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लेखिका : दिव्या डिकोस्टा
मैं किरण, तीस वर्ष की एक नर्स हूँ, सरकारी अस्पताल में काम करती हूँ। स्टाफ़ की कमी के कारण मुझे काफ़ी काम देखना पड़ता था। इन दिनों मेरी नाईट-शिफ़्ट चल रही थी। अचानक ही कोई वार्ड के बाहर दिखा। कोई जवान लड़का था। उसने अपना सामान दरवाजे के बाहर ही रख दिया। मैंने उसे घूर कर देखा- यह कौन सामान के साथ होस्पिटल में आ गया?
मैं तुरन्त गई और पूछा,”आप कौन हैं? …. इतना सामान….?”
“जी….मैं….राज…. मैं यहाँ ट्रान्सफ़र पर आया हूँ…. कम्पाऊंडर हूँ….”
“ओह….आईये….मेरा नाम किरण है !” सामान एक तरफ़ रखवा कर मैंने उसे बताया कि ऑफ़िस में जाकर अपनी ड्यूटी जोईन कर ले और पता लगा ले कि ड्यूटी कहाँ है।
राज कुछ ही देर में वापस आ गया। उसे मेरे ही सेक्शन में लगाया था। उसका सामान रेस्ट रूम में रखवा दिया। मेरा जूनियर था…. नया था शायद पहली बार इस शहर में आया होगा…. उसके रहने का कोई ठिकाना नहीं था…. कुछ सोच कर मैंने उसे क्वार्टर मिलने तक मैंने अपने क्वार्टर में रहने को कह दिया। मैं अभी कुछ ही दूर किराये के मकान में रहती थी और पहली तारीख से अस्पताल के क्वार्टर में शिफ़्ट करना था। उसे मैं सामने ही होटल में खाने के ले गई…. मेरे पास अपना टिफ़िन था।
बातचीत में पता चला कि वो पास ही गांव का था। कुछ ही देर में हम दोनों घुल मिल गये थे। राज बहुत हंसमुख था। छोटी मोटी बातों का बुरा नहीं मानता था। मेरे से वो लगभग छ: वर्ष छोटा था। पर चूंकि गांव से था इसलिये उसका शरीर भी गठा हुआ और रफ़ भी था। पर पहली ही नजर में मुझे वो अच्छा लगने लगा था। वो भी मुझसे मिलकर बहुत खुश था। उसे मेरा जिस्म और फ़िगर को बार बार निहारने में अच्छा लग रहा था, बिलकुल वैसे ही जैसे कि एक साधारण लड़का लड़की के अंगो को निहारता है।
राज को मेरे साथ ही काम करना था। उसकी और मेरी ड्यूटी साथ ही लगती थी। आज मैंने उसे एक दिन आराम करने का मौका दिया और अगले दिन से उसे भी नाईट ड्यूटी पर आना था। कुछ ही दिनों में हम दोनों में अच्छी बनने लग गई थी। मेरी मुस्कान उसे बहुत अच्छी लगती थी। बार बार वो यही कहता था कि आप हमेशा मुस्कुराते रहिये….अच्छी लगती हैं।
कुछ ही दिनों में मेरी नजरें भी बदलने लग गई। वो मुझे सेक्सी लगने लगा। उसमे मुझे मर्द नजर आने लगा था। मेरी नजरें रह रह उसके कभी लण्ड पर जाती और कभी उसके सुडौल चूतड़ों पर जाती। मेरी मन की भावनाएँ मैली होने लगी। मुझे लगाता कि काश….मैं उससे चुदवा पाती….। ऐसा नहीं था कि मेरे पति मेरा ख्याल नहीं रखते थे….मैं उनके साथ बहुत खुश थी। मेरा एक लड़का भी था….पर शायद मुझे नया माल….नया लण्ड मिलने की चाह थी। राज भी मेरे अन्दाज़ को भांप गया था। उसकी शादी नहीं हुई थी…. उसे भी शायद किसी लड़की को चोदने की इच्छा हो रही होगी। मैं मजाक में कभी कभी आजकल उसके चूतड़ो पर हाथ भी मार देती थी। वो सिहर उठता था।
आज मैं राज के साथ कुछ कर गुजरने की नीयत से ही आई थी….मैं ना तो अन्दर पेन्टी पहनी थी और ना ही ब्लाऊज के भीतर ब्रा….। इससे मेरे अंगों की थिरकन अधिक नजर आ रही थी। हम नेत्र-विभाग में थे …. वैसे भी इन दिनों मरीज बहुत ही कम थे….डाक्टर भी नौ बजे राऊन्ड ले कर हिदायतें दे कर चला गया था। मरीज हॉल में कम ही थे….हम दोनों उन्हें चेक कर के बैठ गये थे….
लगभग सभी मरीज सोने की तैयारी कर रहे थे। राज बार बार मेरे आगे पीछे चक्कर लगा रहा था। शायद मौके की तलाश में था। मैंने जानबूझ कर उठ कर पास वाले चादर और कम्बल वाले कमरे में चादर लेने गई। राज भी पीछे पीछे आ गया,”मैं आपकी कुछ मदद कर दूँ….?”
“हाँ….राज मैं स्टूल पर चढ़ रही हूँ ….देखना स्टूल डगमगाये ना….!” मैंने अपनी शरारत शुरू कर दी…. उसे पटाना तो था ही….मैं सोच रही थी कि उस पर गिरने का बहाना करके उससे लिपट जाऊंगी…. पर चोर तो उसके दिल में भी था…. पहल उसने ही कर दी…. एक हाथ उसने मेरे चूतड़ पर रख दिया…. और एक हाथ कमर पर…. उसके हाथ लगाते ही बिना पेन्टी के मेरे चूतड़ मुझे नंगे से लगे। मुझे लगा कि मेरे नंगे चूतड़ ही उसने पकड़ लिये हों। मुझे कंपकंपी सी दौड़ गई। मैंने अपने होंठ भींच लिये। मुँह से आह निकलते निकलते रह गई।
“अरे….स्टूल पकड़ो….ये क्या पकड़ रखा है….?” मैंने अपने चूतड़ों को मटकाया। उसने मुझे हल्का सा खींच कर अपने ऊपर गिरा लिया। मैं कटी पतंग की तरह उसकी गोदी में आ गिरी….।
“कैसा रहा ये झटका….?” वो शरारत से बोला….
“क्या करता है राज….कोई देख लेगा ना….चल उतार मुझे….” मैंने मुस्करा कर कहा, उसने जानकर अपने चेहरे को मेरे चेहरे से जोश में आ कर भींच लिया।
“हाय किरण जी….क्या जालिम मुस्कान है आपकी….!” मुझे आंख मारते हुए मेरे चूतड़ो को दबा दिया और नीचे उतार दिया।
“क्या करते हो ऐसे…. चलो हटो सामने से….” मैंने उसे धक्का दिया….पर उसने मेरा हाथ पकड़ कर मेरे साथ ही वो कम्बलों के ऊपर गिर पड़ा और मुझे दबा दिया। उसने गिरते ही उसने मेरे होंठों को अपने अपने होंठ से भींच लिया और उसके दोनों हाथ मेरे स्तनों पर आ गये। मैं आनन्द से भर उठी। वासना के मारे मैंने अपने होंठ दांतो से काट लिये। मैंने अपने पांव खोल कर कोशिश की कि उसका लण्ड मेरी चूत पर रगड़ मार दे। वो भी इधर उधर हो कर यही कोशिश कर कर रहा था। कुछ ही पलों में मेरी फूली हुई चूत उसके लण्ड से टकरा गई और ऊपर से उसने अपने लण्ड का जोर मेरी चूत पर डाल दिया। मैं भी अपनी चूत को ऊपर उभार कर उसके लण्ड से रगड़ खाने में सहायता करने लगी।
“छोड़ दो ना अब…. हाय….क्या कर रहे हो…. !!”
“प्लीज….करने दो ना….नीचे आपकी नरम नरम कितनी अच्छी लग रग रही है….!”
मैं पसीने में नहा उठी। मेरा अंग अंग वासना से जलने लगा….वो भी एक कुत्ते की तरह से अपनी कमर हिला हिला कर मेरी चूत पर अपने लण्ड को घिस रहा था। मेरी चूत में आग भड़क उठी थी। लण्ड लेने को मेरी चूत बेताब होने लगी। मैं चूत का और जोर लगाने लगी…. हाय रे…. कैसी मदहोशी है…. चूत गीली और चिकनी हो चुकी थी। मेरे दोनों स्तन उसके हाथों से बुरी तरह मसले जा रहे थे। ब्रा नहीं होने के कारण चूंचिया बाहर निकल पड़ी थी। चूचुक कड़े हो चुके थे….
अचानक बाहर किसी की आहट आई। राज उछल कर खड़ा हो गया और एक चादर मेरे पर खींच कर डाल दी। मैं आंखे बन्द किये हांफ़ती रही। अपने आपको संयत करने लगी। मैंने चादर अलग करके अपने को ठीक किया। अपनी ड्रेस को सम्हाल कर मैंने बाहर झांका। राज किसी दूसरी नर्स से बात कर रहा था। कुछ ही देर में वो नर्स चली गई। मुझे फिर से लगने लगा कि राज मेरे साथ फिर से वही करे….
जल्दी ही मौका मिल गया। रात की एक बज रहा था। सभी गहरी नींद में सो चुके थे। राज मुझे चोदने के इरादे से रेस्ट रूम में ले आया। जहां डॉक्टर चाय नाश्ता और रेस्ट वगैरह करते हैं। कमरे में आते ही उसने मेरे दोनों चूचक दबा दिये और कुछ देर मसलता ही रहा। आहें भर भर के मैं मसलवाती रही। मैं उसके चेहरे को प्यार से निहारती रही। अपने स्तनों को और उभार के उसके हाथो में भरने लगी। उसने अचानक ही अपना एक हाथ मेरी चूत पर रख दिया और दबाने लग गया। मेरे मुख से आह निकल पड़ी।
“राज… बस कर …. ऐसे नहीं….हाय रे….!” पर उसने चूत पर हाथ जमा लिये थे…. मेरी चूत को तरह तरह से सहलाने व दबाने लगा। मैं आनन्द के मारे दोहरी हो गई, तड़प उठी….हाय रे ये मेरी चूत में अपना लण्ड क्यों नहीं पेल दे रहा है…. मैंने भी अब सारी शरम छोड़ कर उसका लण्ड पकड़ लिया।
” राज …. ये पकड़ लूं….?”
“पकड़ ले….पर फिर तू चुद जायेगी ….” उसके मुँह से चुदना शब्द सुन कर मैंने भी होश खो दिये….
“राज …. क्या कहा? चोदेगा?….राम रे…. और बोल न…. तेरा लण्ड मस्त है रे…. सोलिड है….” मैंने पूरा जोर लगा कर उसके लण्ड को मरोड़ दिया…. वो सिसक उठा। मैंने उसे लगभग खींचते हुए कहा….” राज…. बस अब…. आह …. देर किस बात की है….मां री…. राज…. आजा….ऽऽऽ”
राज ने दरवाजे को पांव से धक्का दे कर बन्द कर किया और उसने अपनी पैन्ट खोल दी। उसका कड़कता हुआ लण्ड बाहर निकल कर सीधा तन गया। मैंने अपनी साड़ी उतार फ़ेंकी और ब्लाऊज भी उतार दिया और हाथ फ़ैला कर उसे बाहों में आने का न्योता दिया। मेरी चूत पर बड़ी और काली झांटे चूत की शोभा बढ़ा रही थी….मेरा नंगा जिस्म देख कर वो अपना होश खो रहा था।
वो धीरे से मेरे पास आ गया और मैंने उसका नंगा लण्ड अपने हाथ में थाम लिया। उसके लण्ड के ऊपर की काली चमकदार झांटे काफ़ी बड़ी थी। गांव का लण्ड…. मोटा…. खुरदरा …. बलिष्ठ….और मेरी शहर की नरम कोमल चूत….मैंने उसके लण्ड की चमड़ी उपर करके उसका चमकदार लाल सुपाड़ा निकाल लिया। उसकी झांटों के बाल मुझे खीचने में मजा आ रहा था…. मुझे लगा कि लण्ड कुछ ज्यादा ही मोटा है…. पर मैं तो चुदने के लिये बेताब हो रही थी।
मेरी कुलबुलाहट बढती जा रही थी। उसने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया। मेरी टांगें स्वत: ही ऊपर उठ गई। राज मेरी दोनों टांगों के बीच में सेट हो चुका था। उसका चमचमाता लाल सुपाड़ा मुझे सैर पर ले जाने के लिये बैचेन हो रहा था। इन्तज़ार की घड़िया समाप्त हुईं…. सुपाड़ा चूत के द्वार पर दस्तक दे रहा था…. मेरी आंखे नशे में बन्द होती जा रही थी। मेरी झांटे को पकड़ कर उसने अपने लण्ड को मेरी चूत में दबा दिया। थोड़े से जोर लगाने के बाद उसका लण्ड मेरी चूत में सरसराता हुआ प्रवेश कर गया। गीली चूत ने उसका स्वागत किया और अपने में लण्ड को समेटते गई।
दोनों खुश थे….यानि मैं और राज और दूसरी ओर लण्ड और चूत….। लण्ड चूत की गहराईयों में डूबता चला गया…. मैं सिसकारी भरती हुई लण्ड को अपने भीतर समाने लगी। मेरे बोबे तन गये…. लण्ड जड़ तक उतर चुका था। उसके हाथ मेरे बोबे पर कसते चले गये…. उसका खुरदरा और मोटा लण्ड देसी चुदाई का मजा दे रहा था। मेरी चूत ने उसके लण्ड को लपेट लिया था और जैसे उसका पूरा स्वाद ले रही थी। बाहर निकलता हुआ लण्ड मुझे अपने अन्दर एक खालीपन का अहसास कराने लगा था पर दूसरे ही क्षण उसका अन्दर घुसना मुझे तड़पा गया। मेरी चूत एक मिठास से भर गई।
उसकी रफ़्तार बढ़ने लगी….चूत में मिठास का अहसास ज्यादा आने लगा। मेरा बांध टूटने लगा था। अब मैं भी अपनी चूत को जोर जोर से उछालने लगी थी। वासना का नशा….चुदाई की मिठास…. लण्ड का जड़ तक चुदाई करना….मुझे स्वर्ग की सैर करा रहा था। पति की चुदाई से ये बिल्कुल अलग थी।
चोरी से चुदाई…. देसी लण्ड…. और पराया मर्द….ये सब नशा डबल कर रहे थे। चुदाई की रफ़्तार तेज हो चुकी थी…. मैं उन्मुक्त भाव से चुदा रही थी। …. चरमसीमा के नज़दीक आती जा रही थी। शहर की बाला देसी लण्ड कब तक झेल पाती…. मेरा पूरा शरीर चुदाई की मिठास से परिपूर्ण हो रहा था…. बदन तड़क रहा था….कसक रहा था…. मेरा जिस्म जैसे सबकुछ बाहर निकालने को तड़प उठा……..
“अं ऽअऽअऽऽ ह्ह्ह्ह्ह्…. राज्……..हऽऽऽय …. चुद गई….ऐईईईइऽऽऽऽऽऽ….मेरा निकला रीऽऽऽ …. माई रीऽऽऽऽ …. जोर से मार रे…. फ़ाड़ दे मेरी….राऽऽऽज….” और मैं अब सिमटने लगी…. मेरे जिस्म ने मेरा साथ छोड़ दिया और लगा कि मेरा सबकुछ चूत के रास्ते बाहर आ जायेगा….मैं जोर से झड़ने लगी…. राज समझ गया था। वो धीरे धीरे चोदने लगा था। मुझे झड़ने में मेरी सहायता कर रहा था।
“किरण…. मेरी मदद करो प्लीज…. ऐसे ही रहो….!”
मैंने अपने पांव ऊपर ही रखे….गांव का देसी लण्ड था , इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था। अचानक मैं दर्द से छटपटा उठी। उसका ताकतवर लन्ड मेरी चूतड़ो को चीरता हुआ मेरी गाण्ड में घुस चुका था।
“नहीं…. नहीं राज….मैं मर जाऊंगी….!”
उसने मेरी एक नहीं सुनी….और जोर लगा कर और अन्दर घुसेड़ता चला गया….
“बस किरण…. हो गया…. करने दे….प्लीज….”
“मेरी गाण्ड फ़ट जायेगी राज…. मान जा…. छोड़ दे नाऽऽऽ”
अब उसके लण्ड ने मेरी गाण्ड पर पूरा कब्जा कर लिया था। उसने धक्के बढ़ा दिये…. मैं झड़ भी चुकी थी….इसलिये ज्यादा तकलीफ़ हो रही थी। उसने मेरे बोबे फिर से खींचने चालू कर दिये। मेरी चूंचियाँ जलने लगी थी। लग रहा था जैसे मेरी गाण्ड में किसी ने गरम लोहे की सलाख डाल दी हो…. पर जल्दी ही दर्द कम होने लगा…. मेरी सहनशक्ति काम कर गई थी। अब मैं उसके लण्ड को झेल सकती थी। मैं फिर से गरम होने लगी थी। उसकी गाण्ड चोदने की रफ़्तार बढ चली थी।
“मैं मर गया….किरण…. मै….मैं……..गया ….हाय….” उसने अपना लण्ड गाण्ड से बाहर खींच लिया। अचानक ही गाण्ड में खालीपन लगने लगा। मैं उसका लण्ड पकड़ कर जोर से दबा कर मुठ मारने लगी…. उसके लण्ड में एक लहर उठी और मैंने तुरन्त ही लण्ड को अपने मुख में प्यार से ले लिया। एक तीखी धार मेरे मुख में निकल पड़ी….फिर एक के बाद एक लगातार पिचकारी….फ़ुहारें….मेरे मुख में भरने लगी….मैंने सारा वीर्य स्वाद ले ले कर पी लिया….और अब उसके लण्ड को मुँह से खींच खींच कर सारा दूध निकाल रही थी। कुछ ही देर में वो मेरे पास पड़ा गहरी सांसे ले रहा था। मैंने भी अपने आप को संयत किया और उठ कर बैठ गई। राज भी उठ कर बैठ गया था।
जैसे ही हमारी नजर सामने उठी …. हम दोनों के होश उड़ गये…. सामने मेट्रन खड़ी थी…. मेरी तो हालत बिगड़ गई। हम दोनों भोंचक्के से मेट्रन को देखने लगे…. राज तुरन्त उठा….और नंगा ही डर के मारे मेट्रन के पैरों पर गिर पड़ा,”मेम….प्लीज हमे माफ़ कर दो….” राज गिड़गिड़ाने लगा।
मेरी तो रुलाई फ़ूट पड़ी ….चुदाई के चक्कर में पकड़े गये। नौकरी कैसे जाती है….सामने नजर आ रहा था….
“अब दोनों चुप हो जाओ….आगे से ध्यान रखो….दरवाजे की कुन्डी लगाना मत भूलो !….समझे? ….अब राज जरा मेरे कपड़े भी उतार दो….और किरण तुम बाहर ध्यान रखना….कि कहीं कोई आ ना जाये….!”
मैं भाग कर मेट्रन से लिपट पड़ी….और उनके पांव पर गिर सी गई…. और माफ़ी मांगने लगी…. मेट्रन पचास वर्ष की होगी…थोड़े से बाल सफ़ेद भी थे….पर उसका मन कठोर नहीं था….
“पगली….मैं भी तो इन्सान हूँ…. तुम्हारी तरह मुझे भी तो लण्ड चाहिये….जाओ खेलो, और जिन्दगी की मस्तियाँ लो….” और अपने कपड़े उतार कर मेरी जगह लेट गई। राज उसके बगल में लेट चुका था। मैंने अपनी ड्रेस पहनी और कमरे से बाहर आकर स्टूल लगा कर बैठ गई…. अन्दर वासनायुक्त सिसकारियाँ गूंजने लगी थी ….शायद मेट्रन की चुदाई चालू हो चुकी थी। मेरी धड़कन अब सामान्य होने लगी थी। मुझे लगा कि बस…. ऊपर वाले ने हमारी नौकरी बचा ली थी। मेट्रन अन्दर चुद रही थी….और हम बच गये थे….वर्ना ये चुदाई तो हम दोनों को मार जाती।
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