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यह मेरी पहली कहानी है। मैं अपने जीवन की उस घटना के बारे में बता रही हूँ जिसे मैंने आज तक किसी को नहीं बताया। आज मैं एक शादीशुदा स्त्री हूँ और अपने पति के साथ रहती हूँ। लेकिन अपनी पहली चुदाई को आज तक नहीं भुला पाई हूँ जो कि मेरे भाई के साथ थी।
बात उस समय की है जब मैं बी.ए. प्रथम वर्ष में पढ़ती थी। मेरी उम्र 18 साल थी। मुझे चुदाई के बारे में ज्यादा नहीं पता था, बस इतना जानती थी कि लड़का और लड़की कुछ करते हैं जिसमे बहुत मज़ा आता है। यहाँ तक कि मैंने किसी लड़के का लंड भी नहीं देखा था।
इस उम्र में चुदाई के लिए तड़पना एक सामान्य बात थी तो मैं भी तड़पती थी लेकिन घर की बंदिशों के कारण कोई ब्वॉयफ्रेंड नहीं था इसलिए मैं अभी तक कुँवारी थी। मैंने यह कभी भी नहीं सोचा था, मेरी पहली चुदाई मेरे बड़े भाई (बुआजी के लड़के) के साथ होगी। मेरे घर में मेरे अलावा मेरी माँ, मेरा एक छोटा भाई है।
अब मैं सीधे अपनी कहानी पर आती हूँ, हुआ यूँ कि मेरी नानी की तबियत अचानक ख़राब हो गई जो कि शहर से लगभग पचास किलोमीटर दूर एक गाँव में रहती थीं।
शाम के 7 बज रहे थे मम्मी को वहाँ जाना था लेकिन मम्मी को मेरी चिन्ता हो रही थी कि मुझे घर में अकेला कैसे छोड़े, क्योंकि सुबह मेरी एक विषय की परीक्षा थी। मम्मी सोचने लगी किसको मेरे साथ छोड़ कर जाए?
उन्होंने सबसे पहले चाचाजी को फ़ोन लगाया लेकिन चाचाजी उस समय शहर से बाहर थे और सुबह से पहले वापस नहीं आ सकते थे तब उन्होंने मेरे भैया (बुआ जी के लड़के) को फ़ोन लगाया जो कि शहर में ही दुकान करते थे।
मम्मी ने उनको सारी बात बताई तो वो आने के लिए तैयार हो गए। मेरी चिन्ता समाप्त होने के बाद मम्मी मुझे जरुरी हिदायत देकर मेरे छोटे भाई के साथ चली गई।
रात के 9 बज गए, मैं भैया का इंतज़ार कर रही थी। सर्दियों का समय होने के कारण रात जल्दी गहरा गई। चारो तरफ़ एकांत महसूस कर मुझे डर लगने लगा। मैंने भैया को फ़ोन लगाया और कहा- जल्दी आओ !
मुझे डर लग रहा है। भैया ने मुझे 10 मिनट का कहकर फ़ोन रख दिया। मैं उनका इंतज़ार कर ही रही थी कि अचानक लाइट चली गई। अब मुझे और डर लगने लगा। मैं भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि भैया जल्दी आएँ, २० मिनट और गुजर गए लेकिन भैया नहीं आए। अब मैं रोने लगी। तभी दरवाजे से भैया की आवाज़ आई मैं जल्दी से उठी और दरवाजा खोलते ही भैया से लिपट के रोने लगी।
भैया ने कहा- क्या बात है क्यों रो रही हो?
मैंने कहा- सुनील भैया आपने आने में देर क्यों कर दी मेरा तो डर के मारे बुरा हाल था।
उन्होंने कहा दुकान पर थोड़ा काम था इसलिए देर हो गई। अब मैं आ गया हूँ अब डरने की कोई ज़रूरत नहीं।
सुनील भैया मुझसे उम्र में 5 साल बड़े थे लेकिन बचपन से ही साथ-साथ रहे थे इसलिए काफी हद तक दोस्त थे। उनके आने के बाद मैंने उनको खाना खिलाया और खाना खाने के बाद भैया हॉल में जाकर टी.वी. देखने लगे। मैं अपना काम निपटाकर उनके पास आकर पढ़ने लगी। उस समय तक मेरे मन बिल्कुल ख्याल नहीं था कि मैं भैया से चुदवाऊँ।
रात के 11:30 बज चुके थे। भैया अभी तक टी.वी. देख रहे थे। मुझे नींद आने लगी थी इसलिए मैं कपड़े बदलने के लिए दूसरे कमरे में चली गई। कमरे का बल्ब फ्यूज़ होने के कारण कमरे में अँधेरा था। मोमबत्ती की रोशनी में मैंने अपनी नाईटी उठाई और कपड़े बदलने लगी।
मैंने सबसे पहले अपनी कमीज़ उतारी और उसके बाद ब्रा क्योंकि मुझे रात में ब्रा पहनकर सोने की आदत नहीं थी। मैंने अपनी सलवार का नाड़ा खोला ही था कि अचानक एक चूहा कहीं से फुदकता हुआ मेरे ऊपर आ गया और मेरी चीख निकल गई।
मेरी चीख सुनकर भैया तुरन्त मेरे कमरे में आए। मुझे कुछ नहीं सूझा और डर के मारे चूहा-चूहा कहते हुए उनसे चिपक गई। मुझे इतना भी होश नहीं रहा कि इस समय मैं सिर्फ़ पैंटी में थी।
मेरे नंगे जिस्म का एहसास जब भैया को हुआ तो उनका लंड खड़ा हो गया जिसका एहसास मुझे मेरी कमर पर होने लगा। मैं एकदम उनसे अलग हुई और उनसे जाने को कहा। लेकिन भैया एकटक होकर देखते रहे। मोमबत्ती की मद्धिम रोशनी में उनको मेरे जिस्म के स्पष्ट दर्शन हो रहे थे। उनकी आँखों में वासना उतरती नज़र आने लगी।
उनके इस तरह देखने से मेरा जिस्म भी गरम होने लगा और मैं मन ही मन अपनी चुदाई के सपने देखने लगी। मैं नज़रें नीची कर ख्यालों में उनके लंड को अपनी चूत में महसूस करने लगी। इतना सोचने से ही मुझे महसूस हुआ कि मेरी पैंटी गीली हो चुकी है। मैंने नज़र उठाकर भइया कि तरफ़ देखा तो चौंक गई। वो जा चुके थे और मेरी चुदाई के सपने पल भर में टूट चुके थे।
रात के 12:00 बज चुके थे। मैं अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी लेकिन अब मुझे नींद नहीं आ रही थी। भइया अभी भी हॉल में टी.वी. देख रहे थे। मेरा जिस्म अभी भी गरम था और चुदाई के पहले एहसास ने मेरे रोम-रोम में सेक्स भर दिया था। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ?
यही सोचते-सोचते कब मेरा हाथ मेरी पैंटी में चला गया पता ही नहीं चला। अब मेरी उँगलियाँ मेरी चूत के साथ खेल रहीं थीं।
मैं अपनी उँगलियों से चुदाई करके अपने आपको संतुष्ट करने लगी। लेकिन उँगलियों से मुझे कुछ खास मज़ा नहीं आ रहा था इसलिए मैं किसी मोटी चीज़ की तलाश में अपने बिस्तर से उठी। मैंने मोमबत्ती के पैकेट में से एक नई मोमबत्ती ली और अपने रूम में आ गई। रूम में अभी भी मोमबत्ती जल रही थी।
मैंने अपनी पैंटी उतार कर फेंक दी, अब मैं सिर्फ़ नाईटी पहने थी उसके नीचे ना तो ब्रा थी ना ही पैंटी। मैंने अपनी एक टांग टेबल पर रखी और दीवार के सहारे स्थिति बनाकर अपनी नाईटी ऊपर कर मोमबत्ती को अपनी चूत में डालने लगी।
मोमबत्ती काफी मोटी थी और मेरी चूत बिल्कुल कुंवारी थी इसलिए मोमबत्ती अन्दर नहीं जा रही थी। लेकिन मेरे ऊपर तो चुदाई का भूत सवार था सो मोमबत्ती को जबरदस्ती अपनी चूत में पेल दिया।
मोमबत्ती के अन्दर जाने से मुझे काफी दर्द हुआ और मेरे ना चाहते हुए भी एक घुटी सी चीख मेरे मुंह से निकल गई। दो मिनट तक मोमबत्ती को अपनी चूत में डाले मैं वैसे ही खड़ी रही। फिर मैंने मोमबत्ती को अन्दर-बाहर करना शुरू किया। अह्ह्ह … उह्ह्ह… मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं, मुझे मोमबत्ती से चुदाई करने में मज़ा आने लगा।
मैं कल्पनाओं में खोई हुई मोमबत्ती को सुनील भइया का लंड समझने लगी और बड़बड़ाने लगी ‘हाँ… सुनील भइया, जोर से डालो अपना लंड, आज मेरी प्यास बुझा दो, जाने कितने दिनों से प्यासी है मेरी चूत आज इसको जी भर के चोदो और अपने लंड की ताकत से इसके दो टुकड़े कर दो, फाड़ दो, हाँ… फाड़ दो… मेरी चूत को … अह्ह्ह … उम्म्ह्ह्ह… मेरी सिसकारियाँ तेज़ होती जा रही थीं।
अब मुझे मोमबत्ती से चुदाई करने में अत्यन्त मज़ा आ रहा था। मेरा हाथ तेज़ गति से मोमबत्ती को मेरी चूत में पेल रहा था। मैं मदमस्त होकर पूरा आनंद ले रही थी। मैं अपने चरम पर पहुँच चुकी थी। मेरे शरीर से पसीना आने लगा था और मेरी टाँगे काँपने लगी थीं। मेरा इस स्थिति में खड़ा होना मुश्किल हो रहा था लेकिन मुझे इस स्थिति में बहुत मज़ा आ रहा था इसलिए मैं अपनी स्थिति बदलना नहीं चाह रही थी।
मेरा हाथ मुझे पूरी तरह से संतुष्ट करने के लिए बहुत तेज़ गति से चलने लगा। आह्ह्ह…. उह्ह्हह … उम्महह…. और आखिरकार वो पल आ ही गया, मेरा शरीर पूरी तरह जकड़ने लगा, अब मैं फर्श पर गिर पड़ी, अपनी दोनों टाँगे फैलाकर मोमबत्ती को फिर से डालने लगी और एक तेज़ आह्ह्ह के साथ मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया जो फर्श पर फैल गया। अब मैं शांत हो चुकी थी, मेरी चूत की प्यास काफी हद तक बुझ चुकी थी। लेकिन मेरी असली चुदाई तो अभी बाकी थी।
सुनील भइया दरवाज़े पर खड़े थे। उनको देखकर मेरे होश उड़ गए।
मैं फर्श से उठकर खड़ी हो गई और भइया को देखने लगी। भइया रूम में अन्दर आ गए और उन्होंने अपनी टी-शर्ट व हाफ-पैंट उतार दिया, अब वो सिर्फ़ अपनी फ्रेंची चड्डी में मेरे सामने थे जिसमे उनका तना हुआ लंड साफ़ दिखाई दे रहा था। वो पास आए और अपनी चड्डी में से अपना लंड निकालकर मेरे हाथ में रखकर बोले, “आयुषी, जरा चेक करो ये मोमबत्ती से मोटा है या नहीं?”
उनके लंड को देखकर मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। लंड वाकई में बहुत मोटा था और उसका सुपाड़ा तो कुछ ज्यादा ही मोटा था।
मैंने भइया से पूछा, “भइया, लंड इतना मोटा होता है?” भइया ने कहा, “नहीं, आयुषी हर किसी का इतना मोटा नहीं होता है।” मैंने फिर भइया से पूछा, “इसका, सुपाड़ा इतना मोटा है, ये चूत में अन्दर कैसे जाता होगा?” भइया ने कहा, “अभी थोड़ी देर में पता चल जाएगा, ये अन्दर कैसे जाता है।”
और भइया ने इतना कहकर अपनी चड्डी उतार दी अब वो मेरे सामने बिल्कुल नंगे थे। उनका लंड किसी लोहे की रोड की तरह तना हुआ खड़ा था। मेरी नज़र उससे हट ही नहीं रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई अजूबा देख रही हूँ और क्यूँ ना लगे, लंड पहली बार जो देख रही थी। खामोशी को तोड़ते हुए भइया ने मुझे घुटनों पर बैठने को कहा और मैं बैठ गई।
फ़िर भइया मेरे पास आए और अपने लंड को मेरे होठों से लगाते हुए बोले, “इसे अपने मुंह में डालो।” मैंने कहा, “नहीं, भइया ये बहुत मोटा है मेरे मुँह में नहीं जाएगा।” भइया को अब थोड़ा गुस्सा आ गया और गुस्से में बोले, “मुँह में लेती है या सीधा तेरी चूत में डालूँ?” मैंने कहा, “नहीं भइया चूत में नहीं, वो फट जायेगी, मैं मुँह में लेती हूँ।”
ऐसा कहकर मैंने उनका लंड अपने मुँह में लिया। लंड का सुपाडा बड़ा होने के कारण मुँह में फँस रहा था और मैं लंड को मुँह में लिए उसे चूस नहीं पा रही थी लेकिन भइया के इरादे कुछ और थे उन्होंने मेरे बाल पकड़े और मेरे मुँह में धक्के देने लगे।
मैं कुछ नहीं बोल पा रही थी और मेरी आँखों से आँसू निकलने लगे थे। भइया पूरी तरह से वहशी हो गए थे और मेरे बालों को खीचते हुए मेरी मुँह को चूत समझकर चोदने लगे थे।
मेरी हालत बहुत ख़राब हो रही थी और आँसू भी लगातार बह रहे थे लेकिन भइया के धक्के लगातार तेज़ हो रहे थे। वो मेरे बालों को इस तरह खींच रहे थे जैसे मैं उनकी बहन नहीं कोई रण्डी हूँ। भइया का मुँह लाल पड़ गया था और उनके मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं।
मैं अपनी हालत से सचमुच में रोने लगी थी लेकिन उनको मेरे ऊपर जरा भी तरस नहीं आ रहा था। वो तो किसी जानवर की तरह मेरे मुंह को चोदते जा रहे थे, कभी वो मेरे बाल खींचते तो कभी मेरे गाल पर चपत लगाते, वो इतने वहशी हो गए थे कि मुझे उनसे डर लगने लगा था।
मैं मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी, मुझे बचा लो। और भगवान ने मेरी सुन ली, भइया शायद झड़ने वाले थे इसीलिए उन्होंने अपना लंड मेरे मुँह से बाहर निकाल लिया। मैंने एक गहरी साँस ली और सिर पकड़कर बैठ गई। भइया बोले, “आयुषी ज़रा अपनी जीभ से मेरे लंड को चाटकर इसका पानी निकाल दो।”
मैंने भइया के लंड की तरफ़ देखा वो अब भी तना हुआ खड़ा था, उनके लंड को देखकर मेरा शरीर गरमा गया, मैं घुटनों पर चलती हुई भइया के लंड के पास पहुँची और उसे हाथ में लेकर जीभ से चाटने लगी। मेरे चाटने से भइया की सिसकारियाँ निकलने लगीं और वो बोलने लगे, “शाबाश, मेरी प्यारी बहना ! चाट और चाट, अभी रसमलाई निकलेगी उसे भी चाटना।”
इतना कहकर भइया ने एक जोर की अह्ह्ह्ह… के साथ वीर्य मेरे मुंह पर छोड़ना शुरू कर दिया, मेरा मुंह पूरी तरह से उनके वीर्य से नहा गया, कुछ मेरे होठों पर भी रह गया जिसे मैंने जीभ से चाट लिया और उसके बाद भइया के लंड को भी चाटकर साफ़ कर दिया।
भइया ने मुझे खड़ा किया और तौलिए से मेरा मुंह साफ़ कर होठों से होंठ मिलाकर चूमना शुरू कर दिया। पांच मिनट के उस किस ने मेरे सेक्स को चरम पर पंहुचा दिया और मेरी चूत लंड खाने के लिए बेकरार होने लगी। भइया शायद इस बात को समझ गए थे इसलिए उन्होंने किस करते हुए ही मेरी नाईटी उठाकर अपना एक हाथ मेरी चूत पर ले गए और उसे सहलाने लगे।
मेरी बेकरारी भइया का स्पर्श अपनी चूत पर पाकर और बढ़ गई और मैं भइया से कहने लगी, “भइया, अब और सहन नहीं होता है, मेरी चूत में अपना लंड डालो प्लीज़ मुझे चोदो और बताओ चुदाई क्या है?”
भइया बोले, “आयुषी, चिंता मत करो पूरी रात अपनी है आज मैं तुझे वो मज़ा दूँगा जिसे तू जिंदगी भर याद रखेगी।”
ऐसा कहकर भइया ने अपनी एक उँगली मेरी चूत में डाल दी। मैं उनकी उँगली को चूत में पाकर कसमसा गई और सिसकारियाँ लेने लगी। भइया अपनी उँगली को मेरी चूत में अन्दर बाहर करने लगे उन्हें शायद मेरी नाईटी से दिक्कत हो रही थी इसलिए उन्होंने चूत में उँगली डालते हुए ही मुझसे नाईटी को उतारने के लिए कहा और मैंने किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह उनकी बात मानकर अपनी नाईटी को सिर के ऊपर से उतारकर फ़ेंक दिया।
भइया की उँगली मुझे पूरा आनंद दे रही थी और मैं सिसकारियाँ लेकर मज़ा ले रही थी। मुझे मज़ा लेते देख भइया ने अपनी दूसरी ऊँगली भी मेरी चूत में डाल दी। और स्पीड से अन्दर बाहर करने लगे साथ ही अपने अंगूठे से मेरी चूत के ऊपरी हिस्से को रगड़ने लगे।
उनकी उँगलियाँ भी मुझे इतना मज़ा दे रही थी कि मुझे जन्नत का अनुभव हो रहा था, मुझे लग रहा था कि मैं आसमान में कहीं उड़ रही हूँ। भइया की उँगली-चुदाई ने मुझे एक बार फिर झड़ने के लिए मजबूर कर दिया, मेरी चूत ने अपना पानी छोड़ दिया और मैं एक बार फिर निढाल होकर फर्श पर गिरने लगी लेकिन इस बार भइया ने मुझे अपनी बाँहों में थाम लिया।
भइया ने मुझे उठाकर बेड पर लिटा दिया और मुझे चूमने लगे, भइया का एक हाथ अभी भी मेरी चूत को सहला रहा था। उनका ध्यान पहली बार मेरे वक्षस्थल पर गया उन्होंने अपना मुँह मेरे 34 साइज़ की चूचियों पर रख दिया और बुरी तरह से मेरी घुंडियों को चूसने लगे, उनका हाथ बराबर मेरी चूत को सहला रहा था।
भइया काफी एक्सपर्ट थे वो अच्छी तरह जानते थे कि लड़की को कैसे गरम किया जाता है वो ये सब मुझे फिर से गरम करने के लिए कर रहे थे और वो इसमे सफल भी हो रहे थे क्योंकि धीरे-धीरे मेरे अन्दर सेक्स फिर से जागने लगा था।
वो मेरी चूचियों को छोड़कर मेरी कमर पर आ गए, नाभि के आस-पास चुम्बन देते हुए वो सीधे मेरी चूत पर पहुँच गए और उन्होंने अपने होंठ मेरी चूत के होंठो पर रख दिए। उनके होठों का एहसास पाकर मेरे मुंह से सिसकारी निकल पड़ी, भइया ने मेरी चूत चाटना शुरू कर दिया।
हाय… मैं क्या बताऊँ आपको उस समय मुझे ऐसा लगा मानो स्वयं कामदेवता मेरी चूत को चाट रहे थे और मेरी नस-नस में सुधा भर रहे थे, मेरी चूत के होंठ सेक्स की प्रबलता से हिलने लगे थे, मैं भइया से लगभग भीख माँगते हुए बोली,” प्लीज़ भइया अपना लंड डालो नहीं तो मैं मर जाउँगी।”
भइया ने मुझसे कहा, “बस मेरी जान अब तुझे और इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा।”
ऐसा कहकर उन्होंने मेरी दोनों टाँगे उठाकर अपने कंधे पर रखा और अपने लंड का सुपाडा मेरी चूत पर रगड़ने लगे, लंड को अपनी चूत पर पाकर मैं तड़प उठी और भइया से गाली देती हुई बोली,” बहनचोद क्यों तड़पा रहा है, डालता क्यों नहीं?”
मेरी बात सुनकर भइया ने जोश में एक जोरदार धक्का दिया और उनका आधा लंड मेरी चूत चला गया। मैं दर्द के मारे छटपटाते हुए भइया से लंड को बाहर निकालने के लिए बोलने लगी तो भइया ने जोरदार चांटा मेरे गाल पर रसीद कर दिया और बोले, “साली, घंटे भर से चिल्ला रही थी डालो-२ ! अब डाल दिया तो चूत फट गई।”
एक और जोरदार धक्के के साथ भइया ने अपना पूरा लंड मेरी चूत में पेल दिया। मैं बुरी तरह से हाथ-पैर पटक कर भइया की कैद से छूटने की कोशिश करने लगी और चिल्लाने लगी, “भइया, प्लीज़ मैं मर जाउँगी, मेरी चूत फट जाएगी अपना लंड बाहर निकालो।”
लेकिन भइया ने मेरी अनसुनी करते हुए एक और तेज़ धक्का दिया तो मेरे मुंह से चीख निकल गई। मेरी चीख सुनकर भइया ने मेरा मुँह अपने एक हाथ से बंद कर दिया और धक्के देने शुरू कर दिए।
5 मिनट तक भइया के जोरदार धक्के सहने के बाद मुझे मज़ा आने लगा और मेरे मुँह की चीखें कामुक सिसकारियों में बदलने लगीं।
अब मैं भइया को अपनी कमर उचका कर सहयोग करने लगी, भइया के धक्के लगातार तेज़ होते जा रहे थे और मेरी सिसकारियाँ और कामुक होती जा रहीं थीं। दस मिनट के बाद मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया लेकिन भइया अभी भी नहीं झड़े थे और धक्के मार-मार कर मेरी चूत का पूरा आनंद ले रहे थे।
चुदाई क्या होती है, चुदते समय मुझे मालूम हो गया, जितना मज़ा चुदाई में है उतना किसी और चीज़ में नहीं। भइया के धक्कों की रफ़्तार शताब्दी एक्सप्रेस को भी मात कर रही थी और मैं कामुक अंदाज़ में भइया के लंड की तारीफ़ कर रही थी। “भइया, तुम्हारे लंड में बहुत दम है, मोमबत्ती का मज़ा इसके सामने कुछ नहीं, प्लीज़ भइया आज मुझे जी भर चोदो, मेरी चूत की प्यास को ठंडा कर दो।”
भइया ने मेरी बात का जवाब मुंह से ना देते हुए अपने लंड से दिया, धक्कों की गति को दोगुना करते हुए भइया ने मेरी रेल बना दी, कुछ देर के बाद मुझे महसूस हुआ की मेरी चूत में कुछ गरम-गरम गिर रहा है, मैं समझ गई कि यह भइया का वीर्य है और उनके साथ मेरी चूत ने भी एक बार फिर पानी छोड़ दिया और इस तरह मेरी पहली चुदाई पूरी हुई।
भइया मेरी चूत में ही लंड डाले हुए मेरे ऊपर लेट गए। कुछ देर आराम करने के बाद मैंने किचन में जाकर चाय बनाई और हम दोनों बैठकर चाय पी, इस दौरान हम दोनों पूरी तरह से नंगे ही रहे। रात के ३ बजने के बाद मैंने भइया से सोने के लिए कहा तो भइया ने एक बार फिर चुदाई करने की इच्छा ज़ाहिर की। मैं भी राजी हो गई और भइया ने इस बार मुझे फर्श पर कुतिया बनाकर चोदा उसके बाद हम दोनों नंगे ही सो गए।
सुबह 6 बजे उठकर मैं जल्दी-जल्दी तैयार हुई और पौने सात बजे भइया को उठाया तो मुझे काली टॉप और काली लॉन्ग स्कर्ट में देखकर भइया का लंड एक बार फिर खड़ा हो गया और उन्होंने केवल मेरी पैंटी उतारकर किचन में दीवार के सहारे ही चोद डाला।
भइया ने मुझे परीक्षा-केन्द्र पर छोड़ा और परीक्षा देकर जब मैं लौटी तो मम्मी आ चुकी थी। इसके बाद आज तक मुझे कभी मौका नहीं मिला कि मैं भइया से चुदाऊँ हालाँकि आज मेरी शादी हो चुकी है तो मेरी चुदाई हर रात होती है लेकिन भइया के लंड के लिए मैं आज भी बेकरार हूँ।
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