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मैं : ना मौसी ना ! मेरी फ़ट जा गी ! तू मन्ने बख्श दे ! मन्नै नी लेणे मज़े !
डण्डे के चूत पर रगड़ने से मुझे मज़ा तो बहुत आ रहा था, मेरे चूतड़ बार बार अपने आप ही उछल उछल कर उसे अपने अन्दर समा लेने का यत्न कर रहे थे, मौसी की चूत मेरे मुंह के पास ही थी, मस्ती में मैं भी मौसी की चूत सहलाने लगी, उसमें उंगलियाँ घुसाने लगी तो मौसी के चूतड़ भी थिरकने लगे।
मौसी : एक दो सै मेरा के बणै ! पूरा पंजा बाड़ दे अन्दर !
सच में मौसी की चूत बहुत खुली थी।
मौसी ने अपने अंगूठे से और एक उंगली से मेरे चूत के फ़लक खोले और तेल में भीगे डण्डे को मेरी योनि में दबाने लगी।
डर के मारे मैंने अपनी जांघें भींच ली !
मौसी मेरे अन्दर डण्डे को ऐसे घुमा घुमा कर डाल रही थी जैसे कि बढ़ई बरमे से लकड़ी में छेद कर रहा हो ! मुझे लगा कि जैसे मेरे बदन में किसी ने चाकू उतार दिया हो ! मुझे असहनीय पीड़ा हुई और जैसे ही मैं चीखने को हुई, मौसी का एक हाथ मेरे मुख पर जम गया जिससे मेरी चीख मेरे गले में ही घुट कर रह गई। मैं समझ चुकी थी कि मेरा योनिपटल भंग हो चुका था और रक्त की एक अविरत धारा मैं अपनी गाण्ड पर से बहती महसूस कर रही थी।
अब तक मौसी धीरे धीरे आधे के अधिक डण्डा मेरी योनि की गहराइयों में उतार चुकी थी। मौसी मुझे होने वाली तकलीफ़ से बेपरवाह अपना काम किए जा रही थी।
डण्डे की मोटाई-लम्बाई को मैं अपने बदन के अन्दर स्पष्ट महसूस कर रही थी, डण्डे ने मेरी योनि को अपने आकार में फ़ैला कर अपना स्थान बना लिया था।
थोड़ी देर बाद मुझे लगा कि मेरा दर्द कम होने लगा है। शायद थोड़ा बहुत आनन्द का अनुभव भी होने लगा था। मौसी को भी मेरे आनन्द का आभास हो गया था शायद, तभी तो उसने अपना हाथ मेरे मुंह से हटा कर मेरे स्तनों पर रख लिया था।
अब मौसी मेरे स्तनों को बेदर्दी से मसलने लगी। उस लकड़ी के डण्डे को मौसी ने मेरी चूत में ऐसे छोड़ दिया जैसे कोई खूंटा गाड़ कर चला गया हो। मुझे लगने लगा कि आज तो मौसी ने जैसे पूरी दुनिया का दर्द मुझे ही देने की ठान ली हो। मेरी चूचियों को मौसी ऐसे मथ रही थी जैसे आटा गूंथ रही हो। मेरे चुचूकों को पकड़ कर ऐसे खींच रही थी जैसे उनमें से दूध निकालने की कोशिश कर रही हो।
कुछ देर बाद फ़िर मौसी का ध्यान डण्डे की तरफ़ गया तो वो उसे धीरे धीरे मेरी योनि में अन्दर-बाहर करने लगी। बीच बीच में लगभग पूरा डण्डा बाहर खींच कर फ़िर पूरा अन्दर घुसा देती तो मैं फ़िर से योनि में दर्द से कराह उठती। मौसी बार बार मुझे आवाज ना करने की हिदायत दे रही थी। जितनी बार मैंने मौसी को अपने दर्द का अहसास दिलाने की कोशिश की उतनी बार मौसी ने यही कहा- बस इबै होवैगो यो दर्द ! फ़ेर तो घणो मज्या यो आवेगो !
तभी अचानक मौसी ने पूरा डण्डा मेरी चूत से बाहर खींच लिया तो मैंने देखा कि डण्डा खून से लाल था। रक्त से सना डण्डा देख कर मैं घबरा गई और अपनी योनि की हालत का जायजा लेने के लिए सिर उठा कर देखने का प्रयत्न करने लगी लेकिन मेरी दृष्टि वहाँ तक पहुँच नहीं पा रही थी।
मौसी ने मेरे वस्ति-स्थल पर झुक कर अपनी एक उंगली और अंगूठे से मेरी योनि को फ़ैलाया और अन्दर झांकते हुए बोली- ले ! इबै तू कुंआरी कौन्ना रई ! फ़टगी तेरी ! पाड़ दी मन्नै तेरी या फ़ुद्दी !
मैं बड़ी मुश्किल से बोली- मौसी एक बार देखने तो दे !
के करैगी तू इब इन्नै देख कै ? चल दिखाई दयूं तन्नै ! देख लै तूं बी के किक्कर मु खोल्ले पडी !
मौसी अपने ट्रंक में से एक छोटा सा शीशा निकाल कर लाई और उसे मेरी योनि के सामने करके इधर उधर हिला कर मुझे मेरी फ़टी हुई योनि दिखाने का प्रयत्न करने लगी।
अपनी चूत की खस्ता हालत देख मुझे रोनी सी आ गई।
मौसी ने फ़िर से मेरी चूत में डण्डा डालने की कोशिश की तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और मना करने लगी।
इब के रोक्कै तूं मन्नै ! इब्जां ई ते मज़ा लेण का बखत होया !
कहते हुए मौसी ने मेरी चूत में सरका दिया उस डण्डे को और धीरे धीरे अन्दर-बाहर करने लगी।
मुझे भी मज़ा आने लगा। मैंने मौसी का हाथ पकड़ लिया और अपने आनन्द के अनुसार मौसी के हाथ की गति निर्धारित करने लगी।
मेरा मज़ा बढ़ता ही जा रहा था और एक बार तो ऐसा लगा कि मैं मर ही जाऊँगी इस आनन्द के सागर में डूब कर ! मेरी सांसें थम गई, मेरे चूतड़ अपने आप डण्डे के साथ-साथ उछलने लगे और फ़िर तो ऐसा लगा कि जैसे मैं बादलों में तैर रही हूँ, उड़ रही हूँ ! मेरी आंखें बद थी, मेरे होश खो गए थे, मुझे नहीं पता कि मैं कहाँ हूँ, किस दुनिया में हूँ।
यह था मेरे जीवन का प्रथम यौन चरमोत्कर्ष ! पहला पूर्ण यौन-आनन्द ! आनन्द की पराकाष्ठा !
कहानी का अगला भाग भी शीघ्र भेजूंगी ! प्रतीक्षा करें !
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