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(एक रहस्य प्रेम कथा)
मिक्की ! मेरी जान, मेरी आत्मा, मेरी प्रेयसी, मेरी प्रियतमा
मैं तुमसे प्रेम करता था, आज भी करता हूँ और करता रहूँगा
….. प्रेम गुरु की कलम से
मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओं ‘तीन चुम्बन’ और ‘दो नंबर का बदमाश’ के बारे में आप सब लोगों ने जो मेल भेजे हैं उन्हें पढ़ कर मुझे लगा कि मेरा आज तक का लिखा हुआ सफल हो गया। एक बार तो मैंने सोचा कि इस कहानी के बाद अब मैं लिखना ही छोड़ दूंगा पर मेरे कुछ प्रबुद्ध पाठकों और पाठिकाओं ने कम-ओ-बेस एक सवाल तो जरूर पूछा है कि क्या ‘तीन चुम्बन’ सच्ची कथा है ?
मित्रो यह फैसला तो आप को करना है ? क्या कथा को पढ़ते हुए आपको कहीं भी ऐसा लगा कि मैंने किसी संवाद या प्रसंग को बेतुका या व्यर्थ में ठूँसा गया है ?
मेरी कुछ पाठिकाओं ने मिक्की के बारे में दूसरा अध्याय लिखने को भी कहा है। मैं अपने प्रिय पाठकों और पाठिकाओं को नाराज कैसे कर सकता हूँ। पर आपको भी एक वादा करना होगा ? आप अपनी प्रतिक्रिया मुझे और अन्तर्वासना को जरूर भेजेंगे। लीजिये मिक्की-एक रहस्य प्रेम कथा प्रस्तुत है :
जब मैं आगरा से भरतपुर के लिए चला था तो मेरा अंदाजा था कि मैं कोई 10 – 10:30 तक पहुँच जाऊँगा। पर रास्ते में कार का पहिया पंचर हो गया और फिर सामने आइसक्रीम पार्लर में खड़ी उस मिक्की जैसी लड़की को देखने के चक्कर में एक घंटा लेट हो गया। ऐसा नहीं है कि मैं मिक्की को याद नहीं करता पर जब भी 11 या 13 सितम्बर की तारीख आती है मैं उदास सा हो जाता हूँ। 11 सितम्बर को मिक्की का जन्म दिन होता है और 13 सितम्बर को 23:59 पर वो हमें छोड़कर इस दुनिया से चली गई थी। जिस दिन वो वापस जा रही थी उसने मुझसे वादा किया था कि वो लौट कर जरूर आएगी।
आज भी उसके अंतिम शब्द मेरे कानों में गूंजते रहते हैं :
“मेरे प्रथम पुरुष मेरे कामदेव मेरी याद में रोना नहीं। अच्छे बच्चे रोते नहीं हैं। मैं फिर आउंगी, मेरी प्रतीक्षा करना”
मिक्की मैं तो जन्म जन्मान्तर तक तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहूँगा मेरी प्रेयसी।
मैं मिक्की की याद में खोया उसी रेशमी रुमाल और पेंटी को हाथों में लिए कार चला रहा था और मिक्की द्बारा किये वादे के बारे में ही सोच रहा था रात के कोई 12 या पोने बारह बजने वाले थे। सामने मील पत्थर पर भरतपुर 13 कि. मी. लिखा था। अचानक मुझे लगा कार हिचकोले खाने लगी है। हे भगवान् इस घने जंगल और बीच रास्ते में कहीं गाड़ी खराब हो गई तो ? मैंने आगरा में पेट्रोल से टंकी फुल करवाई थी पर फ्यूल इंडिकेटर दिखा था कि पेट्रोल ख़तम हो गया है। ये कैसे हो सकता है ?
मैंने गाड़ी साइड में लगाईं और फ्यूलटेंक देखा। वो तो खाली था। मुझे ध्यान आया कि पिछले आधे पौने घंटे में किसी भी गाड़ी ने क्रॉस नहीं किया वरना तो ये रोड बहुत ही व्यस्त रहती है। आमतौर पर इन दिनों में बारिश नहीं के बराबर होती है पर बादल भी हो रहे थे और बिजली भी चमक रही थी। लगता था बारिश हो सकती है। हे भगवान् इस घने जंगल में ना कोई मकान ना कोई पेट्रोल पम्प और ना कोई गाड़ी। मैं मील पत्थर पर पैर रखकर किसी गाड़ी का इन्तजार करने लगा।
तभी एक गाड़ी की हेड लाईट दिखाई दी। मैं झट से सड़क पर आ गया और उसे रुकने को हाथ दिया। कार ठीक मेरे पास आकर रुक गई। कार को कोई जवान सी दिखने वाली लड़की सफ़ेद सा कोट पहने आँखों पर मोटा चश्मा लगाए चला रही थी।
जब उसने अपना मुंह खिड़की से बाहर निकाला तो मैंने उससे कहा,“मैडम मेरी गाड़ी खराब हो गई है। ये देखिये मेरा आई. डी. कार्ड मैं भरतपुर का रहने वाला हूँ। मैं एक शरीफ ………” मैंने अपना आई डी कार्ड उसे दिखाते हुए कहा पर उसने कार्ड की ओर ध्यान ना देते हुए कहा “कोई बात नहीं आप चाहें तो मेरे साथ आ सकते हैं। हमारा घर पास ही है वो सामने रहा !”
पता नहीं मेरी निगाह पहले उस मकान की ओर क्यों नहीं गई। एक छोटी सी कोठी थी जिसमें लाईट जल रही थी। मैं उसके पास वाली सीट पर बैठ गया। गाड़ी कच्चे रास्ते से होती हुई कोठी की ओर बढ़ गई। मुझे बड़ी हैरानी हुई इस बिंदास लड़की पर बिना कोई जान पहचान इसने मुझ पर विश्वास कैसे कर लिया। मैंने उड़ती सी नजर उस पर डाली। पहरावे से तो कोई डॉक्टर लगती है। उम्र तो कोई 18 साल जैसी लगती है। इतनी छोटी उम्र में ये डॉक्टर कैसे बन गई आँखों पर मोटा चश्मा, कन्धों तक कटे बाल गोरा रंग, पतली सी छुईमुई सी। अगर वो चश्मा हटा दे तो मिक्की या निशा का भ्रम हो जाए। पर इस समय मिक्की या निशा के होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। मुझे ज्यादा हैरानी तो इस बात को लेकर थी की इस उजाड़ और वीराने में ये परिवार यहाँ कैसे रह रहा है।
कोठी के गेट पर नेम प्लेट पर लिखा था डॉ. (मिसेज) मो-निशा पी.जी.एम। अजीब नेम प्लेट थी। पता नहीं ये कौन सी डिग्री है ? गाड़ी देख कर चौकीदार ने सलाम किया और गेट खोला। अरे ये मुच्छड़, सिर पर साफा बांधे, 303 की बन्दूक कंधे पर लटकाए हमारे उदयपुर वाले रघु से ही मिलता जुलता था। गाड़ी अन्दर खड़ी करके हम ड्राइंग रूम में आ गए। हमारे ड्राइंग रूम जितना ही बड़ा था। सामने एक सीनरी लगी थी। अरे यह तो वही सीनरी थी जो हमारे स्टडी रूम में लगी थी। अगर ये लड़की अपना चश्मा उतार दे तो लगभग वैसी ही लगेगी जैसी इस सीनरी में वो तितालियाँ पकड़ती लड़की लगती है। सीनरी के ठीक ऊपर दीवाल घड़ी में 11:59 बजे थे। मुझे शक सा हुआ सेकंड की सुई तो चल रही है पर घंटे और मिनट की सुई नहीं चल रही है।
“आप बैठें मैं अभी आती हूँ” उसने सोफे की ओर इशारा करते हुए कहा। थोड़ी देर बाद वो बेड रूम से बाहर आई तो मैंने ध्यान से उसे देखा। उसने गुलाबी रंग का टॉप और सफ़ेद रंग का पतला सा पाजामा पहन रखा था। छोटे छोटे गोल गोल नितम्ब। कानो में सोने की पतली बालियाँ। काली आँखे। कमाल है अभी थोड़ी देर फले तो मोटा चश्मा और मोटी मोटी बिल्लोरी ऑंखें थी। इसकी शक्ल तो मिक्की से मिलती जुलती है अरे नहीं ये तो निशा जैसी लगाती है। पर वो ……
“क्या सोच रहे हैं मि. प्रेम ?” एक मीठी सी आवाज से मैं चौंक गया।
“ओह… मैं तो ये सोच रहा था इस सीनरी में जो लड़की दिखाई दे रही है उसकी शक्ल आप से कितनी मिलती है।” मैंने कहा।
“कहते हैं हर इंसान का एक डुप्लीकेट भगवान् ने जरूर बनाया है” वो मुस्कुराते हुए बोली “ओह … आप चाय लेंगे ?”
“ओह नो थैंक्स मुझे एक गिलास पानी मिलेगा ?”
“हाँ हाँ क्यों नहीं” उसने फ्रिज से पानी निकाला और मुझे दिया।
बाहर बारिश होने लगी थी मैंने उस से पूछा “आप इतने बड़े मकान में अकेले… मेरा मतलब … ?”
“ओह। दरअसल हमारी शादी एक महीने पहले ही हुई है। और डॉक्टर साहब को 15 दिन बाद ही कांफ्रेंस में अमेरिका जाना पड़ गया। हम तो ठीक से हनीमून भी … ओह … सॉरी …” वो अपनी झोंक में बोल तो गई पर बाद में शरमा गई। वो तो लाल ही हो गई और मैं रोमांच से लबालब भर गया। इस तरह से तो मधु (मेरी पत्नी) शरमाया करती थी शुरू शुरू के दिनों में। ईश श श् ………
थोड़ी देर बाद वो बात का रुख मोड़ते हुए बोली “आज नौकरानी भी नहीं आई। डॉक्टर साहब न्यूयार्क कांफ्रेंस में गए है। शायद कल की फ्लाईट से वापस आ जाएँ”
“आप अगर चौकीदार से कह कर थोड़ा सा पेट्रोल अपनी गाड़ी से निकलवा दें तो मैं आपका शुक्रगुजार (आभारी) रहूँगा … डॉक्टर साहिबा !” मैंने कहा!
“ओह मुझे आप मो-निशा कह सकते हैं” उसने मो और निशा को अलग अलग बोला था। पता नहीं क्यों। मुझे लगा अगर मोना और निशा दोनों को मिला दिया जाए तो जरूर मोनिशा ही बन जायेगी। हे भगवान् ये क्या चक्कर है ?
“बाहर बारिश होने लगी है इतनी रात में आप कहाँ जायेंगे यहीं रुक जाइए!”
“पर वो आप अकेली … मैं … मेरा मतलब …?”
“ओह … आप उसकी चिंता ना करें!”
“पर वो एक गैर मर्द के साथ … रात …?” मैं कुछ बोलने में झिझक रहा था।
“देखिये मुझे कोई समस्या नहीं है। आप तो ऐसे डर रहे हैं जैसे मैं कोई दूसरे ग्रह से आई कोई भटकती आत्मा हूँ और आप के साथ कुछ ऐसा वैसा कर बैठूंगी” वो खिलखिला कर हंस पड़ी मेरी भी हंसी निकल गई। एक बार तो मुझे वहम सा हुआ कि कहीं ये निशा तो नहीं है ?
वो बिना दूध की चाय बना कर ले आई और बोली, ”सॉरी आज दूध ख़तम हो गया !”
मैंने मन में सोचा ‘अपना डाल दो ना … इन अमृत कलशों में भरा खराब हो रहा है ! पर मैंने कहा “इट इज ओ के। कोई बात नहीं !”
“आप इतनी रात गए मेरा मतलब …?”
“ओह तकलुफ्फ़ छोडें आप मुझे मोना कह सकते हैं। दरअसल एक लड़की का रोड एक्सीडेंट हो गया था उसके ओपरेशन में देर हो गयी” उसने बताया फिर वो बोली “और आप ?”
“ओह… मुझे भी एक मीटिंग में देर हो गई और रास्ते में गाड़ी ने धोखा दे दिया” मैंने बताया। मैं उस से पूछना तो चाहता था कि उस लड़की का क्या हुआ पर पूछ नहीं पाया।
“डॉक्टर साहब का नाईट सूट है अगर आप पहनना चाहें तो …”
“ओह मैं ऐसे ही ठीक हूँ !”
“अरे भाई हम भरतपुर वालों की मेहमान नवाजी को तो मत बट्टा लगाओ !” और वो फिर हंस पड़ी। हंसती हुई तो वो बिलकुल मिक्की ही लग रही थी। मैं तो मर ही मिटा। मैंने मन में सोचा इस रात को रंगीन बना ही लिया जाए। मेरा अनुभव कहता है कि चिड़िया फंस सकती है। मैं पहले तो थोड़ा डर सा रहा था पर उसके बिंदास स्वभाव को देखकर मेरे अन्दर का प्रेम गुरु जाग गया और मेरा पप्पू तो हिलोरें ही लेने लगा। क्या मस्त माल है गुरु इसकी गांड तो लाजवाब होगी चूत तो चुद गई है पर एक महीने में (10-15 दिनों में) कितना चुदी होगी ? खैर मेरा अंदाजा है कि गांड जरूर कुंवारी ही होगी। चलो इस रात में जो मिल जाए बोनस ही तो है।
उसके दुबारा कहने पर मैंने कुरता पाजामा पहन लिया और रात यहीं बिताने का प्रोग्राम बना लिया। वैसे भी मधु तो जयपुर गयी हुई थी जल्दी पहुँच कर क्या करना था। उसके जोर देने पर मैं उसके साथ बेड-रूम में चला गया। अन्दर से तो मैं भी यही चाहता था। मैंने कहा “यहाँ तो एक ही बेड है और हम दोनों… मेरा मतलब …?”
“क्यों अपने आप पर भरोसा नहीं है क्या …?” उसने मेरी आँखों में झांकते हुए पूछा।
मैंने देखा उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। आँखें बिलकुल बिल्लोरी। ये कैसे हो सकता है। अभी तो काली थी। इस से पहले कि मैं कुछ बोलता वो बोली “दरअसल मैं कांटेक्ट लेन्सेस लगाती हूँ काले रंग के वैसे तो मेरी आँखें बिल्लोरी ही है क्यों अच्छी है ना ?” उसने मेरी आँखों में झांकते हुए कहा।
मैं झेंप सा गया।
“ओह आप तो कुछ बोलते ही नहीं ?”
मैंने मन में सोचा ‘मैं मुंह से नहीं लंड से बोलता हूँ मेरी जान थोड़ी देर ठहर जाओ मुझे अपना प्रोग्राम सेट तो कर लेने दो ’ पर मैंने कहा “ओह ऐसी कोई बात नहीं है आप बहुत खूबसूरत है।”
अचानक फ़ोन की घंटी बजी। हे भगवान् इस समय इतनी रात को … हे लिंग महादेव मेरी लाज रख लेना कहीं कोई गड़बड़ मत कर देना … बड़े दिनों के बाद ऐसी फुलझड़ी मिली है … समझ रहे हो ना ? मैं एक नहीं इस बार दो सोमवार दूध और जल चढ़ाने आऊंगा … पक्की बात है।
“हाय लव कैसे हो !” मोनिशा की मीठी सी आवाज निकली।
“हाय हनी !” फ़ोन के रिसीवर से साफ़ सुनाई दे रहा था। कमाल है। पता नहीं कैसा फ़ोन है। आमतौर पर दूसरे को रिसीवर की आवाज नहीं सुनाई देती।
“हैप्पी बर्थ डे हनी !” कमाल है ऐसा तो मैं मधु को बोलता हूँ ये डॉक्टर भी साला पूरा आशिक मिजाज़ पत्ता लगता है।
“थैंक्यू लव। कब आ रहे हो ?”
“कोशिश तो की थी पर आज नहीं आ पाया। कल की फ्लाईट है। ओ. के. हनी टेक केयर !”
मोनिशा ने फ़ोन रख दिया। मैंने उसकी ओर देखा वो कुछ उदास सी थी। उसने बताया की डॉक्टर साहब का फ़ोन था वो कल की फ्लाईट से आ रहे हैं।
“मेरी ओर से भी जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई हो !” मैंने उसकी ओर हाथ बढ़ा दिया। इस से अच्छा बहाना उसे छूने का और क्या हो सकता था। क्या नाजुक मुलायम हाथ था। मैंने उसे चूम लिया। मैं जानता था ऊँची सोसाइटी वाले ऐसी चूमा चाटी का बुरा नहीं मानते। उसने भी थैंक्यू कहते हुए मेरा हाथ चूम लिया। आईला ……
“वो … आपने अपना जन्म दिन नहीं मनाया ?”
“ओह दरअसल मेरे जन्म दिन में कनफ्यूजन है?”
“क्या मतलब ?
“दरअसल मेरा जन्म 13 तारीख की रात को ठीक 12 बजे (00 आवर्स) हुआ था न ? इसलिए मैं अपना जन्मदिन 14 को मनाती हूँ। और अब तो 14 तारीख हो ही गई होगी। हमने घड़ी देखी वो तो अभी भी 11:59 ही बता रही थी। मेरा अंदाजा सही था सेकंड की सुई चल रही थी पर घंटे और मिनट की सुई बंद थी। चलो कोई बात नहीं। मुझे फिर मिक्की की याद आ गई। उसकी मौत भी तो रात में 11:59 बजे ही हुई थी।
मैं अपने खयालों में डूबा था कि मोनिशा बोली,“अच्छा एक बात बताओ क्या आप पुनर्जन्म या आत्मा आदि में विश्वास रखते हैं ?”
अजीब सवाल था। डॉक्टर होकर ऐसा सवाल पूछ रही है। मैंने कहा “हाँ भी और ना भी !”
“क्या मतलब ?”
जिस अंदाज में उसने ‘क्या मतलब’ बोला था मुझे तो लगा कि निशा ही मेरे सामने बैठी है फिर मैंने कहा “आपको देख कर तो पुनर्जन्म में विश्वास करने को जी चाहता है।”
“क … क्या मतलब ?”
हे भगवान् ये तो मिक्की ही है जैसे। मैंने उस से कहा मेरी एक क्लास फेलो थी बिलकुल आप ही की तरह उसकी एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। उसका चेहरा तो बिलकुल आप से मिलता जुलता है मोनिशाजी !” मैंने इस बार जी पर ज्यादा जोर दिया था।
“आप मुझे मोना कहें ना। घर वाले मुझे मोना ही कहते हैं!”
“और डॉक्टर साहब ?” मैंने पूछा
“वो तो मुझे हनी कहते हैं” वो शरमा गई। इस्स्स्स … इस अदा पर मैं तो मर ही मिटा। मैं तो बेसाख्ता उसे देखता ही रह गया। “एक्चुअली जब मैं एम.बी.बी.एस. की स्टुडेंट थी डॉक्टर साहब से प्रेम हो गया था। उन दिनों डॉक्टर साहब मुझे मिक्की माउस कह कर बुलाते थे। डॉक्टर साहब मुझ से 12 साल बड़े हैं ना। और फिर एम.बी.बी.एस. पास करते ही हमने जल्दी ही शादी कर ली। वैसे भी मैं मांगलिक हूँ ना मेरी शादी 24 वें साल में ही हो गई।”
मैं सोच रहा था ‘ये डॉक्टर भी एक नंबर का गधा है इतनी खूबसूरत बला को छोड़ कर न्यूयार्क गांड मरवाने गया है चूतिया साला !’ मैंने कहा “ये तो आप जैसी खूबसूरत … मेरा मतलब है नव विवाहिता के साथ ना इंसाफी ही है ना ?”
“पर प्यार अँधा होता है ना ?”
उसकी यह बात सुनकर मुझे अटपटा सा लगा। मैं कुछ अंदाजा नहीं लगा पाया। ये लड़की तो रहस्यमयी लग रही है। उसने मांग नहीं भर रखी थी और ना ही मुझे कहीं उस चूतिये डॉक्टर की कोई फोटो नजर आई। अब मुझे लगने लगा कि कहीं ना कहीं कोई गड़बड़ जरूर है। पर मेरा पप्पू तो अकड़ रहा था ‘गुरु अच्छा मौका है ठोक दो साली को। डॉक्टर तो चूतिया है साला उसने भला क्या चुदाई की होगी इस मस्त मोरनी की एक दम गुलाब की कली ही है बिलकुल मिक्की और निशा की तरह। थोड़ा सा ड्रामा करो और लौंडिया तुम्हारी बाहों में। किसी को क्या पता चलेगा ’ मैंने उसे चोदने का मन बना ही लिया। आखिर मैं अपने पप्पू की नाराजगी कैसे मोल लेता। मैंने अपना ड्रामा (चुदाई की तैयारी का प्रोजेक्ट) चालू कर दिया :
“सच में मोनाजी आप सही कह रही हैं” मैंने उदास स्वर में कहा तो वो मेरी ओर हैरानी से देखने लगी। मैंने आगे कहा “मैं तो आज तक भी अँधा बना हुआ हूँ”
“क्या मतलब ?”
“अब देखो ना मोना को इस दुनिया से गए 8 साल हो गए पर मैं अभी तक उसे भुला नहीं पाया” मैंने लगभग रो देने वाली एक्टिंग की। वो मेरे पास आ गई। उसकी गरम होती साँसे मैं अपने चहरे पर साफ़ महसूस कर रहा था। उसके जवान जिस्म की खुसबू मुझे अन्दर तक मदहोश करती जा रही थी। मेरा पप्पू तो अकड़ कर लोहे की रोड ही बना था। “वो कहती थी कि मैं जरूर तुम्हारी बनूंगी चाहे मुझे फिर से क्यों ना जन्म लेना पड़े। पर एक बार जो इस दुनिया से चला जाता है वो वापस कब आता है ?” मेरी आँखों से टप टप आंसू निकलने लगे।
“ओह … आई ऍम सॉरी … वो … वो … प्लीज आप ऐसा ना करें वरना मैं भी रो पडूँगी, मेरा दिल बहुत भारी हो रहा है !”
‘मेरी जान हल्का तो अब मैं कर ही दूंगा अभी तो शुरुवात है नाटक की, आगे आगे देखो !’ मैंने सचमुच ऐसी एक्टिंग की थी कि मेरी आँखों से आंसू निकलने लगे। आप सोच रहे होंगे आंसू भला कैसे निकल आये इतनी जल्दी ? औरतें तो चलो इस काम में माहिर होती है पर आदमी ? आप को बता दूँ अगर आप 2-3 मिनट तक आँखें नहीं झपकाएं तो आपकी आँखों से पानी अपने आप निकलने लग जाएगा। और फिर मैं तो पक्का प्रेम गुरु हूँ मुझे से ज्यादा ये टोटके भला कौन जानता है। अब तो वो इतना भावुक हो गई थी कि वो मेरे आंसू पोंछने लगी। आह … क्या मस्त चिकनी अंगुलियाँ थी। बिलकुल मिक्की और निशा की तरह।
“आप शादी क्यों नहीं कर लेते ?” उसने मेरे आंसू पोंछते हुए कहा।
“अब मोना जैसी तो मिल नहीं सकती। अगर आप बुरा न माने तो एक बात पूछूं ?”
“हूँ … हां …आं क्यों नहीं”
“क्या आपकी कोई छोटी बहन है ?”
“क … क्या मतलब … ओह … ” वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
“आप हंस रही हैं … आपने ही तो कहा था कि इस दुनिया में हर व्यक्ति का एक डुप्लीकेट भगवान् ने जरूर बनाया है”
“ओह … वो … पर मेरी तो कोई बहन नहीं है पर … पर ऐसा क्या है मुझ में ?”
“ओह तुम नहीं जानती ” मैं आप से तुम पर आ गया “हीरा अपनी कीमत खुद नहीं जानता।”
“क्या मैं सचमुच इतनी सुन्दर हूँ …?”
“तुम मेरी आँखों में झाँक कर तो देखो अपने रूप और हुश्न को। मेरे धड़कते दिल को छू कर तो देखो। मेरी साँसों को महसूस तो कर के देखो” मेरी एक्टिंग चालू थी। चिड़िया दाना चुगने को बेताब लगाने लगी है। जाल की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया है। अब तो बस थोड़ी सी देर है जाल की रस्सी खींचने में।
“ओह आप तो ऐसे ही मजाक कर रहे हैं !” वो मेरी आँखों में झांकने लगी। उसकी आँखों में लाल डोरे तैरने लगे थे। उसकी साँसे तेज होती जा रही थी। होंठ काँप रहे थे। दिल की धड़कन साफ़ सुनाई दे रही थी। अब प्रोग्राम की अंतिम लाइन लिखनी थी। मैंने कहा “ओह … मेरी मोना मेरी मिक्की। तुम क्यों मुझे छोड़ कर चली गई … ”
मिक्की मेरी जान, मेरी आत्मा, मेरी प्रेयसी, मेरी प्रियतमा मैं तुमसे प्रेम करता था, आज भी करता हूँ और करता रहूँगा”। मेरी आँखों से आंसू निकलते जा रहे थे। उसने अपने कांपते हाथों की अंगुलियाँ मेरे होंठो पर रख दी। मैं उन्हें हाथ में लेकर चूमने लगा। वो मेरी ओर बढ़ी और फिर उसने अपने कांपते और जलते होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
आगे क्या हुआ ?
अगले भाग में !
आपका प्रेम गुरु
इस कहानी का मूल्याँकन दूसरे भाग में करें !
धन्यवाद !
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