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प्रेषक : सुमीत
हैलो !
मैं हूँ सुमीत। पिछले दो साल से मैं अन्तर्वासना पर कहानियाँ पढ़ रहा हूँ। इन दो सालों में मैंने यह महसूस किया है कि यहां अधिकतर, या शायद सभी, कहानियाँ झूठी हैं। फ़िर भी मुझे अन्तर्वासना बहुत पसन्द है क्योंकि यहाँ से आपको आपकी अपनी भाषा में बेहतरीन कामुक कथाएँ मिल जाती हैं।
मैंने सोचा कि अगर अपनी कल्पना से ही कहानी लिखनी है तो क्यों न सच बोल कर ही क्यों न लिखा जाए, इससे पाठकों के साथ धोखा भी नहीं होगा। इसलिए मैं आपको पहले ही बता दूँ कि यह कहानी कपोल-कल्पित है और सिर्फ़ अन्तर्वासना के पाठकों के मनोरंजन के लिए लिखी गई है।
तो प्रस्तुत है मेरी काल्पनिक कथा :
मुक्ता को कोलेज़ में आए अभी एक हफ़्ता भी नहीं हुआ था कि पूरे कोलेज़ के लड़कों में उसके बड़े बड़े, तने हुए गोल गोल स्तन और मोटे मोटे नितम्बों के चर्चे होने लगे थे।
मुक्ता ने अभी अभी कैथल के इन्ज़िनियरिन्ग कोलेज़ में आई टी ब्रांच में प्रवेश लिया था। मुक्ता कोहर वैसे हाँसी से थी पर ए.आई.ई.ई.ई. के कारण उसे यही कोलेज़ मिला था जो कि उसके शहर से काफ़ी दूर है। इसी कारण उसे होस्टल में रहना था।
मुक्ता अपने माँ-बाप की इकलौती बेटी है और अपने पापा की बहुत लाड़ली है। उसका व्यव्हार बिल्कुल बच्चों जैसा था। उसे सेक्स के बारे में कोई ज्ञान नहीं था। पर ऐसा भी नहीं था कि वो इससे बिल्कुल अनभिज्ञ थी। बस उसे सही जानकारी नहीं मिल पाई थी।
मुक्ता पहले दिन कक्षा में आई तो सबकी नज़र उसके गोल-गोल स्तनों पर पड़ी। पूरी कक्षा में उसके जैसे तने हुए और सुडौल वक्ष शायद किसी लड़की के नहीं थे।
उसे तंग ब्रा पहनने की आदत थी जिस कारण उसके वक्ष का ऊपरी हिस्सा फ़ूला हुआ रहता था। शायद यह कसी हुई ब्रा ही उसके वक्ष की सुडौलता का राज़ थी। उसका कद होगा कोई ५’ ४” और फ़ीगर होगी ३५-२८-३६, कन्धे तक लम्बे बाल। उसके नयन-नक्श तो साधारण थे, नाक लम्बी थी। जब वो चलती थी तो उसके स्तन उसकी चाल के साथ ही चाल मिला कर उछलते थे।
कोलेज़ में आते ही उसकी सबसे पहली सहेली अभी उसकी होस्टल की रूम-मेट ऋतु ढींगरा, जो कि दिल्ली से थी और कुछ खास सुन्दर नहीं थी। मुक्ता के सामने तो वो बदसूरत ही लगती थी।
हालांकि उसके स्तन भी काफ़ी बड़े और तने हुए थे और ऋतु मुक्ता से ज्यादा पतली कमर वाली थी, पर मुक्ता के गोरे रंग और गदराए बदन के सामने ऋतु की ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता था।
कोलेज़ का हर लड़का मुक्ता को देखते ही उसके नंगे बदन की कल्पना करने लगता था। जाने कितने लरके उसके बारे में सोच सोच कर मुठ मारते थे।
रितु दिल्ली से होने के कारण सेक्स के ममले में मुक्ता से कहीं ज्यादा जानती थी। जहाँ एक तरफ़ मुक्ता ने अपनी चूत में कभी उँगली तक नहीं घुसाई थी तो वहीं दूसरी तरफ़ ऋतु कई बार सेक्स कर चुकी थी बल्कि केला, बैंगन जैसी चीज़ों का इस्तेमाल भी बखूबी जानती और करती थी।
बस अब क्या होना था, मुक्ता को एकदम सही लड़की मिल गई थी। धीरे धीरे दोनों काफ़ी अच्छी दोस्त बन गई। अब तो अपने पसन्दीदा लड़कों की बातें करने में भी दोनों को बिल्कुल शरम नहीं आती थी।
फ़िर धीरे धीरे अपनी ड्रेस से लेकर अधोवस्त्रों तक की बातें खुलकर होने लगी। कई बार तो रितु मुक्ता के सामने नंगी भी हो जाती थी। शुरू में तो मुक्ता थोड़ी शरमा जाती थी पर फ़िर ऋतु के बार बार उकसाने पर वो भी कभी कभी ऋतु के सामने नंगी हो जाया करती थी।
शुरुआत का शरमीलापन आखिरकार खत्म होता गया और दोनों एकदम खुल गई। फ़िर तो दोनों अपनी झाँटे भी एक दूसरे से ही शेव करवाने लगी। इस से एक तो शेव अच्छी तरह हो जाती थी, दूसरा कट लगने का डर कम हो जाता था।
पहली बार तो मुक्ता ऋतु से शेव करवाने में शरमा रही थी पर जब ऋतु ने कई बार उस से अपनी झांटें शेव करवा ली तो मुक्ता भी ऋतु से ही अपनी झांटें शेव करवाने के लिए तैयार हो गई।
“वाह यार ! बड़ी नर्म -नर्म और सुलझी हुई झांटें हैं तेरी तो … एक दम इंग्लिश हिरोइनों की तरह … रंग भी ब्राऊन है !” जब पहली बार ऋतु ने मुक्ता की झांटें देखी तो उसके मुंह से ये निकला।
मुक्ता थोड़ा शरमाई पर मन ही मन अपनी झांटों की तारीफ़ सुनकर खुश भी हुई। ऋतु कई बार मुक्ता की चूत का मुआयना करने के चक्कर में भी रहती थी पर मुक्ता की शर्म इतनी भी नहीं खुली थी। इसलिए वो ऋतु को अपनी झांटों से नीचे नहीं पहुँचने देती थी।
ऋतु को तो शुरू से ही नंगी होकर सोने की आदत थी, पर अब उसने मुक्ता को भी यह आदत डालने की कोशिश में लग गई थी।
ऋतु ने उसे नंगी सोने के ऊपर बहुत बार लंबे -चौड़े भाषण दिए, तब कहीं जाकर मुक्ता को नंगी होकर सोने के लिए तैयार कर पायी। तो अंततः दोनों हॉस्टल के कमरे में एकदम नंगी होकर सोने लगी थी।
एक रात मुक्ता की नींद खुली तो उसने महसूस किया कि उसकी टांगों के बीच में हल्की -हल्की गुदगुदी हो रही थी जैसे कि कोई चींटी उसकी टांगों के बीच से चूत की तरफ़ बढ़ रही हो।
पहले तो मुक्ता ने सोचा कि इस गुदगुदी को जारी रहने दूँ क्यूंकि उसे मज़ा सा आ रहा था पर फ़िर उसने सोचा कहीं कोई और कीड़ा -मकोड़ा न हो इसलिए उसने झट से अपना हाथ गुदगुदी वाली जगह पर लगाया तो पाया कि वो कोई चींटी नहीं बल्कि ऋतु की ऊँगली थी।
मुक्ता ने ऋतु कि तरफ़ देखा तो पाया कि वो उसकी और देखकर मुस्कुरा रही थी।
मुक्ता भी पहले ज़रा मुस्कुरायी फ़िर बोली -“क्या है यार ? नींद नहीं आ रही क्या ? कम से कम मुझे तो सोने दे ! ”
ऋतु – मैं क्या कह रही हूँ तुझे? तू सो आराम से। लोग पहले तो कपड़े उतारकर सो जाते हैं फ़िर सोचते हैं कि किसी का हाथ तक न छू जाए।
मुक्ता- रहने दे, तूने ही आदत डाली है मुझे। नहीं तो मैं तो अच्छी-भली …
ऋतु – हाँ हाँ, बड़ी आई अच्छी-भली उन कसे तंग कपडों में अपने मोटे -मोटे स्तनों को जकड़कर सोने वाली। अरे भगवान ने ये कोमल सा बदन इसलिए दिया है क्या कि तू इसे उन तंग कपडों में बांधकर इसपर अत्याचार करे?
यह बात कहते हुए ऋतु ने अपनी ऊँगली मुक्ता के स्तनों से लेकर नीचे उसकी चूत तक हलके से फिर दी। मुक्ता भी एक बार तो सिहर सी गई।
फ़िर थोड़ा संभलकर बोली -“वो तो ठीक है यार, अब फ़िर से शुरू मत हो। मैंने कब कहा कि तू ग़लत कहती है ! तेरा बस चले तो तू तो दिन भर कॉलेज में भी नंगी ही घूम आए !”
ऋतु – “हाय … तूने तो मेरे मुंह की बात छीन ली मेरी जान। ला वापिस दे दे …” इतना कहकर ऋतु ने अचानक मुक्ता के होठों पर एक हल्की सी पर ज़रा लम्बी चुम्मी कर दी।
मुक्ता थोड़ा शरमाकर बोली – “हट पागल, ये क्या कर रही है तू?”
ऋतु – “शायद इसे किस कहते हैं। तू क्या कहती है वैसे ?” ऋतु अब मुक्ता के ज़रा करीब खिसक आई थी और उसने ये बात थोड़े नशीले अंदाज़ में कही।
मुक्ता ज़रा पीछे मुंह खींचते हुए बोली – “मुझे भी पता है इसे किस कहते हैं। पर तू मुझे क्या सोचकर किस कर रही है ? मुझे अपना बॉय फ्रेंड समझा है क्या?
ऋतु – जो चाहे समझ ले यार, चाहे तो रात को मेरा बॉय फ्रेंड ही बन जाया कर।
मुक्ता – ऐसा क्या मिलेगा तुझे मुझे बॉय फ्रेंड समझ कर?
ऋतु – एक लड़की रात को बिस्तर पर अपने बॉय फ्रेंड से क्या चाहती है?
मुक्ता थोड़ा सोचकर बोली – तेरा मतलब सेक्स …
ऋतु – वाह मेरी जान ! सामान्य ज्ञान अच्छा है तेरा।
मुक्ता – क्या ख़ाक सामान्य ज्ञान है? मुझे तो ये तक नहीं पता कि सेक्स में सही-सही होता क्या है ?” मुक्ता की भी नींद उड़ चुकी थी।
ऋतु – वो तो मुझे पता है की तू इस मामले में अभी ज़रा कच्ची है।
मुक्ता – ह्म्म्म … पर यार मैं १८ साल की हो गई हूँ। तुझे नहीं लगता की मुझे सबकुछ पता होना चाहिए?
ऋतु – हाँ -हाँ, क्यूँ नहीं पता होना चाहिए? अब तक तो तेरे प्रैक्टिकल भी हो जाने चाहिए थे।
मुक्ता थोड़ा हिचकिचाई फ़िर बोली – शायद तू सही कह रही है। अच्छा तो बता न, क्या होता है सेक्स में?
ऋतु – ज़ल्दबाजी नहीं माय डीयर, पहले तू बता कि तुझे कितना पता है?
मुक्ता – वो … बस पहले तो लड़का -लड़की कपड़े उतार लेते हैं, फ़िर एक -दूसरे को किस करते हैं और फ़िर बिल्कुल चिपक कर सो जाते हैं। इतना ही …” मुक्ता कुछ सोचते हुए बोली।
ऋतु मुक्ता के एक स्तन को हाथ से भींचते हुए बोली – “ये जो किस और चिपक के सोने के बीच में जो होता है न, दरअसल वो सेक्स है।”
मुक्ता एकदम से उसका हाथ पकड़ते हुए बोली – “क्या मतलब ? चिपक कर सोने से सेक्स नहीं होता?” पर मुक्ता ने उसका हाथ अपने स्तनों पर से हटाया नहीं।
ऋतु हँसते हुए बोली – “अरे नहीं। सेक्स में तो बहुत -कुछ होता है और चिपक कर सोने से कहीं ज़्यादा मज़ा भी आता है।”
मुक्ता – “अच्छा ? बता न फ़िर क्या होता है?”
“बताना क्या है ! मैं तुझे करके दिखाती हूँ .” ऋतु ने मुक्ता के दोनों स्तनों पर एक -एक किस करते हुए कहा।
मुक्ता – “तो क्या लड़के के बिना ही …”
ऋतु – “यार सिर्फ़ सिखा रही हूँ। इस सबसे तुझे थोड़ा आईडिया हो जाएगा न ! फ़िर जब तेरा बॉय फ्रेंड हो तो उसके साथ असली वाला सेक्स कर लेना !”
मुक्ता – “हाँ। ये सही रहेगा। चल फ़िर हो जा शुरू .” मुक्ता के लिए इंतजार करना मुश्किल हो रहा था। वो ज़रा नर्वस भी थी पर सेक्स के बारे में जानने की इच्छा उसपर हावी हो रही थी।
मुक्ता का इतना कहना था कि एकदम से ऋतु ने उसे अपनी तरफ़ खींच लिया और ख़ुद से कसकर चिपका लिया। फ़िर वो मुक्ता के होंठों पर अपने होंठ रखकर उसे किस करने लगी। मुक्ता के मुंह से एक बार सिसकी निकली और फ़िर सिर्फ़ “म्मम्मम्म … म्मम्मम …” की आवाजें आने लगी।
कोई अनजान भी ये बता सकता था कि यह आवाजें पूरी तरह वासना से भरी हुई थी। ऋतु और मुक्ता दोनों कि आँखें बंद थी और मुक्ता को ऐसा आभास हो रहा था जैसे कि वो कोई सपना देख रही हो। अपने होंठों को मुक्ता के होंठों से चिपकाए हुए ही ऋतु अपना हाथ धीरे -धीरे मुक्ता की चूत की तरफ़ बढ़ाने लगी। मुक्ता को लगा कि आज तो वो उसकी चूत को अच्छे से स्कैन करके ही रहेगी।
पर फिलहाल ऋतु का ऐसा कोई इरादा नहीं था। ऋतु अपना हाथ नीचे ले जाकर मुक्ता की टांगें खोलने की कोशिश करने लगी।
मुक्ता ने भी समय की नजाकत को समझते हुए टाँगे ज़रा ढीली छोड़ दी। ऋतु तुंरत मुक्ता की दोनों टांगों को खोलकर उनके बीच में आ गई। अब ऋतु ने दोनों हाथों को मुक्ता की कमर पर ले जाकर उसे पूरी ताकत से भींच लिया और फ़िर धीरे -धीरे कमर पर हाथ फिरने लगी।
मुक्ता को काफ़ी मज़ा आने लगा। दोनों के चूचुक आपस में टकरा रहे थे और न सिर्फ़ टकरा रहे थे बल्कि पूरी ताकत के साथ एक-दूसरे को दबा रहे थे। आखिरकार ऋतु ने मुक्ता के होंठों को छोड़ा और मुक्ता को साँस लेने के लिए कुछ सेकंड का वक्त दिया। और फ़िर ये कहकर कि “थोड़ा तू भी साथ दे न यार …” फ़िर से उसके होंठों को चूसने लगी।
इस बार मुक्ता भी ऋतु के होंठों को चूस रही थी। मुक्ता को महसूस हो रहा था कि उसकी चूत की अंदरूनी दीवारें धीरे -धीरे नम हो रही थी और फ़िर पूरी तरह गीली हो गई थी।
मुक्ता को तो ये भी शक था कि कहीं पानी की कुछ बूँदें बेड की चादर पर न टपक गई हों। पर इस सबकी चिंता करने का उसके पास वक्त नहीं था, वो तो जैसे स्वर्ग में तैर रही थी।
अब मुक्ता को एहसास हो रहा था कि वाकई सेक्स में चिपक कर सोने से कहीं ज़्यादा मज़ा है। हलाँकि उसे अंदाजा नहीं था कि ऋतु अभी उसके साथ और क्या -क्या करने वाली थी।
दूसरी तरफ़ ऋतु की भी चूत पूरी तरह से पानी में तर थी। अचानक ऋतु की चूत से निकली पानी की एक बूँद मुक्ता की टांग पर गिरी तो मुक्ता को विश्वास हो गया कि ऋतु का भी वही हाल हो रहा था जो कि उसका, बस मुक्ता का ये पहला एहसास था और ऋतु तो गिनती करना छोड़ चुकी थी।
किस करते करते ऋतु अपनी जीभ से मुक्ता के होंठों को खोलने के लिए ज़ोर लगाने लगी तो मुक्ता ने उसकी इस हरकत पर कुछ कहने के लिए अपने होंठ खोले ही थे कि ऋतु ने अपनी जीभ मुक्ता के मुंह में घुसा दी।
अब ऋतु मुक्ता के पूरे मुंह का जायजा ले रही थी। मुक्ता का आनंद अपने चरम पर पहुँचने लगा। इसका असर सीधा उसकी चूत पर पड़ा और उसकी चूत और ज़्यादा गीली होकर ज़ोर ज़ोर से फड़कने लगी।
थोड़ी देर ऐसा ही चलता रहा। फ़िर एकाएक ऋतु की जीभ मुक्ता की जीभ से टकराई और उस से खेलने लगी। मुक्ता पहले तो ज़रा हैरान हुई पर फ़िर वो भी उत्सुकता से अपनी जीभ को ऋतु की जीभ से रगड़ने लगी।
अब तो दोनों के मुंह से “म्मम्मम … म्मम्मम … म्मम्मम …” की आवाजें आने लगी। ये आवाजें धीरे -धीरे और तेज़ होने लगी।
थोड़ी देर ऐसा ही चलता रहा, फ़िर अचानक मुक्ता के शरीर में एक सरसर्राहट सी दौड़ गई और उसका अंग -अंग अकड़ने लगा। ऋतु उसका ये हाल देखकर समझ गई कि मुक्ता अब झड़ने वाली है। उसका अंदाजा सही था।
मुक्ता के मुंह से एक लम्बी सी “आः ” निकली और उसकी चूत से एकदम से काफ़ी ज्यादा पानी की फुहार निकली। उसके बाद तो एक के बाद एक कई फुहारें निकलती चली गई। मुक्ता की चूत से निकला ज्यादातर पानी ऋतु की चूत से टकराकर नीचे बहने लगा। ऋतु की चूत और जांघें मुक्ता की चूत से निकले जूस से नहा गई थी।
इस जूस की गर्माहट ऋतु भी ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पायी और “आआह्ह्ह्ह्छ …. मुक्ता …. मैं भी बस्स ….. आआह्ह्छ …” कहते हुए वो भी झड़ गई। इस तरह मुक्ता की चूत से निकले पानी में नहाई हुई ऋतु की चूत एक बार फिरसे उसके ख़ुद के पानी से नहा गई।
हलाँकि ऋतु की चूत से निकला पानी मुक्ता की चूत से निकले पानी से काफी कम था।
आखिरकार दोनों निढाल होकर गिर गई। थोड़ी देर तक वो दोनों एक -दूसरे से चिपक कर लम्बी -लम्बी साँसे लेती रही।
कुछ देर के बाद दोनों सामान्य हुई तो ऋतु ने कहा – “तो कैसा रहा मैडम ?”
“कमीनी, इतने दिन से तेरे साथ नंगी सो रही हूँ और तू मुझे ये सब आज सिखा रही है?” मुक्ता की आंखों में वासना साफ़ दिखाई दे रही थी और उसकी आवाज़ भी कामुक लग रही थी।
ऋतु ने मुक्ता की चूत पर ऊँगली फिराई और मुक्ता ने उसे बिल्कुल नहीं रोका। फ़िर वो उसी ऊँगली को चूसते हुए बोली – “हर काम सही समय पर करने में ही मज़ा आता है। अगर मैंने पहले ही दिन तेरे साथ कोई ऐसी वैसी हरकत की होती तो तू दोबारा कभी नंगी सोती क्या?”
पर मुक्ता का ध्यान ऋतु की बात पर नहीं था, वो तो उसकी ऊँगली की और ही देखे जा रही थी। आखिरकार जब उस से नहीं रहा गया तो वो बोल उठी – “ये तू मेरी उस में से निकला हुआ पानी क्यूँ चाट रही है ? तुझे घिन्न नहीं आती क्या ?”
“तेरी किस में से?” ऋतु जानबूझकर अनजान बनते हुए बोली।
मुक्ता – “मेरी उस में से यार !” मुक्ता अपनी चूत की और इशारा करते हुए बोली।
“पहले तो मैं तुझे ये बता दूँ की इसे ‘चूत ’ कहते हैं, क्या कहते हैं ?” ऋतु ‘चूत ’ शब्द पर ज़ोर देते हुए बोली।
मुक्ता – “चूत। पर तुझे कैसे पता?”
ऋतु – “मेरा एक बॉय फ्रेंड था १२वीं में, कुशल। उसने बताया था कि सब लड़के इसे चूत ही कहते हैं .”
मुक्ता – “क्या ? १२वीं में तेरा बॉय फ्रेंड था?”
ऋतु – “इस में क्या बड़ी बात है ? मैंने तो १२वीं में ही अपनी सील भी तुड़वा ली थी।”
मुक्ता – “क्या तुड़वा ली थी?”
ऋतु – “सील। तुझे सील नहीं पता? कभी अपनी चूत में ऊँगली डालने की कोशिश की है?”
मुक्ता – “हाँ एक बार नहाते हुए … पर ज़्यादा अन्दर नहीं गई।”
ऋतु – “वो सील की वजह से अन्दर नहीं गई। जब लड़की पहली बार सेक्स करती है तब वो सील टूट जाती है।”
“पर मुझे नहीं लगता कि मेरी सील टूट गई है।” मुक्ता अपनी चूत में ऊँगली घुसाने की कोशिश करते हुए बोली।
ऋतु – “अरे मेरी जान, अभी कहाँ सेक्स हुआ है?”
मुक्ता – “तो वो सब??”
ऋतु – “वो तो बस मैं तुझे और खुद को गरम कर रही थी, मतलब सेक्स के लिए तैयार कर रही थी।”
मुक्ता – “ओह्ह … और ये तू मेरी चूत का पानी क्यूँ चाट रही थी?”
ऋतु – “क्यूंकि मुझे अच्छा लगता है। ये सब सेक्स का ही हिस्सा है। तू भी सीख जायेगी धीरे धीरे। चल अब टाइम ख़राब मत कर। अभी बहुत कुछ बाकी है। कल रविवार है इसलिए हम लेट भी उठ सकते हैं। फ़िर कभी इतना टाइम नहीं मिलेगा। दिखा ज़रा …” कहकर ऋतु ने मुक्ता के दोनों स्तन अपने हाथों में जकड़ लिए और उन्हें दबाने लगी।
मुक्ता को पहले तो थोड़ा दर्द हुआ पर साथ ही साथ अच्छा भी लगा इसलिए उसने ऋतु को रोका नहीं। मुक्ता के स्तनों को दबाते -दबाते उसने एक बार मुक्ता के चुचूक को अपनी उँगलियों के बीच में पकड़ा और ज़ोर से मसल दिया।
मुक्ता लगभग चीख उठी थी, पर तभी ऋतु ने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए और उन्हें चूसने लगी। पर उसने मुक्ता के चुचूक को मसलना और उसके स्तनों को दबाना जारी रखा।
थोड़ी देर बाद मुक्ता को आदत सी पड़ गई और उसे अब सिर्फ़ मज़ा आ रहा था। मुक्ता के मुंह से कामुक सिस्कारियां निकलने लगी थी और उसकी चूत अन्दर से गीली होने लगी थी पर अबकी बार मुक्ता इस एहसास को अच्छे से समझती थी।
थोड़ी देर मुक्ता के स्तन दबाने के बाद ऋतु ने उसका एक चुचूक अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगी, पर उसने दूसरे चुचूक को मसलना जारी रखा। मुक्ता की चूत अब और ज्यादा गीली होने लगी थी।
चूत तो ऋतु की भी सूखी नहीं थी, उसकी चूत भी भीगकर गरम हो गई थी। उसने और ज्यादा तेज़ी से मुक्ता के चुचूकों को बारी बारी से चूसना शुरू कर दिया। अब तो वो कभी कभी मुक्ता के चुचूक के आसपास का भूरा हिस्सा भी पूरा मुंह में भर लेती थी और कई बार तो इस से भी ज्यादा।
मुक्ता तेज़ी से कामुक सिस्कारियां ले रही थी और उसकी चूत से गरम -गरम पानी की बूँदें तापकने लगी थी।
अचानक ऋतु ने मुक्ता को पीठ के बल सीधा किया और ख़ुद उसके ऊपर आ गई। अब उसने मुक्ता के स्तनों को चूसना बंद कर दिया और उनपर हलके हलके किस करने लगी। पर इस से मुक्ता की साँसे और भी तेज़ होने लगी और उसकी चूत गरम होकर तेज़ी से फड़कने लगी थी।
अब ऋतु जरा ऊपर की ओर गई और मुक्ता के होंठों पर हल्के से किस किया। फ़िर वो ऐसे ही किस पे किस करते हुए धीरे धीरे नीचे की ओर आने लगी। पहले गर्दन पर, फ़िर दोनों चुचूकों पर, फ़िर दोनों स्तनों के बीच में, फ़िर नाभि में और फ़िर मुक्ता की चूत से जरा ऊपर ऋतु ने हल्की हल्की किस की। फ़िर ऋतु ने मुक्ता की चूत को ध्यान से देखा। एकदम सफ़ाचट गुलाबी गुलाबी चूत देख कर एक बार तो ऋतु को मुक्ता से ईर्ष्या होने लगी क्योंकि खुद उसकी चूत का रंग काला पड़ चुका था। मुक्ता की चूत से निकले पानी से भीगे होने के कारण उसकी चूत चमक रही थी।
फ़िर उसने मुक्ता की शिश्निका को देखा जो कि हल्के हल्के से फ़ड़फ़ड़ाने लगी थी। ऋतु ने मुक्ता की तांगों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर खोला और धीरे से उस पर झुकी तो उसकी गरम सांसें मुक्ता की शिश्निका से जा टकराई। इस से मुक्ता की चूत से पानी की २-४ बूंदें टपक गई और उसकी क्लिट और तेज़ी से फ़ड़कने लगी।
ऋतु ने अपनी जीभ के ऊपरी हिस्से को हल्के से मुक्ता की क्लिट पर छुआ दिया तो उसे भी पता लग गया कि उसकी क्लिट काफ़ी गर्म थी। ऋतु कि इस अचनक हरकत से मुक्ता एक बार तो उछल पड़ी और उसके गले से एक ज़ोर की सिसकी निकली। फ़िर ऋतु ने धीरे धीरे अपनी जीभ को मुक्ता कि क्लिट पर फ़िराना चालू किया तो मुक्ता ने भी अपने नितम्ब ऊपर उठा लिए।
उसका मन कर रहा था कि अपनी चूत को ऋतु के मुँह में घुसेड़ दे जिस से उसे कुछ राहत मिल सके। ऋतु भी मुक्ता की हालत को समझ गई और उसने मुक्ता की टांगों को थोड़ा और चौड़ा किया और उसकी क्लिट को अपने होंठों में दबा कर चूसने लगी।
मुक्ता तो जैसे आनन्द के महासागर में गोते लगा रही थी। उसके मुँह से “आह ह आऽऽह उह म्म्म आह्म्म…” की आवाज़ें आनी बंद ही नहीं हो रही थी ।
थोड़ी देर तक यही चलता रहा। फ़िर ऋतु ने अपनी जीभ को मुक्ता की चूत में लगा दिया और ज़ोर से अन्दर घुसाने का प्रयास करने लगी। उसकी जीभ थोड़ी सी ही अन्दर जा पाई।
ऋतु ने मुक्ता की टांगों को और चौड़ा किया और उसकी चूत को अपने दोनों हाथों की उँगलियों से थोड़ा और चौड़ा किया और फ़िर अपनी जीभ तेज़ी से अन्दर -बाहर करने लग।
मुक्ता को और भी मज़ा आने लगा और वो “आह्ह … अआछ … आःह्छ …” करने लगी। ऋतु ने पहले एक ऊँगली, फ़िर दो और फ़िर तीन उँगलियाँ अपनी चूत में घुसा ली और तेज़ी से अन्दर -बाहर करने लगी।
मुक्ता लगातार अपने नितम्ब उछाल रही थी। ऋतु ने स्पीड और तेज़ कर दी। बस अब मुक्ता के लिए और सह पाना नामुमकिन था। मुक्ता के मुंह से एक बार ज़ोर की “आया … आआआअह्ह्ह … आःह्ह्ह्छ ….” निकली और मुक्ता ने पूरा ज़ोर लगाकर अपने नितम्ब ऊपर उठा लिए। आखिरकार मुक्ता बड़ी ज़ोर से ऋतु के मुंह में झड़ी।
मुक्ता के पानी की फुहार से ऋतु का पूरा मुंह भर गया और उसका पूरा चेहरा भी गीला हो गया। ऋतु ने अपनी ऊँगली की स्पीड भी बढ़ा दी और कुछ ही सेकंड में वो भी झड़ गई।
उसने मुक्ता की ओर देखा तो उसका मुंह लाल हो चुका था और वो आँखें बंद करके लेटी हुई थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो एक लम्बी रेस लगाकर आई हो। मुंह लाल होने के कारण मुक्ता और भी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। वैसे भी मुक्ता का शरीर इतना नाज़ुक था कि अगर कोई उसका हाथ भी कसकर पकड़ लेता था तो वो लाल हो जाता था, फिर इतना कुछ करने के बाद मुंह तो लाल होना ही था।
थोड़ी देर तक मुक्ता और ऋतु यूँ ही लेटी रही। फ़िर मुक्ता ने ऋतु से पूछा – “क्या अब मेरी सील टूट गई है?”
ऋतु ने मुस्कुराते हुए कहा – “नहीं यार ! जब कोई लड़का अपना लण्ड तेरी चूत में घुसायेगा तभी वो सील टूटेगी।”
मुक्ता – “तो इसका मतलब तू …”
ऋतू – “हाँ ! मैं तो बहुत से लड़कों का लण्ड अपनी चूत मैं घुसवा चुकी हूँ।”
“और ये लंड क्या होता है?” मुक्ता ने भोली सी सूरत बनाकर पूछा तो ऋतु भी उसके भोलेपन पर मुस्कुराये बिना न रह सकी। कहाँ एक तरफ़ थी मुक्ता जिसने लण्ड देखना तो दूर उसका नाम भी पहली बार सुना था और कहाँ दूसरी तरफ़ थी ऋतु जो न जाने कितने लड़कों के तरह तरह के लण्ड अपनी चूत में ले चुकी थी, कई बार तो २-२ एक साथ।
आखिरकार ऋतु ने एक लम्बी साँस ली और बोली – “चलो मैडम, अब मैं आपको लण्ड का पाठ पढाती हूँ।” और फ़िर ऋतु ने मुक्ता को विस्तार से लण्ड के बारे में बताया .
उस दिन के बाद तो जैसे यह मस्तियाँ ऋतु और मुक्ता कि दिनचर्या का हिस्सा बन गई। अब तो मुक्ता को २-३ बार झड़े बिना नींद नहीं आती थी। दिन में मौका मिल जाता तो मुक्ता कभी खाली नहीं जाने देती थी।
ऋतु भी अब समझने लगी थी कि मुक्ता अब ज़्यादा दिन लण्ड के बिना नहीं रह सकती, इसलिए उसने मुक्ता को उनके क्लास के दोस्तों में से ही किसी लड़के को अपना बॉय फ्रेंड बनाने की सलाह दी। लेकिन मुक्ता के लिए अपने दोस्तों में से चुनाव करना इतना आसान नहीं था। हलाँकि मुक्ता के हुस्न के जलवे देखने के बाद कई लड़के उसे प्रोपोज कर चुके थे। पर उनपर विश्वास करना मुक्ता के लिए मुमकिन नहीं था। इसलिए मुक्ता अनजान लड़कों को हमेशा मना कर दिया करती थी चाहे कोई कितना भी स्मार्ट क्यूँ न लगे। उसे कैसे पता चलता कि कौन सा लड़का उसकी इच्छाओं को सही तरह समझ पायेगा और कॉलेज में उसकी छवि ख़राब नहीं करेगा !
आख़िर में इस समस्या का हल भी ऋतु ने ही निकाला।
शेष अगली बार …
दोस्तों , आप अपनी प्रतिक्रिया मुझे ज़रूर भेजें।
इससे मुझे कहानी के अगले भाग को और अच्छा लिखने में बहुत मदद मिलेगी।
कहानी का अगला भाग ज़ल्द ही लिखूंगा।
तब तक के लिए गुड बाय !
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