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लेखिका : श्रेया अहूजा
मैं आपकी चहेती लेखिका इस बार एक लड़की की आपबीती लेकर आपके सामने आई हूँ ! आजकल मैं एक ऍन.जी.ओ. में काम कर रही हूँ जो लड़कियों की मदद कर रहा है ! लड़की का नाम सुमन है जो और गाँव से आई है !
मैं : तो बताओ क्या हुआ था तुम्हारे साथ ?
सुमन : जी प्रताप नाम है उसका, वहाँ के मुखिया का बेटा है जो इसी शहर में पढ़ाई कर रहा है !
मैं : क्या किया उसने तुम्हारे साथ ?
सुमन : पिताजी ने मुखियाजी से कुछ उधार लिए थे पर दे नहीं पाए … मैं प्रताप को अच्छे से जानती थी जब वो गाँव आया तब उसने आश्वासन दिया कि क़र्ज़ माफ़ कर दिया जायेगा ! प्रताप बहुत नेक लड़का है मैडम !
मैं : उसने तुम्हें गर्भवती कर दिया फिर भी तुम सिफारिश कर रही हो … यानि जो हुआ तुम्हारी अपनी मर्ज़ी से हुआ?
सुमन : हाँ लेकिन मजबूरी थी पापा का क़र्ज़ … गरीबी ….
मैं : ओ के ! अब विस्तार से बताओ कि क्या हुआ तुम्हारे साथ ?
सुमन : मैं स्नातक की पढ़ाई कर रही थी और प्रताप आया हुआ था गाँव …..
प्रताप : अरे तू सुमन है न इतनी बड़ी हो गई …! ?
सुमन : हाँ मालिक लेकिन आप यहाँ …?
प्रताप : छुट्टी चल रही है ! और यह मालिक-मालिक क्या लगा रखी है? तुम तो मुझे भोला बोला करती थी?
सुमन : हाँ ! लेकिन आजकल कहाँ … आपको तो पता होगा माँ गुज़र जाने के बाद घर के हालात और ऊपर से पापा की बीमारी और क़र्ज़ मुखियाजी का …
प्रताप : ओह कितना क़र्ज़ है?
सुमन : यही कोई पचास हज़ार … आप अगर सिफारिश करें तो कम …! ?
प्रताप : कम अरे नहीं बाबा पापा किसी की बात नहीं मानते !
मैं प्रताप के सीने से लग गई ! पता नहीं क्या हुआ मुझे …! प्रताप ने मेरे आंसू पौंछे … कहा- रात को आना ! मैं तुम्हें पचास हज़ार दूंगा और सुबह पापा को दे देना ….
पर उस काली रात को मैं रंगे हाथों मुखियाजी से पकड़ी गई … मुखिया जी के लोग ने मुझे एक अँधेरी काल कोठरी में बंद कर दिया … सुबह सभा बुलाई गई … मुझ पर रंडी होने का इलज़ाम लगाया गया ….
मुखिया : देख भुवा तेरी बेटी रंडी है …. उसे ऐसी सजा मिलेगी …
पापा : नहीं मुखिया जी ! यह झूठ है …. बिटिया ऐसी नहीं है ….
गाँव की औरतें : रंडी को सबके सामने चोदो… गंदगी फैला रखी है बाप-बेटी ने
मुखिया : हाँ यही होगा ! बांध दो भुवा को और बुलाओ उस रांड को …
लोगों ने पापा को पेड़ से बांध दिया पर उनकी आँख खोले रखा ताकि वो मेरी इज्ज़त लुटते हुए देख सकें
मुखिया जी ने धीरे धीरे मेरे सारे कपड़े उतार दिए … मेरी जांघे कंपकंपा रही थी, वो उन्हें छू रहा था …. वो अपने हाथ से मेरे चूची मसल रहा था, बूढ़े को मज़ा तो आ रहा था … खटिया मंगवा गया और मुझे लेटा दिया गया …
मुखिया : बेटवा को बुलाओ
मैंने सोचा : शुक्र है ! वर्ना ये गन्दा बूढ़ा और उसके साथी एक एक करके चढ़ते … शायद मुखिया नामर्द हो चुका था पर हवस थी
प्रताप : पापा मैं ऐसा नहीं करूँगा …
मुखिया : अगर तूने ऐसा नहीं किया तो गाँव का हर मर्द इसे चोदेगा…
प्रताप मजबूर था जो किया मेरे लिए किया …
प्रताप खुद कपड़े खोल कर मेरे ऊपर चढ़ गया। सब आँखे फाड़ कर देख रहे थे … तालियाँ और सीटियाँ भी बज रही थी !
मैं : प्रताप मैं कुंवारी हूँ ! दर्द होगा ! मेरा ख्याल करना !
प्रताप : पता है ! धीरे से करूँगा … मत डरो ! आंखें बंद कर लो !
मैंने खुद अपनी जांघें फैलाई ! लंड अन्दर जा रहा था … अच्छा लग रहा था कि प्रताप चोद रहा था और बुरा कि गाँव के हर मर्द ने मुझे नंगा देखा …. प्रताप ने घस्से मारने शुरू किये !
मैं : आह आह अह धीरे अह अह
मुखिया : देखा आपने कैसी बेशर्म लौंडी है … इसके बाद भुवा खुद अपनी बेटी को चोदेगा … फिर ले आना इसे हवेली … रखैल बना कर रखूँगा …
झुण्ड में लोग मुझे चुदता हुआ देखने आये थे … सब पापा को मुझे दिखवा रहे थे … प्रताप का झड़ ही नहीं रहा था
अचानक प्रताप निढाल हो गया ! उसका वीर्य मेरे अन्दर चला गया … जब उसने लंड निकाला तब मैं खून-खून थी …
एक औरत : अरी, यह तो कुंवारी थी … फिर रांड किसने कहा? मुखिया जी आपका फैसला गलत था !
कुछ लोग बगल गाँव से आ गए जिन्होंने मुझे कपड़े दिए …बवाल मच गया !
लोग : हाँ मुखिया जी ! आपने गलत किया ! इसकी सजा आपको मिलेगी …
जो लोग मेरी बर्बादी पर हंस रहे थे, उन्हीं लोगों ने मुखिया के लंड पर तेज़ाब डाल दिया, प्रताप जान बचाता हुआ शहर आ गया।
श्रेया : अब क्या चाहती हो?
सुमन : बस अपनी अमानत प्रताप जी को सौंप कर कहीं दूर चले जाऊंगी !
तभी प्रताप आ गया …
प्रताप : कहीं जाने की जरुरत नहीं है तुम्हें सुमन … अखबार में तुम्हारे बारे पढ़कर मैं यहाँ आ गया … हम एक साथ रहेंगे …
पापा की गलती की सजा तुम्हें क्यूँ … हम आज ही शादी कर लेंगे !
सुमन प्रताप से लिपट कर रोने लगी ….
देखा दोस्तो, जब तक प्रताप जैसे नेक इंसान इस धरती पर हैं .. महिलाओं पर कोई अत्याचार नहीं होगा !! कोई अन्याय नहीं होगा ….
कैसा लगा यह किस्सा?
… अगले किस्से तक नमस्ते !!
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