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मैं शेखर का लिंग हूँ। मुझे अनेकों उपनामों से जाना जाता है क्योंकि लोग मेरा नाम लेने से शर्माते हैं। शेखर 36 साल का है और मुझ में बहुत दिलचस्पी रखता है। जब शेखर छोटा था तब उसे मेरे में कोई खास रूचि नहीं थी। तब मैं खुद भी छोटा ही था और शेखर सिर्फ मुझे सुसू करने के लिए इस्तेमाल करता था … पर आजकल तो मैं उसकी सोच का केंद्रबिंदु सा बना हुआ हूँ।
जब शेखर का जन्म हुआ था तो मैं करीब एक इंच का था और मेरा आकार एक पतली मूंगफली जैसा था, ऊपर और नीचे से पतला और बीच से थोड़ा मोटा। मेरा मुँह पैना था और उस पर जिल्द की एक-दो परतें थीं, जैसे चूड़ीदार पाजामे का निचला छोर होता है। यह फालतू की खाल मेरे मुँह पर हमेशा रही है … यह क्यों है? मुझे पहले पता नहीं था, पर जब शेखर लड़कपन और जवानी की ओर बढ़ा तब मुझे इसके फ़ायदे और ज़रूरत का पता चला। यह बाद में बताऊँगा.
पहले पाँच साल में मेरे आकार में ज्यादा फर्क नहीं आया। जब शेखर 6-7 साल का हुआ तब मैं करीब 2 इंच का था और मेरी गोलाई भी थोड़ी बढ़ गई थी पर मेरा मुँह अभी भी पैना ही था। मुझ में ज्यादा बदलाव तब आने शुरू हुए जब शेखर 13 साल का हुआ। मेरा आकार करीब 3.5 इंच का हो गया था और मेरे आस-पास बाल उगने लगे थे … हल्के, घुंघराले और मुलायम … शेखर को आश्चर्य हुआ था … शायद वह इसकी उम्मीद नहीं कर रहा था। धीरे-धीरे बाल घने होते गए और मेरे आस-पास के पूरे इलाके को ढक लिया।
शेखर जब 18 साल का हुआ तब मैं पूरी तरह पनप गया था। मेरी लम्बाई करीब 4.75 इंच और मेरी परिधि करीब 3.5 इंच हो गई थी। मेरे मुँह का पैनापन खत्म हो गया था और उसकी जगह गोल कुकुरमुत्ता-नुमा (mushroom-shaped) सुपारा बन गया था जिसकी परिधि मेरे तने की परिधि से ज्यादा थी और जो करीब एक इंच लंबा था। मेरे मुँह पर अतिरिक्त खाल का घूंघट रहता था।
जब शेखर मुझसे खेलता तो इस खाल को पीछे खींच कर मेरे मुँह को नंगा कर देता जो कि गुलाबी और अत्यंत मार्मिक था। शेखर ने कई बार अपने सुपारे को खाल की परत से बाहर निकालने की कोशिश की थी पर सुपारा बड़ा होने के कारण बाहर नहीं आ पाया था।
एक दिन एक डॉक्टर ने उसकी खाल को एक झटके में पीछे खींच कर उसके सुपारे को पूरी तरह बेनकाब कर दिया था। शेखर को क्षणिक दर्द हुआ था पर उसके बाद से उसकी खाल सुपारे के ऊपर आसानी से चलने लगी थी। सामान्य तौर पर सुपारा खाल के घूंघट में ढका रहता पर जब कभी शेखर को उत्तेजना होती या वह हस्तमैथुन करता तो सुपारा खाल से बाहर आकर पूरा दिखाई देता है। कुछ धर्म के लोग लिंग के ऊपर की खाल को हमेशा के लिए काट कर निकलवा देते हैं। ऐसे लिंग को खता हुआ लिंग कहते हैं (circumcised)। खते हुए लिंग के दो फायदे माने गए हैं … एक तो लिंग के सुपारे में कोई मैल या गंदगी नहीं छिपी रह सकती जिससे वह स्वच्छ रहता है और दूसरा यह कि सुपारा सदैव उघड़ा रहता है जिस कारण उसकी धीरे धीरे संवेदनशीलता कम हो जाती है और चरमोत्कर्ष तक पहुँचने में थोड़ा अधिक समय लगता है।इसके अलावा खते और अनखते लिंग में कोई फर्क नहीं होता।
जब उत्तेजना के कारण मैं स्तंभित हो जाता हूँ तो मेरी लम्बाई 5.75 इंच और परिधि लगभग 4 इंच हो जाती है। शेखर की 18 साल की उम्र के बाद से मेरे आकार में कोई विकास नहीं हुआ है। शेखर हमेशा से मेरे बारे में बहुत शर्मीला रहा है। वह किसी से मेरे बारे में बात करने या कुछ पूछने से कतराता है। जब से शेखर अपने आप नहाने योग्य हुआ है तबसे शेखर के अलावा किसी ने मुझे नहीं देखा है। बस शेखर की शादी के बाद उसकी पत्नी अंजलि ने मुझे देखा है।
मेरा लोगों से छुपे रहना मेरे आकार के प्रति कई भ्रांतियाँ पैदा करने में मदद करता आया है। अक्सर मर्द अपने लिंग के आकार को बढ़ा-चढ़ा कर ही बताते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उन्हें इस बात का प्रमाण नहीं देना पड़ेगा। इसका लड़कों पर मानसिक दुष्प्रभाव यह पड़ता है कि उन्हें लगता है केवल उनका लिंग ही छोटा है … और वे इस हीन भावना से सदा के लिए प्रभावित हो जाते हैं। वे यह नहीं सोचते कि जब प्रकृति ने उनके बाकी अंग … जैसे हाथ, पैर, कान, नाक इत्यादि उपयुक्त आकार के बनाये हैं तो केवल उनका लिंग ही छोटा क्यों बनाया होगा?
इस हीन-भावना से त्रस्त पुरुष अपना लिंग बड़ा करने के कई उपाय करते आये हैं … बाज़ार में तरह तरह के लोशन, क्रीम, गोलियाँ, पम्प व क्रियाएँ उपलब्ध हैं जो कि लिंग का आकार बड़ा करने का वादा करती हैं … पर वास्तविकता में ये ढोंगी डॉक्टरों, हकीमों, वैद्यों, साधुओं और व्यापारियों की आसानी से पैसा कमाने की योजना होती है। बहुतों ने आजमाया है पर हर पुरुष को इसमें निराशा ही मिली है क्योंकि लिंग को बड़ा करना संभव है ही नहीं।
यह सिर्फ सर्जरी से मुमकिन है पर इसके बहुत खतरे और दुष्परिणाम हो सकते हैं। मेरी राय में शेखर को मेरे आकार से संतोष करना चाहिए क्योंकि मैं हर तरह से अपना निर्धारित काम करने में सक्षम हूँ और अंजलि कभी मेरे आकार को लेकर असंतुष्ट नहीं हुई है।
विभिन्न देशों में लिंग का औसत आकार ( 1 इंच = 2.54 cm)
वैश्विक स्तर पर लिंग का औसत आकार
मेरे दो पड़ोसी भी हैं जो मेरे साथ जुड़े हुए से हैं। पहले तो मुझे उनके अस्तित्व का पता नहीं था पर जैसे-जैसे शेखर बड़ा हुआ मेरा ध्यान इन पड़ोसियों पर पड़ा। इनका नाम तो अंडकोष है पर इन्हें प्यार से टट्टे या गोलियाँ बुलाते हैं। ये मेरी तरह आकर्षक तो नहीं हैं पर शेखर की मर्दानगी मुझसे ज्यादा इनके कारण हैं। शायद शेखर को इनके बारे में ज्यादा पता नहीं है … वह तो मुझे ही मर्दानगी का चिह्न मानता है। सिर्फ शेखर ही नहीं अन्य लोग भी यही समझते हैं.
पर मैं जानता हूँ अंडकोष बहुत ज़रूरी काम करते हैं। उनके अंदर करोड़ों शुक्राणु (sperm) पैदा होते हैं जिन्हें मैं सम्भोग के चरमोत्कर्ष के समय विस्फोट के साथ छोड़ देता हूँ। इन करोड़ों शुक्राणुओं में से कोई एक सफल शुक्राणु, स्त्री के अंडे को भेदता है जिससे एक नई ज़िंदगी की शुरुआत होती है। यह प्रकृति की सबसे अनूठी और अद्भुत क्रिया कही जा सकती है। इसमें मेरा काम केवल स्तंभित हो कर स्त्री की योनि में प्रवेश करना होता है जिससे वीर्य स्त्री की योनि के भीतर छूट सके। बाकी काम, जैसे शुक्राणु और वीर्य उत्पादन अंडकोष और प्रोस्टेट ग्रंथि करते हैं। अगर ये ठीक से काम ना करें तो शेखर कभी पिता नहीं बन सकता, बस मेरे कारण यौन-सुख अवश्य भोग सकता है और स्त्री को सुख दे सकता है।
अंडकोष की थैली में विशेष मांसपेशियाँ होती हैं जो सिकुड़ कर उसे बदन के करीब ला सकती हैं या ढीली होकर बदन से दूर लटका सकती हैं। ये मांसपेशियाँ तीन मुख्य भूमिका निभाती हैं :
शुक्राणु एक निश्चित तापमान में ही रह सकते हैं जो कि शरीर के सामान्य तापमान से थोड़ा कम होता है। इसलिए ठन्डे मौसम में अंडकोष को गरमाहट देने के लिए बदन के करीब खींच लेती हैं और गर्मी में उन्हें कर ठंडक पहुंचाने के लिए दूर लटका देती हैं। ऐसा करने से शुक्राणु को जीवित रहने में मदद मिलती है।
जब चरमोत्कर्ष में वीर्योत्पात होता है तो वीर्य को वेग से बाहर भेजने के लिए ये सिकुड़ कर वीर्य का रास्ता कम कर देती हैं।
जब शेखर को भय, कौतूहल या दुविधा हो या वह किसी ऐसी क्रिया में लगा हो जिसमें अंडकोषों को चोट लगने का डर हो तो वे सिकुड़ कर अंडकोषों को शरीर के पास ले जाती हैं।
शुक्राणु के अलावा अंडकोष एक अत्यंत महत्वपूर्ण रसायन, टेस्टोटेरोन (testoterone) का संचार करते हैं जिससे शेखर की मर्दानगी पनपती है। जब शेखर अपनी माँ की कोख में था तभी से इस रसायन का उत्पादन शुरू हो गया था जिस कारण शेखर लड़की ना बनकर लड़का बना था। फिर शेखर के यौवन प्रवेश के समय इस रसायन के अतिरिक्त उत्पादन के कारण ही उसके बदन पर बाल, दाढ़ी-मूछें, आवाज़ में मर्दानगी और मेरे आकार में विकास जैसे मर्दाने बदलाव आये थे।
शेखर को शायद नहीं पता कि प्रजनन का परिणाम लड़का होगा या लड़की, यह स्त्री पर नहीं बल्कि सिर्फ पुरुष पर ही निर्भर होता है। पुरुष के शुक्राणुओं में अगर सिर्फ एक तरह के अंश (XX) होते हैं तो लड़की का और अगर दो तरह के अंश (XY) होते हैं तो लड़के का जन्म होता है। स्त्री के अंडे में इस तरह के विकल्प नहीं होते … वह सिर्फ एक तरह के अंश (YY) ही पैदा कर सकती है। इसलिए बच्चे के लिंग की पूरी ज़िम्मेदारी मर्द पर होती है।
पर भाग्य की विडम्बना देखिये … कोई भी शेखर को, एक के बाद एक, तीन बेटियों के जन्म के लिए जिम्मेदार नहीं मानता … सब उसकी पत्नी को ही दोषी मानते हैं। पर मुझे पता है … इस के ज़िम्मेदार मेरे पड़ोसी टट्टे हैं।भगवान का शुक्र है मेरा इसमें कोई हाथ नहीं है। मैं तो सिर्फ पिचकारी का काम करता हूँ … या तो मूत्र या फिर वीर्य की बौछार करना मेरा काम है। बाकी तकनीकी काम शेखर के टट्टे और अंदरूनी अंग, अव्यय और ग्रंथियां करते हैं! मुझे खुशी है मेरा काम सबसे मज़ेदार है। ना केवल शेखर को मैं चरम आनन्द पहुँचाता हूँ, मैं उसकी पत्नी अंजलि को भी अत्यंत सुख दिलाता हूँ … ना केवल सम्भोग के द्वारा बल्कि वह मुझे छूने में, सहलाने में और अपने मुँह में लेकर चूसने में भी आनन्द लेती है।
प्रायः मैं शिथिल अवस्था में ही रहता हूँ जब मेरा आकार करीब 3.5 से लेकर 5.5 इंच तक का होता है। जब शेखर को यौन-उत्तेजना होती है तो मैं कड़क हो जाता हूँ और मेरा आकार 5 से 6 इंच तक का हो जाता है। यह हम भारतीयों और एशिया-वासी मर्दों के लिंगों का औसत आकार होता है। मैं कड़क कैसे होता हूँ यह भी एक रोचक क्रिया है।
शेखर को उत्तेजना यौन-सम्बंधित दृश्यों, आवाजों, स्पर्श या कामुक यादों से होती है। इस उत्तेजना का संकेत उसके मस्तिष्क (para-ventricular nucleus) में पैदा होकर, रीढ़ की हड्डी की विशेष नसों से गुजरता हुआ, श्रोणि (pelvis) नसों और प्रोस्टेट ग्रंथि से होता हुआ मुझ तक पहुँचता है। मेरे अंदर तीन नलियां हैं … बीच की नली मूत्र और वीर्य विसर्जन के काम आती है और मेरे दोनों तरफ एक-एक नली है (corpora cavernosa) जो कि मेरी जड़ की तरफ खुली और सुपारे के तरफ से बंद होती हैं।
उत्तेजना संकेत इन दोनों नलियों को ढीला कर देता है और जिससे वे खुल जाती हैं और इन में रक्त प्रवाह सामान्य से करीब आठ-गुणा बढ़ जाता है। इस अतिरिक्त रक्त के भरने से मैं बड़ा और कड़क हो जाता हूँ और मेरा रक्त-चाप बाकी शरीर के रक्त-चाप के मुक़ाबले दुगुना हो जाता है। इस बढ़ते रक्त-चाप के कारण मेरी बाहरी सतह उन धमनियों को बंद कर देती है जिनसे रक्त बाहर जाता है। अतः मेरे अंदर रक्त क़ैद हो जाता है और मैं बड़ा और कड़क हो कर सम्भोग-योग्य हो जाता हूँ।
आम तौर पर मेरी सम्भोग क्षमता करीब 1.5 से 3 मिनट की होती है जिस दौरान मैं स्तंभित (कड़ा) रहता हूँ और फिर मैं चरमोत्कर्ष के करीब पहुँच जाता हूँ। चरमोत्कर्ष पर पहुँचते ही शेखर के मस्तिष्क से संकेत नाटकीय रूप से बदलते हैं। जननांग में एड्रिनलीन उत्पादन में अचानक वृद्धि होती है जिससे वीर्योत्पात शुरू हो जाता है जिसमें प्रोस्टेट ग्रंथि और मैं मिलकर करीब 10 से 15 बार हिचकोले लेकर वीर्य निष्कासित करते हैं। कुल वीर्य की मात्रा करीब 10 ml होती है जो कि एक चाय की चम्मच से थोड़ी ज्यादा होती है।
वीर्योत्पात के साथ ही मेरी जड़ की वे मांसपेशियाँ ढीली होने लगती हैं जिन्होंने रक्त बाहर जाने वाली धमनियों को बंद करके रखा था। इसके फलस्वरूप मेरे में क़ैद रक्त को बाहर जाने का रास्ता मिल जाता है और धीरे धीरे वह रक्त मुझे छोड़ कर बाकी शरीर में प्रवाह करने लगता है। ऐसा होने से मैं फिर से छोटा और शिथिल हो जाता हूँ और मुझ में सम्भोग-योग्य स्तंभता नहीं रहती।
एक बार वीर्योत्पात करने के बाद मुझे कुछ समय तक आराम की ज़रूरत होती है जिस दौरान मैं दुबारा से स्तंभित नहीं हो सकता। यह समय करीब 15 से 20 मिनट का हो सकता है। इस दौरान मुझे आराम करना ही पसंद होता है। बल्कि वीर्योत्पात के करीब 5 मिनट तक तो मुझे कोई स्पर्श या सहलाना भी अच्छा नहीं लगता। इस विराम के बाद मुझे दोबारा स्तंभित करने में पहले से ज्यादा उत्तेजना की ज़रूरत पड़ती है जो कि स्त्री मुझे प्यार से सहला कर या अपने मुँह में लेकर कर सकती है। जब मैं दूसरी बार कड़क होता हूँ तो मैं ज्यादा देर, यानि 8 से 10 मिनट तक सम्भोग कर पाता हूँ। यह अवधि मेरे योनि प्रवेश के बाद की अवधि है और यह शेखर और उसकी पत्नि की यौन-तृप्ति के लिए काफी पर्याप्त है। इससे ज्यादा देर का सम्भोग मेरे लिए और योनि के लिए अक्सर असहाय हो जाता है। मैं मानता हूँ कि सेक्स-फिल्मों में और कहानियों में सम्भोग घंटों चलता है पर यह अप्राकृतिक है और इससे प्यार और आनन्द का अनुभव नहीं होता। अब जब शेखर का वीर्योत्पात होता है तो वीर्य की मात्रा भी कम होती है और संकुचन भी कम देर होता है।
आजकल मैं एक सत्र में दो से ज्यादा बार स्तंभित हो कर वीर्य-स्खलन कर नहीं पाता हूँ। पर शेखर जब जवान था तो तीसरी बार भी मुझे स्तम्भन के लिए तैयार कर पाता था। तीसरी बार के स्तम्भन के लिए समय भी ज्यादा लगता था, करीब 30 से 40 मिनिट, और सम्भोग अवधि भी बढ़कर करीब 10 से 15 मिनिट हो जाती थी। तीसरी बार की वीर्योत्पात मात्रा बहुत कम होती थी। एक सत्र में शेखर तीन से ज्यादा बार सम्भोग कभी नहीं कर पाया है। प्रकृति ने मेरी स्तम्भन और सम्भोग क्षमता पर अंकुश लगा कर एक तरह से स्त्री जाति पर एहसान किया है। अगर यह अंकुश नहीं होता तो शेखर सारी सारी रात रति-क्रिया में ही लत रहता।
हालांकि मैं सामान्य आकार का हूँ पर शेखर को मैं बहुत छोटा लगता आया हूँ। शेखर अकेला ही नहीं है … लगभग सभी मर्द अपने लिंग को छोटा मानते हैं। दक्षिण और पूर्वी एशियाई मर्दों के लिंग अमरीकी, अफ्रीकी और यूरोपीय मर्दों के लिंग के मुकाबले थोड़े छोटे ज़रूर होते हैं पर वैश्विक-स्तर पर देखा जाये तो सभी लिंगों का औसतन आकार मेरे आकार से ज्यादा बड़ा या छोटा नहीं होता। वैश्विक पैमाने पर शिथिल लिंग 3.5 से लेकर 5 इंच तक और खड़ा लिंग 5 से लेकर 6.75 इंच तक का होता है। मतलब, दुनिया के करीब 86% मर्द इसी आकार के लिंग से विभूषित हैं। हाँ, जिस तरह दुनिया में कुछ अजीबो-गरीब लंबे और ठिगने लोग मिलते हैं उसी प्रकार लिंग भी इन औसत आंकड़ों से परे हो सकते हैं। इन करीब 14% मर्दों में भी करीब 2% ही ऐसे होंगे जिनका कड़क लिंग 3.5 इंच से कम या 7.5 इंच से बड़ा होगा। जिन मर्दों का लिंग इन आकारों से भी छोटा या बड़ा होता है वे अपने आप को बद-किस्मत समझ सकते हैं। जहाँ अति-छोटा लिंग मर्द की मानसिकता और उसकी मर्दानगी के अहसास को आघात पहुंचाता है वहीं ज़रूरत से ज्यादा बड़ा लिंग भी एक तरह का बोझ ही होता है। तुम्हें आश्चर्य हो रहा है? मैं समझाता हूँ…
प्रकृति ने मुझे मूल रूप से सम्भोग के लिए बनाया है। मूत्रपात के लिए लिंग ज़रूरी नहीं है वरना स्त्रियों के पास भी लिंग होता!!। सम्भोग के समय मैं योनि में प्रवेश करता हूँ … स्त्री और पुरुष, दोनों को, पूर्ण संतुष्टि तब तक नहीं मिलती जब तक मैं पूरा-का-पूरा, अपने मूठ तक, योनि के अंदर ना चला जाऊं। स्त्री-पुरुष का समागम तभी पूरा होता है जब लिंग पूर्णतया योनि में समा जाये। परन्तु स्त्री की योनि की औसतन गहराई 4.5 से 5.5 इंच की ही होती है जिसके आगे उसकी मर्मशील ग्रीवा (cervix) की दीवार होती है। सम्भोग के समय मैं इस दीवार तक तो अंदर जा सकता हूँ पर इसे भेद नहीं सकता। लिंग की ग्रीवा से बारबार टक्कर स्त्री को पीड़ा देती है और उसे सम्भोग का आनंद नहीं आता। अगर लिंग बहुत बड़ा होगा तो ना तो मर्द उसे मूठ तक अंदर डाल पायेगा और ना ही स्त्री को पूरा लिंग भोगने और पुरुष के नज़दीकी स्पर्श का आनंद मिलेगा। मतलब दोनों का आनंद कम हो जायेगा। यूं समझो कि अगर लिंग दो फीट का होता तो स्त्री-पुरुष के बीच कोई स्पर्श ही नहीं होता।
अत्यधिक बड़े लिंग के और भी नुकसान हैं … उसको स्त्री अपने मुँह में पूरी तरह नहीं ले पाती और गुदा-मैथुन में भी उसे ज्यादा तकलीफ होती है। अर्थात, ज्यादा बड़े लिंग का स्वामी यौन-सुख को पूर्णतया भोग नहीं पाता है और उसकी पत्नि / प्रेमिका की कामाग्नि भी ठीक तरह से नहीं बुझ पाती। सम्भोग एक सामान्य क्रिया है और इसके लिए सामान्य आकार के गुप्तांग ही पर्याप्त हैं। शेखर को मैं छोटा क्यों लगता हूँ? इसके कई कारण हैं :
मैंने पहले कहा था कि शेखर का लिंग उसके अलावा उसकी पत्नि ने ही देखा है। इसी तरह बाकी मर्दों के लिंग भी अक्सर छिपे या ढके रहते हैं और उनका असली आकार एक गुप्त रहस्य होता है। मर्दों के बाकी बाहरी अंग जैसे नाक, कान, उँगलियाँ इत्यादि गुप्त नहीं होते और सबको उनके आकार का पता होता है। एक मैं ही ऐसा अंग हूँ जिसका आकार सबसे छिपा रहता है … ऐसी हालत में किसी भी आदमी के लिए यह कहना आसान होता है कि उसका लिंग कितना बड़ा है। इस मसले पर अक्सर मर्द बढ़ा-चढ़ा कर ही बात करते हैं। जबसे लड़कों में यौन-उत्सुकता जागती है वे हर किसी से बड़े लिंग की बात ही सुनते हैं और कहानियों तथा सेक्स-फिल्मों में भी बड़े लिंग के चुनिन्दा मर्द ही होते हैं। ऐसे वातावरण में हर आदमी को ऐसा लगता है कि सिर्फ उसका लिंग ही छोटा है।
जब शेखर मुझे देखता है तो उसका दृष्टिकोण ऊपर से नीचे की ओर होता है जिससे वह मेरी पूरी लम्बाई नहीं देख पाता; जब वह सामने खड़े किसी और मर्द का लिंग देखता है तो उसका दृष्टिकोण ऐसा होता है कि वह उसकी पूरी लम्बाई देख पाता है। इस कारण उसे दूसरे मर्दों के लिंग बड़े नज़र आते हैं।
आम मर्द की तरह शेखर को भी औपचारिक रूप से यौन शिक्षा नहीं मिली है। उसे मेरे बारे में जो भी पता है वह या तो दोस्तों से जाना है, जो उसकी ही तरह अनभिग्य हैं, या फिर सेक्स कहानियां पढ़ी हैं जहाँ रोमांच बनाने के लिए लिंगों का बखान बढ़ा-चढ़ा कर किया जाता है। ऐसी कहानियों में लिंग हमेशा 8 से 12 इंच का होता है जो 1 से 2 घंटे तक सम्भोग करता है। मैं जानता हूँ ये दोनों बातें कितनी गलत हैं। मुझे मालूम है कि सामान्य सम्भोग की अवधि 1.5 से 3 मिनटों की होती है और एक बार वीर्योत्पात के बाद दोबारा सम्भोग करीब 8 से 10 मिनटों तक किया जा सकता है। इससे ज्यादा अवधि ना तो आनंद देती है और ना ही इसकी ज़रूरत है बल्कि इससे स्त्री-पुरुष के गुप्तांगों को क्षति हो सकती है।
पुराने ज़माने में यौन ज्ञान बहुत कम था और ज़्यादातर स्त्री-पुरुष एक दूसरे को शादी के बाद सुहाग-रात पर ही पहली बार नंगा देखा करते थे। लज्जा-वश स्त्री तो अकसर आँखें बंद ही रखती थी और अँधेरे के कारण वैसे भी कुछ ज्यादा नहीं दिखता था। पर आधुनिक ज़माने में इन्टरनेट के कारण बिरला ही कोई ऐसा लड़का या लड़की होगी जिसने नग्न स्त्री-पुरुष या फिर हर तरह की यौन क्रियाएँ ना देखी होंगी। सब जानते हैं कि सेक्स-फिल्मों में काम करने वाले मर्द खास तौर से उनके बड़े लिंग के आधार पर लिए जाते हैं। ये लोग उन 2% में होते हैं जिनके लिंग औसत से बड़े होते हैं या फिर सर्जरी द्वारा बढ़वाए होते हैं जिससे उनका व्यवसाय तो अच्छे से चलता है पर जिन्हें बाद में तकलीफ हो सकती है।
सेक्स-फिल्मों में ना केवल मर्दों के लिंग बड़े दिखाए जाते हैं … स्त्रियों के स्तन और चूतड़ भी बड़े और मनमोहक दिखाए जाते हैं। सम्भोग की अवधि भी लंबी और निरंतर दिखाई जाती है। असलियत में ऐसा नहीं होता। फिल्म की शूटिंग रोक-रोक कर की जाती है पर दिखाया ऐसे जाता है मानो सम्भोग निरंतर चल रहा है।
इन कारणों के चलते स्वाभाविक है कि शेखर मेरे आकार से मायूस सा रहता है। उसकी कल्पना में उसका लिंग और सम्भोग-काबलियत किसी पोर्न-स्टार की भांति होनी चाहिए। जहाँ एक तरफ सेक्स-फिल्में और कहानियां मनोरंजन करती हैं वहीं ये मर्दों में अपने लिंगों के प्रति मायूसी और हीन भावना भी पैदा करती हैं। अगर कोई कहता है उसका लिंग 8, 10 य 12 इंच का है तो समझ लो या तो उसे यह नहीं पता कि एक इंच कितना होता है, या लिंग नापना नहीं आता या फिर वह शेखी बखार रहा है। अगर उसका लिंग वाकई 8 इंच से बड़ा है तो वह उन 2% मर्दों में से है जो संपूर्ण यौन-आनंद से वंचित रहते हैं या फिर जिनकी पत्नी या प्रेमिका को कष्टदायक सम्भोग सहना पड़ता है। मानव-जाति के मर्दों को तो खुश होना चाहिए कि सम्पूर्ण वानर-जाति में उनका लिंग सबसे बड़ा है। बाकी जानवरों में भी शरीर के अनुपात से बहुत कम जानवरों का लिंग मानव लिंग से बड़ा होता है।
लिंग को बड़ा करना:
क्योंकि लगभग सभी मर्द अपने लिंग के आकार को लेकर मायूस रहते हैं तो सभी किसी ना किसी तरह उसको बड़ा करने की तरतीब सूझते रहते हैं। पुरुष की इस ला-इलाज अभिलाषा को पूरा करने के लिए कई ढोंगी डॉक्टर, साधू, हकीम और वैद्य बाजार में दूकान लगाये बैठे हैं। क्योंकि यह एक गुप्त और मर्दानगी का मसला होता है, इन ढोंगियों को अपने मासूम शिकार को ठगने का मौक़ा आसानी से मिल जाता है। वे जानते हैं कोई भी मर्द उनकी शिकायत नहीं कर सकेगा।
सच तो यह है कि लिंग का आकार बड़ा करने का कोई साधन या उपचार है ही नहीं। अगर होता तो कोई भी अमीर पुरुष छोटे लिंग वाला नहीं होता। आप सोचें कि क्या कोई ऐसा उपचार या साधन है जिससे आप अपनी ऊँगली या नाक या कान बड़े कर सकते हों? प्रकृति ने जो आकार दे दिया सो दे दिया। हाँ, इंसान अपने पूरे शरीर के आकार को पौष्टिक आहार और उचित व्यायाम के द्वारा बढ़ा या घटा सकता है जैसा कि अनेकों खिलाड़ी और पहलवान करते आये हैं। पर किसी एक अंग को निशाना बनाकर केवल उसके आकार को बड़ा करना संभव नहीं है। यह केवल सर्जरी द्वारा संभव है पर इसके कई दुष्परिणाम हो सकते हैं।
शेखर को मेरे से दो शिकायतें और रहती हैं। कभी कभी वह सम्भोग करना चाहता है पर मैं कड़क नहीं हो पाता हूँ। इसे स्तम्भन-दोष (erectile dysfunction) कहते हैं। यह अक्सर अस्थाई और आकस्मक घटना होती है जो कि कई कारणों से हो सकती है जैसे शारीरिक थकान, मानसिक चिंता, उत्तेजना की कमी, सम्भोग में रूचि ना होना, कोई रोग या पीड़ा इत्यादि। इसे अस्थाई स्तम्भन-दोष कहते हैं और यह लगभग सभी मर्दों को कभी न कभी होता है। यह चिंता का विषय नहीं है। ऐसी हालत में सम्भोग को कुछ देर के लिए टालना सबसे उचित उपाय है और इन कारणों को दूर करके सम्भोग का प्रयास करना चाहिए। इसमें स्त्री बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उसे अपने आदमी के पौरुष का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए बल्कि उसे स्तंभन दिलाने में कामुक स्पर्श और मुख-मैथुन द्वारा मदद करनी चाहिए।
कुछ पुरुषों में यह दोष स्थाई होता है जो कि किसी अंग, ग्रंथि या अव्यय विफलता के कारण हो सकता है। इस दोष से ग्रस्त पुरुष कभी भी अपने लिंग को स्तंभित नहीं कर पाते पर यह दोष बहुत कम मर्दों में पाया जाता है। इसके उपचार के लिए डाक्टरी सलाह की ज़रूरत होती है। कुछ हद तक यह दोष उम्र के साथ भी पनपता है जिसके लिए दवाइयाँ उपलब्ध हैं जो कि डॉक्टर की सलाह के बाद ही लेनी चाहिए।
शेखर को दूसरी शिकायत यह होती है कि कभी-कभी मैं जल्दी वीर्य-स्खलन (premature ejaculation) कर देता हूँ। अगर सम्भोग की तैयारी में मेरे योनि प्रवेश के पहले या फिर प्रवेश के तुरंत बाद (एक मिनट के अंदर) वीर्य-स्खलन हो जाता है तो इसे शीघ्र-पतन कहते हैं। इससे शेखर को ही नहीं अंजलि को भी काफी निराशा होती है, दोनों ही यौन-तृप्ति से वंचित रह जाते हैं। यह दशा भी लगभग सभी पुरुषों कभी न कभी झेलनी पड़ती है। अब इसमें गलती मेरी नहीं बल्कि शेखर के मस्तिष्क की होती है पर कसूरवार मुझे ठहराया जाता है। इसके कई कारण होते हैं जैसे :
– कुछ अरसे के बाद सम्भोग
– सम्भोग से पहले अत्याधिक उत्तेजना
– अति सुन्दर, प्रतिष्ठित या दुर्लभ लड़की
– दुर्लभ या प्रतीक्षित स्थान या आसन
– पकड़े जाने का डर
– प्रतिबंधित स्त्री
– वर्जित क्रिया … इत्यादि।
अगर शीघ्र-पतन का कारण इन में से है, जो सभी मानसिक और संयोगवश हैं, तो इसे हँस कर टाल देना ही अच्छा है। स्त्री को चाहिए कि ऐसी हालत में अपने साथी की मर्दानगी पर कटाक्ष या टिप्पणी ना करे बल्कि उसकी झेंप को कम करने में सहायता करे। फिर कुछ विराम के बाद दोबारा सम्भोग का प्रयास करें। अक्सर, शीघ्र-पतन के बाद पुनः स्तम्भन होने में ज्यादा देर नहीं लगती और सम्भोग की अवधि भी संतोषप्रद होती है। बस शीघ्र-पतन से निबटने की तरतीब स्त्री-पुरुष दोनों को आनी चाहिए।
कुछ पुरुषों को यह दोष हमेशा रहता है। वे हर बार जल्दी ही स्खलित हो जाते हैं जिससे पुरुष में असंतोष से ज्यादा ग्लानि-भाव होता है और स्त्री को तृप्ति से वंचित रहना पड़ता है। इसका कारण भी प्रायः मनोवैज्ञानिक ही होता है। पुरुष के बचपन की कोई घटना या फिर उसकी अपने प्रति गहरी हीन भावना इस दोष का कारण होते हैं। इसके लिए स्त्री के सहयोग और अनुकंपा के अलावा मनोवैज्ञानिक परामर्श सहायक सिद्ध हुए हैं।
मैं शेखर के उन अंगों में से एक हूँ जो शायद कभी भी रोग-ग्रस्त नहीं होते। बहुत कम ऐसे मौके होते हैं जब लिंग में कर्क-रोग हो जाता है पर आजकल इसका सुचारू उपचार उपलब्ध है। अगर मुझे चोट ना लगे तो मैं जिंदगी भर साथ निभाता हूँ … बस मुझे नियमित रूप से साफ़ रखा जाये, अनखते लिंग की ऊपरी खाल में मैल जमा ना होने दिया जाये और मुझे तंग कपड़ों में जकड कर नहीं रखा जाये।
अब और अपने बारे में क्या बताऊँ … मुझे स्पर्श, सम्भोग और हस्तमैथुन तो अच्छे लगते ही हैं पर मुझे लड़कियों द्वारा मुखमैथुन में बहुत मज़ा आता है और जब गुदा-मैथुन का अवसर मिल जाता है तो मेरे वारे-न्यारे हो जाते हैं। शेखर अभी 36 साल का है। मुझे अगले 30-40 साल और उसको यौन-सुख भोगने में साथ देना है। योनि की भांति मुझ में कभी रजोनिवृत्ति जैसा कुछ नहीं होता।
मैं यही चाहता हूँ कि हर स्त्री-पुरुष मेरे बारे में गलत धारणाओं से मुक्त हो, मेरे आकार का आदर करे और मेरी क्षमतानुसार मेरा उपयोग करे। मैं सिर्फ रति-प्रेम की बारिश करूँ और कोई पुरुष मेरा देह शोषण जैसे दुष्कर्मों के लिए प्रयोग ना करे।
शेखर का लिंग
आपको यह लेख कैसा लगा? मैं कोई डॉक्टर नहीं हूँ। मैंने यह लेख इस विषय पर शोध करके तथा सामान्य-ज्ञान से लिखा है। इसमें जानबूझकर कोई गलत बात या अपनी राय नहीं लिखी गई है।
अपनी आलोचना व टिप्पणी मुझे [email protected] पर अवश्य भेजें। शगन
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