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कहानी का पिछला भाग: औरत की चाहत-1
मैंने अभी अपनी जीभ दो-चार बार ही अन्दर-बाहर की थी कि उसने अपने हाथों से मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबाव बढ़ाया और अपने चूतड़ उठा-उठा कर अपनी चूत को मेरे मुँह पर रगड़ने लगी और इसी दौरान उसका शरीर बुरी तरह से अकड़ा जिसके कारण वो अपने सिर को इधर-उधर पटकने लगी, फ़िर एकदम से उसके अन्दर का ज्वालामुखी फ़ूट पड़ा.
बस अब क्या बताऊँ दोस्तो, उसके इस ज्वालामुखी ने कितना रस छोड़ा, मैं तो बस उसको अपनी आँखें बंद करके गटा-गट पीता ही जा रहा था. जब वो शान्त हुई तो उसने मेरा सिर पकड़ कर अपनी तरफ़ खींचा और मेरे मुँह और होंठों पर लगे अपनी चूत के रस का आनन्द लेने लई, उसने चाट-चाट के मेरे मुँह को एकदम साफ़ कर दिया.
फ़िर कुछ देर तक वो बैड पर शान्त लेटी रही, मैं भी उसके बगल में लेट गया और उसकी चूचियों के साथ खेलने लगा. कुछ देर बाद वो फ़िर से गर्म होने लगी और मैं यह देखकर हैरान हो गया कि अबकी बार उसने पहल की, उसने मुझे हाथ पकड कर बैड के नीचे खड़ा किया और खुद मेरे सामने घुटनों के बल बैठकर मेरी पैन्ट खोलने लगी, उसने मेरी पैंट मेरी टाँगों से अलग कर दी, फ़िर उसने कुछ देर मेरे लंड निहारा और अपनी आँखें बंद करते हुए उसे अपने हाथ में पकड़ कर चूम लिया.
उसके ऐसा करते ही मेरा दिल तो बाग-बाग हो गया तब उसने अपना मुँह खोला और लंड की चमड़ी को पीछे करते हुऐ उसे अपने मुँह में भर लिया.
सच मानो दोस्तो, मुझे उससे ऐसा करने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी पर वो तो बस अपनी आँखें बंद करके उसे पूरे दिलो जान से चूसे जा रही थी जैसे कोई छोटी बच्ची लोलीपोप चूस रही हो!
वो काफ़ी देर तक ऐसे ही मेरे लंड को चूसती रही, 15 मिनट के बाद मुझे लगा जैसे कि मेरा माल छुटने वाला है, तब मैंने अपना लंड उसके मुंह से छुड़ाने की नाकाम कोशिश की, पर वो थी कि छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी.
मैं समझ गया कि वो क्या चाहती है शायद वो मेरे माल को पीना चाहती थी और फ़िर कुछ देर में मैं उसके मुंह में ही झड़ गया वो झड़ने के कुछ देर बाद तक मेरे लंड को चूसती रही जब तक कि लंड की आखिरी बून्द तक वो अपने गले से नीचे ना उतार गई.
फ़िर मैंने उसे उसके कन्धों से पकड़ कर उठाया और उसके होंठों पे होंठ रखकर चूमने लगा, उसने भी खुलकर मेरा साथ दिया वो कभी अपनी जीभ मेरे अन्दर डालती और कभी मेरी जीभ को अपने मुँह के अन्दर तक ले जाती.
सच मानो दोस्तो ये सब कुछ मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था क्योंकि उसके मुँह से मुझे मेरे वीर्य का स्वाद आ रहा था जो मुझे बिल्कुल अजीब लग रहा था, पर फ़िर भी मेरा दिल उसको छोड़ने को बिल्कुल नहीं कर रहा और मैं भी उसे अपनी आँखें बन्द किए उसे चूमे ही जा रहा था, मेरा लंड उसके पेट से टकरा रहा था जिसके कारण वो फ़िर से अकड़ रहा था. फ़िर मैंने उसे बैड पर लेटाया और खुद उसके ऊपर चढ़ गया. उसने भी खुशी जाहिर करते हुये अपनी टाँगें फ़ैला कर मेरी कमर में कस ली और अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी, उसकी चूत बहुत ही चिकनी हो गई थी और बहुत सा पानी छोड़ रही थी. मेरा लंड एक ही झटके में अन्दर चला गया, पर अब मैंने कोई जल्दबाजी नहीं की और बहुत प्यार से अपने चूतड़ ऊपर नीचे करने लगा.
हम दोनों तो बस एक दूसरे की आँखों में देखे जा रहे थे. मैंने ऐसे ही उसको करीब आधा घंटा चोदा, उसके बाद हम दोनों एक साथ अपनी चरम सीमा पर पहुँच गये.
कुछ देर तक हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे, हमें कब नींद आ गई हमें पता ही नहीं चला.
अगले दिन हम दोनों उठे और स्नान कर के उसके घर से अपने-अपने घर की तरफ़ चल दिये अगली बार मिलने का वादा कर के! उसके बाद मैं अपने घर चला गया और वो अपने!
उस दिन के बाद तो हम दोनों के फ़ोन का खर्च और भी बढ़ गया, मैं अब हर बार उसे अपनी दूसरी मुलाकात के लिए कहता और वो हमेशा ही कहती कि जल्दी ही होगी, क्या करूँ, दिल तो मेरा भी कर रहा है.
अभी हमें चुदाई किये दो दिन भी नहीं हुये थे और मेरी हालत खराब होती जा रही थी, हम जब मिलते थे तब भी आस-पास कोई ना कोई होता था, हम सब की आँखें बचा कर बस थोड़ी बहुत चूमाचाटी ही कर पाते, और कभी सिनेमा में फ़िल्म देखते-देखते उसकी चूचियाँ दबा देता, इससे आगे कभी मौका ही नहीं मिला.
फ़िर हम दोनों ने एक शनिवार को चुदाई का प्रोग्राम बनाया वो भी होटल में, उसने एक होटल का पता और रूम नम्बर मुझे दिया और शाम सात बजे आने को कहा.
वो एक 5 स्टार होटल था जिसमें मैं एक बार पहले भी जा चुका था, तो मैं उस होटल के बारे में जानता था. मैं समय पर पहुँच गया. मैं सीधे उसके रुम के बाहर पहुँचा, उसने काफ़ी मंहगा कमरा बुक किया था, उसके कहे अनुसार मैंने दरवाजा खटखटाया.
उसने दरवाजा खोला और दरवाजा खुलने के बाद का नजारा कुछ ऐसा था जिसे देखकर तो मैं अपने आप पर गर्व महसूस करने लगा. क्या बला की खूबसूरत लग रही थी वो!
उसने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी, उसी रंग की लिपस्टिक लगा रखी थी. सच मानो दोस्तो, उस समय तो अगर मेरे सामने जन्नत की परी को भी खड़ा कर दो तो एक बार तो मैं उसको भी फ़ेल कर दूँ.
और एक बात तो है दोस्तो की अगर कोई औरत जब हमारे सामने चुदने को खड़ी हो तो हमें तो बस वो ही दिखाई देती है.
मुझे भी बस वो ही दिखाई दे रही थी और उसके इस रूप ने तो मेरे होश ही उड़ा दिये थे. मेरा रुकना नामुनकिन था, दिल कर रहा था कि उसको यहीं दरवाजे पर ही खड़ा करके चोद दूँ.
उस समय तो मुझे उसके होंठ दिखाई दे रहे थे जिस पर उसने गुलाबी रंग की लिप्स्टिक लगा रखी थी, जो मुझे पागल किये जा रही थी. दिल कर रहा था कि बस अभी अपना लंड निकाल कर इसके मुँह में दे दूँ, जिसे ये लोलीपोप की तरह चूसती रहे.
मैं तो अपने इन्हीं सपनों में खोया हुआ था, मेरा सपना तो जब टूटा जब उसने हाथ मिलाने के लिये आगे बढ़ाया और कहा- हाय! आ गये आप! क्या बात है आज कुछ लेट हो गये, रास्ते में कोई और मिल गया था क्या? उसने मजाक में कहा.
मैं कहाँ उसके इस मजाक का जवाब देने की हालत में था, मैंने उससे हाथ मिलाया और कमरे के अन्दर दाखिल हुआ, दरवाजा बंद किया और सीधा उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये, उसके शरबती होंठों का वो स्वाद तो भूले नहीं भूलता यार! मैंने अपने हाथों से उसके चेहरे को थामा और उसको इस कदर चूमने लगा जैसे उसे अब मैं खा ही जाऊँगा.
वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी और बेहताशा पागलों की तरह मुझे चूमे ही जा रही थी, हम दोनों एक दूसरे से इस कदर लिपट चुके थे कि हमारे बीच से हवा भी पार ना हो सके.
हम नहीं जानते कि हम दोनों इस तरह एक दूसरे के होंठों के रसपान का आनन्द कितनी देर तक लेते रहे, पर हाँ हम दोनों एक दूसरे के होंठों के रसपान का आनन्द तब तक लेते रहे जब तक मेरा मुँह नहीं दुखने लग गया.
फ़िर मैंने अपने हाथ उसकी कमर को लपेटे और उसे अपनी बाँहो में उठा लिया और बैड की तरफ़ बढ़ने लगा, पर हमने होंठों का रसपान जारी रखा, जो हमने तभी छोड़ा जब मैंने उसे बैड पर लेटाया.
उसने लेटते-लेटते अपना एक हाथ अपने होंठों पे रखते हुये कहा- जालिम, आज क्या मुझे खा जाने का इरादा है क्या तुम्हारा? थोड़ा आराम से! आज की रात तो मैं तुम्हारी ही हूँ, कोई भागी नहीं जा रही, देखो तुमने मेरे नाजुक से होंठों का क्या हाल कर दिया है, पूरे छील के रख दिये!
मैंने कहा- जान ऐसा तो कोई इरादा नहीं था मेरा! पर क्या करूँ, आज तो तुम कयामत लग रही हो कयामत!
कुछ देर हम ऐसे ही लेटे रहे, फ़िर मैं उठा और उसके ऊपर चढ़ गया, ऊपर चढ़ते ही सबसे पहले मैंने उसके साड़ी का पल्लू एक साईड किया. साड़ी का पल्लू साईड में करते ही मेरा तो दिमाग ही हिल गया, मैंने एक लम्बी सांस ली.
दोस्तो, वास्तव में भारतीय नारी साड़ी में सबसे सुन्दर लगती है, और अगर गलती से भी उसका साड़ी का पल्लू गिर जाये तो लगता है वो ऊपर से नग्न ही हो गई हो!
मेरे सामने भी अब कुछ ऐसा ही नजारा था. और कुछ आजकल की औरतें ब्लाउज भी कुछ ऐसा पहनती हैं, गला खुला हुआ, काफ़ी टाईट जिसे सब शोर्ट कहते हैं. उसने भी कुछ ऐसा ही पहना हुआ था, इस समय जो सबसे आकर्षित करती है वो है औरत की साँस, और हर साँस के साथ ऊपर नीचे होती उसकी चूचियाँ, जिनको देख के मैं तो पागल ही हुआ जा रहा था.
अब मैं हल्का सा उसके ऊपर लेट सा गया, और उसके माथे पे किस किया और उसकी आँखो में देखने लगा, वो हल्की सी मुस्कराई और अपनी आँखें बंद कर ली.
फ़िर मैंने अपने होंठ उसके एक कान पर रखे और जीभ थोड़ी सी बाहर निकाल कर उसके कान के सुराख में घुमाने लगा, उसके मुँह से तो बस सिसकारियाँ निकल रही थी और लम्बी-लम्बी साँसें ले रही थी, उसके दोनों हाथ अपने आप मेरे सिर पर आ चुके थे. मैं उसके कानों को चूमता चाटता हुआ उसकी गरदन तक आया और अपने पूरे होशोहवास खोकर उसकी गरदन को चूमने लगा.
वो तो बस अपने मुँह से बड़ी ही सैक्सी आवाजों में सिसकारियाँ ले रही थी- ऊऊऊह ऊ आह आअ, आराम से जान!
कुछ देर बाद में उसके ऊपर से हटा और उसे बैड के नीचे खड़ा किया, फ़िर मैंने उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ा और उसे उसके जिस्म से अलग करने लगा, साड़ी उसके जिस्म से अलग करके, मैं उसके गले लगा और अपने हाथ उसके पीछे ले जाकर उसके ब्लाउज के हुक खोल कर उसके ब्लाउज को भी उसके जिस्म से अलग कर दिया, उसने ब्लाउज के नीचे ब्रा नहीं पहनी थी जिससे उसके ब्लाउज खुलते ही उसके दोनों कबूतर फ़ड़फ़ड़ा कर बाहर आ गये.
एक बार तो मैंने शान्ति से खड़े होकर नजर भर कर उसके जिस्म को देखा, कमरे मैं सारी की सारी लाईट जली हुई थी, जिससे उसका कामुक बदन साफ़-साफ़ नजर आ रहा था.
सच में दोस्तो, बनाने वाले ने भी पता नहीं क्या सोच कर बनाया होगा! जैसे पानी को जिस बर्तन में भी डालो वो वैसा ही आकार ले लेता है, वैसे ही औरत के बदन को भी कोई भी कपड़ा पहनाओ, वो कयामत ही लगती है.
और जब उसके ये कपड़े उसके बदन से उतरते है तो देखने वाले की आँखों के सामने तो कयामत ही आ जाती है और उसके लंड के सामने उसकी सारी इन्द्रियाँ काम करना बन्द कर देती हैं, और वो सारी दुनिया भुला कर उसी को चोदने के लिये तड़प जाता है फ़िर चाहे वो अच्छा हो या बुरा!
मेरी हालत भी शायद अब कुछ ऐसी ही थी कि अगर अब हमारे बीच कोई आ जाये तो वो हम दोनों का सबसे बड़ा दुश्मन होगा इस दुनिया का.
मैं यह सब सोच ही रहा था कि वो थोड़ी शरमा के मुझसे लिपट गई. उसके लिपटते ही मुझे इतनी खुशी हुई कि मैंने भी उसे अपनी बाहों में समेट लिया और अपने हाथों से उसकी पीठ सहलाने लगा, उसने तो अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया और चूमने लगी. मैं तो खुशी के मारे अपना मुँह छत की तरफ़ कर मुस्करा रहा था और अपने आप पर घमंड भी हो रहा था, क्योंकि यह मेरी किस्मत ही तो थी जो आज मैं इतनी खूबसूरत औरत को अपनी बाहों में समेटे खड़ा था.
वो मेरी बाहों में झूल रही थी और मैं उसके कोमल से बदन से खेले ही जा रहा था और नीचे मेरा लंड ठुनक-ठुनक के अपनी मौजूदगी का अहसास दिला रहा था और यह बात शायद वो भी जानती थी, जिसका इजहार उसने मेरे लंड पर अपनी चूत का दबाव बनाकर प्रदर्शित किया, और सच में इन छोटी-छोटी हरकतो में हमें बहुत मजा आ रहा था, क्योंकि चुदाई का मतलब यह नहीं कि बस चूत में लंड डाल कर 10 या 15 मिनट हिलाओ, इससे तो पूरा मजा 10 या 15 मिनट में ही खत्म हो जायेगा, और हमें तो आज पूरी रात जाग के एक दूसरे के बदन के साथ खेलना था और इस खेल के आनन्द को वो ही समझ सकता है जिसने यह खेल खेला हो.
हम फ़िर से एक दूसरे को चूमने लगे, अब मैं चूमता-चूमता नीचे की तरफ़ बढ़ा और उसकी गर्दन को चूमने लगा. अब मैं और नीचे बढ़ा और एक हाथ से उसकी एक चूची पकड़ी और दूसरी चूची को अपने मुँह में लिया, वो तो बस एक बेबस चिड़िया की तरह प्यार भरी सिसकारियाँ ले रही थी और अपने हाथों से मेरे सिर को पकड़ कर अपने शरीर के हर उस हिस्से, जिस हिस्से को मैं चूम रहा था, पर मेरे मुँह का दबाव बढ़ा रही थी. वो इस कदर दबाव डाल रही थी जैसे मुझे पूरे को ही अपने अन्दर समा लेना चाहती हो, और सिसकारियों में कुछ अजीब बड़बड़ा रही थी- आ आआ मेरे राआ आअ जा आअ जोर से करो मसल डालो मुझे, निचोड़ के पी जाओ आज मुझे, जाने ये मेरा बदन कब से तड़प रहा था एक मर्द के लिये, इतना आग में तड़पा है ये कि एक बार की चुदाई से इसे कोई फ़रक नहीं पड़ा, आज मेरी दिल की सारी तमन्ना पूरी कर दो, आज तोड़ मरोड़ के रख दो मुझे! आज की रात जवानी के पूरे मजे दो मुझे, आज की रात मुझे इस कदर चोदो कि आज की रात में कभी भुल ना पाऊँ.
उसकी ये बातें और सिसकारियाँ मेरे जोश को और बढ़ा रही थी और मैं उसकी चूचियो को और जोर से मसल रहा था, चूम रहा था.
मैं कभी एक चूचि को अपने मुँह में लेता और दूसरी को अपने हाथ से दबाता, और कभी दूसरी को मुँह में लेता और पहली को हाथ से दबाता.
मैं उसकी चूचियों को इतनी जोर से दबा रहा था कि उसकी चूचियाँ लाल पड़ गई थी और कई जगह पर तो मेरे दांतों के निशान भी पड़ गये थे.
अब मैं उसके पेट को चूमते हुये नीचे की तरफ़ बढ़ा, मैं उसके सामने अपने घुटनों पर बैठ गया, नीचे बैठते ही मैंने अपने हाथ आगे बढ़ा कर उसके पेटीकोट का नाड़ा खोला, नाड़ा खोलते ही उसका पेटीकोट खिसक कर नीचे आ गया, पेटीकोट नीचे आते ही उसका पूरा बदन मेरी आँखों के सामने था.
मैंने पेटीकोट को उसके पैरों से अलग किया, मेरे सामने अब वो पूरी तरह से नंगी खड़ी थी, उसकी चूत तो ना जाने अब तक कितना पानी छोड़ चुकी थी, मैंने बस कुछ देर उसको देखा, और बिना समय गंवाये उसकी चूत पर अपना मुँह रख दिया और अपनी जीभ को नुकीली करके उसकी चूत के अन्दर दाखिल कर दिया.
मेरा ऐसा करने पर उसने अपने दोनों हाथ मेरे सिर पर रख दिये और मेरे सिर पर दबाव बढ़ाने लगी. वो तो आँखें बंद करके इस पल का मजा बड़े आराम से लेने लगी. उसकी टांगें कांप रही थी और दिल को छू जाने वाली सिसकारियाँ अपने मुँह से निकाल रही थी जिसे सुन कर मेरा जोश और बढ़ रहा था.
मैं भी उसे बड़े मजे ले लेकर चूसे जा रहा था, कुछ देर बाद उसका शरीर अकड़ने लगा, उसने अपनी टांगों को भींच लिया और अपनी टांगों के बीच मेरे सिर को मसलने लगी.
कुछ ही देर बाद उसका फ़व्वारा फ़ूट गया, जिसे मैं बड़े चाव से पीता गया, अब वो शान्त हो चुकी थी, उसने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया, और मुझे चूमने लगी.
अब हम दोनों बैड पर आ गये और एक दूसरे की बाहों में बाहें डाल कर एक दूसरे के जिस्म के साथ खेलने लगे. वो लंड को बड़े आराम से सहलाने लगी और अपने मुँह में लेकर चूसने लगी. वो मेरे ऊपर चढ़ गई और लंड को अपनी चूत के छेद पर लगा के उस पर आराम से बैठने लगी, लंड धीरे धीरे उसकी चूत के अन्दर जा रहा था और शायद इससे उसको थोड़ी तकलीफ़ भी हो रही थी. उसने अपनी आँखें बंद कर के कुछ सिसकारियाँ ली.
कुछ ही देर बाद का नजारा यह था कि मेरा पूरा का पूरा लंड उसकी चूत की गहराइयों में उतर चुका था, अब उसने अपनी आँखें खोली, मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराई और मेरे ऊपर झुक कर मेरे माथे को चूम लिया. उसकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ मेरी आँखों के सामने झूल रही थी, मैंने अपने हाथ आगे बढ़ा कर उसकी दोनों चूचियों को थाम लिया और एक-एक करके चूसने लगा.
उसने तो अपनी बाहें मेरे गले में डाली हुई थी, अपने चूतड़ों को अपनी पूरी ताकत से उठा उठा कर लंड पर बरसा रही थी, और अपने मुँह से मस्त मस्त आवाज निकाल रही थी.
अब वो उठी और उलटी हो कर फ़िर से लण्ड पर बैठ गई, अबकि बार जब वो लंड पर बैठी तो लंड एक ही झटके में पूरा का पूरा अन्दर चला गया क्योंकि लंड और चूत पूरी तरह से गीले हो चुके थे, और इतनी चिकनाई होने के कारण लंड को अन्दर जाने में कोई तकलीफ़ नहीं हुई और अब तक तो उसकी चूत मेरे लंड के आकार के मुताबिक फ़ैल चुकी थी, शायद इसलिये उसे भी अपनी चूत में लंड लेते हुये कोई परेशानी नहीं हुई.
उसकी पीठ मेरी तरफ़ थी और उसने अपने हाथ मेरे पैरों पर रखे हुये थे, वो अपने चूतड़ों को उठा-उठा कर जोर-जोर से पटक रही थी वो इस पल का मजा पूरे दिलो जान से ले रही थी.
मैं तो अपने हाथों से उसके चूतड़ों की गोलाइयाँ नाप रहा था और साथ-साथ उसकी पीठ को भी सहला रहा था.
यह करते-करते मुझे एक शरारत सूझी, मैंने अपनी एक उंगली को अपने मुँह में लेकर गीली किया और उसकी गांड के छेद पर रख दी, और थोड़ी सी ताकत लगाई तो उंगली एक पोर तक गांड के अन्दर चली गई, मेरी इस हरकत से शायद वो अन्जान थी इसलिये उंगली गांड के अन्दर जाते ही वो उछल पड़ी और उसने मेरी तरफ़ पलट कर देखा और अपने हाथ से मेरी उंगली को अपनी गांड के छेद से बाहर निकाल कर बोली- क्या कर रहे हो? इसका भी नम्बर आयेगा, थोड़ा सब्र करो!
और वो फ़िर से अपने चूतड़ उछालने लगी, पर मैं कहाँ रुकने वाला था, मैंने फ़िर वही किया, वो फ़िर से बोली- मानोगे नहीं तुम?
उसने मेरा लंड अपनी चूत से बाहर निकाला और एक दो बार अपनी गांड के छेद पर रगड़ कर उसे अपनी गांड के छेद पर टिकाया और उस पर अपनी गांड का दबाव बनाया, लंड चूत में इतनी देर रहने के बाद काफ़ी चिकना हो चुका था जिसके कारण लंड की टोपी तो एक ही झटके में अन्दर चली गई, टोपी अन्दर जाते ही उसने प्यार भरी एक सिसकारी ली और फ़िर से उसने अपनी गांड का दबाव मेरे लंड पर बनाया.
अब की बार लंड धीरे धीरे सरकता हुआ आधे से ज्यादा अन्दर चला गया, अब उसने अपनी गांड ऊपर उठाई जिससे लंड टोपी तक उसकी गांड से बाहर आ गया, उसने एक लम्बी सांस ली और मेरे लंड पर बैठ गई. अब की बार लंड पूरा का पूरा जड़ तक उसकी गांड में उतर गया, लंड गांड में जड़ तक उतरने के साथ-साथ उसके मुँह से दर्द और आनन्द की एक मिली जुली सिसकारी निकली.
वो कुछ देर ऐसे ही बैठी और फ़िर से अपना काम चालू कर दिया यानि अपनी गांड उठा उठा कर लंड पर मारने लगी.
दोस्तो क्या खूबसूरत नजारा था! वो लंड को टोपी तक बाहर निकालती और फ़िर उसे अपनी गांड के अन्दर ले जाती, मैं तो अपने दोनों हाथ अपने सिर के पीछे रखकर इस नजारे का मजा ले रहा था, वो तो बस मजे में सिसकारियाँ ले ले कर अपनी गांड मेरे लंड पर पटके जा रही थी.
अब इतनी देर की चुदाई के बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा था, मुझे लग रहा था शायद अब मैं छुट जाऊँगा, पर अभी मैं ये नहीं चाहता था, मैंने उसको अपने ऊपर से हटाया और बैड के किनारे पर बैठ कर लम्बी-लम्बी सांस लेने लगा.
अब मैंने उसको बैड के किनारे पर घोड़ी बनाया और अपने लंड को पकड़ कर एक बार चूत से लेकर उसकी गांड तक फ़िराया और उसकी गांड के छेद पर रखकर और थोड़ा सा दबाव बनाया. लंड उसकी गांड की गहराई में उतर गया.
अब मैं उसको अपने पूरे जोश से चोदने लगा, वो भी अपनी गांड को पीछे की तरफ़ हिला हिला के मेरे हर एक धक्के का जवाब दे रही थी और अपनी गांड की गहराइयों में मेरे लंड का स्वागत कर रही थी. वो अपने एक हाथ से अपनी चूत के दाने को भी छेड़ रही थी. अब मेरा शरीर फ़िर से अकड़ने लगा, तो मैंने भी अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी और कुछ ही देर में मेरा झड़ने का वक्त आ गया था, मैंने उसकी कमर को कसकर पकड़ लिया, और अपने लंड से फ़व्वारा उसकी गांड के अन्दर ही छोड़ दिया.
लंड अन्दर फ़व्वारे पे फ़व्वारे छोड़े जा रहा था जब तक लंड ने अपने अन्दर की एक-एक बून्द उसकी गांड के अन्दर ना छोड़ दी. मैं नहीं जानता मेरे लंड ने उसकी गांड के अन्दर कितना वीर्य छोड़ा पर उसकी पूरी गांड भर गई, जिसके साथ-साथ उसने भी अपनी चूत का पानी छोड़ दिया.
इतनी लम्बी चुदाई के बाद मैं काफ़ी थक गया था, मैं बैड पर लेट गया और वो भी मेरे बगल में लेट कर मेरी छाती के बालों से खेलने लगी, कभी वो मेरी छाती के बालों से खेलती कभी मेरी चूचियो को अपनी जीभ से चाटती.
उसके ऐसा करने से मुझे बहुत मजा आ रहा था और मेरी थकान भी दूर हो रही थी.
[email protected] कहानी का अगला भाग: औरत की चाहत-3
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