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शगन कुमार
शायद उसे इसी की प्रतीक्षा थी… उसने धीरे धीरे सुपारे का दबाव बढ़ाना शुरू किया… उसकी आँखें बंद थीं जिस कारण सुपारा अपने निशाने से चूक रहा था और योनि-रस के कारण फिसल रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था मुझे डर ज़्यादा लग रहा है या काम-वासना ज़्यादा हो रही है। मैं बिल्कुल स्थिर हो गई थी… मैं नहीं चाहती थी कि मेरे हिलने-डुलने के कारण भोंपू का निशाना चूक जाये। जब वह दबाव बढाता, मेरी सांस रुक जाती। मुझे पता चल रहा था कब उसका सुपारा सही जगह पर है और कब चूक रहा है। मैंने सोच लिया मुझे ही कुछ करना पड़ेगा…
अगली बार जैसे ही सुपारा ठीक जगह लगा और भोंपू ने थोड़ा दबाव डाला, मैंने ऊपर की ओर हल्का सा धक्का दे दिया जिससे सुपारे का मुँह योनि में अटक गया। मेरी दर्द से आह निकल गई पर मेरी कार्यवाही भोंपू से छिपी नहीं थी। उसने नीचे झुक कर मेरे होटों को चूम लिया। वह मेरे सहयोग का धन्यवाद दे रहा था।
उसने लंड को थोड़ा पीछे किया और थोड़ा और ज़ोर लगाते हुए आगे को धक्का लगाया। मुझे एक पैना सा दर्द हुआ और उसका लंड योनि में थोड़ा और धँस गया। इस बार मेरी चीख और ऊंची थी… मेरे आंसू छलक आये थे और मैंने अपनी एक बांह से अपनी आँखें ढक ली थीं।
भोंपू ने बिना हिले डुले मेरे गाल पर से आंसू चूम लिए और मुझे जगह जगह प्यार करने लगा। कुछ देर रुकने के बाद उसने धीरे से लंड थोड़ा बाहर किया और मुझे कन्धों से ज़ोर से पकड़ते हुए लंड का ज़ोरदार धक्का लगाया। मैं ज़ोर से चिल्लाई… मुझे लगा योनि चिर गई है… उधर आग सी लग गई थी… मैं घबरा गई। उसका मूसल-सा लंड मेरी चूत में पूरा घुंप गया था… शायद वह मेरी पीठ के बाहर आ गया होगा। मैं हिलने-डुलने से डर रही थी… मुझे लग रहा था किसीने मेरी चूत में गरम सलाख डाल दी है। भोंपू मेरे साथ मानो ठुक गया था… वह मुझ पर पुच्चियों की बौछार कर रहा था और अपने हाथों से मेरे पूरे शरीर को प्यार से सहला रहा था।
काफ़ी देर तक वह नहीं हिला… मुझे उसके लंड के मेरी योनि में ठसे होने का अहसास होने लगा… धीरे धीरे चिरने और जलने का अहसास कम होने लगा और मेरी सांस सामान्य होने लगी। मेरे बदन की अकड़न कम होती देख भोंपू ने मेरे होंटों को एक बार चूमा और फिर धीरे धीरे लंड को बाहर निकालने लगा। थोड़ा सा ही बाहर निकालने के बाद उसने उसे वापस पूरा अंदर कर दिया… और फिर रुक गया… इस बार उसने मेरे बाएं स्तन की चूची को प्यार किया और उसपर अपनी जीभ घुमाई… फिर से उसने उतना ही लंड बाहर निकाला और सहजता से पूरा अंदर डाल दिया… इस बार मेरे दाहिने स्तन की चूची की बारी थी… उसे प्यार करके उसने धीरे धीरे लंड थोड़ा सा अंदर बाहर करना शुरू किया… मुझे अभी भी हल्का हल्का दर्द हो रहा था पर पहले जैसी पीड़ा नहीं। मुझे भोंपू के चेहरे की खुशी देखकर दर्द सहन करने की शक्ति मिल रही थी।
उसने धीरे धीरे लंड ज़्यादा बाहर निकाल कर डालना शुरू किया और कुछ ही मिनटों में वह लंड को लगभग पूरा बाहर निकाल कर अंदर पेलने लगा। मुझे इस दर्द में भी मज़ा आ रहा था। उसने अपनी रफ़्तार तेज़ की और बेतहाशा मुझे चोदने लगा… 5-6 छोटे धक्के लगा कर एक लंबा धक्का लगाने लगा… उसमें से अजीब अजीब आवाजें आने लगीं…हर धक्के के साथ वह ऊंह… ऊंह… आह… आहा… हूऊऊ… करने लगा ..
“ओह… तुम बहुत अच्छी हो… तुमने बहुत मज़ा दिया है।” वह बड़बड़ा रहा था।
मैंने उसके सिर में अपनी उँगलियाँ चलानी शुरू की और एक हाथ से उसकी पीठ सहलाने लगी। मुझे भी अच्छा लग रहा था।
“मन करता है तुम्हें चोदता ही रहूँ…”
…मैं उसकी हाँ में हाँ मिलाना चाहती थी… मैं भी चाहती थी वह मुझे चोदता रहे… पर मैंने कुछ कहा नहीं… बस थोड़ा उचक कर उसकी आँखों पर से पट्टी हटा दी और फिर उसकी आँखों को चूम लिया।
वह बहुत खुश हो गया। उसने चोदना जारी रखते हुए मेरे मुँह और गालों पर प्यार किया और मेरे स्तन देखकर बोला,” वाह… क्या बात है !” और उनपर अपने मुँह से टूट पड़ा।
मैंने महसूस किया कि चुदाई की रफ़्तार बढ़ रही है और उसके वार भी बड़े होते जा रहे हैं। उसना अपना वज़न अपनी हथेलियों और घुटनों पर ले लिया था और वह लंड को पूरा अंदर बाहर करने लगा था। उसने अपना मरदाना मैथुन जारी रखा। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं और वह हांफने सा लगा था… एक बार लंड पूरा अंदर डालने के बाद वह एक पल के लिए रुका और एक लंबी सांस के साथ लंड पूरा बाहर निकाल लिया। फिर उसने योनि-द्वार बंद होने का इंतज़ार किया। कपाट बंद होते ही उसने सुपारे को द्वार पर रखा और एक ज़ोरदार गर्जन के साथ अपने लट्ठ को पूरा अंदर गाड़ दिया।
मेरे पेट से एक सीत्कार सी निकली और मैं उचक गई… मेरी आँखें पथरा कर पूरी खुल गई थीं… उनका हाल मेरी योनि जैसा हो गया था। उसने उसी वेग से लंड बाहर निकाला और घुटनों के बल हो कर मेरे शरीर पर अपने प्रेम-रस की पिचकारी छोड़ने लगा… उसका बदन हिचकोले खा खा कर वीर्य बरसा रहा था… पहला फव्वारा मेरे सिर के ऊपर से निकल गया… मेरी आँखें बंद हो गईं… बाकी फव्वारे क्रमशः कम गति से निकलते हुए मेरी छाती और पेट पर गिर गए।
मैंने आँखें खोल कर देखा तो उसका लंड खून और वीर्य में सना हुआ था। खून देख कर मैं डर गई।
“यह खून?” मेरे मुँह से अनायास निकला।
भोंपू ने मेरे नीचे से तौलिया निकाल कर मुझे दिखाया… उस पर भी खून के धब्बे लगे हुए थे और वीर्य से गीला हो रहा था।
“घबराने की बात नहीं है… पहली बार ऐसा होता है।”
“क्या?”
“जब कोई लड़की पहली बार सम्भोग करती है तो खून निकलता है… अब नहीं होगा।”
“क्यों?”
“क्योंकि तुम्हारे कुंवारेपन की सील टूट गई है… और तुमने यह सम्मान मुझे दिया है… मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ।” कहकर वह मुझ पर प्यार से लेट गया और मेरे गाल और मुँह चूमने लगा।
उसका बदन अभी भी हिचकोले से खा रहा था और उसका वीर्य हिचकोलों के साथ रिस रहा था। मेरे पेट पर उसका वीर्य हमारे शरीरों को गोंद की तरह जोड़ रहा था। कुछ ही देर में उसका लंड एक फुस्स गुब्बारे की माफ़िक मुरझा गया और भोंपू एक निस्सहाय बच्चे के समान अपना चेहरा मेरे स्तनों में छुपा कर मुझ पर लेटा था। वह बहुत खुश और तृप्त लग रहा था।
मैंने अपनी बाहें उस पर डाल दीं और उसके सिर के बाल सहलाने लगी। वह मेरे स्तनों को पुचपुचा रहा था और उसके हाथ मेरे बदन पर इधर उधर चल रहे थे। हम कुछ देर ऐसे ही लेटे रहे… फिर वह उठा और उसने मेरे होटों को एक बार ज़ोर से पप्पी की और बिस्तर से हट गया। उसका मूसल मुरझा कर लुल्ली बन गया था। भोंपू ने अपने आप को तौलिए में लपेट लिया।
“तो बताओ अब पांव का दर्द कैसा है?” भोंपू ने अचानक पूछा।
“बहुत दर्द है… !” मैंने मसखरी करते हुए जवाब दिया।
“क्या…?” उसने चोंक कर पूछा।
“तुमने कहा था 2-4 दिन में ठीक हो जायेगा… मुझे लगता है ज़्यादा दिन लगेंगे…!!” मैंने शरारत भरे अंदाज़ में कहा।
उसने मुझे बाहों में भर लिया और फिर बाँहों में उठा कर गुसलखाने की तरफ जाने लगा।
“तुम तो बहुत समझदार हो… और प्यारी भी… शायद 5-6 दिनों में तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी।”
“नहीं… दस-बारह दिन लगेंगे !” कहते हुए मैंने अपना चेहरा उसके सीने में छुपा दिया।
गुसलखाने पहुँच कर उसने मुझे नीचे उतारते हुए कहा “तुम मुझे नहलाओ और मैं तुम्हें !!”
“धत्त… मैं कोई बच्ची थोड़े ही हूँ !”
“इसीलिये तो मज़ा आएगा।” उसने मुझे आलिंगनबद्ध करते हुए मेरे कान में फुसफुसाया।
“चल… हट…” मैंने मना करते हुए रज़ामंदी जताई।
“पहले मैं तुम्हें नहलाता हूँ।” कहकर उसने मुझे स्टूल पर बिठा दिया और मुझ पर पानी उड़ेलने लगा। पहले लोटे के पानी से मैं ठण्ड से सिहर उठी… पानी ज़्यादा ठंडा नहीं था फिर भी मेरे गरम बदन पर ठंडा लगा। उसने एक दो और लोटे जल्दी जल्दी डाले और मेरा शरीर पानी के तापमान पर आ गया… और मेरी सिरहन बंद हुई।
“अरे ! तुमने तो मेरे बाल गीले कर दिए।”
“ओह… भई हम तो पानी सिर पर डाल कर ही नहाते हैं।” उसने साबुन लगाते हुए कहा। उसने मेरे पूरे बदन पर खूब अच्छे से साबुन लगाया और झागों के साथ मेरे अंगों के साथ खेलने लगा। वैसे तो उसने मेरे सब हिस्सों को अच्छे से साफ़ किया पर उसका ज़्यादा ध्यान मेरे मम्मों और जाँघों पर था। रह रह कर उसकी उँगली मेरे चूतड़ों के कटाव में जा रही थी और उसकी हथेलियाँ मेरे स्तनों को दबोच रही थीं। वह बड़े मज़े ले रहा था। मुझे भी अच्छा ही लग रहा था।
उसने मेरी योनि पर धीरे से हाथ फिराया क्योंकि वह थोड़ी सूजी हुई सी लग रही थी। फिर योनि के चारों ओर साबुन से सफाई की। फिर भोंपू खड़ा हो गया और मुझे भी खड़ा करके अपने सीने और पेट को मेरी छाती और पेट से रगड़ने लगा।
“मैं साबुन की बचत कर रहा हूँ… तुम्हारे साबुन से ही नहा लूँगा।”
मुझे मज़ा आ रहा था सो मैं कुछ नहीं बोली। वह घूम गया और अपनी पीठ मेरे पेट और छाती पर चलाने लगा।
अब उसने मुझे घुमाया और मेरी पीठ पर अपना सीना और पेट लगा कर ऊपर-नीचे और दायें-बाएं होने लगा। मैंने महसूस किया उसका लिंग फिर से अंगड़ाई लेने लगा था। उसका सुपारा मेरे चूतड़ों के कटाव से मुठभेड़ कर रहा था… धीरे धीरे वह मेरी पीठ में, चूतड़ों के ऊपर, लगने लगा। उसका मुरझाया लिंग लुल्ली से लंड बनने लगा था। उसके हाथ बराबर मेरे स्तनों को मसल रहे थे। उसने घुटनों से झुक कर अपने आप को नीचा किया और अपने तने हुए लंड को मेरे चूतड़ों और जाँघों में घुमाने लगा। मैं अपने बचाव में पलट गई और वह सीधा हो गया… पर मैं तो जैसे आसमान से गिरी और खजूर में अटकी… अब उसका लंड मेरी नाभि को सलाम कर रहा था | उसने फिर से अपने आप को नीचे झुकाया और उसका सुपारा मेरी योनि ढूँढने लगा।
“ये क्या कर रहे हो ?” मैंने पूछा।
“कुछ नहीं” कहकर वह सीधा खड़ा हो गया और मुझे नहलाने में लग गया। उसके लंड का तनाव जाता रहा और उसने मेरे ऊपर पानी डालते हुए मेरा स्नान पूरा किया।
अब मेरी बारी थी सो मैंने उसे स्टूल पर बिठाया और उस पर लोटे से पानी डालने लगी। वह भी शुरू में मेरी तरह कंपकंपाया पर फिर शांत हो गया। मैंने उसके सिर से शुरू होते हुए उसको साबुन लगाया और उसके ऊपरी बदन को रगड़ कर साफ़ करने लगी। वह अच्छे बच्चे की तरह बैठा रहा। मैंने उसे घुमा कर उसकी पीठ पर भी साबुन लगा कर रगड़ा। अब उसको खड़ा होने के लिए कहा और पीछे से उसके चूतड़ों पर साबुन लगा कर छोड़ दिया।
“ये क्या… यहाँ नहीं रगड़ोगी?” उसने शिकायत की।
तो मैंने उसके चूतड़ों को भी रगड़ दिया। उसने अपनी टांगें चौड़ी कर दीं और थोड़ा झुक गया मानो मेरे हाथों को उनके कटाव में डालने का न्योता दे रहा हो। मैंने अपने हाथ उसकी पीठ पर चलाने शुरू किये।
“तुम बहुत गन्दी हो !”
“क्यों? मैंने क्या किया?” मैंने मासूमियत में पूछा।
“क्या किया नहीं… ये पूछो क्या नहीं किया।”
“क्या नहीं किया?”
“अब भोली मत बनो।” उसने अपने कूल्हों से मुझे पीछे धकेलते हुए कहा।
मैं हँसने लगी। मुझे पता था वह क्यों निराश हुआ था। अब मैं अपने घुटनों पर नीचे बैठ गई और उसकी टांगों और पिंडलियों पर साबुन लगाने लगी। पीछे अच्छे से साबुन लगाने के बाद मैंने उसे अपनी तरफ घुमाया। उसका लिंग मेरे मुँह के बिल्कुल सामने था और उसमें जान आने सी लग रही थी। मेरे देखते देखते वह उठने लगा और उसमें तनाव आने लगा। उसकी अनदेखी करते हुए मैं उसके पांव और टांगों पर साबुन लगाने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
वह जानबूझ कर एक छोटा कदम आगे लेकर अपने आप को मेरे नज़दीक ऐसे ले आया कि उसका लिंग मेरे चेहरे को छूने लगा। मैं पीछे हो गई। वह थोड़ा और आगे आ गया। मैं और पीछे हुई तो मेरी पीठ दीवार से लग गई। वह और आगे आ गया।
“यह क्या कर रहे हो?” मैंने झुंझला कर पूछा।
“इसको भी तो नहाना है।” वह अपने लंड को मेरे मुँह से सटाते हुए बोला।
“तो मेरे मुँह में क्यों डाल रहे हो?” मैंने उसे धक्का देते हुए पीछे किया।
“पहले इसे नहलाओ, फिर बताता हूँ।”
मैंने उसके लंड को हाथ में लेकर उस पर साबुन लगाया और जल्दी से पानी से धो दिया।
“बड़ी जल्दी में हो… अच्छा सुनो… तुमने कभी इसको पुच्ची की है?”
“किसको?”
“मेरे पप्पू को !”
“पप्पू?”
“तुम इसको क्या बुलाती हो?” उसने अपने लंड को मेरे मुँह की तरफ करते हुए कहा।
“छी ! इसको दूर करो…” मैंने नाक सिकोड़ते हुए कहा।
“इसमें छी की क्या बात है?… यह भी तो शरीर का एक हिस्सा है… अब तो इसे तुमने नहला भी दिया है।” उसने तर्क किया।
“छी… इसको पुच्ची थोड़े ही करते हैं… गंदे !”
“करते हैं… खैर… अभी तुम भोली हो… इसीलिए तुम्हें सब भोली कहते हैं।”
मैं चुप रही।
“अब मैं ही तुम्हें सब कुछ सिखाऊँगा।”
मैंने उसका स्नान पूरा किया और हमने एक दूसरे को तौलिए से पौंछा और बाहर आ गए।
“मुझे तो मज़ा आ गया… अब तुम ही मुझे नहलाया करो।” भोंपू ने आँख मारते हुए कहा।
“गंदे !”
“तुम्हें मज़ा नहीं आया?”
मैंने नज़रें नीची कर लीं।
“चलो एक कप चाय हो जाये !” उसने सुझाव दिया।
“अब तो खाने का समय हो रहा है… गुंटू शीलू आते ही होंगे।” मैंने राय दी।
“हाँ, यह बात भी है… चलो उनको आने दो… खाना ही खायेंगे… मैं थोड़ा बाहर हो कर आता हूँ।” कहते हुए भोंपू बाहर चला गया।
मुझे यह ठीक लगा। शीलू और गुंटू घर आयें, उस समय भोंपू घर में ना ही हो तो अच्छा है। शायद भोंपू भी इसी ख्याल से बाहर चला गया था।
कहानी जारी रहेगी, यहाँ तक की कहानी कैसी लगी?
शगन
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