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मेरी यह कहानी सत्य तथ्यों पर आधारित है पर पूर्णतया सत्य भी नहीं है। इसमें साहित्यिक दृष्टि से और खास कर इस माध्यम और पाठकों के परिपेक्ष में जो कुछ भी उचित परिवर्तन, सुधार, संक्षिप्तीकरण विस्तृति करण बगैरह करना चाहिए वह करने के पश्चात यह कहानी पाठकों के सामने प्रस्तुत की जा रही है।
मेरी हर कहानी साधारण तयः सरल और स्त्री पुरुष के जातीय प्यार और कुछ जातीय (सेक्सुल) नवीनीकरण या साहसिकता से भरी हुई होती है। पर यह कहानी थोड़ी सी अलग है।
इसमें जातीय साहसिकता की सिमा लांघ कर मानसिक विकृति कई लोगों के दिमाग में कैसे घर कर जाती है यह दर्शाने की कोशिश की गयी है।
मेरी हर कहानी की तरह यह शायद पाठकों को यह कहानी भी लम्बी लगे तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। मैं जानता हूँ की हर कहानी की तरह यह कहानी सिर्फ चुदाई की कहानी नहीं है। अतः ज्यादातर पाठकों को यह नागवारा गुजर सकती है।
कुछ महीनों पहले की बात है। मेरे एक पाठक ने मुझे मेसेज भेजा:
श्रीमान,
मैं आपकी कहानियां पढता हूँ और आपका बड़ा प्रशंशक रहा हूँ। मैंने आपकी सारी कहानियां पढ़ी हैं और उनसे बड़ा प्रभावित हुआ हूँ। मैं अर्जुन गुजरात के एक कसबे में रहता हूँ। मेरा अपना ठेकेदारी का काम है। मुझे आपसे इस सामाजिक माध्यम द्वारा मेरे एक अत्याधिक निजी मामले के बारेमें परामर्श करना है। क्या आप मुझे अपना कुछ समय दे पाएंगे? आपका अर्जुन।
मैंने उसे जवाब दिया
प्यारे अर्जुन,
आपका मेरी कहानियां पढ़ने और सराहने के लिए बहुत धन्यवाद. मैं अपनी सिमित निजी क्षमता के अनुसार आपकी पूरी सहायता करने का प्रयास करूँगा। आप निस्संकोच मुझे आपकी समस्या अथवा उलझन का पर्याप्त विवरण मुझे भेजें, जिसे पढ़कर मैं आपको अपनी राय दे पाऊँ।
इन मेसेजों के आदान प्रदान के बाद सारे संदेशों और तथ्यों के आदान प्रदान का निचोड़ मैं अपनी शैली में इस कहानी के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ।
दृश्य -१
रश्मिभाई सिम्मी और अर्जुन के चाचा थे। अर्जुन के पिता गुजरात के एक छोटे से गाँव में रहते थे। वहाँ सातवीं कक्षा तक ही पढ़ाई होती थी। अर्जुन के चाचा नजदीक के शहर में ही किराना की दूकान चलाते थे। उन्हें दूकान से ठीकठाक कमाई हो जाती थी। चाचा चाची नेक थे। उन्हें कोई बच्चा नहीं था।
सो जब अर्जुन और उसकी बहन सिम्मी दोनों उनके घर में पढ़ाई के लिए आ कर रहने की बात चली तो चाचा चाची ने पुरजोश से उस बात का स्वागत और समर्थन किया और सिम्मी और अर्जुन चाचा चाची के पास स्कूल चालु रहते आ जाते थे और छुट्टियों में अपने घर चले जाते थे। वह दोनों पति पत्नी अर्जुन और सिम्मी को बड़ा प्यार करते थे।
सिम्मी की आयु उस समय करीब १९ साल की होगी। सिम्मी एक साधारण सी भोलीभाली गाँव की छोरी थी। दुनियादारी से अभी तक वह वाकिफ नहीं हुई थी। हालांकि वह युवावस्था में प्रवेश कर चुकी थी पर अपने भोलेपन के कारण किशोरावस्था के बालक बालिकाओं की तरह वह भी जातीय ज्ञान से अनभिज्ञ थी।
सिम्मी सीधीसादी तो थी पर थोड़ी नाक चढ़ी भी थी। बचपन से ही माँ बाप के लाड प्यार ने उसे कुछ हद तक जिद्दी कहिये या कुछ हद तक थोड़ा गुस्सैल बना दिया था। पर सिम्मी भाई से बहुत प्यार करती थी। भाई की हर बात वह ध्यान से सुनती थी और हालांकि अर्जुन उम्र में छोटा था पर उसे बड़े भाई की तरह मानती थी।
जैसे की उस अवस्था में अक्सर बालक बालिका होते हैं, वैसे ही सिम्मी भी स्त्री पुरुष के जातीय शारारिक संबंधों के विषय में अति जिज्ञासु थी। किशोरी अवस्था पार कर यौवन में प्रवेश उसके बदन पर पुर बहार में खिला हुआ दिख रहा था। इस आयु में युवतियाँ कुछ ज्यादा ही मद मस्त और चंचल दिखतीं हैं। यह उनके लिए साहजिक भी होता है।
सिम्मी की केश घने और कुदरती घुंघराले काले रंग के थे। चाचीजी उन्हें बखूबी रोज लम्बी चोटी बांधकर सजा कर रखती थीं। कभी कभी सिम्मी उसमें शौकिया मोगरा चमेली बगैरह फूलों का गजरा लगा कर उनकी मादकता बढ़ाती थी।
सिम्मी की आँखें काजल से भरी हुई कामुक चितवन से सुसज्ज बादाम की तरह मादक प्रतीत होती थीं। भौंहें नाटकीय ढंग से नचाना और देखने वाले के मन में एक अजीब सा भूचाल पैदा करना जैसे उसके लिए स्वाभाविक सा था। उसके होँठ धनुष्य की भाँती चित्रित और कुदरती लाली से सुशोभित थे। उसे कभी भी लाली लिपस्टिक बगैरह इस्तेमाल करने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। सिम्मी की मुस्कान सीधी सादी गाँव में बसी लड़कियों की तरह निर्दोष और फिर भी अति मादक और कामुक लगती थी।
उसे खुद ही शायद पता नहीं होगा की उसके उन्नत भरे हुए गोलाकार उन्माद पैदा करने वाले स्तन मंडल देख कर अच्छेअच्छों की सिट्टीपिट्टी गम हो जाती थी।
सिम्मी को कभी इसका एहसास नहीं हुआ और इस कारण सिम्मी की चाची सिम्मी के उरोज जब भी उसके ब्लाउज में से इतने उन्मत्त उभरे हुए देखती थी तो मर्दों की कलुषित नज़रों से बचाने के लिए फटाफट कोई चुन्नी इत्यादि डाल कर उन्हें ढकने की सिम्मी को हिदायत देती रहती थी।
पर जवानी जिसका नाम है उसे होश कहाँ? वह तो मस्ती में मदमस्त हाथी की तरह झूमती रहती है। सिम्मी भी अपनी मस्ती में कभी याद आया तो चुन्नी डाली नहीं तो ऐसे ही घूमती रहती थी। भले ही लोग उसके उभरे हुए अंगों को घूर घूर कर देखते रहें। कभी कभी जब वह मर्दों की कामुक नजरों को देख लेती तो कभी लज्जा से सहम जाती तो कभी मदहोशी में मंद मंद मुस्का भी देती। जब वह किसी की और मुस्का कर देख लेती तो उस बेचारे का तो हाल ही देखने वाला हो जाता था।
ऐसे ही घायल होने वालों में से एक था कालिया। जैसा उसका नाम था वैसा ही कालिया काले रंग का हट्टाकट्टा लंबा तगड़ा जवान था। वह जवान लगता था, हालांकि उसकी आयु उस समय ४३ के आसपास होगी। पर गठीला बदन और मेहनती काम के कारण वह कोई युवक से कम नहीं था। कालिया बिहार का था। स्कूल से ही कालिया बड़ा उपद्रवी था।
जवानी में कालिया ने गाँव की कई लड़कियों और औरतों को कुछ ना कुछ झाँसा दे कर अपने चंगुल में फाँसा था और खूब चोदा था। वह खुले साँड़ की तरह गाँव में घूमता था और लड़कियों और शादीशुदा औरतों को भी फाँस ने के चक्कर में रहता था। उसने अपने ही जैसे कुछ आवारा लड़कों की एक टोली बना ली थी जो गॉंव के लोगों के लिए एक सिर दर्द बनी हुई थी।
एक दिन कालिया ने गाँव के मुखिया की बेटी को गाँव के बाहर खेत में पकड़ कर फुसला कर उसके साथ चुदाई किया। वह पकड़ा गया तब उसकी खूब पिटाई हुई और उसे गाँव से निकाल दिया गया।
कालिया काला जरूर था, पर था तगड़ा और ताकतवर। कई बार हम देखते हैं की काले बड़े कामुक होते हैं। कालिया हुतूतू, फुटबॉल, कुश्ती में अव्वल होता था। उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता था। ताकत में उसका कोई जवाब नहीं था। कहते हैं की गॉंव में अगर कोई बैलगाड़ी या कार कीचड़ या रेता में फँस जाती थी तो कालिया अकेला ही उसे पीछे से अपनी ताकत से उठाकर खिसका देता था।
गाँव से तड़ीपार होने के बाद घूमते घूमते अपना घर छोड़ कर रोजी रोटी के चक्कर में कालिया गुजरात में आ पहुंचा। वह ज्यादा पढ़ा लिखा तो था नहीं, सो जूनागढ़ के पास उसे मजदूरी का काम मिल गया और उसने मजदूरी करनी शुरू की। मेहनत करते करते कुछ पैसे इकट्ठे हुए तो उसने एक पुरानी छोटी ट्रक खरीदी और डिलीवरी का काम शुरू किया।
वक्त के थपेड़ों ने उसे कुछ हद तक समझदार तो बना दिया था पर औरतों को फाँसने की उसकी पुरानी आदत उससे छूटी नहीं थी। अब उसने औरतों को फाँसने का सलीका सिख लिया था। वह ऐसी औरतों की तलाश में रहता था जो आसानी से फँसे और वह उनकी शारीरिक भूख मिटा सके और खुदके बदन की भूख भी मिटे।
अपनी छोटी ट्रक लेकर वह कंपनी से सप्लाई किया गया हुआ सामान दूकानदारों को पहुंचाता था। कई बार कालिया ने सिम्मी के चाचा की दूकान पर भी कम्पनियों से सामान लेकर पहुंचाया था। सिम्मी ने उसे पहले वहीँ देखा था। कालिया का हट्टाकट्टा बदन, उसकी माँसल बाजुएँ, उसकी ताकत के चर्चे और उसकी मर्दानगी की बातें सुनकर सिम्मी कालिया के प्रति कुछ जिज्ञासु हुई थी और कुछ हदतक प्रभावी भी। उस नाजुक उम्र में अक्सर लड़कियाँ ऐसे मर्दों से प्रभावित हो ही जातीं हैं।
सिम्मी गाँव में मेला लगता था और उसमें कबड्डी, हुतूतू और कुश्ती का दंगल होता था तो भाई अर्जुन को साथ लेकर जरूर जाती थी। अक्सर कालिया ऐसे दंगल में हिस्सा लेता था और अव्वल होता था।
सिम्मी कालिया के जितने पर भी कूद कूद कर तालियां बजाती तो वैसे वह कालिया की नजर में आ गयी। सिम्मी भी कालिया को भली भाँती जानने लगी थी। कालिया सिम्मी से काफी बड़ा था और बड़े हट्टेकट्टे बदन का सुडौल और साढ़े छे फुट लंबा था। पर गठे बदन और मेहनत के कारण युवा सा ही लगता था। हररोज कालिया व्यायाम करते हुए मीलों चलता और दौड़ता था। उसकी छाती, बाहें, सीना और पीठ पेट आदि मांसल थे। गाँव में लोग एक दूसरे से कानाफूसी करते हुए उसे गुंडा नाम कहते हुए बात करते थे।
हालांकि किसी की क्या मजाल की उसे खुले में गुंडा कहे। लोगों में आम कानाफूसी यह भी होती रहती थी की कालिया अपने गाँव में किसी आदमी का खून कर कर के पुलिस से भाग कर उस छोटे से गाँव में छिपा हुआ था और अपनी रोजी रोटी काम कर कमाता था।
सिम्मी का भाई अर्जुन भी कालिया को देखता रहता था। उसे उसके चाचा और चाची ने हिदायत दी थी की कालिया एक छटा हुआ बदमाश है। बेहतर है की अर्जुन और सिम्मी कालिया से दूर रहें। अर्जुन को यह भली भाँती पता था की कालिया उसकी बस्ती में कालिया दादा के नाम से जाना जाता था। सब लोग उससे डरते थे। अर्जुन ने यह भी अच्छी तरह महसूस किया था की कालिया उसकी बहन पर गन्दी नजर रखता था। अर्जुन हमेशा अपनी बहन को कालिया से दूर रखने की कोशिश करता रहता था। वह जानता था की कालिया एक गुंडा है और कुछ भी करने से झिझकेगा नहीं। अर्जुन भी कालिया से डरता था।
अर्जुन हालांकि सिम्मी से दो या तीन साल छोटा था पर बड़ा ही चंचल और मंजा हुआ था। अर्जुन समझता था की चूँकि वह मर्द है तो सिम्मी को सम्हालने की और उसका भला बुरा देखने की जिम्मेदारी उसकी है। वह हमेशा बहन को क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए यह बताता रहता था। अर्जुन सिम्मी को बड़ी सुलझी सयानी सी बातें करते हुए अपने तरीके से समाज में क्या चल रहा है बगैरह कहता रहता था और अपना भाई होने का फर्ज निभाता था। सिम्मी भी भाई का कहना मान लेती थी। भाई बहन में एक अच्छा खासा मेलजोल और आत्मीयता थी।
कालिया को सिम्मी भा गयी थी। जब भी वह सिम्मी के आपसपास होता तो उसकी नजर सिम्मी पर टिकी हुई रहती थी। सिम्मि का अल्लड़ बदन देख कर उसे कुछ कुछ हो जाता था। उसने कई बार सिम्मी से बात करने की कोशिश की पर सिम्मी उसके पास जाने में डरती थी। उसका गठीला बदन देख कर सिम्मी के मन में भी कई बार कुछ कुछ होता जरूर था। पर कालिया की कुछ धुंधली सी शाख के कारण कोई लड़की के माँ बाप अपनी लड़की को कालिया के पास देखना नहीं चाहते थे। लडकियां भी कालिया से दूर ही रहती थीं।
कालिया अपने मन ही मन में सिम्मी के बदन के लिए तरसता रहता था। जब से उसने पहली बार सिम्मी को देखा था तबसे उसे सिम्मी भा गयी थी। कालिया का मन सिम्मी के भरे हुए बलखाते कमसिन बदन को देख कर मचल उठता था। कालिया का लण्ड उसकी निक्कर में खड़ा हो कर उसे परेशान कर देता था।
पिछले कुछ दिनों से सिम्मी उसके सपनों में बारबार आकर उसे सताती रहती थी। उन सपनों को याद कर कालिया कई बार अपना लण्ड अपने हाथोंसे हिलाकर अपना वीर्यस्खलन कर देता था। अब उससे रहा नहीं जा रहा था। पर करता भी तो क्या?
सिम्मी का कमरा चाचा जी की घरमें दूसरी मंजिल पर था। उसके कमरे की पिछली वाली खिड़की से सारी लेबर कॉलोनी बिलकुल साफ़ दिखती थी। सिम्मी के कमरे की खिड़की के निचे ही कुछ दूर कालिया रहता था।
रोज सुबह करीब ७ बजे कलिया का नहाने का समय होता था। वह नहा धोकर करीब आठ बजे काम के लिए निकल जाता था। जब सिम्मी उठती तो एकाध दो बार उसने कालिया को नहाते हुए देखा था। वहाँ कोई बाथरूम सा तो होता नहीं था।
कालिया एक दिवार के पीछे नहाता था। सिम्मी के कमरे से नहाता हुआ वह साफ़ दिखता था। सिम्मी ने उस बात पर कभी कोई गौर किया नहीं था। सिम्मी ज्यादातर वह खिड़की बंद ही रखती थी।
ऐसे ही एक दिन जब सिम्मी ने ताज़ी हवा के लिए अपनी खिड़की खोली तो कालिये को नहाते हुए देखा। जब उसने कालिया को देखा तो वह देखती ही रह गयी। कालिया सारे कपडे निकाल कर सिर्फ छोटी सी निक्कर पहन कर नहा रहा था।
कालिया के कड़क फुले हुए सख्त स्नायु, छाती में फूली माँसपेशियाँ, सख्त तगड़े बाजू, पतली कमर और सख्त जांघें देखती ही रह गयी। जब नहाते हुए कालिया अपनी दो टांगों के बिच में लटका हुआ अपना लण्ड निक्कर में से निकाल कर साबुन से साफ़ करने लगा तो कालिये के लण्ड को देखते सिम्मी की सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी।
इससे से पहले सिम्मी ने किसी का इतना मोटा और बड़ा लण्ड नहीं देखा था। उसे ऐसा लगा जैसे वह लण्ड कोई घोड़े का था और उसको कालिया की टाँगों के बीचमें चिपका दिया गया हो।
सिम्मी ने कई बार अपने भाई का लण्ड, जब वह बिस्तर में सोया हुआ होता था तब उसकी निक्कर में से निकले हुए देखा था। भाई का लण्ड भी ठीकठाक ही था। पर कालिये के लण्ड के सामने वह कुछ नहीं था। एक बार जब सिम्मी स्कूल से वापस आ रही थी तब दो लड़कों ने पेशाब करते हुए घूम कर अपने लण्ड सिम्मी को दिखाए थे।
तब से ही सिम्मी को मर्दों का लण्ड देखने की अजीब सी जिज्ञासा हो गयी थी या यूँ कहिये की एक तरह का नशा सा हो गया था। उसके बाद सिम्मी को कम ही मर्दों के लण्ड देखने को मिले। जब कालिया का लण्ड सिम्मी ने देखा तो उस रात वह सो नहीं पायी। उसे नींद में भी कालिया का लण्ड ही दिख रहा था।
अब सिम्मी के मन में एक फितूर घर कर गया। दूसरे दिन सुबह वह थोड़ी जल्दी उठ गयी और कालिये का नहाने के लिए आने का इंतजार करने लगी। हर रोज की तरह ठीक ७ बजे कालिया नहाने के लिये आ पहुंचा। सिम्मि परदे के पीछे खड़ी हो कर कालिया को नहाते हुए देखने लगी। कुछ ही देर में कालिया ने जब अपने लण्ड को निक्कर से बाहर निकाला तो बिना सोचे समझे ही सिम्मी के मुंह से हलकी सी चीख निकल गयी।
कालिया ने नहाते हुए सिम्मी की चीख सुनी तो उसकी नजर बरबस ऊपर गयी। उसने परदे के पीछे छिपी हुई सिम्मी को जब देखा तो मुस्काता हुआ वह अपने लण्ड को और प्यार से सहलाने और हिलाने लगा और उसे ऊपर करके सिम्मी को दिखाने लगा। सिम्मी ने देखा की उसकी चोरी पकड़ी गयी थी; उसको कालिया ने देख लिया था।
कालिया ने सिम्मी को खिड़की के करीब आने के लिये इशारा किया। सिम्मी डर के मारे वहीं खड़ी रही। जब बार बार कालिया सिम्मी को खिड़की के करीब आने के लिए इशारा करने लगा तब सिम्मी ने अपना सर घुमा कर मना किया और पर्दा बंद कर भाग कर घर के अंदर चली गयी। कालिया हँसते हुए नहा कर अपने काम पर चला गया।
कालिया वैसे ही सिम्मी की जवानी पर फ़िदा था। उसका गदराया हुआ बदन देख कर उसको रातों को नींद में भी उसीके सपने आते थे। सिम्मी की मारक आँखें, उसकी पतली कमर और उसकी लटक मटक चाल, उसके कूल्हों को मटका कर चलना।
उसके विशाल कूल्हों की कलात्मक छबि, उसके भरे हुए स्तनों का उसके ब्लाउज में से मस्त उभार और उसकी शरारत भरी मुस्कान उसके दिल को छुरी की तरह काट कर रख देती थी। हालांकि कालिया और सिम्मी का सामाजिक स्तर के हिसाब से कोई तालमेल नहीं था। कालिया एक ट्रक ड्राइवर था और सिम्मी एक संपन्न दुकानदार की भतीजी।
कालिया के मन का चैन जैसे सिम्मी ने छीन लिया था। वैसे आसानी से तो सिम्मी कालिया के हाथों आने वाली नहीं थी यह कालिया भली भाँती जानता था। ना वह सिम्मी से मिल पायेगा ना ही सिम्मी उसे पास फटकने देगी।
कालिया को समझ नहीं आ रहा था की सिम्मी को वह कैसे पाए। सिम्मी के बदन को पाने का जूनून कालिया के दिमाग पर सवार हो गया था। ज्यादा कुछ सोचने की क्षमता वह खो बैठा था।
पढ़ते रहिये कहानी आगे जारी रहेगी!
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