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टीचर सेक्स स्टोरी में अब तक आपने पढ़ा कि नम्रता अपने पति से फोन पर बात करते हुए उससे गांड मारने की कल्पना कर रही थी. जबकि वास्तव में उसकी गांड में मेरा लंड घुसा हुआ उसकी गांड मार रहा था. फिर शाम हुई तो हम दोनों का छत पर नंगे होकर चुदाई का सिलसिला चलने लगा.
अब आगे:
कभी नम्रता सुपाड़े में जीभ चलाती, तो कभी अंडकोष में जीभ चलाती या फिर मुँह के अन्दर लंड भर लेती. फिर इससे भी उसका मन नहीं भरा, तो वो मेरी जांघ पर जीभ चलाने लगी. फिर मेरे पीछे आकर मेरे कूल्हे को हाथों से दबाते हुए दांत से काटने लगी. उसने अपनी जीभ को मेरी गांड की दरार पर चलाना चालू कर दिया.
मेरे मुँह से शी-शी के अलावा कोई शब्द नहीं निकल रहा था. मैंने अपने हाथों को दीवारों पर टिका दिया और उसके ओरल सेक्स का मजा ले रहा था.
अब मेरी बारी थी. मैंने नम्रता को अपनी गोदी में उठाया. उसने अपने पैरों को मेरी कमर में फंसा दिया और मैंने उसके मम्मे को अपने मुँह में लेकर बारी-बारी से चूसने लगा.
उसके तने हुए निप्पल पर हौले-हौले से दांत काटने का अपना ही मजा आ रहा था और साथ ही उसकी चूत से निकलती हुई गर्माहट, जो मेरे पेट पर पड़ रही थी. मैंने नम्रता को थोड़ा और हवा में उठाया. छत की दीवार पर निकली हुई ईंटों को नम्रता ने पकड़कर अपना बैलेंस बना लिया.
इस तरह से नम्रता की चूत और गांड के छेद बहुत अच्छे से नजर आने लगे और फिर बाकी का काम मेरी जीभ ने करना शुरू कर दिया. उसकी गांड के छेद से लेकर चूत की छेद तक और फांकों के बीच मेरी जीभ आ जा रही थी.
इससे नम्रता आह.. ओह.. शीईईईईईई कर रही थी.
जब उसको बर्दाश्त नहीं हुआ, तो बोली- राजा अपना लंड मेरी चूत में डाल दो.
उसी तरह मैंने एक बार फिर नम्रता को अपनी गोद में लेकर लंड उसकी चूत में डाला और चूत की मथाई शुरू कर दी.
फिर घोड़ी पोजिशन में नम्रता खुद ही हो गयी और अपने कूल्हे को थपथपाते हुए बोली- राजा.. गांड भी तुम्हारे लंड का इंतजार कर रही है.
फिर क्या था, खलास होने से पहले तक नम्रता की गांड चूत दोनों छेदों की चुदाई करता रहा और फिर अन्त में अपना वीर्य से उसकी गांड को भर दिया.
एक बार फिर दोनों सुस्त पड़ गए. जब थोड़ी सी जिस्म में जान आयी, तो हम लोग नीचे आ गए. दोनों ने हाथ मुँह धोकर खाने खाने की तैयारी करने लगे. खाना खाने के बाद जिस्म की थकाने ने मुझे और नम्रता को सीधे बिस्तर पर धकेल दिया.
नम्रता ने दो बजे रात का अलार्म लगा दिया और मेरे से चिपक गयी.
दोनों को नींद तुरन्त ही आ गयी. दो बजे अलार्म की घंटी बजने पर मेरी नींद खुल गयी, लेकिन मैंने अपनी आंखें बन्द रखी थीं. नम्रता की भी आंखें खुल चुकी थीं. उसने अलार्म को बंद किया और मुझे जगाने का प्रयास करने लगी. लेकिन मैं जगने में आनाकानी करने लगा.
वो बड़बड़ाते हुए बोली- अच्छा बच्चू नाटक पेल रहे हो, अभी बताती हूं.
ये कहकर वो पलंग से उतर गयी और बाथरूम की तरफ जाने लगी.
मुझे लगा कि कहीं पानी लाकर मेरे ऊपर ना डाल दे, सो मैं बचने के लिए उठकर उसके पीछे जाने लगा. तब तक वो बाथरूम में घुस चुकी थी. मैं बाथरूम में पहुंचकर देखना चाहा कि कहीं वो पानी का लोटा लाकर मेरे ऊपर डालने वाली तो नहीं है. पर वो खड़े होकर पेशाब कर रही थी. पेशाब करने के बाद वो जैसे मुड़ने लगी, मैं जल्दी से बिस्तर पर आकर सीधा होकर लेट गया. मेरे लंड में हल्का सा तनाव आ चुका था.
नम्रता आयी और उसने अपनी गीली चूत को सीधा मेरे मुँह पर रख दिया. उसकी चूत से पेशाब की गंध आ रही थी. दूसरी तरफ नम्रता ने खुद मेरे सोये हुए लंड को मुँह में भर लिया.
जब नम्रता ने पाया कि अभी भी मेरा रिएक्शन ढीला है, तो वो मेरे मुँह से अपनी चूत रगड़ने लगी. हार के अन्त में मेरी जीभ बाहर आ गयी और उसकी चूत में टच हो गयी.
जीभ का चूत पर अहसास होने के साथ ही उसने अपनी मुंडी घुमायी और बोली- अच्छे-अच्छे की औकात चूत के आगे फेल हो जाती है. अब नखरे मत करो और एक राउण्ड की तैयारी करो.
बस फिर क्या था.. मैडम का आदेश सुनते ही मेरी जीभ को जो काम करना था, उसने शुरू कर दिया. नम्रता भी अपनी कमर हिला-हिला कर चूत और गांड चटवा रही थी और मजे से मेरे लंड के साथ खेल रही थी. कभी वो मुँह में लंड भर लेती तो कभी सुपाड़े पर जीभ चलाती. उसका अगर मन नहीं मानता सुपाड़े पर अंगूठा रगड़ने लगती. इतना ही नहीं सुपाड़े के कोमल भाग को भी वो अपने दांतों से कटकटाती भी थी और उंगली मेरी गांड में डालती भी जा रही थी.
मैंने भी बदले की कार्यवाही करते हुए उसकी पुत्तियां को खींचते हुए सक करना शुरू कर दिया. मैं पुत्तियां को ऐसे सक कर रहा था मानो नल्ली के मटेरियल को अन्दर से बाहर निकाल रहा हूं.
जब नम्रता ने अच्छे से मेरे लंड को चूस लिया, तो वो पलटी और चूत के अन्दर लंड लेकर धक्के मारना शुरू कर दिया. मैं उसके निप्पल और मम्मों के साथ खेलने लगा.
जब वो मुझे चोदते-चोदते थक गयी, तो मेरे बगल में अपनी टांगें फैलाकर लेट गयी. मैं उसके ऊपर चढ़ गया और उसके होंठों पर अपनी जीभ चलाने लगा. नम्रता मेरी जीभ को अपने मुँह के अन्दर भरने लगी और लंड को पकड़ कर अपनी चूत के मुहाने पर रगड़ने लगी. वो अपनी कमर उठाकर लंड को अन्दर लेने की कोशिश कर रही थी. मैंने हल्का सा अपने आप को पुश किया और मेरा लंड उसकी चूत के अन्दर था.
अब मैंने धक्के मारने शुरू कर दिए. इसी के साथ कमरे में फच्च-फच्च की आवाज सुनायी पड़ने लगी थीं. धक्के लगाने के बीच-बीच में मैं नम्रता की पोजिशन बदल देता था, कभी उसको बाएं करवट करवा कर चोदता था, तो कभी दाएं करवट करवा कर चोदता था. बीच में मैंने एक बार उसकी टांगों को हवा में उठाकर चोदा और मजा आया तो आपस में सटाकर उसको चोदने लगा. इस तरह की चुदाई से उसकी चूत थोड़ी टाईट महसूस हो रही थी.
धकापेल चुदाई के बाद इससे पहले मैं खलास होता, मैंने नम्रता को पेट के बल लेटाकर उसकी गांड मारने लगा. फिर उसके सीने पर मेरे लंड से बाहर आने को बेताब लावा को गिराने लगा, जिसको नम्रता ने अपनी चूचियों पर मलने लगी. वो अपनी उंगलियों पर लगे हुए वीर्य को चाटती जा रही थी.
फिर नम्रता ने अपनी एड़ी को कूल्हे से सटायी और टांग को थोड़ा सा फैलाकर अपनी नाभि को सहलाते हुए अपने हाथ को चूत की तरफ ले जाने लगी. मैंने उसके हाथ को पकड़ लिया और खुद अपने सिर को उसकी फैली हुई टांगों के बीच रखकर अपनी निगाहों को उसकी चूत पर टिका दिया. अपनी उंगली को चूत के मुहाने पर लगा कर उसके अन्दर से निकलते हुए सफेद गाढ़े वीर्य को देखने लगा, जो काफी धीरे-धीरे निकल रहा था. तभी उसके वीर्य की एक-दो बूंद मेरी उंगली पर आ गिरीं. मैंने अपनी इस उंगली को नम्रता को दिखाते हुए अपनी जीभ उस छिपकली के समान बाहर निकाली, जैसे वो अपने शिकार को पकड़ रही हो. फिर उस सफेद गाढ़े माल को अपनी जीभ में ले लिया.
उधर नम्रता भी अपनी उंगली मेरे सुपाड़े में घिस रही थी और फिर रस उठा कर चाट रही थी.
इस तरह से हम दोनों ने एक-दूसरे के उस अंग को अच्छे से साफ किया, जिसके बिना कोई इस संसार की कल्पना नहीं कर सकता था.
संतुष्ट होने के बाद एक बार फिर हम दोनों एक दूसरे से उस अंतिम रात में एक-दूसरे के गर्म जिस्म का अहसास करने के लिए चिपक गए.
उसने अपनी एक टांग को मेरे दोनों टांगों के बीच फंसा कर दूसरी टांग को मेरी कमर पर चढ़ा दी. मैंने भी नम्रता को कसकर अपने जिस्म से चिपका लिया.
थोड़ी देर तक तो ऐसे ही चला, फिर जैसे-जैसे एक-दूसरे की गर्माहट एक-दूसरे के जिस्म में सामने लगी, दोनों की ही पकड़ एक-दूसरे पर ढीली पड़ती गयी. फिर भी हम अलग नहीं हुए. हां अब तक जो हाथ एक-दूसरे को कस कर जकड़े हुए थे, वही हाथ अब एक-दूसरे की पीठ और चूतड़ सहला रहे थे. ऐसा करते हुए पता नहीं कब नींद आ गयी.
सुबह नम्रता के मोबाईल बजने से हमारी नींद खुली. अभी भी नम्रता मेरी बांहों में थी. बस इस समय उसकी गांड और मेरा लंड एक दूसरे से चिपक हुए थे.
‘हैलो..’ नम्रता बोली. दूसरी तरफ से आवाज आयी- तुम सो रही हो क्या..? नम्रता ने बड़े इत्मीनान से पूछा- टाईम क्या हुआ? जब पति देव ने टाईम बताया तो बोली- देर रात तक नींद नहीं आने के कारण नींद नहीं खुली. पति- चलो, कोई बात नहीं.
इस बीच नम्रता अपने आपको हिलडुल कर एडजस्ट करते हुए बातें करती जा रही थी. इसका असर यह हुआ, जो लंड अभी तक नम्रता की जांघों के बीच सोया हुआ था. उसकी गांड की मुलायमियत और उसकी चूत से निकलती हुई गर्माहट से लंड में कुछ तनाव आने लगा.
अभी भी अपने पति से बातें करते हुए वो अपने जिस्म को हिला डुला रही थी. बातें खत्म करने के बाद नम्रता ने अपनी टांग को मेरे ऊपर चढ़ाया और अपनी जांघों के बीच हाथ डालकर मेरे लंड को पकड़कर अपनी चूत में फंसाकर फिर बाहर निकाल लेती. फिर सुपाड़े पर उंगली चलाती.
दो-तीन बार उसने ऐसे ही किया.
मैंने उसकी चूची को मसलते हुए और कान काटते हुए कहा- जानेमन अगर तुम्हारी चूत में खुजली हो रही हो, तो मैं लंड को अन्दर डालकर मिटा दूँ. नम्रता- नहीं जानू, ऐसे ज्यादा मजा आ रहा है.
ये कहते हुए वैसे ही वो लंड को चूत में फंसाकर बाहर निकालती रही. मैंने उसके कान और गर्दन पर अपनी जीभ चलाना जारी रखा. उसकी चूची और निप्पल को मसलता रहा. थोड़ी देर बाद नम्रता ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी चूत पर रखकर उसको मसलने लगी.
बस फिर क्या था, चूत से हथेली ऐसी चिपकी कि जब तक उसकी चूत का माल बाहर नहीं आ गया, तब तक चूत की मसलाई होती रही.
एक हाथ उसकी चूची की सेवा कर रहा था, तो दूसरा हाथ उसकी चूत की सेवा कर रहा था. मैं उसके अनारदाने को कस कर मसलता, उसकी चूत के अन्दर उंगली डालता और अन्दर की गर्माहट का आनन्द लेता. इधर मेरी सेवा चालू थी, उधर नम्रता मेरे लंड की सेवा कर रही थी.
नम्रता की चूत की मसलाई इस कदर हुई थी कि उसके रस से पूरा हाथ सन गया था. बस इस तरफ उसकी गर्म चूत ने अपना माल निकाला, तो मेरे लंड ने भी हार मान ली और नम्रता की हथेली पर रस झटके के साथ निकल पड़ा.
अभी तक जितनी चुदाई हम लोगों के बीच हुई थी, उसमें हम दोनों एक दूसरे के अंग को चाटकर साफ करते थे, लेकिन इस बार दोनों के रस हथेली पर भरे पड़े थे. सो हम दोनों एक दूसरे को अपने हाथ दिखाकर अपनी-अपनी हथेलियों को चाटने लगे.
थोड़ी देर बाद पलंग से नम्रता उतरने लगी. मैंने उसकी कलाई पकड़कर अपनी तरफ खींचा, वो लगभग मेरे ऊपर आ गिरी. मैंने उसकी जुल्फों को हटाते हुए कहा- कहां चल दीं जानेमन?
मेरी नाक को दबाते हुए नम्रता बोली- फ्रेश होने जा रही हूं, उसके बाद तुम्हारे घर चलना है.
नम्रता ने जब मेरी नाक दबायी, तो उसके हाथों से निकलती हुई स्मैल मेरे नथुनों में समाने लगी. मैं नम्रता की हथेली सूंघने लगा.
नम्रता ने मुझे इस तरह उसकी हथेली सूंघते हुए पूछा कि ऐसा क्या है.
मैं- यार मेरे वीर्य की खुशबू बहुत मादक है. नम्रता- अच्छा..
उसने मेरे से अपना हाथ छुड़ाया और हाथ को सूंघने के बाद बोली- हां है तो मादक खुशबू तुम्हारे वीर्य की.. लाओ मैं भी अपने रस की खुशबू सूंघ लूँ.
ये कहकर उसने मेरे हाथों को एक लम्बी सांस के साथ सूंघना शुरू किया. सूंघने के बाद बोली- मेरी चूत के माल में भी गजब की खुशबू है.
मैं- हां तभी तो जब तक पूरा चाटकर साफ नहीं कर लेता, तब तक तुम्हारी चूत को छोड़ता नहीं हूं.
प्रतिउत्तर में उसने एक बार फिर मेरे नाक को दबाया और बाथरूम में घुस गयी.
बाद में मैं भी तैयार हो गया और फिर दोनों लोग मेरे घर की तरफ चल दिए. घर के पास पहुंचकर मैंने इधर-उधर नजर डाली और जल्दी से हम दोनों मेरे घर के अन्दर घुस गए. मैंने घर का एक-एक कोना नम्रता को दिखाया. उसने मेरा बेडरूम भी देखा और वहीं पसर गयी. उसने अपने सीने से साड़ी का आंचल हटा दिया. ब्लाउज के अन्दर दबे हुए कबूतर उसकी धड़कनों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे.
नम्रता के चुचे के उतार-चढ़ाव के देखते ही मेरे लंड में सुरसुराहट होने लगी. सुरसुराहट क्या, कामोत्तेजना तो तभी से शुरू हो चुकी थी, जब मैं और नम्रता मेरे घर आ रहे थे. नम्रता के जिस्म से निकलती हुई खुशबू मेरे नथुनों में बसती जा रही थी.
बस फिर क्या था, मेरे हाथों ने उसके चुचे को दबा लिए और कस-कस कर मसलने लगे. मैं ब्लाउज के ऊपर से ही उसके मम्मे को अपने मुँह में भरने की कोशिश करने लगा. मैं नम्रता के मम्मे को दबाता और मुँह में भरता जाता. नम्रता के ब्लाउज को मैंने बनियान की तरह ऊपर कर दिया, तो ब्लाउज में फंसी हुई उसकी चूचियां अपने तने हुए निप्पल के साथ बाहर आ गईं.
बस फिर क्या था, मेरी लपलपाती जीभ उन रसभरे निप्पलों में बारी-बारी चलने लगी. मेरा इस समय बस चलता तो मैं उसकी चूचियों को मुँह में भर लेता, पर मेरे मुँह का छेद इतना बड़ा नहीं था कि उसकी चूचियां उसमें समा जाएं. फिर भी जितना मैं अपने मुँह के अन्दर ले सकता था, उतना मैं ले रहा था.
नम्रता आह-आउच ही कर रही थी.
इस बीच उसकी साड़ी का पल्लू, जो अभी तक पेट पर पड़ा हुआ था. वो वहां से हट गया और उसकी गहरी नाभि मेरे सामने आ गई थी. उस गहरी नाभि के नीचे से ही नम्रता ने साड़ी बांधी थी, जो मुझे बेहद आकर्षित कर रही थी.
इसी समय नम्रता ने अपने पैरों को मोड़ा और साड़ी को सरकाते हुए कमर पर ले आयी. इससे उसके सभी मादक अंग तो खुल ही गए, बस चूत ही छिप गयी. पर नम्रता ने साड़ी को और सरका लिया. अब मेरे सामने पैंटी में कैद उसकी चूत भी नजर आ रही थी.
मेरे सामने उसके सबसे उत्तेजित तीन अंग थे, जिसको मुझे पूरी तरह से संतुष्टि देना था. मैं निप्पल पर जीभ चलाता, तो उसके मम्मे को मुँह में भर लेता. फिर नाभि में जीभ चलाता और फिर उसकी उजली जांघों में जीभ चलाते हुए पैंटी से ढंकी हुई चूत पर भी जीभ चला देता.
उधर नम्रता के हाथ भी पैंट के अन्दर छिपे हुए लंड को टटोल रहे थे. मैं उसके अंगों को प्यार करते हुए अपने कपड़े उतार लिए और 69 की पोजिशन में आ गया. अब मैंने अपना लंड उसके मुँह में लगा दिया. इधर मैं कभी उसकी चूत को पैन्टी के ऊपर से चाटता, तो कभी उंगली से पैन्टी के एक हिस्से को किनारे करके चूत को चाटता या फिर जांघों को चाटता.
नम्रता भी मेरे लंड को चूसने लगी और बीच-बीच में सुपाड़े पर जीभ चलाती जाती. उसकी चूत चाटते हुए उसके जिस्म से पैन्टी भी अलग हो चुकी थी. काफी देर तक यह चाटने का सिलसिला चलता जा रहा था.
मेरी चूत चुदाई कहानी पर आपके मेल का स्वागत है. [email protected] [email protected] कहानी जारी है.
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