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प्रेषक : सोनू चौधरी
मैंने प्रिया को आँख मारी और उसे लेकर धीरे से बिस्तर पे लेट गया।
लेट कर मैंने उसे अपने से बिल्कुल सटा लिया और अपना एक पैर उठाकर उसके ऊपर रख दिया और उसे और भी करीब कर लिया। अब मैंने उसके बालों में अपनी उँगलियाँ फिराईं और धीरे धीरे अपनी उँगलियों को उसके चेहरे पे फिराने लगा…
उसकी आँखों, उसके नाक… उसके गाल… फिर उसके होठों पे मेरी उँगलियों ने सिहरन करनी शुरू कर दी। प्रिया चुपचाप उस लम्हे को महसूस करके मुझसे लिपट कर लम्बी लम्बी साँसें ले रही थी…
मैं काफी देर तक वैसा ही करता रहा और प्रिया के चेहरे को निहारता रहा। प्रिया ने अपनी आँखें खोलकर मुझे प्यार भरी नज़रों से देखा और पूछा- ऐसे क्या देख रहे हो इतनी देर से…आज पहली बार देख रहे हो क्या?
“तुम्हें नहीं पता मैंने सारा दिन इंतज़ार किया है इस पल का…तुम्हारा यह हसीं चेहरा देखने के लिए मेरी आँखें तरस रही थीं… अब जाकर मेरे सामने आई हो तो जी भर के देखने दो मुझे !” मैंने थोड़ा सा गंभीर होकर उसे देखते हुए कहा।
उसे क्या पता था कि मैंने आज दिन भर क्या किया है… लेकिन एक बात थी दोस्तो, प्रिया के लिए मेरे दिल में एक अलग खिंचाव था जिस वजह से उसके पास होने से मुझे न तो रिंकी का ख्याल आता और न ही सिन्हा आंटी का।
खैर, मेरी बात सुनकर प्रिया ने मेरे गालों पे एक साथ कई चुम्बन ले लिए और उठकर बैठ गई और मुझे भी बिठा दिया।
“इतना प्यार करते हो मुझसे?” प्रिया ने मेरी आँखों में झांकते हुए पूछा।
मैंने कुछ न कहते हुए उसके होठों को अपने होठों से पकड़ कर एक जोरदार और लम्बी किस्सी देनी शुरू कर दी। मैंने अपनी जीभ को उसके होठों के रास्ते उसके मुँह में डाल दिया और उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दीं।
अब मैंने उसके होठों को चूमते हुए धीरे से अपने हाथों को उसकी कमर पे रखा और सहलाने लगा। मेरे हाथ जितना उसे सहलाते वो उतने ही जोर से मेरे होठों को चूसती और मुझे अपनी तरफ खींचती। उसकी साँसें सीधे मेरी साँसों से मिल रही थीं और एक मदहोश कर देने वाली महक मुझे मदहोश किये जा रही थी। हम जन्म जन्मान्तर के प्रेमियों की तरह एक दूसरे से प्रेम कर रहे थे।
अब हम दोनों के शरीर गर्म हो चुके थे, हम अब अपने प्रेम के अगले पड़ाव पे बढ़ने लगे। मैंने प्रिया को थोड़ा सा अलग करते हुए अपने हाथों के लिए थोड़ी सी जगह बनाई और अपने हाथ उसकी चूचियों पे रख दिए…उफ्फ्फ्फ़…प्रिया की चूचियाँ रिंकी की चूचियों से कहीं ज्यादा प्यारी थी, पकड़ते ही दिल करता था कि उन्हें उखाड़ कर अपने पास ही रख लूँ !
जब मैंने अपने हाथ रखे तो मुझे एहसास हुआ कि आज उसने ब्रा पहन रखी है। लेकिन वो ब्रा भी बहुत नर्म थी और शायद सिल्की थी क्यूंकि मेरे हाथ टी-शर्ट के ऊपर से भी फिसल रहे थे। मैं मंत्रमुग्ध होकर उसकी चूचियों में खोया हुआ था। धीरे धीरे उसकी चूचियों पे मेरे हाथों का दबाव बढ़ने लगा और प्रिया के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी।
प्रिया ने अपना मुँह मेरे मुँह से छुड़ा लिया और अपनी गर्दन इधर उधर करके अपनी चूचियों की हो रही मालिश का मज़ा लेने लगी। थोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद प्रिया ने मेरी आँखों में देखा और धीरे से मेरे कान के पास आकर कहा, “आज आपके लिए एक सरप्राइज है मेरे पास।”
मैं चौंका, सरप्राइज तो मैं प्रिया को देने वाला था फिर यह क्या सरप्राइज देना चाहती है??
मैं सोच ही रहा था कि प्रिया ने बिस्तर से उठ कर खड़े होकर मुझे अपनी आँखें बंद करने को कहा। मैं उत्तेजित हो गया, पता नहीं वो क्या करने वाली थी।
मैंने अपनी आँखें बंद करने का नाटक किया पर कनखियों से देख रहा था…
“ओये…शैतान, चलो बंद करो अपनी आँखें…वरना सोच लो !” प्रिया ने धमकाते हुए कहा।
मैंने सॉरी कहा और सच में अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने सरप्राइज का इंतज़ार करने लगा। मुझे थोड़ी थोड़ी आहट सुनाई दे रही थी जैसे कोई कपड़े उतारते वक़्त आती है…
मैंने एक बार आँखें खोलने की सोची लेकिन तभी फिर से प्रिया की आवाज़ आई…”अभी नहीं… जब मैं बोलूँ तब खोलना अपनी आँखें !”
मेरी बेताबी बढ़ती जा रही थी,”जल्दी करो न बाबा…तुम तो जान ही ले लोगी ऐसे तड़पा कर !”
“हम्म्म्म…अब खोलो…” प्रिया ने एक मादक आवाज़ में कहा…
मैंने धीरे धीरे अपनी आँखें खोलीं…मेरा मुँह खुला का खुला रह गया और आँखें तो बस पत्थर की हो गई…पलकों ने झपकना ही बंद कर दिया उस वक़्त…
सामने प्रिया सुर्ख मैरून रंग के टू पीस बिकनी में खड़ी थी…बाल खुले, होठों पे मेरे होठों का रस जो उन्हें चमकीला बना रहा था… उसकी 34 साइज़ की बड़ी बड़ी चूचियाँ जो कि उस खूबसूरत से बिकनी में संभाले नहीं संभल रही थीं और लगभग 75 प्रतिशत बाहर ही थीं… उसका चिकना पेट… पेट के ठीक नीचे प्यारी सी नाभि… और वी शेप की डोरियों वाली छोटी सी पैंटी जिसने सिर्फ उसकी हसीं चूत को सामने से ढक रखा था.. उसकी चिकनी सुडौल जांघें…
“ओह माई गॉड… प्रिया… मेरी परी…” मेरे मुँह से बस ये दो तीन शब्द ही निकल सके वो भी रुक रुक कर…
मैं अपनी साँसें रोक कर उसे देखता रहा और प्रिया किसी मॉडल की तरह अपने बदन को घुमा घुमा कर मुझे दिखा रही थी।
कसम से दोस्तो, उस वक़्त मैं ऐसा महसूस कर रहा था जैसे मेरे सपनों की रानी सीधा आसमान से उतर कर मेरे सामने खड़ी हो गई हो। मैं कब बिस्तर से उतरा और कब प्रिया के पास पहुँच गया पता ही नहीं चला। मैं प्रिया के सामने खुद भी एक मूरत की तरह खड़ा हो गया और उसे एकटक निहारने लगा। मेरे मुँह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अजंता की गुफाओं में हूँ और एक सुन्दर सी मूर्ति मेरे सामने है।
मैंने धीरे से अपने हाथ आगे बढ़ा कर उसके बदन को छूने की कोशिश की लेकिन डरते डरते कि कहीं मैली न हो जाये। मैंने अपनी उँगलियों से उसके माथे से लेकर उसके पूरे चेहरे को छुआ और फिर धीरे धीरे नीचे उसके गर्दन और सीने पे आ गया…
उफ्फ्फ़… मानो संगेमरमर की तराशी हुई बेहतरीन कलाकृति को छू रहा हूँ। मैं मंत्रमुग्ध सा बस उसके बदन के हर हिस्से को इंच इंच करके नाप रहा था।
प्रिया के मुँह से हल्की हल्की सिहरन भरी सिसकारियाँ निकल रही थीं और उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे। मैं उसके बदन को निहारते हुए नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गया और अपनी उँगलियों को उसके पेट से होते हुए उसकी नाभि तक ले आया। जैसे ही उसकी नाभि में अपनी उंगली रखी, उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरी तरफ ऐसे देखने लगी जैसे वो बिल्कुल असहनीय उत्तेजना से भर गई हो।
मैं भी कहाँ रुकने वाला था, मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और उसकी नाभि में घुसा दी। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
“सीईईइ… उम्म्म्म… क्या कर रहे हो सोनू… मुझे अजीब सा लग रहा है !” प्रिया ने एक सिसकारी के साथ मेरे सर पे अपना हाथ रखा और मेरे बालों में उँगलियाँ फिराईं।
मैं मज़े से उसकी नाभि और उसके आस पास अपनी जीभ फिराने लगा। एक अजब सी महक आ रही थी उसके बदन से जो कि दीवाना बनाने के लिए काफी थी। मैंने अपनी जीभ को थोड़ा नीचे करके उसकी नाभि और चूत के बीच वाले हिस्से पे यहाँ वहाँ चाटने लगा। बिल्कुल मक्खन के जैसी चिकनी थी वो जगह। मैं बड़े मज़े में था और इस अद्भुत पल का आनन्द ले रहा था।
प्रिया भी मेरा साथ दे रही थी और हम दोनों पूरी दुनिया से बेखबर अपने अपने काम में लगे हुए थे।
काफी देर तक ऐसे ही खड़े खड़े प्रिया मज़े लेती रही और मैं अठखेलियाँ करता रहा। फिर मुझे याद आया कि मैंने आज की रात को खास बनाने के लिए कुछ सोच रखा था। मैं तुरंत उठ खड़ा हुआ और प्रिया को अपने गले से लगा कर एक प्यारी सी किस्सी देते हुए उसे बिस्तर पर बिठा दिया।
प्रिया मेरी तरफ सवालिया निगाहों से देखने लगी और मैं अपने कमरे के एक कोने की तरफ बढ़ा। प्रिया मुझे गौर से देख रही थी और यह जानने की कोशिश कर रही थी कि आखिर मैं कर क्या रहा हूँ।
मैंने कोने से एक चटाई निकाली और बिस्तर के बगल में नीचे फर्श पे बिछा दिया। फिर एक मोटी सी चादर लेकर चटाई के ऊपर डाल दी और उस पर बैठ गया।
प्रिया ने मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखा,”ये क्यूँ…नीचे क्यूँ बिछाया है ये बिस्तर…इरादा क्या है??” प्रिया ने आँख मारते हुए पूछा।
प्रिया शायद यह सोच रही थी कि मैंने बस इसलिए बिस्तर नीचे लगाया है ताकि जब हम चुदाई करें तो बिस्तर की चरमराहट से कहीं कोई जाग न जाये। लेकिन उसे नहीं पता था कि मेरे दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। मैं जानता था कि आज जो मैं करने वाला था उसकी वजह से बिस्तर ख़राब हो सकता था। यही सोच कर मैंने यह इन्तजाम किया था।
मैंने प्रिया को अपने पास बुलाया अपनी बाहें फैला कर और प्रिया भी देरी न करते हुए नीचे मेरे पास आकर मुझसे लिपट गई। हम दोनों बैठे हुए थे और एक दूसरे को गले लगाये हुए चूमे जा रहे थे। चूमते चूमते मैंने प्रिया को धीरे से अपनी बाहों का सहारा देकर लिटा दिया।
अब प्रिया मेरे सामने उस मैरून रंग की बिकनीनुमा ब्रा और पैंटी में सीधी लेटी हुई थी और अपने हाथों को अपने सर के पीछे सीधा करके अपने सीने को उभार कर मुझे रिझा रही थी। मैं तो पहले ही उसपे लट्टू हो चुका था.
मैं उसे उसी अवस्था में छोड़ कर उसके पैरों की तरफ मुड़ गया और अपने होंठों से उसके दोनों पैरों को चूमते हुए ऊपर की तरफ बढ़ने लगा। जैसे जैसे मैं उसके पैरों से ऊपर बढ़ रहा था उसकी सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थीं और उसकी गर्दन इधर उधर होकर उसकी बेचैनी का सबूत दे रही थी।
मैंने उसके पूरे बदन को नीचे से लेकर ऊपर की तरफ चूमा और फिर उसकी जांघों के पास आकर रुक गया। मेरी नज़र उसकी छोटी सी वी शेप की पैंटी पर गई तो देखा कि एक बड़ा सा हिस्सा गीला हो चुका था। शायद यह मेरे होंठों का कमाल था जिसने प्रिया को मदमस्त कर दिया था और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया था।
ऐसा होना लाज़मी भी था, आखिर जवानी का जोश था…संभाले नहीं संभलता।
मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से ठीक उसकी चूत के मुँह पर अपने होंठ रखे और दो तीन बार चूम लिया।
“हम्म्म्म…ओह मेरे रजा जी…कितना तड़पाओगे…” प्रिया ने चूत पे होंठों को महसूस करते ही कहा।
“अभी तो बस शुरुआत है जान…अभी तो बहुत कुछ बाकी है।” मैंने भी अपन मुँह उठाकर उसकी तरफ देखते हुए कहा।
“आज सारी रात यहीं रखने का इरादा है क्या…?” प्रिया ने मदहोशी बहरे शब्दों में मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा।
प्रिया की बात सुनकर मैं मुस्कुराया और फिर से उसके चूत पे एक पप्पी दे दी और उसका हाथ पकड़ कर बिठा दिया।
प्रिया के बैठते ही मैंने देरी किये बिना अपने हाथ उसकी पीठ पे लेजाकर उसके ब्रा की डोरी खोल दी। डोरी खुलते ही उसकी चूचियों ने जैसे चैन की सांस ली हो… वो एकदम से थिरक कर हिलने लगी। ब्रा का एक छोर उसके गले में बंधा था, मैंने उसे भी खोल डाला और उतार कर साइड में रख दिया।
यूँ तो प्रिया मुझसे कभी भी शर्माती नहीं थी लेकिन आज पता नहीं क्यूँ जैसे ही मैंने उसे नंगा किया उसने अपने हाथों से अपनी चूचियों को छुपा लिया और किसी नई नवेली दुल्हन की तरह अपना सर नीचे कर लिया।
कसम से कहता हूँ उसकी यह अदा देखकर मेरा प्यार और भी बढ़ गया। मैंने भी एक नए नवेले पति की तरह उसके चेहरे को अपने हाथों से ऊपर उठाया और उसके लरजते होंठों पर अपने होठों से प्यार का प्रमाण रख दिया।
प्रिया शरमा कर मुझसे लिपट गई। मैंने उसे अलग किया और अपनी बाहों का सहारा देकर वापस बिस्तर पर लिटा दिया…
कमरे में अच्छी रोशनी थी और ऊपर से उसका चमकीला बदन… मेरी नज़रें टिक ही नहीं पा रही थीं। मैंने एक नज़र उसे जी भर के देखा और फिर अपने हाथ बढ़ा कर साइड टेबल के ऊपर से गुलाबजामुन वाली प्लेट उठा ली।
प्रिया की नज़र जब उस प्लेट पर गई तो उसने बड़े ही अजीब से अंदाज़ में मुझे देखा और चौंक कर मेरे अगले कदम का इंतज़ार करने लगी।
मैंने प्लेट में रखे चम्मच से गुलाब जामुन को बिल्कुल आधा आधा कटा और प्रिया की तरफ देखते हुए आधे हिस्से को उसकी एक चूची के नोक पर रख दिया। उसकी चूचियाँ वैसे ही बिल्कुल खड़ी खड़ी थीं इसलिए उसकी नोक्क पे गुलाब जामुन बिल्कुल ऐसे स्थिर हो गया जैसे कोई चुम्बक हो। फिर मैंने दूसरा हिस्सा भी दूसरी चूची पर रख दिया।
प्रिया को बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि मैं ऐसा भी कर सकता हूँ। उसे छत पर कही हुई मेरी बात याद आ गई और उसने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा,”तो जनाब इसी अंदाज़ के बारे में कह रहे थे?”
मैंने बिना कोई जवाब दिए बस उसको देख कर मुस्कुराया और फिर से अपने काम में लग गया। प्लेट में अब दो और गुलाब जामुन बचे थे। मैंने एक नज़र उन पर डाली और फिर प्लेट को बगल में रख दिया। अब बारी थी उस कटोरी की जिसमे मैंने सारा रस इकठ्ठा किया था। मैंने वो कटोरी उठाई और अपनी जगह को बदल कर इस बार प्रिया के जांघों के दोनों तरफ अपने पैरों को फैला कर ऐसे बैठ गया जैसे मैं किसी घोड़ी पर बैठा हूँ।
प्रिया अब और भी ज्यादा चौंक कर मुझे देख रही थी। मैंने उसे आँख मारी और आराम से उसकी जाँघों पे अपने आप को सेट करके बैठ गया। मेरा तनतनाया हुआ लंड मेरे निकर के अन्दर से निकलने को बेचैन हो रहा था और इस अवस्था में सीधे उसकी चूत पर दस्तक देने लगा। प्रिया ने अपना एक हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को एक बार सहला दिया। मैं खुश हो गया और मुझसे ज्यादा मेरा ज़ालिम लंड खुश हो गया और ठुनक कर प्रिया को धन्यवाद कहा।
प्रिया ने मेरे लंड को थाम रखा था और अगर ऐसे ही रहती तो मैं आगे का कार्यक्रम नहीं कर पाता। मैंने उसकी ओर देखा और उसे अपने हाथ ऊपर करने का इशारा किया।
प्रिया मेरा इशारा समझी नहीं या फिर समझ कर भी न समझने का नाटक कर रही थी, वो लंड छोड़ ही नहीं रही थी।
“प्लीज जान…अपने हाथ ऊपर करो और मैं जो करने जा रहा हूँ उसका मज़ा लो…” मैंने उसे समझाते हुए कहा।
“हाय राम…पता नहीं तुम क्या क्या करोगे…मुझसे रहा नहीं जा रहा है…” प्रिया ने अपनी हालत मुझे व्यक्त करते हुए कहा और फिर अपने हाथों को ऊपर अंगड़ाई लेते हुए हटा दिया।
कहानी जारी रहेगी।
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