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शाम को विक्रम घर जल्दी आ गया लगभग आठ बजे के आस पास. जबकि रजत अपने दोस्त के साथ मूवी देखने गया था तो वो दस बजे तक आने वाला था। यह बात सबको घर में पता थी. सबने 8:30 बजे तक खाना खाया और मयूरी और विक्रम अपने कमरे में आ गए. अशोक टीवी पर समाचार देख रहा था और शीतल किचन में बर्तन वगैरह कर रही थी.
सरकारी क्वार्टर होने की वजह से घर में ज्यादा जगह नहीं थी. एक कमरे में अशोक और शीतल सोते थे और दूसरा कमरा थोड़ा बड़ा होने की वजह से तीनों भाई-बहन को दिया गया था. तीनों का अलग-अलग बेड था और बीच में आने जाने की थोड़ी-थोड़ी जगह थी, इतनी कि जैसे कोई जैसे-तैसे ही आ-जा सकता था.
मयूरी बीच में सोती थी क्योंकि पिछले कुछ महीनों से दोनों भाइयों में बातचीत बंद थी. विक्रम अपने बिस्तर पर गया और किताब खोलकर बैठ गया. वो शायर सामान्य ज्ञान की कोई किताब पढ़ रहा था. विक्रम ने इस समय हाफ पेंट और टी-शर्ट पहना हुआ था जबकि मयूरी ने भी एक छोटा सा शॉर्ट्स और एक झीना सा टॉप डाला हुआ था जिसके अंदर से उसकी ब्रा लगभग नज़र आ रही थी. मयूरी की चूचियां बहुत ही भारी-भारी थी जिससे अगर कोई गलती से भी उधर एक बार देख ले तो बार-बार देखे.
मयूरी ने अपने योजना का पहला कदम रखने का सोचा, यह उसके लिए एकदम सही समय था. उसने दरवाज़ा को अंदर से बंद किया और अपने हल्के नीले रंग के टॉप के गले को थोड़ा बड़ा करते हुए अपने कंधे तक खींचा जिससे विक्रम की नज़र उसकी छातियों पर जाये.
फिर वो उसके पास गयी और बोली- भैया, अपने कमरे में जाले बहुत हो गए हैं. मैं साफ कर दूँ क्या? विक्रम- हाँ, कर दे. मयूरी- ठीक है, मैं पंखा थोड़ी देर के लिए बंद करुँगी. विक्रम- ठीक है.
मयूरी ने पंखा बंद किया और जाले साफ़ करने के लिए झाड़ू ले आयी. फिर वो तीनों के बिस्तर पर चढ़ कर उछल-उछल कर जाले साफ करने लगी. उसके ऐसे उछलने की वजह से उसके बड़ी-बड़ी चूचियां जोर जोर से हिलने लगी. वास्तव में मयूरी की मंशा भी यही थी. वो और उछल-उछल कर नाटकीय अंदाज़ में अपनी विशाल चूचियां हिला-हिला कर विक्रम का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करने लगी.
थोड़ी देर में कमरे में गर्मी बढ़ी और इस कारण विक्रम ने अपना टी-शर्ट निकाल दिया. अब वो सिर्फ बनियान में था और उसकी मांसल शरीर पसीने में तर-बतर हो रहा था. मयूरी ने देखा कि विक्रम का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में वो असफल हो रही है तो उसने एक दूसरा दांव मारा. वो बोली- गर्मी कितनी बढ़ गयी है न? मैं भी अपना टॉप निकाल दूँ क्या अगर तुम्हें कोई ऐतराज़ ना हो तो?
विक्रम ने उसको प्रश्न भरी निगाहों से देखा। मयूरी फिर बोली थोड़ा समझते हुए नाटकीय अंदाज़ में- भैया…? ऐसे क्या देख रहे हो? मैंने अंदर ब्रा पहन रखी है? विक्रम- ह..हाँ… फिर ठीक है. मयूरी- फिर ठीक है मतलब? तुम्हें क्या लगता है, ये बिना ब्रा के संभल जायेंगे? विक्रम- ये…ये कौन? मयूरी- भैया, तुम भी ना? ब्रा से कौन सम्भलता है ? तुम क्या…? ये…
और उसने अपनी बड़ी-बड़ी गोल-गोल चूचियों की ओर इशारा किया. विक्रम थोड़ा सकुचा-सा गया. माना कि वो आपस में खुले हुए थे पर अपने प्राइवेट पार्ट्स के बारे में ज्यादा बात नहीं करते थे. फिर विक्रम झेंपता हुआ सा बोला- हाँ, मुझे पता है! मयूरी थोड़ा छेड़ते हुए- क्या पता है? विक्रम- तू अपना काम करेगी? गर्मी लग रही है बहुत? जल्दी से जाले साफ कर और पंखा चला! मयूरी- अरे सॉरी, गुस्सा मत हो तुम… अभी करती हूँ.
और ऐसा कहते हुए उसने फट से अपना टॉप निकाल दिया जिससे उसकी विशाल चूचियां लगभग नंगी नुमाया हो गयी. मयूरी की चूचियां इतनी बड़ी थी कि वो ब्रा में बस जैसे-तैसे ही कैद रहती थी. अगर टॉप ना पहना हुआ हो तो आधी से भी ज्यादा दिखाई देती थी.
और टॉप उतरते ही विक्रम की नजर उसकी गोल-गोल भारी-भारी चूचियों पर पड़ गयी. मयूरी ने देखा कि कैसे उसका भाई ललचायी नजर से उसकी चूचियों को देख रहा है पर वो अनजान बनने का नाटक करती रही और जाले साफ करने में फिर से लग गयी.
पर अब विक्रम का ध्यान अपनी बहन की चूचियों से हट ही नहीं रहा था. एक तो वे बड़ी-बड़ी थी और ऊपर से मयूरी उछल-उछल कर उनको हिला-हिला कर विक्रम का ध्यान आकर्षित कर रही थी. विक्रम की जगह अगर कोई मुर्दा भी होता न, तो वो भी इस दृश्य को देख कर जाग जाता! और विक्रम तो फिर भी इंसान था, वो भूल गया ये गोल-गोल चूचियां उसकी अपनी सगी छोटी बहन की है. और भी एकटक उनको देखता रहा.
थोड़ी देर बाद मयूरी ऐसे नाटक करती है जैसे उसको अभी-अभी पता चला हो कि विक्रम उसकी चूचियों को ताड़ रहा है. विक्रम इस समय अपने बिस्तर पर बैठा हुआ था. मयूरी उसके एकदम पास उसके बिस्तर पर खड़ी हो गयी, जिससे उसकी चूचियां ठीक विक्रम के चेहरे पर हों. उसने अपने भाई से थोड़ा नखरे-भरे अंदाज में पूछा- देख लिया? विक्रम का जैसे मोह भंग होता है, तन्द्रा टूटती है और वो हकलाते हुए बोला- ह.. हाँ… म.. मेरा मतलब है क्या…? पर इसके वावजूद भी वो अपनी नजरें मयूरी की चूचियों पर से हटा नहीं पाया. मयूरी- वही जो देख रहे हो?
अब वो बहुत ही शर्मिंदा-सा महसूस करने लगा और इधर-उधर देखते हुए बोला- म…मैं कुछ नहीं देख रहा था? पर मयूरी इस मौके को जाने नहीं देना चाहती थी, उसने कहा- झूठ मत बोलो भैया… मैंने अपनी आँखों से तुम्हें इनको घूरते हुए देखा है! विक्रम जैसे चोरी करते पकड़ा गया और अपनी गलती कबूल करते हुए बोला- सॉरी मयूरी… वो गलती से नज़र पड़ गयी और मैं अपनी नज़र हटा नहीं पाया. मयूरी- अरे सॉरी मत बोलो भैया… कोई बात नहीं.. तुम्हारी कोई गलती है इसमें… विक्रम आश्चर्य से- मतलब?
मयूरी- अरे देखो भैया … मुझे पता है ये बड़ी हैं और आकर्षक हैं … तो नजर चली भी गयी तो क्या हो गया? और वैसे भी तुम मेरे भाई हो … मुझे बचपन से देखते आ रहे हो … इसमें मैं क्यूँ बुरा मानूँ अगर तुमने आज फिर से देख लिया? विक्रम को जैसे राहत मिली हो. वो बोला- थैंक्स बहना.. मुझे लगा तुम बुरा मान गयी होगी. मयूरी ने माहौल को थोड़ा लाइट किया, उसके सामने बैठ गयी और बोली- कोई बात नहीं भैया… आप मेरे भाई हो और मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ. अगर आपकी ऐसी छोटी-छोटी बात का बुरा मानने लग गयी तो कैसे चलेगा?
और फिर वो धीरे से हंस दी… पंखा अभी भी बंद है और गर्मी अभी भी लग रही है. फिर वो अपना अगला कदम रखते हुए बोली- वैसे… कैसी लगी तुम्हें ये? विक्रम ने इतने सीधे सवाल की उम्मीद नहीं की थी, वो फिर घबरा गया और हकलाते हुए बोला- क.. क.. क्या?? मयूरी- अरे यही जो तुम देख रहे थे? और अपनी मनमोहक चूचियों की तरफ देखा.
विक्रम थोड़ा हड़बड़ाता हुआ सा बोला- ये कैसा सवाल है? मयूरी- अरे तुम इतनी देर से इनको देख रहे थे तो मैं पूछ रही हूँ कि ये कैसे लगती हैं? फिर मयूरी उसको थोड़ा समझाते हुए बोली- देखो, मैं एक लड़की हूँ और मेरा मन करता है कि मैं भी अच्छी लगूँ. अब मेरा कोई लड़का दोस्त तो है नहीं, और ना ही कोई बॉयफ्रेंड है. तुम मेरे भाई हो पर तुम एक लड़के भी तो हो. तो मैं तुमसे अपने बारे में तुम्हारा नजरिया जानना चाहती हूँ बस… कि ये तुमको कैसी लगीं? यह बोलते हुए मयूरी ने अपनी चूचियों के नीचे अपने दोनों हाथ रकः कर उन्हें ऊपर को उठा दिया था.
विक्रम जैसे उसकी बातों को समझते हुए- अच्छी हैं. मयूरी- अच्छी हैं मतलब? विक्रम- मतलब अच्छी हैं. मयूरी- अरे मतलब क्या अच्छा लगा? विक्रम- क्या बताऊँ मैं… बता तो रहा हूँ कि अच्छी हैं.
मयूरी- मेरा मतलब है कि जैसे तुमको इनकी शेप अच्छी लगी या साइज? या दोनों? और ये बीच का क्लीवेज अच्छी बनती है या नहीं? विक्रम- देखो… ये वाकयी कमाल की हैं. इनकी शेप भी अच्छी है और साइज भी. एकदम गोल-गोल हैं और बड़ी बड़ी भी… और क्लीवेज तो बहुत ही ज्यादा अट्रैक्टिव है. मयूरी- मैं अगर तुम्हारी गर्लफ्रेंड या बीवी होती तो क्या तुमको मैं पसंद आती? विक्रम- तुम इतनी खूबसूरत हो कि अगर तुम मेरी बीवी या गर्लफ्रेंड होती तो मैं इस दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान होता…
इस बातचीत के बीच दोनों भाई-बहन एक दूसरे के बिल्कुल आमने-सामने बैठे थे, मयूरी ने ऊपर में सिर्फ ब्रा पहन रखी थी जिसमें से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां दिखाई दे रही थी और उसने नीचे सिर्फ एक शॉर्ट्स पहना हुआ है जिनसे उसकी गोरी टांगें और जांघें बिल्कुल साफ़ दिखाई दे रही थी. माहौल में अब थोड़ी-थोड़ी खुमारी छा रही थी.
मयूरी थोड़ी भावुक होते हुए बोली- मैं तुमको इतनी अच्छी लगती हूँ भैया? विक्रम थोड़ा प्यार जताते हुए उसके गालों को सहलाते हुए बोला- हाँ मेरी बहना… तू मुझे इतनी प्यारी लगती है. मयूरी- तो और क्या अच्छा लगता है तुम्हें मुझ में? विक्रम- बताया ना, तू मुझे पूरी की पूरी अच्छी लगती है, और बहुत ही ज्यादा अच्छी लगती है. बल्कि ये कहूंगा कि तू दुनिया के किसी भी मर्द को बहुत अच्छी लगेगी. बहुत खुशनसीब होगा वो इंसान जिसे तू मिलेगी.
मयूरी- भाई, थोड़ा डिटेल में बताओ कि क्या-क्या अच्छा लगता है तुम्हें मुझे में? और यह कहते हुए मयूरी खड़ी होकर गोल-गोल घूम गयी और पोज़ मारने लगी, जैसे अपना प्रदर्शन कर रही हो.
विक्रम- देख, तेरा चेहरा बहुत प्यारा है… तेरे होंठ बहुत खूबसूरत है… तेरी ये (चूचियों की तरफ इशारा करते हुए) भी बहुत प्यारी हैं, तेरी कमर भी पतली और आकर्षक है. मयूरी (जिज्ञासा भरे लहजे में)- और-और? विक्रम- और क्या बताऊँ? मयूरी (थोड़ा मायूस होते हुए)- बस इतनी ही अच्छी लगती हूँ मैं तुमको? विक्रम- अरे नहीं… नहीं… तू तो बिल्कुल परी-जैसी लगती है मेरी बहना! मयूरी- तुम ना अभी मुझे बहन मत बुलाओ तो शायद और विस्तार से बता पाओगे! विक्रम- ऐसी बात नहीं है…
मयूरी- तो और बताओ ना कि क्या-क्या अच्छा लगता है तुम्हें मेरे बारे में? विक्रम- तुम्हारे ये पैर भी बहुत ही प्यारे हैं और ये गोरी-गोरी जांघें भी… तुम्हारी कमर के नीचे ये पीछे का पार्ट भी बहुत आकर्षक है. मयूरी- भैया इसको बट्ट बोलते हैं या फिर गांड भी बोलते हैं. विक्रम थोड़ा गुस्सा सा दिखाते हुए- मुझे पता है कि इसको गांड बोलते हैं.
मयूरी इठलाते हुए- अच्छा? और इसको क्या बोलते हैं? यह बोलते हुए मयूरी ने अपनी चूचियों की तरफ इशारा करते हुए शरारती मुस्कान डाली और फिर से विक्रम के सामने बैठ गयी. पर इस बार वो अपने पैर फैला कर बैठी जिससे विक्रम उसकी चुत के आस पास की जांघ को अच्छे से देख सके. साथ ही साथ मयूरी ने नोटिस किया कि अब विक्रम के मन में सिस्टर सेक्स के विचार घर कर चुके थे और उसका लंड खड़ा होकर उसके शॉर्ट्स के अंदर तम्बू बना चुका है.
सिस्टर सेक्स कहानी जारी रहेगी. [email protected]
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