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प्रेषक : अरनब बनर्जी
मैं अन्तर्वासना की एक नियमित पाठक हूँ। मैंने एक बात पर ध्यान दिया कि यहाँ तांत्रिक की कोई कहानी नहीं है जबकि तांत्रिकों को लेकर कई मनघड़न्त कहानियाँ हैं हमारे देश में।
यह कहानी है आज से पाँच सौ साल पहले के भारतवर्ष की। उस ज़माने में इस देश में तांत्रिकों और औझाओं का बड़ा दबदबा था। बड़े बड़े राजा-महाराजा किसी न किसी तांत्रिक की शिष्य थे। ऐसे ही एक राजा थे महाराजा प्रताप सिंह !
वे विलासपुर के महाराजा थे। यह कहानी उनकी बेटी राजकुमारी सुजाता की है। राजकुमारी सुजाता सर्वगुण-सम्पन्ना थी। वो सुन्दर, सुशील, शांत और सब कलाओं में निपुण थी। उसका कद 5 फीट 2 इंच, रंग सांवला, घट की तरह वक्ष और ढोल की तरह नितम्ब थे। इतनी भारी भरकम नितम्ब लेकर वो ज्यादा तेज़ नहीं चल पाती थी, बिलकुल राजहंस की तरह वो चलती थी। जब गाना गाती थी तो ऐसा लगता था जैसे सारी कायनात (दुनिया) गूंज उठी हो।
राजकुमारी सुजाता जब उन्नीस साल की हो गई तब महाराजा प्रताप सिंह ने उसके स्वयम्बर का प्रबंध किया।
उनके तांत्रिक गुरुदेव बाबा गोरबनाथजी उन्हें सलाह दी कि स्वयम्बर के एक सप्ताह पहले वे सुजाता को गोरबनाथजी के पास भेजें। राजा उन पर पूर्ण विश्वास करते थे। राजा ने सुजाता को भेजने का प्रबंध किया।
उस रात बहुत बारिश हो रही थी। सुजाता अकेली एक घोड़े पर सवार हो कर गोरबनाथजी के आश्रम आई। आश्रम में बाबा के भक्तों ने सुजाता को एक कुटिया में बिठाया और एक लड़की आकर सुजाता के पैर धोने लगी। उस लड़की नाम अंजना था। कुछ ही देर में दोनों में दोस्ती हो गई।
सुजाता(सु): मुझे क्या करना है यहाँ?
अंजना(अ): तुमको पता नहीं? तुम्हें किसी ने नहीं बताया?
सु: नहीं !
अ: तुम्हें इस पवित्र गंगा-जल से नहाना पड़ेगा, तब तुम शुद्ध होगी।
सु: उसके बाद?
अ: तुम नग्न अवस्था में बाबा के पास जाओगी, तब बाबा तुम्हें नीवी पहनायेंगे।
सु: नग्न होकर? नहीं बाबा, मुझसे यह काम नहीं होगा।
अ: तो फिर तुम कभी भी माँ नहीं बन पाओगी ! बाबा की सेवा करनी होगी तुम्हें आज रात को ! तब बाबा तुम्हें आर्शीवाद देंगे, तब तुम माँ बनोगी।
सु: अच्छा, ठीक है ! सेवा करूंगी !
अ: यह हुई न बात ! जाओ उस पवित्र गंगाजल से नहा कर आओ !
यह कहकर अंजना सुजाता को एक जलप्रपात के पास ले आई, सुजाता के सारे कपड़े उतार दिए और उसे नहलाना शुरू किया।. उन दोनों में से किसी को नहीं पता चला कि और भी कोई है जो इस स्नान-दृश्य को बड़े गौर से देख रहा है।
नहाने के बाद सुजाता नग्न अवस्था में जब बाबा गोरबनाथ के पास पहुँची तो बाबा की आँखें फटी की फटी रह गई। इतनी सुन्दर नारी बाबाजी ने पहले कभी नहीं देखी थी। मन ही मन वे सुजाता के यौवन की तारीफ़ कर रहे थे।
उसका उन्नत वक्ष-स्थल, मदमस्त कर देने वाले पृष्ट-उभार देखकर ही बाबाजी गरम होने लगे। उन्होंने तय किया कि आज इस नारी की मस्त जवानी का रस खूब पियूँगा।
अंजना नीवी लाई। बाबाजी काम्पते हुए हाथ से उस सुंदरी सुजाता को नीवी पहनाने लगे। सुजाता मुस्कुराई।
पहली बार किसी मर्द की हाथ का स्पर्श पाकर सुजाता एक अजीब सी आनंद में खो गई। ऐसा क्या जादू था उस स्पर्श में ! बाबा का जादूभरा स्पर्श पाकर सुजाता खिल उठी। बाबाजी उसके मन की बात को समझ कर मुस्कुराए- आ जाओ जान आज की मदमस्त रात तुम्हारी इस मदमस्त जवानी के नाम !
बाबा गोरबनाथ बड़े सिद्ध पुरुष थे। उनके पास कई सिद्धियाँ थी। उनमें से एक है वशीकरण ! वो किसी भी प्राणी चाहे वो इंसान हो या जानवर, किसी को भी अपने वश में कर सकते थे। दरअसल बात यह थी कि बाबाजी ने महाराजा प्रताप सिंह को अपने वश में किया हुआ था। वे स्पर्श से, आँख से और बातों से भी वशीकरण कर सकते थे। सुजाता को उन्होंने अपने स्पर्श से वशीभूत किया। अंजना अब सुजाता को लेकर एक पास वाली कुटिया में गई।
उस कुटिया में गुलाब की महक थी, एक चारपाई थी, उस चारपाई पर एक थाली थी, थाली में एक गिलास था जिसमें शरबत था। अंजना के कहने पर सुजाता ने वो शरबत पी लिया और धीरे धीरे उसे एक अजीब सा नशा छाने लगा। दरअसल वो एक खास किस्म का नशीला शरबत था, उसे जो पीता उसे ही नशा हो जाता। आज से ५ साल पहले बाबाजी ने इसी शरबत को पिलाकर राजा को वश किया। आज राजकुमारी सुजाता की बारी है।
आधी सोई आधी जगी सुजाता को अंजना बाबा की यज्ञ भूमि पर लाई। बाबा ने उसके सर पर हाथ रखके एक मंत्र का उच्चारण किया और सुजाता जाग गई। उसे सब कुछ अच्छा लगने लगा। आज तक जो कुछ उसे बुरा लगता था वो भी अच्छा लगने लगा। उसने बाबा गोरबनाथ को कामुक नजर से देखा और अपने आप ही घुटनों के बल बाबाजी के सामने बैठ गई और धोती से उनका लण्ड निकालकर देखने लगी। बाबा गोरबनाथ की उम्र पैन्तालीस साल थी पर लुंड दस इन्च का था। सुजाता ने जिंदगी में पहली बार इतना मोटा और लम्बा लण्ड देखा पर उसे डर नहीं लगा। ऐसा ही असर था बाबाजी के मंत्र का ! सुजाता पूरी तरह से उनके वश में थी, वो अपने होश खो चुकी थी।
वो बाबाजी का मोटा लण्ड मुंह में लेकर चूसने लगी। बाबाजी तो तब सातवें आसमान पर थे। जब उन्हें लगा कि अब वो झड़ने वाले हैं तो उन्होंने कहा- अच्छा राजकुमारी जी, अब चूसना बंद कीजिये। आपने मेरी कामेच्छा को जगाकर मुझ पर बहुत दया दिखाई है, अब इस बालक को आपकी सेवा करने का अवसर दीजिये। अब कृपया विपरीत आसन में लेट जाईये इस बालक के ऊपर !
सुजाता ने मुस्कुराकर कहा- ठीक है बालक ! चलो लेट जाओ !
बाबाजी लेट गए अपनी चारपाई पर ! उसके ऊपर 69 पोज़िशन में सुजाता लेट गई। बाबाजी सुजाता की चूत को चाट रहे थे, चूस रहे थे। सुजाता आनंद में झूम रही थी और ऊहऽऽ आह कर रही थी और बाबाजी का मोटा लण्ड चूस रही थी। बाबाजी भी चिल्ला रहे थे- आह क्या बात है, आह ऊ आअ हह आह !
इतने में सुजाता दो बार झड़ी। कोई साधारण लड़की होती तो निढाल पड़ जाती पर बाबाजी के मंत्र के जोर से उसकी ताक़त और कामेच्छा बिल्कुल कम नहीं हुई।
अब बाबाजी भी इतना चूसने के बाबजूद झड़नेवाले नहीं थे, उनकी अजीब शक्ति थी। ये जो वो सुजाता के साथ कर रहे हैं इसे भैरभी साधना कहते हैं। इसमें नारी होती है देवी माँ जो अपने भक्त की कामना पूरी करती है, भक्त उन्हें जिस रूप में चाहे पूजा कर सकता है। यहाँ बाबा गोरबनाथ उन्हें कामदेवी के रूप में पूज रहे हैं।
बाबाजी ने अब कहा- हे माते, अब आप पद्मासन में अपने बालक की काम-इच्छा पूरी कीजिये, मेरा लिंग धारण करके मेरी वासना पूरी कीजिये !
सुजाता ने कहा- जैसी तेरी इच्छा बालक ! आज मैं तेरी हर मनोकामना पूरी करूंगी, अपने बालक की हर मनोकामना उसकी माँ ही पूरी करती है ! चल तैयार हो जा !
बाबाजी ने पद्मासन में बैठ गए और सुजाता उनके ऊपर आसन जमा कर बैठ गई. सुजाता की योनि ने बाबाजी के लण्ड को आसानी से ले लिया। कमाल का मान्त्रिक है बाबा गोरबनाथ।
पद्मासन में एक दूसरे को धक्के लगाते- लगाते दोनों ही सिसकारियाँ भर रहे थे। सुजाता को बहुत आनंद आ रहा था, वो चिल्ला रही थी- आ आ अह ऊ ओहऽऽ !
तभी अचानक बाहर उल्लू ने आवाज लगाई। बाबाजी को पता चल गया कि क्रिया का अंतिम चरण आ गया है, उन्होंने उसी हालत में सुजाता के कान में एक और मंत्र पढ़ दिया और सुजाता पर से पहले के मंत्र का असर ख़त्म हो गया।
सुजाता आखरी बार चीखी- ऊ ऊओह्ह्ह्ह ! ई ऊऊ मा आऽऽ !
कहते कहते वो जोर से झड़ने लगी। उस समय बाबाजी ने धक्के मारना बंद किया और एक पात्र में सुजाता का योनि-रस भरने लगे। पात्र पूरा भर चुका था। तभी सुजाता ने बाबाजी के लण्ड पकड़ कर दो बार मुठ मारी और बाबा ने भी अपना माल उसी पात्र में गिरा दिया। बहुत ही गाढ़ा और गर्म था बाबाजी का रस।
अब दोनों निढाल पड़ गए और एक दूसरे की बाहों में सो गए।
कुछ देर बाद जब बाबाजी उठे, उन्होंने सुजाता को उठाया और कहा- अब यह पवित्र शर्बत पी लो !
शर्बत और कुछ नहीं दोनों का मिलाजुला रस जो बाबा ने उस पात्र में भरा था। सुजाता ने वो पी लिया और फिर बाबा ने कहा- जाओ बेटी ! महल लौट जाओ ! अब तुम सुखी और सौभाग्यवती होगी। मेरा आर्शीवाद तुम्हारे साथ है !
सुजाता घोड़े पर सवार हो कर महल लौट रही थी, अब वो एक नई सुजाता थी- काम-क्रीड़ा में निपुण !
बाबा के मंत्र ने उसे हमेशा के लिए बदल दिया।
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