This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
प्रिय मित्रो.. मेरा नाम लक्ष्मी है, मैं दिल्ली में रहती हूँ, अभी कुछ महीने पहले ही मैंने पहली बार चुदाई का मज़ा लिया है। अन्तर्वासना पर कहानियाँ पढ़ती थी तो आज दिल किया की दूसरों की चुदाई की कहानी पढ़ने में जब इतना मज़ा आता है तो अपनी चुदाई की कहानी सुनाने का रोमांच कैसा होगा। कहानी लिखने का अनुभव नहीं था तो मेरे एक मित्र राज से मदद करने को कहा तो उन्होंने कहानी लिखने में मेरी मदद की। खासतौर पर कहानी को हिंदी में लिखने में बहुत मदद की। मेरी कहानी छोटी सी है। और यह शुरू तब हुई जब मेरी दीदी की शादी हुई।
शादी का माहौल में मैं उन्नीस साल की अल्हड़ सी लड़की अपनी ही धुन में शादी की तैयारी में लगी थी। दीदी की शादी में खरीदारी की जिम्मेदारी कुछ हद तक मुझ पर भी थी। शादी से दो दिन पहले से ही मेहमान आने शुरू हो गए थे। दादी, बुआ, मौसी, भाभी सबका जमावड़ा लगने लगा था। आपको बता दूँ मेरी भाभियाँ बहुत शैतान हैं और बहुत मजाक करती है वो सब। मेरी तो जैसे शामत ही आ गई थी उनके आते ही। कभी कोई चुटकी काट लेती तो कोई गुदगुदा देती। या फिर सब का एक ही कथन : लच्छो तैयार हो जा अगला नंबर तेरा है, कोई कहती : लक्ष्मी तू तो मस्त माल बन गई है तेरे तो मियां जी की लाटरी लगेगी तेरी शादी के बाद।
मैं उनके मजाक के कारण अंदर ही अंदर गुदगुदा जाती।
आखिर शादी वाली रात भी आ गई। बारात आने वाली थी तो एक भाभी आई और बोली- लक्ष्मी, अपने लिए भी कोई दूल्हा चुन लेना बारात में से… सुना है बहुत मस्त मस्त लड़के आये हैं बारात में..
मैं उस भाभी की बात सुन कर झल्लाई और पैर पटकती हुई अंदर चली गई।
अंदर का माहौल तो और भी ज्यादा खतरनाक था। मेरी एक भाभी दीदी को सुहागरात के बारे में समझा रही थी। वो बता रही थी कि कैसे कैसे पति देव उसके बदन को मसलेंगे और उसको अपने पति को कैसे मज़ा देना है।
भाभी की बातें सुन कर दीदी शर्म से लाल हो गई थी और दीदी ही क्या, मेरी भी चूत गीली हो गई थी उनकी बात सुन कर।
तभी भाभी ने मेरी तरफ देख कर कहा- लक्ष्मी, तुम भी सुन लो, कल तुम्हारे भी काम आने वाला है यह सब…
कह कर वो तो क्या वहाँ बैठी दीदी और दीदी की सहेलियाँ सब हँस पड़ी। मैं झेंप गई और बाहर भाग गई।
मुझे अब पेशाब का जोर हो रहा था तो मैं बाथरूम में घुस गई। अपनी पेंटी नीचे उतार कर मैं जब पेशाब करने बैठी तो एक अजीब सी गुदगुदी महसूस हुई मुझे पेशाब करते हुए। ऐसा दिल कर रहा था कि कुछ घुसा दूँ चूत में। थोड़ी देर चूत को ऊँगली से सहलाया और फिर बाहर आ गई।
हँसी मजाक के माहौल में शादी की रस्में हुई। बारात में एक लड़के को देख कर मेरे दिल में भी कुछ हलचल हुई। पर लड़की थी ना तो अपने दिल की बात किसी को कह नहीं सकती थी। वो भी बार बार मुड़-मुड़ कर मुझे ही देख रहा था। शादी की दौरान वो मुझ से कई बार टकराया। एक दो बार तो मुझे महसूस हुआ कि वो जानबूझ कर टकराया है। पर उसका टकराना मुझे अच्छा लग रहा था।
विदाई का समय नजदीक आ गया था, मुझे तभी पेशाब का जोर हुआ तो मैं बाथरूम की तरफ गई। अंदर जाकर मैं पेशाब करके जैसे ही बाहर आई तो धक् से रह गई। वो बाथरूम के बाहर खड़ा था। उसने इधर उधर देखा और फिर मुझे लेकर बाथरूम में घुस गया। मैं चिल्लाना चाहती थी पर तब तक उसने अपने होंठों से मेरे मुँह को बंद कर दिया।
पहली बार किसी ने मुझे “किस” किया था और वो भी होंठों पर। कुछ देर तो मैंने उसको दूर करने की कोशिश की पर फिर पता नहीं क्या हुआ। मुझे उसका किस करना अच्छा लगने लगा। उसके बाद तो वो बेहताशा मुझे चूमता रहा। उसका एक हाथ मेरे चूचियों का माप ले रहा था। वो मेरी चूचियों को सहला रहा था और धीरे धीरे मसल भी रहा था। तभी बाहर हलचल महसूस हुई तो उसने मुझे छोड़ दिया और फिर मौका देख कर वो चला गया। उसके जाने के बाद मैं करीब पाँच दस मिनट तक बाथरूम में ही बैठी रही। पेंटी पूरी गीली हो गई थी मेरी।
बाहर आई तो सब मुझे ही खोज रहे थे। फिर विदाई की रस्में हुई और दीदी अपने ससुराल चली गई।
अगले दिन सब रिश्तेदार भी चले गए तो मुझे अकेलापन महसूस होने लगा। जब भी अकेली बैठती तो वो लड़का मेरी नजर के सामने घूमने लगता और फिर वो बाथरूम का नजारा दिमाग में आते ही मेरी चूत पानी पानी हो जाती। मैं उससे मिलने को तड़प रही थी।
सावन का महीना आया तो रिवाज के मुताबिक़ दीदी अपने मायके आई। और फिर हरयाली तीज के बाद हमें दीदी को उसके ससुराल छोड़ने जाना था। अचानक पापा को एक जरूरी काम पड़ गया और भाई भी उस समय शहर में नहीं था तो जीजा खुद ही लेने आ गए। मैं उन दिनों फ्री थी तो दीदी ने कहा- लक्ष्मी तुम भी मेरे साथ चलो ना। कुछ दिन मेरे साथ रहना।
मैं तो तैयार थी और फिर जब मम्मी-पापा ने भी हाँ कर दी तो मैं खुश हो गई और दीदी के साथ उसके ससुराल चली गई।
जिस दिन हम गए तो उसी दिन दोपहर को मैं और दीदी बैठे दीदी की शादी की एल्बम देख रहे थे। तभी उस लड़के की फोटो सामने आई तो मैंने पूछ लिया- दीदी यह कौन है?
वो दीदी का देवर था और जीजाजी के चाचा का लड़का, अजय नाम था उसका।
मेरी आँखों में एक चमक सी आई कि शायद मुलाकात हो जाए। अभी हम बात कर ही रहे थे कि वो आ गया। उसको सामने देखते ही मेरे तो दिल की धड़कनें बढ़ गई। वो आकर मेरे पास बैठ गया। तभी दीदी बोली- मैं अभी चाय बना कर लाती हूँ।
मैं भी दीदी के साथ जाना चाहती थी पर जैसे ही मैं उठने लगी तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर वापिस बैठा दिया। हम दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोला।
कुछ देर के बाद दीदी चाय ले आई और फिर हम सब चाय पीकर बहुत देर तक बातें करते रहे। वो बहुत खुशदिल था तो मैं उस पर मर मिटी थी। शाम का समय हो गया था तो दीदी ने उसको कहा- अजय, जाओ, लक्ष्मी को खेत दिखा लाओ। मेरे दीदी के घर के पीछे ही उनके खेत थे जहा वो सब्जियाँ उगाते थे। वो तो जैसे तैयार ही बैठा था। और सच कहूँ तो मैं भी उस से अकेले में मिलने को बेचैन हो गई थी।
हम लोग बाहर आये तो बाहर बादल छाये हुए थे, दीदी बोली- लक्ष्मी, बारिश आने वाली है तो जल्दी घर आ जाना।
मैंने भी हाँ में सिर हिलाया और अजय के साथ चल दी। खेत में सब्जियाँ देखते हुए हम खेत में घूमते रहे और फिर खेत के कौने में बने एक झोंपड़े में चले गए। इस दौरान वो मुझे दो तीन बार आई लव यू बोलने को कह चुका था पर मैं हर बार उसकी बात को टाल रही थी और मुस्कुरा कर उसके दिल पर छुरियाँ चला रही थी। उसको तड़पाने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।
अभी हम झोंपड़े के पास पहुँचे ही थे कि बारिश शुरू हो गई। मैं घर की तरफ भागी पर उसने मुझे पकड़ कर झोपड़े में खींच लिया। तभी बारिश भी पूरे वेग से होने लगी।
“अजय, घर चलते हैं…. कोई क्या सोचेगा…” यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
पर उसने कोई जवाब नहीं दिया बस मुझे अपनी बाहों में भर लिया और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। मैंने छुटने की थोड़ी कोशिश की पर उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी और कुछ देर के बाद मैं अपनेआप में नहीं रही। अब तो मैं भी उसमें समा जाने को बेताब हो उठी।
उसने मेरी कमीज को ऊपर करना शुरू किया तो दिल जोर से धड़का पर उसकी मर्दानगी के आगे मैं लाचार थी। कुछ ही क्षण में उसने मेरी कमीज को मेरे बदन से अलग कर दिया । शमीज में कसी मेरी चूचियाँ देख कर वो पागल सा हो गया। उसने मेरी शमीज को ऊपर उठाया और मेरी गोरी गोरी चूचियों को देखने लगा। मैं तो मदहोश हो गई थी और मेरी आँखें बंद थी। तभी मुझे अपनी चुचूक पर उसके होंठों का एहसास हुआ। मेरा तो सारा शरीर झनझना उठा। वो मेरी चूची को मुँह में भर भर कर चूस रहा था और दूसरी को मसल रहा था।
एक बारिश तो बाहर हो रही थी और दूसरी मेरी पेंटी के अंदर। मेरी चूत पानी पानी हो रही थी। मेरी होंठ और चूचियों को चूसने के बाद अजय के होंठ नीचे बढ़ने लगे। पहले मेरी नाभि को चूमते हुए उसने मेरी सलवार के नाड़े को खोल दिया। सलवार अगले ही पल मेरे पाँव चूम रही थी। अजय पेंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को सहलाने लगा और चूमने लगा।
मेरे अंदर एक आग सी भरती जा रही थी। दिल कर रहा था कि अजय जल्दी से मेरी चूत में कुछ घुसा दे। तभी अजय ने मेरी पेंटी भी नीचे खींच दी। अब मैं बिल्कुल नंगी उसके सामने खड़ी थी।
अजय ने मुझे वही पर पड़ी एक चारपाई पर लेटाया और मेरी टाँगें खुली करके मेरी चूत को चाटने लगा। चूत पर जीभ के एहसास मात्र से ही मेरी चूत झड़ गई। ये सब अति-उतेजना के कारण हुआ। अजय मेरी चूत से निकले सारे रस को पी गया। तभी अजय खड़ा होकर अपने कपड़े उतारने लगा। मैं उसको नंगा होते हुए देख रही थी। उसने अपनी कमीज और बनियान उतारी तो उसके बदन को देख कर उसकी मजबूती का एहसास हो रहा था। फिर जब उसने अपनी पैंट उतारी तो उसके अंडरवियर पर मेरी नजर गई। उसके अंडरवियर में बनी गाँठ को देख कर मैं सिहर उठी। गाँठ से उसके मोटे लण्ड का अंदाजा लग रहा था।
जब उसने अपना अंडरवियर उतारा तो उसके लम्बे और मोटे लण्ड को देख कर मेरे मुँह से “हाय राम” निकला तो वो हँस पड़ा। उसका लण्ड सात-आठ इंच लम्बा और तीन-चार इंच मोटा था। तन कर खड़ा लण्ड बहुत भयानक लग रहा था। मुझे चुदाई का कुछ भी पता नहीं था पर शादी वाले दिन और अपनी सहेलियों से जो पता लगा था उसके अनुसार तो यह मोटा सा लण्ड मेरी छोटी सी चूत में घुसने वाला था।
अजय आगे आया और उसने अपना लण्ड मेरे मुँह की तरफ किया और मुझे चूसने के लिए बोला। पर मैंने पहले कभी ये नहीं किया था तो मैंने मना कर दिया और बहुत कहने पर भी मैंने वो अपने मुँह में नहीं लिया। जब मैं नहीं मानी तो अजय फिर से मेरी जांघों के बीच बैठ कर मेरी चूत चाटने लगा। मैं तो जैसे मस्ती के मारे मरी जा रही थी।
बाहर बारिश अभी भी पूरे जोर से हो रही थी।
कुछ देर मेरी चूत चाटने और चूसने के बाद अजय ने थोड़ा सा थूक मेरी चूत और अपने लण्ड पर लगाया और अपना लण्ड मेरी चूत पर रख दिया। गर्म लोहे की छड़ जैसा लण्ड महसूस होते ही एक बार फिर से मेरा सारा शरीर झनझना उठा। दिल भी कर रहा था कि अजय पूरा घुसा दे, पर पहली बार था तो डर भी बहुत लग रहा था।
तभी अजय ने लण्ड जोर से चूत पर दबाया तो मुझे दर्द का एहसास हुआ। मैं डर के मारे अजय को अपने ऊपर से दूर धकेलने की कोशिश करने लगी। पर अजय पक्का खिलाड़ी था। उसने मुझे हिलने भी नहीं दिया और एक जोरदार धक्का लगा कर लण्ड का मोटा सुपारा मेरी चूत में घुसा दिया। सुपारा अंदर जाते ही जैसे मेरी तो जान ही निकल गई। लण्ड की मोटाई के लिए मेरी चूत बहुत तंग थी। अभी मैं संभल भी नहीं पाई थी कि अजय ने एक और जोरदार धक्का लगा कर करीब दो इंच लण्ड मेरी चूत में फंसा दिया। मेरी चीख निकल जाती वो तो अजय ने एक हाथ से मेरा मुँह दबा लिया।
मेरी आँखों से आँसुओं की धार बह निकली थी। सच में बहुत दर्द महसूस हो रहा था।
अजय थोड़ा रुका और मेरी चूची को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा और मुझे समझाने लगा कि कुछ ही देर में दर्द खत्म हो जाएगा। बस थोड़ा सा सहन करो फिर बहुत मज़ा आएगा। पर मेरी चूत तो जैसे दो हिस्सों में फटने को हो रही थी। लग रहा था कि जैसे कोई चूत को किसी धारदार चीज से चीर रहा हो।
अजय के रुकने से दर्द कुछ कम हुआ ही था कि अजय ने लण्ड थोड़ा बाहर को खींचा और फिर एक जोरदार धक्के के साथ दुबारा चूत में घुसा दिया। धक्का इतना जबरदस्त था कि मुझे मेरी चूत फटती हुई महसूस हुई। मेरी चूत से कुछ बह निकला था।
अजय ने बेदर्दी दिखाई और दो धक्के एक साथ लगा कर आधे से ज्यादा लण्ड मेरी चूत में डाल दिया। मैं दर्द से दोहरी हो गई।
“हाय…. फट गईई मेरी तो…. मुझे नहीं करवाना….बाहर निकल अपना…. निकाल कमीने…मैं मर जाऊँगी…” मैं चिल्ला रही थी पर अजय तो जैसे कुछ सुन ही नहीं रहा था। बस वो तो मुझे मजबूती से पकड़ कर मेरे ऊपर लेटा हुआ था। जैसे ही मैं थोड़ा शांत हुई बेदर्दी ने दो धक्के फिर से लगा दिए और पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया। मेरी हालत हलाल होते बकरे जैसी हो रही थी।
पूरा लण्ड घुसाने के बाद अजय बोला- बस मेरी रानी हो गया, अब दर्द नहीं होगा… अब तो बस मज़ा ही मज़ा… पहली बार इतनी मस्त कसी चूत मिली है…”
वो मेरे ऊपर लेटा मेरी चुचूक मसल रहा था और दूसरे को मुँह में लेकर चूस रहा था और दांतों से काट रहा था। कुछ देर ऐसे ही रहने से मुझे दर्द कुछ कम होता लगा। चूत में दर्द के साथ साथ एक अजीब सी गुदगुदी होने लगी थी। दिल मचलने लगा था कि अजय लण्ड को अंदर-बाहर करे। जब अजय ने कुछ नहीं किया तो मैंने ही अपनी गाण्ड थोड़ा हिलाई। अजय को जैसे मेरे दिल की बात पता लग गई और उसने धीरे से लण्ड को बाहर निकाला और फिर एकदम से अंदर ठूस दिया।
चूत एक बार फिर चरमरा उठी। पर अब अजय नहीं रुका और उसने लण्ड को धीरे धीरे अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया।
लण्ड जब भी चूत में जाता तो दर्द तो होता ही पर पूरे शरीर में एक अजीब सी गुदगुदाहट सी भी होती। दिल करता कि अजय और अंदर तक डाल दे। अजय धीरे धीरे स्पीड बढ़ा रहा था। करीब पाँच मिनट की चुदाई के बाद लण्ड ने अपने साईज के अनुसार चूत को फैला दिया था और अब लण्ड थोड़ा आराम से अंदर-बाहर हो रहा था। अब चूत ने भी पानी छोड़ दिया था जिस से रास्ता चिकना हो गया था।
अब दर्द लगभग खत्म हो गया था बस जब अजय कोई जोरदार धक्का लगाता तो थोड़ा दर्द महसूस होता पर अब दिल कर रहा था कि अजय ऐसे ही जोर जोर से धक्के लगाए। मेरी चूत में सरसराहट बढ़ गई थी। लग रहा था कि जैसे कुछ चूत से निकल कर बाहर आने को बेताब हो। अभी कुछ समझ ही नहीं पाई थी कि मेरी चूत से झरना बह निकला। मैं झड़ रही थी।
मेरा पूरा शरीर अकड़ रहा था और मैंने अपने दोनों हाथो से अजय की कमर को पकड़ लिया था और उसको अपने ऊपर खींच रही थी। दिल कर रहा था कि अजय पूरा का पूरा मेरे अंदर समा जाए। इसी खींचतान में अजय की कमर पर मेरे नाख़ून गड़ गए।
अजय क्यूंकि अभी नहीं झड़ा था तो वो अब भी पूरे जोश के साथ धक्के लगा रहा था। पर मैं झड़ने के बाद कुछ सुस्त सी हो गई थी। अजय के लण्ड की गर्मी और धक्कों की रगड़ ने मुझे जल्दी ही फिर से उत्तेजित कर दिया और मैं फिर से गाण्ड उठा उठा कर लण्ड अपनी चूत में लेने लगी। फिर तो करीब बीस मिनट तक अजय और मैं चुदाई का भरपूर मज़ा लेते रहे और फिर दोनों ही एक साथ परमसुख पाने को बेताब हो उठे। अजय का लण्ड भी अब चूत के अंदर ही फूला हुआ महसूस होने लगा था।
अजय के धक्कों की गति भी बढ़ गई थी। तभी मैं दूसरी बार पूरे जोरदार ढंग से झड़ने लगी। अभी मैं झड़ने का आनन्द ले ही रही थी कि अजय के लण्ड ने भी मेरी चूत में गर्म गर्म लावा उगलना शुरू कर दिया। कितना गर्म गर्म था अजय का वीर्य। मेरी पूरी चूत भर दी थी अजय ने। मैं तो मस्ती के मारे अपने होश में ही नहीं थी, दिल धाड़-धाड़ बज रहा था। मैं तो जैसे आसमान में उड़ रही थी, भरपूर आनन्द आ रहा था। बिल्कुल वैसा ही जैसा मैंने मेरी सहेलियों और भाभियों से सुना था। दिल कर रहा था कि अजय ऐसे ही लण्ड को अंदर डाल कर लेटा रहे।
बाहर अब भी जोरदार बारिश हो रही थी। अंदर तो भरपूर बारिश हो चुकी थी, चूत भर गई थी। जैसे ही होश आया तो मैं शर्म के मारे लाल हो गई। अजय ने अपना लण्ड बाहर निकाला और पास पड़े एक कपड़े से साफ़ कर लिया और फिर मुझे दे दिया चूत साफ़ करने के लिए। मैंने भी अपनी चूत साफ़ की। चूत में दर्द हो रहा था। खड़ी होकर मैंने अपने कपड़े पहने। तब तक अजय भी कपड़े पहन चुका था। अजय ने मेरी तरफ देखा तो मैं भी शरमा कर उसकी बाहों में समा गई।
“आई लव यू लक्ष्मी…”
“तुम बहुत बेदर्द हो !”
लड़खड़ाते कदमो से मैं बाहर आई तो अभी भी सावन की फुव्वारे मौसम को रंगीन बना रही थी। जब बारिश की बूँदे मेरे ऊपर पड़ी तो एक नयी ताजगी सी महसूस हुई।
उसके बाद मैं तीन दिन तक दीदी की ससुराल में रही और दो बार मैंने चुदाई का भरपूर आनन्द लिया। वहाँ से आने के बाद मुझे चुदाई का मज़ा नहीं मिला और मैं आज भी अपनी चूत के लिए एक मोटे से लण्ड की तालाश में हूँ…
आप सब के मेल का इन्तजार रहेगा..
मेरी मेल आईडी है :
[email protected]
मेरे दोस्त राज को भी आपके मेल का इन्तजार रहेगा…
उनकी आईडी तो पता है ना आपको…
[email protected]
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000