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कहानी का पिछला भाग: समधन की गांड मारी-1
आनंदीलाल को गिड़गिड़ाता हुआ देखकर अनुपमा बोली- आपका काम माफ़ करने के लायक नहीं है। ज़रा मैं भी तो देखूँ कि तुम्हारे लंड में कितना दम है।
आनंदीलाल यह सुनकर बुरी तरह चौंककर बोले- आप यह क्या कह रही हैं?
अनुपमा- जो सुन रहे हो, वही कह रही हूँ। ज़ल्दी से अपनी अण्डरवियार खोलो और अपना लंड दिखाओ मुझे। मैं भी तो देखूँ कि इतना कितना लम्बा लंड है तुम्हारा कि अमर उसे देखकर डर गया।
आनंदीलाल किसी तरह सँभले, पर वह यह समझ गए कि अनुपमा की चूत में खुज़ली मच गई है वरना वह ऐसा नहीं कहती। अच्छा मौक़ा है इसे चोदने का वर्ना आज नहीं तो फिर कभी यह मेरे हाथ नहीं आएगी।
आनंदीलाल का लंड अनुपमा को चोदने के ख्याल से ही फिर खड़ा हो गया। अपनी अण्डरवियार खोली तो लंड फिर से उफान पर था। अनुपमा लंबे और मोटे लंड को देखकर खुश हो गई। उसे हाथों में लेकर बोली- वाह समधी जी। आपका लंड तो अच्छा-ख़ासा लम्बा और मोटा है। अब आपकी असली मेज़बानी का समय है।
आनंदीलाल फिर से रंग में आ गए और बोले- कसर तो मैं भी कुछ नहीं रखूँगा। आपको वह मज़ा दूँगा कि आप अपने पति को भूल जाएँगीं।
आनंदीलाल ने अनुपमा को अपनी बाँहों में भींच लिया। अनुपमा भी आनंदीलाल से इस तरह चिपकी जैसे बरसों से उनके चिपकने का इन्तज़ार था। आनंदीलाल ने अनुपमा के होंठों को अपने होंठों से लगा लिया और उस लॉलीपॉप की तरह चूसने लगे।
अनुपमा भी पूरी तरह उनका साथ दे रही थी। दोनों एक-दूसरे की जीभ से खेल रहे थे। बहुत देर तक दोनों एक-दूसरे को चूसते रहे। आनंदीलाल ने अनुपमा का साड़ी खोल दी और उनके मोटे और बड़े उरोज़ों को मसलकर दबाने लगे।
अनुपमा की आह निकलने लगी। आनंदीलाल ने फटाफट ब्लाउज़ खोला, उसके साथ ही लहंगे का नाड़ा भी खोल दिया। अनुपमा अब उनके सामने सिर्फ ब्रा और पैन्टी में खड़ी थी।
आनंदीलाल- हाय मेरी जान! तुम्हारा बदन तो क़यामत ढा रहा है। कहाँ थी तुम इतने दिनों तक? तुम्हें पाकर तो मुझे नशा सा छा रहा है।
अनुपमा- अरे मेरे सनम। मुझे क्या मालूम था तुम मेरे लिए इतने बेचैन हो? वर्ना कब की अपनी चूत तुम्हें खिला देती। आज मुझे अपने लौड़े का स्वाद चखा दो जानेमन। तुम्हारे समधी का तो अब ठीक से खड़ा भी नहीं होता।
आनंदीलाल- अरी छिनाल तो मुझे तो याद किया होता। तुम्हारी चूत को ऐसा खाऊँगा कि सातों जन्म तक मेरा ही लौड़ा याद आएगा।
अनुपमा नीचे झुकी और आनंदीलाल का लौड़ा अपने मुँह में भरकर चूसने लगी। आनंदीलाल पर मस्त नशा छाने लगा। कहाँ तो वो चोदने को तरस रहे थे और आज वो मौक़ा ख़ुद ही चलकर आ गया। अनुपमा तब तक लंड चूसती रही जबतक कि सारा वीर्य उनके मुँह में नहीं चला गया। पूरा वीर्य और झाँटों के बाल चाटने के बाद अनुपमा भी एकदम गरम हो गई थी।
अनुपमा- वाह रे मादरचोद! तेरा पानी तो अमृत जैसा है। मैं तो पीकर धन्य हो गई।
आनंदीलाल- तेरे जैसी काम की देवी ने इसे अमृत बना दिया है रंडी। चल नीचे लेट जा, अब मैं तेरी चूत को चाट-चाटकर तेरा पानी निकाल दूँगा।
यह कहकर आनंदीलाल ने अनुपमा को नीचे लिटाया और पैन्टी खोल दी। अनुपमा की मस्त चूत देखकर उनके मुँह में पानी आ गया। आज भी उसकी चूत गुलाबी थी और हल्के से बाल छाए हुए थे। आनंदीलाल ने देर नहीं की और झट अनुपमा की चूत में मुँह घुसेड़ दिया। अपनी जीभ से चूत के चारों ओर चाट-चाटकर गीला कर दिया फिर चूत के छेद में जीभ डाल-डालकर अनुपमा को ज़न्नत का अहसास देने लगे। अनुपमा भी चूत पर प्यारा सा स्पर्श पाकर सिहरने लगी। दो मिनट में ही आनंदीलाल ने चूस-चूसकर चूत का पानी निकाल दिया और सारा पानी चाट गए।
अनुपमा – मेरे सैंया, अब देर न करो। जल्दी से अपना लौ़ड़ा मेरी चूत में डाल दो।
आनंदीलाल – हाँ … हाँ क्यों नहीं मेरी रानी। चल जल्दी से मेरे लौड़े को चूस कर गीला कर दे। पर मैं तेरी गाँड की बहन चोदूंगा फिर उसके बाद तेरी चूत की माँ चोदूँगा।
अनुपमा- ओय होय हरामी। तुझे भी चूत की सौतन गाँड ज़्यादा पसन्द आई है। तुम सारे मर्द साले हरामी होते हैं। सौतन को पहले चोदते हैं, बाद में अपनी घरवाली को।
आनंदीलाल- चल गंडमरी, अब देर मत कर। मेरा लौड़ा चूसकर गीला कर दे, वर्ना तेरी गाँड की ऐसी बहन चुदेगी कि तू खड़ी भी नहीं हो पाएगी।
अनुपमा ने फिर से आनंदीलाल के लौड़े को मुँह में भर लिया और चूस-चूसकर अच्छा-ख़ासा गीला कर दिया। आनंदीलाल ने अनुपमा को कुतिया बनाया और लंड का एक भरपूर धक्का गाँड की छेद पर दिया। अनुपमा चीख पड़ी।
अनुपमा- अरे हरामी मादरचोद। गाँड की माँ चोद दी तूने। भोसड़ी के धीरे-धीरे कर।
आनंदीलाल धीरे-धीरे लंड को अन्दर-बाहर करने लगे। थोड़ी देर बाद उन्होंने अपनी गति तेज़ कर दी और धकाधक धक्के मारने लगे। अनुपमा को अब मज़ा आने लगा और वह और तेज़ चोदो, और तेज़ चोदो कहने लगी। पाँच मिनट तक आनंदीलाल ने अनुपमा की गाँड मारी और फिर कुछ तेज़ धक्के मार-मारकर सारा वीर्य अनुपमा की गाँड में डाल दिया। अनुपमा की गाँड गरम वीर्य से भर गई। दोनों कुछ देर के लिए ज़मीन पर लेट गए।
आनंदीलाल- क्यों मेरी जान। मज़ा आया कि नहीं चुदाई में?
अनुपमा- इससे पहले इतना मज़ा कभी नहीं आया मेरे सनम। आज तो तुमने मेरी गाँड फाड़कर रख दी है।
आनंदीलाल अनुपमा के ऊपर आ गए। दोनों के गरम बदन एक-दूसरे से टकराने लगे। आनंदीलाल ने चुम्बनों की बौछार कर दी। पूरे चेहरे पर अपनी जीभ फिरा-फिराकर अनुपमा के मुँह को गीला कर दिया और अपनी जीभ अनुपमा के मुँह में डाल दी। अनुपमा मज़े ले-लेकर उसे चूसने लगी।
अनुपमा ने लंड को चूसकर फिर खड़ा कर दिया। आनंदीलाल ने लंड के सुपाड़े को चूत पर रखा और चोदने लगे। अनुपमा ने दोनों हाथों से आनंदीलाल को जकड़ लिया और टाँगों में फाँस लिया। दोनों इस समय एक जिस्म-एक जान नज़र आ रहे थे। आनंदीनाल ने बहुत देर तक अनुपमा को चोदा और सारा माल उसकी चूत में डाल दिया।
आनंदीलाल- मेरी गंडमरी रानी। तुझे चोदकर तो वो मज़ा आया है जो मेरी पत्नी को चोदने के बाद भी नहीं आया था। मेरा बस चले तो तुझे यहीं मेरे साथ रख लूँ।
अनुपमा- तूने भी मज़े, बहुत मज़े से मुझे चोदा है। मैं तो बस तेरी होकर रह गई हूँ। जाने की इच्छा तो नहीं हो रही है, पर मुझे जाना होगा। अमर इन्तज़ार कर रहा होगा। पता नहीं वो सोया भी कि नहीं। और रात भी बहुत हो गई है।
आनंदीलाल- ठीक है। कल मिलते हैं। पर अमर को समझा देना कि वह इस सम्बन्ध में किसी से कुछ कहे नहीं। बहुत भोला और सीधा लड़का है।
अनुपमा- तुम चिन्ता मत करो। मैं उसे समझा दूँगी। वह किसी से नहीं कहेगा।
अनुपमा ने अपने कपड़े पहने और अपने कमरे में चली गई। आनंदीलाल आज ख़ुद को बहुत खुशकिस्मत समझ रहे थे क्योंकि आज वे अपने ख़्वाबों को हक़ीकत में बदल चुके थे। उन्हें बहुत अच्छी नींद लगी थी।
इधर अनुपमा जब अपने कमरे में पहुँची तो अमर जाग रहा था। अमर ने गुस्सा ज़ाहिर करते हुए कहा कि तुम इतनी देर से वहाँ क्या कर रही थी? मैं कब से इन्तज़ार कर रहा हूँ?
अनुपमा ने उसे समझाते हुए कहा कि बेटा उन्हें समझाना बहुत ज़रूरी था। अब वे समझ गए हैं और आइन्दा ऐसी हरक़त नहीं करेंगे। तुम भी यह बात किसी से कहना नहीं और उनसे ज़्यादा बात मत करना। चलो अब सो जाओ।
अनुपमा ख़ूब चुदा-चुदाकर थकी हुई थी इसलिए उसे भी बिस्तर पर पड़ते ही नींद आ गई, लेकिन अमर को कुछ-न-कुछ गड़बड़ लग रही थी। आख़िरकार वह भी सो गया।
अगले दिन अनुपमा और आनंदीलाल डाईनिंग-टेबल पर खाना खाते-खाते बहुत हँसी-मज़ाक कर रहे थे। अमर यह देखकर हैरान था क्योंकि उसे लगा था कि आज मम्मी उनसे बात नहीं करेगी, लेकिन यहाँ तो उल्टा और हँसी-मज़ाक कर रही है।
अमर ने सारा दिन किसी तरह निकाला। रात को वह सोने का नाटक करने लगा। अनुपमा को लगा कि वह सो गया है तो वह उठी और आनंदीनाल के कमरे में पहुँच गई।
अमर भी अनुपमा के जाते ही पीछे-पीछे चलने लगा।
अनुपमा ने जाते ही आनंदीलाल को बाँहों में भर लिया और जी भर कर उनके होंठों का रस पिया। अमर दरवाज़े के की-होल से यह देखकर बुरी तरह चौंक गया।
इधर अनुपमा इस बात से बेख़बर आनंदीलाल से चिपकी हुई थी। अनुपमा ने पहले आनंदीलाल को नंगा किया और फिर ख़ुद नंगी हो गई। आज पहली बार अमर अपनी मम्मी को नंगी देख रहा था। उसकी मम्मी उछल-उछल कर आनंदीलाल से चुदवा रही थी।
उसे अपनी मम्मी से नफ़रत होने लगी। वह सोच भी नहीं सकता था कि सबको अपने गुस्से से डराकर रखने वाली इतना नीचे गिर सकती है।
आनंदीलाल और अनुपमा की चुदाई का खेल देखकर उसके रोंगटे खड़े हो गए और उसके हाथ-पाँव काँपने लगे। वह कमरे के बाहर खड़ा हुआ काँप रहा था कि सामने से उसकी भाभी रीमा आ खड़ी हुई। रीमा उसे देखकर हैरान हुई कि वह यहाँ क्यों खड़ा है और इतना काँप क्यों रहा है?
अमर ने सारी बात बता दी। रीमा भी अनुपमा और आनंदीलाल की चुदाई देखकर दंग रह गई। उन दोनों को चुदाई करते देख पहले तो रीमा को बहुत गुस्सा आया पर उसे भी चुदाई की प्यास सताने लगी।
रीमा की चूत की तड़प बढ़ गई। वह भी चुदवाना चाहती थी। उसे लगा कि अमर छोटा ही सही, पर उसे चोदकर अभी उसकी चूत की तड़प तो दूर कर ही सकता है। उसने कुछ सोचा और अमर को बताया। अमर पहले तो घबराया पर रीमा की वज़ह से हिम्मत आ गई।
रीमा और अमर दोनों दरवाज़ा खोलकर अन्दर आ गए, जहाँ अनुपमा और आनंदीलाल चुदाई में मग्न हो रहे थे। रीमा और अमर को देखकर दोनों हक्के-बक्के रह गए। उनके मुँह से आवाज़ भी नहीं निकली।
अनुपमा आनंदीलाल से अलग हो गई। अनुपमा अपने बेटे के सामने नंगी थी तो आनंदीलाल आज अपनी बेटी के सामने नंगे खड़े थे। दोनों को अपनी इस स्थिति पर बड़ी ग्लानि हो रही थी।
रीमा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा – तो रात में यह काम होता है। पर आप बिल्कुल डरिए मत। मैं और अमर इसमें कोई रुकावट नहीं बनेंगे।
आनंदीलाल बोले- हमें माफ कर दो बेटी। इस उम्र में हमें यह नहीं करना चाहिए था लेकिन हम दोनों इतने अकेले थे कि अपने आपको रोक नहीं सके।
रीमा- कोई बात नहीं पापा। हमें आपसे कोई शिकायत नहीं और ना ही मेरी सास से है। आप दोनों को पूरा हक़ है अपने अरमानों को पूरा करने का।
अनुपमा- क्या तुम सच कह रही हो रीमा? तुम्हें हमसे कोई शिकायत नहीं है?
रीमा- नहीं मम्मी, हमें आपसे कोई शिकायत नहीं है। लेकिन हमारी एक शर्त है, उसके बाद ही हम आपको माफ़ करेंगे। अनुपमा- हम तुम्हार हर शर्त मानने को तैयार हैं रीमा!
रीमा- आप दोनों फिर एक-दूसरे की चुदाई करो। मैं और अमर आपका साथ देंगे।
आनंदीलाल- तुम कहना क्या चाहती हो रीमा? तुम दोनों भला हमारा कैसे साथ दोगी?
रीमा- पापा, आप दोनों चुदाई करोगे तो हम दोनों क्या खाली बैठेंगे। मैं भी अपने देवर अमर के साथ जी भरकर चुदवाऊँगी क्योंकि आप दोनों को देख कर मेरी चूत की तड़प जाग उठी है।
आनंदीलाल और अनुपमा को रीमा की बात माननी पड़ी क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था।
अनुपमा और आनंदीलाल तो पहले ही नंगे थे अब रीमा और अमर भी कपड़े उतारकर नंगे हो गए। चुदाई का खेल फिर चालू हो गया। आनंदीलाल के लौड़े को चूसकर अनुपमा ने फिर खड़ा कर दिया। आनंदीलाल नीचे लेट गए और अनुपमा उनके ऊपर बैठकर उनके लौड़े को अपनी चूत पर सेट करके चुदवाने लगी।
इधर रीमा ने भी अमर के लौड़े को मुँह में भर लिया। अमर को बहुत मज़ा आने लगा। उसे लगा कि आनंदीलाल ने ठीक ही कहा था। लौड़ा चूसने में भले ही आनंद न आता हो, लेकिन चुसवाने में बहुत मज़ा आता है।
अमर का लंड 5 इंच का था। अभी रीमा ने ठीक से लंड को अन्दर-बाहर करना शुरु ही किया था कि अमर का पानी निकल गया। रीमा ने सारा पानी चाट लिया।
रीमा ने अमर को समझाते हुए कहा कि कोई बात नहीं, पहली बार ऐसा होता है, लेकिन अब तुम मेरी चूत को चाट-चाटकर पानी निकालो और उसे पी जाओ। मेरी चूत में बहुत खुजली मची हुई है। अमर समझ गया और फिर उसने रीमा को लिटाया और चूत में जीभ डालकर चूसने लगा। रीमा तड़प उठी। बहुत दिनों के बाद वह नंगी होकर किसी से चूत चुसवा रही थी।
उधर अनुपमा जब ऊपर-नीचे होते हुए थक गई तो आनंदीलाल ने अनुपमा को नीचे लिटाया और चूत में धकाधक लंड पेलने लगे। रीमा और अमर यह दृश्य देखकर और उत्तेजित हो गए। कुछ देर बाद आनंदीलाल ने ज़ोर-ज़ोर के धक्के लगाते हुए सारा माल अनुपमा की चूत में डाल दिया।
अमर ने भी चूस-चूसकर रीमा का पानी निकाला और अच्छे बच्चे की तरह उसे चाट-चाटकर पी गया। अमर का लंड फिर से खड़ा होने लगा था। रीमा ने अमर के लंड को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी। अमर का लंड फिर तन गया। रीमा को लिटाकर अमर ने चूत में लंड डाला और धक्के देने लगा।
उसने पहली बार किसी चूत में लंड डाला था। उसे आज बहुत कुछ सीखने और करने को मिला। वह अपनी सुन्दर और सेक्सी भाभी को चोद रहा था जिसके लिए उसके मन में बहुत सम्मान और प्यार था। साथ ही उसकी मम्मी एक ओर चुदवाकर लेटी पड़ी हुई थी और उनका खेल देख रही थी।
कुछ देर में ही अमर ने सारा माल रीमा की चूत में डाल दिया। इस तरह रात-भर चुदाई चली। अमर ने रीमा की चूत के साथ ही रीमा की गांड में भी लंड पेला जिसमें उसे बहुत मज़ा आया। उसके सामने ही उसकी मम्मी आनंदीलाल से चुदवा रही थी। अनुपमा और आनंदीलाल ने जिस तरह चुदाई की, उसी अन्दाज़ में अमर ने रीमा की चुदाई की।
पूरी रात सभी ने चुदाई का भरपूर आनन्द लिया।
दोस्तो, आपको यह कहानी कैसी लगी। कृपया मेल करके ज़रूर बताएँ। [email protected]
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