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मैंने ओढ़नी उतार फेंकी, पजामा निकाल कर उसकी बगल में लेट गया। वो इतनी उतावली हो गई कि चोली-घाघरी निकाली ही नहीं फटाफट घाघरा ऊपर उठाकर जांघें चौड़ी कर मुझे ऊपर खींच लिया।
यूँ ही मेरे कूल्हे हिल पड़े थे और मेरा आठ इंच लंबा और ढाई इंच मोटा लण्ड अंधे की लकड़ी की तरह इधर उधर सर टकरा रहा था, कहीं जा नहीं पा रहा था। उसने हमारे बदन के बीच हाथ डाला और लण्ड को पकड़ कर अपनी भोंस पर टिका लिया। मेरे कूल्हे हिलते थे और लण्ड चूत का मुँह खोजता था। मेरे आठ दस धक्के ख़ाली गए, हर बार लण्ड फिसल जाता था, उसे चूत का मुँह मिला नहीं।
मुझे लगा कि मैं चोदे बिना ही झड़ जाने वाला हूँ। लण्ड का अग्रभाग और बसंती की भोंस दोनों कामरस से तर-बतर हो गए थे। मेरी नाकामयाबी पर बसंती हंस पड़ी। उसने फिर से लण्ड पकड़ा और चूत के मुँह पर रख कर अपने चूतड़ ऐसे उठाए कि आधा लण्ड वैसे ही चूत में घुस गया।
तुरंत ही मैंने एक धक्का जो मारा तो पूरा का पूरा लण्ड उसकी योनि में समा गया। लण्ड की टोपी खिंच गई और चिकना सुपारा चूत की दीवालों ने कस कर पकड़ लिया। मुझे इतना मजा आ रहा था कि मैं रुक नहीं सका। आप से आप मेरे कूल्हे झटके देने लगे और मेरा लण्ड अंदर-बाहर होते हुए बसंती की चूत को चोदने लगा। बसंती भी चूतड़ हिला-हिला कर लण्ड लेने लगी और बोली- ज़रा धीरे चोद, वरना जल्दी झड़ जाएगा।
मैंने कहा- में नहीं चोद रहा, मेरा लण्ड चोद रहा है और इस वक़्त मेरी सुनता नहीं है।
मार डालोगे आज मुझे! कहते हुए उसने चूतड़ घुमाए और चूत से लण्ड दबोचा। दोनों स्तनों को पकड़ कर मुँह से मुँह चिपका कर मैं बसंती को चोदते चला गया।
धक्कों की रफ़्तार मैं रोक नहीं पाया। कुछ बीस-पच्चीस झटकों बाद अचानक मेरे बदन में आनन्द का दरिया उमड़ पड़ा। मेरी आँखें ज़ोर से मुंद गई, मुँह से लार निकल पड़ी, हाथ पाँव अकड़ गए और सारे बदन पर रोएँ खड़े हो गए, लण्ड चूत की गहराई में ऐसा घुसा कि बाहर निकलने का नाम लेता ना था। लण्ड में से गरमा गरम वीर्य की ना जाने कितनी पिचकारियाँ छुटी, हर पिचकारी के साथ बदन में झुरझुरी फैल गई। थोड़ी देर मैं होश खो बैठा।
जब होश आया तब मैंने देखा की बसंती की टाँगें मेरी कमर के आस-पास और बाहें गर्दन के आसपास जमी हुई थी। मेरा लण्ड अभी भी तना हुआ था और उसकी चूत फट फट फटके मार रही थी। आगे क्या करना है वो मैं जानता नहीं था लेकिन लण्ड में अभी गुदगुदी हो रही थी। बसंती ने मुझे रिहा किया तो मैं लण्ड निकाल कर बसन्ती के ऊपर से उतरा।
बाप रे! वो बोली- इतनी अच्छी चुदाई आज कई दिनों के बाद हुई। मैंने तुझे ठीक से चोदा? बहुत अच्छी तरह से!
हम अभी पलंग पर लेटे थे। मैंने उसके स्तन पर हाथ रखा और दबाया। पतले रेशमी कपड़े की चोली आर पार उसके कड़े चुचूक मैंने मसले। उसने मेरा लण्ड टटोला और खड़ा पाकर बोली- अरे वाह, यह तो अभी भी तैयार है! कितना लंबा और मोटा है मंगल, जा तो, इसे धो के आ।
मैं बाथरूम में गया, पेशाब किया और लण्ड धोया। वापस आकर मैंने कहा- बसंती, मुझे तेरे स्तन और चूत दिखा। मैंने अब तक किसी की देखी नहीं है।
उसने चोली घाघरी निकाल दी। मैंने पहले बताया था कि बसंती कोई इतनी ख़ूबसूरत नहीं थी। पाँच फ़ीट दो इंच की उँचाई के साथ पचास किलो वज़न होगा। रंग सांवला, चहेरा गोल, आँखें और बाल काले। नितंब भारी और चिकने। सबसे अच्छे थे उसके स्तन। बड़े-बड़े गोल-गोल स्तन सीने पर ऊपरी भाग पर लगे हुए थे, मेरी हथेलियों में समाते नहीं थे। दो इंच के एरेयोला और छोटे छोटे काले रंग के चुचूक थे। चोली निकलते ही मैंने दोनों स्तनों को पकड़ लिया, सहलाया, दबोचा और मसला।
उस रात बसंती ने मुझे अपने बदन के बारे में यानि लड़की के बदन के बारे में पूरा पाठ पढ़ाया। टांगें पूरी फ़ैला कर भोंस दिखाई, बड़े होंठ, छोटे होंठ, भगनासा, योनि, मूत्र-द्वार सब दिखाया। मेरी दो ऊँगलियाँ चूत में डलवा के चूत की गहराई भी दिखाई, अपना जि-स्पॉट भी दिखाया। वो बोली- यह जो भगनासा है वो मर्द के लण्ड बराबर होती है, चोदते वक़्त यह भी लण्ड के माफ़िक कड़ी हो जाती है। दूसरे, तूने चूत की दिवालें देखी? कैसी करकरी है? लण्ड जब चोदता है तब ये करकरी दीवालों के साथ घिसता है और बहुत मजा आता है। हाय, लेकिन बच्चे का जन्म के बाद ये दिवालें चिकनी हो जाती है चूत चौड़ी हो जाती है और चूत की पकड़ कम हो जाती है।
मुझे लेटा कर वो बगल में बैठ गई।
मेरा लण्ड ठोड़ा सा नर्म होने चला था, उसने मेरे लण्ड को मुट्ठी में लिया, टोपी खींच कर मटका खुला किया और जीभ से चाटा। तुरंत लण्ड ने ठुमका लगाया और तैयार हो गया।
मैं देखता रहा और उसने लण्ड मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मुँह में जो हिस्सा था उस पर वो जीभ फ़िरा रही थी, जो बाहर था उसे मुट्ठी में लिए मुठ मार रही थी। दूसरे हाथ से मेरे वृषण टटोलती थी। मेरे हाथ उसकी पीठ सहला रहे थे।
मैंने हस्त-मैथुन का मजा लिया था, आज एक बार चूत चोने का मजा भी लिया। इन दोनों से अलग किस्म का मजा आ रहा था लण्ड चूसवाने में। वो भी जल्दी से उत्तेजित हो चली थी। उसके थूक से लड़बड़ लण्ड को मुँह से निकाल कर वो मेरी जांघों पर बैठ गई, अपनी जांघें चौड़ी करके भोंस को लण्ड पर टिकाया। लण्ड का मटका योनि के मुख में फँसा ही था कि बसन्ती ने नितंब नीचे करके पूरा लण्ड योनि में ले लिया। उसके चूतड़ मेरी जांघों से जुड़ गए।
‘उहहहहह! मजा आ गया। मंगल, जवाब नहीं तेरे लण्ड का। जितना मीठा मुँह में लगता है इतना ही चूत में भी मीठा लगता है!
कहते हुए उसने नितंब गोल घुमाए और ऊपर नीचे कर के लण्ड को अंदर-बाहर करने लगी। आठ दस धक्के मारते ही वो तक गई और ढल पड़ी।
मैंने उसे बाहों में लिया और घूम कर उसके ऊपर आ गया। उसने टाँगें पसारी और पाँव उठा लिए। अवस्था बदलते मेरा लण्ड पूरा योनि की गहराई में उतर गया। उसकी योनि फट फट करने लगी।
सिखाए बिना मैंने आधा लण्ड बाहर खींचा, ज़रा रुका और एक ज़ोरदार धक्के के साथ चूत में घुसेड़ दिया। मेरे वृषण बस्नती की गांड से टकराए। पूरा लण्ड योनि में उतर गया। ऐसे पाँच-सात धक्के मारे। बसंती का बदन हिल पड़ा, वो बोली- ऐसे, ऐसे, मंगल, ऐसे ही चोदो मुझे! मारो मेरी भोंस को और फाड़ दो मेरी चूत को!
भगवान ने लण्ड क्या बनाया है चूत मारने के लिए कठोर और चिकना! भोंस क्या बनाई है मार खाने के लिए गद्दी जैसे बड़े होंठों के साथ। जवाब नहीं उनका।
मैंने बसंती का कहा माना। फ़्री स्टाईल से ठपाठप मैं उसको चोदने लगा। दस पंद्रह धक्कों में वो झड़ पड़ी। मैंने उसे चोदना चालू रखा। उसने अपनी उंगली से अपनी भगनासा को मसला और दूसरी बार झड़ गई।
उसकी योनि में इतनी ज़ोर से संकुचन हुए कि मेरा लण्ड दब गया, आते जाते लण्ड की टोपी ऊपर नीचे होती चली और मटका और तन कर फूल गया। मेरे से अब ज़्यादा बरदाश्त नहीं हो सका। चूत की गहराई में लण्ड दबाए हुए मैं ज़ोर से झड़ गया। वीर्य की चार-पाँच पिचकारियाँ छुटी और मेरे सारे बदन में झुरझुरी फैल गई। मैं ढल गया।
आगे क्या बताऊँ? उस रात के बाद रोज़ बसंती चली आती थी। हमें आधा एक घंटा समय मिलता था जब हम जम कर चुदाई करते थे। उसने मुझे कई तरीके सिखाए और आसन सिखाए। मैंने सोचा था कि कम से कम एक महीना तक बसंती को चोदने का लुत्फ़ मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक हफ़्ते में ही वो ससुराल वापस चली गई।
इसके बाद क्या हुआ? यह जानने के लिए पढ़िए शेष हिंदी सेक्सी स्टोरी अगले भाग में! [email protected]
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