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मैं विकास के सामने घोड़ी बनी हुई थी और विकास का लंड मेरी चूत में था. वो धक्के के ऊपर धक्के लगा कर मुझे चोद रहा था. मैंने अपने दोनों हाथ पीछे गांड पर रखे हुए थे और अपने कूल्हे खोल दिए थे ताकि उसका मोटा लंड मेरी चूत के अन्दर बाहर आसानी से हो सके. विकास भी मेरी पतली कमर को पकड़ कर मुझे ज़ोर ज़ोर से चोद रहा था. उसकी जांघें मेरे चूतड़ों से टकराने से कमरे में थप थप की आवाज़ें गूँज रही थीं. मेरे मुँह से भी सिसकारियां निकल रही थीं और मैं आह्ह्ह … आअह्ह्ह …’ करती हुई अपनी गांड को विकास के लंड के साथ आगे पीछे कर रही थी. विकास का एकदम कड़क और तना हुआ लंड मुझे ऐसे महसूस हो रहा था, जैसे मेरी चुत में कोई गर्म लोहे की रॉड अन्दर बाहर हो रही हो.
उसी वक्त मुझे एक जोरदार झटका लगा जब मैंने खिड़की की तरफ देखा. मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गयी, मैंने विकास का लंड अपनी चुत से एक झटके से बाहर निकालते हुए खिड़की की तरफ इशारा किया. विकास भी खिड़की की तरफ देखकर भौंचक्का रह गया और उसका लंड भी कुछ ही सेकेंड में ढीला हो गया. खिड़की के बाहर 60-65 साल का एक बूढ़ा खड़ा था और वो आँखें लाल किए हुए हमारी तरफ ही देख रहा था. डर के मारे मेरे हाथ पैर काँपने लगे और मैं जल्दबाज़ी में अपने कपड़ों को तलाशने लगी.
तभी विकास के मुँह से डगमगाते हुए शब्द निकले- दा…दा… दादा जी… आआआप…!
उफ्फ़ सॉरी सॉरी दोस्तो, मैं आपको अपने बारे में तो बताना भूल ही गयी. मेरा नाम कोमलप्रीत कौर है और मैं पंजाब के जालंधर शहर के पास एक गांव में रहती हूँ. मेरे पति आर्मी में हैं और मैं अपने सास और ससुर के साथ रहती हूँ.
मुझे नये नये लड़कों से अपनी चुदाई कराने में बहुत मज़ा आता है. मेरे पति की नौकरी की वजह से मुझे कई कई महीने बिना चुदे ही निकालने पड़ते. मगर मेरी जवानी को पाने के लिए बहुत सारे लड़के मुझे पटाने को लगे रहते और मैं भी पति की बिना कितनी देर रह सकती थी. आख़िर मैं भी तो एक औरत हूँ.. बस मौका देखते ही मैं भी उनको लाइन देने लगी और फिर शुरू हुआ मेरी ताबड़तोड़ चुदाई का सिलसिला.
मैं बेख़ौफ़ चुदने लगी. कभी किसी लड़के के साथ और कभी किसी बूढ़े के साथ … जो भी मुझे पसंद आता और जहां भी मुझे मौका मिलता, मैं किसी के भी लंड से अपनी प्यासी चुत की प्यास बुझा लेती. मेरी पिछली चुदाई कहानी
आपने पढ़ी ही होगी जिसमें मैं अपने पति के फूफाजी से चुदी थी.
ऐसे ही मुझे एक बार बस में एक लड़का मिला. उसका नाम विकास था. बस में भीड़ का फ़ायदा उठाकर वो मेरे बदन पर हाथ फेरने में भी कामयाब हो गया और मुझे पटाने में भी सफल हो गया. मैं तो पहले से ही बड़े और मोटे लंड की दीवानी ठहरी, उसका इशारा पाकर अपनी मुस्कराहट को रोक नहीं पाई और वो भी बस से उतरते ही मेरे पीछे पीछे चल दिया. कुछ आगे जाकर वो मुझे कॉफी के लिए बोलने लगा. उसके हाथ ने तो मुझे बस में ही गर्म कर दिया था इसलिए मैं भी उसकी कॉफी पीने को तैयार हो गयी.
वो मुझे एक रेस्टोरेंट में ले गया. कॉफी पीते पीते उसके हाथ मेरी जांघ और फिर मेरी चुत पर ही चलते रहे. चुदासी होने के कारण मेरी टांगें चौड़ी होने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगा. विकास भी मेरी चुत की प्यास को जान गया और मुझसे बोला- आज मेरे घर में कोई नहीं है, क्या मेरे साथ जाना चाहोगी?
ऐसे बढ़िया मौके को भला मैं कैसे छोड़ सकती थी.. मैं उसके साथ जाने को तैयार हो गयी. फिर वो मुझे एक पार्किंग में ले गया और उधर से अपनी बाइक उठा कर मुझे जालंधर के ही एक मुहल्ले में ले गया.
उसकी शानदार कोठी थी. उसने ताला खोला और अन्दर जाते ही उसने मुझे अपनी बांहों में भर लिया. मैं भी बिना वक़्त गंवाए अपनी चुत की प्यास बुझवाना चाहती थी. फिर विकास मुझे अपनी बांहों में उठाकर अपने बेडरूम में ले गया और एक एक करके मेरे कपड़े उतारने लगा. मैं भी उसका साथ देते हुए कुछ ही पलों में बिल्कुल नंगी हो गयी. फिर विकास भी कुछ ही पलों में नंगा हो गया.
हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर बेड पर करवटें बदलते हुए एक दूसरे के ऊपर नीचे होने लगे. विकास का तना हुआ लंड मेरी गीली हो रही चुत में घुसने को बेकरार था. मैंने भी उसकी बेकरारी को देखते हुए उसका लंड पकड़ कर अपनी चुत में डाल लिया. विकास भी अपने लंड को मेरी चुत में पेलने लगा और फिर मेरी चुत विकास के मोटे लंड से चुदने लगी.
मेरे मुँह से ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह… आहह …’ की आवाज़ें निकलने लगीं और मैं बिना किसी डर के ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी. विकास का लंड मुझे आनंदित करने के लिए काफ़ी था और उसकी जवानी का जोश भी मेरी चुत की आग को ठंडा करने के लिए बहुत था.
बीस मिनट की चुदाई के बाद विकास मेरी चुत में ही झड़ गया और मैं भी झड़ चुकी थी. मेरी चुत से विकास के लंड का वीर्य निकल रहा था.. मगर फिर भी मेरी चुत में अभी लंड की और प्यास बाकी थी. मैं विकास के दूसरे राउंड की उड़ीक(प्रतीक्षा) करने लगी. विकास का मन भी अभी कहां भरा था.. उसने मुझे घोड़ी बनने को कहा.
मुझे भी अलग अलग तरीके से चुदवाने में मज़ा आता है इसलिए मैंने झट से अपनी 36 इंच चौड़ी गांड को ऊपर उठा दिया. मैंने अपने सिर को तकिये के ऊपर रख दिया और अपनी कमर को भी नीचे के तरफ झुका दिया. इससे मेरे दोनों बड़े बड़े चूतड़ दोनों तरफ फैल गए और मेरी चूत और गांड का छेद विकास के सामने आ गया. विकास ने मेरी गांड को अपने हाथों में पकड़ कर प्यार से सहलाया और फिर मेरी खुली हुई चूत के अन्दर अपना लोहे की रॉड जैसा लंड घुसेड़ दिया.
मोटा लंड अन्दर जाते ही मेरे मुँह से सिसकारियां निकलनी शुरू हो गईं और मैं आहें भरती हुई विकास के लंड से अपनी चुदाई करवाने लगी.
मगर तभी मेरी नज़र खिड़की पर पड़ी और हमें अपनी चुदाई बीच में ही छोड़नी पड़ी.
दरवाजे को लात मारते हुए दादा जी ने विकास को आवाज दी- अरे नालायक दरवाजा खोल … वरना तेरी टांगें तोड़ कर रख दूँगा.
विकास भी बुरी तरह कांप रहा था और वो अपने कपड़े तलाश करने लगा. मगर इतनी देर तक दादा जी दरवाजे पर कम से कम दस बार लात मार चुके थे. विकास अपना अंडरवियर ही पहन पाया था और उसे दरवाजा खोलना पड़ा.
मैं भी मुश्किल से अपनी पैंटी ही पहन पाई थी और बाकी का बदन मुझे वहां पड़ी एक चादर से ही ढकना पड़ा. मैं बेड के दूसरे कोने में जाकर बैठ गयी.
विकास ने दरवाजा खोला तो दादा जी गुस्से से अन्दर आते हुए विकास पर चिल्लाए- अरे नालायक … तुझे शरम नहीं आई यह सब कुछ करते हुए.. तेरी उम्र अभी पढ़ने लिखने की है और तू यह सब कुछ कर रहा है? विकास डर के मारे कुछ भी नहीं बोल पा रहा था, मगर दादा जी उस पर गुस्से से चिल्ला चिल्ला कर बहुत कुछ बोले जा रहे थे.
दादा जी ने फिर गुस्से से चिल्लाते हुए कहा- यह तो अच्छा हुआ कि तुम्हारी दादी ने मुझे गांव से तुम्हारे पास रहने के लिए भेज दिया और तुम्हारी ऐसी हरकतों का मुझे पता चल गया. अब आने दो तुम्हारे माँ-बाप को … तुम्हारी अच्छे से पिटाई करवाता हूँ.
तभी दादा जी ने मेरी तरफ देखा और फिर गुस्से से मेरी तरफ बड़े- अब तू बता … तू कौन है? और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे बच्चे के साथ यह सब करने की? ऐसे ही चिल्लाते हुए दादा जी ने मुझे बाजू से पकड़ा और खड़ी कर दिया. मैं पेंटी में अपने सीने से लगाई हुए चादर को संभालते हुए दादा जी को सॉरी बोलने लगी.
मगर दादा जी ने मुझे बाजू से पकड़े हुए ही दूसरे हाथ से मेरी चादर को खींच कर नीचे गिरा दिया और मुझे बाहर की ओर धकेलते हुए बोले- चल अब ऐसे ही अपने घर जा … तुझे कोई कपड़ा नहीं मिलेगा. मगर मैं दादा जी के सामने हाथ जोड़ते हुए और साथ ही अपने चुचों को छिपाने की कोशिश करती हुई बोली- दादा जी, प्लीज़ मेरे कपड़े दे दीजिए. मैं आगे से विकास से कभी नहीं मिलूंगी.
विकास भी दादा जी के सामने हाथ जोड़ने लगा और माफी माँगने लगा. मगर दादा जी ने गुस्से से कहा- अभी करता हूँ माफ़, तू चल पहले बाहर का मेन दरवाजा बंद करके आ! दादा जी ने विकास को उंगली से इशारा करते हुए कहा.
विकास ने जल्दी से अपनी पैंट पकड़ी और बाहर की तरफ भाग गया.
दादा जी ने मेरी तरफ गुस्से से देखा और मुझे बांहों से पकड़ कर बेड पर गिरा दिया और बोले- चल अब तुझे करता हूँ माफ़… वे ये कहने के साथ ही खुद भी मेरे ऊपर लेट गए.
मैं कुछ बोल पाती, उससे पहले ही दादा जी ने मेरे होंठों को अपने मुँह में ले लिया और मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया. दादा जी लंड उनकी धोती में से मुझे मेरी चूत पर महसूस होने लगा था.. मैं समझ गयी थी कि दादा जी अब मेरी चुदाई करके ही मुझे माफ़ करेंगे. मैं उनको बिना रोके टोके उनका साथ देने लगी. वैसे भी जितना दादा जी मुझे पहले डरा चुके थे, उससे अब मैं कुछ भी बोलने से डर रही थी कि कहीं दादा जी को मना किया तो मुझे पकड़ कर नंगी हालत में बाहर ही ना निकाल दें इसलिए मैं चुपचाप उनका साथ देने लगी.
दादा जी ने अपनी धोती उतार कर फेंक दी और मैंने भी उनका साथ देते हुए उनका कुर्ता ऊपर को निकाल दिया.
दादा जी की सफेद और काले बालों से भरी छाती, मेरे गोरे मुलायम चुचों पर रगड़ने लगी. मैं भी अपने चुचे उछाल उछाल कर उनके सीने से रगड़ने लगी. फिर दादा जी ने मेरी बांहें छोड़ कर मेरे चुचों को पकड़ लिया और उनको ज़ोर ज़ोर से दबाते हुए मेरी पेंटी के ऊपर से ही अपने लंड को दबाने लगे. वैसे तो अभी दादा जी भी कच्छा पहने हुए थे.. मगर उनका लंड एकदम टाइट हो चुका था और किसी असली मर्द का लंड महसूस हो रहा था.
तभी विकास भी दरवाजा बंद करके अन्दर आ गया और दादा जी को मेरे ऊपर चढ़े देख भौंचक्का देखता रह गया. दादा जी ने भी उसकी तरफ देखा और बोले- कर दिया दरवाजा बंद.. चल अभी दूसरे कमरे में बैठ.. तुझको बुलाता हूँ बाद में. विकास भी बिना कुछ बोले चुपचाप कमरे से मेरी तरफ देखता हुआ बाहर चला गया. मैंने भी उसको ऐसे जाते देख एक हल्की से स्माइल दे दी.
अब दादा जी मेरे ऊपर से उठे और मेरी दोनों टाँगों के बीच बैठते हुए मेरी पेंटी को खींच कर उतार दिया और फिर अपना भी कच्छा उतार कर खुद घुटनों के बल बैठ गए. उन्होंने मुझे भी मेरे हाथों से पकड़ कर बिठा दिया. फिर जाने उनको क्या सूझा, उन्होंने मुझे खींच कर अपनी तरफ मुँह करके मुझे अपनी जांघों पर बिठा लिया. ऐसा करने से मेरी चूत दादा जी के लंड के साथ टकरा गयी. दादा जी मेरी कमर के पीछे से अपने हाथ डाल कर मुझे अपने साथ सटा लिया और फिर मेरे दोनों चुचों को बारी बारी अपने मुँह में लेकर चूसने लगे. साथ ही वे अपने हाथ मेरी पीठ और मेरे बिखरे हुए बालों में घुमाने लगे.
मैं भी उनकी पीठ पर अपने हाथ घुमाने लगी और अपने नाख़ून भी उनकी पीठ पर गड़ाने लगी. दादा जी का लंड एकदम सख्त होकर मेरी चूत के दाने से रगड़ खा रहा था. मैं इतनी गर्म हो चुकी थी कि मेरी चूत से पानी की बौछार हो रही थी जिससे दादा जी का लंड भी भीग चुका था. मगर दादा जी मेरी चूत में अपना लंड ना डाल कर मुझे बुरी तरह से तड़पा रहे थे. इसलिए मैंने खुद ही अपने चूतड़ों को थोड़ा ऊपर उठा कर अपनी चूत को दादा जी लंड के ऊपर सैट किया और फिर धीरे धीरे उनके लंड पर अपना वजन डाल कर बैठने लगी.
मेरी इस अदा से दादा जी के मुँह से ‘आआह्ह्ह..’ की आवाज़ निकल गयी और उन्होंने भी अपनी कमर को अकड़ाते हुए अपना लंड सीधा मेरी चूत में धकेल दिया. इससे मेरे मुँह से भी कामवासना से भरी सिसकारियां निकलनी शुरू हो गईं. दादा जी का पूरा लंड मेरी चूत के अन्दर घुस गया.
अब दादा जी ने कहा- अरे वाह मेरी रानी.. तूने तो एक ही बार में पूरा लंड निगल लिया. मैंने दादा जी की आँखों में देखा और कहा- आप तो इतना तड़पा रहे थे अपनी रानी को … इसी लिए आपकी रानी ने पूरा एक साथ ही निगल लिया. फिर दादा जी मेरी तरफ देख कर मुस्कराए और बोले- सच में रानी … मुझे नहीं पता था कि तुझमें इतनी तड़प है.. वरना कब से डाल दिया होता. मैंने कहा- दादा जी.. अभी तो बहुत तड़प बाकी है.. वो भी आपसे ही पूरी करवानी है. दादा जी ने कहा- अच्छा.. तो फिर यह लो रानी.. जितनी मर्ज़ी, तड़प पूरी करो..
ये बोलते हुए दादा जी ने मुझे कमर से कस के पकड़ते हुए नीचे से ज़ोर का धक्का लगा दिया. मेरे मुँह से ‘आह्ह्ह्ह..’ की तेज आवाज़ निकल गयी और मैं भी अपनी कमर को हिलाने लगी.
मैं दादा जी जांघों पर उनकी गोद में बैठी अपने चूतड़ हिला हिला कर उनका लंड अपनी चूत के अन्दर बाहर करने लगी. दादा जी भी मेरी पतली कमर में से अपने हाथ डाले हुए मेरे बदन को मसलने लगे और अपने चेहरे को मेरे चुचों के ऊपर रगड़ने लगे.
मैंने पूरी तरह से अपने आप को दादा जी की बांहों के हवाले करते हुए आंखें बंद कर लीं और फिर अपनी बांहें ऊपर उठा कर अपने बालों में हाथ घुमाते हुए पीछे की तरफ झुक गयी, जिससे मेरी चूत का दबाव दादा जी के लंड के ऊपर और ज़्यादा बढ़ गया. मैं पूरी तरह से मदहोश हुई दादा जी का लंड झटकों के साथ अपनी चूत के अन्दर बाहर करने लगी. दादा जी भी अपने लंड को अकड़ाए हुए ज़ोर ज़ोर के धक्के मेरी चूत में लगा रहे थे. मेरी मादक सिसकारियां पूरे कमरे में गूँज रही थीं. दादा जी भी मुझे चोदने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे.
लंड चूत के अन्दर ही डाले हुए दादा जी ने कुछ देर के बाद मुझे पीछे को करते हुए बेड पर लिटा दिया और खुद मेरे ऊपर आ गए.
अब दादा जी ने मेरी दोनों टाँगों को पकड़ कर ऊपर की तरफ उठा दिया और फिर अपने लंड पर अपना पूरा वजन डाल कर लंड मेरी चूत के अन्दर बाहर करने लगे. इस आसन से उनका पूरा लंड मेरी चूत की जड़ तक चोट करने लगा था. मेरे मुँह से सिसकारियां निकलनी और भी तेज हो गयी थीं.
उधर दादा जी ज़ोर ज़ोर के धक्के मारते हुए बोल रहे थे- आह. ले रानी.. खूब चिल्ला मेरी रानी.. और ज़्यादा चिल्ला.. तू जितना चिल्लाएगी.. उतना ही मेरा लंड तुझे ज़्यादा चोदेगा… आह ले! दादा जी के मुँह से ऐसी बात सुनकर मैं और भी ज़्यादा चिल्लाने लगी और ज़ोर ज़ोर से आहें भरने लगी. इससे दादा जी ने भी अपनी चुदाई की रफ़्तार बढ़ा दी. मुझे भी ज़्यादा मज़ा आने लगा. सच में यह मेरा पहला अनुभव था कि ज़्यादा चिल्लाने से चुदाई में ज़्यादा मज़ा आता है. मैं भी ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा लेना चाहती थी.
दादा जी ने मुझे करीब बीस मिनट तक चोदा और फिर मेरी चूत के अन्दर ही उन्होंने अपना लावा छोड़ दिया. मैं भी बुरी तरह से थक चुकी थी.. और दादा जी से पहले ही झड़ चुकी थी. दादा जी का वीर्य मेरी चूत में उनके तेज तेज झटकों से निकल रहा था. वो इस वक्त मुझे इतना कस के पकड़े हुए थे कि मेरा हिलना भी मुश्किल था. इसलिए मैं भी अपनी चूत के अन्दर उनका हर एक झटका मजबूती से झेल रही थी.
आख़िरकार दादा जी का पूरा माल मेरी चूत में निकल गया और दादा जी ने मुझ पर से भी अपनी पकड़ ढीली कर दी. फिर वे मेरी चूत में लंड डाले हुए ही मेरे ऊपर लेट गए मगर अभी भी उनके हाथ मेरे बालों और मेरे बदन पर ऐसे घूम रहे थे जैसे अभी उनकी प्यास पूरी नहीं हुई हो और वो दूसरे राउंड के लिए खुद को तैयार कर रहे हों.
मगर उनका लंड धीरे धीरे ढीला होकर मेरी चूत से बाहर फिसल रहा था. मैं भी बुरी तरह से थकी हुई थी. दादा जी भी अपने लंड को तैयार ना देख कर मुझ पर से लुड़क कर बेड पर लेट गए.
अभी हम दोनों को लेटे हुए पाँच मिनट ही हुए थे कि विकास भी कमरे में आ गया और दादा जी से हिचकिचाते हुए बोला- दादा जी.. अब्ब्.. अब आअ.. आप दूसरे क..क्क्क….कमरे में चले जाइए.. दादा जी ने उसकी तरफ देखा और बोले- मैं कहीं नहीं जाऊंगा.. तूने जो करना है मेरे सामने कर! अपने दादा जी के सामने विकास कुछ भी बोल नहीं पाया और वो अपनी पैंट और अंडरवियर उतार कर मेरे पास आक़र लेट गया. मैं तो पहले से ही नंगी लेटी हुई थी. विकास मेरे ऊपर आकर लेट गया और मुझसे लिपट कर मेरे बदन को मसलने लगा.
कुछ ही देर में विकास का लंड पहले की तरह लोहे की रॉड बन चुका था. मैं भी गर्म हो गई. उसने फिर से मुझे घोड़ी बना लिया और खुद मेरे पीछे आकर मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया और ज़ोर ज़ोर से मुझे चोदने लगा. मैं फिर से चिल्ला चिल्ला कर विकास से चुदाई करवाने लगी.
तभी दादा जी भी मेरे मुँह के सामने आकर बैठ गए. उनका लंड फिर से खड़ा हो चुका था. उन्होंने अपनी दोनों टांगें फैला कर अपना लंड मेरे मुँह के सामने कर दिया और मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर दबा दिया. मैंने भी अपना मुँह खोला और दादा जी का लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.
अब मेरी दोनों तरफ से चुदाई हो रही थी … मुँह से भी और चूत से भी … इसी तरह दादा पोता ने मिलकर मेरी चूत को करीब 4 घंटे तक चोदा. फिर मैं शाम को दादा जी और विकास से फिर मिलने का वादा करके घर लौट आई.
दोस्तो, पंजाब दी मुटियार की कहानी आपको कैसी लगी, मुझे मेल करके ज़रूर बताना और हो सके तो अपने सुझाव भी मुझे देना.
मेरी ईमेल आइडी है. [email protected]
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