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मैंने पूछा- अबकी बार तो आपकी सारी इच्छाएँ पूरी हो गई ना? संतुष्ट हो ना !
वे बोले- मैं बहुत संतुष्ट हूँ ! मेरी ज़िन्दगी की ख्वाहिश पूरी हो गई, तुझे बहुत बहुत धन्यवाद ! मैं तेरा गुलाम हो गया जान ! जो तू मांगे वो हाज़िर है ! मैं हंस कर रह गई और कहा- मुझे कुछ नहीं चाहिए ! उन्होंने कहा- अब मेरे मोबाईल के सिग्नल जा रहे हैं, बाद में बात करूँगा ! मैंने कहा- ठीक है ! अब मैं भी नहाने जाऊँगी। ओ के ! फिर उन्होंने फोन काट दिया।
अगले 5-6 दिनों तक वे मुझसे दिन में कई बार बात करते रहे, मैं एक ही बात कहती रही- उन रातों को भूल जाओ, अपन दोनों ने जो कुछ किया, गलत किया !
वे बार बार एक ही बात कहते- यह हमने नहीं किया, इश्वर ने ही कराया, हम तो उसके हाथ की कठपुतलियाँ हैं, अपने हाथ में होता तो इतने साल क्यों लगते? उनकी बात सही लगती पर फिर मैं कहती- अब नहीं करेंगे ! जो हो गया, सो हो गया !
मैं घर जाते ही दीदी से मिली, वो मुझे देख कर बहुत खुश हुई। घर पर बहुत मेहमान आये हुए थे, पूरा घर भरा था !
मैं भी खाना खाकर छत पर चली गई, जागरण का कार्यक्रम वहीं था। जीजाजी सामने भजन गाने वालों के पास बैठे हुए थे, मैं भी उनके परिवार की औरतों में बैठी हुई थी।
छत पर बड़ा हाल और कमरा बना हुआ था, सामने काफी खुली छत थी जहाँ भजन का कार्यक्रम हो रहा था। जीजाजी की नज़रें सिर्फ मुझ पर ही जमी थी !
रात को एक बजे कार्यक्रम ख़त्म हुआ और सब लोग सोने चले गए ! काफी औरतें हाल में और पुरुष बाहर छट पर सो गए।
मुझे, दीदी को और बच्चों को जीजाजी ने नीचे कमरे में सुला दिया और खुद बाहर बरामदे में सो गए। मुझे डर था कि जीजाजी कुछ गड़बड़ न कर दें इसलिए मैं कमरे में नीचे सो रही थी। वहाँ पास में मैंने अपने बेटे और जीजाजी के बेटे-बेटी को सुला दिया। दीदी कमरे में तख्त पर सो गई। मैंने नीचे इतने बच्चों को सुला दिया कि किसी और के आने की गुंजाइश ही ना रहे !
वैसे सब थके हुए थे और कोई हलचल नहीं हुई। सुबह हवन और दोपहर को बिरादरी का खाना था जिससे 5 बजे तक निपट गए !
अब सब मेहमान अपने घरों को चल दिए थे, सिर्फ मैं रही थी ! मेरे मम्मी-पापा, भाई भी वापिस अपने गाँव चले गए, मुझे चलने को कहा तो जीजाजी ने कहा- यह कल आ जाएगी अभी इसको साड़ी दिलानी है।
शाम को उन्होंने कहा- चल, यहाँ मेरे रिश्तेदार रहते हैं, वहाँ घुमा कर लाता हूँ ! दीदी ने कहा- हाँ, इसे घुमा कर ले आओ !
मैं जीजाजी की बाइक पर बैठ गई, वो मुझे अपने रिश्तेदारों के घर घुमाने लगे। जब भी हम किसी एक घर से दूसरे घर जाते वो बार-बार मुझसे कहते- आज रात को मेरे पास आ जाना ! मैं बार बार मना कर देती- नहीं ! यह गलत है, जो हो गया उसे भूल जाओ ! जीजाजी बार-बार मेरी मिन्नतें करते- ऐसा मत करो ! मैं तुम्हारे बगैर मर जाऊँगा ! और बार बार ब्रेक लगते ताकि मैं उनकी पीठ से टकराऊँ !
शाम गहरी हो गई थी, आखिर में वो अपने भांजे के घर ले जा रहे थे जो थोड़ा शहर से बाहर था। फिर उन्होंने कहा- मुझे कुछ नहीं करना ! बस आइसक्रीम खिला देना ! मुझे पता था वो चूत चटवाने का कह रह थे। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं। मुझे फिर से वो बात याद कर नशा आना शुरू हो गया था ! पर मैंने कहा- अभी सर्दी है, जुकाम हो जायेगा ! तो वो बोले- वो गरम आइसक्रीम है ! अब तू नहीं मानी तो देख ले तुझे यहीं से उठा ले जाऊँगा !
मैंने सोचा कि अब इतना तरसाना ठीक नहीं है, मैं उनकी पीठ से चिपकती हुई बोली- चलो ठीक है ! पर सिर्फ आइसक्रीम ही खिलाऊँगी ! वे खुश हो गए !
भांजे के घर गए, वहाँ एक कमरे में उनके भांजे का छोटा बच्चा सो रहा था, भांजे की पत्नी रसोई में थी। उस कमरे में घुसते ही वो पलंग पर बैठ गए और मुझे अपनी जांघ पर बिठा कर चूम लिया। मेरी साड़ी पेटीकोट समेत ऊँची कर चड्डी के ऊपर से ही चूत को चूम लिया।
कमरे में अँधेरा था तो सब उन्होंने कुछ सेकण्ड में ही कर लिया। मैं कमरे से बाहर निकल गई, उनके भांजे की बहू से मिली और हम फिर अपने घर आ गए ! खाना खाया और जीजाजी ने इशारा किया कि मैं ऊपर हाल में सोता हूँ ! और हाल एक तरफ पलंग पर मेरे बेटे और अपने बेटे को कहा- सो जाओ ! और खुद हाल में चारपाई पर सो गए !
बाहर की ओर उनके एक और कमरा बना था, उसकी कुण्डी खुली रखी थी ताकि उसकी जरुरत पड़े तो रात को कुण्डी नहीं खोलनी पड़े ! पर जीजाजी किस्मत के बहुत तेज थे, इस बात की नौबत ही नहीं आई ! जीजाजी का बेटा थोड़ी देर में ही नीचे चला गया कि मैं ऊपर नहीं सोऊँगा मैं तो अपनी मम्मी के पास ही सोऊँगा।
तो दीदी ने कहा- तू अपने बेटे के पास जाकर हाल में सो जा ! तेरे जीजाजी भी वहीं चारपाई पर सो रहे हैं, तुम माँ-बेटा पलंग पर सो जाना !
मैं चुपचाप आकर हाल में सो गई, मुझे हाल में सोता देख कर जीजाजी की तो बांछें खिल गई !
उस हाल के साथ ही एक कमरा और बना हुआ था, उसका एक दरवाज़ा तो हाल में था दूसरा नीचे सीढ़ियों की तरफ था, उस कमरे में मोटा गद्दा बिछा हुआ था ! मैं चुपचाप पलंग पर अपने बेटे के पास सो गई और दस मिनट में मुझे नींद भी आ गई।
करीब आधे-पौन घंटे बाद मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरा सर सहला रहा है ! मैं जगी तो देखा कि जीजाजी खड़े खड़े मेरा सर सहला रहे थे। मुझे नींद आ रही थी, मैंने उनको कहा- चुपचाप जाकर सो जाओ !
वो मुझे हाथ जोड़ने लगे, मैंने ध्यान नहीं दिया तो वो मेरा हाथ पकड़े-पकड़े ही नीचे जमीन पर बैठ गए घुटनों के बल और नीची आवाज़ में मिन्नतें करने लगे कि शाम को तो वादा किया था और अब मना कर रही हो !
मैं उठ कर एक तरफ सरक गई। पलंग काफी बड़ा था, मैंने कहा- चलो आ जाओ, यहीं सो जाओ ! पर वे बोले- यहाँ नहीं, अभी कहीं तुम्हारा बेटा जाग गया तो वो क्या सोचेगा? मेरी मम्मी के पास मौसाजी क्या कर रहे हैं? मैं फिर उनके साथ खड़ी हुई, वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे हाल से जुड़े कमरे की तरफ ले जाने लगे !
कमरे में और हाल में रोशनी बंद थी, जीजाजी के हाथ में मोबाईल था, उसकी रोशनी में वो चल रहे थे। कमरे में जाते ही उन्होंने मुझे उस गद्दे पर लिटा दिया, जो दरवाज़ा नीचे सीढ़ियों की तरफ जाता था, उसकी धीरे से कुण्डी लगाई और हाल की तरफ जिसमें मेरा बेटा सो रहा था, ढुका दिया !
हाथ से मोबाईल को पास के आले में रखा, साथ में कंडोम भी था, मुझे पता चल गया कि चुदना तो है ही ! मैं मानसिक रूप से तैयार होने लगी। मैंने मैक्सी और पेटीकोट पहना था उसको मैंने कमर पर कर अपनी चड्डी उतार कर सिरहाने रख ली ताकि अँधेरे में ढूंढ़ कर पहनने आसानी रहे !
जीजाजी ने पंखा पूरी गति में कर दिया और टटोलते हुए मेरे पास आये।तब तक मैंने उनका आधा काम कर दिया था, चड्डी उतर कर दोनों घुटने खड़े कर दिए थे, टटोलते ही सीधी नंगी चूत मिली उन्हें और वे उस पर टूट पड़े, उसे बुरी तरह से चाटने लगे।
मुझे भी बड़ा आनन्द आ रहा था, मैंने कहा- जी भर कर आइसक्रीम खा लो ! फिर बार बार मत कहना ! आज इसको पूरी खा जाओ।
वो बोले- यार, तेरी आइसक्रीम इतनी शानदार है कि इससे जी भरता ही नहीं है, चाहे कितनी बार ही खाओ !
और वो मेरी चूत बुरी तरह से चाट रहे थे, काट रहे थे, अपनी जीभ को गोल कर अन्दर घुसा रहे थे। मुझे बड़ा आनंद आ रहा था पर मुझे खतरे का अंदेशा भी था कि कहीं दीदी न आ जाएँ या मेरा बेटा न जाग जाये !
दस मिनट हो गए उनको चूत चटाई करते हुए, मैं एक बार परमानन्द ले भी चुकी थी, मैंने उन्हें रोका और कहा- अब आइसक्रीम बहुत हुई ! जो करना है फटाफट कर लो !
वो जैसे यही सुनना चाहते थे, अपनी लुंगी हटाई, चड्डी को एक पैर में किया, मेरी टांगे तो ऊँची थी ही, अपने लण्ड पर थोड़ा थूक लगाया और मेरी चूत में एक झटके से पेल दिया, पर पूरा नहीं घुस सका, थोड़ा पीछे खींचा और साँस रोक कर जोर का झटका मारा और जड़ तक अन्दर ठेल दिया।
मेरे मुँह से अटकते अटकते निकला- धी…रे… आ…ह.. दू…खे..!
और उन्होंने लाड से मेरे गाल थपथपा दिए और कहा- दुखता है? अब नहीं दुखाऊँगा ! मेरी जान के दुख रहा है ! इस साले लण्ड ने मारी है, अभी रुक, इसको मैं मारूँगा !
मुझे हंसी आई, मैंने आनन्द में आकर चूत में संकुचन किया और उनकी गति धीमी पड़ गई, वो बोले- क्या करती हो? मेरे लण्ड को तोड़ोगी क्या? साली की चूत है या गाण्ड की दरार ! इतनी कसी !
मुझे ख़ुशी हुई, मैंने कहा- मुझे चोदना है तो गाण्ड और लण्ड में जोर रखना पड़ेगा ! वर्ना अंदर-बाहर नहीं कर सकते। यहाँ कोई नाथी का बाड़ा नहीं है, यह मेरी छोटी सी प्यारी सी चूत है ! अब जीजाजी मुझे जोर जोर से चोद रहे थे !
अचानक मुझे कुछ याद आया कि ये मेरे कमरे पर मुझे घोड़ी बनने का कह रहे थे, मैंने सोचा आज इनकी वो इच्छा तो पूरी कर दूँ ! मैंने कहा- थोड़ा रुको और इसे बाहर निकालो ! वो अपना लण्ड निकालते हुए बोले- क्या हुआ? मैंने कहा- कुछ नहीं !
कह कर मैंने उस गद्दे पर उनकी तरफ पीठ कर दोनों घुटने मोड़ कर अपना सर गद्दे पर टिका दिया और अपने चूतड़ थोड़े ऊँचे कर दिए। बस यह ध्यान रखा कि कहीं ये अपना लण्ड मेरी कुंवारी गाण्ड में न फंसा दें जिसमें एक अंगुली घुसने की भी गुंजाइश नहीं है।
पर शायद उनका ऐसा कोई इरादा नहीं था इसलिए उन्होंने थोड़ा मेरे कूल्हों को ऊपर किया, मैं काफी ऊपर हो गई तो उन्होंने अपने हिसाब से मुझे थोड़ा नीचे किया और आधा लण्ड पीछे से मेरी चूत में फंसा दिया। वो अपनी उखड़ी सांसें सही कर रहे थे, उम्र उन पर अपना प्रभाव डाल रही थी !
पर मैं उर्जा से भरपूर थी और मुझे पता था ये थक भले ही जाओ पर रुकने का स्टेमिना तो बहुत है इनमें और मुझे उनको जल्दी झाड़ना था क्यूंकि किसी के आने का डर सता रहा था मुझे !
मैं खुद थोड़ा पीछे हुई और मैंने अपने आप को आगे-पीछे करना शुरू किया और वो जितनी देर सीधे रहे, उसमें मैंने 7-8 धक्के लगा दिए ! मेरे धक्कों से उन्हें भी बहुत जोश आया और बोले- साली चुदाने को बहुत मर रही है तो ले !
ऐसा कह कर वे मेरी पतली कमर को पकड़ कर तूफानी गति से धक्के मारने लगे।उनकी कमर पीछे जाती तो वो हाथों से मेरी कमर को आगे की और धकेलते और जब धक्का मारते तो कमर को अपनी और खींचते इस प्रकार जितना हो सके अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसा रहे थे।
5-7 मिनट के बाद मैं घोड़ी बने बने थक गई थी, मैंने कहा- अब मेरी चूत सूख चुकी है, इसमें जलन हो रही है, जल्दी से अपना निकाल लो ! तो उन्होंने कहा- चलो सीधी लेट जाओ ! मैं सीधी सो गई। उन्होंने सीधा अपना मुँह मेरी चूत पर लगाया और ढेर सारा थूक मेरी चूत में छोड़ दिया। मैं चिहुंक गई- क्या करते हो? गंदे ! अब कोई मुँह लगाता है क्या? वो हंस कर बोले- पहले जो लगाया था? मैंने कहा- अब तो आपने इसकी चटनी बना दी, पहले तो तरोताज़ा थी ना ! वो बोले- इसमें क्या है, मैंने अपने लण्ड की खुशबू डाली है इसमें ! और फिर अपना लण्ड मेरी चूत में डाला, मेरी टांगे उठाई, उन्हें अपने कंधे पर रखी और गपागप चोदने लगे।
मैं बिल्कुल दोहरी हो गई थी, मेरी चूत जितनी उनके लण्ड के पास हो सकती थी, हो गई थी और वो हचक हचक कर मुझे चोद रहे थे। मैं देवी-देवताओं को मना रही थी कि इनका पानी निकल जाए !
पूरा कमरा फचक फचक की आवाजों से गूंज रहा था और मेरे तीसरी या चौथी बार पानी आ गया था। अब वे मुझे बोझ लग रहे थे, मैं कुछ रूआंसी होकर कह रही थी- आप अपना डॉक्टर के पास जाकर इलाज करवाओ, आपको कोई बीमारी है जो इतनी देर से छूटता है ! या आप पर बुढ़ापा आ गया है, अन्दर पानी ही नहीं है तो छूटेगा क्या? वो मेरी किसी बात पर ध्यान ना देकर दांत भींच कर सुपरफास्ट स्पीड से धक्के लगा रहे थे अपने पंजे मेरे कूल्हों पर गड़ा कर ! फिर अचानक उनके शरीर ने एक झटका खाया, मुझे पता चला कि अब मेरी मुक्ति हुई ! उनके मुँह से लार निकल कर मेरे गाल पर गिरी और उन्होंने मेरे गाल चूम लिए। 7-8 धक्के धीरे धीरे और लगाए और…
और मैं कहना भूल गई कि जब घोड़ी के बाद उन्होंने मुझे चोदना शुरू किया, तब कंडोम लगा लिया था ! जीजाजी ने अपना कंडोम निकाला, उसके मुँह पर गांठ लगाई और मुझे बताया- देख कितना पाना आया है, तुम कह रही हो कि है नहीं !
मैंने कहा- इस गन्दी चीज़ को मुझसे दूर रखो और मुझे जाकर सोने दो ! उन्होंने भी गद्दे की सलवटें सही की, दरवाज़े की कुण्डी खोली और कंडोम को कहीं छुपाया और चुपचाप सो गए ! यह थी मेरे जीजाजी के घर में मेरी पहली चुदाई ! कहानी तो अब चलती ही रहेगी ! [email protected]
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