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दोस्तो, मेरा नाम प्रदीप कुमार शर्मा है, मैं दिल्ली में रहता हूँ। मैं पिछले बहुत समय से अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। वैसे हो हर मर्द की इच्छा होती है कि वो ज़्यादा से ज़्यादा औरतों के साथ मज़े लूटे, इसको चोदे, उसकी मारे। मगर सभी मर्दों के सभी अरमान पूरे नहीं होते। पर कोई एक ऐसे भी होते हैं, जिनके अरमान पूरे हो जाते हैं और किसी मित्र या मित्री की मदद से। मेरे अरमान भी पूरे हुये, कैसे आइये आपको बताता हूँ, पढ़िये और मज़े लीजिये।
मैं प्रदीप एक 40 वर्षीय मर्द हूँ, कद काठी अच्छी है, देखने में अच्छा लंबा चौड़ा हूँ। हर इंसान अपनी रोज़ी रोटी के लिए कोई न कोई रोजगार करता है। मैं भी काम करता हूँ। मगर मेरा काम धार्मिक है, मैं जगराता पार्टी चलाता हूँ। मेरे दो बच्चे हैं, एक लड़का और एक लड़की, दोनों अच्छे स्कूल में पढ़ते हैं। घर में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं, चार पैसे अच्छे जोड़ कर रखें हैं मैंने। मगर मेरी पत्नी नहीं है, 7 साल पहले उसका देहांत हो गया था। उसकी मौत के बाद बेशक मेरे बहुत से मित्रों और रिशतेदारों ने सलाह दी के दूसरी शादी कर लो, मगर मैं नहीं माना। पहली बात तो यह कि पता नहीं दूसरी औरत मेरे बच्चों को प्यार करे या न करे; और दूसरी बात मेरी अच्छी शोहरत है, मुझे लगा कहीं लोग यह न सोचें कि यूं तो इतना भजन कीर्तन करता है, जगराते करता है, और अब देखो दूसरी शादी कर रहा है।
मगर मेरी पत्नी के इंतकाल के कुछ समय बाद मुझे महसूस होने लगा कि मैंने दूसरी शादी न करके बहुत बड़ी गलती कर दी है। धार्मिक कामकाज अपनी जगह है और अपनी निजी ज़िंदगी अपनी जगह। जब मैं फ्री होता तो अक्सर रातों को करवटें काट काट कर काटता। कभी कभी दिल में ख्याल आते पर कोई ऐसा था ही नहीं, जिससे मैं अपने दिल बात कह सकता। और मेरी धार्मिक इमेज के चलते अक्सर औरतें और लड़कियां मुझे भाई साहब, भइयाजी और ऐसे ही नामों से बुलाती और मुझमें सिर्फ एक भाई ही देखती, किसी को मेरे अंदर का मर्द दिखाई नहीं देता।
अब मैं नए नए लोगों के घरों में जाता, उनके प्रोग्राम करने, उनके घर में उनकी औरतों और लड़कियों से भी मिलता। बहुत सी मेरे पाँव भी छू लेती, और जब वो मेरे सामने झुकती, किसी के ब्लाउज़ में से उसके गोरे गोरे मोटे स्तन दिखते, किसी की साड़ी का ब्लाउज़ बैकलेस होता तो भरी हुई गोरी पीठ देखता। बहुत मन मचलता के इसके मम्मे ही दबा दूँ, इसकी पीठ ही सहला दूँ, इसके गोरे मुख को चूम लूँ। पर मैं अपने सब अरमान दबा लेता।
न मैं किसी पर लाईन मार सकता था, न ही बाहर किसी औरत के साथ कुछ कर सकता था, कहीं किसी को पता चल जाता तो। कभी कभी लगता कि मैं अपने ही बोझ तले दबा जा रहा हूँ, मेरे मन में उठने वाली कामुक इच्छाएँ मेरे मन में चीत्कार कर रही हैं।
फिर ऐसे ही एक दिन अपने लैपटाप पर कुछ यूं ही इधर उधर का कुछ देख रहा था तो मुझे अन्तर्वासना डॉट कॉम का लिंक मिला। मैंने लिंक खोला, उस पर बहुत से लोगों की कहानियाँ थी। मैंने वैसे ही एक कहानी देखी और उसे पढ़ने लगा, एक पढ़ी दो पढ़ी तीन पढ़ी। मैं कहानियाँ पढ़ता ही गया, इतना आनंद आया, कितनी सारी कहानियाँ मैंने पढ़ दी। अब कमरे में मैं अकेला ही था तो कहानियाँ पढ़ते पढ़ते मेरा तो लंड भी तन गया, मैं भी अपने लंड को सहलाने लगा और मुझे तब पता चला जब मेरे लंड ने माल की पिचकारी मार दी।
अब मुझे हाथ से करने की आदत तो थी नहीं, पर जब माल गिरा तो बहुत आनंद आया। बहुत दिन बाद जैसे मन को शांति सी मिली हो, एक बोझ हट गया, मैं हल्का हो गया। मगर सबसे पहले मैंने फर्श पर गिरा अपना सारा माल पोंछे से साफ किया और फिर बाथरूम में जाकर नहा कर नए कपड़े पहन कर फिर से अपनी गद्दी पर आ कर बैठ गया।
उसके बाद मैं अक्सर अन्तर्वासना डॉट कॉम पर कहानियाँ पढ़ने लगा। मगर अब एक और बात नई हुई, वो यह कि मेरा औरतों को देखने का नज़रिया भी बदल गया। अब मुझे हर खूबसूरत औरत और लड़की में मेरे सेक्स पार्टनर नज़र आती थी। मगर मैं खुद आगे बढ़ कर किसी को नहीं कह सकता था कि आइये बहन जी, आप मुझे बहुत सुंदर लगी, क्या आप मेरे साथ संभोग करेंगी।
तो अब हालत यह हुई कि जो भी लड़की मुझे पसंद आती, मैं घर आकर अन्तर्वासना पर कोई सेक्सी कहानी पढ़ता और फिर कहानी पढ़ते हुये, उस कहानी के किरदार में उस लड़की या औरत को फिट कर और खुद उसके साथ संभोग का आनंद लेता और अपना लंड हिलाता, और हिलाते हिलाते अपना माल गिरा देता।
मगर यह लंड हिलाने वाला काम मुझे कभी भी पसंद नहीं आया. जो सुख औरत की चूत में लंड पेलने से आता है, वो हाथ से हिलाने में कहाँ आता है। फिर मैंने सोचा कि क्यों कुछ ऐसा तरीका अपनाऊँ जिससे कोई औरत मेरे संपर्क में आए और जिससे मैं अपने काम की अग्नि को शांत कर सकूँ।
फिर मैं अक्सर उन औरतों पर नज़र रखने लगा जो मेरे फंक्शन्स में अक्सर या ज़्यादातर आती थी। मगर वो सामने बैठी होती थी और मैं स्टेज पर होता था, तो इस तरह तो मैं उनके साथ कोई बात नहीं कर सकता था। फिर मैंने एक और पैंतरा आज़माया। मैं अपने कार्यक्रम में स्टेज से नीचे उतर कर आता और फिर किसी बच्चे को और आम लोगों को भी माइक पकड़ा देता और उनसे भी गाने को कहता। कुछ गा देते, कुछ शर्मा देते।
ऐसे ही एक प्रोग्राम में मुझे एक महिला मिली। वो अक्सर मेरे प्रोग्राम्स में आती थी, मैं भी उसे अक्सर देखता कि वो मुझे बड़े आदर से देखती है। अब दिक्कत मेरे सामने यह थी कि अगर मैं उसे कोई प्रेम संदेश भेजने की कोशिश करता तो हो सकता है कि मुझ पर उल्टा ही पड़ जाता। इसी डर से मैंने कभी भी उसकी तरफ बहुत ध्यान नहीं दिया.
पर वो हमेशा मेरे प्रोग्राम्स में आगे बैठ कर बड़े ध्यान से मेरा भजन गान सुनती। देखने में भी अच्छी सुंदर थी, भरा हुआ बदन, गोरा रंग, सुंदर नयन नक्श। कंधे तक कटे हुये बाल। अक्सर साड़ी पहनती, तो जब भी मेरे पास आकर नमस्ते करती, मेरे पाँव छूती, तो दिल में तरंग उठती। और ऐसी एक तरंग के चलते के बार उसने जब मेरे पाँव छूये तो मैंने उसको कंधों से पकड़ कर उठाया और बड़े प्यार से अपने गले से लगा लिया। वो भी गले मिली, और जब गले मिली तो उसके स्तन मेरे सीने से लगे। “आह … नर्म स्त्री स्तन!” कितने वर्षों बाद किसी स्त्री के स्तन मेरे सीने से लगे।
दिल तो कर रहा था कि इसे छोड़ूँ ही न, ऐसे ही अपने सीने से लगाए रखूँ। मगर इस वक्त सैकड़ों लोग मुझे देख रहे थे तो मैंने उसे अपने से अलग किया, मगर प्यार से उसके दोनों गाल छू कर उसे आशीर्वाद दिया ताकि दुनिया को दिखे कि मैंने उसे अपनी बहन या बेटी की तरह प्यार किया है।
मगर एक बात थी कि उसकी आँखों में मैंने उस वक्त कुछ देखा। जो उसकी आँखों में था, वो किसी भाई या पिता को देखते वक्त औरत की आँखों में नहीं आता। दिल तो मेरा भी धड़का, दिल किया यहीं इसी माईक पर बोल दूँ कि मुझे तुमसे प्यार है। मगर मैं तो उसका नाम तक नहीं जानता था। मैंने सोचा कि प्रोग्राम के बाद अगर मिली तो इससे थोड़ी जान पहचान बढ़ाने की कोशिश करता हूँ। मगर जब प्रोग्राम खत्म हुआ तो वो चली गई और मैं उससे मिल नहीं पाया।
अगले दिन मैं फ्री था मगर वैसे ही ऑफिस में जा कर बैठ गया। साढ़े ग्यारह बजे के करीब एक फोन आया। “भैया जी नमस्ते!” उधर से एक स्त्री स्वर सुनाई दिया। “नमस्ते जी, कहिए?” मैंने भी इधर से कहा- आप कौन? “भैया जी, मैं शशि … कल आपको प्रोग्राम में मिली थी.” वो बोली।
मेरी तो बांछें खिल गई। ‘आह … मेरी जान तेरा ही तो इंतज़ार कर रहा था मैं!’ मैंने सोचा। “हैलो शशि जी, कहिए क्या सेवा कर सकता हूँ मैं आपकी?” मैंने औपचारिकता वश पूछा। “भैयाजी, मुझे भी न … गाने का बहुत शौक है, क्या आप मुझे अपने ग्रुप में शामिल कर सकते हैं?” वो बोली।
मेरी तो समझो लॉटरी लग गई। मैं सोचने लगा, अगर न भी पटी तो कुछ दिन इसका सानिध्य तो मिलेगा। यही सोच कर मैंने हाँ कर दी और अगले दिन मेरे ऑफिस में आ कर मिलने को कहा। अगले दिन वो आई, साथ में उसका पति भी था। गहरे पीले रंग की साड़ी में वो बड़ी गजब की लग रही थी मगर मुझे तो उसके आँचल में से लुका छुपी करता उसका क्लीवेज अपनी और खींच रहा था।
कुछ औपचारिकता के बाद मैंने उसका एक छोटा सा टेस्ट लिया और अगले दिन से आकार संगीत की विधिवत शिक्षा लेने को कहा।
अगले दिन वो सुबह 10 बजे आई। आज उसने काले रंग का चूड़ीदार पाजामी सूट पहना था। बड़ी गजब की लग रही थी। उसके बाद उसकी संगीत शिक्षा शुरू हुई। वो रोज़ आती मैं उसे रोज़ संगीत सिखाता। वो अच्छी शिष्या थी, तो बहुत जल्दी सीखने लगी, संगीत में उसकी रुचि भी बहुत थी।
कुछ दिन बाद मेरा एक प्रोग्राम आया, वो था मेरठ में। मैंने शशि से पूछा कि अगर वो मेरे साथ मेरठ चलना चाहे। अगले दिन आकर उसने बताया कि वो चल सकती है।
जिस दिन हम अपनी पूरी टीम के साथ रवाना हुये, उस दिन उसे मैंने अपने साथ वाली सीट पर बैठाया और सारे रास्ते बातें करते गए। हमारे लिए तो ये पिकनिक ही थी, बड़े मज़े में खाते पीते, हँसते गाते गए। उस रात मैंने हिम्मत दे कर शशि से स्टेज पर एक भजन गंवा ही दिया। वो बहुत खुश थी, स्टेज के पीछे जब वो आई, तो आकर मुझसे लिपट गई। वो बहुत ही उत्साहित थी, बहुत खुश। उस दिन मैंने उसकी पीठ को बहुत सहलाया, उसके ब्रा के सभी स्ट्रैप, और सलवार के नाड़े तक सारी पीठ को अपने दोनों हाथों से सहलाया। अब मुझे नहीं पता, उसको पता चला या नहीं, मगर मैं आनंद से भर गया। एक जवान औरत मेरे सीने से लगी थी, और मैं उसके बदन को सहला रहा था।
उसके बाद मैंने अपने प्रोग्राम किया और जब सुबह हम सब वापिस आए तो सारी रात जागे होने के कारण सभी लोग सो रहे थे, मगर मेरी आँखों से नींद गायब थी। जब मैंने देखा कि शशि सो रही है, तो मैंने उसका हाथ अपने हाथ में पकड़ा। कितना नर्म, मुलायम हाथ था। मैं सोचने लगा कि अगर इसका हाथ इतना नर्म है, मुलायम है, तो इसके मम्मे और चूतड़ कितने नर्म होंगे।
मैंने शशि के सीने की तरफ ध्यान किया, 34 साइज़ के दो गोल मम्मे धीरे धीरे ऊपर नीचे हो रहे थे। दिल तो चाह रहा था कि पकड़ कर दबा कर देखूँ। मगर नहीं। मैंने खुद पर काबू ही रखा। अगले दिन जब शशि संगीत सीखने आई तो वो बहुत खुश थी, बहुत चहक रही थी। उस दिन हमने कोई संगीत साधना नहीं की, वो सारा वक्त अपनी ही बातें करती रही और मैं किसी भक्त की तरह उसको सुनता रहा।
एक बात ज़रूर थी कि शशि अब मेरे दिल में बस गई थी, मेरा दिल बार चाह रहा था, कि मैं उस से अपने प्रेम का इज़हार कर दूँ। मगर अगर वो बुरा मान गई, तो … तो क्या होगा। मगर अब मुझसे बर्दाश्त भी नहीं हो रहा था। हर गुजरते दिन के साथ वो मेरे दिल में और गहरे उतरती जा रही थी।
फिर मैंने अपनी हिम्मत बटोरी और उसके साथ थोड़ा और खुलने लगा, बात करते करते उसको बार बार छूना, मेरी आम आदत थी, और वो भी कभी भी मेरे छूने का बुरा नहीं मानती थी। मगर अभी तक मैं सिर्फ उसका कंधा, बाजू, घुटना, ही छूआ था।
फिर एक दिन हम बैठे बातें कर रहे थे कि मैंने उसके सामने अपने दिल का दर्द रखा, अपनी पत्नी के जाने का गम, अपना एकाकीपन, अपनी नीरस ज़िंदगी। सब कुछ उस से कहा, और ये भी कह दिया कि मैं तो प्यार के लिए तरस रहा हूँ, मेरा भी दिल करता है, कोई मुझसे प्यार करे, मेरे जीवन में बहार ले कर आए।
वो मेरी बातों से बहुत विचलित हुई, बोली- प्रदीप जी, मैं आपके लिए क्या कर सकती हूँ? मैंने सोचा कि आज कह ही देता हूँ, देखता हूँ, क्या कहती है। आज या तो आर या पार! मैंने कहा- शशि, मुझे सिर्फ प्यार की प्यास है, अगर तुम मुझे थोड़ा सा प्यार दे सको तो मेरा जीवन संवर जाए।
वो चुप सी हो गई.
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कहानी का अगला भाग: काम पिपासु को मिली काम ज्वाला-2
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