं है और अगर आशीष को पता चला तो हो सकता है कि मनीष के लिए समस्या खड़ी हो जाए। अत: मैंने उसको कहा कि अगले दिन सुबह कॉलेज से जल्दी निकल थोड़ी देर के लिये मेरे पास आ जाए। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने आधे दिन की छुट्टी ले ली। मनीष अगले दिन सुबह 10.00 बजे आ गया। चाय पीते हुए हम दोनों इस समस्या पर विचार करने लगे। मैंने मनीष से पूछा,’तुम आशीष को कितनी अच्छी तरह जानते हो?’
‘हम दोनों में बहुत गहरा प्यार है क्योंकि मैं उससे केवल एक साल ही बड़ा हूँ। हम दोनों बचपन से एक साथ बड़े हुए हैं। हम दोनों आज तक एक दूसरे को अपना हर राज़ भी बताते हैं।’ मनीष ने जवाब दिया।
‘मतलब तुमने उसे हम दोनों के बारे में सब कुछ बतला दिया है?’ मैंने पूछा।
‘नहीं उसे हमारे शारीरिक संबंधों के बारे में भनक भी नहीं है। यही तो मेरी परेशानी है कि कभी उसको पता चल गया तो क्या होगा?’ मेरा हाथ पकड़ कर मनीष कहने लगा।
मैंने मनीष का हाथ दबाते हुए उसके और पास होते हुए कहा,’घबराओ नहीं ! सोचते हैं कुछ ना कुछ हल जरूर निकल जाएगा। परंतु आज हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है क्योंकि मुझे भी दो बजे तक अपने ऑफिस पहुँचना है। मुझे आशीष के बारे में कुछ और बताओ। कभी तुम दोनों की लड़कियों के बारे में कोई बात हुई हो?’ मैंने पूछा।
‘हम दोनों ने कभी आपस में लड़कियों के बारे में बातें नहीं की हैं परंतु मैंने बहुत बार उसे लड़कियों को घूरते हुए देखा है।’ मनीष ने जवाब दिया।
‘ठीक है आज से जब भी मौका मिले तुम उससे लड़कियों के बारे में भी बात किया करो। मैं रचना को पटाती हूँ कि एक बार तुम्हें और आशीष को खाने का न्योता दे कर बुलाते हैं और फिर उसे रचना के हवाले कर देंगे। बाकी सब रचना स्वयं ही कर लेगी।’
मैं मनीष को सिखाने लगी।
‘इन सब बातों का मतलब सिर्फ यही निकलता है कि मुझे आशीष को अपना राजदार बनाना ही पड़ेगा।’ मनीष ने ठंडी आह भरते हुए कहा।
‘हाँ, और दूसरा कोई रास्ता भी नहीं है।’ मैंने बात खत्म करके उठते हुए कहा।
फिर मैं भी तैयार हुई और हम दोनों, मैं अपने ऑफिस के लिए और मनीष अपने कॉलेज के लिए निकल पड़े। रात को मैंने रचना से बात की और उसे मनीष और आशीष के बारे में बताया। मैंने उसे मनीष के बारे में सब सच बता दिया कि मैं मनीष से कैसे मिली, कैसे मैंने उसका कुँवारापन तोड़ा और कैसे कैसे मैंने उसके साथ चुदाई की है। साथ ही साथ यह भी बताया कि किस प्रकार आशीष के आने से मनीष चिंतित है और अब मैं चाहती हूँ कि रचना आशीष को पटा ले ताकि मनीष की राह भी आसान हो जाए।
रचना कहने लगी,’ शालू तू उन दोनों को शनिवार सुबह बुला ले। शनिवार की मेरी भी छुट्टी है, दो दिन तक जम कर उन दोनों के साथ मज़ा करेंगे !’
मुझे भी यह सुझाव अच्छा लगा और मैंने मनीष को फोन किया,’ मनीष क्या तुम दोनों सप्ताहांत हमारे साथ बिता सकते हो?’ ‘मैं आज शाम को आशीष से बात करके आपको बता दूँगा।’ मनीष ने जवाब दिया। शाम को मनीष ने फोन करके कहा कि आशीष मान गया है और उसने आशीष को केवल इतना ही बताया है कि खाने-पीने का प्रोग्राम है।
‘यह तुमने बहुत बढ़िया किया जो सिर्फ खाने-पीने की बात ही की है। उसके कपड़े तो रचना उतार लेगी।’ मैंने जवाब दिया।
शनिवार को कोई 11.00 बजे मनीष और आशीष दोनों आ गए। मैंने उन्हें बिठाया और रचना का परिचय करवा कर नाश्ते का पूछ कर चाय बना लाई। दोनों ने कहा कि वे नाश्ता कर के आये हैं।
मैं उन दोनों से बातें करने लगी। मैंने देखा कि आशीष कनखियों से मुझे और रचना को घूर कर देख रहा था क्योंकि हम दोनों सिर्फ नाईटी में हीं थीं। कुछ देर के बाद रचना ने तैयार होकर आशीष से बाज़ार तक चलने को कहा। पहले आशीष थोड़ा झिझका परंतु फिर मनीष के कहने पर चला गया।
जैसे ही वे दोनों बाहर निकले हम दोनों आपस में चिपक गए और चूमा चाटी करने लगे। मैंने मनीष को बताया कि रचना आशीष को चोदना चाहती है।
मनीष कहने लगा कि हो सकता है आशीष इस पर सहमत ना हो।
मैंने कहा,’ वो सब कुछ तुम रचना पर छोड़ दो। दरअसल रचना ने जानबूझ कर आशीष को साथ चलने के लिए कहा है। तुम देखना, जब वे दोनों वापिस आयेंगे तो आपस में कैसे बातें कर रहे होंगे।’
मैंने मनीष को कहा,’ अब जल्दी से अपने लंड के दर्शन करने दो !’ कहते हुए मैंने उसकी पैंट की ज़िप खोलनी शुरू कर दी और उसका लंड बाहर निकाल कर सहलाते हुए चूसने लगी।
थोड़ी देर के बाद रचना और आशीष वापिस आये तो दोनों के हाथ में सामान था।
मैंने पूछा तो रचना बोली,’ आशीष और मनीष बियर पी लेते हैं इसलिए खरीद ली। फिर जूस भी खत्म हो गया था और आज हम खाने-पीने वाले भी चार हैं इसलिए हम खाने का सामान भी अभी खरीद लाए हैं।’
रचना ने मुझे आँख मारी तो मैं समझ गई कि उसने आशीष को पटा लिया है।
फिर रचना रसोई से गिलास आदि लेने गई तो मैंने मनीष को फुसफुसाते हुए कहा,’ आज से आशीष रचना का पुजारी बन जाएगा।’ रचना ने सुझाव दिया कि मेज़ को एक तरफ रख दिया जाए ताकि आने जाने में ठोकर ना लगे। तब उन दोनों ने मेज़ को एक ओर कर दिया और आशीष रचना के हाथ से लेकर सामान मेज़ पर रखने लगा।
रचना ने आशीष को फ्रिज में से बियर लेकर आने को कहा और दो गिलासों में डालने को कहा। आशीष ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उस देखा तो रचना हंसकर बोली- हम दोनों बियर नहीं पीती हैं कुछ और पीती हैं।
आशीष ने दो गिलासों में बियर डाली और रचना चिप्स का पैकेट खोलने लगी। जब मनीष और आशीष ने एक एक गिलास खत्म कर लिया तो रचना ने आशीष का गिलास भर दिया और मुझे कहने लगी,’ शालू हम दोनों के लिये भी थोड़ी थोड़ी वोदका डाल ले !’
मैंने रचना और अपने लिये वोदका और जूस डाला तो रचना ने अपना गिलास उठाया और साथ ही आशीष का हाथ पकड़ कर उसे बाहर बालकोनी में ले जाने लगी।
मनीष ने मुझे देखा तो मैं कहा,’ चिंता मत करो अभी आगे आगे देखो क्या होता है !’
कुछ मिनटों के बाद रचना अंदर आई और मनीष के पीछे खड़ी होकर उसके कंधों को दबाते हुए झुक कर एक ओर से उसके गाल को चाटते हुए बोली,’ आशीष का कुँवारा लंड तो आज मैं पूरा निचोड़ दूँगी।’
फिर बाहर जाते हुए हम दोनों को कहने लगी,’ मनीष तुम आशीष के सामने ऐसे ही दिखाना जैसे तुम भी आज पहली बार लड़की चोद रहे हो।’कुछ समय बाद जब रचना और आशीष दोनों अंदर आये तो रचना आशीष से सटते हुए बोली,’ शालू, आज से आशीष मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। हम दोनों की जोड़ी खूब जमेगी।’
फिर रचना आशीष की कमर में हाथ डाल कर उसके साथ चिपक कर बैठ गई। मनीष को उठ कर मेरे साथ बैठना पड़ा और हम चारों बातें करते हुए खाने पीने लगे।
रचना कहने लगी,’ यार शालू, कुछ संगीत लगा ना। कुछ मज़ा आयेगा।’
मैंने एक सीडी लगा दी तो रचना उठ कर थिरकने लगी और आशीष को भी खींच कर उठाने लगी। मैं और मनीष भी उन दोनों के साथ थिरकने लगे। मैंने देखा रचना ने आशीष की कमर में दोनों हाथ डाल रखे थे और उसके साथ चिपक चिपक कर थिरक रही थी और उसको बीच बीच में चूम भी लेती।
आशीष का शर्म सी आ रही थी परंतु रचना जानबूझ कर उसे और चूम चाट रही थी। कुछ समय तक ऐसे ही नाचने के बाद हम सब शांत हो कर बैठ गए। थोड़ी देर बाद रचना आशीष को अंदर बेडरूम में ले जाने लगी। दोनों अंदर गए तो रचना ने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया। मैंने मनीष को चुप रहने का इशारा किया और हम दोनों दबे पांव दरवाज़े से कान लगा कर रचना और आशीष की बातें सुनने लगे।
‘ओह्ह आशीष आई लव यू !! अम्म्म !!! मम्म्म !!! मेरे आशू मेरी जान !!! पुच्च पुच्च !!! मुझे प्यार करो आशू !!!’ रचना की आवाजें आ रहीं थी। ‘दबा दो इनको !! मसल दो इनको !!! खा जाओ इन दोनों को आज !!! और जोर से दबाओ !!! चोद दो इनको भी !!! उम्म्म !!! उम्म्म !!! घुसने दो मुँह में भी !!!’ शायद आशीष रचना के मोम्मे चोद रहा था।
उन दोनों की अंदर से चूमा चाटी की आवाजें आ रहीं थीं और बाहर मैं और मनीष बिना कोई आवाज़ किये एक दूसरे को चूम चाट रहे थे।
कुछ देर बाद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई तो हम दोनों एकदम वहाँ से हटकर सोफे पर बैठ गए। रचना और आशीष बाहर आये तो हमने देखा कि रचना सिर्फ पैंटी में थी और आशीष भी सिर्फ अंडरवियर में था और उसका लंड तना हुआ था।
रचना उसे साथ लेकर फिर सोफे पर बैठ गई और हम दोनों को कहने लगी,’ अगर तुम दोनों चाहो तो अंदर जाकर मस्ती कर लो। हम दोनों तो अब यहीं पर सब कुछ करेंगे ! क्यों आशू?’
और फिर हमारे सामने ही उसकी फूली हुई छाती पर हाथ फेरते हुए उसके छोटे छोटे मर्दाना चुचुक चाटने लगी और आशीष के मुँह से जोर जोर से सिसकारियाँ निकल रही थी।
आशीष के होठों को फिर से चूसते हुए रचना कहने लगी,’ तुम्हारे होठों में कितना रस भरा हुआ है आशु ! आज तो मैं इनका पूरा रस पी जाऊँगी !!!’ ‘और इसके लंड के रस को नहीं पिएगी!?!’ मैंने कहा। ‘वो भी पियूंगी !! और मेरी चूत भी उस रस का रसपान करेगी !!’ रचना उन्माद में बोल रही थी।
फिर मैं और मनीष अंदर बेडरूम में चले गए और हम दोनों जानवरों की तरह एक दूसरे को चूमते चाटते हुए एक दूसरे के कपड़े उतारने लगे। थोड़ी देर के बाद हम दोनों भी बाहर आ गए और सोफे पर बैठ कर चूमा-चाटी करने लगे।
‘मनीष यहाँ आओ मुझे तुम्हारे होठों का रस भी पीने दो !’ मनीष की ओर हाथ बढ़ाते हुए रचना बोली।
मैंने मनीष को उठ कर जाने का इशारा किया और आशीष को अपने साथ आकर बैठने का इशारा करने लगी। अब मनीष और आशीष दोनों की अदला बदली हो गई थी।रचना मनीष के होठों को चूसने लगी और मैं आशीष के होठों को चूसने लगी।
‘हैं ना मेरे आशू के होंठ रसीले?’ रचना बोली। ‘हाँ बहुत रसीले और मनु के?’ मैंने पूछा। ‘मम्म्म इसके भी !!’ रचना कहने लगी। ‘आजा अब ज़रा तेरे होठों का रस भी चख कर देख लूँ!!!’ रचना मेरे पास आकर मुझे खींच कर उठाने लगी।
‘मम्म्म!!! तेरे होठों में भी आज कितना रस भर गया है!!! और होठों से ज़्यादा रसीले तो तेरे मोम्मे हैं शालू!!!’ मेरे होठों को चूस कर मेरे मोम्मों को चूसते हुए रचना बोली।
‘मनीष आज छोड़ना मत शालू को ! इसके मोम्मे काट काट कर खा जाना !’ मनीष की ओर मुड़ते हुए रचना बोली। फिर रचना ने आशीष को धक्का देकर सोफे पर अधलेटा कर दिया और अंडरवियर के ऊपर से ही उसके लंड को मसलने लगी।
ठीक उसी तरह मैंने भी मनीष के साथ किया। जब रचना ने आशीष का अंडरवियर खींच कर उतारा तो मैंने देखा कि आशीष का लंड तना हुआ था और मनीष के लंड से ज़्यादा मोटा था। मैंने भी मनीष का अंडरवियर उतार फेंका और उसके लंड को मसलने लगी। मनीष खड़ा हुआ और उसने मुझे भी खींच कर खड़ा किया और मेरे पीछे से हाथ डाल कर मेरे मोम्मे दबाते हुए मेरी गर्दन को चूमने चाटते हुए मेरी गांड पर धक्के देने लगा तो आशीष भी रचना के साथ बिल्कुल वैसा ही करने लगा।
तभी रचना कहने लगी,’चलो तुम दोनों अपने अपने हाथ कमर पर रख कर खड़े हो जाओ।’
बिल्कुल आज्ञाकारी लड़कों की तरह वे दोनों खड़े हो गए, उन दोनों के लंड तने हुए थे।
मैं मनीष के सामने और रचना आशीष के सामने अपनी टाँगों के बल घोड़ी बन कर उनके लंड को चूसने लगीं। रचना आशीष के लंड के सिरे को चाटने लगी, उसके लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी।
कुछ देर के बाद आशीष के टट्टों को चूसने चाटने लगी और फिर अपने घुटनों पर चलते हुए आशीष के पीछे जाकर उसकी गांड को भी चाटने लगी। मैं भी मनीष के लंड को ठीक वैसे ही चूम चाट रही थी। मनीष और आशीष की बहुत जोर जोर से सिसकारियाँ निकल रहीं थीं।फिर मैंने मनीष के लंड की चमड़ी उतार कर उसके लंड के वीर्य से चमकते हुए सिरे को चाटना शुरू कर दिया और उसके लंड पूरा अपने मुँह में लेकर अपने सिर को जोर जोर से आगे पीछे करने लगी। रचना भी वैसे ही करने लगी।
थोड़ी देर के बाद रचना ने आशीष के लंड को अपने मुँह से बाहर निकाला और मुझे कहने लगी,’शालू क्या तूँ आशीष के लंड को चूसना चाहती है?’
‘नहीं आज आशीष के लंड पर सिर्फ तेरा अधिकार है ! अगली बार मेरा अधिकार होगा !!’ मैंने मनीष के लंड को बाहर निकाल कर अपने मुँह पर मारते हुए कहा और फिर हम दोनों दोबारा लंड चूसने लगीं।
लड़कों की सिसकारियाँ और हमारे लंड चूसने से आने वाली स्लर्प स्लर्प की आवाजें कमरे में गूंज रहीं थीं। कुछ देर लंड चूसने के बाद रचना आशीष की मुठ मारने लगी और बोली,’ मेरे मुँह पर ही वीर्य की पिचकारी मार देना।’
मैंने भी मनीष का लंड अपने मुँह से बाहर निकाला और रचना की तरह ही अपने मुँह पर वीर्य गिराने को कहा। तभी जैसे ही मनीष के लंड से वीर्य की पिचकारी निकल कर मेरे चेहरे पर पड़ी मैंने उसके लंड का रुख अपने मोम्मों की ओर कर दिया और सारा वीर्य अपने मोम्मों पर गिरा दिया।
मैंने देखा मनीष हाँफ रहा था।
तभी उधर आशीष के लंड से भी ज्वालामुखी ने अपना लावा उगल दिया और उसके लंड से वीर्य की अनगिनत पिचकारियाँ निकल कर रचना के चेहरे और मोम्मों पर गिर गईं।
आशीष भी जोर जोर से हाँफ रहा था और हम दोनों लड़कियों के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान थी।
कहानी जारी रहेगी। आपके विचारों का स्वागत है [email protected] पर !
कहानी का छठा भाग : एक कुंवारे लड़के के साथ-6
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