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प्रेषक – गणेश
नमस्कार दोस्तों मैं गणेश, पुणे में रहता हूँ। मैं इस वेबसाईट का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ और मैंने इसपर लगभग सारी कहानियाँ पढ़ी हैं। कभी-कभी मुझे लगता है कि इस साईट की कहानियाँ नकली होतीं हैं पर जब मैं अपनी पहली घटना को याद करता हूँ तो तब मुझे लगता है कि कुछ भी सम्भव है।
मैं अपनी एक वास्तविक कहानी लिख रहा हूँ, अगर आपको पसन्द आए तो मुझे उत्तर लिखें।
तो अब मैं अपनी कहानी पर आता हूँ। बात उस समय की है जब मैं कॉलेज में पढ़ता था…
मेरे अन्तिम परीक्षाएँ समाप्त हो चुकी थीं और मैं उदयपुर से अपने पैतृक नगर सूरत ट्रेन से जाने वाला था। शाम के चार बजे थे, मैं सही समय पर स्टेशन पहुँच गया था, मेरी सीट किनारे और नीचे वाली थी। मैं ट्रेन में बैठा हुआ सोच रहा था कि आगे क्या करना है। वैसे ट्रेन में कोई अधिक भीड़ नहीं थी। जैसे ही ट्रेन चलने लगी, मैंने देखा कि एक औरत जो लगभग ३०-३२ साल की थी आई। उसने मुझसे पूछा कि आपकी सीट कौन सी है। मैंने उसे बताया – “सीट नम्बर ११” उसने अपनी टिकट देखी उसकी सीट की संख्या १२ थी, यानि ऊपर वाली सीट। उसके साथ उसका ३ साल का लड़का भी था। वह खिड़की पर आकर बैठ गया।
उस महिला ने मुझसे पूछा, “क्या सामान रखने में आप मेरी थोड़ी सी सहायता कर सकते हैं?” मैंने उसकी सहायता की और सारा सामान सही-सही सीट के नीचे रख दिया। वह ऊपर जाकर बैठ गई। उसका लड़का नीचे ही बैठा था और मेरे साथ खेल रहा था।
ट्रेन चलती गई, १ घंटे के बाद पहला स्टेशन आया, तो वह नीचे उतर आई और चाय वाले को आवाज़ देकर चाय लेकर पीने लगी। मैंने भी चाय ली। जब वह पैसे देने लगी, तो मैंने कहा कि मैं दे देता हूँ, और मैंने दोनों की चाय के पैसे दे दिए। थोड़ी देर बाद हम बातें करने लगे। वह नीचे की सीट पर ही बैठी थी।
“मेरा बच्चा परेशान तो नहीं कर रहा है?”
“नहीं… बिल्कुल नहीं” – मैंने उत्तर दिया।
“आप कहाँ जा रही हैं?” चाय पीते-पीते ही मैंने उससे पूछा।
“मुम्बई !” उसने बताया।
“आपके पति नहीं जा रहे हैं?”
उसने बताया कि उसका तलाक़ हो चुका है और वह अपने भाई के घर जा रही है। कुछ देर की चुप्पी के बाद हमारी बातें दुबारा शुरु हो गईं।
उसने मुझसे पूछा – “आप क्या करते हैं?”
“मैंने अभी-अभी कॉलेज की पढ़ाई खत्म की है और मैं घर जा रहा हूँ।”
थोड़ी देर बाद मैंने अपने बैग में से मिक्सचर निकाले और उसे ऑफर किया तो वो भी मेरे साथ खाने लगी। अब मैं उसके बिल्कुल पास बैठा था और मैंने मिक्सचर वाला हाथ उसकी गोद में रख दिया तो मेरा हाथ उसकी जाँघ को छूने लगा। ट्रेन के हिलने से मेरा हाथ उसकी जाँघ से रगड़ रहा था, शायद उसे भी अच्छा लग रहा था।
फिर हम दोनों के बीच काफी बातें हुईं। उसने मुझसे पूछा कि क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेण्ड है, तो मैंने कहा कि नहीं। उसने कहा कि ऐसा हो ही नहीं सकता। तो मैंने कहा कि कोई पसन्द ही नहीं आई। थोड़ी देर बाद शाम के सात बज गए और बाहर अन्धेरा हो गया। ट्रेन क़रीब-क़रीब खाली थी। हम लोगों को कोई भी देखता तो यही समझता था कि पति-पत्नी होंगे क्योंकि हम काफी आराम से बातें कर रहे थे।
कुछ देर के बाद मैं पैर फैलाने को हुआ तो वह सरक गई। मैंने भी उससे कहा कि आप थक गईं होंगी, आप भी पैर फैला लीजिए। वह भी अधलेटी सी हो गई। अब उसके पाँव मेरी ओर और मेरे पाँव उसकी ओर थे। उस समय थोड़ी-थोड़ी ठंड लग रही थी, तो मैंने शॉल ओढ़ ली। मेरा एक पाँव उसकी गाँड से और उसका एक पाँव मेरी गाँड से छू रहा था।
थोड़ी देर में मुझे अच्छा लगने लगा और वह भी उत्तेजित हो गई। मेरा लंड खड़ा हो गया। फिर मैंने थोड़ी और आज़ादी से अपने पैरों को उससे छुआया तो वह कुछ भी नहीं बोली। मैं भी समझ चुका था कि वह तैयार है। अब वह भी मुझे ठीक से छूने लगी थी। मैं खुज़ली करने के बहाने उसके पैरों को छुआ तो उसने कहा कि ठीक से पैर फैला लो। मैंने कहा ठीक है, फिर मैं थोड़ा और लेट गया। थोड़ी देर बाद हमने खाना खा लिया।
ट्रेन में सभी शायद यही समझ रहे होंगे कि हम पति-पत्नी हैं। कुछ देर के बाद उसका बच्चा सो गया। वह नीचे ही सो रहा था। हमने ऊपर में किनारे बैग रखकर उसे ऊपर की बर्थ पर सुला दिया। अब ट्रेन में बत्ती धीरे-धीरे बुझ चुकी थी। सिर्फ दो-तीन केबिन में ही नाईट-बल्बें जल रही थीं। इत्तेफाक़ से हमारी जगह पर बत्ती लगी ही नहीं थी।
हम फिर शॉल ओढ़ कर फिर से वैसे ही अधलेटे रहे। उसने फिर से गर्लफ्रेण्ड की बात छेड़ दी, तो मैंने कहा – “गर्लफ्रेण्ड तो नहीं है, पर…”
“पर क्या…?”
“कुछ नहीं…?”
उसके बार-बार पूछने पर मैंने कहा – “आप बुरा मान जाएँगी”
“नहीं मानूँगी।”
“…हाँ, पर मैंने मस्ती बहुत की है…”
“और वो…?”
अब वह भी उत्तेजित लग रही थी और पूरी लेट गई थी और मैं भी…, अब मेरे लंड उसकी गाँड के पास छू रहा था। मेरा ८ इंच का लण्ड खड़ा हो गया। मैंने लंड को सम्भालने के लिए हाथ बढ़ाया तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। अब मैं समझ गया कि वह पूरी तरह से तैयार है।
अब मैं उसका पेट नीचे से सहला रहा था फिर उसके पेटीकोट में नीचे से हाथ डालकर उसकी जाँघों तक भी सहलाना शुरु किया। वह पूरी तरह से गरम हो चुकी थी। मैंने उससे कहा कि मेरे किनारे में आ जाए तो अब हम एक ही किनारे में लेटे हुए थे। हमने कम्बल ओढ़ ली थी, क्योंकि एक तो ठंड वैसे भी थी और ऊपर से एसी कोच होने के कारण ठंड का असर अधिक ही थी। मैंने सामने का परदा डाल दिया, और पाया कि ठंड की वजह से सारे लोग सो रहे थे। परदा डाल कर मैं वापस आया।
मैंने उसे चूमा और उसकी चूचियों को ब्लाऊज़ के ऊपर से ही दबाने लगा। उसने मेरा लंड पकड़ लिया था। मैं उसकी चूचियाँ दबा रहा था और वह पैन्ट के ऊपर से ही मेरे लंड को दबा रही थी। धीरे-धीरे मैं आगे बढ़ा और उसके ब्लाऊज़ में हाथ डालकर उसकी चूचियों को दबाने लगा।
मैंने उसकी ब्लाऊज़ के हुक खोल दिए, उसकी मलाई जैसी चूचियाँ मुझे दिख रहीं थीं। मैंने उसकी चूचियाँ अपने मुँह में ले लीं और कभी बाईं तो कभी दाईं चूची को चूसने लगा। मैं अब उसे चोदना ही चाहता था, मैंने उससे कहा कि तुम टॉयलेट में आ जाओ। मैं पहले जाता हूँ, तुम २ मिनट के बाद आ जाना।
मैंने टॉयलेट में जाते समय अटेण्डर को २०० रुपये दिए और कहा कि बच्चे का ख्याल रखना, तो वह समझ गया।
मैं टॉयलेट में जाकर प्रतीक्षा करने लगा। २ मिनट को बाद वह उसने धीरे से दरवाज़ा खोला, मैंने उसे झट से अन्दर खींच लिया और दरवाज़ा लॉक कर लिया। मैंने उसकी ब्लाऊज़ खोल दी और साड़ी भी अलग कर उसकी चूचियों को चूसने लगा। वह फिर से उत्तेजित हो रही थी। मैंने उसकी पेटीकोट खोल कर उसे पूरी नंगी ही कर दिया। मैंने देखा, उसकी चूत पर एक भी बाल नहीं था। उसकी क्लीन-शेव चूत को देखकर मैं उसकी चूत रगड़ने लगा।
अब उसने मेरी पैन्ट की ज़िप खोली और मेरे लंड को हिलाने लगी। थोड़ी देर बाद वह झुकी और लंड को गप्प से अपने मुँह में डाल लिया और लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। मैं तो सातवें आसमान पर था। मैंने मेरी पैन्ट और टी-शर्ट पूरी उतार दी। मैं उसकी चूत पर हाथ रख रगड़ रहा था, जिससे उसकी चूत ने रस छोड़ना शुरु कर दिया। मैं नीचे झुका और उसकी चूत चाटने लगा। वह और भी उत्तेजना से भर गई। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं। मैं भी मज़े ले-लेकर उसकी चूत को चाट रहा था और दाहिने हाथ से उसकी चूचियों को बारी-बारी से दबा भी रहा था।
इतना सब होने के बाद अब उससे रहा नहीं जा रहा था… उसने मुझसे कहा कि अब मत तड़पाओ…
उसके ऐसा कहने पर मैंने उसका एक पाँव टॉयलेट के कमोड पर रखा तो उसकी चूत फैल गई, और मैंने अपना लंड एक ही बार में पूरा-का-पूरा उसकी चूत में डाल दिया। वह चिल्ला पड़ी, मैंने तुरन्त उसे फ्रेंच किस दिया और धीरे-धीरे अपने लंड को अन्दर-बाहर करने लगा।
वह सिसकियाँ ले रही थी। अब वह छूटने वाली थी और उत्तेजना के मारे चिल्ला रही थी कि और ज़ोर से, और ज़ोर से…
मैं अब लम्बे-लम्बे झटके देने लगा और २ मिनटों के बाद हम दोनों एक ही साथ झड़ गए।
हम बाहर आए और अपनी सीट पर बैठ गए और एक-दूसरे को चूमने लगे। वह धीरे-धीरे मेरे लंड को सहला रही थी और मैं उसकी चूचियाँ भी दबा रहा था। थोड़ी ही देर में मेरा लंड फिर से कड़क हो गया तो मैंने चुदाई का कार्यक्रम बर्थ पर भी शुरु कर दिया। हमारा ये कार्यक्रम पूरी रात चला। मैंने उसे रात भर में ३ बार और चोदा।
सुबह हमने एक-दूसरे को चूमा और अलविदा कह चल पड़े।
तो यह था मेरा पहला अनुभव
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