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अन्तर्वासना की इस अद्वितीय और अद्भुत साइट पर आप सभी लंड की प्यासी चूत रानियों और बुर के प्यासे लण्ड राजाओं को मेरा नमस्कार! मैं हूँ, आपका ज्ञान ठाकुर, प्रयागराज से! आप सभी पाठक पाठिकाओं को मेरा सादर अभिवादन स्वीकार हो!
आपके समक्ष मेरी निम्न रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं, आशा ही नहीं विश्वास भी है कि इस रचना को भी उसी प्रकार का प्यार दुलार मिलेगा, जैसा मेरी पिछली रचनाओं को मिलता आया है। प्यासी भाभी को रफ सेक्स की चाहत दोस्त की भाभी ने चूत की पेशकश की
मेरा झुकाव शुरू से ही उम्रदराज़ स्त्रियों की ओर ज्यादा रहा है। कारण कोई भी रहा हो, जैसे उनका गदराया जिस्म, ब्लाउज या समीज़ के ऊपर से नुमाया उनके मोटे मोटे स्तन की घाटियाँ, उनकी हल्की चर्बीयुक्त क़मर, पेट पर सुशोभित नाभि, उभरी हुई मटकती गांड, उस पर उनकी सधी हुई चालढाल और आत्मविश्वास; एक एक अंग कमाल, हर रंग बेमिसाल।
मैं पुनः धन्यवाद करता हूँ अन्तर्वासना का कि आपके इस अद्भुत मंच के द्वारा एक कामरूपी सुन्दरी श्रीमती सिमरन भनोट जी से मुलाकात हुई। आप एक कॉलेज में लेक्चरर हैं। आपकी सुंदरता और सौंदर्य के लिए मेरे उपरोक्त शब्द सटीक भी हैं और कमतर भी हैं। मेरे आग्रह पर आप इस रचना में अपने शब्द देने के लिए राज़ी हुई, इसके लिए मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ।
तो पेश-ए-खिदमत है अन्तर्वासना पर पहली बार श्रीमती सिमरन भनोट जी के शब्द:
प्रणाम करती हूँ मैं आप सभी को। मुझे पूर्ण विश्वास है कि अभी तक मेरा परिचय ठाकुर साब ने दे दिया होगा। मेरी उम्र 44 वर्ष भले ही हो परंतु मन अभी भी 24 का ही है। यदि आप लोग मेरे बदन(फिगर) या लुक्स की तुलना करना चाहें तो मैं एक नाम लेना चाहूंगी-विद्या बालन। बस, उनसे थोड़ी सी लंबी होऊँगी।
इस साइट पर लिखी कहानियाँ मैं भी विगत कई वर्षों से पढ़ती आई हूँ। सुबह पतिदेव ही मुझे कॉलेज तक छोड़ते हैं और उसके बाद वो अपने आफिस चले जाते हैं। लेकिन शाम को मेरा लौटना पहले होता है इसलिए मैं ऑटो लेकर वापिस आ जाती हूँ।
अरे मैं तो भूल ही गयी, अपने पतिदेव से तो आपका परिचय ही नहीं करवाया। गोपनीयता की वजह से में उनका उल्लेख ज्यादा तो नहीं कर सकती लेकिन आप ये जान ही सकते हैं कि मेरे पतिदेव भनोट जी सरकारी मुलाजिम हैं। उम्र के 48 बसंत देख चुके, निहायती सभ्य, मिलनसार और अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार हैं। 27 वर्ष की अपनी आग उगलती जवानी से आज तक लगातार मेरी चूत की कामाग्नि शान्त करते चले आये हैं। तब से अब तक में बस फर्क ये है कि अब वो जवानी वाली आग उनका लण्ड उगल नहीं पाता लेकिन वो मुझे प्यार बहुत करते हैं और तन मन से मैं भी उन्हें।
हमारे दो बच्चे भी हैं। बड़ी वाली लड़की दिल्ली में पढ़ती है और छोटा लड़का तैयारी के लिए इसी वर्ष कोटा गया है। जब से लड़का कोटा गया है, तब से घर में अकेलापन सा महसूस होने लगा। मुझे थोड़ी स्वतंत्रता भी मिल गयी कि मैं वर्षों से दबी इच्छाओं को बाहर आने दूँ।
कॉलेज से आने के बाद मैं सीधा अन्तर्वासना साइट पर गर्मागर्म कहानियां पढ़ती; फिर चूत की गर्मी शांत करने के लिए जो भी लंबा मोटा मिलता उसे घुसेड़ लेती। इससे भी जब मेरी चूत की कुलबुलाहट न शांत होती तो रात में पतिदेव के लण्ड पर उछल उछल कर पलंग के पाए तक हिला देती.
लेकिन पतिदेव का एक बार वीर्य उगलते ही शिथिल पड़ जाता और पुनः मेरा सहारा बनती मेरी उंगलियां और किचन में रखे लंबे मोटे बैंगन।
इसी बीच मैंने ज्ञान ठाकुर जी की लिखी कहानी ‘दोस्त की भाभी ने की चूत की पेशकश’ को मैंने पढ़ा।
इसके पहले मैंने कभी किसी लेखक को मेल(मैसेज) नहीं किये थे। मन में जिज्ञासा सी उमड़ पड़ी की इतनी ज़बरदस्त चुदाई करने वाला कोई मेरे शहर यानि कि प्रयागराज की पावन धरती पर भी है। अगले दिन सुबह उधर से प्रतिउत्तर आया हुआ था।
शुरुआती परिचय और एक दो दिन के हाय हेलो के बाद उसने सीधा पूछ लिया- आप चाहती क्या हैं? मैं तो लिखना चाहती थी कि मुझे एक लंबा मोटा लण्ड चाहिए जो मेरी अतृप्त प्यास को बुझा सके लेकिन ऐसा यदि मैं लिखती तो मुझे सस्ती या सड़क छाप भी समझ जा सकता था। आखिर मैं एक अच्छे सोसाइटी और इज़्ज़तदार घराने की बहू हूँ।
बस अंत में इतना ही बोल पायी- आपकी कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी, क्या इसके सारे पात्र असली हैं? “बहुत बहुत धन्यवाद! वैसे मैं एक नई कहानी लिखने के लिए नए पात्र की तलाश में हूँ और आप इसमें शामिल हो सकती हैं और आपका उत्तर भी मिल जाएगा.” ज्ञान ठाकुर ने जवाबी मेल भेजा। “शामिल हो भी सकती हूं लेकिन सब कुछ मेरी मर्ज़ी से होगा.” मैंने भी फ़्लर्ट का जवाब फ़्लर्ट होकर दे दिया। “आपकी मर्जी सर आँखों पर भनोट मैम!” ज्ञान ने आखिरी उत्तर लिख भेजा।
उस रात तो मैं सो न सकी। पतिदेव जी भी देर से आये और खाना खाकर सो गए। मैं अजीब पशोपेश में थी कि किसी अजनबी आदमी से दोस्ती ठीक रहेगी। और बात केवल दोस्ती की तो है नहीं, उससे कहीं ज्यादा की बात है। मेरी इज़्ज़त, मेरी आबरू, मेरा परिवार, सब कुछ दांव पर होगा।
अगले ही पल मुझे मेरी चूत की भी याद आ गयी। कितने सालों से मेरी चूत की संतुष्टि से चुदाई नहीं हुई। मैं अपने पति के सूखे लण्ड से असंतुष्ट होकर कितना तड़पी हूँ। अपनी भरपूर जवानी में परिवार के लिए, बच्चों के लिए, पति के लिए कितना त्याग-तपस्या की है। क्या मैं अपनी कुछ वर्षों की शेष जवानी भी ऐसे ही गुज़ार दूंगी? अगले ही पल मेरा एक हाथ मेरी चूत पर पहुंचकर रगड़ने और सहलाने की क्रिया करने लगा और मैं अपनी विचारों की दुनिया में गोते लगाने लगी।
अब मेरे दिमाग ने सोचना बंद कर दिया और चूत ने सोचना शुरू कर दिया था।
दो दिन बाद हमने मिलने का प्लान बनाया। मैं हर कदम फूँक फूँक कर रखना चाहती थी इसलिए तय ये हुआ कि स्कूल से छुट्टी के बाद मैं ऑटो नहीं लूंगी बल्कि ज्ञान जी मुझे घर छोड़ देंगे। छुट्टी के बाद मैंने ज्ञान जी को फ़ोन लगाया तो उसने बताया कि वह बस स्टॉप पर खड़ा है।
मैं मन ही मन उत्साहित होकर मानो उड़ते हुए बस स्टॉप तक पहुंची। सामने एक सफेद कार खड़ी थी। मैंने कन्फर्म करने के लिए फ़ोन लगाना चाहा कि तभी ज्ञान जी का मैसेज आया कि सफेद कार में आकर बैठ जायें।
मैं इधर उधर देखते हुए कार में बैठ गयी। ड्राइवर सीट बैठे एक मनमोहक, हैंडसम, जवान, 27-28 वर्ष के युवक ने हाथ मिलाने के लिए अपना दाहिना हाथ मेरे तरफ बढ़ा दिया- हेलो मैम, मैं ज्ञान। “हेलो ज्ञान जी!” कहते हुए मैंने भी अपना हाथ बढ़ा दिया।
ज्ञान के मजबूत हाथों की पकड़ ने मेरा ध्यान उसके बदन पर ले गया जो कि पोलो टी शर्ट और नीली जीन्स में कसा हुआ था। मेरे मन में आया कि बदन गठीला और कसा हुआ है तो लण्ड का क्या हाल होगा. ऐसा सोचते ही मेरी चूत में सरसराहट सी मच गयी।
मैंने खुद को संभालते हुए नॉर्मल बातचीत शुरू की। बात करते करते मैं ध्यान दे रही थी कि ज्ञान कभी कभी सामने देखकर गाड़ी चला रहा था और कभी कभी मुझे मेरे बदन को भी निहार देता। स्कूल से मेरा घर 5-6 किमी ही है और जल्दी ही मेरा घर आ गया। ज्यादा बातचीत नहीं हो पाई थी इसलिए मेरा मन उससे छोड़ने का हो नहीं रहा था, दिल आ गया था मेरा इस बांके नौजवान पर। मैंने अपने घर के सामने गाड़ी रुकवाई और ज्ञान को चाय पीने के बहाने अंदर चलने को कहा।
वो भी जैसे इसी बात का इंतज़ार ही कर रहा था। उसके बाद जब तक ज्ञान अपनी कार साइड लगाकर आया, तब तक मैंने पर्स से चाभी निकालकर मेन गेट खोला और उसे अंदर आने का इशारा किया।
ज्ञान अंदर आया और घर की तारीफ करते हुए सोफे पर विराजमान हो गया। मैं भी रसोई की तरफ बढ़ी और फ्रिज से पानी और कुछ बिस्किट वगैरह लेकर आयी।
पानी वगैरह पीते हुए मैंने पूछ लिया- आप तो अपनी अन्तर्वासना कहानी के बिल्कुल विपरीत हैं? ज्ञान थोड़ा सा हंसते हुए बोला- आपने क्या अनुमान लगाया था? अब उल्टा प्रश्न मुझी से हो गया- नहीं, मेरा मतलब कि तुम ऐसी वैसी बात या हरकत … ज्ञान मेरी बात को बीच में पूरा करते हुए बोला- नहीं कर रहा … है ना? मैं- हां!
ज्ञान- मेरे कुछ नियम हैं, जिसके तहत ही मैं किसी स्त्री की चुदाई करता हूँ। मैं- वो क्या हैं? ज्ञान- सबसे पहले हम दोनों को एक एच.आई.वी टेस्ट कराना होगा, और दूसरा मेरा पारिश्रमिक आपको जो भी उचित लगे, केवल एक बार, देय होगा।
मैंने बहुत कुछ सोचकर हाँ कह दिया।
ज्ञान- आप तैयार हो जाएं, कल से आपके ज़िंदगी में तूफ़ान आने वाला है। इतना कहकर ज्ञान उठा और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उसने मुझे अपनी मजबूत बाँहों में जकड़ लिया। उसने अपना एक हाथ मेरे सिर के पीछे ले जाकर अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिया।
मुझे तो जैसे करेंट लगा हो, ज्ञान के बलिष्ठ शरीर में मैं पिघल सी गयी थी। मैं भी अपना हाथ उसकी पीठ पर सहलाते हुए उसके कसरती कसे हुए बदन को महसूस करने लगी। मेरे मुलायम से स्तन उसके पत्थर से मजबूत सीने में चिपट से गये।
फिर धीरे से उसने मेरे सिर से हाथ नीचे ले आया और मेरे होंठों को काटते हुए मेरे चूतड़ को कस के भींच दिया। उसके इस द्विघाती प्रहार से मैं दर्द और उत्तेजना से बिलबिला उठी।
इतना जैसे कम था कि उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर मेरी नर्म मुलायम जीभ से अठखेलियां करने लगा। मै मदहोशी से अपनी आँखें बंद करके उसकी एक एक क्रिया का आनन्द ले रही थी थी।
तंद्रा तो मेरी तब टूटी जब उसने मेरे कान में धीरे से कहा- आपके रूप को देखकर खुद को रोकना बहुत मुश्किल है। इतना कहते हुए उसने मुझे सोफे पर वापिस धकेल दिया।
ऊपर- नीचे होती अपनी साँसों को संभालते हुए ज्ञान बोला- अब मुझे चलना चाहिए, कल मिलते हैं। इससे पहले कि मैं अपनी ऊपर नीचे होती साँसों को संभालकर उठ पाती, ज्ञान दरवाज़े से बाहर निकल चुका था।
मैं उसी मुद्रा में बेसुध सी पड़ी रही और सोचने लगी कि इसी को शायद कहते हैं ‘हाथ तो आया पर मुँह को न लगा।’ लेकिन अब मैं भला कर भी क्या सकती थी।
आग तो भंयकर लग चुकी थी मेरी चूत में! मैं खुद को संभालते हुए उठी और सीधे फ्रिज से एक लंबा मोटा खीरा निकाल वहीं फर्श पर पसर गयी। अपनी साड़ी और पैंटी सरका कर खीरे को चूत में डाल लिया।
चूत मेरी पहले से ही पानी पानी हो रही थी। ठंडा ठंडा खीरा मेरी चूत में सट्ट से अंदर घुस गया। मैं लगभग चिल्लाती हुई खीरे को ज्ञान का लण्ड समझ कर अंदर बाहर करने लगी। कुछ देर की मशक्कत के बाद मैं अपने चरम पर पहुंच गयी और झड़ने के बाद सोचने लगी कि क्या आज ज्ञान ने भी मेरे नाम की मुठ मारी होगी।
फिर वही सब कुछ नार्मल हुआ। पतिदेव आफिस से आये, डिनर के बाद मेरी 2-3 मिनट चुदाई की और सो गए।
लेकिन मुझे तो बस कल का इंतज़ार था। मुझे ज्ञान की कही तूफान वाली बात और आज का 5 मिनट का ट्रेलर मेरे दिलोदिमाग खासकर मेरी चूत में हिलौरें मार रहे थे।
अगले दिन स्कूल के बाद हम दोनों फिर उसी जगह मिले और सीधे एक पैथोलॉजी गए। वहां से एच.आई.वी टेस्ट के लिए सैंपल देकर वापिस घर की तरफ चल दिये। मैं रास्ते में यही सोचने लगी कि आज इसे रोकू की न रोकूँ अपने घर क्योंकि एच.आई.वी टेस्ट की रिपोर्ट तो कल आएगी और ज्ञान मुझे तब तक चोदेगा भी नहीं। मुझे कल की तरह फिर से तड़पना पड़ेगा।
इसी उधेड़बुन में घर कब आ गया पता ही नहीं चला। कार से उतरकर मैं गेट खोलने लगी तब तक मेरे पीछे ज्ञान भी आकर खड़ा हो चुका था।
मैंने ध्यान दिया कि उसके हाथ में एक बैग था। सोफे पर बैठते हुए मैंने ज्ञान से बैग के बारे में पूछा। बैग से एक तेल की बोटल निकालते हुए ज्ञान ने कहा- आज से मेरी सेवाएं शुरू हो चुकी हैं। यह एक ख़ास मसाज ऑयल है।
मुझे समझते देर न लगी कि ये किस तरह का मसाज ऑयल है और किस प्रकार के मसाज की बात कर रहा था लेकिन थोड़ा नादान बनते हुए मैं पूछ पड़ी- इसमे मुझे क्या करना होगा? ज्ञान- सबसे पहले ये सफेद चादर लीजिये और जिस बेड पर लेटेंगी उस पर लगा दीजिये।
मैंने ज्ञान के कहे अनुसार अच्छे से चादर अपने ही बेडरुम में लगा दी। ज्ञान- अब आप चेंज कर लें और टॉवल लगाकर बेड पर पेट के बल लेट जाएं।
इतना सुनते ही मैं सबसे पहले वाशरूम में घुस गई। साड़ी के साथ ही पेटीकोट और ब्लाउज को निकाल फेंका। वस्त्र के नाम पर इस वक़्त मेरे बदन पर ब्रा और पैंटी ही बची थी।
खुद को एक नज़र शीशे में निहारा तो मन मे रोमांच की तरंगें उठने लगी। एक पराया मर्द बांका नौजवान मुझे इस तरह नंगी देखेगा। और केवल देखेगा तो है नहीं बल्कि एक एक करके अपने बलिष्ठ हाथों से मेरे गदराए अंगों को सहलायेगा, टटोलेगा, मसलेगा।
इससे ज्यादा मैं आगे सोचती, मैंने ब्रा के साथ पैंटी भी उतार फेंकी। और यहां मैं अपने मर्द मित्रों को एक बात आपको बता दूँ कि औरतें जब दिन भर की भागदौड़ के बाद अपनी ब्रा उतारती हैं तो जो रिलैक्सेशन वाली फीलिंग आती है ना कि पूछिये मत। मेरे भी दोनों उरोज उछल कर फुदकने लगे।
मैंने ऊपर टॉवल लपेटा और बाथरूम से निकल बैडरूम मे आ गयी जहां ज्ञान भी अपने कपड़े निकालकार केवल बॉक्सर पहने बेड के सिरहाने बैठा था।
मुझे इस रूप मे देखकर उसकी आँखों में एक अलग सी चमक आ गयी- आप गज़ब की खूबसूरत हैं सिमरन मैम। यहां आकर पेट के बल लेट जाएं।
मैं टॉवल लपेटे हुए बिस्तर पर पेट के बल लेट गयी और ज्ञान ने अपना काम शुरू कर दिया। सबसे पहले उसने मेरे पैरों पर मालिश शुरू करते हुए ऊपर की ओर बढ़ने लगा। मेरे घुटने तक आने के बाद उसने मेरे कूल्हे को सहारा देते हए धीरे से मेरे बदन पर लिपटा एकमात्र वस्त्र तौलिये को निकाल दिया। मेरे 36 के चूतड़ उसकी आंखों के सामने नंगे हो गए।
उसने देर न करते हुए मेरे मोटे चूतड़ों पर तेल लगाना शुरू कर दिया। मेरी गांड पर तेल लगाते हुए ज्ञान ने बड़ी कस के मेरे दोनों चूतड़ों को दबा दिया। ‘उफ्फ’ करके मैं बड़ी जोर से कराह उठी। मैं एकदम गर्म हो चुकी थी।
इतना जैसे कम था कि उसने हाथ में तेल लेकर मेरे चूतड़ों के बीच मेरी चूत पर हाथ फेर दिया। दो तीन बार मेरी चूत पर हाथ फेरने के बाद उसने मेरी गांड के छेद से छेड़खानी शुरू कर दी। तेल से डूबी हुई मध्यमा उंगली को उसने एकाएक मेरी छोटी सी गांड के छेद में घुसेड़ दी।
मेरी गांड में मुझे मीठा मीठा दर्द उठ पड़ा। मैं अपने चेहरे को मालिश सुख महसूस करते हुए बिस्तर में गड़ाए पड़ी थी। ज्ञान ने अब तक मेरी पीठ पर तेल लगाना शुरू कर दिया। उसके कसरती कठोर हाथ की ताकत से मेरी नाज़ुक पीठ और कंधों की मस्त मालिश कराते हुए मैं सुख के उस संसार में पहुंच चुकी थी जहाँ से चाह कर भी लौटना नामुमकिन था।
इतने में उसने मेरे कंधे और कमर से हाथ लगाते हुए मुझे दूसरी ओर पलट दिया। अब मेरी नंगी, साफ, बिना झांटों वाली चूत ज्ञान के आगे पसर कर उसको ललचाने लगी.
कहानी अन्तर्वासना पर जारी रहेगी. अपने कंमेंट्स आप सीधे मुझे मेल कर सकते हैं। [email protected]
कहानी का अगला भाग: कामवासना की तृप्ति- एक शिक्षिका की जुबानी-2
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