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हमारे ऑफिस में मेरे साथ बहुत से लड़के भी काम करते हैं। उनमें से कई शादीशुदा हैं और कई कुँवारे।
एक बार ऑफिस में एक नया लड़का आया जिसका नाम तरुण था। तरुण एक बहुत ही मेहनती और अच्छा कर्मी था। ना जाने क्यों मेरा उस पर दिल आ गया और मैंने सोच लिया कि उसके साथ चुदाई जरूर करूँगी।
मेरे पास सबके ई-मेल पते थे और मैं कभी कभी लड़कों से मज़ा लेने के लिए अपनी एक दूसरे ई-मेल के पते से दोस्ती की मेल भी भेजती थी। मैंने वही तरीका तरुण पर भी आज़माने का सोचा और उसको भी दोस्ती की मेल की। जब मुझे उसका जवाब मिला तो मैंने बात आगे बढ़ाते हुए उसकी पसंद-नापसंद, खाने-पीने के शौक, सैक्स इत्यादि के बारे में बहुत बार मेल की और अपने बारे में भी बताया।
काफी दिनों तक सिर्फ मेल पर बातों के बाद हम दोनों ने मिल कर चुदाई का कार्यक्रम बनाया।
जिस दिन का कार्यक्रम था उस दिन मैं जल्दी ही घर आ गई और खाना आदि बना कर तरुण की प्रतीक्षा करने लगी।
शाम को ऑफिस के बाद तरुण मेरे घर आया और उसने दरवाज़े की घण्टी बजाई। मैंने दरवाज़ा खोला और…!!! जैसे ही उसने मुझे देखा तो उसे एक झटका लगा, जैसे उसके पैरों तले की ज़मीन ही खिसक गई हो। तरुण बोला- आप शालिनी जी? क्या यह आप का घर है? सॉरी मैं नहीं जानता था!
और तरुण वापिस मुड़ने लगा ही था कि मैंने कहा,”घबराओ नहीं तरुण, अंदर आ जाओ!” और तरुण अंदर आ गया। मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया और हम दोनों बैठक में बैठ गए।
“और सुनाओ तरुण, कैसा रहा आज का दिन?” मैंने पूछा। “बस ठीक था!” जवाब मिला। “अब तक तो तुम समझ ही गए होंगे कि तुम मुझ से ही मेल पर बात किया करते थे?” मैंने कहा।
“हाँ, पर मुझे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा कि आप ही वो सब मेल करतीं थीं? और मैं आपके साथ वो सब बातें किया करता था!” तरुण ने कहा। “हाँ, मैं ही तुमसे सब बातें किया करती थी और अब इसको केवल अपने तक ही सीमित रखना कि हम दोनों में किसी प्रकार का शारीरिक सम्बंध हैं। ऑफिस में किसी को भी कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है। समझे? अब यह बताओ कि जैसे मेल में लिखते थे वैसे ही अभी चुदाई का कार्यक्रम है या लण्ड ठण्डा हो गया है?” मैंने पूछा। “जैसे आप ठीक समझें!” तरुण बोला। “मैंने तो जब से तुम्हारे लण्ड की तस्वीर देखी हैं तभी से मेरी चूत तुमसे चुदने के लिये फड़क रही है!” मैंने कहा।
फिर मैंने खाने पीने का सामान रखा तो तरुण मेरी मदद करने लगा।
हम दोनों साथ साथ में काम, परिवार और अन्य विषयों पर भी बातें कर रहे थे। मैंने देखा कि तरुण अभी भी कुछ संकोच कर रहा था।
धीरे धीरे मैंने बातों का रुख सैक्स की तरफ कर दिया और महसूस किया कि अब हमारी साँसें भारी हो रहीं थीं। मैंने सोचा कि यही सही मौका है और मैं अब सामने से उठ कर तरुण की बगल में जा बैठी। तब तरुण ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया। फिर उसने पहले मेरे गालों को चूमा और फिर मेरे होठों को चूमने लगा।
मैंने भी अपने होठों को हल्का सा खोला और उसको ऐसे चूमने लगी जैसे हम दोनों बहुत समय के बाद मिले हों। उसके हाथ मेरी पीठ को सहला रहे थे और मैं उसके बालों को संवार रही थी। हमारी जीभें एक दूसरे के मुँह में लुका-छिपी का खेल खेल रहीं थीं। कितनी ही देर तक हम दोनों एक दूसरे को इसी तरह चूमते चाटते रहे। तभी मुझे महसूस हुआ कि तरुण के हाथ मेरे मोम्मों को दबा रहे थे और उसने मेरी टी-शर्ट उतारने की कोशिश की तो मैंने खड़े होकर अपनी टी-शर्ट उतार कर अपनी ब्रा भी उतार फेंकी।
तरुण मेरे मोम्मों को देख रहा था और मैं अपने 34 इन्च के बिल्कुल तने हुए मोम्मों को दबा कर उसको छेड़ने लगी।
फिर मैंने अपने बहुत के कड़े हो चुके दोनों चुचूक उसके मुँह पर फेरने शुरू कर दिए। तरुण ने मेरे एक मोम्मे और चुचूक को चाटना शुरू कर दिया और दूसरे को दबाना शुरू कर दिया।
जैसे ही उसने मेरे कड़े चुचूक को काटा, मैं एकदम सिहर सी उठी, मैंने अपने एक हाथ से उसकी गर्दन को थोड़ा सा अपने मोम्मे की ओर दबाया ओर दूसरे हाथ से उसके लंड तो टटोलने लगी। मेरी चूत चुदाई की सोच से ही पानी छोड़ रही थी। तरुण किसी बच्चे की तरह मेरा मोम्मा चूस रहा था।
तभी मैंने महसूस किया कि उसका दूसरा हाथ अब मेरे नीचे तक पहुँच गया है। मैंने अपनी जींस का बटन खोल कर उसे उतार दिया। अब उसका हाथ मेरी पैंटी के ऊपर से मेरी चूत के मुँह को रगड़ रहा था।
थोड़ी देर तक मेरी चूत से खेलने के बाद उसने अपना हाथ मेरी पैंटी के अंदर डाल दिया और मेरी गीली चूत को सहलाने लगा। मैंने महसूस किया कि उसने धीरे से अपनी एक उंगली मेरी चूत में डाल दी और अंदर बाहर करने लगा।
मैं आनंद से कराह रही थी। मैंने भी उसके लण्ड पर हाथ फेरना शुरू किया और उसकी पैंट की ज़िप खोल कर हाथ अंदर डाल दिया और उसके लण्ड को अंडरवियर के ऊपर से ही दबाने और मसलने लगी।
फिर मैंने तरुण के सारे कपड़े उतार दिए और अपनी पैंटी भी उतार दी। अब हम दोनों एक दूसरे के सामने पूरे नंगे खड़े होकर एक दूसरे के शरीर को निहार रहे थे।तरुण ने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और बहुत जोर से अपने साथ चिपका लिया। मुझे भी उसकी बाँहों में एक आनन्द की अनुभूति हो रही थी और नीचे से उसका कड़क लण्ड मेरी चूत के द्वार पर दस्तक दे रहा था।
मैंने उसके लण्ड को पकड़ कर दबाया और उसकी चमड़ी उतार कर आगे पीछे करके उसकी मुठ मारने लगी। तरुण ने मुझे सोफे पर बिठा कर मेरी टांगें खोल दीं। वह स्वयं नीचे अपने घुटनों पर बैठ गया और मेरी चूत के होठों को खोलने लगा। उसने अपनी जीभ मेरी चूत के मुँह पर फेरनी शुरू कर दी। कभी वह अपनी जीभ मेरी चूत के आसपास फेरता तो कभी ऊपर से नीचे चाटते हुए मेरी गाण्ड तक पहुँच जाता।
मेरा रोम-रोम खड़ा हुआ था। मैंने उसके सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबाया हुआ था। उसकी चूत चाटने से मैं झड़ गई और उसके सिर को ऊपर की ओर खींच कर मैंने उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया। उसका फनफनाता लण्ड मुझे चोदने के लिए पूरी तरह से तैयार खड़ा था। अब उसको मज़ा देने की मेरी बारी थी। मैंने तरुण को सोफे पर अधलेटा किया और झुक कर उसके लण्ड को अपने मुँह में ले लिया।
धीरे धीरे उसका सात इंच का पूरा लण्ड मेरे मुँह में था और मैं उसको लॉलीपोप की तरह चूस रही थी। तरुण मेरे सिर को जोर जोर से अपने लण्ड के ऊपर दबा रहा था।
उसने एक हाथ बढ़ा कर मेरी गाण्ड को सहलाना शुरू कर दिया। चूँकि हम दोनों पहली बार आपस में चुदाई कर रहे थे इसलिए मैं उसके लण्ड को अपनी चूत में डालने के लिए बहुत उत्सुक थी और इसीलिए मेरी चूत लगातार पानी छोड़ रही थी।
तभी जैसे तरुण को लगा कि वो झड़ने वाला है उसने झटके से अपना लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकाल लिया और अपने लण्ड को जड़ से दबाने लगा। उसने मुझे घुमा कर मेरी पीठ अपने मुँह की तरफ की और मुझको अपने ऊपर बैठाने लगा। तब मैंने अपनी टांगें उसके दोनों ओर कीं और उसके लण्ड पर अपनी चूत का मुँह रख कर धीरे धीरे बैठ गई।
तरुण ने मुझे बाँहों में जकड़ लिया और हम दोनों एक दूसरे के शरीर की गर्मी का आनन्द लेने लगे।
कुछ पल ऐसे ही बैठे रहने के बाद तरुण ने नीचे से धक्का देकर चोदने का संकेत दिया। उसके दोनों हाथ अब मेरे मोम्मों को दबा और मसल रहे थे। मैंने भी अब ऊपर नीचे होकर चोदना शुरू कर दिया। मैंने उसके लण्ड को हाथ लगाना चाहा तो महसूस किया कि उसका लण्ड पूरा मेरी चूत के अंदर है तब मैंने उसके टट्टों को सहलाना शुरू कर दिया और उछल उछल कर चुदने लगी। ऐसे ही चुदते हुए मैं फिर से झड़ गई और मेरा पानी मेरी चूत से बाहर निकल कर तरुण की टांगों पर बह रहा था। परंतु मैं रुकी नहीं और जोर जोर से हांफते हुए उसके लण्ड पर उछलती रही। उसी तरह चोदते हुए तरुण ने उठ कर मुझसे घोड़ी की तरह झुकने को कहा।
मैंने पूरा ध्यान रखा कि उसका लण्ड मेरी चूत से बाहर ना निकले और मैं घोड़ी की तरह झुक गई।
तरुण ने मेरी कमर को अपने हाथों से दबाया और फिर से जोर-जोर से धक्के मारता हुआ चोदने लगा। कुछ देर के बाद उसने चोदने की गति बढ़ा दी तो मैं समझ गई कि अब तरुण झड़ने वाला है।
मैंने अपनी दोनों बाहें पीछे ले जाकर उसकी गाण्ड को दबाने की कोशिश और कहा,”तरुण, और जोर से चोदो! और जोर से धक्के मारो मेरी चूत में!”
तभी उसने एक झटके से अपना लण्ड बाहर निकाला और ज्वालामुखी से लावा के जैसे उसके लण्ड से वीर्य की पिचकारियाँ निकल कर मेरी गाण्ड से टकराई और हम दोनों की टांगों पर गिरने लगीं।
तरुण ने मेरे मोम्मे मसलते हुए मुझे बहुत कसकर पकड़ लिया। फिर मैंने उसले लण्ड को हिलाना शुरू कर दिया और तब तक हिलाती रही जब तक उसके लण्ड से वीर्य की अंतिम बूँद तक नहीं निकल गई।
कुछ समय बाद हम दोनों ने स्नान किया और फिर खाना खाकर तरुण अपने घर चला गया।
इसके बाद हम दोनों ने कई बार पूजा के साथ सामूहिक चुदाई भी की। आपके विचारों का स्वागत है [email protected] पर!
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