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अगले दिन भी मुझे रात में किसी के चलने आवाज आई। चाल से मैं समझ गई थी कि ये सुरेश ही थे। वे मेरे बिस्तर के पास आकर खड़े हो गये। खिड़की से आती रोशनी में मेरा उघड़ा बदन साफ़ नजर आ रहा था। मेरा पेटिकोट जांघों से ऊपर उठा हुआ था, ब्लाऊज के दो बटन खुले हुए थे। यह सब इसलिये था कि उनके आने से पहले मैं अपनी चूचियों से खेल रही थी, अपनी योनि मल रही थी।
आहट सुनते ही मैं जड़ जैसी हो गई थी। मेरे हाथ पांव सुन्न से होने लगे थे।
वो धीरे से झुके और मेरे अधखुले स्तन पर हाथ रख कर सहलाया। मेरे दिल की धड़कन तेज हो उठी।
बाकी के ब्लाऊज के बटन भी उन्होने खोल दिये। मेरे चुचूक कड़े हो गये थे।
उन्होंने उन्हें भी धीरे से मसल दिया। मैं निश्चल सी पड़ी रही।
उनका हाथ मेरे उठे हुए पेटीकोट पर आ गया और उसे उन्होंने और ऊपर कर दिया। मैं शरम से लहरा सी गई। पर निश्चल सी पड़ी रही।
अंधेरे में वो मेरी चूत को देखने लगे। फिर उनका कोमल स्पर्श मेरी चूत पर होने लगा।
मेरी चूत का गीलापन बाहर रिसने लगा। उसकी अंगुलियाँ मेरी योनि को गुदगुदाती रही।
उसकी अंगुली अब मेरी योनि में धीरे से अन्दर प्रवेश कर गई। मैंने अपनी आँखें बन्द कर ली। एक दो बार अंगुली अन्दर बाहर हुई फिर उन्होंने अंगुली बाहर निकाल ली। कुछ देर तक तो मैं इन्तज़ार करती रही, पर फिर कोई स्पर्श नहीं हुआ। मैंने धीरे से अपनी आँखें खोली… वहाँ कोई न था !!! मैंने आँखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर यहाँ-वहाँ देखा। सच में कोई ना था।
आह… क्या सपना देखा था। नहीं… नहीं… ये पेटीकोट तो अभी तक चूत के ऊपर तक उठा हुआ है… मेरे स्तन पूरे बाहर आ गये थे… मतलब वो यहां आये थे?
अगले दिन सुरेश जी के चेहरे से ऐसा नहीं लग रहा था कि उनके द्वारा रात को कुछ किया गया था।
वे हंसी मजाक करते रहे और काम से चले गये। लेकिन रात को फिर वही हुआ। वो चुप से आये और मेरे अंगों के साथ खेलने लगे। मैं वासना से भर गई थी।
उनका यह खेल मेरे दिल को भाने लगा था। पर आज उन्होंने भांप लिया था कि मैं जाग रही हू और जानबूझ कर निश्चल सी पड़ी हुई हूँ। आज मैं अपने आप को प्रयत्न करके भी नहीं छुपा पा रही थी। मेरी वासना मेरी बन्धन से मुक्त होती जा रही थी। शायद मेरे तेज दिल की धड़कन और मेरी उखड़ती सांसों से उन्हें पता चल गया था।
उन्होंने मेरा ब्लाऊज पूरा खोल दिया और अपना मुख नीचे करके मेरा एक चुचूक अपने मुख में ले लिया। मेरे स्तन कड़े हो गये… चूचक भी तन गये थे। मेरी चूत में भी गीलापन आ गया था। तभी उनका एक हाथ मेरी जंघाओं पर से होता हुआ चूत की तरफ़ बढ़ चला। जैसे ही उसका हाथ मेरी चूत पर पड़ा, मेरा दिल धक से रह गया।
सुरेश ने जब देखा कि मैंने कोई विरोध नहीं किया है तो धीरे से मेरे साथ बगल में लेट गये। अपना पजामा उन्होंने ढीला करके नीचे खींच दिया। उनका कड़कड़ाता हुआ लण्ड बाहर निकल पड़ा। अब वो मेरे ऊपर चढ़ने लगे और मुझ पर जैसे काबू पाने की कोशिश करने लगे।
मैंने भी सुरेश की इसमें सहायता की और वो मेरे ऊपर ठीक से पसर गये और लण्ड को मेरी चूत पर टिका दिया। मेरे दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से दबा दिया और अपना खड़ा लण्ड चूत की धार पर दबाने लगे।
प्यार की प्यासी चूत तो पहले ही लण्ड से गले मिलने को आतुर थी, सो उसने अपना मुख फ़ाड़ दिया और प्यार से भीतर समेट लिया।
‘समधी जी… प्लीज किसी को कहना नहीं… राम कसम ! मैं मर जाऊंगी !’मैं पसीने से भीग चुकी थी।
‘समधन जी, बरसों से तुम भी प्यासी, बरसों से मैं भी प्यासा… पानी बरस जाने दो !’हम दोनों ने शरीर पर खुशबू लगा रखी थी। उसी खुशबू में लिपटे हुये हम एक होने की कोशिश करने लगे।
‘आपको मेरी कसम जी… दिल बहुत घबराता था… मेरे जिन्दगी में फिर से बहार ला दो !’
‘तो समधन जी आओ एक तन हो जाये… ये कपड़े की दीवार हटा दें… पर कण्डोम तो लगा लूँ?’
‘समधी जी, आपको मेरी कसम ! अपनी आंखें बन्द कर लो, और आप चिन्ता ना करें, मैंने ऑपेरशन करा रखा है।’
‘वाह जी तो अब शरम किस बात की, यहां बस आप और हम ही है ना, बस अपनी चूत के द्वार खोल दो जी !’
‘क्या कहा… चूत का… आह और कहो… ऐसे प्यारे शब्द मैंने पहली बार सुने हैं !’
‘सच, तो ले लो जी मेरा सोलिड लण्ड अपनी भोसड़ी में…’मैं उसकी अनोखी भाषा से खुश हो गई।
‘आह, धीरे से, यह तो बहुत मोटा है… और धीरे से !’
सच में सुरेश का लण्ड तो बहुत ही मोटा था। चूत में घुसाने के लिये उसे जोर लगाना पड़ रहा था। चूत में घुसते ही मेरे मुख से चीख सी निकल गई।
‘जरा धीरे… चूत नाजुक है… कहीं फ़ट ना जाये।’मेरे मुख से विनती के दो शब्द निकल पड़े। फिर भी उसका सुपारा फ़क से अन्दर घुस पड़ा।
‘समधन जी, आपकी भोसड़ी तो बिल्कुल नई नवेली चूत की तरह हो गई है… इतने सालों से सूखी थी क्या… एक भी लण्ड नहीं लिया?’
‘धत्त, आपको मैं क्या चालू लगती हूँ?’
‘हां , सच कहता हूँ, आपकी आंखों में मैंने चुदाई की कशिश देखी है… उनमें सेक्स अपील है… मुझे लगा तुम तो चुदक्कड़ हो, एक बार कोशिश करने क्या हर्ज़ है?’
‘सच बताऊँ, आपको देख कर मेरे दिल में चुदवाने की इच्छा जाग गई थी, एक सच्चे मर्द की यही खासयित होती है कि उसमें बला का सेक्स आकर्षण होता है।’
अचानक उसने जोर लगा कर मेरी चूत में अपना लण्ड पूरा घुसेड़ दिया।
मेरे मुख से एक अस्फ़ुट सी चीख निकल गई जिसमें वासना का पुट अधिक था। उनका भारी लण्ड मेरी चूत में अन्दर बाहर उतराने लगा था।
आह रे… इतना मोटा लण्ड… बहुत ही फ़ंसता आ जा रहा था। लगता था इतने सालों बाद मेरी चूत सूख चुकी थी और चूत का छेद सिकुड़ कर छोटा सा हो गया था।
चूत को तराई की बहुत आवश्यकता थी, सो आज उसे मिल रही थी। कुछ ही देर बाद उसकी चूत का रस उसकी चुदाई में सहायता कर रहा था।
चुदाई ने अब तेजी पकड़ ली थी। मेरा दिल भी खूब उछल-उछल कर चुदवाने को कर रहा था।
मुझे समधी जी का लण्ड बहुत मस्त लगा, मोटा, लम्बा… मन को सुकून देने वाला… जैसे मेरा भाग्य खिल उठा था।
मैं इस चुदाई से बहुत खुश हो रही थी। बहुत अन्दर तक चूत को रगड़ा मार रहा था। आह क्या मोटा और फ़ूला हुआ लाल सुपारा था।
‘समधी जी, आपके इस मस्त लण्ड को आपने किस किस को दिया है?’
‘बस मेरी प्यारी समधन को… पूरा लण्ड दिया है… और बदले में कसी हुई भोसड़ी पाई है।’
‘अरे ऐसा मत बोलो ना… मेर पानी जल्दी निकल जायेगा।’
‘मेरी प्यारी राण्ड, मैं तो चाहता हूँ कि तू आज रण्डी की तरह चुदा… मन करता है तेरी चूत फ़ाड़ दूँ।’
‘आह, मेरे राजा… ऐसा प्यारा प्यारा मत बोलो ना, देखो मेरा रस छूटने को है।’
अचानक उसकी तेजी बढ़ गई। मेरी नसें खिंचने लगी। बहुत दिनों बाद लग रहा कि चूत का माल वास्तव में बाहर आने को है। सालों बाद मैं तबियत से झड़ने को अब तैयार थी। मेरी आँखें नशे बंद होने लगी… और तभी समधी जी ने अपने होंठों से मेरे होंठ भींच दिये।
मेरी चूचियाँ जोर से दबा कर मसल डाली। सारा भार मुझ पर डाल दिया और एक हल्की सी चीख के साथ अपना वीर्य चूत में छोड़ने लगे। तभी मेरा पानी भी छूट गया।
मैंने भी समधी जी को अपनी बाहों में कस लिया। दोनों ही चूत और लण्ड का जोर लगा लगा कर अपना अपना माल निकालने में लगे हुये थे। कुछ देर तक हम दोनों हू अराम से लेते रहे और यहा वहां की बाते करते रहे।
पर वो जल्दी ही फिर से उत्तेजित हो गये। मेरा दिल भी कहा भरा था, चुदाने को लालायित था। वो बोल ही पड़े।
‘समधन जी, अब बारी है दो नम्बर की… जरा टेस्ट को बदले’
‘वो क्या होता है जी…’मैं हैरान सी रह गई
‘आपकी प्यारी सी गोल गाण्ड को तैयार कर लो… अब उसकी बारी है…’
‘अरे नहीं जी… सामने ये है ना… इसी को चोद लो ना…’मेरी इच्छा तो बहुत थी पर शर्म के मारे और क्या कहती।
‘अरे समधन जी, लण्ड तो आपकी चूतड़ो को सलाम करता है ना… मस्त गाण्ड है… मारनी तो पड़ेगी ही’
भला उनकी जिद के आगे किस की चल सकती थी। फिर मेरी गण्ड भी चुदाने के लिये मचल रही थी।
उन्होने मेरी गाण्ड में खूब तेल लगाया और मुझे उल्टी करके मेरी गाण्ड में लण्ड फ़ंसा दिया। मोटे लण्ड की मार थी, सो चीख निकलनी ही थी।
‘अब ये तो झेलना ही पड़ेगा… अपनी गाण्ड को मेरे लण्ड लायक बना ही लो… अब तो आये दिन ये चुदेगी… देखना ये भी चुद चुद कर गेट वे ऑफ़ इण्डिया बन जायेगी’
‘धत्त, जाने क्या क्या बोलते रहते हो?’
लण्ड की मार पड़ते ही मेरी गाण्ड का दर्द तेज हो गया। पर वो रुके नहीं। उनकी मशीन चलती रही… मैं चुदती रही। ऐसी चुदाई रोशनी मे, मैंने भी खूब अपनी टांगे चीर कर बेशर्मी से दिल की सारी हसरते पूरी की।
अब मुझे महसूस हो रहा था कि मैं भी इक्कीसवीं सदी की महिला हू, आज की लड़कियो से किसी भी प्रकार कम नहीं हूँ। रात भार जी भर कर चुदाया मैने।
सुबह तक हम दोनो कमजोरी महसूस करने लगे थे। हम दोनो दिन के बारह बजे सो कर उठे थे। अब तो ये हाल था कि समधी जी सप्ताह में एक बार मुझसे मिलने जरूर आते थे। उन्हे मेरी फ़ेमिली प्लानिंग के ऑप्रेशन का पता था सो वो मुझे खुल कर चोदते थे… प्रेग्नेंसी ला सवाल ही नहीं था। बस मेरी गाड़ी तो चल पड़ी थी।
मैं विधवा होने पर भी बहुत सुखी थी और अकेली ही रहना पसन्द करने लगी थी। पाठिकाओं फ़ेमिली प्लानिंग का फ़ायदा उठाओ… और खूब चुदाओ… एक सत्य कथन ।
सोनाली कपूर की इस कहानी को मैंने रोचक बनाने की दृष्टी से इसमे वास्तविकता की रोचकता बढाने हेतु बदलाव किये है। उसके लिये मैं सोनाली जी से क्षमाप्रार्थी हूँ। 1612
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