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प्रेषिका : गुड़िया
संपादक : मारवाड़ी लड़का
सभी पाठकों और गुरूजी को मेरा प्यार भरा प्रणाम। आप सभी के ख़त मिले और मुझे यह जान कर बड़ा अच्छा लगा कि आप सबको मेरी कहानी पसंद आई।
धन्यवाद आप सभी का। पहले की कहानी में आपने पढ़ा के कैसे मैं एक कच्ची कलि से फ़ूल बनी और कैसे काले ने मुझे संतुष्ट कर मुझे एक औरत होने का एहसास दिलाया।
जैसा कि मैंने वादा किया था मैं आप सबके सामने हाजिर हूँ मेरी कहानी का अगला भाग ले कर।
आप सभी तो जानते ही हैं कि कालू के साथ मेरे शारीरक संपर्क बन चुके थे और हम जब मौका मिलता मस्ती के सागर में डूब जाते थे। तो इसी चक्कर में एक बार कालू ने मुझे मोटर घर में पकड़ लिया और हम दोनों की गर्मी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। हमें कुछ नहीं मालूम था, बस उसका काला लौड़ा मेरी चूत को हलाल करने में लगा था।
जब हम अलग हो कर होश में आये तो सामने शंकर को देख हमारे चेहरे पर तोते उड़ने लगे। मैं सम्पूर्ण नंगी थी, एक भी कपड़ा तन पर नहीं था।
जल्दी से मैंने अपने हाथों से अपनी चूत को छुपाने की कोशिश की और जब मैंने अपनी सलवार खींच कर चूत को ढकने की कोशिश की तो मेरे मम्मे दिखने लगे।
शंकर बोला,”वाह मेम साहब ! इस कालू की पाँचों उँगलियाँ घी में रहती हैं।”
मैं सलवार सीधी कर पहनने लगी तो उसने मुझे रोक दिया।
मैंने उससे गुस्से में कहा,”शंकर ! जाओ यहाँ से।”
वह अपने लंड को अपने लुंगी के ऊपर ही मसलते हुए बोला,”हमें स्वाद नहीं लेने दोगी जवानी का गुड़िया रानी ?”
“मैं रंडी नहीं हूँ जो हर किसी से करवाऊँ!” मैं गुस्से में लाल हुए जा रही थी।
यह सुन कर वो मेरी बाहें पकड़ कर मुझे लगभग खींचते हुए बोला,”साली रंडी से कम भी नहीं है तू ! एक शादी शुदा नौकर के साथ रंगरलियाँ मानते वक़्त याद नहीं आया कि रंडी क्या होती है?”
कालू ने अपने कपड़े ठीक किये और धीरे से निकल गया। शंकर ने आगे बढ़ कर मुझे अपनी बाहों में दबोच लिया और पागलों की तरह मुझे चूमने लगा।
मैंने उसका विरोध करना चाह रही थी मगर मुझे अपने भेद का खुल जाने का डर था।
मेरे मम्मों को ऊपर से ही दबाते हुए वो बोला,”गुड़िया ! बचपन से देखा है तुझे ! बिल्कुल अपनी माँ पर गई है।”
“शंकर दिमाग मत खराब कर और मुझे छोड़ दे !” मैंने उससे विनती की।
मगर वो कहाँ मानने वाला था। उसने जल्दी से मुझे लिटाया और ज़बरदस्ती मुझे मसलने लगा।
वह मेरे मम्मे दबाने लगा और फिर उन्हें अपने मुँह में डालकर चूसने लगा। उसने अपनी लुंगी उतार कर अपना लौड़ा निकाला और मेरी जांघों में घुसाने लगा। उसने मेरी दोनों टांगें फैला दी और मेरी चूत पर थूक लगाया।
उसके लौड़े को अभी तक मैं देख भी नहीं पाई थी। जब उसने अपना लौड़ा मेरी चूत पर सटा कर एक झटका दिया तब मुझे पता चला कि उसका लौड़ा कितना तगड़ा है।
मैं छटपटाने लगी। कितना बड़ा और कितना मोटा लौड़ा होगा उसका यह सोच कर मेरी जान निकल रही थी।
उसने ना तो मेरी चूत चाटी और ना ही मेरे होंठ चूमे बस देसी लौंडे की तरह अपना काम निकाल रहा था वो। वो तो बस अपने लौड़े को चूत में डाल कर अपना काम निकाल रहा था, किला फतह करने की कला उसमें नहीं थी।
मेरे मुख से निकला,”निकालो अपने लौड़े को ! चूत फट रही है मेरी।”
उसने कहा,”अभी मजा आएगा कुछ देर सह ले मेरी जान।”
और सच में कुछ ही देर में मैं नीचे से खुद ही हिलने लगी और उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी।
वो खुश होते हुए बोला,”आया ना मजा साली !”
मैंने उससे कहा,”तुम बहुत गंदे हो शंकर। तुमने मुझे चोद दिया। मैं माँ को बता दूंगी यह सब।”
उसने अपने दांत दिखाते हुए कहा,”चल न, इकट्ठे चलते हैं तेरी माँ के पास ! मैंने बताऊंगा तेरी माँ को कि उसकी छोरी कालू के नीचे लेटी थी और उसे देख कर मेरा खड़ा हो गया ! अब तू ही बता कि मैं क्या करता.. मेरे सामने नन्ही मुन्नी सी गुड़िया नंगी लेटी थी और मैंने उसे पकड़ लिया। और जब अब पकड़ ही लिया था तो चोदना तो बनता ही है न !”
मुझे उसकी हरामीपने की बातें सुन कर शर्म आ रही थी मगर मुझे उसके धक्कों से मजा भी आ रहा था।
आह्ह्ह्ह …..आआह्ह्ह्ह……..हम दोनों की कमर एक साथ चल रही थी और हम दोनों आनन्द के सागर में मजे ले रहे थे।
थोड़ी देर बाद हम दोनों साथ साथ झड़े।
सच में शंकर का लौड़ा बड़ा मस्त निकला और मेरे तो दोनों हाथों में लड्डू आ गए।
कभी कालू के साथ तो कभी शंकर के साथ में मोटर घर में मजे कर रही थी।
रोज का नियम सा बन गया था यह। कभी कभी तो दोनों के एक साथ भी मजे लेती थी।
एक दिन कि बात है। मेरे फूफाजी आये हुए थे। किसी शादी के लिए बुआ जी और माँ को शहर ले जा कर उनको खरीदारी करवानी थी।
मैंने फूफाजी को खाना-वाना खिलाया और डिब्बे में खाना डाल कर मोटर घर की तरफ चल पड़ी मेरे कालू को खाना खिलाने।
कालू तो मेरी राह देख ही रहा था। मेरे पहुँचते ही उसने मुझे दबोच लिया। काफी दिनों के बाद हम मिले थे और शंकर अभी वहाँ नहीं था।
देखते ही देखते हम दोनों वहाँ लेट कर रंगरलियाँ मानाने लगे। उसने मुझे चूमते हुए मेरे कपड़ो के ऊपर से मेरे मम्मे दबाते हुए मेरी सलवार खोल दी।
उसका लौड़ा खड़ा था और मुझे मेरी टांगो के बीच में चुभ रहा था।
“कालू आज तो तेरा पप्पू बड़ा जल्दी खड़ा हो गया रे?”
“अरे यह तो पहले से ही खड़ा था ! चल इसे दो-चार चुप्पे नहीं लगाएगी?” उसने बड़ी ही बेसब्री से कहा।
मैंने नीचे झुक कर उसका लौड़ा मुँह में लिया और चूसने लगी।
“दोनों गेंदों को निगल कर चूस रे छिनाल !” उसने कहा।
कुछ ही देर में मेरी चूत जवाब देने लगी और मुझे रह पाना अब नामुमकिन हो रहा था।
“डाल दे न अपना मूसल मेरे चूत में ! हाय कितना तड़पा रहा है रे ठरकी ! देख न कैसे पनिया रही है मेरी मुनिया ..” मैंने उसके सामने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा।
कालू ने मुझे दबोच लिया और अपना हाथ नीचे ले जाकर निशाने पर तीर रख कर डाल दिया मेरी चूत में अपना लौड़ा।
मेरी बहुत खुश थी, आखिर बहुत दिनों बाद मुझे कालू का लौड़ा मिला था।
मैंने उससे कहा, “हाय रे कालू ! बड़े दिनों बाद तेरा लौड़ा मिला है रे ! आज तो जी भर के चोद ले अपनी गुड़िया को।”
वो जोश में आते हुए बोला,” साली झूठ बोलती है ! शंकर था न तेरे पास !”
“शंकर है तो सही, लेकिन उसमें तेरे जैसा जोश नहीं है रे मेरे कालू !” ऐसा मैंने उसे और जोश दिलाने के लिए कहा, मैं तो चाहती थी कि आज वो मेरी चूत को फाड़ कर तृप्त कर दे।
वो जोश में आकर मुझे चोदने लगा और दस मिनट के बाद हम शांत होकर एक तरफ लुढ़क गए।
तूफ़ान शांत हो चुका था और हम अपने कल्पनाओं के सागर में एक दूसरे का चुम्बन ले रहे थे। आज वो खास मूड में था ! चुदाई के बाद के चुम्बन मुझे और रोमांचित कर रहे थे।
करीब आधे घंटे के बाद हम सामान्य हुए और उसने कहा,”चल उठ कर सलवार पहन ले।”
उसने मेरी ब्रा का हुक लगाते हुए मुझे फिर से चूम लिया और मैंने भी बदले में उसे चूम कर उसका धन्यवाद अदा किया।
जब मैं अपनी सलवार ऊपर कर रही थी तो मुझे मोटर घर के बाहर एक साया दिखा। फिर अचानक ही किसी चीज़ के गिरने की आवाज आई।
मैं हड़बड़ा गई और बाहर जाकर देखा तो बाहर फूफाजी खड़े थे !
मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। मेरे चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी और मैं सर नीचे कर उनके सामने खड़ी हो गई।
वो बोले,”शर्म नाम की कोई चीज़ बची है या नहीं तेरे अन्दर?” वो मुझे डांट रहे थे और मैं सर झुका कर खड़ी थी।
उन्होंने कहा,” चल आज तू घर चल ! तेरी माँ और बुआ से तेरी खैर निकलवाता हूँ। खाना पहुँचाने आती है या यहाँ हर मजदूर से चुदवाने ?”
इतना कह कर वो निकल गए।
मेरी तो फटने लगी। मुझे पता था कि बुआ का हाथ बहुत भारी है और वो यह भी नहीं देखती कि कहाँ लग रही है।
मेरे चेहरे पर हवाइयां उड़ते देख कालू ने मुझे गले से लगते हुए कहा,”देख ! तेरे फूफा बहुत ही बड़े ठरकी हैं। इन्हें मैं बहुत पहले से जानता हूँ। तेरी चाची के साथ भी सम्बन्ध रहे हैं इसके ! तू बस घर जा कर संभाल इसको।
पाँव पकड़ते हुए लुंगी में मुँह घुसा देना, शांत हो जायेगा।”
मुझे गुस्सा आने लगा, मैंने कालू को डांटते हुए कहा,”क्या बक रहा है कमीने !”
कालू ने मुझे समझाया,”बक नहीं रहा हूँ गुड़िया रानी ! तुझे अपनी इज्जत बचने का तरीका बता रहा हूँ। तेरा क्या बिगड़ जायेगा? दो लेती थी एक और ले लेना !”
आगे क्या हुआ?
क्या मेरे फूफाजी मुझे चोदना चाहते थे ? या फिर वो ठरकी नहीं थे?
यह जानने के लिए इंतज़ार कीजिये इस कहानी के अंतिम भाग का।
तब तक मुझे अपनी राय भेजिए।
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