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जिगोलो सेक्स स्टोरी में अब तक आपने पढ़ा कि
रजत ने अपने खुरदुरे हाथों से मम्मों को बेरहमी से मसला और कहा- तू अभी इन खिलौनों से खेल मेरी रानी … फिर तेरी गर्मी मैं शांत करूंगा.
मैं उसके हाथ और शब्द की बेरहमी से सिहर गई. इधर संजय मेरी चूत की फांकों को फैलाकर उस पर अपने लंड को रगड़ने लगा था.< अब आगे: मैंने एक और करवट लेते हुए संजय को नीचे लेटा लिया और मैं उस पर घुड़सवारी करने के लिए चढ़ गई. इस दरमियान लंड चूत से बाहर निकल गया, जिसे मैंने अपने हाथों से पकड़ कर चूत में फिर से प्रवेश करा दिया. इसी के साथ ही अपने शरीर का पूरा भार केन्द्रित करते हुए लंड पर डाल दिया, जिससे उसके लंड का आखरी से आखरी छोर भी चूत के अन्दर समा गया. इस अवस्था में लंड की रगड़ से मुझे ज्यादा सुकून प्राप्त हो रहा था और मैं अपने हिसाब से स्पीड का गेयर भी चेंज कर सकती थी. अब मैंने आव देखा ना ताव ... सीधे पांचवें गेयर पर गाड़ी दौड़ा दी. मुझे मंजिल पर पहुंचने की जल्दी थी. मेरे स्तन कसे हुए होने के बावजूद चुदाई में गति की वजह से बेतरतीब हिलने लगे थे. मैं लंड का मजा लेते हुए अपने ही होंठों को काटने लगी. संजय का खड़ा लंड एक खूंटे की भांति अपने स्थान पर खड़ा और अड़ा था. बाकी का काम मैंने खुद ही कर लिया. कुछ देर की ही घपाघप चुदाई के बाद मैं सिसयाने लगी ... मिमयाने लगी. मेरे पैर कमर स्प्रिंग की तरह काम करने लगे. इस वक्त मुझे चूत लंड और वासना के अतिरिक्त दुनिया में सब कुछ बेमानी और झूठा लगने लगा था. उम्म्ह… अहह… हय… याह… उउहहह इस्स्स ... जैसे शब्द मुख से किसी संगीत की भांति लयबद्ध तरीके से विस्फुटित होने लगे थे. शरीर अकड़ने लगा, नसें फूलने लगीं, आंखें धुंधलाने लगीं. मैं बहुत दिनों से लंड के लिए भूखी भी थी इसलिए चरम सुख की प्राप्ति मेरे लिए और भी अनमोल हो गया था. मैं अपनी आंखें बंद करके इस पल को समेट लेने का प्रयास करने लगी और जल्द ही मैंने अपने कामरस का त्याग संजय के लंड पर ही कर दिया. अब मैं बुझे दीपक की भांति ठंडी पड़ने लगी, पर संजय ने बुझे दीपक की बाती को चढ़ाकर फिर से आग लगाने का प्रयास किया. कुछ धक्कों के बाद शायद संजय भी मंजिल के करीब ही था, इसीलिए संजय का लिंग और भी ज्यादा फूल कर अकड़ रहा था. संजय ने मेरी कमर थाम ली और नीचे से ही कमर उछाल कर धक्के देने लगा. मेरी चूत ने अभी अभी रस बहाया था, इसलिए मेरी रस भरी चूत में लंड जाने से ‘फच फच ... घच..घच़..’ की मादक ध्वनि आने लगी. संजय की स्पीड बढ़ती ही जा रही थी और उसने भी कुछ देर में ही अपना वीर्य त्याग दिया. उसने अंतिम क्षणों में मुझे हटने या संभलने का कोई संकेत नहीं दिया. संजय के कामरस का चूत में आभास होते ही मैंने गर्भ ठहर जाने के डर से उसके ऊपर से हट जाना उचित समझा. लगभग उछलते हुए मैंने जल्दी से एक छलांग लगाई और एक ओर बैठ गई. संजय के मुख से आहह निकल गई और उसने आंखें बंद करके अपने हाथों से लंड हिलाकर आखिरी बूँद को बाहर निकाला. अगर मैं पहले स्खलित ना हुई होती, तो उत्तेजना से लबरेज होकर मैंने संजय के लंड के कामप्रसाद को ग्रहण कर लिया होता. पर अभी वैसी किसी चाहत ने सर नहीं उठाया ... और ना ही संजय ने जोर दिया. अब जब मुझे अपनी काम वासना से राहत और निजात मिली, तो मेरी नजर परमीत पर पड़ी. उससे नजरें मिलते ही उसने मुझे छेड़ते हुए आंख मार दी. उसकी आंखों की चमक से लगा मानो वह पूछ रही हो कि क्यों जानेमन मेरे यार का लंड कैसा लगा. मैंने जवाब में उसे एक फ़्लाइंग किस उछाल दिया ... मानो मैं यह बताना चाहती हूं कि बहुत ही शानदार है तेरे यार का लंड. परमीत की व्यस्तता चुदाई में इस समय थोड़ी कम ही थी, शायद उन लोगों ने हमारी चुदाई का लाईव टेलीकास्ट देखने के लिए चुदाई को थोड़ा धीमा किया हुआ था. परमीत अब घोड़ी से चुहिया बन गई थी ... मतलब चेहरे को जमीन में सटा दिया था और गांड को ऊपर उठाकर रखा था. रजत सामने बैठा था, जिसके लंड को परमीत ने हाथों से संभाल रखा था. पास ही कंडोम के पैकेट पड़े थे, जिसे हमारे कहने पर इस्तेमाल नहीं किया गया. वैसे सुरक्षित यौन संबंधों के लिए कंडोम का इस्तेमाल होना ही चाहिए, पर सुरक्षा की परवाह इस वक्त किसे थी. हम तो बस आनन्द में डूबे हुए थे. हसन परमीत की गांड चाट रहा था, साथ ही बीच-बीच में थूक गिरा कर अपनी उंगली डालकर उसे अच्छे से फैला रहा था. मैं भी परमीत के समीप चली गई. मेरे अन्दर थोड़ी शांति थी और लग रहा था जैसे परमीत ने भी इस बीच मंजिल को पा लिया होगा. हसन और रजत तो जिगोलो थे और प्रोफेशनल होने के कारण उनका खुद पर कंट्रोल और उनकी चुदाई की स्टेमिना अकल्पनीय थी. कुछ देर में परमीत को गर्म जानकर रजत ने हसन को आंखों ही आंखों में पोजीशन लेने को कहा ... और हसन ने परमीत की गोरी गांड पर चोर से चपत लगा दी, साथ ही बालों से पकड़कर परमीत को उठा दिया. उनकी हरकत बेरहम जरूर लग रही थी, पर हमारे हुस्न के अहंकार रूपी वस्त्र को ऐसे ही उतारा जा सकता था. फिर हसन खुद जमीन पर लेट गया, परमीत को हसन के पैरों की और मुँह करके हसन के ऊपर बैठने को कहा गया. परमीत खुद समझ गई कि उसे क्या करना है. उसने हसन का लंड अपने हाथों में संभालते हुए बड़े आहिस्ते से अपनी गांड में लेने का प्रयत्न किया. मैं वहां पर हो रहे खेल को प्रतिपल आंखें फाड़े देख रही थी. मेरे लिए हसन का मोटा लंबा मूसल जैसा लंड चूत में लेना भी दर्द पीड़ा का भोग करने जैसा था. उधर परमीत का इतना साहस कि वो उसे अपनी गांड में लेने में लगी थी. मेरे दिल ने कहा कि वाहह परमीत वाहह ... तू सचमुच की सरदारनी है, जिसे देखकर ही लोगों की गांड फट जाती है. उसे तू खुद गांड में डलवाकर अपनी गांड फड़वा रही है. पर मेरे मन की बात मेरे मन में रह गई और ‘आहह उईई मां..’ कहते हुए परमीत ने सुपारे को अपनी गांड में डाल ही लिया. इस कामयाबी के लिए हसन ने उसकी गांड में चार पांच चपत लगा कर शाबासी दी. गांड पर चपत ने पीड़ा के बजाए परमीत को और भी अधिक उत्साह प्रदान किया. एक हल्की चीख और प्रयास के साथ ही परमीत ने लंड का कुछ और भाग निगल लिया. हसन ने भी कसी हुई गांड के सुखद अहसास को एक कामुक आहहह साथ के पा लिया. हसन के हाथ परमीत के कमर पर बंध से गए और कमर को लंड पर खींचने लगे. परमीत ने भी अपना बचा हुआ साहस जुटाया और नीचे की ओर तेज दबाव दे दिया. इस बार परमीत के मुख से जोरदार चीख निकल गई. गांड को चीरता हुआ हसन का लंड अन्दर तक जा बैठा और उन्हें देखकर मेरे मन में भी उत्तेजना की लहरें हिलोरें मारने लगीं. मैंने हाथ बढ़ा कर रजत के लंड को थाम लिया और दबाने लगी. परमीत और हसन, दोनों ही इस अवस्था में कुछ देर रुक गए और फिर कुछ देर में संयत होने लगे. परमीत ने कमर को हल्के-हल्के हिलाना शुरू कर दिया, जिससे गांड की दीवारें लंड के साथ ही उठती बैठती दिख रही थीं. उधर थका पड़ा संजय परमीत की चीख से उठ गया और मुस्कुराते हुए बाथरूम की ओर चला गया, जैसे उसे अपनी सोच पर कामयाबी मिल गई हो. इधर परमीत ने कमर को थोड़ा ज्यादा हिलाना शुरू कर दिया था, पर उसे हसन ने रोकते हुए अपनी ओर उल्टा झुका लिया. इससे परमीत की चूत ऊपर की और खुलकर सामने आ गई. कुछ देर पहले ही हसन के लंड से लाल हो चुकी चूत पर रजत की नीयत थी. अब रजत ने मुझसे कहा- आप हसन से अपनी चूत चटवाने का मजा लीजिए. वो स्वयं अपने लंड पर थूक लगा कर परमीत की चूत बजाने जा पहुंचा. वासना और दारू का मिलाजुला नशा सब पर हावी था. परमीत को दो लंडों की चुदाई से परहेज नहीं था, बल्कि ये देख कर तो उसकी आंखों में एक चमक सी आ गई थी. उसकी खुशी देखकर इस दुस्साहस के लिए मैं भी खुद को तैयार करने लगी. रजत ने हसन और परमीत के पैरों के आजू-बाजू अपने पैर डाले और परमीत की चूत की चिकनाई को हाथों से जांचते हुए अपने लंड का सुपारा निशाने पर सैट किया. फिर एक निश्चित गति से दबाव बनाना शुरू किया ... तो लंड घुसता ही चला गया. दो लंड के दबाव से परमीत जोरों से चीख पड़ी. वो रोने बिलबिलाने लगी और लगभग बेसुध होने की कगार पर जा पहुंची. पर रजत ने जरा सी भी दया नहीं दिखाई और लंड को जड़ तक पहुंचा ही दिया. परमीत की चूत और गांड दोनों में जड़ तक लंड घुसा हुआ देखना मेरे लिए अचरज और सौभाग्य की बात थी. दोनों आदमी सचमुच के मर्द निकले. दोनों ने ही चुदाई रोक दी और परमीत के जिस्म के हर हिस्से को ऐसे सहलाने लगे, जैसे किसी बच्चे को पुचकार रहे हों. अब तक मैं खुद चूत के दाने को सहलाने लगी थी. फिर मैंने भी हसन के सर के दोनों और अपनी टांगें डाल दीं. मेरा मुख परमीत और रजत की ओर था और चूत हसन के मुख पर जम गई थी. हसन ने भी बिना समय गंवाए मेरी चूत में जीभ चलानी शुरू कर दी. कुछ देर रुकने के बाद हसन और रजत दोनों ही कमर हिलाने लगे, जो नियमित और मद्धिम गति का था. इससे चूत और गांड में लंड के परिचालन के लिए जगह बनने लगी. ‘ईस्स्सस आहह उउहहह.’ के बीच पता ही नहीं चला कि कब मद्धिम गति तेज तूफान में बदल गई. मुझे तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि चूत और गांड दोनों के फट जाने के बावजूद परमीत आनन्द लेने लगी थी और उनका साथ देने लगी थी. हम सभी वासना के भंवर में गहरे उतर चुके थे. अब तक संजय भी बाथरूम से आ चुका था और हमारी कामक्रीड़ा ने उसके लंड में भी दुबारा तनाव पैदा कर दिया था. उसने अपना खड़ा लंड परमीत के मुँह में चूसने के लिए दे दिया. उसका लंड चूसने के लिए तो मैं भी बेताब थी, पर संजय परमीत के तीनों छेदों को एक साथ लंड देने का अपना वादा पूरा कर रहा था. परमीत तो जैसे तीन लंड एक साथ पाकर निहाल हो गई थी और संजय बड़ी मासूमियत से अपनी उंगलियों से उसके केश संवार रहा था. चुदाई की गति तेज होती गई, सांसों पर नियंत्रण मुश्किल होने लगा. गला सूखने लगा. ‘आहहह उहह मर गई ... चोदो ... फाड़ दो..’ पता नहीं क्या क्या परमीत के मुख से झड़ने लगा. हालांकि ऐसे वासना से भीगे सुमन, सभी की मुखवाणी से झड़ रहे थे. अब परमीत के शरीर में अकड़न जकड़न स्पष्ट महसूस होने लगी थी. उसका बदन पसीने से नहा उठा था. फच फच ... की अवाज के बीच परमीत ने अपना रस बहा दिया और अब वो ढीली पड़ने लगी. पर हसन और रजत की चुदाई में जरा सा भी फर्क देखने को नहीं मिला. बल्कि मैंने महसूस किया कि हसन और भी ज्यादा बेरहम हो रहा था. शायद वो चरम सुख की प्राप्ति करने वाला था. कुछ ही देर और बेरहमी के बाद उसने रजत को इशारा किया ... और रजत ने परमीत को मुक्त कर दिया. परमीत एक ओर उठ कर जीभ निकाल कर कुतिया बन गई. मैं हसन के ऊपर से हट गई और हसन ने अपने लंड को कुछ झटके देकर परमीत के मुख को अपने बहुत से गाढ़े वीर्य से भर दिया. परमीत की ये अवस्था चीख-चीख कर कह रही थी कि उसकी शर्म का गहना बिखर चुका है और यौवन का अहंकार चकनाचूर हो गया है. पर मेरा अहंकार अभी सिर्फ सहमा था, उसका टूटना अभी बाकी था. एक बात आपने कभी सोचा है कि चुदाई के वक्त नर मादा दोनों बराबर के प्रतिद्वंदी लगें, जबकि असलियत में ये जंग नाजुक बदन और दानवों के बीच छिड़ी होती है. जिसमें विशालकाय बलिष्ट शरीर वालों को, कोमलांगियां चुनौती देती हैं. ऐसी ही जंग, जिसमें परमीत ने चुनौती देते हुए प्रतिद्वंदियों से अपना लोहा मनवाया. वो वीर्य का स्वाद लेते हुए एक ओर लुढ़क सी गई थी. अभी तो सिर्फ एक लंड ने ही पिचकारी मारी थी. पर दो लंड अभी भी तन कर जंग के लिए खड़े थे. सो इस बार रजत नीचे लेट गया और उसने मुझसे चूत में लंड लेने के लिए कह दिया. लंड चूत की तो मैं भी माहिर खिलाड़ी थी. उसकी सो मैंने रजत के मुख की ओर ही अपना मुख सैट कर लिया. उसकी कमर के दोनों और पैर डाल कर लंड को अपने ही हाथों में पकड़ कर अपनी चूत फाड़ने की तैयारी करने लगी. लंड और चूत काम रस से भीगे हुए थे, इसलिए समस्या कम नजर जरूर आ रही थी, पर ऐसा कुछ ना था. ये बात मुझे चूत के फट जाने के बाद पता चली. मैंने तो ऊपर से कम ही जोर लगाया था, पर नीचे से रजत ने पूरी ताकत लगा दी थी. उसकी पकड़ मेरी कमर पर ऐसी थी कि मैं तड़पने के अतिरिक्त कुछ ना कर सकी. ‘आहहह मार डाला रे..’ जैसी मेरी लंबी चीख से हाल गूंज उठा, पर रजत की बेरहमी पर कोई बदलाव नहीं आया. बल्कि उसने तो और पूरा जोर लगा कर लंड पेल दिया ... मानों उसे मेरी चीख से आनन्द मिला हो ... और मैं चूत पर चाकू की तेज धार से प्रहार होने का अनुभव करते हुए मरणासन्न होने लगी. मेरी चुदी चुदाई चूत के लिए भी रजत का लंड भारी साबित हो रहा था. लेकिन बेरहम रजत ने लंड जड़ तक पहुंचाने के बाद थोड़ी दरियादिली दिखाई और ठहर गया. मैंने उसी पल अपनी गांड पर उंगलियों की छुअन महसूस की. वो संजय था, जो मेरी गांड पर थूक लगा रहा था. मैं दर्द से तड़प कर रजत के ऊपर झुकी हुई थी, जिससे मेरी गांड और छेद एकदम स्पष्ट होकर संजय को आमंत्रित कर रहे थे. इधर रजत ने लंड डाल कर शांति बनाई रखी और उधर संजय ने हसन से सीख लेकर गांड को धीरे धीरे तैयार कर लिया. पहले सुपारा, फिर आधा लंड ... फिर पूरा लंड मेरी गांड में डाल दिया. संजय का लंड मैं गांड में आसानी से सह गई. रजत और संजय ने धीरे-धीरे स्पीड पकड़ी और स्पीड बढ़ती ही चली गई. मैं वासना के सागर में गोते लगाने लगी. उनकी धुंआधार चुदाई के बाद मैं भी खुद से कमर हिलाने लगी. ‘आहहह इस्स्स..’ की मादक ध्वनि स्वतः ही वातावरण में बिखरने लगी. अब तक हसन का वीर्य से सना श्वेत लंड फिर से तनने लगा था. उसने मेरे समीप आकर मेरे बालों को पकड़ते हुए मेरा सर उठा दिया. वो मेरे मुख में लंड डालने की कोशिश करने लगा, मैंने लंड को पहले जीभ से चाटा, कुछ खट्टेपन का स्वाद आया, जिससे मैं भलिभांति परिचित थी. मेरा जोश भी उफान पर था, इसलिए मैंने लंड को लॉलीपॉप समझकर चूसना शुरू कर दिया. हसन का लंड मेरे मुँह के लिए बहुत बड़ा था. मुझे तकलीफ तो हो रही थी, फिर भी मैं अपने अनुभव के कारण आधा लंड चूसने में कामयाब रही. अब मेरे तीनों छेदों पर तीन लंड से भरपूर चुदाई हो रही थी. तीनों मर्द बेरहम होकर मेरे नाजुक बदन को भोग रहे थे. उनकी घमासान चुदाई ने मुझे निस्तेज कर दिया और मैं कामरस त्यागने पर विवश हो गई. मैं अपने अंतिम क्षणों में बड़बड़ाने लगी, थिरकने लगी, कांपने लगी. ‘आहहहहह उउहहह इइस्स्स..’ की आवाजें निकालने लगी और अकड़ते हुए मैंने अपना स्खलन कर लिया. मेरे झड़ जाने के बाद भी मेरी चुदाई वैसी ही चलती रही ... चुदाई ऐसे चल रही थी, जैसे उन तीनों में से किसी को पता ही ना चला हो कि मैंने वीर्य त्याग दिया है. मुझे मजे की जगह दर्द होने लगा था, पर किसी को कोई परवाह नहीं थी. सबसे पहले संजय ने मंजिल को प्राप्त किया, वो झड़ने के पहले मेरे नितंबों को जोर जोर से पीटने लगा. मैं दर्द से तड़पती और जैसे ही सांस अन्दर खींचती, मेरी चूत और गांड और टाइट हो जाती थी. मोटे लंड से मेरी चुदाई और ज्यादा दर्द भरी हो जाती थी. संजय ने मेरी पीठ पर पिचकारी मारी ... और बचे हुए अमृत को मुझे पिलाने सामने आ गया. उसने लंड मेरे मुँह में दे दिया. उधर संजय की जगह खाली देखकर हसन अपना लंड मेरी गांड में डालने की कोशिश करने लगा. उसने अपनी तीसरी कोशिश में आधा लंड गांड में उतार दिया. मैं फिर से बिलबिला उठी, पर अब कुछ नहीं हो सकता था. दोनों ओर से मेरी बेरहम चुदाई शुरू हो चुकी थी. ऐसे ही लगभग बीस मिनट और चुदाई के बाद पहले रजत ने अपने गाढ़े वीर्य से मेरी चूत को लबालब कर दिया, जो मेरी जंघाओं के मध्य बह गया. उसने स्खलन के वक्त मेरी घुंडियों को कसके मरोड़ दिया, जिससे मैं और तड़प गई. उसके कुछ देर बाद मेरे चूतड़ों को पीटते हुए हसन ने मेरी गांड पर ही अपना वीर्य त्याग दिया. मुझे उनसे अलग होने का मौका मिला, तो मैं पास ही लुढ़क गई. तब रजत ने अपने लंड को मुझसे चटवा कर साफ करवाया. चुदाई के बाद तीनों मर्दों ने मेरी जमकर तारीफ की. मेरे यौवन का अहंकार चूर चूर हो गया था. शर्म के गहने, जिसे मैंने उतार फेंके थे ... उसे फिर से पहनते हुए मैं अपने कपड़े ढूंढने लगी. उस रात हमने थोड़ा आराम किया और फिर वैसा ही एक दौर और चलाया. हम सुबह होते ही दीदी के घर आ गए और हमारे मजे जानकर दीदी की चूत ने रस बहा दिया. हमने लेस्बियन करके उसे शांत किया. दोपहर में भैया वापस लेने आ गए थे. इस तरह गीत ने अपने बचपने से लेकर जवानी के मजे तक सब कुछ मुझे बताया. आप सभी पहले कड़ियों में पढ़ चुके हैं कि गीत मेरी प्रशंसिका है ... और उसने मुझे अपनी कहानी लिखने को कहा था. अब अगर गीत को कहानी पसंद आ गई और उसने मुझे सचमुच मिलने बुला लिया, तो उसकी चुदाई की कहानी बाद में लिखूँगा. वैसे दोस्तो, एक बात का ध्यान रखिएगा कि लेखक भी इंसान ही होता है, उसे हेय दृष्टि से देखकर अच्छे इंसान के दिल को ठेस पहुंचाना अच्छी बात नहीं है. अगली कामुक कहानी की शुरूआत हो चुकी है, आनन्द लेने के लिए निरंतर बने रहें. तब तक के लिए अलविदा ... धन्यवाद. इस जिगोलो सेक्स स्टोरी पर आप अपनी राय इस पते पर दे सकते हैं. 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