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कहानी के पहले भाग में मैं और मेरा दोस्त जिम ज्वाइन करने के लिए बात करके आ गये. सुमित बोला- तू भी आ रहा है ना? मैंने कहा- साले चूतिया है क्या. मैं नहीं आ रहा. मैं क्यों आऊंगा.
वो बोला- क्यों गांडू, तू भी शुरू कर ले. यहां तो तेरी पसंद के लौड़े भी मिल जायेंगे. दरअसल सुमित मेरे बचपन का दोस्त था और उसको मैंने बताया हुआ था कि मुझे लड़के पसंद हैं. मगर हम दोनों में गहरी दोस्ती के अलावा किसी तरह का जिस्मानी रिश्ता नहीं था. वैसे भी सुमित मेरे टाइप का नहीं था. हां मगर मेरा सबसे अच्छा दोस्त जरूर था.
मैंने बाइक पर उसके पीछे बैठते हुए कहा- चल ना लंडर, मैं नहीं आने वाला इस सड़े से जिम में. एक भी ढंग का लड़का नहीं दिखा यहां पर. ट्रेनर को देख कर तो खड़ा हुआ लंड भी सो जाये. तू ही कर ले ज्वाइन.
सुमित ने बाइक स्टार्ट की और हम घर की तरफ निकल गये. उसने मुझे मेरे घर के पास छोड़ दिया. जाते हुए वो बोला- चल ले ना यार तू भी. मेरा अकेले का मन नहीं करेगा. मैं बोला- चार-पांच दिन जायेगा तो अपने आप रुटीन बन जायेगा.
वो बोला- साले तेरी गांड क्या फट रही है मेरे साथ चलने में जो इतने भाव खा रहा है? मैंने कहा- यार, क्यूं फालतू के झंझट में डाल रहा है. सुबह-सुबह कौन उठ कर जायेगा. उसने कहा- मुझे तो बड़ा लेक्चर दे रहा था.
मैंने कहा- अच्छा ठीक है. घर पर मां से बात करके देखता हूं. वो बोला- तो शाम को फाइनल बता दियो. तू साथ में जायेगा तो 100 रुपये कम हो जायेंगे दोनों के. मैंने कहा- ठीक है, बात करके बताता हूं. अब दिमाग मत चाट मेरा. निकल.
उसने झिड़कते हुए कहा- हप्प गांडू, चोद दूंगा साले ज्यादा बकवास की तो. मैंने कहा- रहण दे, इतना दम नहीं है तेरे अंदर. वो बोला- हां, हां, पता है. बहुत बड़ी रंडी है तू. साले रंडीखाना खोल ले. लौड़ों के साथ-साथ कमाई भी हो जायेगी. मैंने कहा- दल्ला तू ही बन जाइयो फिर. तेरे सारे दोस्तों को भेज दियो. सबके लौड़े चूस दूंगा.
वो बोला- मेरा ही चूस ले. मैंने मुंह बनाते हुए कहा- नॉट इंटरेस्टेड! वो बोला- ओह्ह… रुक जा तू कैटरीना कैफ! फिर हंसते हुए वो बाइक मोड़ कर चला गया.
शाम के 7 बज गये थे. मां ने कहा- जाकर आलू ले आ मार्केट से. मैंने कहा- पैसे तो दो. मां ने मेरे हाथ में 100 रुपये का नोट दे दिया. मैं अपनी निक्कर पहन कर बाजार के लिए निकल गया.
मार्केट में काफी चहल पहल थी. मैं देसी लौड़ों को ताड़ते हुए जा रहा था. एक पर नज़र गई. 6 फीट लम्बा मस्त माल था. रेहड़ी के पास खड़ा होकर जलेबी खा रहा था. उसने स्पोर्ट्स वाला शॉर्ट्स (ढीला कच्छा) डाला हुआ था. गांड गजब थी. मोटी मोटी मांसल पिंडलियां थीं. शायद नीचे से अंडरवियर भी नहीं था. लटकते हुए लंड की पोजीशन अलग से पता लग रही थी.
सोचा कि बहाने से जाकर इसके लंड को टच करने के लिए ट्राई कर ही लिया जाये. एक बार भी हाथ लग गया तो रात को मुठ मारने का जुगाड़ हो जायेगा.
मैं रेहड़ी पर गया और पतली सी लड़कियों वाली आवाज़ में रेहड़ी वाले से कहा- भैया, दस रुपये की जलेबी दे दो. बगल में खड़े देसी लंड ने मेरी तरफ देखा. मैं भी यही चाहता था कि उसका ध्यान मेरी तरफ जाये. मगर उसने फिर से नजर फेर ली. वो थोड़ा साइड में खिसक लिया.
मगर मैं भी पक्का लंडखोर था. इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं था. मैं भी उसके करीब हो लिया. धीरे-धीरे करके उसके आगे ही आ गया मैं. जब मुझे लगा कि पोजीशन परफेक्ट है तो मैंने अपने दोनों हाथों को पीछे अपनी गांड पर बांध लिया.
बहाने से लंड को छूने का मेरा यह पुराना पैंतरा था. पीछे हाथ बांधने के बाद भी उसके लंड पर हाथ नहीं लग पाया. मैंने बहाने से टेढ़ी नजर करके पता किया कि लौड़ा कितनी दूरी पर है. लगभग दो इंच की दूरी और थी.
मैंने कदम थोड़े से और पीछे सरकाये तो उसके लंड पर मेरे हाथ की उंगलियां छू गईं. आह्ह … लंड को छूते ही दिल धक-धक करने लगा. हाथ कांपने लगे. मगर लंड को पकड़ने की ललक लगातार आगे बढ़ने के लिए भी अंदर से उकसा रही थी.
थोड़ी सी और हिम्मत की. पीछे की तरफ धीरे-धीरे करके उसके लंड पर मैंने पूरी हथेली सटा दी. ज्यादा दबाव नहीं दिया क्योंकि मैं ऐसे बिहेव कर रहा था जैसे कि हाथ अन्जाने में लग रहा है. लंड मोटा और लम्बा था. जैसे जांघों के बीच में बैंगन लटका हुआ हो.
बस… अब तो बढ़ते-बढ़ते वासना की आग धधकने लगी और मैंने धीरे से उसके लौड़े पर दबाव देना शुरू कर दिया. धीरे धीरे करके उसके लंड को छेड़ने लगा. अभी कोई अन्दाजा नहीं था कि वो कैसे रिएक्ट करेगा मगर वासना चिल्ला चिल्ला कर कह रही थी कि बस पकड़ ले अब.
मैं थोड़ा और पीछे हुआ. अब स्वत: ही मेरी हथेली का दबाव उसके लौड़े पर पड़ने लगा. उसको शायद पता चल गया था कि मेरा हाथ उसके लंड को छू रहा है. उसके लंड का आकार अब बढ़ने लगा था. मुझे भी विश्वास होने लगा था कि बात बन जायेगी.
ये जलेबी का रस चूस रहा है और मैं इसके लौड़े को चूसूंगा. इसी चक्कर में मैंने उसके लंड को अपने हाथ की दो उंगलियों के बीच में हल्के से पकड़ लिया. लौड़ा लगभग 7 इंची था. मोटा था और लगातार आकार बढ़ता हुआ प्रतीत हो रहा था.
अब तो बस रुकना मुश्किल हो गया था. इतने में ही जलेबी वाले भैया ने अखबार पर जलेबी रख कर मेरी तरफ बढ़ा दी. मगर मैंने एक हाथ को अभी भी पीछे ही रखा. मैंने जलेबी एक हाथ में ली और हल्का सा पीछे हटने का बहाना करते हुए अपने पीछे खड़े हुए सेक्सी देसी माल के लंड को हाथ में पकड़ लिया.
जैसे ही मैंने लंड को हाथ में पकड़ा तो वो एकदम से पीछे हो गया. मेरी गांड फट गयी. लौंडा हट्टा कट्टा था. सोचा कि भरे बाजार में बेइज्जती न कर दे. मेरी हिम्मत भी नहीं हुई कि उसके चेहरे का रिएक्शन देख सकूं.
उसने एक तरफ होकर अपनी जलेबी सारी खत्म करके अखबार वहीं डस्टबिन में फेंक दिया. हाथ पोंछ कर टीशर्ट की जेब से पैसे निकालने लगा. बीस रूपये का नोट निकाल कर जलेबी वाले की तरफ बढ़ाते हुए उसने मेरी तरफ देखा. उसके होंठों पर जलेबी का रस लगा हुआ था. लाल रसीले होंठ थे.
रंग गोरा और चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी. उम्र 23-24 के पास थी. अभी अभी जवान हुआ था. नया-नया माल था. सोचा कि पट जायेगा. लेकिन वो पैसे देकर अपने रास्ते हो लिया. उसकी गांड को देख कर मेरे मन ने कहा कि अभी भी चान्स है. पीछा कर ले.
मैंने जलेबी वाले को पैसे काटने के लिए नोट दिया. मेरी नज़र अभी भी उसी लौंडे की तरफ लगी हुई थी कि वो कहां जा रहा है. उसने थोड़ा सा आगे जाकर एक बार ओर मेरी तरफ मुड़ कर देखा. मन में उम्मीद और बढ़ गयी.
फटाक से बाकी पैसे लेकर मैं उसके पीछे-पीछे हो लिया. वो आगे-आगे चला जा रहा था और मैं उसके पीछे-पीछे. मन ही मन भगवान से कह रहा था कि एक बार इसका चुसवा दे.
उसने दूसरी बार मेरी तरफ मुड़कर देखा. जब उसको पता लगा कि मैं उसके पीछे आ रहा हूं तो उसने अपने कदमों की स्पीड तेज कर दी. मैं भी तेजी से उसके पीछे-पीछे चलने लगा. वो अब असहज सा हो गया था. उसको शायद पता लग गया था कि मैं गांडू हूं.
पीछा करते हुए मैं काफी दूर तक निकल गया. फिर वो मेन रोड पर पहुंच गया. जल्दी से उसने रोड क्रॉस किया और फिर भीड़ में कहीं खो गया. मैंने रोड के दूसरी तरफ जाकर उसको ढूंढने की कोशिश की. लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया.
मगर अब तो लंड चूसने की आग लग चुकी थी. उसको बुझाना जरूरी था. इसलिए मैं बस स्टैंड की तरफ चला गया. वहां पर एक पुराना मूत्रालय बना हुआ था. जहां पर बस के कंडक्टर और ड्राइवरों के अलावा आम जन के लंड भी दिख जाने के पूरे पूरे चान्स होते हैं.
बस स्टैंड पर बने टॉयलेट काफी गांडू फ्रेंडली होते हैं. वहां पर अक्सर लौड़ों के दीवाने भटकते हुए मिल जाते हैं. एक तो वहां कोई किसी को जानता नहीं होता है. दूसरा फायदा यह कि कोई लंड दिखाना चाहे न चाहे लेकिन बहाने से किसी भी तरह के लंड के दीदार हो जाते हैं. चाहे लंड अकड़ू हो या शर्मीला, वहां पर गांडू अपनी मनमानी कर सकते हैं. अगर किस्मत अच्छी हो तो एक आध मस्त लौड़ा चूसने के लिए भी मिल जाता है.
भारत का कोई भी कोना क्यों न हो. अगर लंड चूसने की प्यास लगी है तो टॉयलेट में पहुंच जाओ. इसके अलावा और भी बहुत सारी जगह हैं लेकिन टॉयलेट तो शत प्रतिशत प्रमाणित जगह है.
बस स्टैंड के टॉयलेट में जाकर मैं लंड निकाल कर खड़ा हो गया. अंदर अंधेरा था इसलिए ज्यादा साफ कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था. फिर दो मिनट के बाद एक अंकल अंदर आये. मेरे बगल में ही खड़े होकर मेरे लंड की तरफ नीचे झांकने लगे. हालांकि मुझे अंकल वगैरह में इंटरेस्ट नहीं था फिर भी मैं किसी जवान लौड़े की तलाश में खड़ा रहा.
इतने में ही अंकल ने मेरे लंड को पकड़ लिया. वो मेरे लंड को पकड़ कर हिलाने लगे. लंड को तनने में कुछ ही सेकेंड लगे. लंड पूरा तन गया. वो अंकल बोले- कहीं चलें क्या? मैंने ना में गर्दन हिला दी. फिर वो जोर से मेरे लंड की मुठ मारने लगे. मुझे मजा आने लगा.
कुछ देर पहले ही एक मोटे लंड को हाथ से छूकर आया था मैं इसलिए किसी और के हाथ से अपने लंड की मुठ मरवाते हुए मजा आ रहा था. दो-तीन मिनट तक वो अंकल मेरे लंड को जोर से पकड़ कर मुठ मारते रहे और एकाएक मेरा वीर्य लंड से निकल कर सामने दीवार पर जाकर लगने लगा. झटके देते हुए मैं नीचे से ऊपर तक पूरा हिल गया.
वासना शांत होने के बाद मैंने लंड को अंदर कर लिया और बाहर आकर हाथ धो कर अपने रास्ते हो लिया.
अब सब शांत हो गया था. साथ ही एक खालीपन भी महसूस हो रहा था. वासना तो शांत हो गयी थी लेकिन उसके बाद जो ग्लानि और अधूरापन सा लगता है वो बहुत खलता था मुझे.
जिन्दगी ऐसे ही कटने वाली थी. यही सोच-सोच कर कई बार इन सब चीजों से मन उठ जाता था लेकिन जब तक ये लंड शांत रहता तब तक ही रहता था ये ठहराव. चार-पांच दिन के बाद फिर से वही वासना और कभी न खत्म होने वाली तलाश शुरू हो जाती थी.
मार्केट में जाकर मैंने सब्जी ली और सीधा घर की तरफ निकल गया. उस रात को मरे मन से खाना खाया और फिर सो गया.
अगली सुबह उठा और नहा-धोकर टीवी पर मूवी देखने लगा. तभी सुमित का फोन बज पड़ा. वो बोला- पूछा तूने आंटी से? चलेगा क्या? मैंने कहा- मैं नहीं जा रहा. उसने झल्लाकर फोन काट दिया.
कुछ देर के बाद फिर से उसका फोन आया. बोला- यार चल ले ना. क्यूं भाव खा रहा है. तेरे पैसे मैं दे दूंगा. मैंने कहा- यार बात पैसे की नहीं है. मैं करूंगा क्या जिम में? बॉडी बिल्डिंग का कंपीटीशन थोड़ी लड़ना है. वो बोला- अबे चूतिया, मुझे कंपनी देने के लिए ही चल ले. मैंने कहा- अच्छा ठीक है. शाम को बताता हूं. वो बोला- शाम को नहीं, अभी एक घंटे में जवाब दे. मैंने कहा- ठीक है, अब भड़क मत कर. मैं मूवी देख रहा हूं. फिर उसने फोन काट दिया.
शाम को पांच बजे वो मेरे घर ही आ गया. घर आकर मेरी मां से बोला- आंटी, इसको कहीं बाहर क्यों नहीं भेजती. यह घर पर पड़ा पड़ा करता क्या है. मां बोली- कहां जाने की तैयारी कर रहे हो तुम दोनों? वो बोला- आंटी, मैं जिम जा रहा हूं. इससे कह रहा हूं कि चल ले. ये कह रहा है कि मां नहीं जाने देगी.
मां ने मेरी तरफ देख कर कहा- क्यों रे? मुझसे कब पूछा तूने? और मैंने कब मना किया? अब सुमित ने मुझे फंसा दिया. सुमित बोला- आंटी, 500 रुपये की फीस है. यहां पड़ा रहेगा तो टीवी देख देख कर शरीर खराब हो जायेगा. मां मुझसे बोली- ठीक तो कह रहा है. चला जा तू भी.
सुमित ने कहा- चल उठ, कपड़े पहन और तैयार हो जा. मां ने तभी मेरे हाथ में 500 रुपये का नोट थमा दिया. फिर वो रसोई में चली गयी.
अब मेरे पास कोई चारा नहीं था. कोई बहाना नहीं था. हम दोनों जिम के लिए निकल गये.
पहला दिन था इसलिए थोड़ी एक्साइटमेंट भी थी. जिम के पास पहुंचे तो मैंने सप्लीमेंट वाले की दुकान को देखा. उसकी दुकान उस दिन बंद थी. सोचा ‘धत्त तेरी की …’ आज तो चेहरा देखने के भी लाले पड़ गये. मन मारकर मैं सुमित के साथ अंदर जिम में चला गया.
अंदर का माहौल काफी गर्म था. उस वक्त जिम में 5-6 लड़के थे. सबके जिस्मों को मैं अपनी नज़र की एक्सरे मशीन से स्कैन करने लगा. इतने में सुमित ने जिम ट्रेनर के पास काउंटर पर हम दोनों की पहले महीने की फीस जमा करवा दी.
हम अंदर चले गये. पहला दिन था इसलिए साइक्लिंग करने की सोची. थोड़ा वार्म-अप होने के बाद डम्बलों के पास गये. मैं भी सुमित के साथ डम्बल मारने लगा. मगर कुछ मज़ा नहीं आ रहा था. दस मिनट तक डम्बल मारे और फिर चेस्ट एक्सरसाइज़ के लिए गये.
वहां पर एक ठीक-ठाक सा दिखने वाला लड़का लेट कर चेस्ट के पुश-अप मार रहा था. बेंच पर उसकी दोनों टांगों के बीच में उठे उसके शार्ट्स के बीच में ताड़ने लगा मैं. उसके लौड़े को मापने की कोशिश कर रहा था. जब उसने हमें पास खड़े देखा तो अपना आखिरी सेट खत्म करके वो उठ गया.
फिर सुमित लेट गया. उसने पहले से डली हुई प्लेट्स को निकाला और एक-एक प्लेट रॉड में दोनों तरफ डाल ली. पहला दिन था इसलिए हल्की-फुल्की एक्सरसाइज़ ही करनी थी. पहले उसने चेस्ट पुश-अप किये और फिर मुझे करने के लिए कहा.
मैं उठाने लगा तो मुझसे वो वेट नहीं उठाया गया. सुमित मेरे ऊपर आ गया और एक हाथ से मुझे सपोर्ट करने लगा. एक सेट मारकर मैं उठ गया. हाथों में दर्द होने लगा था. फिर हमने थाइ की एक्सरसाइज़ की. फिर फोरआर्म की.
एक घंटा मैंने बाकी लड़कों के लौड़ों के उभारों को नापने में ही निकाल दिया. कोई भी मेरी पसंद का नहीं था. एक हफ्ते तक हमने ऐसे ही मिक्स एक्सरसाइज़ की. पहले हफ्ते तक बॉडी दर्द करती रही. मगर अब मेरा भी अच्छा टाइम पास होने लगा था वहां.
दूसरे हफ्ते में अब हार्ड ट्रेनिंग की बारी थी. सुमित ने ट्रेनर को बुला लिया. उसको गाइड करने के लिए कहा.
जिम ट्रेनर उठ कर हमारे पास आया. चेस्ट की एक्सरसाइज़ करनी थी. हमारे सामने ही ट्रेनर नीचे बेंच पर लेट गया और उसने पुश-अप करने का सही तरीका बताया. तब तक मैं उसके लौड़े के उभार को देखने लगा. उसकी बॉडी तो बहुत मस्त थी. लेकिन लंड का साइज कुछ खास मालूम नहीं पड़ रहा था.
बताकर वो चला गया. उसके बाद मैंने और सुमित ने एक घंटे तक एक्सरसाइज़ की. आखिर के दस मिनट में बैक पुलिंग वाली एक्सरसाइज़ की और फिर घर आ गये. उस दिन अच्छी नींद आई मुझे क्योंकि थकान काफी हो गयी थी.
अगली सुबह उठा तो काफी फ्रेश फील कर रहा था. अब बॉडी का दर्द भी कम हो गया. कुल मिलाकर मजा आ रहा था. वो हफ्ता भी ऐसे ही निकल गया. अब मैंने मुठ मारनी भी बंद कर दी थी. पूरा फोकस एक्सरसाइज़ पर हो गया था.
तीसरे हफ्ते में हमने बैक और बाइसेप्स की एक्सरसाइज़ की. एक दिन की बात है कि ट्रेनर एक कोने में खड़ा होकर अपने लंड पर लंगोट बांध रहा था. ना चाहते हुए भी मेरी नज़र उस पर चली गई. मैं उसको ताड़ने लगा. उस दिन पहली बार मुझे उसकी तरफ आकर्षण फील हुआ. उसकी जांघें सच में काफी सुडौल थीं.
ऊपर से उसने टीशर्ट पहना हुआ था और नीचे से अपने शार्ट्स को नीचे सरकाकर उसने घुटनों तक कर लिया था. वो लगभग नंगा ही खड़ा था. चूंकि जिम में सारे ही लड़के थे. इसलिए शर्म जैसी कोई बात वहां पर थी नहीं. इसी बात का फायदा मुझे भी मिल रहा था.
मैंने देखा कि उसके झांट काफी काले थे. मगर हरामी ने लंड के दर्शन नहीं होने दिये. फिर भी उसके लंड के अगल-बगल से उसके झांट बाहर झांक रहे थे. मेरा तो लंड खड़ा होने लगा उसको देख कर. जब वो अपने शार्ट्स ऊपर कर रहा था तो उसकी नज़र मुझ पर पड़ गयी.
एक बार तो मैंने सोचा कि नजर फेर लूं लेकिन फिर भी बेशर्मों की तरह मैं उसकी तरफ देखता रहा. उसने भी मुझे देख लिया कि मैं उसकी तरफ ध्यान से देख रहा हूं. उसने अपने शार्ट्स को ऊपर कर लिया. फिर वो डम्बल उठा कर बाइसेप्स मारने लगा.
मैं बार-बार उसको देख रहा था. मगर अब वो मेरी तरफ ध्यान नहीं दे रहा था. अपनी एक्सरसाइज़ करने में लगा हुआ था. शायद उसको पता चल गया था कि मैं गांडू हूं.
कहानी अगले भाग में जारी रहेगी. [email protected]
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