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(एक रहस्य प्रेम कथा)
….. प्रेम गुरु की कलम से
पिछले भाग में आपने पढ़ा :
मिक्की मेरी जान, मेरी आत्मा, मेरी प्रेयसी, मेरी प्रियतमा मैं तुमसे प्रेम करता था, आज भी करता हूँ और करता रहूँगा”। मेरी आँखों से आंसू निकलते जा रहे थे। उसने अपने कांपते हाथों की अंगुलियाँ मेरे होंठो पर रख दी। मैं उन्हें हाथ में लेकर चूमने लगा। वो मेरी ओर बढ़ी और फिर उसने अपने कांपते और जलते होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
अब आगे :
जैसे कोई गुलाब की पंखुडिया हों रस से लबालब भरी हुई। मैं तो मस्त हुआ उन्हें चूसने लगा। उसने मुझे बाहों में भर लिया। वो तो मुझे ऐसे चूमती जा रही थी जैसे कितने ही जन्मों की प्यासी हो, “ओह मेरे प्रेमदेव, मेरे शहजादे, मेरे मन मयूर तुम कहाँ थे इतने दिन !” अब मेरे हैरान होने की बारी थी। ये शब्द तो … मिक्की या निशा के थे। हे भगवान् ये क्या मामला है ? वोही आवाज वोही हावभाव वो ही शक्ल-ओ-सूरत। मैं किसी आत्मा, पुनर्जनम या भूत प्रेत में विस्वास नहीं करता पर अब तो मुझे भी थोड़ा डर सा लगाने लगा था।
“ओह प्रेम अब कुछ मत सोचो बस मुझे प्यार करो।” उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ सा रखा था। वो मुझे चूमते जा रही थी और कभी मेरी पीठ सहलाती कभी सिर के बालों को जोर से पकड़ लेती। मैं अपने खयालों से जैसे जागा। दिल ने कहा यार छोड़ो फजूल के इन चक्करों को इतनी हसींन लौंडिया तुम्हारी बाहों में है चुदवाने के लिए तैयार है क्यों बेकार की बातों में वक़्त जाया कर रहे हो। ठोक दो साली को बड़ी मुश्किल से मिली है। पता नहीं बाद में कभी मिले ना मिले। पप्पू तो जैसे खूनी शेर ही बना हुआ था।
मैंने भी कस कर उसे बाहों में भर लिया और अपनी जीभ उसके मुंह में डाल दी। वो तो उसे कुल्फी की तरह चूसने लगी। मैंने एक हाथ से उसके उरोज मसलने शुरू कर दिए। मोटे मोटे जैसे कंधारी अनार हों। एक दो बार उसके नितम्बों पर हाथ फेरा। चूत की दरार का पता नहीं चल रहा था। वो भी जोश में आकर आह … ओह … करने लगी थी। उसने भी मेरे लंड को पकड़ लिया और ऊपर से ही मसलने लगी। कोई 10 मिनट तो जरूर हमारी चूसा चुसाई चली ही होगी। फिर मैंने उस से कपड़े उतारने को कहा तो वो बोली “मुझे शर्म आती है तुम खुद ही उतार दो ना ?” वो घुटनों के बल खड़ी हो गई और उसने अपने हाथ ऊपर उठा दिए।
पहले मैंने उसका टॉप उतरा। और फिर पाजामा उफ़ … वही डोरी वाली काली ब्रा और पेंटी जो मधु की फेवरेट थी। 2 इंच पट्टी वाली। पता नहीं आजकल भरतपुर में इन ब्रा और पेंटीज का फैशन ही हो गया है जैसे। टॉप उतारते हुए मैंने गौर किया की उसकी कांख में एक भी बाल नहीं है। मैं तो रोमांच से ही भर गया। मेरा पप्पू तो यह सोच कर ही मस्त हुआ जा रहा था कि अगर कांख में बाल नहीं है तो चूत का क्या हाल होगा।
ये तो मुझे बाद में उसने बताया था कि उसने लेजर ट्रीटमेंट करवा लिया था। और उसकी चूत पर भी कोई बाल नहीं है। डॉक्टर साहब को चूत और कांख पर बाल बिलकुल पसंद नहीं है। साला ये डॉक्टर भी शौकीन तो है पर है चूतिया, इतनी मस्त क़यामत को मेरे लिए छोड़ गया। पजामा उतारते हुए मैंने देखा था उसकी जांघें तो मधु और सुधा की तरह मोटी मोटी थी। दायीं जांघ पर वो ही काला तिल। हे भगवान् मैं तो पागल ही हो जाऊँगा। एक बार अगर गांड मारने को मिल जाए तो मैं सारी कायनात ही न्योछावर कर दूँ। क्या मस्त मोटे मोटे नितम्ब है साली के। ऐसे नितम्ब तो अनारकली के भी नहीं थे। हे भगवान् कहीं साले डॉक्टर ने गांड तो नहीं मार ली होगी इस कमसिन कली की। फिर मैंने अपने आप को तसल्ली दी कि जो साला चूत ही ठीक से नहीं मार पाया है वो भला गांड क्या मारेगा। और अगर एक दो बार गांड मार भी ली होगी तो भी कोई बात नहीं कुंवारी जैसी ही होगी। मैं तो यही सोच कर पागल हो रहा था कि उसकी गांड का छेद। कितना बड़ा होगा और उसकी सिलवटें और रंगत कैसी होंगी।
अब मैंने भी अपना कुरता और पाजामा उतार दिया। चड्डी और बनियान तो मैंने पहनी ही नहीं थी। मेरा 7 इंच का लंड तो 120 डिग्री पर खड़ा उसे सलाम बजा रहा था।
मैंने उसकी ब्रा की डोरी खोल दी। मोटे मोटे दो हापुस आम जैसे अमृत कलश मेरे सामने थे। बिलकुल गोरे गुलाबी पतली पतली नीली नशे। निप्पलस मूंग के दाने जितने। डॉक्टर तो वैसे ही चूतिया है किसी और ने भी नहीं चूसे होंगे। एरोला कोई 1.5 इंच का। कैरम की गोटियों वाली रानी की तरह बिलकुल लाल सुर्ख।
हे भगवान् अगर पुनर्जन्म जैसी कोई बात अगर है तो जरूर ये मिक्की ही है। मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ अब तक मैंने जितने भी उरोज देखे है इतने सुडौल तो किसी के भी नहीं थे। जैसे शहद से भरी हुई दो कुप्पियाँ हों। पतली कमर कोई 23-24 इंच की। गहरी नाभि और उसके नीचे का भाग कुछ उभरा हुआ। अब मैंने उसकी पेंटी को धीरे धीरे उतरना चालू कर दिया। वो तो बस आँखें बंद किये लेती हुई सीत्कार किये जा रही थी। धीरे धीरे मैंने उसकी पेंटी उतार दी। चूत पर कोई बाल नहीं। रोएँ भी नहीं। तिकोने आकार की फूली हुई पाँव रोटी हो जैसे। वाह … क्या मस्त चीज है। छोटी सी सेब की तरह लाल-गुलाबी रंग की चूत। दो मोटी मोटी संतरे जैसी फांके। बीच की दरार (चीरा) कोई 3 इंच लम्बी – गहरे बादामी रंग की जैसे किसी नई दुल्हन ने अपनी मांग भर रखी हो। मुझे तो लगा जैसे किसी 13-14 साल की लड़की की पिक्की ही है जैसे। ओह कहीं ये मिक्की ही तो नहीं ? पता नहीं साले चूतिये डॉक्टर ने इसके साथ सुहारात भी ठीक से मनाई है या नहीं।
मैंने उसका एक रस कूप (उरोज) अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगा। उसने एक जोर की किलकारी मारी और मेरे लंड को अप्पने हाथ में लेकर मसलने लगी। लुंड ने 2-3 ठुमके लगाए और प्री कम के 3-4 तुपके छोड़ दिए। मैं कभी एक उरोज चूसता कभी दूसरा। एक हाथ से कभी उसके नितम्ब सहलाता कभी बुर (ये चूत तो हो ही नहीं सकती) पर मसलता। वो तो बस मस्त हुई किलकारियाँ मारती जा रही थी। उसने मेरे सिर के बाल अपने हाथों में पकड़ लिए। फिर मैंने उसके होंठ चूमने चालू कर दिए और उसके ऊपर आ गया। पप्पू तो अँधा धुंद चूत (सॉरी बुर) पर धक्के लगा रहा था पर उसे इतनी जल्दी रास्ता कहाँ मिलने वाला था।
मैंने उसके कपोलों पर, आँखों की पलकों पर, गले पर, छाती पर, नवल पर चुम्बनो की झड़ी लगा दी। वो तो मस्त हुई आह। उह्ह … करती जा रही थी। उसकी आँखें बंद थी। मैंने उसकी कांख सूंघी। आह … इस मस्त तीखी खुशबू को तो मैं मरते दम तक नहीं भूल सकता। ये तो वोही मिक्की वाली खुशबू थी। अब चूत रानी की बारी थी। अब मैंने उस कातिल तिल वाली जगह पर चुम्बन लिया तो उसने इतनी जोर से किलकारी मारी कि मुझे लगा वो झड़ गई है। वो तो बड़ी ही कच्ची निकली मैंने तो अभी उसकी चूत को तो चूमा ही नहीं था। अब मैंने उसकी चूत की पंखुडियों को खोला। अन्दर से एक दम गुलाबी रस से भरी। लाल नसें बिलकुल सिर के बालों जितनी पतली। अनारदाना तो गोल लाल मोती जैसा।
मैंने जीभ उसके अनारदाने पर जैसे ही रखी उसने मेरा सिर पकड़ लिया और अपनी बुर की और दबा दिया। मैं भी तो यही चाहता था। मैंने उसकी बुर को पहले चाटा। पसीने, पेशाब और नारियल पानी जैसी जानी पहचानी खुशबू से मेरा स्नायु तंत्र (नाक की मांस पेशियाँ) भर उठा। मैंने उसकी बुर को पूरा अपने मुंह में भर लिया और जोर से चूसने लगा जैसे कोई टपका आम चूसता है।
वो तो उत्तेजना में कांपने ही लगी। उसने अपने पैर ऊपर उठा लिए और मेरी गर्दन के चारों ओर लपेट लिए। उसने एक किलकारी और मारी और वो एक बार फिर झड़ गई। उसकी बुर ने कामरज की 2-3 चम्मच मुझे अर्पित कर दी। उसके मदन जल से मेरा मुंह भर गया। मैं एक हाथ से उसके उरोज मसलता जा रहा था और एक हाथ उसके ऊपर उठे नितम्बों पर फेरता जा रहा था। अचानक मेरी एक अंगुली उसकी गांड के छेद से टकराई। दरदरी (कंघी के दांतों जैसी) सिलवटें महसूस करके मैं तो रोमांच से भर गया। ये सोच कर तो मेरा पप्पू निहाल ही हो गया कि ये गांड तो बिल्कुल कोरी झकास है। मैंने जैसे ही अपनी अंगुली उसकी गांड के छेद पर फिराई वो एक बार फिर झड़ गई। मैं तो चटखारे लेकर उसके काम रज़ को पीता जा रहा था।
कुछ देर बाद वो निढाल सी हो गई। अब मैंने उसकी बुर चूसना बंद कर दिया। और थोड़ा सा ऊपर आया और उसके होंठों को चूम लिया। वो अचनाक खड़ी हुई और झुक कर मेरे पप्पू से खेलने लगी। मेरे शेर ने एक झटका लगाया तो उसके हाथों से फिसल गया। अब तो उसने उसे ऐसे दबोचा जैसे बिल्ली किसी कबूतर या मुर्गे की गर्दन पकड़ लेती है। मैं अधलेटा सा था। उसने अपने दोनों पैर मोड़कर मेरे सिर के दोनों ओर कर दिए। अब मैं नीचे चित लेटा था और वो लगभग मेरे ऊपर 69 की पोजिसन में हो गई। उसने पहले मेरे सुपाडे को जीभ से चाटा और फिर एक चटखारा सा लिया और फिर गप्प से आधा लंड अपने मुंह में ले लिया।
मैंने भी उसकी गांड के सुनहरे छेद पर अपनी जीभ लगा दी। उसकी खुरदरी सिलवटें तो कमाल की थी। मैंने ऊपर से नीचे तक 3-4 बार अपनी जीभ फेरी। उसकी गांड का छेद अब कभी खुल रहा था कभी बंद हो रहा था। जब गांड का छेद खुलता तो वो अन्दर से गुलाबी नजर आता। मेरा अनुमान है इस गांड की चुदाई तो क्या लगता है साली ने कभी अंगुली भी नहीं डाली होगी। वो मस्ती में आकर मेरा पूरा लंड अपने मुंह में लेने की कोशिश करने लगी तो उसे खांसी आ गई। मैंने झट से उसकी चूत को अपने मुंह में भर लिया और उसकी जाँघों को कस कर पकड़ लिया। मुझे डर था कहीं खांसी के चक्कर में मेरा लंड चूसना न बंद कर दे। एक दो मिनट के बाद फिर उसने पहले मेरे अण्डों पर जीभ फिराई उन्हें चूमा और फिर मेरा लंड चूसना चालु कर दिया अबकी बार उसने कोई हड़बड़ी नहीं की प्यार से धीरे धीरे कभी जीभ फिराती कभी मुंह में लेती कभी थोड़ा सा दांतों से दबाती। पप्पू महाराज तो अपना आप ही खोने को तैयार हो गए। मैंने मिक्की और निशा के मुंह में अपना वीर्य नहीं छोड़ा था। मैं चाहता था कि उसे चोदने से पहले एक बार उसे अपना अमृत जरूर पिलाना है। तभी तो मेरी और मिक्की की तड़फती आत्मा को संतोष मिलेगा।
अब मैंने एक अंगुली धीरे से उसकी बुर में डालनी शुरू कर दी। छेद तो कमाल का टाइट था। मुझे तो लगा साले डॉक्टर ने सुहागरात ही नहीं मनाई है ? इतनी टाइट बुर तो कुंवारी अनचुदी लड़कियों की होती है। मैं तो रोमांच से भर गया। मुझे लगने लगा था कि मेरा पप्पू हथियार डालने वाला है तो मैंने उससे कहा- जानू मैं तो जाने वाला हूँ।
उसने मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और बोली “चिंता मत करो इस अमृत की एक भी बूँद इधर उधर नहीं जा सकती।”
और उसके साथ ही उसने फिर मेरा लंड गप्प से अन्दर ले लिया जैसे एक बिल्ली चूहे को गप्प से अन्दर ले लेती है। और उसे फिर चूसने लगी। मैंने भी उसकी बुर को पूरा मुंह में भर लिया और चूसने लगा। और फिर एक … दो … तीन। चार ना जाने कितनी पिचकारियाँ मेरे पप्पू ने छोड़ी। इस बेचारे का क्या दोष पिछले 8-10 दिन का भरा बैठा था (मधु के जयपुर जाने वाली रात को सिर्फ एक बार उसकी गांड मारी थी। उसकी चुत को तो लाल बाई ने पकड़ रखा था) वो गटागट मेरा सारा कामरस पी गई और फिर जीभ चाटती हुई एक ओर लुढ़क गई।
अब वो पेट के बल लेटी थी। उसने अपना मुंह तकिये पर लगा रखा था। उसके नितम्ब तो कमाल के थे। मोटे मोटे दो खरबूजे हों जैसे। रंग एकदम गुलाबी। इतने नाजुक कि अगर गलती से नाखून भी लग गया तो खून निकल आएगा। दोनों गोलाइयों के नीचे चाँद (आर्क) बना था। संगमरमर जैसी चिकनी कसी हुई जांघें। मैंने धीरे धीरे उसके नितम्बों और जांघों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। वो सीत्कार करने लगी। अचानक वो उठी और मेरी गोद में आकर बैठ गई और अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डाल दी और मेरी नाक पर एक चुम्बन ले लिया और हंसने लगी। “एक बात बोलूँ?”
“हूँ ” मैंने भी उसके होंठों पर एक चुम्बन लेते हुए हामी भरी।
“आप का उदास चेहरा बिलकुल अच्छा नहीं लगता। आप ऐसे ही खुश रहा करो !” और उसने एक बार मुझे फिर चूम लिया। मैं जानता हूँ मेरी जान अब तुम चुदवाने को तैयार हो पर मैं तो उसकी चूत नहीं पहले गांड मारना चाहता था। मुझे अभी थोड़ी सी एक्टिंग और करनी थी।
मैंने कहा, “मिक्की भी ऐसा ही बोलती थी !”
“ओह … अच्छा …? एक बात बताओ … क्या आपने मिक्की के साथ …?” वो बोलते बोलते रुक गई।
“नहीं हमारा प्रेम बिलकुल सच्चा था” मैं साफ़ झूठ बोल गया।
“ओह … क्या आपकी कोई फंतासी थी मिक्की के साथ ?”
“उन … हाँ …”
“क्या बताओ … ना … प्लीज”
“नहीं शायद तुम्हें अच्छा नहीं लगे …?”
“ओह। मेरे प्रेम दीवाने तुम्हारे लिए मैं सब कुछ करने कराने को तैयार हूँ आज की रात तुम हुक्म तो करो मेरे शहजादे !” उसने तड़ से एक चुम्बन मेरे होंठों पर ले लिया और कस कर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। मैं सोच रहा था कि कैसे कहूँ कि मैं तो सबसे पहले तुम्हारी गांड मारना चाहता हूँ। फिर मैंने कहा “क्या तुम्हारी भी कोई फंतासी है ?”
ईशशशस … वो इतना जोर से शरमाई कि मैं तो निहाल ही हो गया। “मेरी … ओह … पता नहीं तुम क्या समझोगे …?”
“प्लीज बताओ ना ?” मैंने पूछा
“मैं तो बस यही चाहती हूँ कि बस आज की रात मुझे प्यार ही करते रहो। ऊपर से नीचे से आगे से पीछे से हर जगह। कोई अंग मत छोडो। मैं तो जन्म जन्मान्तर की प्यासी हूँ तुम्हारे प्रेम के लिए मेरे प्रेम देव, मेरे प्रथम पुरुष !” वो मुझे चूमती जा रही थी।
हे भगवान् ये क्या लीला है तेरी। ये तो मिक्की की ही आवाज और भाषा है।
“ओह प्रेम अब मुझे और अपने आप को मत तड़फाओ जो मन की अधूरी इच्छा है पूरी कर लो” और उसके साथ ही वो अपने घुटनों और कोहनियों बे बल हो गई। जैसे उसने मेरे मन की बात जान ली हो। और मैं सब कुछ भूल कर उसके नितम्बों की ओर देखने लगा। दो पहाड़ियो के बीच एक मोटी सी खाई हो जैसे और गुलाबी रंग की छोटी सी गुफा जिसका द्वार बंद था। मैंने फिर अपनी जीभ उसपर लगा दी और उसे अपने थूक से गीला कर दिया।
“वैसलीन लगाना मत भूलना … मैंने अब तक किसी को …”
“ओह थैंक्यू मेरी मैना ! तुम चिंता मत करो।”
“ओह मुझे मिक्की बोलो ना ?”
मैंने उसकी गांड के छेद पर वैसलीन लगाईं और एक अंगुली का पोर अन्दर डाल दिया। छेद बहुत टाइट था। वो थोड़ा सा चिहुंकी “ओह गुदगुदी हो रही है … धीरे !”
मैंने उसकी कोई परवाह नहीं की और धीरे धीरे अपनी अंगुली अन्दर बाहर करने लगा। फिर थोड़ी सी क्रीम लेकर अन्दर तक लगा दी। इस बार उसने एक हलकी सी किलकारी मारी “ऊईई … माँ … ओह प्रेम जल्दी करो ना …!”
अब मैंने जल्दी से अपने लंड पर भी वैसलीन लगाईं और ……………
मेरा पप्पू जैसे छलाँग ही लगाने वाला था। ऐसी मस्त गांड देखकर तो वो काबू में कहाँ रहता है। मैंने धीरे से अपना सुपाड़ा उसकी गांड के खुलते बंद होते छेद पर टिका दिया। उसने एक जोर का सांस लिया और मुझे लगा कि उसने भी बाहर की ओर थोड़ा सा जोर लगाया है। मैंने उसकी कमर कस कर पकड़ ली और अपने पप्पू को आगे बढ़ाया। छेद बहुत टाइट था पर मेरा सुपाड़ा चूँकि आगे से थोड़ा पतला है धीरे धीरे एक इंच तक बिना दर्द के चला गया। अब मैंने दबाव लगाना शुरू कर दिया। ऐसी नाजुक गांड मारने में जोर का धक्का नहीं मारना चाहिए नहीं तो गांड फटने का डर रहता है।
जैसे ही उसकी गांड का छल्ला चौड़ा हुआ उसके मुंह से एक हल्की सी चीख निकल ही गई। “ओईई माँ आ अ …” पर उसने अपना मुंह जोर से बंद कर ऐसी अवस्था में कोई और होता तो एक धक्का जोर से लगाता और लंड महाराज जड़ तक अन्दर चले जाते पर मैं तो मिक्की से प्यार करता था और ये मोनिशा भी मेरे लिए इस मिक्की ही बनी थी। मैं उसे ज्यादा कष्ट कैसे दे सकता था मैं थोड़ी देर ऐसे ही रहा। 3 इंच तक लंड गांड में चला गया था।
मिक्की दर्द के मारे काँप रही थी पर दर्द को जैसे तैसे बर्दाश्त कर रही थी। कोई 2-3 मिनट के बाद वो कुछ नोर्मल हुई और अपना मुंह मेरी ओर मोड़ कर कहने लगी। “अब रुको मत मुझे तुम्हारी खुशी के लिए सारा दर्द मंजूर है मेरे प्रियतम !”
हे भगवान् ये तो मिक्की की ही आवाज है इसमें कोई संदेह नहीं। ये कैसे संभव है। कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा। मैंने अपना अंगूठा दांतों के बीच दबाया। मेरा अंगूठा थोड़ा सा छिल सा गया और दर्द की एक लहर सी दौड़ गई। अंगूठे से थोड़ा खून भी निकल आया। ये सपना तो नहीं हो सकता। पता नहीं क्या चक्कर है !
“ओह … प्रेम अब क्या सोच रहे हो क्यों इन खूबसूरत पलों को जाया (बर्बाद) कर रहे हो। ओह मैं कब की प्यासी हूँ प्लीज कुछ मत सोचो बस मुझे प्रेम करो मेरे प्रेम दीवाने !”
मैंने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए। क्या मस्त गांड थी। लंड बिना परेशानी के अन्दर बाहर होने लगा। इस तरह से तो मेरा लंड मधु की गांड में भी नहीं जाता। मेरा पप्पू तो मस्त ही हो गया। उसने एक बार जोर से अपनी गांड अन्दर की ओर सिकोड़ी। मैं तो उसे मना करता ही रह गया। उसके ऐसा करने से मुझे लगा कि मेरा लंड और सुपाड़ा अन्दर कुछ फूल सा गया है। अब तो इसे बिना पानी निकाले बाहर नहीं निकाला जा सकता है। अब मैंने धक्कों कि रफ्तार (गति) बढ़ानी शुरू कर दी। वो तो बस मस्त हुई आह। उईई … करने लगी। उसने अपना एक अंगूठा अपने अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगी। मैंने उसका एक उरोज अपने हाथ में ले लिया और उसे मसलने लगा। उसका गांड का छल्ला (ऐनल रिंग) अन्दर बाहर होता साफ़ नजर आ रहा था। बिलकुल लाल रंग का। जैसे कोई पतली सी गोल ट्यूब लाईट जल और बुझ रही हो जैसे ही मेरा लंड अन्दर जाता छल्ला भी अन्दर चला जाता और जैसे ही लंड बाहर निकालता छल्ला बाहर आ जाता। मैंने देखा उसकी गांड से थोड़ा खून भी निकल रहा है पर वो तो दर्द की परवाह किये बिना मेरे धक्कों के साथ ताल मिला रही थी। उसके मुंह से सीत्कार निकल रही थी।
मुझे नहीं पता कितनी देर मैं अपने लंड को उसकी गांड में अन्दर बाहर करता रहा। मुझे तो लगा जैसे वक़्त रुक सा गया है। एक उचटती सी निगाह मैंने दीवाल घडी पर डाली। घडी की सुई अब भी 11:59 ही दिखा रही थी। पता नहीं ये कोई चमत्कार है या घडी या समय बंद हो गया है। मेरी धड़कने तेज होती जा रही थी और मोनिशा तो मस्त हुई बस आह उईई … येस … हाँ … या … करती जा रही थी। मैंने उसके नितम्बों पर एक थपकी लगाईं तो उसने मेरी ओर मुड़कर देखा और फिर हंसने लगी। जैसे उसे मेरी मनसा समझ लग गई हो। मैं कुछ समझा नहीं। अगर ये मधु या अनारकली होती तो बात समझ आती पर ये तो … कमाल ही होता जा रहा था।
मेरे थपकी लगाने का मतलब होता है कि मैं झड़ने वाला हूँ। ऐसी अवस्था में मधु और अनारकली धीरे धीरे अपने पैर पीछे करके पेट के बल लेटना शुरू कर देती है और मैं उनके ऊपर लेट सा जाता हूँ और फिर धीरे धीरे धक्के लगा कर अपना वीर्य उनकी गांड में छोड़ता हूँ। पानी निकलने के बाद भी इसी अवस्था में कोई 10 मिनट तक हम लेटे रहते हैं।
वो धीरे धीरे नीचे होने लगी और अपनी जांघें चोड़ी करके पेट के बल लेट गई। मेरा लंड अन्दर फूल सा गया था इसलिए बाहर तो निकल ही नहीं सकता था। मैं भी उसके ऊपर ही पसर गया। अब मैंने एक हाथ में उसके एक उरोज को पकडा और दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली उसकी चूत में घुसेड़ दी। और उसके कान की लोब को मुंह में लेकर चूसने लगा। “ओह …उईई … मा …” इसके साथ ही उसने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठाये मैंने एक धक्का दिया और उसके साथ ही मेरे लंड ने पिचकारियाँ छोड़नी शुरू कर दी। मैंने उसे जोर से अपनी बाहों में जकड़ लिया और उस के ऊपर ही लेट गया। पता नहीं कितनी देर ……
धीरे धीरे मेरा लंड सिकुड़ने लगा और बाहर फिसलने लगा। एक पुच की आवाज के साथ पप्पू (लंड) हँसता हुआ बाहर आ गया। हँसे भी क्यों नहीं आज पप्पू पास जो हो गया था। वो भी उठ खड़ी हुई। उसने अपनी गांड के छेद पर हाथ लगा कर देखा। उसका हाथ मेरे वीर्य से भर गया। उसने उछल कर एक चुम्बन मेरे लंड पर लिया और बोली “बदमाश कहीं का ! अब तो खुश है ना ? एक नंबर का बदमाश है मिट्ठू कहीं का ?”
“हाँ … अब तो ये तुम्हारा मिट्ठू बन ही गया है !”
“ओह जिज्जू मुझे गुदगुदी सी हो रही है मुझे बाथरूम तक ले चलो देखो मेरी जांघें कैसे गीली हो गई है। उई इ… इ …………”
मैंने उसे गोद में उठा लिया। उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और आँखें बंद करके अपनी टाँगे मेरी कमर से लपेट ली। बिलकुल मिक्की की तरह। साफ़ सफाई के बाद हम फिर बेड पर आ गए। मैं बेड पर टेक लगा कर बैठ गया। वो मेरी गोद में अपना सिर रख कर लेट गई। उसकी आँखें बंद थी। वो धीरे से बोली “मेरे प्रियतम अब तो मिक्की की याद नहीं आएगी ना ?”
“मिक्की तो नहीं पर अब मैं मोना मेरी मोनिशा के बिना कैसे रह पाऊंगा !” मैंने नीचे झुक कर उसके गाल और होंठ चूम लिए। उसने थोड़ा सा ऊपर उठकर अपनी बाहें फिर फैला दी। मैंने उसे फिर अपने आगोश में ले लिया। इस बार वो मेरे ऊपर आ गई। उसने एक चुम्बन मेरी नाक और होंठों पर लिया और बोली “तुम पुरुष हम स्त्री जाति के मन को कभी नहीं समझोगे तुम तो स्त्री को मात्र। कोमल सी देह ही समझते हो तुम्हें उस कोमल मन के अन्दर प्रेम की छुपी परतों का कहाँ आभास है। तुम तो फूलों के रसिये भंवरों की तरह होते हो। जानते हो जब एक लड़की या औरत किसी से सच्चे दिल से प्रेम करती है तो दुनिया का कोई बंधन उसे नहीं रोक पाता। तुम नहीं समझ पाओगे। पर मिक्की की याद में अब रोना नहीं वरना तुम्हारे प्रेम में बुझी मेरी आत्मा को कभी शान्ति नहीं मिलेगी। समझे मेरे प्रथम पुरुष ?”
मैं तो मुंह बाए उसे देखता ही रह गया। मुझे लगा उसकी आवाज कुछ भारी सी होती जा रही है और कहीं दूर सी होती जा रही है। मुझे लगा कि जैसे मुझे नींद सी आने लगी है। पता नहीं ये नींद है या मैं बेहोशी हो रहा हूँ। मैंने कुछ बोलना चाहा पर मेरे मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। पर मोना की दूर होती सी आवाज अब भी सुनाई दे रही थी “मेरे प्रियतम अलविदा …” और मैं गहरी नींद या बेहोशी में खोता चला गया ………
अचानक मुझे लगा मोबाइल की घंटी बज रही है। मैंने अपनी जेब टटोली। जैसे ही मैंने अंगूठे से बटन दबाने की कोशिश की मुझे लगा कि उस पर खून सा लगा है और दर्द कर रहा है। “ओह…। हेलो … कौन ?”
“ओह … तुम फ़ोन क्यों नहीं उठा रहे थे। रात से ट्राई कर रही हूँ अब 6 बजे जाकर तुम्हारा फ़ोन मिला है।”
ओह…। ये तो मधु की आवाज थी। “पर वो … पर वो … ”
“ओह मेरे मिट्ठू सपने छोड़ो मैं स्टेशन से बोल रही हूँ। तुम्हारे बिना दिल नहीं लगा इसलिए जल्दी ही वापस आ गई ”उसने फ़ोन पर ही एक चुम्बन ले लिया। “तुम आ रहे हो ना मुझे लेने स्टेशन पर ?”
“ओह … हाँ … हाँ … आ रहा हूँ” और मैंने फ़ोन काट दिया। अब मैंने चारों ओर देखा। मैं तो उसी मील-पत्थर (माइल स्टोन-भरतपुर 13 कि. मी. के पास बैठा था। अरे ? वो बारिश ? … बंगला ? वो मोनिशा… वो गाड़ी ? … वो नेम प्लेट ? वहाँ तो कोई नहीं था। तो क्या मैं सपना देख रहा था। ये कैसे हो सकता है। मेरे अंगूठे पर तो अब भी खून जमा था। वो नेम प्लेट ओह। “मो-निशा पी.जी.एम। नहीं प्रेम गुरु माथुर” हे भगवान् ये क्या चमत्कार था। मैं उठकर गाड़ी की ओर गया। चाबी लगाते ही इंजिन गाड़ी चालू हो गया। इंडिकेटर बता रहा था फ्यूल टेंक तो पूरा भरा है ?
“ओह … मेरी मिक्की … तूने अपना वादा निभा दिया !” मेरी आँखों में आंसू उमड़ पड़े। मैं उन अनमोल कतरों को भला नीचे कैसे गिरने देता मैंने अपनी जेब से वोही रेशमी रुमाल एक बार फिर निकाला और अपनी आँखों पर रख लिया।
मिक्की ने तो अपना वादा निभा दिया पर मेरी प्यारी पाठिकाओं आप भी मुझे मेल करने का वादा मत भूलना !
आपका प्रेम गुरु
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