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प्रेम गुरु और नीरू बेन को प्राप्त संदेशों पर आधारित प्रेषिका : स्लिम सीमा
‘हाँ और वो साली सुनीता भी ऐसे ही नखरे करती रहती है !’ ‘कौन? वो काम वाली बाई?’ ‘हाँ हाँ !… वही !’ ‘उसे क्या हुआ?’ ‘वो भी चूत तो मरवा लेती है पर… ! गाण्ड नहीं मारने देती… !’ ‘हाय रब्बा… कीहोजी गल्लां कर्दा ए?’ ‘सच कहता हूँ साली अपनी गाण्ड को ऐसे मटका कर चलती है जैसे सारी सड़क उसके पियो (बाप) दी ऐ !’ मेरी चूत तो उसकी बातों से पानी पानी हो चली थी, मैंने अपनी नाइटी के ऊपर से ही अपनी चूत की फांकों को मसलना चालू कर दिया।
वो कनखियों से मेरी ओर देख रहा था। ‘हम्म…?’ ‘उसकी मटकती गाण्ड बहुत ही जानमारू है… !’ ‘हम्म…?’ ‘वैसे एक बात बताओ?’ ‘हम्म…?’ ‘मैं सच कहता हूँ आप भी बहुत खूबसूरत हैं !’ ‘कैसे?’ ‘आपकी फिगर तो कमाल की है !’ ‘हम्म…और क्या-क्या कमाल का है?’ मैं उसका हौसला बढ़ाना चाहती थी, मेरी चूत में तो गंगा-जमना बहने लगी थी, मैं सोच रही थी कि अब फज़ूल बातों को छोड़ कर सीधे मुद्दे की बात करनी चाहिए।
‘वो .. वो आपके चूतड़… मेरा मतलब कमर बहुत पतली है!’ ‘कमर पतली होने से क्या होता है?’ ‘वो.. जी आपके चूतड़ बहुत गोल-मटोल और कातिलाना हैं !’ ‘अच्छा? और?’ ‘आपके चूचे भी बहुत खूबसूरत हैं !’ ‘तुम्हें पसंद हैं?’ ‘हाँ जी… मैं तो आपको रोज़ देखता रहता हूँ?’ ‘ओह.. कैसे..?’ ‘छत पर जब आप कपड़े सुखाने आती हैं तो मैं रोज़ देखता हूँ !’
‘तुम बड़े बदमाश हो…?’ ‘जी… आप इतनी खूबसूरत हैं… तो बार बार देखने का मन करता है !’ ‘हम्म… तो पहले क्यों नहीं बताया?’ ‘मैं डर रहा था !’ ‘क्यों?’ ‘कहीं आप बुरा ना मान जाएँ?’ ‘अगर बुरा ना मानू तो?’ ‘तो… तो…?’
उसका गला सूखने लगा था, उसकी कनपटियों से पसीना आने लगा था, मैंने देखा उसकी पैंट में उभार सा बनने लगा था। मैंने भी अपनी नाइटी के ऊपर से ही अपनी लाडो को फिर से मसलना चालू कर दिया, मेरी चूत में बिच्छू काटने लगे थे, बार-बार उसके लण्ड के ख़याल से ही मेरी लाडो पानी पानी हो गई थी, मेरा मन कर रहा था कि झट से इसकी पैंट की ज़िप खोल कर उसके लण्ड को निकाल कर अपनी चूत में डाल लूँ ! ‘क्या तुम इन खूबसूरत चूचों को देखना चाहोगे?’ ‘ओह.. हाँ नेकी और पूछ पूछ?’ ‘पर बस देखने ही दूँगी… और कुछ नहीं करने दूँगी?’ अब वो इतना भी फुद्दू भी नहीं था कि मेरा खुला इशारा ना समझता !
‘कोई गल नई मेरी सोह्नयो !’ कहते हुए उसने झट से मुझे अपनी बाहों में भर लिया और ज़ोर ज़ोर से मेरे होंठों को चूमने लगा।
मैंने अपना एक हाथ नीचे करके पैंट के ऊपर से ही उसके खड़े लण्ड को पकड़ लिया और उसे मसलने लगी, उसने अपने एक हाथ से मेरे स्तन दबाने चालू कर दिए और दूसरा हाथ मेरे नितंबों की खाई में फिराने लगा।
मेरी लाडो से रस निकल कर मेरी जांघों को भिगोने लगा था, मुझे लगा कि चूमा-चाटी के इन फज़ूल कामों को छोड़ कर सीधा ही ठोका-ठुकाई कर लेनी चाहिए।
मैंने उसे पास पड़े सोफे पर धकेल दिया और उसकी पैंट की जीप खोल दी, फिर कच्छे के अंदर हाथ डाल कर उसका लण्ड बाहर निकाल लिया।
मेरे अंदाज़े के मुताबिक उसका काले रंग का लण्ड 8 इंच लंबा और 2 इंच मोटा था. मैंने उसके टोपे की चमड़ी को नीचे किया तो उसका गुलाबी सुपारा ऐसे चमकने लगा जैसे कोई मशरूम हो !
मैंने झट से उसका सुपारा अपने मुँह में भर लिया, मैं उकड़ू बैठ गई और ज़ोर ज़ोर से उसके लण्ड को चूसने लगी। वो तो आ.. ओह… ब… भरजाई जी… एक मिनट… ओह… करता ही रह गया ! कहानी अगले भागों में जारी रहेगी। आपकी नीरू बेन (प्रेम गुरु की मैना) [email protected].com [email protected] 2053
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