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हैलो फ्रेंड्स, आज मैं अपनी एक और कहानी ले कर आया हूँ. उम्मीद है आप सबको पसंद आएगी. ये कहानी कुछ दिन पहले की है, जब मैं ट्रेन से लखनऊ से गोरखपुर वापस जा रहा था. ठीक मेरे सामने वाली सीट पर एक एकदम मस्त लड़की बैठी थी. उसका साइज़ वगैरह भी ठीक था.. मगर उसके दूध कुछ ज्यादा ही बड़े बड़े थे, इतने अधिक तने हुए थे ऐसा लगता था, मानो अभी ब्लाउज फाड़ कर बाहर आने को बेताब हैं. उस लड़की का रंग भी बिल्कुल दूध की तरह सफ़ेद था. उसकी उम्र कोई 20-22 साल की होगी.
मैंने ध्यान दिया कि वो मुझे बहुत देर से देख रही है तो मैंने भी उसकी तरफ़ देख कर थोड़ा मुस्करा दिया.
कुछ ही देर बाद कुछ ऐसा हुआ कि सामने वाली बर्थ जिनकी थी, वे आ गए और मैंने उसको नजरों से अपने बगल में आने का इशारा किया. वो झट से मेरे बाजू में आ गई. उसकी गर्मी पाकर मेरा लंड उछलने लगा.
फिर वो मुझसे अपनी टिकट दिखाते हुए पूछने लगी कि ज़रा देखो मेरा रिज़र्वेशन पक्का है कि नहीं? मैंने देखा उसका टिकट अभी कन्फर्म नहीं हुआ था. मैंने कहा- ये तो अभी वेटिंग है, अभी कन्फर्म नहीं हुआ है.
इस बात से वो जरा चिंतित सी दिखी. वो कहने लगी- फिर क्या होगा? कहीं टीटीई मुझे कुछ कहेगा तो नहीं? मैंने कहा- परेशान मत हो, मैं टीटीई से बात कर लूँगा, तुम मेरे साथ मेरी सीट में एडजस्ट कर लेना.
इसके बाद उसके चेहरे पर थोड़ी राहत सी दिखी. वो मुझसे बात करने लगी. जैसे आपको किधर तक जाना, मैंने बताया कि मुझे गोरखपुर तक ही जाना है.
उसे गोरखपुर से आगे जाना था.. लेकिन पूरी रात का सफ़र कट जाने वाला था. इसलिए उसके चेहरे पर कुछ शान्ति थी कि रात के सफ़र में कोई दिक्कत नहीं होगी.
फिर मैंने उसका नाम पूछा तो उसने बताया कि उसका नाम पिंकी है.
पिंकी की खूबसूरती देख कर मेरे मुँह से पानी निकल रहा था. मैं मन ही मन उसे चोदने का प्लान बनाने लगा. इसी लिए मैंने उसके मम्मों को अपनी कुहनी से दबा कर उसकी मंशा जानने की कोशिश की. उसने भी अपना दूध मुझसे मसलवा लिया. मैंने उसकी आँखों में देखा तो उसकी मुस्कान में मुझे मूक सहमति सी दिखी.
कुछ देर बाद रात घिरने लगी, ये सर्दी की रात थी इसलिये सभी लोग अपनी बर्थ खोल कर लेटने की तैयारी करने लगे. हम दोनों की बर्थ ऊपर वाली थी. मैंने उसकी गांड को सहारा देकर ऊपर चढ़ा दिया. इस दौरान मैंने उसकी चुत पर भी हाथ फेर कर मजा ले लिया था. जिस वक्त मैंने उसकी चूत पर अपना हाथ फेरा था, उस वक्त उसने भी एक पल मेरे हाथों पर ही अपना वजन रख कर अपनी चूत को मेरे हाथों से सहलवा लिया था.
हम दोनों ऊपर की बर्थ पर आ गए. रात को हम दोनों ने भी खाना खाने लगे. मैंने देखा कि नीचे सभी लोग कम्बल ओढ़ कर सोने लगे थे.
खाना के बाद मैंने पिंकी से कहा कि तुम सो जाओ, मैं बैठता हूं. उसने कहा- नहीं, तुम भी कम्बल ओढ़ कर लेट जाओ.
सामने वाली बर्थ पर एक बन्दा सो रहा था. वो शायद बीमार था, इसलिए दवा खाकर सो गया था.
फिर ट्रेन की उस छोटी सी सीट पर हम दोनों इस तरह से लेट गए कि उसकी गांड मेरी तरफ़ थी और चेहरा दूसरी तरफ़. मैं उसके सर की तरफ़ पैर को रख कर लेट गया और मैं उसकी गांड की तरफ़ मुँह घुमा कर सो गया.
अब मेरा लंड बिल्कुल उसकी गांड की दरार में टच होने लगा था. उसकी गोल गोल गांड और मेरा लंड एक दूसरे से चिपके हुए थे.
पिंकी के गोरे गोरे पैर भी बिल्कुल मेरे चेहरे के सामने थे. मेरे लंड को समझाना अब मुश्किल हो रहा था. मैंने अपने हाथ उसके पैरों पर रख कर थोड़ा सहलाना शुरू किया और गर्म गर्म सांसों के साथ उसके पैरों को चूमने लगा.
थोड़ी देर बाद वो मेरी तरफ़ मुड़ गयी. अब उसका चेहरा भी मेरे पैरों की ओर था. उसने मुझे कुछ नहीं बोला तो मैं अपना रास्ता साफ़ समझा और देर ना करते हुए मैं उसके पैरों को सहलाते हुए जांघ तक जा पहुंचा. कुछ देर यूं ही उसके बदन की गर्मी का आनन्द लेता रहा. फिर जब मैंने उसकी पेंटी एक तरफ हटा कर चूत पर हाथ रखा तो ऐसा लगा मेरा हाथ जल गया हो. उसकी चूत बिल्कुल आग की भट्टी की तरह जल रही थी और गर्म चूत बिल्कुल गीली हो रही थी.
मैंने उसकी चूत में अपनी उंगलियां डालनी शुरू कर दीं, उसकी चूत पर छोटे छोटे बाल थे, जिनको मैं अपनी उंगलियों से सहला रहा था.
फिर धीरे धीरे कम्बल के अन्दर ही मैं अपना मुँह उसके चूत तक लेकर गया और उसकी चूत को पीने की कोशिश करने लगा.
उसने अपने एक पैर को उठा कर मेरे कंधे पर रख दिया. अब उसकी बुर बिल्कुल मेरे मुँह में थी. मैंने पेंटी खीच कर अपनी जीभ को उसकी बुर के चारों तरफ़ घुमाना शुरू कर दिया. कभी कभी उसके दाने को दांत से पकड़ कर थोड़ा सा खींच कर छोड़ता तो उसको जैसे बिजली के झटके महसूस हो रहे थे. मुझे तो बड़ा मज़ा आ रहा था. वो भी अपनी कमर धीरे धीरे हिला हिला कर मज़े ले रही थी.
मैंने भी अपने पैर को उठा कर अपना लंड उसकी तरफ़ बढ़ा दिया. वो बड़े प्यार से लंड को चूसने लगी. हम अब बिल्कुल 69 की पोजिशन में थे. हम दोनों एक दूसरे के ऊपर नीचे नहीं थे, बल्कि साइड बाइ साइड थे और हम जो भी कर रहे थे धीरे धीरे कर रहे थे. क्योंकि ट्रेन में किसी को पता न चल जाए इस बात का भी ध्यान रखना था.
वो अब कुछ ज्यादा ही ज़ोर से अपनी कमर को उठा कर अपनी बुर को मेरे मुँह से रगड़वा रही थी.
अचानक उसने मेरे सर को अपने हाथ से अपनी बुर में ज़ोर से दबाया, साथ ही कमर को भी मेरे मुँह पर दबा दिया और ढीली हो गयी. वो झड़ गई थी.
मैंने उसकी बुर की गर्मी धीरे धीरे अपने मुँह से चाट चाट कर साफ़ किया. दो पल ठहरने के बाद वो फिर से मेरे लंड को चूसने लगी थी. मैं भी अब जोर जोर से अपने लंड को उसके मुँह में घुसा रहा था.
मेरे लंड का पानी भी अब बाहर निकलने वाला था.. मैंने ज़ोर से उसकी बुर में अपना मुँह घुसा दिया और मेरे लंड से पानी निकलना शुरू हो गया. लंड इतना भरा बैठा कि 8-10 झटके तक पानी की पिचकारियां निकालता रहा.
उसने मेरे लंड के पानी को पूरा अपनी मुँह में लेकर पी गयी. थोड़ी देर के बाद मैं उठा और टॉयलेट गया.
मैंने अपनी पैंट उतार दी. फिर अपनी चड्ढी भी उतार दी. अपने लंड को अच्छी तरह से साफ़ किया और पैंट पहन ली.
फिर वो भी टॉयलेट जाकर आयी और मेरी तरफ़ मुँह करके सो गयी. अब उसने कम्बल ओढ़ लिया था. हम दोनों एक दूसरे से चिपके हुए कम्बल में अपनी साँसों को लड़ा रहे थे. इस वक्त उसके चूचे मेरी छाती से लग रहे थे. मैंने उसके ब्लाउज़ के बटन खोल दिये. वो ब्रा नहीं पहने थी.. ब्रा को शायद टॉयलेट में ही उतार कर आयी थी. मुझे जैसे ही इस बात का अहसास हुआ तो ये समझते देर न लगी कि शायद चूत का ढक्कन भी हट गया होगा. मैंने नीचे हाथ फेरा तो अहसास हुआ कि उसकी पेंटी भी हट चुकी थी.
बस अब मैं उसके गोल गोल मम्मों को अपने हाथ से दबाने लगा और उसके निप्पल को मुँह में लेकर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा. उसने अपने एक हाथ से अपनी साड़ी को उठा कर कमर के ऊपर रख लिया. अब उसकी कमर के नीचे कुछ भी नहीं था. मेरा हाथ उसकी मक्खन जैसी जांघों को सहलाए जा रहा था. कभी कभी मैं उसकी बुर को भी प्यार से सहला रहा था. इधर पिंकी भी अपने हाथों से मेरे लंड को सहला रही थी.
ऐसा काफ़ी देर तक चलता रहा. हम दोनों चुदास से भरे हुए थे. मेरा लंड एक बार फिर से उसकी बुर की गहराई को नापने के लिये मचलने लगा था. मैंने धीरे से पिंकी से पलट कर सोने को कहा. पिंकी धीरे से पलट गयी. मैं उसके ऊपर चढ़ गया. अब उसकी नंगी गांड की दरार मेरे लंड से चिपकी हुई थी. उसने भी पैर फैला कर गांड उठा सी ली थी.
मैंने धीरे से अपने लंड को हाथ से पकड़ कर पीछे से उसकी गांड की दरार में रखा और एक हल्का सा धक्का मारा. मेरा लंड उसकी गांड की दरार से होता हुआ, उसकी चुत में आधा घुस गया. वो दर्द से कराह उठी.. लेकिन वो चीखी नहीं. वो जानती थी कि ट्रेन में सब सो रहे लोगों को शक न हो जाए.. इसलिए धीरे से चुदवा लेने में ही मजा है.
मैंने धीरे से एक और धक्का मारा और लंड पूरा का पूरा अन्दर चूत की जड़ तक घुस गया. फिर मैं एक हाथ से उसकी चूचियों को मसलने लगा. पिंकी की चिकनी चिकनी गांड मेरे पेट से रगड़ खा रही थी. और मैं उसे चोदे जा रहा था.
फिर चार पांच मिनट के बाद मैंने अपनी चुदाई की स्पीड बढ़ा दी और जोर जोर से पिंकी को चोदने लगा. पिंकी भी अपनी गांड हिला हिला कर चुदवा रही थी.
अचानक पिंकी अपनी गांड को मेरे लंड पे जोर से दबा कर रुक गयी. मेरा लंड भी पिचकारी की तरह पानी छोड़ना शुरू कर दिया. लंड और बुर दोनों का पानी गिर जाने के बाद दोनों शान्त हो गए.
इस तरह ट्रेन की छुक छुक के साथ हमारी चुदाई सुबह तक फक फक चलती रही. हमने रात भर में चार बार चुदाई की और किसी को पता भी नहीं चला.
फिर सुबह मेरा स्टेशन आ गया और मैं उतर गया. उसे आगे जाना था तो वो चली गयी. मेरी मति मारी गई थी, जो उससे उसका नंबर लेना भूल गया. आज भी मैं उसे मिस करता हूँ
दोस्तो, मेरी ये ट्रेन सेक्स की कहानी कैसी लगी, जरूर बताएं. मैं जब तक अपने लिये किसी चूत का इंतजाम कर लेता हूँ.. धन्यवाद.
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