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मेरा नाम रमेश है और मेरठ का रहने वाला हूँ. शुरू से ही जल्दी काम्मोतेजित हो जाता हूँ, परन्तु मैं खुद अपनी प्यास कभी भी किसी पे ज़ाहिर नहीं कर पाया. ऐसा भी नहीं था कि हमेशा ही ऐसा रहा. घर की चारदीवारी से बाहर जाने का मौका मिला.
जब मैं 19 साल का हुआ. बैंगलोर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला मिल गया था, अतः घर छोड़ कर अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए चल दिया.
बात सन 2004 की है, जब मेरी मुलाकात बिंदु से हुई. माफ़ी चाहूंगा बताना भूल गया कि मुझे कैसी लड़कियां पसंद हैं. मुझे सांवले या हल्के गहरे रंग की लड़कियां काफी पसंद हैं और अगर वो चश्मा लगाती हो, तो मेरे लिए खुद को संभाल पाना एक बड़ा काम है.
हम बात कर रहे थे बिंदु की, बिंदु से मेरी मुलाकात एक इतवार के दिन गुरूद्वारे में सेवा करते हुए हुई थी. एक परिचित के द्वारा बिंदु से मेरी जान पहचान हुई और मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. बात करने से पता चल रहा था कि वह भी मुझे पसंद करती है … पर पूछने की हिम्मत कभी नहीं हुई.
एक दिन जब हम लोग कॉफ़ी पीने एक रेस्तरां में बैठे हुए थे … तब उसने बातों बातों में मेरी जांघ पे हाथ रख दिया. एक छोटे शहर से होने के कारण मैं स्वाभाविक रूप से असहज हो गया और उसका हाथ अपनी जांघ पर से हटा दिया और कॉफ़ी का बिल दे करके वहां से चल दिए.
मैंने बिंदु से पूछा कि क्या मैं उसे घर छोड़ सकता हूँ. जिसका जवाब उसने हां में दिया.
हम दोनों मेरी बाइक पर बैठ गए और उसके घर के लिए चल दिए. वह मेरे पीछे दोनों टांगें आजू बाजू डाल कर बैठी हुई थी. जिससे मैं उसके वक्ष मेरी पीठ पर महसूस कर पा रहा था. मैंने उससे कहा- मुझे ठीक से पकड़ लो, अन्यथा तुम्हारे गिरने की सम्भावना हो सकती है. मानो वो इसी बात का इन्तजार कर रही थी. उसने मेरी कमर को कसके पकड़ लिया और मेरे और करीब सरक कर बैठ गयी. मैं इशारा समझ रहा था, फिर भी अनजान बनने का स्वांग करता रहा.
बस अभी शायद मेरे सपनों ने एक छलांग मारी ही थी कि पीछे से बिंदु ने मेरे भ्रम को तोड़ते हुए मुझसे कहा कि उसका पीजी आ गया है.
मैं उसको उतार कर एक सिगरेट लेने चला गया कि तभी बिंदु का फ़ोन आया. फ़ोन उठाया, तो उसके रोने की आवाज़ आयी. मैंने पूछा- क्या हुआ? तो उसने बताया कि उसका पीजी खाली है … और सभी लड़कियां या तो घूमने चली गई हैं, या फिर अपने घर गयी हुई हैं. मैं असमंजस में पड़ गया कि अब क्या करूँ. तो मैंने उसी से पूछ लिया कि ऐसे में क्या करना चाहिए? उसने कहा कि अगर तुमको कोई एतराज़ नहीं हो, तो क्या मैं आज तुम्हारे साथ तुम्हारे फ्लैट पर चल सकती हूँ. इधर अकेले में मुझे बहुत डर लगेगा.
मैं अपने रूम मेट्स को अच्छे से जानता था और यह भी पता था कि साले लड़की देखते ही बौरा जाएंगे, इसलिए पहले फ़ोन करके सबकी लोकेशन जानने की कोशिश की. फिलहाल संयोग अच्छा था और आज रात कोई वापिस रूम पर नहीं आने वाला था.
ये मौका अच्छा था, इसलिए मैंने बिंदु को फ़ोन करके बोला- तुम अपना सामान पैक कर लो, मैं आ रहा हूँ. मैं बाइक उठा कर दवा की दुकान की तरफ दौड़ पड़ा. बस 5 मिनट में एक पैकेट कंडोम ले कर वापिस उसके पीजी के नीचे आकर उसे फोन किया- आ जाओ, मैं नीचे हूँ.
अब मैं उसका इंतज़ार करने लगा. लगभग दस मिनट में देखा कि बिंदु भी अपने पीजी से नीचे उतर आयी.
उसका सांवला रंग और लखनवी चिकन का सफ़ेद सूट देख कर मेरे कलेजे को मानो ठंडक मिल गई. मुझे ऐसा लग रहा था मानो मेरे सपनों की अप्सरा साक्षात् मेरे सामने खड़ी हो. मेरा खुद को दोनों पैरों पे संभालना मुश्किल हो गया, तो मैंने बाइक का सहारा ले लिया.
वह मेरे करीब आयी और अपना बैग पकड़ा दिया. उसने मुस्कुरा कर मुझसे पूछा- मैं कैसी लग रही हूँ? तो मैंने भी ज़्यादा भाव न देते हुए बस कह दिया- हम्म … ठीक लग रही हो. मुझे पता था कि उसे इससे ज़्यादा की उम्मीद थी, परन्तु इससे ज़्यादा तारीफ शायद मेरा उतावलापन दर्शा देता, इसलिए बहुत संयमित व्यवहार कर रहा था.
लगभग 20 मिनट बाद हम दोनों मेरे फ्लैट पर पहुंच गए. मैंने उसे नहीं बताया था कि आज की रात मेरे दोस्त घर नहीं आएंगे. इसलिए उसने पूछा कि आपके दोस्तों को मेरे आने से कोई दिक्कत तो नहीं होगी?
मैंने उसे सहज किया और कहा- अभी तो कोई भी घर पर नहीं है. इसलिए तुम आराम करो. जब वक़्त आएगा, तब देखेंगे. मैंने फ्लैट का दरवाज़ा खोलने से पहले उससे अपने फ्लैट की दशा के बारे में बता दिया कि मेरा थोड़ा गन्दा होगा, तो तुम्हें मैनेज करना होगा.
उसने हामी में सिर हिलाया और हम फ्लैट के अन्दर आ गए. मैंने दरवाज़ा अन्दर से डबल लॉक कर दिया कि कहीं कोई गलती से दूसरी चाबी से खोल न ले.
फिर मैंने उससे पूछा- तुम क्या खाओगी? उसने बताया और मैंने खाने का आर्डर दे दिया. अब हम दोनों सोफे पे बैठ कर टीवी देखने लगे.
तभी वह बोली- सूट में मुझे आराम नहीं लग रहा है … मैं कपड़े बदल लूँ? मैंने ओके कह दिया.
तो वह चेंज करने चली गई. जब वह वापिस आयी तो उसने नीले रंग की हॉट सी हाफ पैन्ट और बादामी रंग की बिना आस्तीन की एक टी-शर्ट पहनी हुई थी. वो इस ड्रेस में बड़ी गजब की छमिया लग रही थी.
हम दोनों को ही मूवी देखने का शौक है, इसलिए मैंने टीवी पर एक फिल्म ‘इश्किया’ चला दी. हम दोनों फिल्म देखते हुए खाना आने का इंतज़ार करने लगे. कुछ देर में खाना आया और हमने साथ में बैठ कर खाना खाया. खाने के बाद सोफे पर ही बैठ कर हम दोनों मूवी का मज़ा ले रहे थे.
तभी अरसद वारसी और विद्या बालन का किस सीन आया. जिससे हम दोनों ही असहज हो एक दूसरे की तरफ देखने लगे. मुझे उसकी आंखों में तैरती हुई प्यास का आभास हो चुका था, इसलिए थोड़ा सा उसके पास सरक गया और उसका हाथ पकड़ लिया. शायद वह भी इसी का इंतज़ार कर रही थी और पिघली हुई आइसक्रीम की तरह मेरी बांहों में सिमटती चली गयी.
मैंने उसके गर्म होंठों पर अपने होंठ रख दिए और हमारी मोहब्बत का आगाज़ हो गया. उसके गर्म होंठ ऐसे लग रहे थे मानो जन्मों से किसी सुलगते हुए ज्वालामुखी का ऊपर बारिश हुई हो.
मैंने अपने हाथ उसकी कमर पर रखा, तो उसके मुँह से एक सिसकारी निकल गयी. जिसने मेरी चूमने की ताक़त को दुगना कर दिया और मैं उसके होंठों पर ऐसे टूट पड़ा, जैसे भूखा भेड़िया अपने शिकार पर टूटता है.
लगभग 10 मिनट तक हम दोनों एक दूसरे के होंठों के रस का स्वाद लेते रहे. फिर ऐसा लगा जैसे वो चरम पर पहुंच के स्खलित को चुकी हो और उसके होंठों की पकड़ मेरे होंठों पर थोड़ी सी कम हो गयी.
तभी मैंने उसकी टी-शर्ट को ऊपर किया, जिसके नीचे उसने ब्रा नहीं पहनी हुई थी और यहां पहली बार मेरा सामना किसी नारी के नग्न ऊपरार्ध से हुआ था.
मेरे सामने उसके दो प्यारे प्यारे मध्यम आकार के चूज़े मेरी तरफ पानी चोंच निकाले देख रहे थे और जैसे मुझसे प्रेम प्रार्थना कर रहे थे. मैंने भी उन्हें प्यार करने में देर नहीं की और एक को अपने हाथों से और दूसरे को अपने मुँह में भर लिया.
बिंदु की सिसकारियां अब और भी तेज़ हो गयी थीं और वह मुझे अपनी चूचियों को प्यार से चूसते हुए देख रही थी. उसके हाथ मेरे बालों में थे और जब वह उनको खींच रही थी, तो मुझे उसके आनन्द का अनुभव हो रहा था.
मेरा लंड मेरी जीन्स फाड़ के बाहर आने को पागल हो गया था. तभी मुझे एहसास हुआ कि शायद उसका दूसरी बार भी स्खलन हो गया, क्योंकि उसकी पकड़ मेरे बालों पर कमज़ोर पड़ रही थी.
अब मेरी बारी थी, मैंने अपनी जीन्स उतारनी शुरू कर दी. उसने मेरी टी-शर्ट ऊपर करके मेरी छाती को चूमना शुरू कर दिया. उसने मेरे निप्पलों को चूसते हुए अपने एक हाथ को मेरे अंडरवियर के अन्दर घुसा दिया, जहां छोटू उस्ताद पूरी मुस्तैदी के साथ उसका स्वागत करने के लिए तैयार खड़ा था.
शायद उसका भी पहली बार था, इसलिए उस्ताद से संपर्क में आते ही एक पल के लिए उसका हाथ ठिठका … परन्तु अगले की पल उसने उस्ताद को पूरा पकड़ लिया और अपने हाथ से ही उस्ताद की चमड़ी को ऊपर नीचे करने लगी.
मैं अपने कमोबेश अपने चरमोत्कर्ष पर था, परन्तु दोस्तों से सुना था कि अगर एक बार पुरुष स्खलित हो गया, तो दुबारा तैयार होने में बीस मिनट का वक़्त लग जाता है और मेरे पास इतना इंतज़ार करने का वक़्त नहीं था. इसलिए मैंने उसकी पैन्ट उतार दी और उसकी चड्डी भी निकाल दी.
अब वह मेरे सामने पूरी निर्वस्त्र खड़ी थी और मैं भगवान की बनायी इस क़यामत का दीदार और भगवान् का शुक्रिया अदा कर रहा था.
जैसे ही मैंने उसको नीचे लिटाया, वो मुझे धकेल कर मेरे ऊपर आ गयी और बोली- इतनी भी क्या जल्दी है, रात हमारी है. यह कह कर उसने मेरे लंड पर एक किस कर दिया. मैं तो जैसे सातवें आसमान पर जा बैठा.
तभी उसने मेरे लंड को हाथ में पकड़ा और मेरे टट्टों को चाटना शुरू कर दिया. मेरी आंखों के सामने अँधेरा छाने लगा. अपनी जीभ से मेरे लंड को पूरी तरह चाटने के बाद उसने मेरे लंड के आगे वाले हिस्से को अपने मुँह में ले कर चूसना शुरू कर दिया और घूम कर अपनी चूत को मेरे मुँह के पास ले आयी.
मैंने पहले ब्लू फिल्म्स में देखा था ऐसा होते हुए, तो मुझे पता था कि अब क्या करना है. पहले मैंने उसकी गुलाबी चूत के जी भर के दर्शन किए क्यूंकि किसी लड़की की चूत भी आज मैंने पहली बार ही देखी थी.
तभी उसने मेरा पूरा लंड अपने मुँह में ले लिया और मेरी सिसकारी निकल गयी. अब वह मेरे लंड पर काबिज थी और मैंने अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटना शुरू कर दिया. उसके छोटे छोटे चूचे मेरे पेट पर छू रहे थे और उसकी चूत की खुशबू पूरे कमरे को महका रही थी.
तभी शायद वो तीसरी बार स्खलित हो गई, मेरे लंड ने भी मेरा साथ छोड़ दिया और उसके मुँह में मेरी प्यार की निशानी बह निकली.
वह उठी और मेरे लंड पर थप्पड़ मारते हुए बोली- बस इतना ही दम था इसमें? मुझे बड़ी शर्म सी महसूस हुई, परन्तु बात सँभालते हुए बोला- इतनी भी क्या जल्दी है … रात अपनी है.
यह कहते हुए मैंने उसको अपनी बांहों में उठाया और कमरे में ले गया. इस दौरान हम फिर से किस करने लगे. बेडरूम में उसको लिटा कर मैं कंडोम लेने बाहर चला गया और जल्द ही वापिस आ गया. वह बिस्तर पर लेटी मेरा इंतज़ार कर रही थी.
मैं उसके बाजू में जा कर लेट गया और उस्ताद के वापिस मस्ती में आने का इंतज़ार करने लगा, लेकिन शायद मुझसे ज़्यादा जल्दी मेरे उस्ताद को थी, जैसे ही मैं उसके पास लेटा, उस्ताद तुरंत वापिस हरकत में आ गया.
बिंदु ने यह देख लिया और फिर से उस्ताद को हाथ में ले लिया और हम फिर से किस करने लगे. मैंने उसे नीचे लिटाया ही था कि उसने कहा- अभी नहीं, मुझे ऊपर आने दो.
वो मुझे नीचे लिटा कर मेरे ऊपर आ गयी और फिर से मेरा लंड चूसना शुरू कर दिया. थोड़ी देर बाद मेरे पेट पर किस करते हुए मेरे निप्पलों को चूसते चूसते उसने मेरा लंड अपनी चूत में डाल लिया और अपने कूल्हे हिलाने लगी. उस वक़्त मुझे एहसास हुआ कि अगर दुनिया में कहीं जन्नत है, तो यहीं है … यहीं है … यहीं है.
वह मेरे ऊपर बैठ कर चुदाई का आनन्द ले रही थी और मैं नीचे लेट कर उसका साथ उसकी चूत में धक्के मार मार के दे रहा था. उसकी सिसकारियां पूरे कमरे में गूँज रही थीं. मुझे डर इस बात का लग रहा था कि कहीं पड़ोसियों तक आवाज़ ना चली जाए.
बस तभी उसने अपने कूल्हे ज़ोर ज़ोर से हिलाये और मेरी छाती पर ढेर हो गयी और ज़ोर ज़ोर से सांस लेने लगी.
उस्ताद अभी भी उसकी चूत के अन्दर ही था. तभी मैंने उसको उठा के बिस्तर पर नीचे लिटा दिया और अपना लंड उसकी चूत के मुहाने पर रख कर एक हल्का सा झटका दिया … ताकि लंड का सिर्फ अग्रिम भाग चूत के अन्दर चला जाए. उसकी एक टांग मेरे कंधे पर थी और दूसरी बिस्तर पर.
जैसे ही लंड चूत के अन्दर घुसा, वह चिल्ला उठी और बोली- बस अब और नहीं. पर मैं तो भूखा बैठा था और खाना मेरे सामने था. मैंने कोई दया न दिखाते हुए अपने पूरा लंड उसकी चूत में ठोक दिया और उसकी तड़प देखने लगा. जब उसका दर्द थोड़ा शांत हो गया, तो मैंने अपने धक्कों को बढ़ाया और पहले थोड़ी थोड़ी देर में एक एक झटके के साथ स्पीड बढ़ाने लगा.
अब उसको भी मज़ा आने लगा और उसने अपनी दूसरी टांग मेरे दूसरे कंधे पर रख दी. मेरा लंड पूरी तरह उसकी चूत में जा चुका था और हम दोनों आनन्द के सागर में गोते लगा रहे थे.
तभी मुझे लगा कि मैं स्खलित होने वाला हूँ और मैंने अपना सारा प्यार उसकी चूत में उड़ेल दिया और निढाल हो कर उसके ऊपर गिर गया. वो प्यार से मेरे बालों को सहलाने लगी.
फिर उस रात हमने बिना रोक टोक तीन बार एक दूसरे को प्यार किया और यह सिलसिला उसकी शादी हो जाने तक चलता रहा.
कई बार एबॉर्शन की नौबत भी आयी और वह भी करवाया. उसके पिताजी की ज़िद के चलते हमारी शादी नहीं हो पायी, इस बात का मुझे आज तक मलाल है. इसलिए मैंने अपना और उसका नाम इस कहानी में बदल दिया है.
इसके बाद मेरे कई और लड़कियों औरतों, तवायफों के साथ सम्बन्ध बने, उनकी कहानियां मैं आने वाले संस्करण में बताऊंगा. अभी के लिए विदा.
कहानी का उत्तर आप मेरी ईमेल आईडी पर भेज सकते हैं. [email protected]
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