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दोस्तो, बहुत समय से मैं व्यस्त चल रहा था. इसी वज़ह से कुछ नहीं लिख सका. मेरे साथ वाकये तो बहुत हुए, बस आप सभी से साझा करने का समय ही नहीं मिल सका. मेरी पिछली कहानियां तो शायद आप लोग भूल भी गए होगे. मेरी पिछली कहानी थी चूची चूस चूस कर दोस्त की गर्लफ्रेंड को चोदा
यह नयी कहानी करीब तीन साल पहले की बात है, मैं काम के सिलसिले में हैदराबाद गया था. वहां एक रात अचानक मेरी तबीयत खराब हो गयी. मैंने होटल के रिसेप्शन पर फोन किया और पूछा कि अगर आस पास कोई क्लिनिक हो तो बताइए. उन्होंने बोला कि पास में तो नहीं है, कुछ 4-5 किलोमीटर पर एक क्लिनिक है लेकिन अभी उधर के लिए कोई साधन नहीं मिल सकता है. यह सुनने के बाद मैं मजबूर होकर सोने की कोशिश करने लगा लेकिन नींद नहीं आ रही थी.
मैंने सोचा कि चलो जा कर देखते है शायद कोई दवाई की दुकान खुली मिल जाए तो उसी से पूछ कर कोई दवा ले लूँगा.
इसके बाद मैं दुकान खोजने बाहर निकला पर काफी देर बाद भी जब कोई दुकान खुली नहीं मिली, तो थकान के कारण मैं एक जगह पर बैठ गया. अभी मुझे बैठे हुए दो मिनट ही हुए थे कि वहां एक स्कूटर आ कर रुका. मैंने देखा कि वो स्कूटर सवार एक महिला थी. उसने मुझसे पूछा कि इतनी रात में यहां क्या कर रहे हो? मैंने उसे बताया कि मुझे दवाई चाहिये, पर कोई दुकान नहीं खुली हुई है. उसने मुझे घूरते हुए पूछा- क्या हुआ? तो मैंने बताया कि बुखार है. वो बोली कि तुम कहां रहते हो? मैंने बताया कि पास में एक होटल (नाम बताया) में रह रहा हूँ. वो बोली- मेरा घर पास में ही है, आप होटल में जाओ, मैं दवाई लेकर आती हूँ.
मैं जाकर होटल के रिसेप्शन पर उसके आने का इन्तज़ार करने लगा. कुछ दसेक मिनट में वो वहां आ गयी. मैंने उससे दवाई ले कर तुरन्त खा ली. उसने मुझे और एक गोली दी और कहा कि सुबह नाश्ते के बाद खा लेना. मैं उसे धन्यवाद बोल कर सोने चला गया.
सुबह जब उठा तो काफ़ी ठीक लग रहा था. मैं नीचे नाश्ता करने गया. तो नीचे जा कर मैंने देखा कि रिसेप्शन पर वही रात वाली लड़की खड़ी है, मैं वहां गया और उससे पूछा कि मुझे रात में एक महिला दवा दे कर गयी थी, आपको पता है कि वो कौन थी और कहां रहती है.
उसने बताया कि उसकी दवाइयों की दुकान है, पर वो दुकान बहुत दूर है. मैं बोला- मैंने तो उसे ठीक से धन्यवाद भी नहीं किया था. क्या तुम मुझे उसका फोन नम्बर दे सकती हो.
इससे पहले कि वो कुछ बोलती, एक आवाज़ आयी- फोन नम्बर का क्या करोगे? मैंने देखा कि वही महिला मेरे पीछे खड़ी है. मैंने उससे माफी माँगी और रात की दवाई के लिए उसे धन्यवाद कहा.
मैंने पूछा कि दवाई के कितने पैसे हुए? वो बोली- अब तबियत कैसी है? मैंने कहा- बहुत अच्छी है. वो मुस्कुरा कर बोली- तो ठीक है, आज रात को मुझे डिनर करवा देना. मैंने कहा- जरूर … आप जहां बोलो.
वो हंसी और चली गयी, उसने न समय बोला. न जगह बताई.
खैर … मैं अपने काम पर चला गया. दोपहर को मुझे एक अनजान नम्बर से फोन आया. वो कोई महिला बोल रही थी. उसने मेरा हाल पूछा, फिर बोली- कभी मिलो. मैं चौंक गया कि कौन है. मैं चुप हो गया तो वो हंसने लगी और बोली- अरे तुम तो डर गए? मैं वही दवाई वाली बोल रही हूँ. मैं बोला- ओह … आपको मेरा नम्बर कहां से मिला? वो बोली- यदि चाहो … तो सब मिल जाता है.
मैंने कहा- बढ़िया … फिर बताओ कब और कहां मिल रही हो? वो बोली- अरे वाह … तुम तो सीधे मिलने पर आ गए? उसने मुझसे तुम कह कर बात की तो मैंने भी कहा- तुमने ही तो बोला है कि चाहो तो सब मिल जाता है. बस मैंने थोड़ा शब्द आगे पीछे कर दिए. वो हंसी और बोली- तुम आदमी दिलचस्प हो! चलो शाम को 6 बजे, जहां तुम कल रात मिले थे, वहीं मिलते हैं.
फिर हम दोनों ने बाय बाय कर के फोन काट दिया.
शाम को 6 बजे जब मैं उस जगह पर पहुंचा, वो वहां पर पहले से ही खड़ी थी. मुझे देखते ही वो मुस्करायी और बोली- चलें? मैंने कहा- जी बिल्कुल … बन्दा आपकी सेवा में हाज़िर है. उसने कहा- तुम चलाओगे ये? या मैं चलाऊं? मैं कुछ नहीं बोला, बस चाबी ली और स्कूटर चालू कर दिया. वो भी मेरे पीछे बैठ गयी और मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे कस कर पकड़ लिया.
मैं बोला- रास्ता बताओ. फिर वो बताती गयी और मैं चलाता गया. पांच मिनट में उसने मुझे एक घर के सामने रुकने को कहा. वो एक मंजिला बड़ा सा घर था, मतलब अकेला घर, उसके चारों तरफ दीवार थीं. उसने उतर कर गेट खोला और मैं स्कूटर लेकर गेट के अन्दर चला गया. उसने गेट बन्द किया और पीछे हो गयी. आगे जाकर मैंने स्कूटर खड़ा किया और उसने घर का दरवाज़ा खोला. वो अन्दर घुसी, तो मैं उसके पीछे पीछे घर के अन्दर चला गया.
घर बहुत ही तरीके से सजाया हुआ था. उसने मुझे सोफे पर बैठने को कहा और वो अन्दर चली गयी. मैं उसके घर को घूम कर देख ही रहा था कि वो पानी ले कर आयी. पानी लेते हुए मैंने उससे पूछा- घर के बाकी लोग कहां हैं? वो बोली- मैं अकेली रहती हूँ. मेरे पति का दवाई का काम है. वो अलग अलग शहर में दवाईयां देने जाते हैं और 15 दिन में 2-3 दिन के लिए ही घर पर आते हैं. अभी दो दिन पहले ही वो चेन्नई गए हैं.
कुछ देर बातें करने के बाद वो बोली- क्या खिलाओगे? मैं हंसा और बोला- जो तुम बोलो? वो बोली- मुझे कुछ अलग खाना खाना है. तो मैं बोला- चलो मैं बना कर खिलाता हूँ. वो बोली- तुम खाना बनाना जानते हो? मैंने कहा- खा कर बताना.
फिर हमने मिल कर खाना बनाया. सब्जी एवं दाल मैंने बनायी और उसने चावल बनाये. हमारा रोटी का कोई इरादा नहीं था. वो बोली- क्या पियोगे? मैं बोला- दूध. वो बोली- उसके पहले? मैं बोला- मैं व्हिस्की पीता हूँ.
तो वो एकदम खुश हो कर मेरे से लिपट गयी और बोली- वाह, आज तो मज़े आ गए … मैं भी व्हिस्की ही पसन्द करती हूँ. मैंने कहा- चलो लेकर आते हैं. तो वो बोली- चलो! और मेरा हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में जाने लगी. मैंने कहा- अन्दर किधर जा रही हो? वो बोली- आओ तो सही.
वो मुझे दूसरे कमरे में एक अलमारी के सामने ले जा कर बोली- इसे खोलो. जब मैंने अलमारी खोली, तो देखा उसमें अलग अलग तरह की बोतलें रखी थीं. मैंने कहा- लगता है कि तुम्हारे पति को काफ़ी शौक है. वो बोली- नहीं, वो केवल बियर पीते हैं, ये सब मेरे लिए है. केवल जब मैं उन्हें दूध नहीं पिलाती, तब वो मेरे लिए मेरे साथ पीते है. अगर तुम बोलते कि बियर पीनी है, तो तुम्हें भी दूध नहीं मिलता.
यह कह कर वो हंसने लगी.
फिर हमने एक बोतल निकाली और सोडा और पानी लेकर बाहर हॉल में बैठ गए.
उसने कहा- पहली बार तुम बनाओ ताकि मुझे समझ आ जाए कि तुम्हें कैसे लेना पसन्द है. मैंने दोनों गिलास में दारू डाली और अपने गिलास में थोड़ा सा सोडा और थोड़ा पानी डाला. फिर मैंने उससे पूछा कि उसे कैसे लेना पसन्द है? तो वो बोली- मुझे बहुत अच्छा लगा कि तुमने मेरी पसन्द पूछी क्योंकि उसके पति तो बस अपने हिसाब से पैग बना देते हैं और बहुत सारा पानी मिला देते हैं. जबकि मुझे पहला पैग बिल्कुल सादा लेना पसन्द है.
मैं समझ गया कि उसे केवल दारू पीनी है. मैंने और कुछ नहीं पूछा और उसका आधा गिलास केवल नीट दारू से भर दिया. फिर हमने गिलास टकराये और पीने लगे.
लेकिन इससे पहले कि मैं अपना एक घूंट भर कर गिलास नीचे रखता, उसने पूरा गिलास खाली कर दिया और आँखें मींच कर आह करके आवाज़ निकाली. मैं तो उसे देखता ही रह गया और उसने फिर से अपना गिलास पूरा का पूरा केवल दारू से भर लिया. अब तक हम आमने सामने बैठे थे. गिलास भर कर वो उठी और मेरे पास आ कर बैठ गयी और बोली- तुम चिन्ता मत करो.. मैं तुम्हें जोर नहीं दूँगी, तुम अपने हिसाब से पीना.
मुझे बहुत अच्छा लगा और मैंने उसे बांहों में भर कर उसके गाल पर चुम्मी कर ली. वो तो जैसे इस शुरूआत के इन्तज़ार में बैठी थी. मेरी पकड़ ढीली होते ही उसने मुझे कस कर पकड़ लिया और सीधा मेरे होंठों को चूसने लगी. वो बोली- मैं पिछले 3 घन्टे से इसका इन्तज़ार कर रही थी.. पर तुम हो कि पास ही नहीं आ रहे थे. मैंने कहा- पहली मुलाकात है और मैं तुम्हारे जैसे अच्छे दोस्त को खोना नहीं चाहता हूँ. वो बोली- तुम बहुत अच्छे इन्सान हो. नहीं तो अगर किसी आदमी को कोई लड़की ऐसे अपने घर में लाये, तो वो तो बस आते ही उसे नोंचने लग जाए.
इसके बाद हम दोनों थोड़ी देर एक दूसरे की बांहों में बैठे रहे और बस एक दूसरे को धीरे धीरे चूमते रहे.
फिर वो बोली- बहुत समय हो गया है, तुम्हें भूख लग रही होगी, चलो अपना गिलास खाली करते हैं और खाना खा लेते हैं. उसके बाद फिर महफिल जमाते हैं.
अब तक मैं भी जोश में आ चुका था, तो मैंने एक ही झटके में गिलास खाली कर दिया और उसने भी मुझे देख कर अपना पूरा भरा दूसरा गिलास भी खाली कर दिया. मुझे लगा ये तो बहुत ज्यादा पीने वाली लगती है. लेकिन जल्द ही मेरी ये धारणा दूर हो गयी, जब हम उठने लगे तो वो पूरी लहरा गयी.
मैंने उसे सम्भाला और बोला- तुम बैठो, मैं खाना यहीं ले कर आता हूँ और हम यहीं साथ में बैठ कर खाएंगे. वो बस मुझे देखती रही और वहीं सोफे पर बैठ गयी. फिर हमने खाना खाया, खाना खाने के बाद वो थोड़ी सही हो गयी थी. वो मुझसे माफी मांगने लगी कि उसे एकदम से इतनी नहीं पीनी चाहिये थी.
मैंने कहा कि ये तो मेरी किस्मत है कि मुझे तुम्हारी सेवा का मौका मिला. अब ये बताओ कि क्या चाहती हो, ये सेवक आपकी कैसे सेवा कर सकता है. वो बोली- सेवक हमें हमारे कमरे में ले कर चलो … हमें कपड़े बदलने हैं. हम दोनों अभी तक अपने बाहर वाले कपड़ों में ही थे. मैंने कहा- जो हुकुम मेरे आका.
तो वो जोर से हंस पड़ी और बोली- मैंने तुम्हें दिन में ही कहा था कि तुम बहुत दिलचस्प आदमी हो. वो मेरी तरफ़ बांहें फैला कर खड़ी हो गयी. मैंने उसे गले से लगाया और उसकी कमर को पकड़ कर उसे ऊपर उठा लिया. उसने भी अपने पैर मेरी कमर पर लपेट लिए और मेरे गाल पर एक पप्पी कर दी.
फिर वो मुझे अपने कमरे में ले गयी और बोली- सेवक अब हमारे कपड़े बदलो. मैंने भी झुक कर सलाम किया और उसकी कमीज़ के बटन खोलने लगा. वो मेरे बालों में अपनी उंगलियां घुमाने लगी.
मैंने बटन खोल कर अपने हाथ अन्दर डाल कर पीछे ले जा कर उसकी ब्रा का हुक भी खोल दिया. अब मैंने उसकी कमर पर दोनों तरफ़ हाथ रखे और ऊपर करते हुए कमीज़ और ब्रा दोनों एक साथ निकाल दिए. लेकिन वो मुझसे तेज़ थी, जब हाथ ऊपर कर रही थी तो उसने नीचे से मेरी टी शर्ट पकड़ ली. मतलब जैसे ही मैंने उसे ऊपर से नंगा किया, उसी समय उसने मुझे भी ऊपर से नंगा कर दिया.
जब हमने हाथ नीचे किये तो वो मेरे गले में बाहें डाल कर मुझसे चिपक गयी और फिर एक लम्बा किस चला. अब की बार मैंने हाथ नीचे किये और उसे नीचे से पकड़ कर उचका दिया. मैंने सोचा था कि वो किस तोड़ देगी, लेकिन हुआ उल्टा, वो पूरी तरह से मेरे गले में लटक गयी और और जोर से किस करने लगी.
फिर किस छोड़ कर वो मेरे कान को चूसने लगी तो मैंने उसके कान में कहा कि क्या आगे पार्टी नहीं करनी. उसने कान चूसते हुए गर्दन हिला कर हां कहा और नशीली आंखें ले कर अपनी गर्दन आगे कर दी. मेरे होंठों पर एक पप्पी की और बोली- अब पार्टी के लिए मुझे उतारो तो सही. मैंने उसे धीरे से नीचे उतारा और गले से लगा लिया. वो बोली- मैं फिर चढ़ जाउंगी. हम दोनों हंस दिए.
फिर मैंने उसे घुमाया और हाथ आगे करके उसके 36″ के चुचे धीरे से दबा दिए और हाथ उसके मम्मों पर ही रखे रहा. उसने मेरे दोनों हाथों पर अपने हाथ रखे और अपने मम्मों को कस कर दबा दिया.. साथ ही उसने अपने चेहरे को ऊपर उठा दिया. मैंने उसकी आंखों को चूम लिया और धीरे से नीचे करते हुए उसकी पेंट का बटन खोल दिया और अपने हाथ अन्दर डालते हुए उसकी जींस को नीचे कर दिया. लेकिन मैंने ध्यान रखा कि उसकी पेंटी ना उतरे.
उसने भी मेरा साथ दिया और जींस को पूरा निकाल दिया. फिर वो घूम कर बोली- कपड़े उतार तो दिए.. अब कुछ पहनाओगे नहीं. मैंने कहा- नहीं. तो वो बच्चों की तरह रोनी सूरत बना कर खड़ी हो गयी. मैंने कहा- मुझे पता नहीं ना है कि बच्ची को क्या पहनना है … तो कैसे और क्या पहनाऊं. वो इठलाते हुए बोली- मुझे नहीं पता … तुम अपनी मर्ज़ी के कपड़े पहनाओ.
मैंने उसकी अलमारी खोली और उसमें से एक गाऊन निकाल कर उसे पहना दिया. वो बहुत ही मुलायम गाऊन था और मुझे प्यार के समय मुलायम चीज़ पसन्द है. उसके बाद वो बोली कि तुम क्या लुंगी पहनते हो? मैंने हां कहा, तो उसने एक सेम कपड़े की लुंगी मुझे दे दी. मैं जब अपना निक्कर निकालने लगा, तो बोली- सेवक, यह हमारा काम है.
वो मेरे सामने घुटनों पर बैठ गयी और धीरे से मेरा निक्कर उतारने लगी. उसी के साथ उसने मेरी चड्डी भी साथ में निकाल दी. जैसे ही मेरी चड्डी नीचे हुई उसने मेरे पप्पू को मुँह में ले लिया और चूसने लगी. दो मिनट बाद उसने पप्पू को छोड़ा और बोली- वाह, मज़ा आ गया! मस्त लंड है. फिर मुझे लुंगी दी और कहा- लो पहन लो … नहीं तो अभी तुम्हारा चोदन कर दूँगी. मैंने बिना कुछ बोले लुंगी पहन ली और हम वापस से हॉल में आ गए.
हमने अपनी अपनी तरह का एक एक पैग और लगाया और फिर वो बोली कि चलो छत पर चलते हैं. रात के 10 बज चुके थे और आस पास के मकान भी इतनी पास नहीं थे, तो मैंने भी हां कर दी. हम अपनी बोतल और गिलास ले कर छत पर पहुंच गए. छत पर बीच में एक पत्थर की मेज़ और उसके दो तरफ़ बैठने के लिए बेंच बनी थीं. हम वहां पर बैठ गए और फिर से एक एक पैग बना लिया.
तभी मैंने देखा कि उसका गाऊन कुछ फ़ूल रहा था. मैंने पूछा, तो बोली कि जब मैंने तुम्हारा निक्कर उतारा था, तो देखा कि उसमें सिगरेट है.. और दारू के बाद ये तो तुम्हें चाहिये ही होगी. इसलिए छुपा कर ले आयी. मैंने कहा- वाह क्या बात है बहुत मस्त सोचा है. चलो एक एक सिगरेट हो जाए.
उसने बिना कोई देर किये दो सिगरेट निकालीं और जला दीं. एक मुझे दी और एक खुद पीने लगी. एक एक कश लगाने के बाद हम दोनों एक एक घूंट दारू पीने लगे. पैग खत्म होते होते उसे नशा चढ़ने लगा था और मुझे भी थोड़ा सा सुरूर हो गया था.
मैंने उसे इशारा किया. उसे अपने सामने मेज़ पर बैठा लिया और गाउन के ऊपर से उसकी जांघें सहलाने लगा. धीरे धीरे मैंने उसका गाऊन ऊपर कर दिया और उसकी नंगी टांगों को चाटने लगा. टांगें चाटते हुए जब मैं ऊपर पहुँचा, तो देखा कि उसकी चड्डी पूरी गीली हो चुकी थी. मैंने पूछा तो बोली- ये तो तब से गीली है, जब तुमने पहली पप्पी ली थी. असल में मेरे पीरियड चल रहे थे और 2 दिन पहले जब खत्म हुए तो उसी दिन ये बाहर चले गए और मैं पीरियड के बाद बहुत चुदासी हो जाती हूँ. इसलिए जब तुम्हें कल रात को देखा था तो रुक गयी थी कि शायद काम बन जाए. पर तुम्हारी तबियत देख कर कुछ नहीं बोली. फिर आज सुबह जब मैं तुम्हारी तबियत का पता करने होटल गयी, तो तुम्हें मेरे बारे में बात करते देखा और मेरा धन्यवाद करने के लिए पता करते देखा, तो मैं समझ गयी कि तुम अच्छे आदमी हो और इसलिए मैंने तुम्हें बुला लिया. मैंने कहा- तो बोला क्यों नहीं … पहले मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करता, फिर खाने पीने का काम करते. वो बोली- नहीं मैं जल्दबाज़ी में नहीं करना चाहती थी, मुझे पूरे प्यार और टाइम के साथ करना अच्छा लगता है.. और तुम जितने प्यार से मेरे साथ पिछले 4 घन्टे से हो, तो मुझे ये लगा ही नहीं कि मैं तुम्हें केवल सेक्स के लिए लाई हूँ.
यह बात करते करते मैंने उसकी पेन्टी भी निकाल दी और फिर मैंने उसे वहीं मेज़ पर लिटाया और उसकी सफाचट चूत को चाटने लगा. वो उम्म्ह… अहह… हय… याह… करने लगी, कुछ देर बाद मैंने उसे उठाया और उसका गाऊन निकाल दिया. छत पर कोई रोशनी नहीं थी. तो हमें किसी के देखने का कोई डर नहीं था.
मैंने उसे उसी मेज़ पर उसे लिटा दिया और उसके पूरे बदन को नीचे से ऊपर तक चाटने लगा. वो वासना से तड़पने लगी. मेरे दोनों हाथ मेज़ पर थे और मैं उसे बिना छुए ही चाट रहा था. फिर धीरे से मैंने उसकी आंखों में देखते हुए उसके निप्पल को चूसने लगा. उसकी 36” के चुची पूरी टाईट हो गयी थी और निप्पल खड़े हो गए थे.
उसने भी अभी तक अपने हाथों को मेज़ पर रखा हुआ था. जैसे ही मैंने उसके एक निप्पल के साथ उसकी चुची को भी जोर से चूसा.. तो उसकी चूची करीब 3-4″ वो मेरे मुँह में चली गयी. बस दो मिनट में ही वो जोर से चिल्लाते हुए बोली कि ये क्या किया यार.. मैं तो बिना कुछ किये ही झड़ गयी. मैंने कुछ नहीं कहा और बस उसे उसी तरह प्यार करता रहा. बस अब फ़र्क इतना था कि मैं उसके होंठ चूस रहा था और एक हाथ से उसकी चुची को सहला रहा था.
जब वो थोड़ी नार्मल हुई तो मैंने उससे कहा- सब यहीं करना है या बिस्तर पर चलें? वो मुस्कराई और बोली- अब क्या करना है … मेरा तो हो गया. मैं बोला- तो ठीक है, फिर मैं जाता हूँ. तो वो बोली- अगर आज जाने का बोला तो कच्चा चबा जाऊंगी. कुछ देर तो रुको इतना तो मैं कभी पूरे सेक्स के बाद नहीं झड़ी, जितना तुमने बिना हाथ लगाये झाड़ दिया. चलो पहले एक एक पैग हो जाए और एक सिगरेट खींचते हैं.
हमने एक एक पैग और सिगरेट पी और फिर उसने मुझे मेज़ पर लिटा दिया बोली- आज पूरा बदला ले कर रहूँगी.
इसके बाद क्या हुआ उसके लिए इस सेक्स कहानी के अगले पार्ट को पढ़ें और मुझे मेल करें. आप अपने विचार मुझे भेज़ सकते हैं. [email protected] कहानी का अगला भाग: बीमारी ने दिलायी प्यासी भाभी की चूत-2
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