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प्रिय अन्तर्वासना पाठको नवम्बर 2018 प्रकाशित हिंदी सेक्स स्टोरीज में से पाठकों की पसंद की पांच बेस्ट सेक्स कहानियाँ आपके समक्ष प्रस्तुत हैं…
“आहऽऽऽ… ओह… आहऽऽऽ… फक…फक मी हार्ड बेबी… डीप… डीप और अंदर… आहऽऽऽ” हर धक्के के साथ मेरी सिसकारियाँ बढ़ रही थी। मेरे मुँह से निकलती हुई कामुक सिसकारियाँ सुनकर उसने अपने धक्के और तेज कर दिए, उसके हर धक्के से मेरे स्तन ज़ोरों से हिलने लगे। मेरे हिलते हुए स्तनों को अपने हाथों में पकड़कर वह मेरी चुत में सटासट लंड के वार करने लगा। हम दोनों की मादक आवाजें पूरे रूम में गूंज रही थी, चुत लंड की आवाजें भी उनमें घुल मिल रही थी।
पिछले दस मिनट से वह मुझे ऐसे ही कूट रहा था, मैं अब अपने शिखर की ओर बढ़ रही थी, उसकी पीठ को सहलाते हुए नीचे से कमर को हिलाते हुए उसका पूरा लंड चुत में ले रही थी। उसके मुख को देखते देखते अचानक मेरी नजर दरवाजे पर पड़ी… दरवाजे पर मम्मी खड़ी थी। वो कब आयी … हमें पता ही नहीं चला, हमें उस अवस्था में देख कर ग़ुस्से से मम्मी का चेहरा लाल हो गया था। मैंने उसको धक्का देकर मेरे ऊपर से हटाया फिर चादर को अपने बदन पर लपेटकर सीधा बाथरूम में घुस गई।
मैं जाकर कमोड पर बैठ गयी, बाहर वह संकेत को … मेरे बोयफ़्रेंड को बहुत अपमानित कर रही थी। फिर उसके गाल पर दो चमाट मार कर उसको घर से बाहर निकाल दिया।
थोड़ी देर बाद डैड के बोलने की आवाज कानों में पड़ी, वे मम्मी को समझा रहे थे पर मम्मी उन पर ही चिल्ला रही थी। थोड़ी देर बाद उनकी आवाजें बंद हो गयी तो मैं बाथरूम में रखी नाईट ड्रेस को पहनकर बाहर आ गयी।
बाहर दोनों ही नहीं थे, शायद हॉल में गए होंगे, इसलिए मैं बेड पर बैठ गई। कुछ ही देर पहले इसी बेड पर मेरा बॉयफ्रेंड मुझे कूट रहा था और अब उसी बेड पर किसी अपराधी की तरह बैठी थी। हमेशा देर से आने वाली मम्मी और पापा आज जल्दी घर आ गए और मुझे उस अवस्था में देख लिया।
कुछ देर मैं वैसे ही रूम में बैठी थी फिर थोड़ी देर बाद तैयार होकर बाहर जाने लगी। “किधर जा रही हो?” मम्मी ने मुझे पूछा। “तुमको क्या करना है?” मैं उससे आँखें चुराते हुए कार की चाबी लेने लगी। ‘चटाक… चटाक…’ मेरा जवाब सुनते ही उसने मेरे दोनों गालों पर ज़ोरों से दो चांटे जड़ दिए। “चाबी रखो नीचे और बैठो यहाँ!”
पूरी कहानी यहाँ पढ़िए…
यह कहानी कुछ महीने पहले की है, जब मैं उत्तरप्रदेश से गुजरात आया था. गुजरात के बड़ोदरा में अपना कमरा किराए से लेकर रहने लगा. मेरे मकान मालिक अपने दूसरे मकान में रहते थे, जिस वजह से मुझे वहां परेशान करने वाला कोई नहीं था. लेकिन वहां भी एक परेशानी थी कि जब लंड को चूत की आदत लग जाए और ऊपर से तन्हाई हो तो आप समझ सकते हैं कि लंड की क्या हालत होती होगी.
बैंक में दिन तो बड़ी आसानी से निकल जाता था लेकिन परेशानी होती रात को. मुझे उत्तरप्रदेश के पुराने दिन याद आते और मैं तड़प कर रह जाता.
लेकिन कहते हैं ना कि जब किसी को मन से चाहो तो कभी कभी वो मिल ही जाता है.
ये कहानी है आपके अपने सरस और सरस के सामने वाले फ्लैट में रहने वाली तीन लड़कियों की.
सबसे पहले मैं आपका परिचय तीनों लड़कियों से करवा देता हूं. तीनों सगी बहनें हैं और एक से बढ़कर एक बला की खूबसूरत हैं. सबसे बड़ी का नाम रेवती पटेल, दूसरी रिंकी पटेल और सबसे छोटी प्राची पटेल है.
सबसे पहले मैं आपका परिचय रेवती पटेल से करवाता हूं. रेवती 29 साल की लड़की है, जो 32-30-32 के फिगर कि मालकिन है और बड़ोदरा के एक निजी कॉलेज में प्रोफेसर है. वो बहुत ही खुले और सुलझे हुए विचारों की लड़की है. आपको बता दूं कि मेरी बालकनी से रेवती साफ दिखाई देती, जब भी वो किसी काम से अपनी बालकनी में आती या छत पर जाती. उसने भी मुझे कई बार अपनी छत और बालकनी से मुझे गौर किया था, लेकिन वो सिर्फ एक अजनबी को पहली बार देखने वाला नजरिया था.
हम दोनों की मुलाकात और बातों का सिलसिला शुरू बैंक के जरिए ही हुआ. रेवती का खाता हमारी बैंक की उसी शाखा में है, जिसमें मैं पोस्टेड हूं.
एक दिन रेवती को अपने परिवार के किसी काम से एक बड़ी रकम निकलवाने की जरूरत थी लेकिन हमारी शाखा में नगदी की समस्या होने की वजह से कैशियर ने रेवती को नगदी निकालने के लिए मना कर दिया.
अब रेवती परेशान अवस्था में बैंक में खड़ी हुई थी और बार बार अपनी समस्या बता रही थी, साथ ही उम्मीद की नजर से मेरी तरफ़ भी देख रही थी. वो सोच रही थी कि मैं उसे पहचानता हूं तो शायद उसकी मदद करूंगा लेकिन मैं भी मामले को बढ़ने देना चाहता था ताकि सभी जगह से निराश होने के बाद जब वो मेरे पास आए और मैं उसकी मदद कर दूँ, तो वो मुझे कुछ भाव देने लगे और मेरी अहमियत उसे पता लगे.
कुछ देर बाद मैंने उसे मेरे केबिन की तरफ आते हुए देखा और मैं देखता हूं कि वो वाकयी मेरे तरफ ही आ रही है और कुछ देर बाद वो मेरे सामने खड़ी थी. उसके चेहरे पर परेशानी साफ दिख रही थी और आंखों में मुझसे एक उम्मीद.
मैंने उसकी तरफ इस तरह से देखा, जैसे कि मुझे मामले का पता नहीं हो और मैंने सब कुछ यहां तक कि उसे नहीं पहचानने का नाटक करते हुए कहा- कहिए क्या काम है? “सर, मुझे किसी आवश्यक काम के लिए कुछ पैसों की जरूरत है.. लेकिन कैशियर मुझे मना कर रहे हैं. अगर आज पैसों की व्यवस्था नहीं हुई तो बहुत परेशानी हो जाएगी, मैं आपके सामने वाले फ्लैट में ही रहती हूं.” रेवती ने एक सांस में सब कुछ कह दिया और अपना चैक मेरे सामने रख दिया.
मैंने रेवती की तरफ देखते हुए उसे बैठने के लिए कहा और पानी पीने के लिए दिया. पानी पीकर रेवती ने मुझे धन्यवाद दिया तथा वो दुबारा मुझसे अनुरोध करने लगी. मैंने मुस्कुराते हुए उन्हें शांत रहने को कहा और कैशियर को बुलाकर रकम केबिन में लाने के लिए कह दिया.
थोड़ी देर में कैशियर ने पैसे लाकर रेवती को दे दिए. रेवती ने पैसे लेकर अपने हैंड बैग में रख लिए और मुझे धन्यवाद देकर अपने घर चाय पर आने का न्योता देकर चली गई.
आज मैंने रेवती को बहुत करीब से अनुभव किया था व उसकी जवानी को निगाहों से होकर निकाला था.
मैं मन ही मन उसे पाने की सोचने लगा. खैर सारे काम निपटाकर मैं बैंक से घर आ गया और कुछ दिन ऐसे ही निकल गए.
इस बीच एक दिन मेरी तबियत थोड़ी खराब हो गई और मैं बैंक से जल्दी घर आ रहा था. मैं बस स्टॉप पर खड़ा था कि मेरे सामने एक कार आकर रूकी, जिसके काले शीशे चढ़े हुए थे. मैं उसे नजरअंदाज करते हुए पास में बनी बेंच पर बैठ गया.
कुछ देर बाद कार का शीशा नीचे उतरा और एक खूबसूरत लड़की ने मुझे मेरे नाम से पुकारा. मैंने देखा तो वो रेवती थी. रेवती ने मुझे अपनी कार में आने का इशारा किया तो मैं कार के पास जाकर खड़ा हो गया. रेवती ने कहा- कहां जा रहे हैं सरस.. और इतने परेशान क्यों लग रहे हैं? आज बैंक नहीं गए क्या? मैंने रेवती को उत्तर देते हुए उससे पूछा- मेरी तबियत थोड़ी खराब है, इस वजह से बैंक से जल्दी आ गया हूं.. और बस का इंतजार कर रहा हूं, लेकिन आप यहां कैसे? “मैं अपने कॉलेज से आ रही हूं. आइए मेरे साथ चलिए, मैं आपको छोड़ देती हूं.”
मेरी तबियत भी खराब थी.. इसलिए मैंने धन्यवाद देते हुए रेवती का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. लगभग आधे घंटे का रास्ता था, लेकिन मैं अभी अपने आप को संभालने में व्यस्त था.
थोड़ी दूर चलने के बाद मैंने रेवती से कार रोकने के लिए कहा और जैसे ही रेवती ने कार रोकी, मैंने कार से उतर कर बाहर की तरफ भागते हुए वोमिट कर दिया. रेवती मेरी हालत देख कर चौंक गई, उसने गाड़ी से पानी निकाला. मैंने अपने आप को ठीक किया और रेवती को एक बार फिर से धन्यवाद दिया तथा उनको हुई परेशानी के लिए माफी मांगी.
रेवती ने मेरा हाथ पकड़कर मेरी तबियत का मुआयना किया तो उसने पाया कि मुझे बुखार था. अब वो घर जाने की बजाए मुझे हॉस्पिटल ले जाने लगी, जिसके लिए मैंने मना किया.. पर वो नहीं मानी. हॉस्पिटल से निकल कर रेवती मुझे सीधा अपने घर ले गई और कहने लगी- आप अकेले रहते हैं और आपकी देखभाल करने के लिए कोई भी नहीं है. बेहतर होगा आप तबियत ठीक होने तक हमारे साथ रहें. रेवती के मम्मी पापा भी मुझे रुकने के लिए कहने लगे. शायद रेवती ने बैंक में मेरे द्वारा की गई मदद सबको बता रखी थी, तो सभी मेरी सेवा में लग गए.
मुझे ये सब देखकर थोड़ा अजीब लग रहा था और मैं बार बार उन्हें कह रहा था कि मैं ठीक हूं, थोड़ी देर सो लेने के बाद अच्छा फील करूंगा.
रेवती ने मुझे दवाई लाकर दी, जिसे खाकर मुझे नींद आ गई. जब मेरी नींद खुली तो रात के आठ बज रहे थे. मैंने रेवती को बुलाकर उससे जाने की इजाजत मांगी तो उसने अपनी मम्मी को बता दिया कि सरस जाने की कह रहे हैं. रेवती की मम्मी ने कहा- आपकी तबियत ठीक हो जाए तो आप चले जाना, अभी खाना खा कर आराम कर लीजिए. मैंने कहा- ठीक है.
कुछ देर बाद रेवती खाना लेकर आ गई और मुझे अपने हाथों से खाना खिलाने लगी.
पूरी कहानी यहाँ पढ़िए…
मैं +2 पास करने के बाद कॉलेज में दाखिला लेने शहर गया। ऊपर वाले की मेहरबानी और मेरी मेहनत के बल पर एक अच्छे कॉलेज में दाखिला भी मिल गया। हॉस्टल में कमरा भी ले लिया। पढ़ाई शुरू हो गई पर किस्मत में शायद कुछ और ही था। मेरे रूममेट के साथ मेरी बनी नहीं और हॉस्टल का माहौल भी पसंद नहीं आया तो मैंने घर वालों से सलाह करके बाहर रूम लेने की सोची।
अभी कमरे की तलाश चल ही रही थी कि अचानक मुझे मेरी बुआ जैसा कि मैंने बताया मेरे पिता जी के चाचा की लड़की कमलेश मिल गई। कमलेश बुआ तब लगभग 32-33 साल की रही होगी और मैं 20 साल का था। कमलेश बुआ बहुत ज्यादा सुंदर तो नहीं थी पर शरीर की बनावट इतनी गजब थी कि मुझे बुआ में ही माधुरी दीक्षित नजर आने लगी थी। वैसे भी कई साल बाद आमना सामना हुआ था।
बातों ही बातों में जब बुआ को पता लगा कि मैं कमरे की तलाश में हूँ तो वो नाराज होते हुए बोली कि उसके होते मैं किराये के कमरे में कैसे रह सकता हूँ। मैंने बहुत मना किया पर वो जबरदस्ती मुझे अपने साथ अपने घर ले गई।
बुआ का घर शहर की एक अच्छी कॉलोनी में था। घर था भी काफी बड़ा। दो मंजिला मकान जो उस समय के हिसाब से कोठी कही जाती थी। कुल मिला कर आलिशान घर कह सकते हैं। फूफा जी का शहर में अच्छा खासा बिज़नस था।
बुआ ने घर पहुँचते ही मेरे घर पर फ़ोन मिला दिया और पिता जी को बता दिया कि अब से मैं उनके साथ ही रहा करूँगा। फ़ोन पर हो रही बातचीत तो नहीं सुन पाया पर बातों से लगा कि शायद पिता जी ने भी इसके लिए पहले मना किया था पर बुआ ने पूरे हक से बोल दिया कि वो चाहे कुछ भी कहें पर अब मैं उनके साथ ही रहूँगा।
मैं उसी दिन हॉस्टल से अपना सामान ले आया और बुआ ने मुझे एक कमरा दे दिया जो मेरे आने से पहले उनके बेटे रोहित का था। रोहित बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रहा था जिस वजह से वो कमरा खाली था। कमरे में सभी सुविधाएँ थी। पढ़ने के लिए अलग मेज, सोने के लिए बढ़िया बेड और कुछ खेल का सामान भी था जो अब मेरा ही था।
अब शुरू हुआ कहानी का दूसरा पहलू मतलब कहानी के टाइटल वाला किस्सा।
मुझे आये एक दिन ही हुआ था कि वो आ गई। वो मतलब गुड्डो, बुआ की ननद। वैसे तो उसका नाम सुषमा था पर घर में सब उसे गुड्डो के नाम से बुलाते थे। लगभग 26-27 साल की मस्त पटाखा थी गुड्डो। अभी 4 साल पहले ही शादी हुई थी उसकी। पर ससुराल वालों से बनती नहीं थी तो अक्सर आपने मायके यानि बुआ के घर आ जाती थी।
शुरू में मुझे कारण पता नहीं लगा पर बाद में पता लगा कि शादी के चार साल बाद भी वो माँ नहीं बन पाई थी तो उसकी सास और ननद अक्सर उसके साथ झगड़ा करती रहती थी. और पति भी उसका साथ देने की बजाये अपनी माँ और बहन की ही तरफदारी करता था; जिससे झगड़ा बढ़ जाता और वो रूठ कर अपने मायके आ जाती।
गुड्डो के बारे में क्या लिखूँ। गोरा रंग, भरा शरीर, मस्त उठी हुई चुचियाँ और मस्त गोलाई वाली गांड। चेहरे की खूबसूरती ऐसी कि देखने वाला देखता रह जाए। जब मैंने गुड्डो को पहली बार देखा तो मेरा दिल भी कुछ ऐसे धड़का की एक बार में ही उसका हो गया। कुछ तो मेरी उम्र ऐसी और ऊपर से उसकी खूबसूरती।
मैं घर में नया था तो अभी थोड़ा कम ही बोलता था। पर गुड्डो ने तो जैसे चुप रहना सीखा ही नहीं था, बहुत बातें करती थी और शायद यही कारण था कि हम दोनों रिश्ते नातों की दुनिया से अलग दोस्ती की दुनिया में पहुँच गए। अब वो मेरी दोस्त बन गई थी। बुआ की ननद थी तो मैंने उसको भी बुआ कहा तो भड़क गई और साफ़ बोली कि सबकी तरह मैं भी उसे गुड्डो ही कहूँ।
समय बीता और लगभग दस दिन ऐसे ही बीत गए। गुड्डो की ससुराल वाले उसको लेने आये भी पर वो उनके साथ नहीं गई। दस दिन बाद गुड्डो का पति महेश उसको लेने आया तो उन दोनों के बीच बहुत झगड़ा हुआ। मैं उन दोनों को शांत करने की नाकाम कोशिश करता रहा।
तभी गुड्डो के कुछ शब्द मेरे कानों में पड़े ‘महेश… तुम रात को कुछ कर तो पाते नहीं हो; फिर तुम्हारी माँ के लिए बच्चा क्या मैं पड़ोसियों से चुदवा कर पैदा करूँ? इतनी हिम्मत तुम में नहीं है कि अपना इलाज करवा लो। चार साल मैंने कैसे काटे है ये तुम भी अच्छी तरह जानते हो।’
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मेरी उम्र इस वक्त 45 साल की है और मेरे एक बेटा और एक बेटी है, दोनों पढ़ते हैं। पति का बिजनेस है, पर टूरिंग वाला काम है, इसलिए वो अक्सर महीने में 20-25 दिन घर से बाहर ही रहते हैं। अब जब बच्चे बड़े हो जाएँ, अपना ख्याल खुद रख सकें और आप बच्चों के लालन पालन से फ्री हो जाओ, तो फिर आपका दिल करता है कि आप अपने पति से खुल कर प्यार कर सकें।
अब मैं भी अपने पति को बहुत प्यार करती हूँ मगर जब वो सारे महीने में मेरे पास सिर्फ हफ्ता दस दिन ही रहते हों, तो मेरा तो प्यासी रहना लाजमी है। इसी वजह से मैं पहले तो खुद अपनी प्यास बुझानी चाही, मगर मुझे उसमें कोई मज़ा नहीं आया, तो फिर मेरे पैर फिसल गए, और फिर तो ऐसे फिसले के मुझे खुद याद नहीं आज तक मैं कितने अलग अलग मर्दों से सम्बन्ध बनाए होंगे। अब तो ये हाल के मुझे सिर्फ पसंद आना चाहिए, लड़का हो, लौंडा हो, बुड्ढा या जवान। बस लंड का तगड़ा होना चाहिए। मैंने 18 साल के लड़के से ले कर 69 साल के बंदे तक का भी स्वाद चखा है। पर मुझे सिर्फ दो चार लोग ही संतुष्ट कर पाये, और उन दो चार लोगों से मेरी यारी आज तक है। हम अब भी मिलते हैं, और खूब मज़ा करते हैं।
अब बात करते हैं दूसरी … मेरी एक बड़ी बहन है मंजू; वह 47 साल की है। दीदी के सिर्फ एक बेटा ही है। कद काठी रंग रूप में हम दोनों बहनें समान हैं। हम दोनों को एक दूसरे के कपड़े, ब्रा पेंटी, जूते चप्पल तक बिल्कुल फिट आते हैं। बचपन से ही हम दोनों बहनों का आपस में बहुत प्यार है। हम दोनों बहनें कम और सहेलियां ज़्यादा हैं। एक दूसरे से कोई बात नहीं छुपाती। बचपन में भी हम हमेशा साथ ही रहती थी, इसी लिए हमें कभी किसी सहेली कोई खास ज़रूरत महसूस नहीं हुई। वैसे तो वो मुझसे बड़ी है, मगर हम दोनों एक दूसरे को नाम लेकर और तू कह कर ही बोलती है।
जब मंजू का पहला अफेयर हुआ तो उसने सबसे पहले मुझे बताया, उसका पहला किस, पहला सेक्स, सब मुझे पता है, और मेरा भी सब कुछ, हम दोनों हमेशा रात को सोने से पहले एक दूसरे से अपने दिल की हर बात कहती थी। सारे दिन की कार्यवाही बताती, यहाँ तक कि हगना मूतना भी बता देती। शर्म तो हमारे बीच कभी आ ही नहीं पाई।
जब से हम पैदा हुई हैं, तब से एक दूसरी को नंगी देखा है। एक साथ नहाना तो आम बात है। अभी भी शादी के बाद तक भी हम एक साथ नहा लेती हैं। मगर इतनी ज़्यादा नजदीकी होने के बावजूद हम दोनों बहनों ने कभी लेसबियन सेक्स नहीं किया। हाँ, एक दूसरे के मम्में और चूत, चूतड़, गांड सब छू कर देखें हैं, मगर कभी आपस में कोई गलत काम नहीं किया।
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हरियाणा जितना अपनी इज्जत और आबरू की रक्षा के लिए जाना जाता है उतना ही वहाँ पर होने वाले चोरी छिपे होने वाले सेक्स कांडों के लिए। वहाँ पर लड़की अगर किसी लड़के के साथ खुलकर अपने मन की इच्छा से उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना चाहे और गलती से वहाँ के समाज को उसकी भनक लग जाए तो लड़का और लड़की दोनों को मौत के घाट उतार दिया जाता है।
मैंने हरियाणा का नाम इसलिए लिया क्योंकि इज्जत का जितना ढिंढ़ोरा वहाँ पर पीटा जाता है चोरी-छिपे उतने ही सेक्स कांड वहाँ पर होते रहते हैं। मुझे पता है कि हर जगह की यही कहानी है लेकिन सवाल यहाँ पर यह पैदा होता है कि अगर पेट की भूख मिटाने के लिए मन-पसंद खाना खाने की आजादी ही न हो तो बेमन से खाए गए खाने में स्वाद कहाँ से आएगा. यही बात शारीरिक सम्बन्धों पर भी लागू होती है। यदि कोई अपनी मर्ज़ी से अपने मन-माने पार्टनर के साथ संभोग का आनन्द लेने के लिए तैयार है तो समाज को उसमें अडंगा डालने की क्या जरूरत है?
कहानी लड़की की है इसलिए नाम बताने के विषय में तो प्रश्न ही नहीं उठता। उस पर भी हरियाणा की पृष्ठभूमि तो मामले को और संगीन बना देती है। लेकिन आजकल फिल्में और कहानियाँ समाज का आइना बन चुकी हैं इसलिए कहानी तो बतानी पड़ेगी, मगर गुमनामी में। शायद इस कोशिश से आने वाले समय में किसी की जान बच जाए। बात दिल्ली से सटे सोनीपत जिले के एक गांव की है।
उन दिनों मैं बाहरवीं में पढ़ती थी। उम्र नादान थी और दिल बच्चा। लेकिन 18 तो पार कर ही गयी थी। सही गलत की पहचान कहाँ होती है उन दिनों में। स्कूल में देवेन्द्र नाम का एक लड़का पढ़ता था, मैं उसको पसंद करती थी। कहीं कोई कमी नहीं थी उसमें। शरीर का चौड़ा, उम्र में मुझसे एक दो साल बड़ा मगर भरपूर जवान और थोड़ा सा शर्मीला। जब हंसता था तो हल्की दाढ़ी लिए उसके गोरे गाल लाल उठते थे। सुर्ख लाल होंठ और आंखें थोड़ी भूरी मगर काली। मन ही मन उसको चाहने लगी थी।
लेकिन लड़की थी तो मन की इच्छाओं को अंदर ही दबाकर रखती थी, चाहती थी कि शुरूआत वो करे तो ठीक रहेगा। सालभर उसकी तरफ से पहल की आस में ऐसे ही निकाल दिया मैंने। चोरी छिपे उसे देखती तो थी लेकिन जब सामने आता तो नज़र नहीं मिला पाती थी। गलती से एक दो बार उसने मेरी चोरी पकड़ भी ली थी मगर बात हल्की सी मुस्कान से आगे कभी बढ़ ही नहीं पाई।
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