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प्रेषक : गुल्लू जोशी
बस में कोई खास भीड़ तो नहीं थी, पर शाम की बस थी जो रात के दस साढ़े दस बजे। तक इन्दौर पहुंचा देती थी। नौकरीपेश लोगों की यह मन पसन्द बस थी। मैं अपनी मम्मी और पापा के साथ बैठा हुआ था। सीट में तीन ही बैठ सकते थे।
बस ज्यों ही रवाना हुई, भीड़ में से एक महिला मेरी सीट की बगल में आकर खड़ी हो गई। बस के कुछ देर चलने के बाद वो महिल मेरे कंधो के पास सट गई। उसके मांसल नितम्ब मेरे कंधों से दब रहे थे। भीड़ वाली बसों में यह तो आम बात थी।
पर कुछ देर में उसके नितम्बों के बीच की दरार में मेरा कंधा घुसने सा लगा।
मैंने तिरछी नजरों से उस महिला को देखा।
अरे ! यह मेरे घर के सामने वाली आण्टी थी जो मुझे रोज घूर घूर कर देखा करती थी। शायद मुझे पर लाईन मारती थी। उसके इस तरह देखने के कारण मैंने भी उससे जान करके आँखें मिलानी शुरू कर दी थी। मैं उससे निकटता पाने की आस में रहता था।
उसकी इस हरकत के कारण मेरा लण्ड सख्त होने लगा था। मैं भी अब जानकर उसके चूतड़ों के बीच में अपना कंधा रगड़ने की कोशिश करने लगा था। पर डर था कि कहीं वो नाराज ना हो जाये। पर शायद उसे आनन्द आने लगा था… वो हौले हौले से अपनी गाण्ड मेरे कंधे से रगड़ने लगी थी। तभी एक धक्का लगा और वो मेरे ऊपर गिर सी पड़ी।
ओह्ह सॉरी… मुझे देख कर वो मुस्कराई।
अरे आण्टी आप… ! आप खड़ी क्यों हैं … आइए, बैठ जाइए।
मैं खड़ा हो गया और मैंने आण्टी को अपनी सीट पर बैठा दिया। कुछ देर तक तो मैं सीधे खड़ा रहा … पर शरारत मेरे मन में भी जागने लगी… मैंने अपना लण्ड धीरे से उसके कन्धों से लगा दिया। मेरे लण्ड का स्पर्श पाते ही वो सतर्क हो गई। उसने मेरी स्वीकृति पाने के लिये मेरे लण्ड पर हल्का सा दबाव डाला। मेरा लण्ड एक बार फिर से कठोर होने लगा। उसे मेरे लण्ड के कड़ेपन का अहसास होने लगा था।
बस में अंधेरा था… उसका मैंने फ़ायदा उठाया… और अपने लण्ड को धीरे से उसके कंधों पर गड़ा दिया। उसने मुझे घूर कर देखा… फिर उसकी सतर्क निगाहें उसकी चारों ओर घूम गई। सभी झपकियाँ ले रहे थे। उसने हाथ बढ़ा कर मेरा लण्ड थाम लिया। मेरा पूरा शरीर सनसनी से भर गया। मेरे लण्ड को उसने धीरे से धीरे दबाना चालू कर दिया। मेरे लण्ड में झुरझुरी छूटने लग गई।
अचानक उसने मेरी पैन्ट की जिप सरका दी और नंगे लण्ड को अन्दर से थाम लिया।
अब उसने हौले हौले से मेरे लण्ड को घिसना शुरू कर दिया। मैंने एक बार इधर-उधर देखा। सभी को नींद में ऊंघते पाकर मैं निश्चिन्त हो गया। उसने लण्ड पर मुठ्ठ मारना आरम्भ कर दिया था। मुझे बहुत मजा आ रहा था। शरीर तड़प सा गया था। बहुत देर तक ये कार्य चलता रहा… तभी मेरा शरीर अकड़ने सा लगा… मेरा वीर्य निकलने ही वाला था। मैंने उसका कन्धा दबा कर इशारा किया। उसने अपना
मुँह घुमा कर मेरे लण्ड को अपने मुख में ले लिया। फिर हल्की सी मुठ्ठ से ही मेरा वीर्य निकल पड़ा। धीरे धीरे पिचकारियों के रूप में मेरा पूरा वीर्य स्खलित हो गया। वो शान्ति से मेरा वीर्य शहद समझ कर पी गई।
उसने साड़ी के पल्लू से अपना मुख साफ़ किया… और सीधे बैठ गई।
इतनी देर में मेरी टांगें कांपने लगी थी। तभी दूर रोशनी नजर आने लगी थी। समय देखा, नौ बज रहे थे… अभी तो एक-डेढ़ घन्टा बाकी था इन्दौर आने में। शहर में गाड़ी आ चुकी थी। मैंने झांक कर देखा … चमचमाती हुई लाईटें, चमकते हुए साइन-बोर्ड… चौड़ी चौड़ी सी सड़कें… फिर एक भीड़-भाड़ वाले इलाके में आकर बस रुक गई। बस ने सवारी उतारी और फिर आगे बढ़ गई।
भैया, अब आप बैठ जाइए… थक गये होंगे…
थेन्क्स आण्टी जी…
मैं वाकई थक गया था। मैं बैठ गया और आण्टी फिर से मेरे कंधे पर अपने चूतड़ों को फ़िट करके मस्ताने लगी। मैंने उसकी गाण्ड को दबाया तो उसने मुझे मुस्करा कर देखा… मेरा इशारा वो समझ गई और मुस्करा कर उसने अपनी चूत मेरे कंधे से चिपका दी।
उफ़्फ़… क्या मोहक चूत का उभार था… उसके फ़ूले हुए लब मेरे कंधो से रगड़ खाने लगे थे। उसकी जांघों की सपाट दीवारें और उभरे हुए चूत के लब मेरे दिल को लुभा रहे थे। बस मुख्य रास्ते पर आ गई थी तो गाड़ी की बत्तियाँ फिर से बन्द हो चुकी थी। यात्री गण फिर से ऊंघने लगे थे।
मैंने मौका पाकर साड़ी के नीचे से हाथ डाल दिया। आण्टी ने अपना पल्लू मेरे आगे गिरा दिया ताकि उनकी उठी हुई साड़ी किसी को नजर ना आ जाये। मेरा हाथ उनकी चिकनी जांघों को सहला रहा था। मक्खन सी चिकनी जांघें… हाथ पीछे डाला तो गोल-गोल उभरे हुए चूतड़… मैंने जी भर कर उन्हें खूब दबाया। मुझे लगा कि आण्टी की सांसें भी अनियंत्रित हो रही थी।
मैंने धीरे से उनकी गाण्ड में अंगुली डाल दी और गुदगुदाने लगा। अब तो वो खुद ही अपनी टांगें फ़ैला कर मस्ती ले रही थी।
फिर बारी आई आण्टी की मस्त चूत की। मेरे हाथ आगे की ओर सरक आये। वो सीधी खड़ी हो गई। मैंने धीरे से उनकी चिकनी उभरी हुई चूत पर अपनी अंगुलियों को घुमाया। उसके मुख से एक धीमी सी सिसकारी निकल गई। तभी चूत में अंगुली घुमाते हुये मुझे एक कड़े से दाने का अहसास हुआ … ओह्ह तो यह दाना है…
मैंने उसे हल्के से सहला दिया और अपनी अंगुली से उसे धीरे से दबा भी दिया।
मुझे लगा कि आण्टी आनन्द से सिमट सी रही थी।
तभी आण्टी का एक हाथ मेरे हाथ पर आ गया और वो मेरी अंगुली को अपनी चूत में घुसाने का इशारा करने लगी। मैंने अंगुली को इधर उधर सरका कर पानी से भीगे हुये छेद को टटोल लिया। उफ़्फ़ कसा सा चिकना छेद जल्द ही महसूस हो गया और मैंने हल्के से उस पर जोर लगाया। मेरी अंगुली उस छेद में अन्दर सरक गई।
उईईई … फिर वो एकदम से चुप हो गई। गनीमत थी कि किसी ने सुना नहीं।
मैं कुछ समय तक तो अंगुली बस डाले रहा … सब कुछ सामान्य सा देख कर मैंने अपनी अन्दर उसकी चूत में अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया। उसकी सांसें तेज हो गई थी। तभी वो नीचे झुकी और उसने मेरे होंठ चूम लिये। मैं हड़बड़ा सा गया।
कितनी बेशरम है ये आण्टी। कोई देख लेता तो?
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अब आण्टी भी अपनी चूत को हिला हिला कर आनन्द ले रही थी। मेरी अंगुली को वो गहराई में लेना चाह रही थी। मैंने उसकी इच्छा जानकर एक की जगह दो दो अंगुलियाँ चूत में डाल दी और गहराई तक उन्हें घुसा घुसा कर आण्टी को मस्त करने लगा।
कुछ ही देर में आण्टी झड़ गई। उन्हें जैसे ही होश आया, उन्होंने इधर-उधर जल्दी जल्दी देखा और फिर एक निश्चिन्तता की गहरी सांस ली।
उन्होंने मुझे इशारा किया कि उन्हें भी बैठने के लिये थोड़ा स्थान दे दे।
मैंने सरक कर उन्हें जरा सा चूतड़ रखने लायक स्थान दे दिया। वो आधी तो मेरे ऊपर चढ़ी हुई थी। अपने नर्म-नर्म नितम्बों से मुझे उत्तेजित कर रही थी।
तभी बस की लाईटें जल उठीं। शायद इन्दौर आ चुका था। समय देखा तो सवा दस बज रहे थे…
अभी तो शहर में पन्द्रह मिनट और चलना था। मम्मी पापा की झपकी टूट चुकी थी।
नमस्ते अंकल !
अरे कविता तुम…?
पापा और मम्मी ने और सरक कर उसे बैठने लायक जगह कर दी। मैं उठ कर कोने पर बैठ गया। मम्मी और कविता आण्टी साथ बैठ गई और उनकी बातें आरम्भ हो गईं।
तभी बीच में कविता ने चुपके एक कागज मेरी मुठ्ठी में थमा दिया। उसमें आण्टी के मोबाईल नम्बर थे। मैंने उसे यूँ ही चुप से जेब में रख लिया।
बस स्टैण्ड आ गया था। हम सभी ने एक टेम्पो ले लिया और घर की तरफ़ चल पड़े।
गुल्लू जोशी
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