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प्रेषिका : कोमल मित्तल
सभी अंतर्वासना पढ़ने वाले पाठकों को और समूचे अंतर्वासना स्टाफ को नमस्कार !
अंतर्वासना से ही लोगों की बिस्तर, बाथरूम की बातें बाहर आती हैं। मैं एक-एक चुदाई के बारे पढ़ पढ़ कर मज़े लेती हूँ और आज मैं अपनी जिंदगी की एक ज़बरदस्त हकीकत अथवा अपनी मनचली जवानी के जोश में मैं होश खो बैठी थी, यह वाकया मैं मरते दम तक नहीं भूल पाऊँगी।
खैर मेरा नाम कोमल मित्तल है, मैं अठाईस साल की महिला हूँ, भगवान् ने भी गूंथ-गूंथ कर जवानी मेरे अन्दर भर दी थी और ऊपर से दिलफेंक मिजाज़ दिया, कामुक चालू किस्म का शबाब दिया है। सोलहवें साल में ही मेरा मन डोलने लगा था, मेरी उभरती हुई छाती जब मैं खुद भी आईने में देखती तो शरमा जाती, जब बाहर निकलती तो लड़कों की निगाहें वहाँ अटकती देखकर मेरे जवान होने पर मोहर लगा देतीं, छमक-छल्लो, नशे की बोतल सुन मैं कामुक हो जाती।
आखिर मैं एक लड़के को अपना दिल दे ही बैठी, पब्लिक प्लेस में मिलते हुए बात सिनेमा तक पहुंची, वहाँ वो मेरी जवानी को दिल खोल कर मसलता, क्रीम की तरह मेरी चिकनी जांघों पर हाथ लगते तो मैं सिकुड़ जाती।
सिनेमा से बात उसके घर तक पहुंची। एक दिन वो अकेला था और मुझे अपने बेडरूम तक ले गया वहां में बहक गई और अपनी जवानी लुटा बैठी। उसके बाद चुदाई का जो चस्का लगा, जो लगा कि बस फिर क्या बताऊँ ! कई लड़कों के साथ मेरा चक्कर चलने लगा और अपनी गूंथी जवानी में लुटाती रही, दबवाती रही।फिर एक दिन मेरी शादी एक बहुत बड़े घर में हुई। मेरे पति का इंपोर्ट-एक्सपोर्ट का बहुत बड़ा कारोबार था। मैंने भी एम.कॉम कर रखी थी, जल्दी ही मैंने अपने पति के साथ उनका बिज़नस सम्भाल लिया लेकिन वो ज्यादातर घर से बाहर रहते, देश से बाहर भी जाना पड़ता, बिज़नस तो संभाल लिया लेकिन यह जवानी कैसे संभालती? चुदाई के बिना रहना मेरे लिए मुश्किल था, मर्द के बिना मैं नहीं रह पाती, शादी के बाद से वैसे ही सिर्फ एक लौड़े पर टिकी हुई थी। वो भी मुझे कभी संतुष्ट करता, कभी नहीं करता ! फिर भी ऊँगली, बैंगन से सार लेती(काम चला लेती) मेरे पति वैसे भी मुझे से बड़े उम्र के हैं। मैं एक मध्यम परिवार से उठ कर अमीर घर में आई थी।
एक दिन मैं अपने ऑफिस गई, वहां मेरी सहेली का फ़ोन आया, वो मुझे मिलने आ रही थी।
मैंने उसे कहा- ऑफिस ही आ जाओ !
मैंने बहुत आलीशान ऑफिस बनवा लिया था, पीछे एक आराम-कक्ष और एक छोटी सी लॉबी !
वो बोली- कोमल। ठण्डी बीयर मंगवा यार ! बहुत मन है !
मैंने अपने सेक्रेटरी को बुलाया और कहा- बिना किसी को दिखाए बीयर और कुछ खाने को लेकर आओ !
हम दोनों ने बैठ कर बीयर की चुस्कियाँ ली और फिरफिर उसको कॉल आई, उसको जाना पड़ा। मुझे सरूर सा हो चुका था। मैंने अकेले बैठने की बजाये उसको अपने सेक्रेटरी विनोद को अन्दर बुला लिया और अपने साथ बैठाया, उसको बीयर पिलाई और उसके साथ थोड़ा खुलने सी लगी।
वो बहुत मर्दानगी वाला मर्द दिखता है और अन्दर से मैं उस पर फ़िदा थी। आज मौका था, मैं उठी और उसकी गोद में बैठ गई। वो एक दम चौंक सा गया लेकिन मैं कुछ और सोच चुकी थी। उसे भी समझते देर न लगी। उसने मुझे जकड़ कर अपने होंठ मेरे होंठों में डाल दिए। उसने भी अपना हाथ मेरे टॉप में घुसा दिया और मेरे चुच्चे दबाने लगा। उसका लौड़ा खड़ा हो चुका था, उसकी चुभन का एहसास होने लगा था मुझे !
उसने कहा- मैडम, थोड़ी बीयर और हो जाए ! मैं मंगवाता हूँ !
मैंने कहा- इस हालत में छोड़ कर ?
नहीं मैडम ! बाहर संजू है न ! अपना ही पट्ठा है, बहुत दमदार है वो भी !
मैं तो वासना की भूखी थी, नशे में थी ! हाँ कह दी ! उसी हालत में उसे अन्दर बुला लिया। मेरे निरावृत वक्ष देख उसकी आंखें चमक उठी।
जा चार चिल्ड-बीयर ले कर आजा !
उसके जाते ही उसने मेरी जींस भी उतार दी, खुलकर हाथ मेरी जांघों पर फिराने लगा।
वाह क्या माल हो !
उसने मुझे वहाँ से अपनी मजबूत बाँहों में उठा मेरे रेस्टरूम में बिस्तर पर फेंक दिया और मेरे ऊपर आते हुए उसने अपना मोटा लंबा लौड़ा मेरे होंठों पर टिका दिया, मैंने हंसकर मुँह में डाल लिया। एक हाथ से वो मेरी चूत मसल रहा था और उधर लौड़ा चुसवा रहा था, उसने टाँगे खोल अपना लौड़ा चूत में डाल दिया, मुझे इतना मजा आया जब उसका मोटा लौड़ा मेरी चूत के अन्दर बाहर होने लगा। कितने दिन बाद मर्द का सुख मिल रहा था।
इतने में संजू वहाँ आ पहुंचा, उसने बीयर मेज़ पर रख दी, वहीं खड़ा होकर चुदाई देखने लगा, साथ में अपना लौड़ा भी मसल रहा था।
मैंने वासना और नशे की झोंक में उसको अपने पास बुला लिया बीयर का मग मांगने के बहाने ! जैसे ही पास आया मैंने उसकी जिप खोल दी और उसका लौड़ा अब मेरी आँखों के सामने था। बहुत बढ़िया लौड़ा था उसका ! मैं घोड़ी बनी हुई थी, उसने अपनी पैंट उतार दी, मेरे सामने घुटनों के बल बैठ अपना लौड़ा मेरे होंठों पर रख दिया। मैंने झट से मुँह में भर लिया। मैं नशे में पागल थी।
इसी बीच वो उठा और बीयर का मग मेरे मुँह को लगा दिया, मैंने भी पूरा खींच लिया।
अब वो मेरे बाल पकड़कर लौड़ा चुसवाने लगा- साली, कमीनी, रांड चूस इसको !
बहनचोद ! साले ! चूस रही हूँ कुत्ते !
पीछे से झटके तेज़ हो गए और आगे से लौड़ा स्वाद था। अब मुझे नशा ज्यादा हो गया। विनोद ने अपना सारा माल मेरी चूत में उतार दिया था, वह हांफते हुए बगल में गिर गया, संजू पीछे गया और चूत मारने लगा, साथ साथ ऊँगली गांड के अन्दर बाहर करने लगा। उसने काफी थूक लगाया और गांड के छेद पर अपना लौड़ा रखकर झटका दिया। मैं पहले से तैयार थी उसके इस वार के लिए- अह अह थोड़ा प्यार से करो ! गांड है राजा !
उसने जल्दी ही पूरा अन्दर डाल दिया और मेरी गांड मारने लगा।
विनोद ने अपना लौड़ा फिर से मेरे मुँह में डाल दिया और मैं उसको खड़ा करने के लिए हर अदा दिखा रही थी।
संजू तेज़ और तेज़ होता गया, गांड मार रहा था, कसी हुई थी, जल्दी उसकी पिचकारियाँ छूटने लगीं।
वाह मेरे लाला ! बहुत बढ़िया गांड मारता है तू !
दोनों मेरे ऊपर लुढ़क गिरे थे, दोनों के लौड़े हाथ में ले लिए, एक पक्की रांड की तरह उनके बीच नंगी लेटी हुई थी।
एक एक ग्लास बियर डकार कर बोला- मजा आया?
मैंने कहा- पूरा नहीं !
लेकिन फिर भी बोला- साली तू मालकिन नहीं आज रांड है अपने स्टाफ के मर्दों की !
समय देखा तो काफी हो चुका था, मैंने कहा- सालो, तुम दोनों से में अच्छी तरह ठंडी नहीं हो पाई !
मैडम फिर रुक जाओ, बाकी सबको भेज देते हैं ! साब कौन सा इंडिया में हैं !
मैडम आपके लिए दो और लौड़े तैयार हैं ! पीछे देखो !! पीछे कौन खड़ा है?
और मैंने क्या देखा ? फिर पूरी रात क्या हुआ ?
जानने के लिए इसका अगला भाग ज़रूर पढ़ना ! अभी आगे काफी कुछ है !
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