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मेरी ग्रुप सेक्स कहानी के प्रथम अंश किरायेदार ने दोस्तों से मिल कर मुझे चोद डाला-1
में आपने पढ़ा कि मेरे पति ने घर में एक जवान लड़का किरायेदार रख लिया क्योंकि वो अक्सर घर नहीं रहते थे. उस लड़के के रंग ढंग ठीक नहीं थे. एक दिन मैंने देखा कि वो किसी लड़की को कमरे में लाकर चोद रहा है, उसका लंड देख कर मेरी कामवासना भी हिलौरें लेने लगी.
टीवी पर चलती ब्लू फिल्म और चारों के चारों हरामज़ादे नंगे बैठे, सबने बड़े बड़े अपने लंड खड़े कर रखे थे। एक बार तो लगा जैसे मैं जन्नत में आ गई हूँ, मेरे मन की मुराद पूरी हो गई, मगर इस तरह तो मैं नहीं करना चाहती थी।
अब आगे:
मैं वापिस जाने लगी तो सतबीर एकदम से उठा और एक लुँगी सी अपनी कमर पर बांध कर आगे बढ़ा और मेरा हाथ पकड़ लिया- अरे भाभी जी रुकिए, क्या हुआ, कैसे आई थी? मैंने कहा- मैं तो तुम्हें किराये के लिए कहने आई थी, मगर तुम तो ये सब गंद फैला के बैठे हो। सतबीर ने थोड़ी बदतमीजी तो की, मगर मेरे बिल्कुल सामने आकर मेरा रास्ता पूरी तरह से रोक लिया और दरवाजे को रोक कर खड़ा हो गया, उसका तना हुआ लंड उसकी कमर पर बंधी लुंगी में से साफ साफ दिख रहा था।
सतबीर थोड़ा सा आगे बढ़ा और वो मुझसे छू न जाए इसलिए मैं पीछे हटी। वो आगे बढ़ता गया और मैं पीछे हटती गई। एक तरह से वो मुझे घेर कर कमरे में ही ले आया और अपने पीछे उसने दरवाजा बंद कर दिया।
मैंने उसे कहा- ये क्या बदतमीजी है सतबीर, दरवाजा खोलो, मुझे जाना है. वो बोला- माफ करना भाभी जी, मगर आज कुछ बात ऐसी है कि हम चाहते हैं कि आप भी हमारी महफिल में हमारे साथ बैठें, और रही बात किराये की, तो किराया तो मैं आपको देकर ही भेजूँगा। पर आप इस तरह नाराज़ हो कर मत जाइए, एक मिनट बैठ जाइए बस।
मैं कुछ कहती, इस पहले ही सतबीर ने मुझे ज़ोर से नीचे बैठा दिया। उन तीन लड़कों ने भी अपने खड़े लंडों पर कपड़े रख कर अपना नंगापन ढाँप लिया था, मगर कपड़े फिर भी उठे हुये थे। सतबीर ने एक गिलास में शराब डाली और मेरी तरफ बढ़ाई और बोला- लीजिये भाभीजी, हमारे साथ भी एक जाम लीजिये। मैंने ज़ोर से कहा- सतबीर, बदतमीज़ तुम्हें पता नहीं मैं शराब नहीं पीती। वो बोला- पीने को कौन कह रहा है, बस अपने होंटों से लगा कर इसे शर्बत बना दीजिये।
उसकी इस चमचागीरी पर मैं मुस्कुरा दी, उसने गिलास आगे बढ़ाया और मैंने उसे सिर्फ अपने होंठों से लगाया मगर पिया नहीं, तो सतबीर ने वो गिलास मेरे मुँह अलग होने ही नहीं दिया और मुझे ज़बरदस्ती दो तीन घूंट पिलवा दिये। इतना गंदा टेस्ट, मैंने शराब कभी पी ही नहीं तो मुझे तो गंदा टेस्ट ही लगना था।
उसके बाद उसी गिलास में सतबीर ने शराब भी पी। मुझे कुछ नमकीन खाने को दिया, मैंने खा तो लिया। उधर सामने टीवी पर ब्लू फिल्म चल रही थी। वैसे ही मेरा ध्यान उस तरफ गया, तो सतबीर ने पूछा- भाभी, कैसी है फिल्म? मैंने कहा- मुझे ऐसी फिल्मे पसंद नहीं।
एक और लड़के ने पूछा- तो और क्या पसंद है भाभी? अब तो मैं सब की भाभी बन चुकी थी। मैंने कहा- इस में क्या है, मज़ा वो करें, और हम देखते रहें। सतबीर ने कहा- हमारे पास तो असली मज़ा भी है! कह कर उसने अपनी कमर पर बांधा कपड़ा हटा दिया। नीचे उसका तना हुआ लंड था; काला लंड, भूरा टोपा पूरा बाहर निकला हुआ।
मुझे देख कर मन हुआ, खा जाऊँ उसका लंड। मगर कोई रांड तो थी नहीं मैं, एक शरीफ खानदान की शरीफ बहू थी। तो मैंने उठ कर जाने का बहाना किया, तो सतबीर ने मुझे फिर से मेरा हाथ पकड़ कर बैठाना चाहा, पर मैं उठने को बाजीद थी तो मेरा संतुलन बिगड़ गया और मैं गिर पड़ी। मगर गिर कर भी मैं बाहर की ओर बढ़ी, तो साले चारों के चारों मुझ पर झपट पड़े। इस से पहले के मैं संभालती, उन चारों ने मुझे दबोच लिया। मैं औंधी फर्श पर गिर पड़ी, और सतबीर आकर मेरे ऊपर लेट गया और बाकी दो लड़कों ने मेरी टाँगें पकड़ ली।
सतबीर बोला- ओए, नाईटी ऊपर उठा भाभी की, आज नहीं छोड़ेंगे इसे! और उस लड़के ने मेरी नाईटी ऊपर उठा दी और एक ही पल में मैं कमर तक नंगी हो गई; मेरी टाँगें और मेरे चूतड़ बिल्कुल नंगे हो गए। मैंने चीख कर कहा- हरामजादो, छोड़ दो मुझे! जबकि ये बिल्कुल नकली गुस्सा था।
सतबीर बोला- छोड़ देंगे जानेमन, इतने दिनों से तुम्हें ताड़ रहे हैं, पहले तुझे चोदेंगे फिर छोड़ेंगे। मैंने फिल्मी डायलॉग मारा- अगर मेरे पति को पता चल गया, तो तुम में से किसी भी खैर नहीं।
वो चारों हंसने लगे और एक बोला- अरे जानेमन, कौन बताएगा, तेरे पति को? हम तो नहीं बताएँगे, तूने बताना हो तो बता देना। और वो मेरी नाईटी ऊपर खींचते रहे, मेरी नाईटी उतार कर मुझे बिल्कुल नंगी कर दिया और अपनी टाँगों पर रखे कपड़े भी उन्होंने उतार फेंके और मुझे अपनी बाजू के ज़ोर से उन्होंने सीधा कर दिया, मेरी टाँगें खोल दी।
सतबीर और एक लड़के ने मेरी दोनों बाजू पकड़ी, और दो ने मेरी टाँगें। मुझे पूरी तरह से अपने काबू में करके वो मेरे जिस्म पर अपने हाथ फिराने लगे, मेरे मम्मे दबाने लगे। मैं बिना वजह उन लोगों को गाली देती रही- हट जाओ कुत्तो, छोड़ दो मुझे हरामजादो। तुम सब जानते नहीं तुम कितना बड़ा अपराध कर रहे हो। मैं तुम्हारी बहन जैसी हूँ, छोड़ दो मुझे भाई, भगवान का वास्ता तुम्हें, जाने दो मुझे।
मगर मेरी बातों की तरफ उनका कोई ध्यान ही नहीं था, वो सिर्फ मेरे गोरे बदन पर अपने हाथ फेर कर मेरे भरे हुये और चिकने बदन को छूने का आनंद ले रहे थे।
फिर एक लड़के ने मेरा एक मम्मा अपने मुँह में लिया और चूसने लगा, दूसरा मम्मा सतबीर ने मुँह में लिया और चूसने लगा। सतबीर का खड़ा लंड मेरे हाथ को छू रहा था, मेरा दिल हुआ कि उसका लंड पकड़ लूँ, मगर अभी थोड़ा और ड्रामा करना था मुझे।
एक लड़के ने दूसरे से कहा- इसकी दोनों टाँगें पकड़ और खोल कर रख। उस लड़के ने मेरी टांगें और खोली, मैंने कोई ज़ोर नहीं लगाया, उसे खोलने दी क्योंकि मुझे पता था क्या होने जा रहा था।
उस लड़के ने अपना सर मेरी टाँगों के बीच रखा और मेरी चूत पर चूमा। मुझे बहुत झनझनाहट हुई, मैं काँप सी गई। उस लड़के ने मेरी चूत से अपना मुँह लगाया और धीरे धीरे से मेरी चूत को चाटने लगा। अब मैं बिल्कुल मजबूर हो चुकी थी, अब विरोध करने का कोई कारण मेरे पास नहीं बचा था। मैंने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया। वो चूत चाटता रहा और मैं बेबस होती गई, मेरी मन की तड़प मेरे बदन पर दिखने लगी। जब वो अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर घुमाता तो मैं अपनी कमर ऊपर को उठा लेती।
मेरी तड़प देख कर सतबीर ने अपना लंड मेरे मुँह के पास किया और मैंने बड़े आराम से उसे अपने हाथ में पकड़ा और “आ…ह…” वो खूबसूरत काला लंड मेरे होंठों से टकराया और मैंने आगे बढ़ कर उस लंड को अपने होंठों से चूमा और अपने मुँह में ले लिया।
दूसरे लड़के ने भी अपना लंड मेरे मुँह के पास किया, मैंने सतबीर का लंड अपने मुँह से निकाला और और दूसरे लड़के का लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। उधर वो दो लड़के मेरी टाँगों के बीच अपने चेहरे डाले, बारी बारी से कभी वो तो कभी वो मेरी चूत चाट रहे थे। दो लंड मेरे मुँह में और दो मुँह मेरी चूत में। शायद जन्नत में भी ऐसा मज़ा न मिलता हो जो मुझे इस धरती पे मिल रहा था।
फिर उनमें से एक काला सा लड़का जिसे मैं बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी, उसने अपना लंड मेरी चूत पर रखा और इस पहले कि मैं उसे रोकती, उसने अपना लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया, जबकि मैं पहले सतबीर का लंड लेना चाहती थी, मगर इसका लंड भी अच्छा था, मोटा था, लंबा था और लड़का भी दमदार था। वो जो लगा मुझे चोदने … तो हटने का नाम ही न ले। मैं उनके लंड चूसती रही, वो मेरे मम्मे दबाते और चूसते रहे और मैं अपनी कमर उचका उचका कर मचलती रही।
इसी तरह की चुदाई में मैं सिर्फ 5 मिनट ही खुद कायम रख पाई, 5 मिनट बाद मेरा पहला स्खलन हुआ। मुझे नहीं पता किसका लंड था मेरे मुँह मे, मगर मैंने उसे काट लिया। कितना आनंद, कितना जोश, कितनी तृप्ति थी इस स्खलन में! मैं झड़ कर बिकल्कुल शांत हो गई।
वो लड़का करीब 20 मिनट मुझे चोदता रहा। मैं उसकी चुदाई से तीन बार झड़ गई। जिसको मैं सबसे बेकार समझ रही थी, घटिया समझ रही थी, वो तो बड़ा ही धांसू निकला। मेरे पति भी आज तक मेरा तीन बार पानी नहीं गिरा पाये। आज तो मैं धन्य हो गई थी। तीन बार झड़ चुकी थी, और अभी तीन मुश्टंडे और बाकी थे। मतलब ये कि अब मेरी जम कर चुदाई होने वाली है।
फिर वो सूकड़ू सा बड़े ज़ोर ज़ोर से मेरी चूत में अपना लंड पेलने लगा और अगले ही मिनट उसने अपने गर्म माल से मेरी चूत को भर दिया। ऐसा लगा जैसे बहुत देर के किसी प्यासे आदमी को ठंडा ठंडा पानी मिल जाए पीने को। ऐसा लगा कि जैसे मेरी चूत में अमृत गिर रहा हो। मैं अंदर तन मन से खुश हो गई।
जैसे ही उसने अपना लंड मेरी चूत से निकाला एक दूसरा लड़का आगे आया और उसने घप्प से अपना लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया। मुझे अब कोई दिक्कत नहीं थी, मैं तो अब सिर्फ चुदाई और ढेर सारी चुदाई चाहती थी और वो लड़के भी पूरी तरह से तैयार थे, गर्म मर्दाना माल से भरी अपने लंडों की पिचकारियाँ लिए हुये, जिन्हें वो मेरी प्यासी चूत के अंदर चलाने वाले थे।
दूसरे लड़के ने करीब 10 मिनट मेरी चुदाई की, फिर तीसरा लड़का आया, और वो भी 12-13 मिनट मुझे चोदता रहा। हर एक लड़के में ये होड़ थी कि वो पहले वाले से ज़्यादा मुझे चोदें। अपनी इस ख़्वाहिश के चलते सब के सब मुझे बहुत बेदर्दी से चोद रहे थे, और उनके लिए तो मैं एक रंडी थी, जिस पर वो अपनी मर्दानगी झाड़ रहे थे।
जब वो लड़का भी मेरी चूत को अपने गर्म माल से भरने के बाद नीचे उतरा तो फिर सतबीर आया। उसने पहले मेरी ही नाईटी उठा कर उस से मेरी चूत साफ की और फिर अपनी उंगली पर थोड़ी सी लपेट कर मेरी चूत में अंदर डाल कर मेरी चूत को साफ किया। “क्या रे मादरचोदो, साली कैसी चूत भर के रख दी, बहनचोद चिप चिप कर रही है सारी!” कह कर सतबीर ने अपना मस्त मोटे टोपे वाला लंड मेरी चूत पर रखा और बड़ी बेदर्दी और ज़ोर से अपने लंड का टोपा मेरी चूत में घुसा दिया। एक बड़ी ज़ोर से “हाय…” मेरे मुँह से निकली।
सतबीर हंसा और बोला- देखो रे देखो, साली कैसी कुँवारी लड़की की तरह हाय हाय करती है, कुतिया साली। कह कर सतबीर मेरे दोनों होंठ अपने होंठों में लेकर चूसने लगा। मुझे समझ नहीं आया कि सतबीर मुझे प्यार कर रहा है, या कोई गुस्सा निकाल रहा है। मेरे दोनों मम्मे उसने बड़े ज़ोर से अपने हाथों में पकड़ रखे थे, और उन्हें दबा नहीं रहा था, बल्कि मसल रहा था, यह जानते हुये भी कि मुझे उसके मसलने से दर्द हो रहा था।
उसके बाकी तीन साथी बेशक झड़ चुके थे, मगर फिर भी मेरे बदन को सहला कर मज़े ले रहे थे। कभी कोई अपना ढीला लंड मेरे मुँह में डाल देता, कभी कोई, मैं सबके लंड चूस रही थी, बीच बीच में वो सब मेरे होंठ भी चूस लेते। किसी कोई कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि अभी ये औरत किसी और का लंड चूस रही थी। मेरे मुँह में कभी किसी का लंड, कभी किसी की जीभ, कभी किसी के आँड तो कभी किसी के होंठ होते। कौन मेरे मम्मे चूस रहा था, या दबा रहा था, कौन मेरी कमर पर चिकोटी काट रहा था, कौन मेरी जांघों पर से हाथ भर भर के मेरा मांस नोच रहा था, मुझे कुछ होश नहीं था।
और सतबीर तो अपना लंड कपड़े से सूखा सूखा कर मेरी चूत मार रहा था, शायद उसे मज़ा आता था, जब मैं दर्द से तड़पती थी, छटपटाती थी। मेरे गोरे बदन को नोच नोच कर उन वहशी लड़कों ने लाल कर दिया था। मगर मैं इसमें भी खुश थी, लगातार एक बहुत लंबी चुदाई का जो मैं सपना देखती थी, वो सपना मेरा पूरा हो रहा था।
फिर सतबीर ने मेरे सर के बाल पकड़ कर मुझे खींचा- इधर आ माँ की लौड़ी, इधर चोदूँगा तुझे! और वो मुझे दरवाजे के पास ले गया, वहाँ मुझे घोड़ी बना कर उसने मुझे चोदना शुरू किया। दरवाजे पर पतले से कपड़े का पर्दा लगा था, जिसमें से बाहर तो दिखता था, पर अंदर नहीं दिखता था। सतबीर ने मेरे सर के बाल पकड़ रखे थे और पीछे से अपना लंड डाल कर मेरी चूत चोद रहा था।
तभी मैंने देखा कि मेरी बेटी स्कूल से वापिस घर आ गई है। वो गेट बंद करके ऊपर अपने कमरे की तरफ सीढ़ियाँ चढ़ कर जा रही थी। सतबीर बोला- साली कुतिया, वो देखती है न तेरी बेटी जा रही है, उस मस्त माल पर भी मेरी नज़र है, अब तेरे बाद उसकी बारी है, अगली बार उसको हम चारों यार मिल कर चोदेंगे। जैसे आज तुम्हें कुतिया की तरह चोदा है, वैसे ही उसे भी चोदेंगे। मैंने कहा- नहीं सतबीर, उसको छोड़ दो, तुम्हारे पास मैं आ तो गई हूँ, जो करना है, मेरे साथ कर लो मगर मेरी बेटी को कुछ मत करना! मैंने सतबीर से विनती की।
सतबीर बोला- तो मेरा माल पिएगी? मैंने कहा- हाँ पी लूँगी, मगर मेरी बेटी पर नज़र मत डालना। सतबीर बड़ी बेशर्मी से हंसा और बोला- अरे यार अब नज़र तो पड़ चुकी है, तू चाहे जो मर्ज़ी कर ले, अब तो उसको चोदना ही चोदना है।
मुझे लगा शायद मैंने इन मुश्टंडों के आगे झुक कर गलती ही कर ली। इतने में सतबीर ने अपना लंड मेरी चूत से निकाला और मेरे बालों को खींच कर ही मुझे अपनी तरफ घुमाया और अपना लंड मेरे मुँह में डाल दिया। मुझे पता लगा गया कि अब ये झड़ने वाला है, और अपना माल मुझे पिलाना चाहता है। मैंने भी पूरे ज़ोर ज़ोर से उसका लंड चूसा और जब वो मेरे मुँह में झड़ा, तो मैंने उसका सारा माल पी लिया। झड़ने के बाद सतबीर अपने दोस्तों में जा कर बैठ गया और मैं वहीं उसकी दहलीज़ पर नंगी लेटी पड़ी थी, अपना मान सम्मान, अपनी इज्ज़त सब गंवा कर मैं आज एक दो टके की रंडी की तरह गिरी पड़ी थी।
फिर मैं उठी और उठ कर अपनी नाईटी पहनी, और अपने रूम की तरफ चल पड़ी, वो वैसे ही अपनी पार्टी में मस्त हो गए।
जैसे ही मैं अपने कमरे में पहुंची, अपने कपड़े बदलने के लिए मैं स्टोर में गई, अंदर मेरी बेटी अपने स्कूल की ड्रेस बदल रही थी। उस वक़्त वो सिर ब्रा और पेंटी में थी। मैंने उसे देखा, उसका खूबसूरत गोरा जवान जिस्म। मैंने आज यह जाना कि मेरी बेटी जवान हो चुकी है, जब सतबीर और बाकी सभी को न जाने कब का इस बात का पता चल गया था। मुझे देखती ही मेरी बेटी बोली- माँ क्या हुआ, ये क्या हालत बना रखी है? मगर मैंने ‘कुछ नहीं…’ कह कर अपने कपड़े अलमारी से निकाले और बाथरूम में चली गई।
जब शीशे में मैंने खुद को देखा, मैं डर गई, अगर मेरे जिस्म पर इतने निशान मेरे पति देख ले, तो आज ही मुझे तलाक दे दें।
खैर उसके बाद तो ये आम सी बात हो गई, और मैं अक्सर कभी अपनी मर्ज़ी से कभी सतबीर के बुलाने से उसके कमरे में जाने लगी, उसने मुझे अपने बहुत से दोस्तों के साथ मिल बाँट कर भोगा, कई बार तो दूसरी किराये की रंडियों के साथ और सामने भी चोदा।
फिलहाल इतना ही! [email protected]
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