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नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम अनूप है और मैं मूलतः शिमला का रहने वाला हूँ लेकिन कुछ सालों से चंडीगढ़ में रह रहा हूँ। भाभी सेक्स की यह कहानी मेरी तीसरी कहानी है, इससे पहले मेरी दो कहानियाँ अन्तर्वासना पर प्रकाशित हो चुकी हैं लोहड़ी की रात मेरी पहली सुहागरात पड़ोस की जवान सेक्सी लड़की की प्यास बुझाई
तो जब मैं रोज़ थका हारा जब काम पर से घर आता हूँ तो खाना खाने के बाद रात को बस अन्तर्वासना ही एक मात्र ज़रिया होता है मनोरंजन का। अन्तर्वासना पर रोज़ नई कहानी पढ़ कर मैं सोचता था कि क्या सच में ऐसा हो सकता है।
लेकिन फिर एक दिन जब मेरी किस्मत बदली तो समझ में आया कि जब लंड की किस्मत में चूत लिखी है तो वो मिल कर ही रहेगी। हुआ यूँ कि मैं जिस सेक्टर में रहता हूँ वहाँ हमारी बिल्डिंग में मेरे कमरे के नीचे एक परिवार किराए पर रहता है। हमारे मकानमालिक मोहाली में रहते हैं और हर महीने की पांच तरीक को किराया लेने आते हैं।
नीचे रह रहे परिवार में कुल मिलाकर पांच लोग रहते हैं। संजीव भाई, उनकी पत्नी इला भाभी (काल्पनिक नाम), दो बच्चे ईशान और रूचि और भाभी की सास।
मैं रोज़ सुबह 8 बजे काम के लिए निकल जाता हूँ और शाम को 7 बजे रूम पर पहुँचता हूँ। सुबह जाने से पहले नीचे भाभी रोज़ झाड़ू मारते हुए दिख जाती थी। जब वो झाड़ू मारती थीं तो उनके खुले गले वाले कमीज में से उनके दो बड़े बड़े ताजमहल देख कर मेरा कुतुबमीनार छलांगें मारने लगता था। लेकिन मैं कर क्या सकता था उनको देखने के सिवा।
फिर एक रात को मैंने अन्तर्वासना पर एक पड़ोसी भाभी की चुदाई वाली कहानी पढ़ी। कहानी पढ़ते ही मैंने तय कर लिया कि अब जो भी हो जाए इला भाभी की चूत मारनी है तो मारनी है। फिर मैंने धीरे धीरे भाभी से जान पहचान ज्यादा बढ़ानी शुरू कर दी। बात तो वो पहले से ही करती थी मुझसे … लेकिन टाइम की कमी के कारण ज्यादा बात नहीं हो पाती थी। पर अब मैं बस हर टाइम इसी तलाश में रहता की कैसे मैं उनसे बात करूं।
धीरे धीरे हमारी बातें बढ़ती गई; फ़ोन नंबर एक्सचेंज हुए; व्हाट्सप्प पर बातों का सिलसिला शुरू हुआ। फिर बातें धीरे धीरे मेरी गर्लफ्रेंड तक आ गई और मैंने मना कर दिया कि मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है। फिर कुछ दिनों तक कोई बात नहीं हुई भाभी से।
एक दिन शुक्रवार को मैं सुबह काम के लिए जा रहा था तो देखा भाभी का पूरा परिवार बाहर खड़ा था और गाड़ी में बैठ कर कहीं जाने की तैयारी लग रही थी। मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और काम पर चला गया।
शाम को जब रूम आया तो सोचा अब हर हफ्ते की तरह दो दिन हैं मेरे पास आराम करूंगा क्यूंकि शनिवार और रविवार की छुट्टी होती है मुझे।
फिर मैं सब्जी लेने बाहर जा रहा था तो भाभी भी कहीं बाहर जा रही थी। मैं ऊपर ही रुक गया लेकिन भाभी ने मुझे आते देख लिए तो कहा- क्या हुआ? रुक क्यों गए? कहाँ जा रहे हो? मैंने कहा- सब्जी लेने जा रहा था मार्किट तक! भाभी- अरे वाह, मैं भी सब्जी लेने ही जा रही हूँ, चलो साथ में चलते हैं।
मैं- आप लोग तो सुबह कहीं जा रहे थे। भाभी- हाँ, वो बच्चों को हफ्ते की छुट्टी है तो संजीव बच्चों को और सासु माँ को दिल्ली लेकर गए हैं 15 अगस्त दिखाने। मैं- आप नहीं गई? भाभी- नहीं, मेरे मम्मी-पापा आ रहे हैं चार पांच दिन में तो मैं यहीं रुक गई। मेरे मुंह से एकदम निकल गया ‘अरे वाह!’ भाभी- क्या मतलब वाह का? मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही!
भाभी- अच्छा आज तुम मेरे साथ मेरे घर पर ही खाना खा लेना, मैं भी अकेली ही हूँ, मुझ भी कंपनी मिल जाएगी और तुम्हें घर का खाना मिल जाएगा खाने को। मैं मन ही मन बहुत खुश था पर ऊपरी दिखावे के लिए मैंने कहा- अरे आप क्यों तकलीफ कर रहे हो? मैं खा लूंगा अपने कमरे में बना के। भाभी- ये मैं पूछ नहीं रही, आर्डर दे रही हूँ। मैं- ठीक है मैं आ जाऊंगा।
रात को 9 बजे मुझे भाभी का फ़ोन आया- आ जाओ खाना तैयार है। मैं ख़ुशी ख़ुशी चला गया और ये सोच लिया था कि आज तो चूत मार कर ही वापिस आना है। हमने खाना खाया और मैंने भाभी की मदद करी बर्तन धोने के बाद रखने में।
भाभी- आज काम जल्दी हो गया। थैंक्स मदद करने के लिए। मैं- अरे इसमें क्या है ये तो करना ही चाहिए अकेली लड़की क्या क्या काम करेगी घर का। मैं तो घर में भी मदद कर देता हूँ मम्मी की।
फिर हम बाहर आए और सोफे पर बैठ कर बातें करने लगे। मैंने बड़ी हिम्मत कर के पूछा- आपका तो आज दिल नहीं लगेगा भैया के बिना … रात अधूरी रह जाएगी। मेरी बात सुन कर भाभी की आँखें नम हो गई।
मैं उनके पास गया और उनसे पूछा- क्या हुआ? सॉरी अगर मैंने कुछ गलत कहा तो। भाभी- नहीं, तुम्हारी कोई गलती नहीं है, संजीव अब मुझे वो सुख नहीं दे पाते।
मैं उनको चुप कराने लग गया और वो मेरे कंधे पर सर रख कर बैठ गई। मैंने मौके का फायदा उठाया और उनकी पीठ को सहलाने लगा। वो चुप हो गई और फिर बोलने लगी- तुमको कैसी लड़की चाहिए? मैं- भाभी बुरा ना मानना मुझे बिल्कुल आप जैसी लड़की चाहिए! भाभी- चल हट झूठा, मेरे जैसी क्यों, मेरे में क्या है ऐसा?
मैं- भाभी आप बहुत खूबसूरत हो, आपकी बात ही कुछ और है! भाभी- अच्छा ऐसा क्या खूबसूरत है मुझमें, दो बच्चों की मां हो गई हूँ अब तो! मैं- देखने से तो अभी आप 28 की लगती हो! भाभी- अच्छा तो क्या है ऐसा मुझमें? मैं- बुरा तो नहीं मानोगी? भाभी- नहीं … बोलो?
मैं- भाभी आप सर से ले कर पाँव तक क़यामत हो। आपके बाल इतने घने हैं, आपकी आँखें कितनी प्यारी हैं, आपकी मुस्कान उफ़ कातिलाना है! भाभी- बस बस … ये फ़िल्मी डायलाग न मार! मैं- तो सच सुनो भाभी! भाभी- सुना?
मैं- भाभी, मुझे आपके होंठ बहुत पसंद हैं. यह बोलते ही मैंने उनका चेहरा अपने हाथों में ले लिया. मैं- और आपकी छाती पे ये दो बड़े बड़े कलश ये मेरा मन मोह लेते हैं और इनसे मेरी नज़र नहीं हटती। आपकी ये कमर और आपके चूतड़ ये आपके चलने से जो कहर ढाते हैं आप नहीं जानती कि आप कितने लोगों को घायल करती हो। मेरा इतना कहना था कि भाभी ने मुझे गले से लगा लिया। मैं मन ही मन बहुत खुश था और भाभी की पीठ सहला रहा था।
हिम्मत करके मैंने उनकी गरदन को चूमना शुरू कर दिया। वो गर्म साँसें लेने लगी और उम्मम्मम उफ्फ्फ जैसी आवाज़ें करने लगी। उन्होंने कहा- अंदर कमरे में चलो, मैं घर के दरवाज़े लगा कर आती हूँ।
जब वो अंदर आई तो मुझे चूमने लगी, मैंने भी उनके होंठों को चूमना शुरू कर दिया. पांच मिनट के चुम्बन के बाद मैंने भाभी को बिस्तर पर लिटा दिया और एक एक करके उनके और अपने सारे कपड़े उतार दिए। कपड़े उतारते ही उन्होंने लाइट बंद कर दी। मैंने कहा- लाइट क्यों बंद करी? तो बोलती- मुझे शर्म आती है।
मैंने लाइट जगा दी और कहा- मुझे तो नहीं आ रही … और मुझे आपको जी भर कर देखना है। भाभी- बस देखना ही है क्या? मैं- पहले देखना है फिर दिखाना है और फिर खेलना है!
भाभी मेरे गले लग गई और मैं उनके चूचे दबाने लगा। फिर मैंने उनके एक चूचे को चूसा और दूसर को सहलाया। पांच मिनट बाद मैंने चूचों को बदल लिया और फिर दूसरे को चूसा और पहले को सहलाया। उनकी सिसकारियां बढ़ती जा रही थी।
फिर मैं नीचे आ कर उनकी नाभि पर जीभ से चाट कर जीभ घुमाने लगा। भाभी के मुंह से ‘आअह्ह्ह उफ्फ्फ स्स्शह्ह्ह…’ जैसी आवाज़ें माहौल को और रंगीन बना रही थी। मैंने उनकी दोनों टांगों को खोला और उनकी चूत को सूंघा और अपनी जीभ से उसे चाटने लगे। मेरी जीभ चूत पर लगते ही भाभी ने मेरा सर अपनी चूत पर दबा दिया और उनके मुंह से आअह्ह्ह ऊऊओ ह्ह्ह्हह उफ्फफ्फ सशह्ह्ह ह्म्म्मम जैसी आवाज़ें आने लगी।
भाभी- आह कितना मज़ा आ रहा है … अनूप खा जाओ मेरी चूत को और चूसो इसे और चूसो! मैं- भाभी, ये मेरे लिए है आज मैं इसको निचोड़ के रख दूंगा! भाभी- हाँ … आज से मैं और मेरी चूत दोनों तुम्हारी हैं!
मैंने अपना मुंह हटाया और 69 की अवस्था में आ गया और भाभी को अपना लंड चूसने को कहा. भाभी ने पहले मुझे देखा और फिर लंड को पकड़ कर चूसने लगी।
मैं तो जैसे जन्नत की सैर कर रहा था। मैं भाभी की चूत में कभी उंगली करता तो कभी जीभ अंदर बाहर करता। कुछ देर बाद भाभी ने अपना पानी छोड़ दिया और फिर मेरा भी टाइम आ गया। फिर जब मेरा माल भाभी के मुंह में निकला तो वो सारा माल पी गई।
थोड़ी देर बाद भाभी मेरे लंड से खेलने लगी और मैं उनके 36 इंच के चुचों को चूसने लगा। थोड़ी ही देर में मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया और भाभी भी गर्म हो गई। मैंने देर न करते हुए ड्रावर से क्रीम निकाली और अपने लंड पर और भाभी की चूत पर लगा दी। भाभी ने कहा तीन चार साल से अंदर कुछ नहीं गया है ज़रा आराम से करना। मैंने भी प्यार से लंड को टिकाया और भाभी के होंठों पर अपने होंठ रख कर धीरे धीरे लंड अंदर डालना शुरू किया। दो इंच अंदर जाने के बाद लंड फंस गया और अंदर नहीं जा रहा था। भाभी- थोड़ा ज़ोर लगाओ मैं सह लूंगी. मैं- ठीक है!
मैंने होंठों पर फिर से होंठ रखे और एक ज़ोर का झटका मारा, भाभी की चीख मुंह में ही दब कर रह गई लेकिन उनकी आँखों ने उनका दर्द बयान कर दिया। उनकी आँखों से आंसू बहने लगे मैं रुक गया। थोड़ी देर बाद जब सब नार्मल हो गया भाभी अपनी 38 इंच की गांड हिलाने लगी तो मैंने भी लंड को अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। फिर मैंने धीरे धीरे स्पीड बढ़ा दी।
भाभी- आआह्ह्ह अनूप उफ्फ्फ आह्ह्ह और चोदो मुझे। उफ्फ्फ्फ़ सस्शह्ह्ह आअह्ह्ह् और अनु और और ज़ोर से। मैंने अपनी स्पीड और बढ़ा दी।
थोड़ी देर बाद मैंने भाभी को उठाया और डौगी स्टाइल में उनको पीछे से चोदना शुरू किया। भाभी- लगता है कुछ ज्यादा ही एक्सपीरियंस है तुम्हें? मैं- भाभी तुम्हारे नाम की मुठ मार मार के और अन्तर्वासना पढ़ पढ़ के एक्सपीरियंस तो हो ही गया है।
फिर मैंने भाभी की चूत में लंड और तेज़ी से अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. भाभी ‘आअह्ह आअह्ह्ह … और चोदो मुझे … आअह्ह्ह फाड़ दो मेरी चूत … आअह्ह्ह हह्म्मम्म आआह्ह्ह उफ्फफ …’ जैसी आवाज़ें निकाल रही थी।
थोड़ी देर बाद जब मुझे लगा कि मेरा होने वाला है तो मैंने चुदाई रोक दी और भाभी की चुचों को मसलने लगा। भाभी- क्या हुआ? हो गया तुम्हारा भी? मैं- नहीं अभी तो लम्बी पारी खेलनी है! भाभी- अच्छा … मेरा तो काम हो गया। इतने दिनों बाद चुद कर मज़ा आ गया अब जब मौका लगे मेरी प्यास ज़रूर बुझा देना। मैं- ये भी कोई कहने की बात है भाभी! भाभी- मुझे भाभी नहीं इला बुलाया करो! मैं- ठीक है इला!
फिर मैंने भाभी को फिर से घोड़ी बनाया और उनकी चूत मारने लगा और कुछ मिनट बाद मैंने उनकी चूत में ही अपना माल निकाल दिया और फिर मैं और वो एक दूसरे की बांहों में सो गए। रात को हमारी नींद दो बार खुली और दोनों बार जम कर चुदाई हुई।
मैं आज भी वहीं रहता हूँ लेकिन भाभी अब शिफ्ट होकर किसी और सेक्टर में चली गई है लेकिन हमारी चुदाई का खेल अभी भी जारी है।
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