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जवानी की मस्ती मैं जी भर के लूटना चाहती हूं, लगता है कि बस रोज रात को कोई मुझे दबा कर चोद जाये … जानते है जीवन में जवानी एक ही बार आती है … फिर आ कर ना जाने वाला बुढ़ापा आ जाता है … जी तरसता रह ही जाता है …
मैंने आज अब्दुल को शाम को जान करके बुलाया था। उसे यह पता था कि बानो ने बुलाया है तो जरूर कुछ ना कुछ मजा आयेगा। कुछ नहीं तो चूंचे तो दबवायेगी ही। अब्दुल सही समय पर शाम को अपनी छत पर आ गया था और बेसब्री से मेरा इन्तज़ार कर रहा था। मैंने भी मौका देखा और छत पर आ गई।
“बोल क्या है बानो, क्यूं बुलाया मुझे?”
“बड़ा भाव खा रहा है रे भेनचोद ? बुला लिया तो क्या हो गया ?”
“चूतिया बात मत कर, बता क्या बात है?”
“पहले मेरे चूंचे तो दबा, फिर बताती हूं !” मैंने उसे धक्का देते हुये कहा।
“भोसड़ी की, नीचे आग लग रही क्या ?”
“सच बताऊँ क्या … लग तो रही है … पर तेरे नाम की आग नहीं है !” मैंने साफ़ कहना ही ठीक समझा।
“नाम तो बता, साले को जमीन में गाड़ दूंगा !”
“बताऊँ ? यूसुफ़ से मिला दे मुझे, बस एक बार चुदना है उससे !” मैंने उसे धीरे से कहा।
“मां की चूत उसकी ! रांड ! मेरा क्या होगा? उसी के पीछे भागेगी तू तो … ?” उसने शंका जताई।
“चुप रह … मुझे तो तेरा लन्ड भी तो चाहिये … प्लीज मिला दे ना … !” मैंने उसे समझाया।
थोड़ा सोच कर बोला,”अभी बात करू या कल … ?”
“चूत तो अभी लपलपा रही है, भोसड़ी के कल चुदवायेगा … ? तू भी ना … !”
अब्दुल समझ गया कि मामला अभी गरम है, उसे भी चूत मिल जायेगी। वो जल्दी से नीचे चला गया। मैं भी नीचे आ गई।
रात का खाना खा कर हम सभी घर वाले बैठे थे। पर मेरा दिल तो कहीं ओर था … यूँ कहिये कि यूसुफ़ के पास था। चूत बार बार मचक मचक कर रही थी। इतने में मिस कॉल आ गया। मैंने देखा तो अब्दुल का ही था। मैं बहाना बना कर सभी के बीच से चली आई। फिर लपक कर छत पर आ गई। छत पर दो साये नजर आ गये। मेरा दिल खिल उठा। शायद अब्दुल ने अपना काम कर दिया था।
मैं दीवार कूद कर वहां पहुंच गई। जैसे ही मेरी नजरें यूसुफ़ से मिली, वो शरमा गया। मैं भी शरमा गई।
अब्दुल ने मौका देखा और कहा,”यूसुफ़, बानो तुझसे मिलना चाह रही थी … क्या मामला है … ?
” बेचारा यूसुफ़ क्या कहता, उसे तो कुछ पता ही नहीं था … बस वो तो मेरा आशिक था।
“मुझे क्या पता भोसड़ी के … बानो ही बतायेगी ना !” उसने शरमाते हुए कहा।
” मैं बताता हूँ यूसुफ़ … यह बानो तेरी आशिक है … ।”
“चल झूठे … ये झूठ कह रहा है यूसुफ़ !” मैंने अपनी सफ़ाई दी।
“तो लग जाओ … मैं अभी आया … !” वो खिलखिला कर हंसा और पीछे मुड़ कर चला गया। उसे मौके की नजाकत पता थी, कि दो जवान जिस्म मिलने को बेताब है और मुझे तो अब्दुल जानता ही था, यूसुफ़ ना भी करे तो मैं उसे छोड़ने वाली नहीं थी।
“यूसुफ़ … बुरा मत मानना … ये तो मजाक करता है !”
“उसने मुझे सब बता दिया है … बानो, अब शरमाने से क्या फ़ायदा !” यूसुफ़ ने साफ़ की कह दिया।
मुझे लगा कि ये तो काम बन गया अब तो चुदने की ही बारी है …
“यूसुफ़, क्या कहा उसने … ?” मैंने शरमाते हुए पूछा।
“यही कि आप हमें एक चुम्मा देंगी … ” उसने मेरी बांह पकड़ ली … ” देखो मस्त चुम्मा देना !” और उसने मुझे खुद से सटा लिया। मैंने अपने होंठ उसकी तरफ़ बढ़ा दिये। पर ये क्या?? मैं क्या चुम्मा देती, उसने तो खुद ही चूमना चालू कर दिया। मैं कुछ कहती उसके पहले उसका हाथ मेरे चूंचो पर आ गये और उन्हें मसल दिये।
हाय रे … मेरी दिल की इच्छा तो अपने आप ही पूरी होने लगी। मैं कब से यूसुफ़ से चुदाना चाह रही थी …
अब्दुल ने तो मेरा काम पूरा कर दिया था। उसका लण्ड भी फूलने लगा था। मेरी चूत भी पनिया गई थी। मेरे पोन्द दबने के लिये मचल उठे। मैंने अपने आपको उसके हवाले कर दिया। उसका हाथ अब मेरी चूत पर आ गया, मेरी चूत दबाने लगा। मैं मस्ती में डूबने लगी। मैंने अपने पांव और खोल दिये। चूत में भी मीठी मीठी लहर उठने लगी थी। मैंने अपनी चूत को उसके हाथ पर और दबाव डाल दिया। मेरा पजामा गीला हो उठा।
“भेन की लौड़ी, भाग … अब्बू बुला रहा है तुझे, बानो, बाद में चुदवा लेना !”
अब्दुल ने बाहर से आवाज लगाई। मैं हड़बड़ा गई। मेरी सारी हवस हवा में उड़ गई। सारा नशा काफ़ूर हो गया। अब्बू को अभी ही बुलाना था …
“यूसुफ़, रात को यहीं रहना, सब के सोने के बाद आ जाउंगी !”
यूसुफ़ मुस्कुरा उठा।
मैं लपक के दीवार फ़ान्द कर अपने घर में आ गई और नीचे उतरने लगी।
“कहां मर गई थी, भेन-चोदों को आवाज देते रहो, कोई सुनता ही नहीं !” अब्बू गुस्सा हो रहे थे।
रात गहरा गई। सब लोग सो चुके थे। मैंने इधर उधर झान्क कर देखा और दबे पांव सीढियों को पार कर गई। छत पर कोई नहीं था। मैं धीरे से दीवार कूद कर अब्दुल के घर में आ गई। सोचा, चलो अब्दुल से ही चुदा लूं। अब्दुल दूसरी छत पर सोता था।
मैं दूसरी छत पर गई तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब्दुल और यूसुफ़ दोनों ही बिस्तर पर थे। अब्दुल नंगा था और यूसुफ़ ने अपना लण्ड अब्दुल की गाण्ड में घुसा रखा था, और मस्ती कर रहे थे।
“करते रहो … मुझे देखने दो … मजा आ रहा है !” मुझे उनकी मस्त गाण्ड चुदाई देख कर मजा आने लगा था। मेरी गाण्ड में भी तरावट आने लगी थी।
“यूसुफ़ चोद यार … साली मेरी गाण्ड की मां चोद दे, लगा लौडा … !”
“यूसुफ़ कैसा लग रहा है गाण्ड मारते हुए?” मैंने पूछा, मेरा जी गाण्ड चुदाई के लिये मचलने लगा था ।
“साले की गाण्ड है या मक्खन मलाई … क्या लन्ड चलता है !” यूसुफ़ कराहते हुये बोला।
“लगा ना, जोर लगा, मेरी गाण्ड में लण्ड का बहुत मजा आरहा है।” अब्दुल गाण्ड मराने के मजे ले रहा था। मुझे भी लगा कि यूसुफ़ मेरी गाण्ड भी ऐसे ही चोद दे …
“यूसुफ़ … मेरी गान्ड भी चोद दे ना … अब्दुल को देख कर मेरी गान्ड भी मचलने लगी है” मुझ से रहा नहीं गया तो बोल पड़ी।
“आजा बानो, तू क्यो पीछे रहे … तेरी भी बजा देता हूं ” यूसुफ़ तो जैसे तैयार ही था।
“सच में … ” मैंने तुरन्त अपना पजामा उतार दिया और कमीज़ ऊपर करके उल्टी लेट गई। यूसुफ़ तुरन्त मेरी पीठ पर चढ़ गया और मेरी पोन्द खोल दी। अन्दर का गुलाब खिल उठा। उसका सूजा हुआ मोटा सुपाड़ा मेरी गाण्ड के गुलाब पर रगड़ मारने लगा और कुछ ही क्षणों में मेरी चिकनी गान्ड के छेद में समा गया। मेरा मन खुश हो गया। उसका लण्ड बड़ा और भारी था। उसका बाहर आना और अन्दर जाना ही मुझे मस्त किये दे रहा था।
“भोसड़ी के, मेरी गाण्ड तो मार पहले … लौंडिया देखी और पलट गया हरामी ?” अब्दुल निराश सा हो गया था।
“क्यूँ नाराज हो रहा है … पीछे आ जा … मेरी मार ले ना … ये भी तेरी जैसी ही चिकनी है, तीनो मजा लेंगे !” अब्दुल को यह ठीक लगा। अब्दुल पीछे आ कर यूसुफ़ की पोन्द पर लण्ड रगड़ने लगा और … और … यूसुफ़ कराह उठा … “मार दी रे मेरी … मादर चोद धीरे कर … !”
“यूसुफ़ … मेरी तो मार ना … मेरी पोंद तो फ़ुलफ़ुला रही है !” वो दोनों ही अपने आप को एडजस्ट करने में लगे थे, मैंने अपने पांव और खोल दिये। अब स्थिति यह थी कि यूसुफ़ मेरी गाण्ड चोद रहा था और अब्दुल यूसुफ़ की गाण्ड मार रहा था। यूसुफ़ मेरे चूंचे मसल रहा था।
मेरा जिस्म वासना की मीठी मीठी जलन से सुलग उठा था। पर मैं हिल नहीं सकती थी, दोनों तरफ़ से मस्त धक्के चल रहे थे। मेरी चूत से पानी टपकने लगा था। गाण्ड तो चुद ही रही थी, पर अब चूत भी मचलने लगी थी। मुझे अब लगने लगा था कि अब मेरी चुदाई भी हो जाये तो स्वर्ग में पंहुच जाऊँ।
पर ये क्या … जैसे मेरी यूसुफ़ ने सुन ली।
“अब्दुल … चल हट … भेन चोद … इस रंडी की चूत का भी मजा लेने दे … खड़े हो कर चोदेंगे यार !”
हम तीनों ही खड़े हो गये। अब्दुल ने मेरी टांग उठाई और मेरी गाण्ड में लण्ड घुसेड़ दिया … और सामने से यूसुफ़ ने बड़े प्यार से अपना लम्बा लण्ड चूत में पेल दिया। मेरे मुँह से आह निकल पड़ी … मेरी चूत में और गाण्ड में दो दो लण्ड फ़ंस चुके थे। लण्डों का भारीपन मुझे बडा मजा दे रहा था। एक ही साथ दोनों छेदो में लौड़े घुसे हुए थे … कैसा सुहाना एहसास था।
“यूसुफ़ … अब मजा आया भेनचोद … दो दो लण्ड फ़ंसा कर … चोद मादरचोद, जोर लगा, याद करेगा कि बानो की मारी थी !” मैंने मस्ती में उन्हे बढावा दिया।
अब्दुल में मेरे चूंचे पकड कर मसलने लगा और यूसुफ़ ने मेरे होंठ अपने होंठ में दबा लिया। दोनों प्यार से मुझे चोद रहे थे। लण्ड फ़चाफ़च चूत में चल रहा था। अब्दुल के लण्ड से थोड़ी थोड़ी चिकनाई छूट रही थी जो मेरी गान्ड में लगती जा रही थी। गाण्ड के छेद में लण्ड का मोटापन महसूस हो रहा था। दोनों मुझे मस्त किये दे रहे थे।
“तेरी तो, छिनाल !… क्या चूत है … फाड़ दूँ तेरे भोसड़े को … !” यूसुफ़ ने मेरी चूत की तारीफ़ की।
” यूसुफ़ भाई … गाण्ड में लण्ड चला कर तो देख … बानो की चूत जैसी नरम है।” अब्दुल ने भी मेरी तारीफ़ की ।
“हाय रे … लड़की की गाण्ड है नरम तो होगी ही …
मादरचोदो ! चोद डालो ना मेरी इस भोसड़ी को … पानी निकाल दो इस हरामजादी चूत का !” मैं अपनी कमर को एक मंजी हुई चुद्दक्कड़ की तरह हौले हौले हिला हिला कर दोनों लण्ड का मजा ले रही थी।
अचानक अब्दुल ने पीछे से मेरी कमर खींच ली और अपना लौड़ा पूरा पेल दिया। मेरी गाण्ड में जलन सी हुई, थोड़ा सा दर्द हुआ … अब्दुल के लण्ड ने अपना वीर्य मेरी गाण्ड में छोड़ दिया, वो झड़ चुका था। मेरे चूंचे भी उसने साथ ही छोड़ दिये। तभी मेरे शरीर में मीठापन भरने लगने लगा।
अब मेरी बारी थी झड़ने की।
“यूसुफ़ … भेन-चोद … मै मर गई !… चोद ओर जोर से चोद …! मादरचोद ठोक दे चूत को …! आह्ह्ह् … आह्ह्ह्ह् … ईईईई … चल रे … चला लौड़ा … मर गई … साले हारमजादे … पकड़ ले मुझे … मेरा निकला !” तभी यूसुफ़ ने जोर से मुझे भींच लिया
“मार दिया रे छिनाल तूने मुझे … ! निकला मेरा भी रे … ” और मेरी चूत में लण्ड जोर से गड़ा दिया।
मैं सीमा तोड़ कर उससे लिपट गई। … दोनों ही झड़ रहे थे। उसका वीर्य मेरी चूत में भर कर कर नीचे टपकने लगा। ग़ाण्ड से भी वीर्य की बरसात हो रही थी। मुझे वहीं बिस्तर पर उन्होनें लेटा दिया। मैं खड़े खड़े थक गई थी। मेरी सांस धीरे धीरे अब काबू में आने लगी थी। दोनों ही मेरे चूंचो से और पोन्द से खेल रहे थे। कभी चूत की दरार पर हाथ फ़ेर रहे थे और कभी गाण्ड की दरार पर।
यूसुफ़ से चुद कर मेरी सन्तुष्टि हो चुकी थी। मेरा काम हो गया था। मैंने उठ कर अपने कपड़े पहने।
“बानो ! एक बार और चुदवा जा … मेरा लन्ड शान्त हो जायेगा !” यूसुफ़ ने विनती की …
पर यहाँ मैं तो मजा ले चुकी थी …
“दोस्तो अब अपनी मां चुदाओ … घर जा कर अपनी बहन को चोद ! मारो ना गाण्ड यूसुफ़ की अब … मै तो चली … !” मैंने अपने दोनों पोन्द मटकाये और हंसते हुये कल का वादा कर लिया।
मैं चुपचाप दीवार कूद कर नीचे आ गई। बिना किसी आहट के मैं दबे पांव अपने कमरे में आ गई। अन्धेरे में बिस्तर में घुस कर रजाई खींच ली।
मैं अचानक छटपटा उठी। मेरे मौसा जी पहले ही मेरे बिस्तर पर मेरा इन्तज़ार कर रहे थे। मौसा जी ने मुझे कमर से जकड़ लिया था।
“मेरे से भी तो चुदा ले रांड … ये देख मेर लौड़ा तेरे भोसड़े में जाने के लिये तैयार है !” वो फ़ुसफ़ुसा कर बोले।
“मौसा ! …साले ! तेरी मां की चूत ! … छोड़ मुझे !… तेरी मां चोद दूंगी ! साले … हरामी ! बहन के लौड़े !” हमारे घर में गाली दे कर बात करना तो आम बात थी।
मौसा जी के बलिष्ठ जिस्म ने मुझे जकड़ लिया था और एक हाथ से उनका कमाल देखने लायक था। मेरा कुर्ता उपर उठ चुका था और नाड़ा खिंच चुका था। उनके हाथ मेरे बोबे पर कस चुके थे। मैं तड़पती रह गई।
मेरा पजामा नीचे आ चुका था। मौसा जी ताकतवर थे, मैं कुछ ना कर कर पाई। मौसा का लण्ड बहुत ही मोटा लगा।
स्पर्श पाते ही, मन ही तो है … ललचा गया।
उनका लण्ड मेरी चूत लगते ही मेरे पांव अपने आप उठने लगे। लण्ड चूत में समाने लगा। मौसा जी से छूटना मुश्किल था। अब लण्ड का साईज़ महसूस करके छूटना किसको था। लौड़ा आधा तो घुस ही चुका था, ऐसा मस्त मोटा लण्ड का चूत में घुसना … मेरा मन उन पर आ गया।
मैंने अपनी चूत ढीली छोड़ दी और लण्ड को सीधा ही अन्दर घुसने दिया। लण्ड चूत की खाई में पूरा ही कूद चुका था। मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी … नरम मोटा सुपाड़ा गद्दीदार था, सुहाना मजा दे रहा था।
“मौसाजी … आप बडे वो हैं … इतना मोटा लण्ड … हाय रे … फ़ाड डालोगे क्या ?”
“चुप धीरे धीरे चोदूंगा … शोर मत मचाना … वर्ना एक हाथ पड़ जायेगा … भोसड़ी की !!”
यहाँ तो मजा आ रहा था इतने मोटे लण्ड का। … मौसा जी की धमकी कोई मायने नहीं रखती थी, लौड़ा तो वो पेल ही चुके थे। मेरी चूत की दीवारें भारी लण्ड से रगड़ खा रही थी। चूत मस्ता उठी, पानी से गीली हो गई।
“मौसा जी, मुझे पहले चोदना था ना, मैं तो आपको मौसी को चोदते हुये रोज़ देखती हूँ … आज तो मेरा नम्बर भी आ ही गया !“
“तो इशारा क्यों नहीं किया छिनाल … लौड़ा तो होता ही चूत के लिये है …! ”
मौसा का लौड़ा मस्त मुस्टन्डा था। खूब कसता हुआ अन्दर आ जा रहा था। मेरी तो मन की चुदाई आज हो रही थी। चूत में थोड़ा दर्द भी हुआ पर मस्ती के आगे वो कुछ नहीं था। मौसा ने मेरी सहमति पा कर जोर जोर से चोदना चालू कर दिया। चुदते चुदते इस दौरान मैं दो बार झड़ गई, पर मोटे लण्ड से बार बार चुदने की चाह होने लगी थी।
तभी मौसा ने लण्ड ने ढेर सारा वीर्य उगल दिया। मेरा सारा बिस्तर गीला कर दिया। कभी कभी कोई दिन ऐसा भी आता था कि जब ज्यादा बार चुद जाती थी और काफ़ी बार झड़ भी जाती थी, तब मैं थक कर चूर हो जाती थी। आज भी मैं चुदने के बाद थकान के मारे जाने कब सो गई।
सुबह मौसा जी आये और मुझे जगा दिया,”कपड़े तो पहन ले … ।”
और फिर वो मुस्कराते हुए चले गये।
मुझे घर में ही एक सोलिड मोटा मस्त लण्ड मिल चुका था … आज से अब मुझे मस्त चुदने का मौका मिलेगा ये सोच कर मैं खुश हो उठी … ।
साला मौसा हारामी … अपनी ही बेटी समान को चोद कर मस्त कर गया।
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