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मैं रोनी सलूजा आपसे फिर मुखातिब हूँ। मेरी कहानी बाथरूम का दर्पण को सभी ने बहुत सराहा है।
कुछ लोगों ने मुझसे सागर की हेमा पवार के बारे में जानकारी चाही तो कुछ ने रमा के बारे में जानना चाहा। क्षमायाचना के साथ मैं आप सभी को बता दूँ कि मेरी कहानियों में सभी नाम, स्थान तथा शहर के नाम पूरी तरह से काल्पनिक हैं। अगर शहर के बारे में जानकारी थी तो उसे कहानी में जमा दिया इसका मतलब यह नहीं है कि कहानी वाले शहर में रमा या हेमा रहती है। कहानी में कुछ कल्पना भी होती हैं, आप सभी के सुझाव एवं सराहना मेरे लिए महत्वपूर्ण रही, आगे भी आपके संदेशों का इंतजार करता रहूँगा।
बाथरूम का दर्पण की यह अंतिम कड़ी है।
अब अपनी कहानी पर आते हैं।
एक दिन मोबाईल पर हेमा का फोन आया, बोली- रोनी, तुमसे मिले कितने दिन गुजर गए, तुमने एक भी फोन नहीं किया?
मैंने कहा- मैं तुम्हारे फोन के इंतजार के सिवा कुछ नहीं कर सकता था, कारण तुम्हे पता है कि मैं इसलिए फोन नहीं लगाता कि पता नहीं फोन कौन उठा ले। फिर मैंने कहा भी था की जब तुम्हारा फोन आएगा तभी बात करूँगा अन्यथा तुम्हें तंग नहीं करूँगा। खैर छोड़ो, तुम्हारा फोन आया, विश्वास नहीं हो रहा है, तुमसे बात करके बहुत ख़ुशी हो रही है, आज तुम्हें हमारी याद कैसे आ गई?
बोली- रोनी तुमसे बात करने की इच्छा हमेशा होती रहती है पर मन को मारकर रखना पड़ता है, आज कंट्रोल नहीं हुआ तो फोन लगाना पड़ा। कारण मेरे पति 15 दिन पहले कम्पनी की तरफ से एक माह की ट्रेनिंग पर पूना गए हुए हैं, 15 दिन और बाकी हैं, उन्हें बीच में आने के लिए छुट्टी नहीं मिल रही है, मुझे बहुत बुरा लग रहा है, शरीर की आग मुझे जलाये दे रही है, तब मुझे तुम्हारे अलावा कोई दूसरा रास्ता समझ में नहीं आया। क्या तुम हमारे यहाँ आकर इस जलती आग को ठंडा नहीं करोगे?
मैंने फ़ौरन हाँ करने का सोचा परन्तु रुक गया, सोचा कि एकदम नहीं, थोड़ा परेशान करो, मैंने कहा- अभी तो नहीं आ सकता, कुछ जरूरी काम हैं।
बोली- रोनी, क्या तुम मेरे लिए थोड़ा सा समय नहीं निकाल सकते प्लीज…? मेरा तो अब तक खड़ा भी हो गया था, मैंने कहा- देखूँगा, थोड़ी देर से फोन लगाकर बताता हूँ। बोली- रोनी, मैं इंतजार कर रही हूँ, जल्दी फोन करना प्लीज… फिर फोन कट गया।
मैंने सोचा, इन्सान और जानवर में कोई ज्यादा फर्क नहीं है, जानवरों में मादा एक निश्चित समय पर गर्मी पर होती है लेकिन नर उसे देख कर कभी भी गर्म हो जाता है और लार टपकाने लगता है फिर मैथुन के लिए पीछे लग जाता है।
मेरा मन भी बहक चुका था, अपने आप पर काबू नहीं कर प़ा रहा था और ऐसा मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहता था, फिर हेमा जैसी सुंदरी के साथ यह मौका कभी मिले या न मिले सोचकर फोन लगा ही दिया।
हेमा ने फोन उठाकर सीधा सवाल किया- कब आ रहे हो? मतलब वो मेरा जबाब जानती थी, मैंने कहा- कब आना है? बोली- शाम को आना और रात यहीं रुकना है। मैंने कहा- आज तो नहीं आ पाऊँगा, क़ल आ रहा हूँ! बोली- एक दिन और इंतजार कराओगे?
मैंने कहा- जरूरी काम है, क़ल पक्का आ रहा हूँ शाम की गाड़ी से! बोली- मैं लेने आ जाऊँगी! मैंने कहा- नहीं मैं आ जाऊँगा, घर मेरा देखा हुआ है, तुम परेशान मत होना।
दूसरे दिन शाम को हेमा के घर पहुँचने के दस मिनट पहले फोन से बता दिया कि मैं पहुँचने वाला हूँ! तो बोली- हाँ आ जाओ!
जब उसके घर की गली में कदम रखा तो दिल की धड़कनें तेज हो गई और जब उसको गेट पर खड़े देखा तो दिल का दौरा आते आते बचा, कारण उसकी सुन्दरता थी।
आज उसने जामुनी रंग की साड़ी पहनी थी जिस पर जरी वर्क था, वैसी ही बिंदी और लाल लिपस्टिक! उसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर पा रहा हूँ, एकदम पतिव्रता लग रही थी।बोली- हल्लो रोनी!
और गेट खोल दिया। मैं अन्दर आया तो गेट बंद कर दिया और मकान का दरवाजा खोल दिया। मैं घर के अन्दर आ गया, वो भी अन्दर आ गई और दरवाजे की सिटकनी लगा कर मुझसे ऐसी लिपटी जैसे वर्षों के बिछड़े प्रेमी मिले हों।
मैंने भी उसे भींच लिया, उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए नितम्बों तक हाथ चलने लगा। वो चुम्बन पर चुम्बन किये जा रही थी, छोड़ ही नहीं रही थी। मैंने कहा- हेमा, पानी नहीं पिलाओगी?
तब उसने मुझे छोड़ा, उसका चेहरा देखा तो लगा कुछ पलों ही में उसकी आँखें नशीली हो गई थी, खुमारी जैसी छा गई थी।
वो अदा से देखते हुए पानी लेने चली गई, साड़ी में उसके नितम्बों की मटकन अलग ही मजा दे रही थी।
मैंने बाथरूम जाकर मुँह-हाथ धोए, फिर बैठक में आकर बैठ गया। वो पानी लेकर आई और मुझसे सटकर बैठ गई, बोली- रोनी कुछ खाने को लेकर आते हैं!
मैंने कहा- जानू, पहले तुम्हें खायेंगे, खाना के लिए तो रात बाकी है। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
सोफ़े पर बैठे बैठे ही मुझसे लिपटने लगी। सारा काम बड़ा ही आसान था, साड़ी में से होकर एक हाथ उसकी पेंटी के अन्दर तक पहुँच गया, दूसरा हाथ ब्लाउज़ के अन्दर की गोलाइयों को नाप रहा था, होंठों से होंठ और जीभ से जीभ का मिलन चल रहा था।
हेमा ने मेरी पैंट की जिप खोलकर लंड को बाहर निकाल लिया और बड़े प्यार से सहलाने-चूमने लगी। मैं तो जैसे जन्नत की सैर कर रहा था बस, हर पल आनन्द बढ़ता ही जा रहा था, हम दोनों अपने होशोहवास खो चुके थे।
एक घंटा कब निकल गया, पता ही नहीं चला, होश तब आया जब हेमा के नाख़ून हमारी पीठ और गर्दन पर जोरों से चुभ रहे थे।
हमें यह समझ नहीं आया कि हम दोनों के कपड़े कब उतर गए। दोनों जन्मजात नंगे चुदाई में रत कमरे में बिछे हुए कालीन पर थे। शांत कमरे में सिर्फ दोनों की आहों, सीत्कारों के स्वर उभर रहे थे।
हेमा की आँखें बंद थी, मैं समझ गया कि हेमा चरम को प्राप्त कर झर गई है। एक दो मिनट में मैं भी झरने वाला था, हेमा से कहा- हेमा, निरोध नहीं लगाया, मैं भी झरने वाला हूँ, क्या करूँ?
बोली- अन्दर ही झरना प्लीज! मैं बोला- तुम्हारा महीना कब आया था? बोली- बीस दिन पहले!
मुझे राहत मिल गई यह सोचकर कि गर्भ ठहरने का कोई खतरा नहीं है। फिर मैंने हेमा के घुटने मोड़कर टांगों को ऊपर किया और जोरों से पूरा का पूरा लंड उसकी चूत में डालने लगा। हेमा नीचे से चूतड़ों को उठा उठा कर सहयोग करने लगी, उसे भी मजा आ रहा था। पच्चीस तीस धक्कों के बाद मैं झरने लगा, पिचकारी की पहली धार निकलने पर ऐसा महसूस हुआ जैसे जिन्दगी बस यहीं पर थम जाये, फिर हर धार के आनन्द को हेमा ने भी ऐसे लूटा कि वो तो भाव- विभोर ही हो गई थी। मैं लंड को अन्दर को दबाकर निढाल सा उसके ऊपर पसर गया, वो मुझे और मैं उसको चूमता रहा। फिर हम दोनों उठकर बाथरूम में गए और साथ में नहाए। इच्छा तो नहाते वक्त भी हुई लेकिन सोचा कि जल्दी क्या है रात तो बाकी है।
कपड़े पहनकर मैं बैठक में टीवी चालू करके समाचार देखने लगा, हेमा ने सुन्दर काली ब्रा पेंटी पहन कर मेक्सी पहन ली, बोली- खाना क्या खाओगे?
मैंने कहा- परांठे और चावल जीराफ्राई।
किचन में जाकर उसने पहले पापड़ तले फिर फ्रिज से पानी और वोदका की आधी भरी बाटल लेकर आई, बोली- रोनी, पहले थोड़ा ठंडा हो जाये!
उसने दोनों के लिए पेग बना दिए, मैंने पूछा- पहले से मंगा रखी थी क्या?
तो बोली- मेरे पति की है, कभी कभी उनके साथ एक आध पेग ले लेती हूँ।
मैं बोला- आकर पूछेंगे तो…?
हेमा- बोल दूँगी, नींद नहीं आती थी तो मैंने पी ली, तुम चिंता नहीं करो।
अपना पेग ख़त्म करके वो रसोई में चली गई। मैंने दूसरा पेग बनाया टीवी देखते हुए पीने लगा। तब तक हल्का सुरूर आने लगा था।
आधे घंटे में रसोई से हेमा आई, बोली- खाना तैयार है!
फिर से पेग बनाने लगी, मैंने अपना मना कर दिया- यदि तुम चाहो तो ले लो!
बोली- एक और! मैंने कहा- मैं यहाँ गम गलत करने नहीं खुशियाँ बाँटने आया हूँ।
वो बोतल उठाकर रख आई और खाना लगा दिया। हमने साथ खाना खाया फिर हेमा बोली- बेडरूम में चलो, मैं भी वहीं आती हूँ।
थोड़ी देर में हेमा अपने कामों से फारिग होकर बेडरूम में आ गई, हम बिस्तर पर लेट कर एक-दूसरे को सहलाते हुए बातें करने लगे।
मैं बोला- तुम्हारी रमा से कब से बात नहीं हुई? उसे कुछ बताया तो नहीं? हेमा बोली- काफी दिनों से बात नहीं हुई, मैं उसे क्यों कुछ बताऊँगी। फिर बोली- रमा को फोन लगाती हूँ, तुम आवाज मत करना।
उस समय रात के नौ बज चुके थे। हेमा ने फोन लगाकर स्पीकर चालू कर दिया।
दूसरी ओर से आने वाली आवाज शायद रमा के पति की थी, बोले- हेल्लो कौन…?
‘नमस्ते भाईसाब, मैं हेमा… रमा की सहेली… रमा से बात करनी है!’ वो बोले- रमा किचन में है, अभी फोन देता हूँ और तुम कैसी हो? हेमा- एकदम ठीक हूँ…
दूसरी ओर बर्तनों की आवाज आ रही थी…
‘रमा! हेमा का फोन है, लो बात करो…’
‘हाय हेमा! कैसी है तू?’
हेमा- एकदम ठीक! तुम कैसी हो? रमा- एकदम मजे में कट रही है, बहुत दिनों बाद तूने फोन लगाया…? हेमा- तुम भी तो मुझे भूल गई हो! रमा- ऐसी बात नहीं है, काम में कब दिन गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता, और तुम्हारे वो कैसे हैं..? हेमा- एक माह की ट्रेनिंग पर पुणे गए हैं, अकेली हूँ! रमा- तभी मेरी याद आ गई?
हेमा- और सुना, रोनी से कभी बात हुई दुबारा? रमा- नहीं यार, मैं अपने पति से ही बहुत खुश हूँ। रोनी हवा के झोंके की तरह था, आया, चला गया! मैं पति के साथ खुश हूँ और शायद मैं अब उसे फोन ही नहीं लगाना चाहती पर तू यह सब क्यों पूछ रही है? हेमा- बस ऐसे ही! तुम्हारी सहेली जो हूँ…
रमा- कहीं तू भी रोनी के चक्कर में तो…? हेमा- नहीं यार… रमा- पड़ना भी नहीं वर्ना अपने आपको संभालना मुश्किल हो जाता है।
बात बदलते हुए हेमा- और बच्चे कैसे हैं? रमा- बिल्कुल ठीक हैं। हेमा- फोन बंद करती हूँ, शायद उनका फोन आ रहा है, गुड नाईट। रमा- ओके..
हेमा ने फोन काट दिया, रमा की बात सुनकर हेमा कुछ नर्वस सी हो गई थी जैसे मुझे बुलाकर पछता रही हो।
मैंने कहा- क्या हुआ? बोली- कुछ भी तो नहीं।
मैं उसे गर्म करने में लग गया। वो भी मुझे सहलाने-चूमने लगी। एक बार फिर नग्न होकर हम दोनों वासना के समुन्दर में गोते लगाने लगे, एक-दूसरे के शरीर के हर अंग को हम दोनों आपस में चूम-चाट रहे थे, हर अंग से खेल रहे थे, लग रहा था जैसे दुनिया में हम बस यही काम करने के लिए आये हैं।
कितना असीम सुख मिल रहा था, बयाँ करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
दोनों ही एक साथ स्खलित हुए, सांसों का तूफान थम नहीं पाया था कि हेमा का फोन बज उठा। फोन उठाकर हेमा ने जैसे ही देखा तो हाथ से फोन ही छुट गया। घबरा गई, बोली- उनका फोन है, अब क्या करूँ?
जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।
मैंने कहा- इतना घबराने की जरूरत नहीं है, फोन किया है उन्होंने, तुम्हें कोई मेरे साथ देख नहीं लिया।
तब तक फोन बंद हो गया।
मैंने उसे समझाया कहा- अभी फिर से आएगा!
वो थोड़ी संतुलित हुई, तभी घंटी बजी, उसने फोन उठाया, दूसरी तरफ से आवाज आई- जानू, फोन उठाने में इतनी देर क्यूँ?
हेमा- जान, नींद लग गई थी, थोड़ी सी जो पी ली है, आज तुम्हारी बहुत याद सता रही थी इसलिए दो पेग लगा लिए, तुम्हारी बोतल में से!पति- जानू, पीकर मुझे न भुला देना, मैं भी तुम्हारी याद में सो नहीं पाता हूँ। खैर जल्दी ही आकर तुम्हें घुमाने के लिए कहीं बाहर ले चलूँगा। अपना ख्याल रखना। सुबह फिर फोन करूँगा, सो जाओ!
और फोन कट गया…
हेमा की कंपकंपाहट अभी भी जारी थी। मैंने उसे गले से लगा लिया और लिपट कर सो गया। रात को एक बार फिर सेक्स किया, फिर दोनों नीद में चले गए।
आठ बजे नींद खुली, हेमा नहाकर नाश्ता बना रही थी। मैंने उठकर मुँह-हाथ धोए, चाय पीकर फ्रेश होने चला गया। फिर नाश्ता किया।
मैंने कहा- हेमा, अब मैं निकलूँगा पर जाने से पहले एक बार फिर..!
‘नहीं!’ हेमा का स्वर बदला सा था, बोली- रोनी, रात में रमा और अपने पति से बात करने के बाद मुझे लगा कि कहीं मैं गलत तो जरुर हूँ। इसलिए रात के साथ बात को भी भुलाने में हमारी भलाई है, हम अच्छे दोस्त बनकर जरूर रह सकते हैं।
मैंने कहा- जरूर! तुम से मुझे जो भी मिला यह तो मेरी खुशकिस्मती है। फिर वहाँ से चला आया।
शायद हेमा ने सही फैसला किया है।
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