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प्रेषक : सुशील कुमार शर्मा
झंडाराम अभी तक अलमारी की आड़ में छुपा सब कुछ बड़े ध्यान से देख रहा था और सोच रहा था कि कब ठन्डे अपना काम ख़त्म करे और फिर उसकी बारी आये। उसे ठन्डे पर अब क्रोध आने लगा था कि वह क्यों फ़ालतू की बातों में इतना वक्त बर्बाद कर रहा था। जल्दी से पेल-पाल कर हटे वहाँ से। उसकी पैन्ट खिसककर घुटनों से नीचे आ गिरी था और उसने अपना बेलनाकार शरीर का कोई हिस्सा बाहर निकल रखा था जिसे वह हाथ फेर कर शांत करने का प्रयास कर रहा था।
इधर ठन्डे का भी बुरा हाल था। उसने दुल्हन की आँखों से उसके हाथ हटाये और बोला,” देखो जी, अब हमें कतई बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है। अभी तक तुम अपनी आँखें बंद किये पड़ी हो। अब तो तुम्हें हमारा भी देखना पड़ेगा। आँखें खोलो और इधर देखो हमारे इस हथियार को, जो अभी कुछ ही देर में तुम्हारी इस सुरंग में अन्दर घुसने वाला है। फिर यह न कहना कि मुझे तुमने बताया ही नहीं।”दुल्हन ने कनखियों से ठन्डे के नग्न शरीर की ओर देखा तो देखती ही रह गई। करीबन आठ-दस इंच का मोटा बेलन सा ठन्डे का हथियार देख कर दुल्हन मन-मन काँप उठी, किन्तु बोली कुछ भी नहीं और एक टक उसी को निहारती रही।
ठन्डे ने चुस्की ली,”क्यों, पसंद आया न हमारा यह मोटा, लम्ब-तगड़ा सा हथियार? अब से इस पर तुम्हारा पूरा अधिकार है। तुम्हें ही इसकी हर इच्छा पूरी करनी होगी। ये जो-जो मांगे देती जाना।” दुल्हन चिहुंक उठी,” यह भी कुछ मांगता है क्या?”
“हाँ, यह सचमुच मांगता है….अच्छा इसे पकड़ कर धीरे-धीरे सहलाकर इससे पूछो तो बता देगा कि इसे क्या चाहिए….” ऐसा कहकर ठन्डे ने अपना हथियार दुल्हन के हाथों में थमा दिया।
दुल्हन ने डरते-डरते उसे थामा और उसे सहलाने का प्रयास किया कि वह फनफना उठा, जैसे कोई सांप फुंकार उठा हो। पर दुल्हन ने जरा भी हिम्मत न हारी और उसे आहिस्ता-आहिस्ता सहलाने लगी। दुल्हन को भी अब मज़ा आने लगा था वह सारा डर भूल कर उसे सहलाने में लगी थी।
ठन्डे ने दुल्हन से अपनी दोनों जांघें फैलाकर चित्त लेट जाने को कहा और फिर उसकी जाँघों के बीच में आ बैठा। ठन्डे ने अपने हथियार को धीरे से उसकी दोनों जाँघों के बीच में टिका दिया और उसे अंदर घुसेड़ने का प्रयत्न करने लगा।
दुल्हन की साँसें तेज चलने लगीं। उसका अंग-अंग एक विचित्र सी सिहरन से फड़कने लगा और वह उत्तेजना की पराकाष्ठा को छूने लगी। अब वह इतनी उत्तेजित हो उठी थी कि ठन्डे के क्रिया-कलापों का भी विरोध नहीं कर पा रही थी। अब उसे बस इन्तजार था तो केवल इस बात का कि देखें ठन्डे का हथियार जिसे उसने अपनी दोनों जाँघों के बीच दबा रखा था, उसकी सुरंग में जा कर क्या-क्या गुल खिलाने वाला है। यह तो वह भी जान चुकी थी कि ठन्डे अब मानने वाला तो था नहीं, उसका तन-तनाया हुआ वह मोटा, लम्बा हथियार अब उसके अन्दर जाकर ही दम लेगा। अत: दुल्हन ने आतुरता से अपनी दोनों जाँघों को, वह जितना फैला और चौड़ा कर सकती थी उसने कर दिया ताकि ठन्डे का हथियार आराम से उसकी सुरंग में समा सके। हालांकि यह दुल्हन का पहला-पहला मौका था। इससे पूर्व उसे किसी ने छुआ तक नहीं था।
वह जब फिल्मों में सुहागरात के दृश्य देखती थी तो उसका दिल कुछ अजीब सा हो जाता था। परन्तु आज उसे इतना बुरा भी नहीं लग रहा था। उसकी आँखें हल्की सी मुंदती जा रहीं थीं। इसी बीच ठन्डे ने अपना तनतनाया हुआ डंडा दुल्हन की दोनों जाँघों के बीच की खाली जगह में घुसेड़ दिया। एक ही झटके में पूरा का पूरा हथियार सुरंग के अन्दर जा घुसा जिससे सुरंग में भारी हलचल मच गई।दुल्हन को लगा कि किसी ने उसके अन्दर लोहे का गर्म-गर्म बेलन पूरी ताक़त से ठोक दिया हो, वह दर्द से तड़प उठी और ठन्डे के डंडे को हाथों से बाहर निकालने की कोशिश करने लगी। मगर ठन्डे था कि जोरों से धक्के पे धक्का मारे जा रहा था।
दुल्हन की सुरंग से खून का फव्वारा फूट पड़ा। ठन्डे ने लोहे के बेलन जैसे हथियार से दुल्हन की सुरंग को फाड़ कर रख दिया था। वह बराबर सिसकियाँ भरती हुई दर्द से छटपटा रही थी। लेकिन ठन्डे था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था। करीब आधा घंटे की इस पेलम-पेल में ठन्डे कुछ ठंडा पड़ा और अंत में उसने ढेर सारा गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ दुल्हन की फटी सुरंग में उड़ेल दिया और उसके ऊपर ही निढाल सा हो कर लुढ़क गया।
दुल्हन अभी भी बेजान सी पड़ी थी पर अब उसका दर्द कम हो चुका था। एक नजर उसने ठन्डे के डंडे पर डाली जो सिकुड़ कर अपने पहले के आकार से घट कर आधा रह गया था। थोड़ी देर बाद ठन्डे उठा और बाथरूम की ओर चला गया। ज्यों ही ठन्डे बाथरूम में गया कि झंडे को मौका मिलगया और उसने लपक कर ठन्डे की जगह ले ली। दुल्हन को शक हो पाता इससे पूर्व ही झंडे ने अपनी पोजीशन ले ली और दुल्हन के नग्न बदन से चिपट कर सोने का बहाना करने लगा। दुल्हन फिर से गरमा गई। उसे इस मिलन में दर्द तो हुआ लेकिन उसे बाद में बड़ा अच्छा लगा।
झंडे बोला,”रानी, आज हम जी भर के तुम्हारी नंगी देह से खेलेंगे। तुम्हारी इसकी (उसने योनि पर हाथ सटाते हुए) आज एक-एक परत खोल कर देखेंगे।”
ऐसा कहकर उसने योनि को सहलाना शुरू कर दिया। अब दुल्हन शर्माने के बजाए उसे अपनी योनि को दिखाने में झंडे का सहयोग कर रही थी। बीच-बीच में वह झंडे के लिंग को भी सहलाती जा रही थी। दोनों ने एक-दूजे के गुप्तांगों से जी भर के खेला।
इसी बीच झंडे बोला,”रानी, एक काम क्यों न करें। आओ, हम एक-दूसरे के अंगों का चुम्बन लें। तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है?”
दुल्हन कुछ न बोली। झंडे ने आगे बढ़ कर अपना लिंग दुल्हन के होटों से लगा दिया और बोला,” मेरी जान, इसे अपनी जीभ से गीला करो। देखो फिर कितना मज़ा आएगा। फिर मैं भी तुम्हारी योनि को चाट-चाट कर तुम्हें पूरा मज़ा दूंगा। राम कसम ! ऐसा मज़ा आएगा जिसे जिंदगी भर न भूल पाओगी।”
दुल्हन ने अपना मुँह धीरे से खोल कर झंडे के लिंग पर अपनी जीभ फिराई । सचमुच उसे कुछ अच्छा सा लगा। फिर तो उसने झंडे का सारा का सारा लिंग अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी। उत्तेजना-वश उसके समूचे शरीर में कंपकंपी दौड़ गई। वह अब काफी गरमा गई थी। उसे नहीं पाता था कि पत्नी पति का लिंग मुँह में लेकर चूसती होगी। आज पहली बार उसे इस नई बात का पता चला। झंडे भी काफी उत्तेजित था। लगभग आधे घंटे की चूमा-चाटी के बाद झंडे का वीर्य निकलने को हो गया। उसने कहा,”मेरी जान, मेरा वीर्य अब निकलने वाला है। कहो तो तुम्हारे मुँह में ही झड़ जाऊं?” दुल्हन ने पूछा,”इससे कोई नुक्सान तो नहीं होगा…?”
“नहीं, बिलकुल नहीं। यह तो औरत को ताक़त देता है…”
दुल्हन बोली, “तो चलो झड़ जाओ…”
झंडे ने कस-कस कर दस-पंद्रह जोरदार धक्के लगाये और उसके मुँह में ढेर सारा वीर्य उड़ेल दिया। दुल्हन ने सारा का सारा वीर्य गटक लिया। झंडे का लिंग भी पहले की अपेक्षा कुछ सिकुड़ गया था। दुल्हन ने हाथ से पकड़ कर देखा और बोली,”अरे ये तो सिकुड़ कर कितना छोटा हो गया। ऐसा क्यों ?”
झंडे बोला, आदमी जब झड़ जाता है तो उसका लिंग ऐसे ही सिकुड़ कर छोटा पड़ जाता है। हाँ, अगर औरत चाहे तो उसे फिर से अपने मुँह में डाल कर चूसे तो लिंग फिर बड़े आकार में आ जाता है।” “सच? फिर करें इसको बड़ा…..?”
“हाँ, हाँ, क्यों नहीं.. यह भी आजमाकर देखो मेरी जान, मेरे दिल की रानी….”
दुल्हन ने पुन: झंडे के लिंग को अपने मुँह में लिया और धीरे-धीरे अपनी जीभ से चाटने लगी। सचमुच झंडे ने ठीक कहा था। लिंग फिर से तनतना गया और किसी सांप की तरह फुंकार उठा।
झंडे बोला,”इस बार इस नाग देवता को अपनी गुफा में जाने दो…देखो कैसे-कैसे रंग दिखाएगा यह..। चलो जल्दी अपनी जांघें फैलाओ…..”
दुल्हन ने किसी आज्ञाकारी पत्नी की भांति अपनी दोनों जांघें छितराकर फैला दीं। झंडे ने अपना आठ इंच लम्बा लिंग दुल्हन के योनी-द्वार पर टिका दिया…..और जब उसने कस कर एक जोरों का धक्का मारा तो दुल्हन की चीख ही निकल पड़ी। इस बार उसे दर्द तो हुआ लेकिन जो दर्द हुआ वह इस बार के सम्भोग के आनंद के आगे कुछ भी नहीं था। उसने ख़ुशी से किलकारी भरते हुए झंडे के गले में अपनी दोनों बाँहें डाल दी और अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर सम्भोग का पूरा-पूरा मज़ा लेने लगी। उसकी सिसकियाँ फूट पड़ीं….” खूब जोरों से…और तेज …आह..मेरी मैया..मर गई मैं तो….आज मेरी फट कर रहेगी…..मेरे राजा..। आज इसे फाड़ ही डालो..। जी भर के फाड़…दो..। मुझे .। और जोरों से फाड़ो…देखो रुकना नहीं ….अपना इंजन पटरी से उतरने मत देना….” दुल्हन किसी बेशर्म वेश्या की तरह गन्दी-गन्दी बातें बके जा रही थी।
झंडे ने और भी जोरदार धक्के मारने शुरू कर दिए, बोला,”ले धक्के गिन मेरी जान, पूरे-पूरे सौ धक्के मारूंगा। …..”
झंडे खुद ही धक्कों को गिनता भी जा रहा था। और वास्तव में उसने कर ही दिखाया। पूरे सौ धक्के मार कर भी वह अधिक नहीं थका था। एक सौ दस धक्कों के बाद उसने दुल्हन का गर्भस्थल अपने गर्म-गर्म वीर्य से भर दिया। कुछ देर तक दोनों ही लोग खामोश पड़े रहे। अगले ही पल झंडे के हाथ पुन: दुल्हन के शरीर से खेल रहे थे। दुल्हन बिलकुल बेजान गुड़िया बनी चुपचाप अपने नग्न बदन पर झंडे के हाथों का आनंद ले रही थी। वह तो चाहती ही थी कि झंडे सारी रात उसके निर्वसन शरीर से खेलता रहे। वह भी अब उसके लिंग को सहला-सहला कर मज़े ले रही थी।
झंडे ने कहा,”रानी, एक काम और रह गया। ..आओ उसे भी पूरा कर डालें…”
“कौन सा काम ?” दुल्हन ने पूछा।
तो झंडे ने बताया कि अब उन्हें गुदा-मैथुन का मज़ा लेना चाहिए।
यह क्या होता है? दुल्हन के पूछने पर झंडे ने बताया कि इस खेल में पति अपनी पत्नी की गुदा में लिंग डालता है और फिर उसे भी योनि की भांति ही चोदता है। इस खेल में औरत को बड़ा ही आनंद आता है।
और तब गुदा-मैथुन का खेल खेला गया जिसमें दुल्हन को काफी तकलीफ़ झेलनी पड़ी। लगभग आधे घंटे के इस खेल के दौरान दुल्हन की गुदा भी फट सी गई थी। किन्तु दुल्हन एक बार फिर से अपनी योनि में झंडे का लिंग डलवाने की तमन्ना कर रही थी। अत: वह बार-बार झंडे के लिंग को पकड़ कर सहलाने लगती और तब उसका लिंग फिर से तनतना जाता।
झंडे बोला,”अब यार सोने दो हमें, खुद भी सो जाओ, सुबह जल्दी उठना भी तो है।”
झंडे ने घडी पर एक नज़र डाली। पूरे दो बज रहे थे। दुल्हन को नीद नहीं आ रही थी। वह बोली, ” खुद का मन भर गया तो नीद आने लगी जनाब को। हमारा क्या, हमारी तो जैसे कोई इच्छा ही नहीं….”
झंडे बोला,”क्यों, क्या अभी भी कोई कसर बाक़ी है जिसे पूरी करना है…। सारा काम तो कर डाला। देखो, मुँह में तुम्हारे घुसेड़ दिया, पिछले छेद में तुम्हारे घुसेड़ दिया। योनि तुम्हारी फाड़ डाली, अब कौन सी जगह है खाली, मैं जहाँ करूंगा…”
दुल्हन झंडे का हाथ पकड़ कर अपनी योनि पर ले गई और बोली,”तुम यहाँ करोगे, हाँ, हाँ ! तुम यहाँ करोगे….”
“क्या मुसीबत है यार..। अच्छी शादी की । मैं तो एक रात में ही परेशान हो गया….” झंडे बड़बड़ाते हुए उठ बैठा। दिखाओ, किसमें करना है..?
दुल्हन ने अपनी दोनों जाघें फैला दीं और उन्हें चीर कर दिखाती हुई बोली, देखो, तुमने मुझमें इतनी आग लगा दी है कि जो बुझाये नहीं बुझ रही है। बस एक बार डाल दो अपना यह मोटा सा मूसल मेरे अन्दर…”
झंडे ने चुस्की ली,” किसी और को बुलाऊं जो अच्छी तरह से तुम्हारी चूत को चित्तोड़गढ़ का किला बना डाले?”
और भी है कोई यहाँ तुम्हारे सिवा? दुल्हन का मत्था ठनका।”
“हाँ, मेरा छोटा भाई है, सबसे पहले तो उसी ने तुम्हारी बजाई है….” दुल्हन यह सुन कर हक्का-भक्का रह गई।
उसने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। इस बीच ठंडा राम बाथरूम से बाहर आ गया। उसने पूछा,”क्या हुआ भाभी जी? आप इस तरह क्यों चिल्ला रहीं हैं?”
सचमुच एक नंग-धड़ंग व्यक्ति सामने आ खड़ा हुआ।
“कौन हो तुम…? तुम अन्दर कैसे आये ? ” दुल्हन के प्रश्न पर दोनों भाई जोरों से हंस पड़े।
कहानी आगे जारी रहेगी।
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