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लेखिका : शालिनी
जब से हमारे पुराने प्रबंधक कुट्टी सर नौकरी छोड़ कर गए थे, नए प्रबंधक के साथ बैठकों में और काम में कार्यालय के सब लोग व्यस्त थे। रोज़ का एक जैसा ही कार्यक्रम बन गया था कार्यालय से थक कर घर आ कर खाना खाना और सो जाना।
कोई दो महीने के बाद जब हमारे इन नए प्रबंधक को मुख्य कार्यालय में बैठक के लिये बुलाया गया तो सब सहकर्मियों ने राहत की सांस ली कि अब चार पाँच दिनों तक कुछ आराम रहेगा।
मैंने उसी दिन मनीष को हालचाल पूछने के लिये फोन किया। कुछ देर सामान्य बातों के बाद उससे आशीष के बारे में पूछा तो मनीष कहने लगा कि आशीष भी तुम दोनों के बारे में पूछ रहा था।
मैंने उसे अपनी व्यस्तता के बारे में बताया और कहा कि मैं रचना से कहूँगी कि एक बार आशीष से बात कर ले।
फिर मैंने उसे पूछा- तुम दोनों ने कुछ चुदाई का कोई प्रोगाम किया है? तो मनीष कहने लगा कि जब से मैं और रचना उन दोनों से मिली हैं उसके बाद से वे दोनों किसी और लड़की को देखते भी नहीं हैं।
मैंने उसे कहा कि आने वाले शनिवार की सुबह दोनों भाई आ जाएं। मैंने रचना को उन दोनों के बारे में कुछ नहीं बताया और सोचा कि शाम को दोनों से मिल ही लेगी।
शनिवार को वे दोनों आये। चाय पीते पीते हम तीनों आपस में घर और पढ़ाई इत्यादि के बारे में बातें करने लगी। फिर मैंने उन दोनों को खाने के बारे में पूछा। इस पर आशीष कहने लगा कि आज वे लोग खाने के लिये मीट आदि लेकर आये हैं अगर मुझे कोई आपत्ति ना हो तो आज वे लोग खाना बनायेंगे।
मैं कहने लगी कि मैं बना दूँगी तो मनीष हँस कर कहने लगा कि वे दोनों बुरा खाना नहीं बनाते।
मैंने देखा कि उन दोनों ने कुछ पैकेट निकाल कर रसोई में रखे और आशीष ने फ्रिज में बियर रखी। वे दोनों रसोई में जाने लगे तो मैं साथ खड़ी होकर उन्हें मसालों इत्यादि बारे में बताने लगी।
उन दोनों ने अपनी अपनी टी-शर्ट उतारी और रसोई में व्यस्त हो गए और मैं भी कुछ साफ सफाई में लग गई।
कुछ समय बाद मैंने मनीष और आशीष के लिये बियर डाली और साथ में खाने के लिये काजू और चिप्स आदि प्लेट में डाल दिये। आशीष ने मुझे वोदका के बारे में पूछा तो मैंने अपने लिये भी थोड़ी सी वोदका और जूस डाल लिया। बीच बीच में रसोई में जाकर यह भी पूछ लेती कि उन्हें कुछ चाहिये तो नहीं। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
जब भी मैं रसोई में जाती तो कभी मनीष की और कभी आशीष की गांड पर हाथ फेरते हुए उनसे बात करती, कभी उनकी पीठ को चूम लेती और कभी उनकी पीठ पर अपने मोम्मे गड़ा कर दबा देती। मैंने अपने लैपटॉप पर संगीत लगा दिया था और थिरकते हुए उन दोनों को उकसा रही थी।
वे दोनों भी मुझे छेड़ रहे थे कभी मुझे चूम लेते कभी मेरे मोम्मे दबा देते कभी मुझे कमर से पकड़ कर आगे या पीछे से एक आध धक्का भी मार देते। ऐसे ही मस्ती मस्ती में उन दोनों ने तीन तीन बियर पी लीं और अब वे दोनों सरूर में थे।
कुछ देर के बाद आशीष ने मुझे कहा कि मैं एक बार सब्ज़ी को देख लूँ। मैंने सब कुछ देखा और कहा कि बस अब इस को कुकर में पकने के लिये छोड़ दो।
मैंने उन दोनों की पैंटों के ऊपर से उनके लंड को मसलते हुए कहा, “मैं बाथरूम होकर आती हूँ तब तक तुम दोनों अपने अपने कपड़े उतार कर अपने लंड को तैयार कर लो !”
मैंने जल्दी से बेडरूम में जाकर अपनी वही काली ब्रा पैंटी और लाल रंग के सेंडिल, जो रचना खरीद कर लाई थी, निकाले और बाथरूम में चली गयी। मैंने अपने सब कपड़े उतारे और सिर्फ ब्रा पैंटी और सेंडिल पहन कर बाहर आ गई। मैं उनके सामने अपनी कमर पर हाथ रख खड़ी हो गयी और बोली,”आ जाओ मेरे शेरो ! मेरी भूख मिटा दो !!”
मैंने देखा कि उन दोनों के लंड खड़े हो कर कड़क हो चुके थे। मनीष कहने लगा,”आशीष आज पहले तू शालिनी को चोद ले !”
“नहीं मनीष पहले तू चोद ले !” आशीष अपने लंड की मुठ मारता हुआ बोला।
मैं घूम कर अपनी पीठ उनकी ओर करके अपनी पैंटी नीचे सरका कर अपनी गांड हिलाते हुए बोली, “तुम दोनों एक साथ ही मेरी भूख मिटा दो और अपनी प्यास भी बुझा लो ! और आज अगर मैं चिल्लाऊँ तो भी रुकना नहीं बस चोदते रहना !”
मेरा इतना कहने की देर थी कि वे दोनों अपने लंड हिलाते हुए खड़े हो गये और मुझे दबोच लिया। मेरी एक ओर मनीष खड़ा हो गया और दूसरी ओर से आशीष आ गया। दोनों ने मेरे गालों को चाटते हुए मेरा एक एक मोम्मा दबाना शुरू कर दिया। मैंने भी दोनों को बारी बारी उनके होठों पर चूम लिया और उन दोनों के लंड पकड़ कर हिलाने लगी। मैं उन दोनों के सामने नीचे बैठ कर उनके लंड चूमने और चूसने लगी। कभी मनीष का लंड चूसती तो कभी आशीष का।
आशीष ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाया और मेरे पीछे आकर मेरी पीठ और गर्दन चाटने लगा। मनीष मेरे सामने से आकर मेरे मोम्मे दबाते हुए मेरे गालों को चूमने लगा। आशीष ने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया तो मनीष ने आगे से मेरी ब्रा उतार कर फ़ेंक दी और मेरे मोम्मे चूसने लगा। आशीष ने अपना लंड पीछे से मेरी पैंटी में डाल दिया और बोला, “मनीष तू अपना लंड आगे से इसकी पैंटी में डाल दे और इसे धक्के मार पीछे से मैंने अपना लंड इसकी पैंटी में डाल दिया है।”
मनीष ने अपना लंड मेरी पैंटी में डाला और मेरे कंधे पकड़ कर खड़े खड़े ही मुझे धक्के मारने लगा। आगे से मनीष और पीछे से आशीष दोनों मिल कर मुझे धक्के मार रहे थे और मैं उन दोनों के बीच में फँसी खड़ी थी।
कुछ देर बाद उन्होंने अपनी जगह बदल ली, अब आशीष मेरे आगे था और मनीष मेरे पीछे। मनीष ने अपना लंड बाहर निकाला और मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे ऊपर उठा लिया और बोला, “आशीष, इसकी पैंटी खींच कर उतार दे और अपना लंड इसकी चूत में डाल कर इसको हवा में ही चोद दे !”
आशीष ने मेरी पैंटी खींच कर उतार दी और मेरी टाँगों को ऊपर उठा कर अपनी कमर पर लपेटते हुए मेरी चूत में अपना लंड घुसाने लगा,”मनीष, तू शालिनी को मज़बूती से पकड़ ले !”
और आशीष ने मेरी चूत की फांकों को खोल कर अपने लंड का सिरा मेरी चूत के मुँह पर लगा कर एक धक्का मारा। जैसे ही उसके लंड का सिरा मेरी चूत को खोलता हुआ अंदर घुसा मैं जोर से चिल्लाई,”आशीष, मुझे नीचे लिटा कर आराम से चोद लो !”
“वो तो हम दोनों चोदेंगे ही परंतु एक बार ऐसे भी मज़ा तो लेने दो !” आशीष ने मेरी गांड को नीचे से सहारा देकर मुझे अपनी ओर खींचते हुए कहा।
तीन-चार धक्कों के बाद उन दोनों ने मुझे छोड़ दिया और आशीष बाथरूम चला गया। मनीष ने मुझे कालीन पर लिटाया और बिना कुछ समय गवांए उसने अपना लोहे जैसे सख्त लंड का सिरा मेरी चूत के मुँह पर रगड़ा और फिर मेरी चूत की फांकों को अपने हाथ से खोलते हुए एक धक्के में अपने लंड का सिरा मेरी चूत में डाल दिया। मेरी कराह निकल गई। उसके बाद उसने दो तीन धक्के और मारे और मनीष का पूरा लंड अब मेरी चूत के अंदर था। धीरे धीरे गहरे धक्के लगाते हुए उसने मुझे चोदना शुरू कर दिया। मैंने हाथ बढ़ा कर आशीष के लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया। आशीष मेरे और पास आया और और मेरे एक मोम्मे को चूसता हुआ दूसरे को जोर जोर से दबाने और मसलने लगा।
मेरी जोर जोर आवाजें निकल रहीं थीं,”ओहहहह !! आह्ह्ह !!! जोर से मनु और जोर से चोदो मेरी चूत को !!!!”
मनीष ने मेरी टांगें ऊपर उठा रखीं थी और अपनी पूरी शक्ति से मुझे चोद रहा था। तभी मुझे आशीष का हाथ अपनी गांड पर महसूस हुआ। वो मेरी गांड सहला रहा था। जैसे ही उसकी उंगली मेरी गांड के छेद को सहलाने लगी मैं झड़ गई।
“आह्ह ! आह्ह्ह !! ओ!!! मनीष आशीष !!!” मैं उन दोनों का नाम ले ले कर चुदवा रही थी। मैंने आशीष के बालों को सहलाना शुरू कर दिया। मेरा पानी मेरी चूत से बाहर निकल कर बह रहा था और जब आशीष को अपने हाथों पर पानी महसूस हुआ तो उसने अपनी उँगलियों पर मेरा पानी लगा कर मेरे मुँह पर लगाने लगा।
तभी मनीष ने चोदने की गति बढ़ा दी और बोला,”आशीष, तू तैयार हो जा मैं झड़ने वाला हूँ !!!”
अब उसके धक्के और जोर से लग रहे थे। तभी उसने एक जोरदार आह भरी और मेरी जांघों को अपनी पूरी शक्ति से दबाता हुआ झड़ गया। मेरी चूत उसके वीर्य से भर गई। उसने अपना ढीला होता हुआ लंड मेरी चूत से बाहर निकाला और हांफते हुए मेरे ऊपर ही गिर गया।
एक दो मिनट के बाद मनीष मेरे ऊपर से हट कर मेरी एक ओर लेट कर मेरे गाल को चाटने लगा और अब आशीष ने उसकी जगह ले ली। आशीष मेरे ऊपर आया और अपने लंड को मेरी चूत से बाहर निकलते हुए मेरे पानी और मनीष के वीर्य से गीला करने लगा। फिर उसने भी मेरी चूत की फांकों को खोला और अपना मोटा लंड मेरी चूत में डालने लगा। पहले धक्के में ही उसने अपना आधा लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
मेरी जोर से एक चीख निकली परंतु उसने मेरी चीख को अनसुना करते हुए दूसरा धक्का मारा और अपना पूरा लंड मेरी चूत में डाल दिया।
“ओहहह !!! आशीष धीरे धीरे करो ! बहुत दर्द हो रहा है !!” मैं कराहती हुई बोली।
“जब शेर अपने शिकार को दबोचता है तो उसे शिकार की चीखें नहीं सुनाई देतीं !” कहते हुए आशीष ने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और दोबारा अपनी पूरी शक्ति से मेरी चूत में घुसेड़ दिया और जोर जोर से धक्के मार कर मेरी चूत चोदने लगा। आशीष ने मेरी टाँगें उठा कर अपने कंधों पर रख लीं और मेरी गांड को नीचे से सहलाते हुए दनादन चोदने लगा।
उसे चोदते हुए पाँच मिनट भी नहीं बीते थे कि मैं एक बार फिर से झड़ गई।
“मनीष आज तो शालिनी की चूत बहुत पानी छोड़ रही है। लगता है सच में बहुत दिनों से इसकी प्यास नहीं बुझी। कोई बात नहीं आज हम दोनों अपने पानी से इसकी चूत और गांड की प्यास बुझा देंगे!” कहते हुए आशीष और जोर जोर से मुझे चोदने लगा।
“थोड़ा सा पानी बचा कर रखना वर्ना रचना की चूत और गांड को क्या पिलाओगे?” मैं बोली।
“उसकी प्यास भी बुझा देंगे पहले तुम्हें तो तृप्त कर दें।” मनीष अपने लंड को हिला कर खड़ा करने की कोशिश करते हुए बोला। “मनीष तू अपने लंड को हाथ से क्यों हिला रहा है शालिनी का मुँह किस लिये है घुसेड़ दे लंड इसके मुँह में यह चूस चूस कर खड़ा करेगी !” आशीष ने मनीष को अपने पास खींचते हुए कहा।
मनीष ने अपनी टाँगें मेरे एक एक ओर कीं और मेरे ऊपर झुक कर अपना लंड मेरे चेहरे पर मारने लगा। मैंने उसके लंड के सिरे को चाटा और फिर अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। तभी आशीष ने मनीष की गांड पर थप्प से एक जोरदार थप्पड़ मारा और बोला, “मनीष गांड तो तेरी भी बड़ी प्यारी लगती है! एक बार मार लूँ क्या?”
“पहले शालिनी और रचना की तो मार ले बाद में मेरी गांड भी मार लियो !” मनीष अपनी गांड को सहलाते हुए बोला।
“हाँ! आज पहले इन दोनों की चूत और गांड फाड़ लूँ बाद में तेरी गांड मारूँगा !” आशीष ने चोदने की गति बढ़ानी शुरू कर दी।
कोई बीस मिनट तक मेरी चूत की धुनाई करने के बाद आशीष के लंड से वीर्य का ज्वालामुखी फट गया और उसने गरम गरम लावा मेरी चूत में भर दिया जो आशीष के लंड बाहर निकलने के साथ ही बाहर बह निकला।
हम दोनों अपनी साँसें संयत कर रहे थे कि मनीष ने आशीष को मेरे ऊपर से हटने के लिये कहा और मुझे उल्टा लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ गया और मुझे चूमने चाटने लगा।
“मनीष प्लीज़ थोड़ी देर रुक जाओ साँस तो लेने दो !” मैंने कहा।
“अभी तक सिर्फ एक बार ही तो चोदा है और तुम्हें थकान लगने लगी है?” कहते हुए मनीष मेरे ऊपर से हट गया और मुझे कमर से पकड़ कर खींचने लगा ताकि मैं घोड़ी बन जाऊँ।
जैसे ही मैं अपने हाथों और घुटनों के बल घोड़ी बनी मनीष मेरे ऊपर आकर अपने सिर को मेरे एक ओर करके मेरे मोम्मे को चाटने लगा और नीचे से अपनी उंगली मेरी चूत में डालने लगा।
“शालू एक बार तुम्हारे मोम्मे चोदने का बहुत दिल है!” मनीष मेरे चुचुक को काटता हुआ बोला।
“चोद लो ! मेरे मोम्मे क्या मेरा सब कुछ चोद लो !” अब मैं भी उन्मादित थी।
मनीष ने अपने लंड को मेरी चूत के मुँह पर रगड़ा और फिर धक्का मार कर उसने अपने लंड को मेरी चूत में घुसेड़ दिया। “मनीष थोड़ा धीरे धीरे डालो !” मैं फिर से कराही।
“आज कितने दिनों के बाद तुम मिली हो इसलिए रुका नहीं गया !” मनीष ने ऊपर हो कर मुझे चूमते हुए कहा। “बस एक बार जोर जोर से चोदने दो अगली बार बहुत आराम से चोदूँगा !” कहते हुए मनीष ने मेरी कमर को अपने हाथों में जकड़ लिया और जोर जोर से धक्के मारते हुए मुझे चोदने लगा।
मेरे उरोज लय में आगे पीछे हो रहे थे कि आशीष उन्हें दबाने और मसलने लगा।
“आह ! आह्हह ! ओह्ह्ह्ह ! धीरे प्लीज़ ! थोड़ा धीरे !” मैं कहती जा रही थी परंतु मनीष किसी भूखे जानवर की तरह मेरी पीठ को नोचते हुए मुझे चोद रहा था और आशीष और जोर जोर से मेरे मोम्मे दबाने लगा। कोई पन्द्रह मिनट तक मेरी चूत में अपना लंड पेलने के बाद मनीष बोला,”शालू मैं झड़ने वाला हूँ !!”
और उसने चोदने की गति बढ़ा दी अब उसके धक्के और जोर से लग रहे थे। तभी उसने एक जोरदार हुंकार भरी और मेरी कमर को अपनी पूरी शक्ति से दबाता हुआ झड़ गया। मेरी चूत उसके वीर्य से भर गई और उसका वीर्य बाहर बहने लगा। उसने अपना ढीला होता हुआ लंड मेरी चूत से बाहर निकाला और मुझे दबा कर लिटाता हुआ मेरे ऊपर ही गिर गया।
हम दोनों जोर जोर से साँसें ले रहे थे। जैसे ही मनीष मेरे ऊपर से हटा, उसकी जगह आशीष आ कर लेट गया और अपना तना हुआ लंड मेरी गांड में चुभोने लगा। फिर आशीष ने मुझे खींच कर थोड़ा सा उठाया और मैं एक बार दोबारा घोड़ी बन गई।
“आज तो जब तक हमारे टट्टे खाली नहीं हो जाते, तब तक हम दोनों तुम्हें आराम नहीं करने देंगे।” कहते हुए आशीष ने अपना लंड मेरी चूत पर पहले रगड़ा और फिर मेरी चूत की फांकों को खोल कर लंड के सिरे को रगड़ते हुए एक धक्का मारा और उसका आधा लंड मेरी चूत में घुस गया। आशीष ने मेरी कमर को पकड़ा और दूसरे धक्के में उसका लंड जड़ तक मेरी चूत में था।
एक बार उसका लंड मेरी चूत में पूरा घुस गया तो उसने मेरी कमर छोड़ दी और मेरे मोम्मे मसलते हुए मुझे चोदने लगा। मैं अपनी पीठ पर उसकी गरम साँसों को महसूस कर रही थी। आशीष अपने एक हाथ से मेरी चूत के ऊपर सहलाने लगा और मेरी और जोर जोर से सिसकारियाँ निकलने लगी, “ओह्ह्ह्ह! आह्हह्ह! आशीष मेरी जान!” आशीष के मेरी चूत सहलाने से मैं झड़ गई और मेरा पानी मेरी चूत से बाहर निकल रहा था।
आशीष मेरी पीठ को चूमते हुए मेरी गांड को सहला रहा था और जोर जोर से धक्के मार रहा था, “आह्ह ! शालिनी, तुम्हारी चूत कितनी मस्त है। लंड बाहर निकालने का दिल ही नहीं कर रहा !” आशीष अब मेरी कमर को दबा कर जोर जोर से धक्के मार रहा था। उसके टट्टे मेरी गांड से टकरा रहे थे। उसके कुछ शक्तिशाली धक्कों के बाद उसने चोदने की गति बढ़ा दी और उसके लंड ने एक बार फिर से मेरी चूत में गरम गरम वीर्य भर दिया। जैसे ही उसका लंड ढीला पड़ने लगा वो मुझे दबाता हुआ मेरे ऊपर गिर गया।
मैं तकिये में मुँह दबा कर अपनी बाहें फैला कर उलटी लेटी हुई हांफ रही थी। मनीष और आशीष भी मेरी एक एक बाँह पर सिर रख कर मेरे साथ ही लेट गए। थोड़े देर में जब हम तीनों की साँसे संयत हुईं तो मैंने कहा,”उम्मीद है कि अभी तक तुम दोनों के लंड का पानी खत्म नहीं हुआ होगा !”
और वे दोनों मेरी गांड मारने के लिये एक बार फिर मेरे ऊपर टूट पड़े। मनीष जल्दी से तेल की बोतल उठा कर लाया और अपने लंड पर बहुत सा तेल लगा कर अपना लंड मेरी गांड के छेद पर रगड़ने लगा। फिर मेरी गांड के छेद को अपनी उँगलियों से खोलते हुए उसमें तेल डालने लगा। “शालू अपनी गांड के छेद को ढीला छोड़ दो।” कहते हुए मनीष अपना लंड मेरी गांड में दबाने लगा और उसके लंड का सिरा मेरी गांड में घुस गया।
मनीष ने थोड़ा दबाव और बढ़ाया तो उसका आधा लंड मेरी गांड में घुस गया।
मैं चिहुंकी,”मनीष, थोड़ा धीरे धीरे डालो, दर्द हो रहा है।”
“मैंने इतनी बार तुम्हारी गांड मारी है फिर भी लगता है जैसे आज पहली बार मार रहा हूँ !” मनीष मेरे ऊपर लेट कर कहने लगा। मेरे कंधों पर अपना भार डालते हुए उसने फिर से धक्का मारा और उसका लंड पूरा मेरी गांड में घुस गया।
“मेरा लंड तुम्हारी गांड में पूरा घुस गया है अब तुम्हें दर्द नहीं होगा !” कहते हुए मनीष अपना लंड मेरी गांड के अंदर बाहर करने लगा। दो-तीन मिनट के बाद आशीष ने कहा,”मनीष अब तू हट जा, मेरा लंड भी इसकी गांड में घुसने के लिये तैयार है।”
“थोड़ी देर तो और इसकी गांड का मज़ा लेने दे फिर तू भी मार लियो।” मनीष अपनी गति बढ़ाते हुए बोला।
“अबे तू इतनी जल्दी मत झड़, दोनों एक साथ इसकी गांड में झड़ेंगे! चल अब तू हट जा !” कहते हुए आशीष अपने लंड पर तेल लगाने लगा। मनीष अपना लंड मेरी गांड से बाहर निकाल कर मेरे ऊपर से हटा तो आशीष ने अपने लंड का सिरा मेरी गांड में घुसेड़ दिया। “आह्हह्ह! आह्हह्ह! आशीष क्या तुम दोनों धीरे धीरे नहीं चोद सकते? मैं कहीं भागी थोड़ी जा रही हूँ?” मैं दर्द से कराहती हुई बोली। आशीष मुझे चूमते हुए बोला,”पिछले तीन महीनों से तुम्हारी गांड प्यासी है तो पिछले चार महीनों से हमारे लंड भी भूखे हैं और भूख से हमारे लंड अंधे हो गये हैं !” कहते हुए आशीष और जोर से धक्का मारते हुए अपना लंड मेरी गांड के और अंदर घुसाने लगा।मेरे मोम्मे मसलते हुए आशीष मेरी गांड में अपना लंड पेलने लगा,”शालू तुम्हारी गांड बिल्कुल गद्दे जैसी है !” आशीष जोर जोर से धक्के मारने लगा।
तभी मनीष ने उसे कहा,”आशीष, तू हट जा अब मेरी बारी है।” और अब वे दोनों बारी बारी से मेरी गांड मारने लगे। आशीष ने पहले अपना वीर्य मेरी गांड में भर दिया और थोड़ी देर बाद मनीष ने भी अपना लंड मेरी गांड में खाली कर दिया।
हम तीनों वहीं कालीन पर ही आपस में लिपट कर सो गये। जब हमारी नींद खुली तो अँधेरा हो चुका था हम तीनों बारी बारी से नहाये और अपने अपने कपड़े पहन कर रचना की प्रतीक्षा करने लगे।
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