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प्रिय पाठको, हरेश जी का एक बार फ़िर नमस्कार !
आपने मेरी लिखी एक लम्बी कहानी
मुझे रण्डी बनना है
पढ़ी ही होगी।
और एक सच्ची कहानी के द्वारा आपके सामने आया हूँ। मेरा प्रवास कम ही होता है पर जब भी होता है वो यादगार बन जाता है। यह घटना एक साल पहले घटी थी। मैं काम के सिलसिले में मुंबई जा रहा था और रेलगाड़ी के बदले बस में सफ़र करना मुनासिब समझकर बस से मुंबई जा रहा था। मेरी बगल में एक लड़का कम्प्यूटर पर कुछ काम कर रहा था, दिखने में खूबसूरत था। उसकी काया एकदम मस्त थी। मैं उसके काम को देख रहा था तो मुझे उसमें कुछ भी नहीं समझ रहा था। वो अपने काम में मशगूल था।
काम करते करते उसका हाथ जाने अनजाने में मेरे पैंट की गुप्तांग वाली जगह को छू रहा था। मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था मानो गए वक्त ट्रेन में मिले यू पी वाले भाईसाहब की छूने की घटना ताज़ी हो गई।
मैंने भी धीरे से उसे छूना चालू किया तो पहले तो उसने कुछ नहीं कहा फिर बोला- जरा ठीक से बैठो !
मैं- अरे, बस में ऐसे होता ही है।
वो- अच्छा ठीक है, पर जरा सम्भल कर बैठो।
मैं- जरूर, अच्छा तुम क्या काम कर रहे हो?
वो- अरे कंपनी का जरूरी काम है ख़त्म करके आज शाम को ऑफिस में दे देना है।
मैं- मतलब?
वो- अरे भाई, मैं सोफ्टवेयर इंजिनीयर हूँ और यही मेरा काम है।
मैं थोड़ी देर चुप रहा।
उसने अपना लेपटॉप बंद किया और मुझसे बात करने लगा।
वो- वैसे आप क्या करते हो?
मैं- मैं एक रियल इस्टेट से संबंधित काम करता हूँ। मैं भी कम्प्यूटर जनता हूँ पर तुम जो कर रहे थे वो पल्ले नहीं पड़ रहा था।
वो- हाँ, यह एक प्रोग्राम होता है उसको मैं बना रहा हूँ। ओ के, आप कहाँ से हो?
मैं- मैं वैसे मुंबई से ही हूँ पर पुणे आना जाना बहुत होता है। सोचता हूँ कि पुणे में घर ले लूँ। मुंबई की भीड़-भाड़ से तंग अ गया हूँ और बहुत पसीना आता है, पुणे की हवा खुशनुमा है।
वो- वैसे मैं भी दिल्ली से हूँ पर काम के सिलसिले मुंबई आया हूँ।
हमारी बाते चल रही थी तभी मैंने ऊपर से अपने बैग से पानी की बोतल निकाली तो उस लड़के की निगाह मेरे बैग में पड़ी चीजों पर पड़ी।
वो- अरे साहब, कौन सी किताब है, जरा देखू तो?
मैंने अचकते हुए कहा- अरे तुम्हारे काम की नहीं ! क्या करोगे देख कर?
वो- हुंह ! कुछ अजीब है क्या?
मैं फिर खुल गया और उसके कान में बोला- मर्द का मर्द के साथ सेक्स कैसे होता है उसकी बातें और फोटो हैं।
मैंने इतना कहा नहीं कि उसकी पैंट के निचले हिस्से में कुछ हलचल होने लगी जिसकी मुझे जरूरत थी।
मैंने उसके हाथ में किताब दी और चुपके से देखने कहा। पहले उसने गाण्ड मारने की तरकीब पढ़ी और उसके लिए जरूरी सावधानी के बारे में पढ़ा और बड़े चाव से फोटो देखने लगा। मैंने मौका पाकर किताब के नीचे से उसके लौड़े को छू लिया।
क्या तन गया था !
उसने हाथ हटाने के लिए आँखों से इशारा किया। मैंने आँखों से मना किया। बस थोड़ा काबू में आ गया। फिर मैंने दूसरी किताब निकाली और उसके हाथ में थमा दी। उसमें मस्त मर्द अपने लौड़े की प्रदर्शनी कर रहे थे और फिर लौड़े को दूसरे मर्द के मुँह में, गाण्ड में डाल रहे थे।
मैंने उससे पूछा- मैंने पहले कहा था कि तुम्हारे काम की नहीं हैं यह। पर तुम नहीं माने।
वो- वैसी बात नहीं, पर ऐसा सही होता होगा क्या?
मैं समझ गया पंछी पिंजरे में आ रहा है, सम्भल कर चलना पड़ेगा।
मैं- देखो, ये फोटो नकली तो हो ही नहीं सकते। है या नहीं?
इतने में कंडक्टर ने आवाज लगाई- बस 20 मिनट रुकेगी, चाय-पानी, नाश्ता करना या बाथरूम जाना सब निपटा लो।
हम दोनों नीचे उतारे और ढाबे से दो कप चाय ली और सड़क के किनारे बातें करने लगे।
वो- देखिये, मैंने मर्द का औरत के साथ सेक्स बारे में जाना है और किया भी है। पर यह बात अजीब है।
मै- कोई अजीब नहीं है सिर्फ एक खेल है। औरतों के मुकाबले मर्द नसीबवाले होते हैं। दो औरतें एक दूसरी से सेक्स नहीं कर सकती, पर दो मर्द जरुर कर सकते हैं।
वो- वो कैसे? ठीक से बताओ।
मैं- देखो, औरतों के तीन छेद होते हैं पर लौड़ा नहीं होता, उसके लिए मर्द चाहिए। जबकि मर्द के पास दो छेद होते हैं और एक लौड़ा होता है, दोनों मर्द मस्त मजे ले सकते हैं।
वो- ह्म्म्म ! अच्छा, आपका नाम क्या है?
मैं- हरेश और आपका?
वो- राजेश ! हरेश जी, मैं एक आदमी से नेट पर हमेशा मेल करता हूँ उसका नाम भी हरेश ही है। आपका इ-मेल आई डी क्या है?
मैंने अपना इ-मेल आई डी बताया।
वो- अरे इसी पर तो मैं मेल किया करता हूँ, क्या संजोग है? वो आप ही हैं क्या? बढ़िया बात। आपसे कई बार कहा कि एक बार मिलो तो ! लो भैया ऐसी मुलाकात हुई। अपने मेल में कई बार गाण्ड मरवाने की बात लिखी थी। कभी मरवाई है क्या? या सिर्फ तुक्के लगाते हो? आपको यह शौक कैसे जागा?
मैं- अरे मर्द का दर्द मर्द ही जाने। मेरे पड़ोस में एक तीस साल का नौजवान रहता था। वो मेरा दोस्त बन गया था। मैं उसके घर जाता चाय-नाश्ता करता, गप्पें लगाता। एक रविवार उसने मुझे बुलाया और कहा कि अंकल आज का दिन अलग होगा। मैं कुछ नहीं समझा था। उसने टीवी चालू किया और डीवीडी में सीडी डाल दी। फिल्म चालू हुई और दो मर्द एक कमरे में आये और एक सोफे पर एक दूसरे के बाजू में बैठ गए। फिर एक दूसरे को चूमने लगे और दोनों नंगे हो गए। इधर मेरा दोस्त मेरे बाजू में बैठा और कहने लगा कि अंकल, मुझे यह खेल आपके साथ खेलना है। वो गोरा चिट्टा लड़का था उसने मेरे मुँह में मुँह डाल कर चूमा और अपने लौड़े को मेरे हाथ में दे दिया, मेरा लौड़ा अपंने हाथ में लिया। सीडी चल रही थी और उस लड़के ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और हमने सीडी में चल रहे खेल के मुताबिक एक दूसरे की गाण्ड मार ली। पहले अजीब लगा पर धीरे धीरे आदत हो गई। एक दिन वो शहर से गायब हुआ फिर पता चला कि उसने शहर में कई लोगों को ठगा था। उसके कमरे से कोई सुराग नहीं मिला, लोग मुझसे पूछताछ करने लगे, तंग आकर मैंने भी शहर छोड़ दिया शहर का नाम नहीं बताऊँगा।
राजेश- यार, तुम्हारी कहानी में रोमांच है और मस्ती भी।
यह सुनते वक्त वो मेरे और करीब आ गया और मेरी जांघ पर हाथ रख दिया जिसका मैं बेसब्री से इन्तेजार कर रहा था।
राजेश- हम तो पुरानी जान पहचान वाले निकले। हरेश, एक काम करो, तुम मुंबई में अपना काम निपटा लो और मैं अपना, फिर मिलते है बोम्बे सेन्ट्रल स्टेशन के पास।
मैं- चलो, ठीक है।
हम मुंबई उतरे और एक दूसरे को हाय-बाय करके अपने अपने काम के लिए निकल लिए। मैंने मेरे पार्टी से जमीन की बातचीत की और कुछ कागजों की छानबीन की और शाम तक सारा काम खत्म कर लिया। मैंने खरीददार से सौदेबाजी की और बताया कि सौदा पक्का करने के लिए दो दिन बाद फिर मिलूँगा और फिर निकल पड़ा बोम्बे सेन्ट्रल स्टेशन पर।
एकाध घंटा राह देखने पर राजेश आया उसके पास कुछ सामान था।
मैं- अरे, इसमें क्या है?
राजेश- हरेश, अरे गाण्ड मारने के लिए जरुरी सामान जैसे कोंडोम, क्रीम है। चलो, आज ना मत करना, मैंने एक अच्छा कमरा तीन घंटे के लिए ले रखा है, मैं अक्सर इस होटल रहता हूँ। कोई डर नहीं, सारे लोग पहचानते हैं।
हम बात करते करते होटल पर पहुँचे तो मैंनेजर ने चाबी थमा दी।
मेनेजर- राजेश बाबू कैसे हो? कामकाज ठीक-ठाक ? कमरे में चाय भिजवाऊँ क्या?
राजेश- हाँ, जल्दी से चाय भिजवाओ और कुछ बिस्किट भेजो जरा जल्दी से। मेरे दोस्त के साथ अभी कुछ ख़ास मीटिंग है।
हम कमरे में गए, कमरा शानदार था, परफ्यूम की खुशबू थी, साफ-सुथरे नरम गद्दे थे। कोने में मेज़ थी, उस पर फूलदान था जो कमरे की शोभा बढ़ा रहा था।
इतने में दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।
राजेश- हरेश, तुम आराम से बैठो, रूम-बॉय चाय-नाश्ता लाया होगा। पहले चाय-पानी करते हैं।
रूम-बॉय ने आकर एक छोटे मेज़ पर चाय-नाश्ता लगाया और जाने लगा।
राजेश- मुन्ना, देखो तीन घंटे तक मेरी इनसे कुछ बातों पर चर्चा होने वाली है तो सारा सामान बाद में ले जाना और दस्तक देकर परेशान मत करना।
मुन्ना- जी साहब, मैं बाहर “डोंट डिस्टर्ब” की तख्ती लगा दूँगा और मैंनेजर को कह दूंगा कि जब आप बेल बजाओगे तभी कोई अन्दर आएगा। गुड इवनिंग साब।
इतना कहकर वो चला गया।
राजेश- लो चाय लो और बिस्किट ख़त्म कर दो।
राजेश बाथरूम में गया और बिना कपड़ों के यानि पूरा नंगा आ गया और उसका लौड़ा घड़ी के लोलक की तऱह लटक रहा था।
आते ही उसने झपट कर मेरी पैंट खोल दी।
राजेश- यार हरेश, साले तूने मेल के जरिये इतना उकसाया कि न पूछो।
मैं- अरे राजेश, रुक यार, मुझे जरा सेट होने दे।
राजेश- नहीं यार, तूने मुझे बहुत तड़पाया है साले ! एक बार तेरी नंगी तस्वीर देखी, तब से तेरे से गाण्ड मारना सीखना चाहता था। क्या मस्त लौड़ा है, क्या बड़े-बड़े गोटे हैं?
इतना कह कर उसने मेरा लौड़ा आधी पैंट उतारकर मुँह में ले लिया। वो बेकाबू होने लगा मैं भी नहीं सम्हाल पा रहा था। वो लौड़ा खींच-खींच कर चूसने लगा।
अब मैं भी बेकाबू हो रहा था मैंने उसे पलंग पर लेटने कहा और 69 की अवस्था में आकर वो मेरा और मैं उसका लौडा मुँह में लेकर खेलने लगे। देखते ही देखते उसका लौडा भी उफान पर आ गया। अब कुछ बात बनने लगी। मुझे बस उसका लौड़ा चूसना था। मैंने थोड़ी देर बाद उसे पलंग के किनारे बिठाया और उसका पूरा लौड़ा मुँह में ले लिया। उसकी गाण्ड को हाथों से पकड़ कर मुँह से लौड़े के साथ खेलने लगा। उसका लौड़ा झड़ जाए, उससे पहले मैंने मुँह हटा लिया, उसे पलंग के किनारे मेरी तरफ मुँह करके लेटने के लिए कहा, एक हाथ से उसकी गाण्ड में क्रीम लगा दी और उसकी दोनों टांगों को फैला कर अपने कंधों पर लेकर उसके लौड़े को धीरे धीरे पुचकारा। पाँच मिनट बाद मैंने अपने लौड़े पर क्रीम लगा कर उसकी गाण्ड में डाल दिया।
राजेश- यार हरेश, मैं तेरी बीवी हूँ, इस तरह प्यार से गाण्ड में डाल।
मैं- अरे पहली बार गाण्ड मरवाने में दर्द होगा और फिर लौड़े के अन्दर जाते ही तुम्हें बहुत मजा आएगा।
राजेश- दर्द चाहिए और ख़ुशी भी ! तुम मेरी बस गाण्ड मार दो।
मैं- राजेश, गाण्ड एकदम ढीली छोड़ो बिलकुल मक्खन की तरह ! हाँ अऽऽऽअह यह लो !
ऐसे कहते मैंने उसकी गाण्ड में लौड़ा पूरा डाल दिया और दोनों हाथों से उसकी छाती को दबाने लगा उसके चुचूक कड़क दाने बन गए। थोड़ी देर कुत्ते जैसा चोदने के बाद मैंने उसे पलंग पर अपनी तरफ मुँह करके लिटाया और फ़िर उसकी गाण्ड में डाल दिया और एक हाथ से उसके चुचूक को और दूसरे हाथ से उसके लौड़े को सहलाने लगा।
राजेश- हरेश, आह उह उह उह ! और अन्दर त़क डाल ! बना दे गाण्डू ! मुझे बहुत मजे लेने हैं ! लौड़े को बाहर निकाल ही मत ! बस चोद मुझे ! यार यही है, यही है मेरा सपना।
बस 15 मिनट उसे चोदने के बाद मैंने पूरा पानी छोड़ दिया और फिर मैंने उसे मेरी गाण्ड में डालने के लिए कहा।
उसने शराफत से चोदना चालू किया। पहले कुत्ते के जैसे, बाद में एक दूसरे की तरफ़ मुँह करके चुदवाया। साले का पानी छुटने का नाम नहीं ले रहा था। वो साला मेरी गाण्ड ढीली करके ही छोड़ने वाला था।
राजेश- ले साले ले ! ले ले ! बहुत तड़पाया तूने ! एक साल से मेल कर रहा था ! आज तो मैं पूरे मजे लूँगा। तू मेल में लिखता था ना कि देखूँ तेरे लौड़े में कितना दम है, तो ले !
सही में उसमें दो घोड़ों की ताकत थी जिसे मैं झेल नहीं पा रहा था पर मैं भी अपनी प्यास बुझाने को बेताब था तो मैंने उसे पूरा सहयोग दिया। आधे घंटे बाद उसने मेरी गाण्ड मार ही ली और पानी छोड़ दिया।
हम नंगे ही बैठे रहे फिर उसने लैपटॉप पर दूसरी मूवी चालू की। उसमें दोनों मर्द पहले मुँह पलट कर गाण्ड में लेकर चुदवा रहे थे, थोड़ी देर बाद लेटे-लेटे गाण्ड में डाल कर चोदने लगे थे और आखिर में माथे के बल गाण्ड ऊँची करके मरवाने लगे और बाहर लौड़ा निकाल कर पानी निकाल दिया।
राजेश- हरेश यार, यह गेम मेरे साथ तुम करो, बहुत मजा आएगा।
मैं- अरे अभी लौड़ा तैयार नहीं है !
राजेश- क्या बात करता है? ला, तेरे लौड़े को मुँह से चूस कर तैयार कर दूँ !
इतना कहते ही उसने लौड़े को मुँह में लिया, लेते ही लौड़े ने अपना दुबारा रंग दिखा दिया और राजेश ने बिना देर किये उसे मूवी दिखाए गेम की तरह ले लिया और तीनों तरीके से चुदवा लिया।
अब उसका शरीर थक चुका था। हमने स्नान किया और फिर कपड़े पहनकर बेल बजा कर रूम-बॉय को सामन ले जाने को कहा। हम दोनों थक चुके थे उस स्थिति में कोई भी सेक्सी औरत आती तो भी लौड़ा उठ नहीं पाता। हम दो घंटे एक दूसरे की बाहों में हाथ डाल कर मियां-बीवी की तरह सो गए। शाम के सात बजे हम उठे और फिर बाहर घूमने की योजना बनाने लगे।
यह थी मेरी एक दोस्त से एक अजीब प्रकार की मुलाक़ात। इस कहानी दूसरा भाग भी अवश्य पढ़िएगा कि बाहर हमने क्या किया।
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