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प्रिय अन्तर्वासना पाठको जनवरी 2019 प्रकाशित हिंदी सेक्स स्टोरीज में से पाठकों की पसंद की पांच बेस्ट सेक्स कहानियाँ आपके समक्ष प्रस्तुत हैं…
रवि जी ने स्पीड ब्रेकर के पहले अपनी मोटर साइकल को धीमा किया और ब्रेकर को पार करते वक्त इस तरह आगे की और झुक गए कि मेरे बूब्स उनकी पीठ से न टकरा जाये। दूसरा कोई लड़का होता तो मौका देखकर चौका लगा देता। इतनी तेज गति से स्पीड ब्रेकर को क्रॉस करता कि मैं पूरी उस पर जा गिरती और वो मेरे मस्त बड़े बड़े नर्म नाजुक बूब्स की अपनी पीठ पर रगड़ का आनन्द ले लेता। पर ये रवि जी हैं। मुझसे उम्र में काफी बड़े हैं। मैं उन्नीस की हूँ और वो अड़तीस के हैं। एकदम जेंटलमेन।
मैं उनकी दोस्त बन गई हूँ। अन्तर्वासना ने मिलाया हमको। मेरी कहानी पढ़कर उन्होंने मुझे ई-मेल किया। अपनी और अपनी पत्नी रीति की तस्वीरें भी भेजीं। मेरे कहने पर भी उन्होंने कभी चूत, लंड या चुदाई की बात नहीं की। मैं उन्हें स्वीटहार्ट कहती हूँ और वे मुझे प्यार से रानी कहकर बुलाते हैं। आप मुझे पहचान तो गये ना … मैं नन्दिनी हूँ। मेरी दो कहानियाँ कुंवारी लड़की की कहानी: थेंक यू धर्मेन्द्र जी और सच का सामना करिए राहुल जी आप पढ़ चुके हैं।
कॉलेज के गेट पर गाड़ी रुकते ही मैं कूदकर उतर गई। मैंने काले रंग की एकदम टाइट जींस और गुलाबी रंग का टॉप पहना हुआ था। टॉप स्लीवलेस था। मेरे कूदते ही मेरे दोनों बूब्स भी कूद पड़े। काफी देर तक कम्पन चलता रहा। जब मैं चलती हूँ तो लोग इस असमंजस में पड़ जाते हैं कि मुझे आगे से देखे या पीछे से। आगे माउंट एवरेस्ट की तरह नुकीले बूब्स और पीछे पामीर के पठार की तरह फैली हुई और उठी हुई गांड। दोनों नजारे धड़कनें बढ़ाने वाले!
पता है !! कोई कोई तो मेरा पीछा करते हुये कभी बहुत तेजी से आगे निकल जाता है और दूर खड़ा होकर मुझे आते हुये मेरे बूब्स को टकटकी लगाकर देखता है और फिर पीछे खड़ा रहकर मेरी गांड को घूरता है।
स्त्री के ये दो अंग ऐसे हैं जो मर्दों को दीवाना बनाते हैं। अगर ये न होते तो!?! कल्पना कीजिये!! आगे पीछे सपाट होता तो स्त्री इतनी आकर्षक नहीं होती।
कामसूत्र में वात्स्यायन ने स्त्री के कितने रूपों का मनमोहक वर्णन किया है। मुझे स्त्री का गजगामिनी रूप पसंद है। थोड़ा भरा हुआ शरीर और मस्त उभार। भगवान का शुक्रिया कि उन्होंने मुझे बनाते हुये किसी तरह की कंजूसी नहीं की। खूब गोरा रंग दिया, लाल सुर्ख होंठ दिये, सुनहरे बालों वाली प्यारी चूत दी. इतनी प्यारी है मेरी चूत कि मैं स्नान के बाद दर्पण के सामने खड़ी होकर निहारती रहती हूँ … खुद की चूत पर खुद ही मोहित होकर कहती हूँ- मेरे रचयिता!! तुम वाकई पुरस्कार के हकदार हो।
क्या आप भी!! कहाँ खो गए। आइये न कहानी पर …
पूरी कहानी यहाँ पढ़ कर मजा लीजिये …
मेरा नाम रसूल खान है और मैं 52 साल का हट्टा कट्टा पठान मर्द, मुज्जफरपुर में रहता हूँ। कद है 5 फीट 10 इंच रंग सांवला, चौड़ा सीना और भरपूर बदन का मालिक हूँ, अब दुकानदार बंदा हूँ, तो सारा दिन दुकान पर बैठ बैठ कर तोंद निकल आई है, वरना जवानी में तो मेरा जिस्म देखने लायक था।
बस जब से जवानी ने अपना असर मुझ पर दिखाना शुरू किया, तब से ही मैं एक औरतखोर मर्द बन गया। यह बात अलग है कि मुझे औरतखोर बनाने में मेरी चाची रज़िया का सबसे बड़ा हाथ है। उसने ही मेरे कुँवारे लंड के मुंह को चूत का स्वाद लगाया।
खैर उस छिनाल चाची की पोर्न कहानी मैं बाद में आपको सुनाऊँगा, मगर आज जो बात मैं आपसे कहने जा रहा हूँ, पहले आप वो बात सुनो। मेरी लेडीज़ समान की दुकान है, बीवी का साथ में बूटीक भी है, कपड़े सिलने, लिपस्टिक बिंदी, पाउडर क्रीम, गहने, ब्रा पेंटी, ये सब मेरी दुकान में बिकता है। मैं भी अपनी पत्नी के साथ ही लेडीज़ कपड़े सिलता हूँ। अब पता नहीं क्यों मगर लेडीज़ को लगता है कि जो मर्द टेलर होते हैं, वो औरतों के कपड़े बढ़िया सिलते हैं। इसलिए अक्सर वो मुझे ही नाप लेने के लिए बुलाती हैं।
चलो इसी बहाने मैं भी कभी कभार उनके नजदीक होने का, उनके खूबसूरत जिस्मों को छूने का स्वाद ले लेता हूँ। वैसे तो मैं इस बात का खास खयाल रखता हूँ कि नाप लेते वक्त मैं किसी भी औरत या लड़की को न छुऊँ, मगर कुछ तो आती ही इतनी प्यासी हैं कि अगर उनके मम्मे या गांड पर अगर हाथ न लगाओ तो साली सही से नाप भी नहीं देती।
मेरी बीवी भी ये बात जानती है, वो सब देखती है, मगर उसे पता है कि उसका खाविंद सही है तो वो कुछ नहीं बोलती, बल्कि दो चार कस्टमर तो मेरी ऐसी हैं कि सिर्फ मुझसे ही नाप दिलवाती हैं। उनको आता देख मेरी बीवी बोलेगी- लो आ गई, आपकी आशिक। मैं भी मुस्कुरा कर रह जाता हूँ। मुझे पता है कि वो जब भी अपना सूट सिलवायेंगी, या ब्लाउज़ सिलवायेंगी, तो सबसे पहले अपना दामन अपने सीने से हटा कर फिर नाप देंगी। भरे हुये गोल, गोरे, साँवले गंदमी रंग के मम्मे, और उनके कमीज़ और ब्लाउज़ के गहरे गालों से बाहर झाँकते उनके बड़े बड़े क्लीवेज। जिन्हें मेरे सामने दिखाने में वो कोई शर्म महसूस नहीं करती। बल्कि बड़े आराम से हाथ फैला कर खड़ी हो जाती हैं, जैसे कह रही हों- मास्टरजी, नाप तो ले लेना पहले दबा कर तो देखो, कितने नर्म मम्मे हैं मेरे!
अब जब सब काम ही लेडीज़ का है तो लेडीज़ और लड़कियां तो आती ही रहती हैं दुकान में। कभी किसी का नाप लो और कभी किसी को ब्रा पेंटी सुर्खी बिंदी दो। और इसी चक्कर में मेरे से बहुत सी औरतें पट भी जाती हैं। सबसे बड़ी हैरानी मुझे तब हुई थी, जब हमारी पड़ोसन की नातिन के मैंने मम्मे दबाये और वो लड़की ऐसी बेबाकी से अपने मम्मे दबवा रही थी, जैसे उसे या तो अपने अंकल से मम्मे दबवाने में मज़ा आ रहा हो, या इस बात का कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा हो कि उसके दोनों मम्मे एक अंजान आदमी ने अपने हाथ में पकड़ रखे हैं और वो दबा दबा कर सहला कर मज़े ले रहा है। खैर यह कहानी भी फिर कभी … अभी मुद्दे पर आते हैं।
एक बार मेरी दुकान पर एक मैडम आई, उसे किसी ने मेरे बारे में बताया होगा। वो आई और उसने मुझे एक पंजाबी सूट और एक ब्लाउज़ पेटीकोट सिलने के लिया दिया। हल्के गंदमी से रंग की शक्ल से साधारण सी सुंदर, ढेर सारा मेकअप और भरे हुये बदन वाली कोई 45 साल की औरत थी। उसने खुद मुझे उसका नाप लेने को कहा। मैंने जब उसके सूट का नाप ले लिया तो फिर ब्लाउज़ के नाप लेने के लिए उसने अलग से कहा।
मैंने फीता उठाया तो उसने कहा- देखो मास्टरजी, एक तो ब्लाउज़ स्लीवलेस हो, दूसरा पीछे से बैकलेस हो और सामने से कम से कम 9 इंच गहरा हो।
अब 9 इंच तो बहुत गहरा होता है। आम तौर पर 5-6 इंच के गले से भी भरी बदन की औरतों के क्लीवेज दिख जाते हैं। मैंने पूछा- मैडम 9 इंच ज़्यादा नहीं हो जाएगा? उसने अपनी साड़ी का पल्ला अपने सीने से हटाया। वैसे तो उसकी आँचल से भी उसके ब्लाउज़ के गहरे गले से झाँकते उसने मम्मे दिख रहे थे, मगर अब जब उसने अपना दामन ही हटा दिया, तो उसके ब्लाउज़ से उसके आधे मम्मे तो बाहर निकले पड़े थे गोल, भरपूर गोरे मम्मे।
एक बार तो सलवार में मेरा लौड़ा भी टनटना गया। ऐसा नहीं है कि मैंने पहले अपनी कस्टमर के मम्मे नहीं देखे थे, मगर ये तो बहुत ही बड़ा गला था। मुझे अपने मम्मे घूरते देख वो बोली- ये देख लो मास्टरजी इतना बड़ा गला चाहिए मुझे। मैंने अपनी बीवी की तरफ देखा, उसने मुस्कुरा कर अपनी भवें मटका दी कि ‘ले लो नाप!’
पूरी कहानी यहाँ पढ़ कर मजा लीजिये …
‘हवसनामा’ के अंतर्गत मैं यह तीसरी कहानी लिख रहा हूँ पारूल नाम की एक चौबीस वर्षीय महिला की, जिसके जीवन में सेक्स की कितनी अहमियत थी, यह उससे बेहतर कोई नहीं समझ सकता था और सालों साल इसके लिये तड़पने के बाद आखिर एक दिन उसने इसे हासिल भी किया तो बस एक मौके के तौर पर … आगे की कहानी खुद पारुल के अपने शब्दों में।
दोस्तो, मैं एक शादीशुदा चौबीस वर्षीय युवती हूँ और मुंबई के एक उपनगर में रहती हूँ। अपनी पहचान नहीं जाहिर करना चाहती इसलिये नाम भी सही नहीं बताऊंगी और स्थानीयता भी। बाकी पाठकों को इससे कुछ लेना देना भी नहीं होना चाहिये। जो है वह मेरी कहानी में है और वही महत्वपूर्ण है।
सेक्स … आदिमयुग से लेकर आज तक, कितनी सामान्य सी चीज रही है जनसाधारण के लिये। लगभग सबको सहज सुलभ … हम जैसे कुछ अभागों वंचितों को छोड़ कर। यह शब्द, यह सुख, यह जज्बात मेरे लिये क्या मायने रखते हैं मैं ही जानती हूँ। राह चलते फिकरों में, गालियों में इससे जुड़े लंड, बुर, लौड़ा, चूत, चुदाई जैसे शब्द कानों में जब तब पड़ते रहे हैं और जब भी पड़ते हैं, मन हमेशा भटका है। हमेशा उलझा है अहसास की कंटीली झाड़ियों में।
एक मृगतृष्णा सी तड़पा कर रह गयी है। न चाहते हुए भी एक अदद लिंग को तरसती अपनी योनि की तरफ ध्यान बरबस ही चला जाता है जो क्षण भर के संसर्ग की कल्पना भर में गीली होकर रह जाती है और फिर शायद अपने नसीब पर सब्र कर लेती है। कितने किस्मत वाले हैं वह लोग जिन्हें यह विपरीतलिंगी संसर्ग हासिल है. हमेशा एक चाह भरी खामोश ‘आह’ होंठों तक आ कर दम तोड़ गयी है।
जब अपने घर में थी तब कोई तड़प न थी, कोई भूख न थी, कोई तृष्णा न थी. बस संघर्ष था जीवन को संवारने का, इच्छा थी कुछ उन लक्ष्यों को हासिल करने की जो निर्धारित कर रखे थे अपने घर के हालात को देखते हुए।
मैं एक टिपिकल महाराष्ट्रियन परिवार से ताल्लुक रखती हूँ। दिखने में भले बहुत आकर्षक न होऊं लेकिन ठीकठाक हूँ, रंगत गेंहुआ है और फिगर भी ठीक ठाक ही है. परिवार में पिता निगम में निचले स्तर का कर्मचारी था और एक नंबर का दारूबाज था और मां इधर उधर कुछ न कुछ काम करती थी। म्हाडा के एक सड़ल्ले से फ्लैट में हम छः जन का परिवार रहता था। एक आवारा भाई सहित हम तीन बहनें. एक निम्नतर स्तर के जीवन को जीते हुए इसके सिवा हमारे क्या लक्ष्य हो सकते थे कि हम पढ़ लिख कर किसी लायक हो जाये और इसके लिये कम संघर्ष नहीं था।
हमें खुद ट्यूशन पढ़ाना पढ़ता था कि कुछ अतिरिक्त आय हो सके क्योंकि पढ़ाई के लिये भी पैसा चाहिये था। बहरहाल ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई जैसे तैसे हो पाई कि बड़ी होने के नाते बाईस साल की उम्र में हमें एक खूंटे से बांध दिया गया। वह तो हमें बाद में समझ आया कि बिना दान दहेज इतनी आसानी से हमारी शादी हो कैसे गयी।
पति एक नंबर का आवारा, कामचोर और शराबी था. भले अपने घर का अकेला था लेकिन जब किसी लायक ही नहीं था तो लड़की देता कौन? हम तो बोझ थे तो एक जगह से उतार कर दूसरी जगह फेंक दिये गये। ससुर रिटायर्ड कर्मचारी थे और अब पार्ट टाईम कहीं मुनीमी करते थे तो घर की गुजर हो रही थी। लड़का इधर उधर नौकरी पे लगता लेकिन चार दिन में या खुद छोड़ देता या आदतों की वजह से भगा दिया जाता। घरवालों ने सोचा था कि शादी हो जायेगी तो सुधर जायेगा लेकिन ऐसा कुछ होता हमें तो दिखा नहीं।
फिर भी अपना नसीब मान के हम स्वीकार कर लिये और तब असली समस्या आई। पत्नी का मतलब चौका बर्तन साफ सफाई और साज श्रृंगार ही तो नहीं होता। रात में पति का प्यार भी चाहिये होता है, मर्दाना संसर्ग भी चाहिये होता है और वह तो इस मरहले पर एकदम नकारा साबित हुआ। बाजारू औरतों और नशेबाजी के चक्कर में वह बेकार हो चुका था, उसका ठीक से ‘खड़ा’ भी नहीं होता था और जो थोड़ा बहुत होता भी था तो दो चार धक्कों में ही झड़ जाता था।
शादी के बाद पहली बार जिस्म की भूख समझ में आई. मैंने उसे प्यार से संभालने और कराने की कोशिश की लेकिन बिना नशे के भी वह नकारा साबित हुआ। उस पर तो वियाग्रा टाईप कोई दवा भी कारगर साबित नहीं होती थी और मैं इसका इलाज करने को बोलती तो मुझे मारने दौड़ता कि किसी को पता चल गया तो उसकी क्या इज्जत रह जायेगी।
पूरी कहानी यहाँ पढ़ कर मजा लीजिये …
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चुदाई की सच्ची कहानियों में गहरी रुचि रखने वाले मेरे प्रिय पाठको, आइए मैं आपको अपनी स्वीट वाइफ नीना की चुदाई की एक ऐसी घटना बताता हूं जिसके बाद वह मेरी धर्मपत्नी से अधर्मपत्नी बन गई. इसके बाद तो उसकी सेक्स लाइफ में हमेशा-हमेशा के लिए बंसती बयार बहने लगी.
सचमुच उस दिन का मौसम बड़ा ही नशीला था. वास्तव में बीती रात से ही नीना की चूत में बहुत हलचल हो रही थी. अगले दिन दोपहर में मुझे एक हफ्ते के लिए शहर से बाहर जाना था. ऐसे में मैं पूरे हफ्ते भर का कोटा पूरा कर लेने के मूड में था. उधर आखिर नीना भी मुझसे कम नहीं थी.
बहरहाल इधर बच्चे गहरी नींद में सोए और हम दोनों चुदाई में जुट गए. दो राउंड चुदाई के बाद हम दोनों के मन को थोड़ी राहत मिली. इस बीच हम दोनों ने किचन में जाकर जाकर नंगे ही रेडीमेड फूड के साथ चाय बनाई और पेट भर लिया. मगर हम दोनों को अभी भी अपने सेक्स की भूख मिटानी बाकी थी.
उन दिनों हमारे किचन की खिड़की से आंगन का वह भाग दिखता था, जहां से होकर किराएदार प्रशांत का परिवार टॉयलेट के लिए जाया करता थे. इधर किचन में काम करते हुए रह-रहकर मैं नीना की चूचियां भी दबा रहा था, तो कभी निप्पल रगड़ देता, जिससे वह मस्ती में आकर सिसकारी भर उठती. तभी मुझे प्रशांत टॉयलेट की ओर जाता हुआ दिखा.
शायद उसे हमारी चुदाई की मस्ती का एहसास हो चुका था. तभी तो वह ठिठक-ठिठक कर चल रहा था. इधर नीना भी कुछ ज्यादा ही ऊंची आवाज में सिसकारी मारने लगी. शायद उस दिन वह प्रशांत को सुना रही थी, अपनी नीना रानी का असली राज खुलने के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ.
थोड़ी देर बाद ही प्रशांत की बीवी माधुरी आंगन में आकर तार से अपने घर के कपड़े समेटने लगी. मगर कद छोटा होने से उसे उछलना पड़ रहा था. इस उछलकूद में माधुरी से ज्यादा उसकी चूचियां ही उछल रही थीं. यह सीन देखकर मेरा लंड बुरी तरह फनफना उठा.
ऐसे में भला मेरी बीवी नीना कहां शांत बैठने वाली थी. सारा काम छोड़कर उसने मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया और …
मेरे प्रिय मित्रो, मैं आपकी सहेली रूपा! मेरी पिछली कहानियाँ पढ़ कर आपको मेरी कामुकता था भली भांति अंदाज़ा तो हो गया होगा। आपको पता चल ही गया होगा कि मैं कितनी चुदक्कड़ औरत हूँ। मगर आज आपको मैं उस वक्त की बात बताती हूँ, जब मैं बहुत सीधी और डरपोक किस्म की थी।
दरअसल यह जो फुद्दी लगाई है न भगवान ने औरतों की दोनों टाँगों के बीच में … सच में दुनिया की सबसे घटिया चीज़ है। यह फुद्दी औरत को इतना मजबूर कर देती है कि अगर औरत इसके आगे थोड़ी से भी ढीली पड़ी, तो ये उसकी सलवार में नाड़े की जगह इलास्टिक डलवा देती है।
शादी के बाद तक, मेरे बेटे के पैदा होने के बाद तक मैंने हमेशा इसे अपने काबू में रखा। मगर एक बार जो इसने मुझे काबू किया तो मैं बस इसकी ही गुलाम हो कर रह गई। अब मैं जो चाहती हूँ, वो ये नहीं करती, बल्कि जो मेरी कमीनी फुद्दी कहती है, मैं वो करती हूँ। जैसे ही मुझे कोई शानदार मर्द दिखता है, चाहे उसकी उम्र 20 साल की हो या 60 साल की, इसके मुंह में पानी आ जाता है।
पहले मुझे गंदे शब्दों से बड़ा परहेज था, मैं अपने पति को भी गाली निकालने से मना करती थी. मगर आज हालात ये हैं कि आप भी अगर मुझे, कुतिया, छिनाल, रंडी, गश्ती, चुदक्कड़ या कुछ भी कहो, मुझे बुरा नहीं लगता, अच्छा लगता है। शादी ब्याह या किसी पार्टी में कोई मर्द मौके का फायदा उठा कर मेरी गांड को सहला जाता है तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है। मगर मैं हमेशा से ऐसी नहीं थी। यह जो कहानी मैं आज आपको बताने जा रही हूँ, यह मेरे छिनाल बनने से पहले की है।
बात यूं हुई कि मेरे भाई का मेरठ से थोड़ी दूर हमारे पैतृक गाँव में ही सीमेंट और लोहे का बिज़नस है। काफी अच्छा बिज़नस है, शहर से बाहर होने की वजह से जगह भी सस्ती मिल गई और चुंगी से भी बचत हो गई।
एक बार गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने गाँव गई हुई थी, मेरा छोटा सा बेटा भी मेरे साथ ही था। कुछ दिन रहने के बाद मैंने माँ बाबूजी से वापिस जाने को कहा। फिर अपने भाई से भी कहा कि अब मुझे वापिस जाना है तो मुझे बस बैठा आए। मगर वो बोला- अरे दीदी तुमको मेरठ ही तो जाना है, मेरे दोस्त हैं परविंदर भाः जी, वो आज आये हुये हैं, मेरा बहुत अच्छा और भरोसेमंद दोस्त है, वो तुम्हें मेरठ छोड़ आएगा।
मुझे पहले तो बड़ा अजीब सा लगा कि क्या मैं ट्रक में जाऊँगी। मगर भाई ने अपने के ट्रक वाले दोस्त से बात की और वो मुझे घर तक छोड़ने को तैयार हो गया।
जब जाना था तो मैं अपने मायके घर से अपने भाई की दुकान पर आ गई। वहाँ पर एक कोई 50-52 साल के एक सरदारजी बैठे थे। लंबा चौड़ा शरीर। सांवला सा रंग, चेहरे पर भरी दाढ़ी मूंछ, कुर्ता और लुंगी पहने, सर पर पगड़ी बांधे, वो मुझे देखने से बड़ा भयावह सा लगा। मगर मेरा भाई बोला- ये अपने परविंदर भाई साहब हैं, मेरठ ही जा रहे हैं, तुम्हें घर के पास छोड़ देंगे। मैं क्या कहती। भाई ने भेज दिया।
साथ में एक क्लीनर भी था, सुकड़ा सा था। वो मुझे अपने ट्रक तक ले गया और पहले मुझे ट्रक में चढ़ाया, फिर मेरे बेटे को और फिर खुद भी खिड़की के पास बैठ गया।
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