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(प्रेम गुरु द्वारा संशोधित एवं संपादित)
घर की मौज हर किसी को नसीब नहीं होती पर शायद मैं इस मामले में खुशनसीब था जो मुझे वो सब मिला जो हर घर में हर किसी को नहीं मिलता। तब मैं गाँव में रहता था। दसवीं तक पढाई कर चुका था पर गाँव में दस से आगे का स्कूल नहीं था सो आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना पड़ा। शहर गाँव से करीब तीस किलोमीटर था। इसलिए घर वालों ने फैसला किया कि शहर में ही कमरा ले लिया जाए नहीं तो आने जाने में बहुत समय खराब होगा। मैं शहर में कमरा ढूंढने लगा। पर जब तक कमरा मिला तब तक जिंदगी में उथल पुथल हो गई।
मैं राज मुझे तो जानते ही हो आप लोग। मैं गाँव का हट्टा कट्टा नौजवान, कद 5 फुट 11 इंच, रंग गोरा, जिम तो नहीं जाता पर अपने शरीर का मैं पूरा ध्यान रखता हूँ। घर में माँ, पिता जी, दो बहनें, एक मुझ से एक साल छोटी, दूसरी तीन साल छोटी। गाँव में ज्यादातर संयुक्त परिवार होते हैं तो दादी और चाचा जी भी हमारे साथ ही रहते थे। चाचा करीब 25 साल के थे। कुछ दिनों के बाद ही उनकी शादी होने वाली थी। एक बुआ थी जिसकी दो साल पहले शादी हो चुकी थी।
अगर चरित्र की बात करें तो मेरे परिवार में सभी शरीफ थे। कभी भी किसी के बारे में मैंने घर या बाहर कोई गलत बात नहीं सुनी थी। मेरे मन में भी कभी परिवार के किसी सदस्य के बारे में कभी कोई गंदा विचार नहीं आया था। पर मानना है कि मेरे दादाजी भी जरुर चूत के रसिया रहे होंगे क्योंकि बेटी की उम्र का तो उनका पोता (मैं) था पर उम्र सुलभ मेरे दिमाग में भी सेक्स के कीड़े कुलबुलाने लगे थे। गाँव के लड़कियों को देख कर मेरा लंड जो करीब 7-8 इंच के करीब था और मोटा भी काफी था पजामे में तन कर खड़ा हो जाता था। गाँव में ज्यादातर खुला पाजामा या लूंगी ही पहनते थे तो लंड अक्सर उसमें तम्बू बना कर लेता था जिससे शर्म भी महसूस होती थी पर अपने लंबे और मोटे लंड को देख कर दिल में एक अजीब सी खुशी भी होती थी। खैर कहानी के असली मुद्दे पर आते हैं।
मैं शहर में कमरा तलाश कर रहा था। तभी बुआ का एक दिन फोन आया कि फूफा जी का तबादला उसी शहर में हो गया है जहां मैं पढ़ता हूँ। बुआ ने बताया कि उन्हें सरकारी मकान मिला है रहने के लिए जो बहुत बड़ा है। बुआ के कोई बच्चा तो था नहीं अभी तक सिर्फ बुआ और फूफा ही थे। बुआ बोली कि मुझे कमरा ढूंढने की कोई जरुरत नहीं है। मैं उनके पास रह सकता हूँ। पिता जी भी इसके लिए राजी हो गए क्योंकि इस से मेरे खाने पीने की समस्या का भी हल मिल गया था और बुआ-फूफा की निगरानी में मेरे बिगड़ने का भी डर नहीं था।
पिता जी ने फूफा से बात की तो उन्होंने भी हाँ कर दी। बस दो दिन के बाद फूफा सामान लेकर शहर पहुँच गए। मकान पर फूफा के ऑफिस के लोग आये थे फूफा से मिलने और सामान उतरवाने। करीब आधे घंटे में सब लोग सामान उतरवा कर और चाय पी कर चले गए। अब सामान जमाने का काम शुरू करना था। यह काम तो बुआ को ही करना था। मैं भी बुआ की मदद करने लगा। मैंने और बुआ ने मिल कर बड़ा-बड़ा सामान करीने से लगा दिया। अब कुछ छोटा मोटा सामान बचा था जो हर रोज़ काम आने वाला भी नहीं था। बुआ बोली कि इसे ऊपर टांड पर रख देते हैं।
तभी फूफा ने आवाज दी। जाकर देखा तो फूफा जी बोतल खोल कर बैठे थे और शायद एक दो पैग लगा भी चुके थे। वो कुछ खाने को मांग रहे थे। फूफा ने मुझे भी लेने को कहा पर मैंने मना कर दिया क्योंकि मैंने पहले कभी नहीं पी थी।
बुआ ने फूफा को काजू और नमकीन निकाल कर दी और हम फिर से काम पर लग गए। काम के दौरान हम दोनों ने एक दूसरे को कई बार छुआ पर ना तो मेरे मन में और ना ही बुआ के मन में कोई दूसरा ख़याल था। यानि सब कुछ सामान्य था। बुआ टांड पर चढ़ी हुई थी और मैं नीचे से सामान पकड़ा रहा था।
अचानक बुआ एकदम से चिल्लाई।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो बुआ बोली कॉकरोच है। बुआ कॉकरोच से बहुत डरती थी।
मैंने ऊपर चढ़ कर देखा तो कॉकरोच ही था। मैंने कॉकरोच को मार कर नीचे फेंक दिया। बुआ अब भी बहुत डरी हुई थी। डर के मारे बुआ की आवाज भी नहीं निकल रही थी। जैसे ही मैंने कॉकरोच को मार कर नीचे फेंका बुआ एकदम मुझ से चिपक गई। बुआ डर के मारे कांप रही थी।
मैंने बुआ के कंधे पर हाथ रखा और बोला- बुआ अब कॉकरोच नहीं है, मैंने उसे मार कर फ़ेंक दिया है।
पर बुआ अब भी मुझ से चिपकी हुई कांप रही थी। मेरा हाथ बुआ की पीठ पर चला गया था। पर अब तक मेरे दिल में कोई भी ऐसी वैसी बात नहीं थी। अचानक मेरी नजर बुआ की चूचियों पर गई जो दिल की धड़कन के साथ ऊपर नीचे हो रही थी और अब मुझे अपने सीने में गड़ी हुई महसूस हो रही थी। मेरा लंड एक दम से पजामे में हरकत करने लगा था। पर मैं अपने आप पर कण्ट्रोल करने के पूरी कोशिश कर रहा था।
बुआ अब भी मुझसे चिपकी हुई थी। मैंने बुआ के चेहरे को आपने हाथ से ऊपर उठाया। बुआ की आँखें बंद थी। बुआ कितनी खूबसूरत थी इस बात का एहसास मुझे इसी पल हुआ था। मैंने कभी बुआ को इस नजर से देखा ही नहीं था। एक दम गोरा चिट्टा रंग, गुलाबी होंठ। इस पल तो मुझे बस यही नजर आ रहे थे। या फिर आपने सीने में गड़ती बुआ की मस्त बड़ी बड़ी चूचियाँ। बुआ की चूचियाँ बड़ी बड़ी थी। पर मुझे उसके नंबर का कोई अंदाजा नहीं था।
अब मुझे बुआ पर बहुत प्यार आ रहा था। बुआ के बदन के खुशबू और गर्मी ने मुझे दीवाना बना दिया था। अब मेरा आपने ऊपर कण्ट्रोल खत्म होता जा रहा था। बुआ का चेहरा मेरे करीब आता जा रहा था। ना जाने कब मेरे होंठ बुआ के होंठों से टकरा गए और मैं बुआ के रसीले होंठ अपने होंठो में दबा कर चूसने लगा। बुआ भी मेरा साथ देने लगी। एक दो मिनट तक ऐसे ही रहा। फिर बुआ जैसे अचानक नींद से जागी और उसने मुझे अपने से अलग कर दिया। बुआ नीचे मुँह किये हुए थी। मैं भी अपनी करनी पर शर्मिन्दा महसूस कर रहा था। मैं नीचे उतर गया। बुआ जब नीचे उतरने लगी तो बीच में ही लटक गई। बुआ ने मुझे मदद करने को कहा।
मैंने बुआ की टाँगें पकड़ ली और बुआ धीरे धीरे नीचे आने लगी। जैसे ही मेरे हाथ बुआ के गांड के पास पहुंचे मैंने बुआ के चूतड़ हल्के से दबा दिए। बुआ के मुँह से सिसकारी जैसी आवाज निकली मैं तो जैसे कहीं खो सा गया था।
बुआ बोली- अब ऐसे ही पकड़ कर खड़ा रहेगा या मुझे नीचे भी उतारेगा ?
मैं भी सपने से जगा और बुआ को नीचे उतारने लगा। जब बुआ मेरे बराबर आई तो बुआ की मस्त चूचियाँ बिलकुल मेरे मुँह के सामने थी। बुआ की उठती गिरती साँसों के साथ ऊपर नीचे होती चूचियों को देख कर मेरा तो दिमाग बिलकुल सुन्न हो गया।
अचानक बुआ ने मेरा सर पकड़ा और अपनी चूचियों पर दबा दिया। बुआ के बदन कि खुशबू ने मुझे हिला कर रख दिया था। मेरे पजामे में तूफ़ान सी हलचल होने लगी थी। हम इन लम्हों का आनन्द ले ही रहे थे कि फूफा की आवाज ने हम दोनों को सपनो की दुनिया से बाहर निकाला।
फूफा को कुछ खाने के लिए चाहिए था। बुआ मुझ से अलग हुई और रसोई में चली गई। मैं पहले तो वहीं खड़ा रहा फिर मैं भी बुआ के पीछे पीछे रसोई में चला गया। अब बुआ से अलग होने का मेरा दिल नहीं था। बुआ ने खाना लगाया और फूफा को देने चली गई। खाना फूफा के ऑफिस के लोग देकर गए थे। फूफा के कमरे में जाकर देखा तो फूफा पूरी बोतल गटक चुके थे। बड़ी मुश्किल से एक रोटी खाई और वहीं बेड पर पसर गए। बुआ ने उनके जूते वगैरा उतारे और सीधा करके लिटा दिया। पांच मिनट के बाद ही फूफा सो गए।
बुआ ने कहा कि मैं भी रसोई में आकर खाना खा लूँ। मैं भी बुआ के पीछे पीछे रसोई में चला गया। सच बोलूं तो मेरा दिल बुरी तरह से धड़क रहा था। दिल कर रहा था के बुआ एक बार फिर से मुझे आपने छाती से लगा ले। मेरा मुँह अपनी चूचियों में छुपा ले। पर थोड़ा सा डर था दिल में। आखिर वो मेरी बुआ थी।
बुआ ने खाना लगा दिया था और जैसे ही मुझे देने के लिए पीछे मुड़ी तो मुझ से टकरा गई क्योंकि मैं बुआ के बिल्कुल नजदीक खड़ा था। खाना गिरते गिरते बचा। मैंने बुआ को संभाला और इस संभालने के चक्कर में मेरा एक हाथ बुआ के नंगे पेट पर चला गया। मेरे हाथ का स्पर्श मिलते ही बुआ के मुँह से आह से निकल गई। बुआ के पेट का नरम और चिकना एहसास मिलते ही मेरा दिल भी धक-धक करने लगा। मैंने खाने की प्लेट बुआ के हाथ से लेकर एक तरफ़ रख दी और बुआ को थोड़ा अपनी ओर खींचा।
बुआ अब बिलकुल मेरे नजदीक थी। बुआ की मस्त कठोर चूचियाँ मेरे सीने में गढ़ रही थी और गर्म साँसे मेरी साँसों से मिल कर बहुत ही मादक माहोल बना रही थी। हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे पर बोल कुछ भी नहीं रहे थे। बुआ की आँखों में एक प्यास सी नजर आ रही थी। मैंने बिना कुछ बोले अपने होंठ बुआ के गर्म होंठों पर रख दिए। बुआ एक दम से सिहर उठी। अब मैं बुआ के रसीले होंठों से अपनी प्यास ठंडी कर रहा था और इसमें बुआ मेरा पूरा साथ दे रही थी। फूफा सो चुके थे सो अब डर भी नहीं था। मुझे मालूम था के फूफा पुरी बोतल गटक कर सोये थे तो सुबह से पहले तो उठने वाले थे नहीं। मैंने बुआ को गोदी में उठाया और बेडरूम में ले गया।
जब मैंने बुआ को गोद में उठाया तो बुआ मुझ से बुरी तरह से चिपक गई। मैंने बुआ को बेड पर लिटा कर देखा तो बुआ आँखें बंद करके पड़ी थी और उसकी सांस धौंकनी की तरह से चल रही थी यानि वो लंबी लंबी और तेज तेज साँसें ले रही थी। शरीर भी कुछ अंगड़ाईयाँ ले रहा था। बुआ के उठते गिरते उभारों को देख कर मेरा लंड अब पजामा फाड़ कर बाहर आने को उतावला हो रहा था। मैंने बुआ की साड़ी का पल्लू एक तरफ किया तो बुआ की मस्त पहाड़ियों को देखता ही रह गया। क्या मस्त चूची थी बुआ की। मुझे खुशी भी हो रही थी कि मेरी बुआ इतनी सेक्सी और सुंदर है। अभी कुछ देर पहले ही तो बुआ ने मेरा मुँह दबाया था इन मस्त चूचियों में।
मेरा एक हाथ बुआ की दाईं चूची पर चला गया। हाय…..क्या मस्त कठोर चूची थी। मेरा तो बुरा हाल हो रहा था क्योंकि मेरा तो यह पहली बार ही था ना। बुआ ने मेरा हाथ अपनी चूची के ऊपर पकड़ कर दबा दिया और खुद ही सीत्कार उठी। एक मस्त आह सी निकली बुआ के मुँह से।
मैं अब धीरे धीरे बुआ की चूचियाँ सहलाने लगा था। बुआ के मुँह से सिसकरियाँ निकल रही थी। मैंने बुआ के ब्लाउज के हुक खोलने शुरू किये तो बुआ ने मेरा हाथ पकड़ लिया- नहीं राज, यह ठीक नहीं है। मैं तेरी बुआ लगती हूँ।
पर मुझ पर तो अब वासना का नशा छाने लगा था। मैंने बुआ की बात को अनसुना कर दिया और अगले ही पल बुआ की ब्रा में कसी चूचियाँ मेरी आँखों के सामने थी। मैंने ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को चूमना शुरू कर दिया। बुआ भी अब वासना की आग में जलने लगी थी। बुआ की सिसकारियों से इस बात का पता चल रहा था। बुआ बार-बार ना-ना कर रही थी पर सिसकारियों से साफ़ था कि बुआ के मुँह पर ना और मन में हाँ थी।
मैंने बुआ की ब्रा का हुक खोल दिया। बुआ की दोनों मस्त गोरी गोरी चूचियाँ एक दम से उछल कर बाहर आई। बुआ की चूचियाँ एक दम से तनी-तनी थी। दोनों चुचूक किसी पहाड़ी की चोटी की तरह से लग रहे थे। मैंने आव देखा ना ताव, झट से बुआ की एक चूची को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा।
हाय…. क्या स्वाद था।
बुआ मस्ती के मारे सीत्कारने लगी। उसकी आहें कमरे में गूंजने लगी- आह्हह्ह आह्ह्ह राज मैं मर जाउंगी राज आह्हह्ह…..
मैं चुपचाप बुआ की गोरी गोरी चूचियों का मजा ले रहा था। बुआ ने आहें भरते भरते हाथ नीचे ले जाकर लंड को पकड़ कर मसल दिया। मैं इस हमले के लिए तैयार नहीं था सो कसमसा उठा। लंड अकड़ा हुआ था सो थोड़ा दर्द भी हुआ पर मजा भी बहुत आया- बुआ, इसे बाहर निकाल लो ना !
बुआ कुछ नहीं बोली, बस पजामे का नाड़ा पकड़ कर खींच दिया। फिर मुझे अपने ऊपर से थोड़ा उठाया और मेरा पजामा अंडरवियर सहित नीचे खींच दिया। मेरे लंड महाराज पूरे शबाब पर थे। एकदम सर उठाये अकड़ कर खड़े थे।
बुआ ने मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और बोली- राज….. हाय…….कितना बड़ा है तुम्हारा !
मेरा लंड अपनी तारीफ़ सुन कर और ज्यादा अकड़ गया और किसी नटखट बच्चे की तरह ठुनकने लगा। बुआ अपने कोमल कोमल हाथों से लंड को सहलाने लगी।
मैंने पूछा- चूसोगी?
बुआ ने मना कर दिया फिर ना जाने क्या मन किया कि झट से लंड को पकड़ कर मुँह में ले लिया और लॉलीपोप की तरह चूसने लगी। मेरे लिए तो ये एक बिल्कुल नया अनुभव था। बुआ बहुत मस्त चूस रही थी। लंड तो पहले ही फटने को हो रहा था। मैं ज्यादा रोक नहीं कर पाया और बुआ के मुँह में ही झड़ गया। बुआ ने शायद पहले कभी लंड का पानी नहीं चखा था तभी तो बुआ को थोड़ी उबकाई सी आई फिर एक दम से सारा का सारा गटक गई।
मैं एक बार ठंडा हो चुका था पर मेरे सामने जो आग पड़ी थी उसे देखते ही बदन का खून फिर से गर्म होने लगा।
दो भागों में समाप्य !
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