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नमस्कार दोस्तो, पहली बार अन्तर्वासना के मंच पर अपनी आपबीती लिख रहा हूँ। लिखावट में यदि भूल रह गयी हो तो आपका क्षमाप्रार्थी हूँ। हाँ तो दोस्तो, मैं प्रतीक, अहमदाबाद से … 24 साल की आयु, 5’11” की ऊंचाई और रंग गोरा है। स्वभाव थोड़ा शर्मीला है और स्कूल टाइम से ही चोकलटीबॉय की छाप रही है। रीडिंग का शौक मुझे पहले से ही है। और इसीलिए हर वक्त बैग में कुछ हो न हो एक नॉवेल तो होती ही है।
बात कुछ 5 साल पुरानी है जब मैं इंजीनियरिंग के पांचवें सेमेस्टर में था। कॉलेज बाइक से जाया करता था और बाइक कॉलेज के पार्किंग में रखकर दिनभर सीटी बस मैं ही घूमता और पुस्तक पढ़ता। यही लगभग रोज़ का नियम था मेरा।
वैसे कॉलेज में कुछ लड़कियां फ़िदा थी बन्दे पर … लेकिन कभी लड़कियों में दिलचस्पी लेने की कोशिश तक नहीं की थी और न तो मुझे लड़कियों को देखकर शरीर में कभी उत्तेजना महसूस होती। जिंदगी बस मेरे और मेरी पुस्तकों के बीच ही सिमटी पड़ी थी।
उस दिन भी बाइक पार्किंग में लगाके यूनिवर्सिटी स्टैंड से 50 नं की बस पकड़ी … पूरा ध्यान पुस्तक में लगाए पढ़ रहा था। तभी एक आवाज़ कानों में टकराई- एक्सक्यूज़ मी, आप अपना बैग ले लीजिए। मुझे बैठना है यहां! देखा तो एक लड़की खड़ी थी, 5’6″ की ऊंचाई, मध्यम बदन, बड़ी बड़ी काली आँखों को छोड़ उसका पूरा चेहरा स्कार्फ से ढका हुआ… लेकिन उसके हाथों का रंग उसके गोरे होने का सबूत था।
मैंने बैग हटाकर बाजु वाली सीट पर जगह कर दी और फिर से पढ़ना चालू कर दिया। बीच-बीच में उसकी ओर ध्यान जाता तो हर बार उसे मेरी किताब में ताकते देखा। और उसका स्टैंड आते ही वो चली गयी।
दो दिन बाद फिर से उसी बस में हमारी मुलाकात हो गयी। आज भी वो बाजू की सीट में आकर बैठी और मेरी पुस्तक में ही ताक रही थी। पर इसकी वजह से मुझे पढ़ाई में थोड़ी असहजता महसूस हो रही थी। ध्यान ठीक से नहीं लगा पा रहा था। पर जैसे तैसे पढ़ना जारी रखा और फिर स्टैंड आते ही वो चली गई।
अगले दिन फिर पिछले दिन का ही पुनरावर्तन हो रहा था और मेरा ध्यान पुस्तक से बिल्कुल गायब हो गया था। सारा ध्यान अब इस असमंजस में था कि अब इससे बात करूँ या ना करूँ और करूँ तो चालू कहाँ से की जाये? तभी पता नहीं क्या सोचकर उसकी तरफ देखते हुए पुस्तक उसकी ओर बढ़ाई और कहा- पढ़नी है? ले लो इसे! मेरी इस तरह की प्रतिक्रिया की उसे शायद अपेक्षा नहीं थी, स्तब्ध सी बैठी उधेड़बुन में कभी मुझे देखती तो कभी पुस्तक को। “आप पहले खत्म कर लो फिर देना।” थोड़ा सोच विचार करके बोली।
“मैंने एक बार तो पढ़ी है अगर पढ़नी हो ले जाओ, फिर वापिस कर देना।” मैंने कहा. “ठीक है, पर अगले हफ्ते से मेरे एग्जाम चालू हो रहे हैं और उसके बाद 10 दिन का मिड वेकेशन है। उसके बाद वापिस करूँ तो कोई दिक्कत तो नहीं है ना?” “एक काम करो, जब वापिस करनी हो तब मुझे इस नंबर पे कॉल करके बता देना!” और कहते हुए अपना नंबर पुस्तक के पीछे लिख दिया।
तभी उसका स्टैंड आया तो वो जल्दी से चली गयी और मेरे पास भी पढ़ने को कुछ था नहीं तो वापिस कॉलेज आ गया और दो लेक्चर पढ़े और घर चला गया।
उस दिन रात को खाने के बाद लेटा हुआ फोन में गेम खेल रहा था, तभी व्हाट्सएप्प पर अनजान नंबर से मैसेज आया- ‘हाय’ मैं – हाय, कौन? “मैं शलाका, जिसे आपने आज किताब दी वो… दरअसल जल्दी में थैंक्स कहना ही भूल गयी… तो थैंक यू वैरी मच।” उसने फिर पूछा- वैसे आपका नाम?
मैंने फिर अपना नाम बताया और मैसेज में ही रात के 11 बजे तक एक दूसरे की रस-रूचि बारे में सामान्य बातें होती रही।
दूसरे दिन फिर बस में मिल गयी और बातचीत हुई। पर उसका चेहरा अभी भी जिज्ञासा का विषय था मेरे लिए … क्योंकि जितनी बार मिली थी, हर बार चेहरा स्कार्फ से ढका होता था।
उस दिन बाद उसके एग्जाम चालू हो गए तो वो अपने एक्टिवा से कॉलेज आती जाती। पर व्हाट्सएप्प पर रात को हर रोज बातें हो जाती। धीरे धीरे हमारी बातें आगे बढ़ने लगी और अब तो पूरा खुल के बातचीत का दौर चलता। द्विअर्थी एवं अश्लील चुटकुले और बातों का आदान प्रदान भी हो जाता।
आखिर पुस्तक खत्म हुई तो मैंने यूनिवर्सिटी के पीछे वाले एक कैफ़े पर देने को बुलाया। दूसरे दिन 2 बजे आने के लिए उसने हाँ की और शुभरात्रि के साथ बात खत्म हुई।
दूसरे दिन के इंतज़ार में नींद मानो आंखों से गायब ही हो चुकी थी। कल उसका चेहरा देखने मिलेगा या नहीं? अगर देखने को मिला भी तो वो कैसा होगा? ऐसी तरह तरह की ख्याली बातें सोचते सोचते कब देर रात आँख लगी पता ही नहीं चला।
दूसरे दिन उठा तो अजीब सी कैफियत दिल-दिमाग पर छाई हुई थी। पता नहीं क्यों पर पहली बार किसी लड़की के लिए आकर्षण महसूस कर रहा था। तैयार होकर उससे मिलने की ख़ुशी दिल में लिए 9 बजे कॉलेज जाने को निकला। पर आज तो मानो जाती हुई हर एक मिनट साल जितनी लंबी लग रही थी।
डेढ़ बजते ही सब्र का बाँध टूटा और कैफे पहुँच कर, परफ्यूम लगा कर बैठ गया उसकी राह देखने। दो बज के तीन मिनट पर इंतज़ार खत्म हुआ; स्कार्फ़ से चेहरे की झलक को वो सामने बैठ गयी। उसके आते ही मैंने दो कोल्ड कॉफ़ी आर्डर कर दी। अब बस हुस्न का दीदार होने ही वाला था और यही सोच के मन में तरह तरह के बुलबुले उभर रहे थे।
आख़िरकार वो हुस्न का पिटारा खुला। कब से टिकटिकी लगायी आँखें मानो पलकें झपकाना ही भूल गयी। बिना दुपट्टे के प्लेन मेंहदी रंग के कुर्ते और सफ़ेद लेगिंग में वो क़यामत नज़र आ रही थी। घनी काली जुल्फें, बेदाग सा गोरा चेहरा, गहरी कत्थई सी झांय वाली काली आंखें, कमल जैसी केसरी होंठों की पंखुड़ियाँ, सुराहीदार गर्दन, और उस पर काले मोती की माला सांप की तरह लिपटी थी। और गर्दन से कुछ नीचे मध्यम कद में उठा सीना किसी की भी बुद्धि वश करने को काफी थे। उसके नीचे सपाट पेट, मध्यम उभरे नितम्ब… एक ही साँस में सब कुछ नाप गया।
पहली बार उसे इतने ध्यान से देख रहा था आज। कुल मिलाकर उसके हुस्न का तीर मेरे दिल-दिमाग दोनों को सुन्न करने काफी था। मैंने पहले भी एक से एक सुन्दर लड़कियां देखी है पर ये वाकई उन सबसे सुन्दर है या इतने इंतज़ार का मीठा फल है इसलिए ज्यादा लग रही है … वो मैं तय नहीं कर पा रहा था और हुस्न की मार से बेसुध सा बैठा रहा।
होश तब आया जब उसने मेरी पुस्तक मेरे हाथों पर पटकी। शायद उसने मेरे मन में हो रही उथलपुथल को पढ़ी नहीं थी तभी तो बालक सी निर्दोष मुस्कान लिए इस पुस्तक के लिए थैंक्स कहते हुए दूसरी पुस्तक मांग रही थी।
खैर एक एक कॉफ़ी और पुस्तक के आदानप्रदान के साथ मुलाकात तो खत्म हुई पर हुस्न का वो जाम कभी ना उतरने वाला नशा दे गया था।
अब जल्दी मेरे एग्जाम भी होने वाले थे तो ज्यादातर कॉलेज में ही मेरा वक्त जाता। पर व्हाट्सएप्प तो ज़िंदाबाद था।
उस मुलाकात के बाद उसके व्यव्हार में भी बदलाव आ गया था। अब हमारी बातें प्यार का रुख ले रही थी। एक दूसरे में समा जाने का झिकर लगभग हर रोज होने लगा। एक मुलाकात के लिए दोनों तड़प रहे थे। बस मेरे एग्जाम ख़त्म होने की राह थी।
एग्जाम के आखिरी दिन सुबह उसका कॉल आया ‘एग्जाम के बाद मुझे घर पिक करने आना। आज कहीं घूमने जाने का मन है।’
जैसे ही फ्री हुआ तो उसे कॉल की। उसने कहा- आज घर पे कोई नहीं है तो सीधा ही आ जाओ, यहीं से हम चलेंगे।
20 मिनट में उसके घर पहुँचकर घंटी बजाई। दरवाजा खुला तो उसे देखकर एक पल सांस लेना भूल गया। आसमानी टॉप और ब्लैक स्कर्ट में सुंदरता की अनुपम मूरत बड़ी सी मुस्कान लिए खड़ी थी।
शलाका ने मुझे अंदर बुलाया और दरवाजा बंद करते ही जोर से लिपट पड़ी। उसके दोनों स्तनों को अपने सीने में गड़ा महसूस कर मेरा खुद पर काबू न रख सका। हाथ खुद व खुद उसके नितम्ब की गोलाई नापने लगे और आवेश में उसके दोनों नितम्ब जोर से दबा दिये। इस हरकत से वो थोड़ी चिन्हुकी और मुझे धक्का देकर दूर करते हुए सोफे पे बैठने का आदेश देकर मेरे लिए पानी लेने रसोई में चली गई।
मैं किसी रोबोट के माफिक आदेश का पालन करते हुए सोफे पे बैठा पीछे से मटकते हुए दोनों नितंबों को ताकता रहा। पिछले कुछ क्षणों के घटनाक्रम से मेरा आत्मसंयम मुझमें अब नाम मात्र का भी नहीं बचा था। ऐसे पलों में ताजा नौजवान लौंडे से और उम्मीद भी क्या हो सकती है।
धड़कनें प्रति क्षण बढ़ रही थी, शरीर में कंपकंपाहट हो रही थी, कामज्वर की गर्मी शरीर में महसूस हो रही थी और नशा अब आंखों में उतर चुका था… दिमाग अब दो पैरों के बीच में आ चुका था।
पानी पिलाकर वो सामने के सोफे पर बैठ गयी। दोनों खामोश बैठे एक दूसरे से नजरें चुराने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। शायद दोनों को डर था कि सुलग रही चिंगारियों को किसी भी हरकत से हवा न मिल जाये … नहीं तो अब आग लगने में जरा भी देर नहीं थी।
आखिर मैं उठकर सोफे पे उसके पीछे अपना हाथ पसारते हुए उसकी पीठ से सटाकर बैठ गया। उसने एक क्षण के लिए मेरी आंखों में झांका और स्त्रीसुलभ लज्जा से फिर नजरें जमीन पर गड़ाए पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदने लगी।
सांसें उसकी भी अब फूल रही थी, उसके दिल की धक् धक् मेरे पीठ से सटे हाथ तक महसूस होने लगी। मैंने धीरे से होंठ उसके कान के पास ले जाकर कहा- व्हाट्सएप्प पर तो बहुत बातें हुई थी, अब इरादे बदल गए क्या? मेरा इतना कहते ही उसने दोनों आँखें मूंदते हुए एक लंबी सांस भरी और जमीं से उखड़कर पेड़ जैसे जमींदोज़ होता है उसी तरह मेरे सीने पे दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपाते हुए झूल गयी।
हम दोनों की सांसें धौकनी की माफिक चल रही थी और कुछ क्षण तक ऐसे ही बिना कुछ बोले एक दूसरे को महसूस कर रहे थे। इस अदभुत क्षण का विवरण शब्दों में कर पाना मेरे लिए संभव नहीं है।
फिर अपना चेहरा उठाकर मेरी आँखों में भोलेपन के साथ देखने लगी। उसकी आँखें कामाग्नि में तपकर सुर्ख लाल हो चली थी। शायद कुछ बोलना चाह रही थी वो … पर उस क्षण उसके कांपते होंठ शब्दों का साथ देने में असमर्थ थे।
मैंने बैठे बैठे ही उसे अपनी तरफ खींचते हुए अपनी जांघों पर बिठा दिया; उसके दोनों पैर घुटने से मुड़कर मेरी जांघों के इर्दगिर्द सटे थे। हमारे चेहरे अब बिल्कुल नजदीक आ गए, मैं उसकी सांसों की गर्मी अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था।
अनायास ही हमारे होंठ एक दूसरे की ओर खिंचते चले गये और कब आपस में गुंथ गये, कुछ पता ही नहीं चला। वो मेरे होंठों को काट व चूस रही थी जैसे बरसों की प्यास बुझा रही हो। शलाका दस-पंद्रह मिनट तक की चुम्मियों की बौछार मेरे पूरे चेहरे पर करती रही। मेरे चेहरे का एक भी हिस्सा ऐसा नहीं था जो उसकी लार से गीला न हुआ हो।
मैं भी उसको चूमने के साथ साथ उसके दोनों स्तन टॉप के ऊपर से ही जोर से मसल रहा था और नीचे से लिंग लगातार उसके स्कर्ट के झीने कपड़े के ऊपर से योनि के साथ घर्षण बनाये था।
थोड़ी देर बाद उसके टॉप को ब्रा के साथ ऊपर करते हुए गले तक ले आया; ताज महल के गोल गुंबज की माफिक पूर्णगोल उसकी चूचियां खून के बहाव से पूरी लाल हुई पड़ी थी। उसके ऊपर शिखरतुंग से हलके केसरी रंग के चूचुक अभी तक न चूसे जाने की वजह से पूर्ण रूप में तनकर जैसे अपना गुस्सा दिखा रहे थे।
बारी बारी से उसके दोनों स्तनों को जोर जोर से चूस रहा था, काट रहा था। उसके मुख से सिसकारियाँ फूटने लगी थी, वो लगातार मेरा चेहरा उसके स्तनों के ऊपर जोर जोर से दबा रही थी।
थोड़ी देर बाद उसे सोफे पे लेटाकर उसके पेट के हिस्से को चूसने-चाटने लगा। उसकी नाभि को अपनी जीभ से कुरेदते हुए उसकी योनि के पास मुंह ले आया और स्कर्ट के ऊपर से ही योनि को चूमने लगा। वो बस आँखें बंद करे इस पल का आनन्द ले रही थी।
फिर मैंने उसके स्कर्ट को ऊपर कमर तक उठाते हुए उसकी योनि को पैंटी के ऊपर से चूमना चालू कर दिया, साथ में मैं योनि की दरार को जीभ से छेड़ रहा था। योनि की मादक खुशबू की मदहोशी में योनि पर मेरे होंठों का दबाव बढ़ता जा रहा था। वो लगातार बढ़ रही सिसकारियों को मुंह पर हाथ रखकर दबाने की नाकाम कोशिश कर रही थी।
धीरे धीरे मैंने उसकी कोमल गुदाज जांघों पर भी जीभ चलाना चालू कर दिया।
जैसे ही मैंने पैंटी उतारने के लिए उसके इलास्टिक में अपनी उंगलियां फंसाई तो वो अपनी जांघें भींच कर रोकते हुए तपाक से खड़ी हो गई। मेरी समझ में कुछ आए, उससे पहले तो वो मेरा हाथ पकड़े बैडरूम की ओर चल पड़ी।
बेडरूम में जाते ही हमने एक दूसरे के सारे कपड़े उतार दिये। उसके बाद धक्का देकर मुझे बेड पर गिराया और मुझ पर चढ़कर मेरे पूरे चेहरे को चूमने लगी। साथ में मेरे निप्पल को भी अपनी उंगलियों से मसल रही थी. मैं तो जैसे आनन्द के सातवें आसमान पर था।
मेरे शरीर में भी अब सनसनी बढ़ गयी, मैं अपनी दोनों हथेलियों को उसके कूल्हों पर रख मैं उंगलियों से उसके मणिमंदिर के द्वार को कुरेदने लगा व मणि को छेड़ने लगा। साथ में लिंग महाराज भी नीचे से मोर्चा संभाले योनि पर पूरी रगड़ दे रहे थे।
थोड़ी ही देर में उसकी उत्तेजना चरम पर पहुँची, उसका शरीर अकड़ गया और जोर की सीत्कार के साथ मेरे अकड़ कर तने लिंग को एक मिनट तक रह रह कर नहलाती रही; फिर निहाल निढाल सी मेरे सीने पर लेट गयी।
उसको बगल में लिटाते हुए उसके होंठों का रसपान करने लगा। एक हाथ से उसकी योनि को सहलाते हुए दूसरे हाथ से पीछे से उसका स्तन दबा रहा था। धीरे धीरे मैं नीचे की ओर बढ़ा और होंठ उसकी योनि पर रख दिये। मैं जोर जोर से उसकी योनि को अंदर तक चूस रहा था, बीच बीच में दाने को भी काट लेता।
वो फिर से उत्तेजित हो गयी थी। उत्तेजना के मारे जोर से सिसकियाँ भरती हुई मेरे बालों को खींच रही थी। बार बार अत्यधिक आनन्द से किलकारियाँ भरती हुई कमान के माफिक तन जाती। मेरी शलाका लगातार चिल्ला रही थी- प्लीज इसे अंदर डाल दो, अब नहीं बर्दाश्त हो रहा, मर जाऊँगी मैं! प्लीज! अब अकड़न की वजह से मेरे लिंग में भी दर्द चालू हो गया था तो भी यही सही समझते हुए लिंग को योनि के द्वार पे टिकाते हुए रगड़ने लगा।
उसने अपने हाथ से मेरे लिंगमुंड को योनिद्वार पे रखते हुए आँखों से अंदर डालने का इशारा किया। मैंने जोर से धक्का लगाया तो आधा लिंग अंदर उतर गया। उसकी योनि अंदर से तप रही थी; लग रहा था जैसे लिंग को लुहार की तपती भठ्ठी में दे दिया हो।
पहले ही धक्के से उसकी योनि की झिल्ली टूट गयी; उसका पूरा शरीर धक्के के साथ ही तन के कमान जैसा हो हो गया। उसके चेहरे उसके दर्द का साफ अंदाजा लग रहा था पर जबड़ों को भींच चीख को मुँह में ही दबा दिया उसने … आँखों से आंसू की धार निकल रही थी। एक हाथ से चादर को भींचा था और दूसरे हाथ से मेरा आधा बाहर लिंग मजबूती से पकड़ा हुआ था।
उधर मेरा भी यही हाल हुआ पड़ा था। लिंग का टाका टूटने की वजह से मुझे लिंग में तेज जलन हो रही थी। मैं उसके चेहरे और स्तनों को तब तक चूमता रहा जब तक उसका दर्द कम नहीं हुआ। साथ ही उसको सांत्वना देता रहा।
थोड़ी देर में दर्द काम हुआ तो उसने आँखें खोली और लिंग पर से उसका हाथ भी छूट मेरी पीठ सहला रहा था। तभी उसके होंठों पर होंठ रखकर दूसरा धक्का मार तो पूरा लिंग उतर गया। फिर वैसे ही रुक गया। दर्द कम हुआ तो वो अपने आप नीचे से हल्की सिसकारियों के साथ कमर चलने लगी। धीरे धीरे मैंने भी लिंग को अंदर बाहर करना चालू कर दिया। उसका दर्द अब बिल्कुल गायब हो चुका था और उसने पूरे ताल के साथ कमर चलाना चालू कर दिया।
दोनों एक दूसरे की आँखों में आँखें डाल इस क्षण का पूरा आनन्द ले रहे थे। इतना असीम आनन्द आज तक मैंने कभी महसूस नहीं किया था। इस वक्त बस यही इच्छा थी कि ये क्षण कभी समाप्त ही न हों। वो भी इस असीम आनन्द के समुन्दर में मजे से नहा रही थी, उसके चेहरे की ख़ुशी से उसके आनन्द का अंदाजा हो रहा था।
लगातार वो जोर जोर से मादक सिसकारियाँ भर रही थी, पूरा कमरा उसकी सिसकारियों के संगीत से गूंज रहा था। साथ में मेरे कूल्हों पर चपत लगते हुए चिल्ला रही थी- ओर जोर से करो मेरे राजा! ह्म्म्म्म … ऐसे ही चालू रहो … और जोर से … और से … मेक इट हार्डर … येस्स ओह्ह्ह … ओर तेज … हाँ बस ऐसे ही … बहुत मजा आ रहा है! येस्स बेबी कीप इट अप … यू आर टू गुड! मदहोशी में वो ना जाने क्या क्या बड़बड़ाए जा रही थी। साथ में मेरे होंठों को पागलों की तरह चूम रही थी। पर उसके ऐसे बड़बड़ाने से मेरा जोश बढ़ रहा था। मैं पूरी ताकत से लिंग को अंदर बहार कर रहा था।
तभी अचानक पलटकर वो मेरे ऊपर आ गई, अब उसने मोर्चा संभाल लिया। शलाका पूरी ताकत से मेरे लिंग के ऊपर कूदते हुए अपना हुनर दिखा रही थी। कभी तेज़ी के साथ अंदर बाहर करती तो कभी जलेबी की तरह लिंग को अंदर लिए योनि को घुमाती। कभी लिंग को पूरा अंदर लेकर योनि को भींचे रखती तो कभी योनि सिकुड़ते हुए लिंग को पूरा बाहर निकालकर धड़ाम से ऊपर बैठ जाती। और साथ में उसके उसके गेंद की माफिक उछाल रहे स्तन कुछ अलग ही नज़ारा पेश कर रहे थे।
कुल मिलाकर मैं ऐसे सुख के सागर में गोते लगा रहा था जिसे मैंने आज तक महसूस भी नहीं किया था। ऐसा लग रहा था जैसे इस घड़ी मौत भी आ जाये तो अब कोई गम नहीं क्योंकि जीवन के सर्वोच्च सुख का आनन्द मिल चुका था मुझे।
तभी उसका चेहरा अकड़ने लगा, शरीर की सारी मांसपेशियां खिंचने लगी, चेहरा अधिक रक्तप्रवाह से पूरा लाल होने लगा। कांपते होंठों के साथ आँखें बंद किए वो बड़बड़ाने लगी- आई ऍम कमिंग बेबी, ओह्ह्ह्ह … आई ऍम कमिंग! इसी के साथ लिंग पर योनि का कसाव भी बढ़ता जा रहा था।
तभी उसे पलट के मैं ऊपर आ गया और पूरी तेज़ी से धक्के लगाने लगा। करीब 10 सेकण्ड के बाद जोर की चिल्लाहट के साथ उसने लिंग का फिर से अभिषेक कर दिया। उसके योनिरस की गर्मी को लिंग महाराज बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने भी जवाब में कई पिचकारियों के साथ अपना लावा योनि के अंदर ही उगल दिया और योनि को वीर्यरस से नहलाते हुए उसकी गर्मी को शांत कर दिया।
मेरी आँखें खुली तो शलाका मुखड़े पर एक विजयी मुस्कान लिए पूर्ण संतुष्टि के भाव के साथ आँखें बंद किए निहाल पड़ी थी। मेरा लिंग अभी भी योनि में अकड़ कर घुसा हुआ था। हम दोनों की सांसें बहुत तेज़ी से चल रही थी। मैंने फिर से पलटी लगाई और वो मेरे सीने पर माथा रख उलटी लेटी सांसों को काबू करने की कोशिश कर रही थी।
लिंग अब योनि से निकलकर अपने मूल सूक्ष्म आकार में आ गया था और योनि से निकलता हुआ वीर्य एवं योनिरस का मिश्रण मेरे पेट को भिगोते हुए चादर पर बह रहा था। थकावट की वजह से मैं उसे अपनी बांहों में लिए ऐसे ही आँखें बंद कर लेटा रहा।
करीब 15 मिनट के बाद हम उठे, बाथरूम जा कर एकदूसरे को साफ किया एवं नहलाया। उसकी योनि में दर्द हो रहा था, चलने में भी थोड़ी दिक्कत हो रही थी। योनि सूजकर लाल हो गयी थी। लिंग में भी तीखी जलन हो रही थी, सूजकर लिंगमुंड फूल गया था।
नहाने के बाद कपड़े पहनकर रूम की मिलके सफाई की। खून लगी चादर को भी साफ कर दिया। घड़ी में देखा तो मुझे उसके घर आये ढाई घंटे हो गये थे।
तभी हम दोनों जल्दी से तैयार होकर यूनिवर्सिटी के पास वाले एक कैफ़े में गये। करीब घंटे भर वहाँ बैठे, कॉफी पी। एक कुमारिका से पूर्ण स्त्री बनने की ख़ुशी और इस क्रीड़ा में मिला आनन्द अभी भी शलाका के चेहरे से साफ झलक रहे थे।
इसके बाद मैंने वापिस उसे उसके घर ड्रॉप किया और एक लंबी स्मूच के साथ मैं घर की ओर चल दिया।
इसके बाद तो हम दोनों को जैसे चस्का ही लग गया। विविध जगहों पर विविध आसनों में कई बार हमने यौन क्रीड़ा का असीम आनन्द लिया।
मेरी कहानी पसंद आयी या नहीं, मुझे अवश्य बताएं। अपने विचार निम्न इमेल पर जरूर भेजें. [email protected]
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