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मेरी सेक्सी कहानी के पिछले भाग मेरा नौकर राजू और मेरी बहन-2 में आपने पढ़ा कि मेरी छोटी बहन सीमा मुझे बता रही है कि उसके सेक्स सम्बन्ध मेरे नौकर से कैसे और कब बनने शुरू हुए थे. “आओ अंदर… ” मैं बोली। “यह लीजिये” कहकर उसने एक एक ग्लास सब के हाथों में रखे। उस ग्लास में देखा तो दूध ही दिख रहा था। “यह तो दूध है?” मैं बोली। “उसी में मिलाया है.” वह बोला। “अच्छा!” “तनिक आराम से पीजिये… पहली बार पी रही है ना… आराम से मजा लीजिये.” कहकर वह नीचे चला गया।
पर हम चारों को धीरज कहाँ था, हमने एक ही बार में पूरा का पूरा ग्लास खाली कर दिया। वैसे तो हम ने शराब बहुत बार पी थी पर भांग का नशा ही कुछ और था। एक ही ग्लास में भांग अपना असर दिखाने लगी थी। हमें हमारी जबान पर कंट्रोल नहीं रह गया था, हम सब एक दूसरे को चिढ़ा रही थी। हम पहले से ही बिंदास थी तो सेक्सुअल बातें करने लगी। भांग का नशा हमें कामुक बातें करने को उकसा रहा था।
“ये चेतना… क्या बोली तुम… तुम्हारे दामू का लंड मेरे राजू के लंड से अच्छा है?” मैं भी नशे में बड़बड़ाने लगी। “देखो ना कुछ भी बोलती है। राजू का डेफिनेटली बड़ा होगा।” राखी मेरी साइड लेते हुए बोली। “तुमको कैसे पता… तुमने चुत में लिया है या मुँह में लिया है?” चेतना भड़कते हुए बोली। “नहीं लिया… पर सॉलिड ही होगा.” मैं बोली। “साबित करो, अगर मैं हार गई तो तुम्हारी कोई भी बात मानूँगी.” चेतना बोली। “सोच ले… कुछ भी बोलूँगी वो मानना पड़ेगा.” राखी हँसते हुए बोली। “हाँ मंजूर है… अब साबित करके दिखाओ?” चेतना ग़ुस्से से बोली।
“राजू… राजू…” मैंने आवाज लगाई पर कोई जवाब नहीं आया। मैंने फिर से आवाज लगाई- राजेश… तो नीचे से आवाज आई- आया मेमसाब!
राजेश के बेडरूम में आते ही रंजू बोली- राजेश, यह तुम्हारी भाँगवा बहुत ही बढ़िया है. ऐसा बोलकर वह हंसने लगी, उसके साथ हम सभी हँसने लगे। वह भ्रमित हो कर हम चारों की ओर देखने लगा, फिर बोला- मेमसाब वह सही ही होती है.
“और दो ना…” राखी बोली। “नहीं मेमसाब… इतना ही ठीक है.” उसको पता चल गया था कि हमें नशा चढ़ गया था। “मैंने कहा ना… मुझे और चाहिए.” कह कर हँसने लगी फिर छोटी बच्ची की तरह रोने लगी।
राजू ने मेरी तरफ देखा, मैंने आँखों से ही उसे लाने का इशारा किया। “ठीक है मेमसाब लावत है…” कहकर वह नीचे चला गया। रंजू अब अपने दुप्पटे को हाथों में लेकर खेलने लगी, राखी रोना बंद करके बाथरूम चली गई, चेतना तो एकटक दरवाजे को देखती रही। मैं सब को देखकर हँसने लगी।
तभी दरवाजे पे दस्तक हुई। “आ जाओ.” मैंने बोला।
राजू ने हम तीनों के ग्लास हमारे हाथों में दिए और राखी का ग्लास टेबल पर रखकर जाने लगा तो सीमा बोली-ओह… राजू… कहाँ जा रहे हो… तनिक रुको ना! राजू अपनी जगह पर रुक गया. “अब तनिक दरवाजा बंद कर दो!” अब राजू चकरा गया।
तभी राखी बाथरूम से बाहर आ गयी। मैं नशे में थी फिर भी मुझे शॉक ही लगा। राखी ने अपने कपड़े उतार दिए थे और सिर्फ ब्रा पैंटी में ही बाहर आ गयी। राजू ने अपनी आंखें बंद कर ली और बाहर जाने लगा तो राखी चिल्लाई- रुको… तुम कहाँ जा रहे हो? कह कर वह राजू के पास चली गई और उसको गले लगा लिया। “मेमसाब… छोड़ो… छोड़ो!” कहते हुए वह छटपटाने लगा, पर राखी उसे और भी जोर से कसने लगी। थोड़ी देर और छटपटाने के बाद उसने प्रतिकार करना बंद किया फिर राखी ने उसे छोड़ दिया।
“वाओ… इसका हथियार तो बहुत ही कड़क है, चेतना मुझे तो लगता है कि तुम शर्त हार जाओगी.” राखी बोली। “मैं शर्त नहीं हारूँगी, अभी तक तुमने खोल कर कहाँ देखा है.” चेतना बोली। “ओके राजू… खोल कर दिखाओ.” रंजू राजू को बोली। “क्या?” राजू ने डरकर पूछा, क्या चल रहा है उसको समझ नहीं आ रहा था।
“दिल… अपना दिल!” मैं विषय बदलने के लिए बोली। मेरी सहेलियां किस हद तक जाएंगी मुझे पता था, वे राजू को नंगा कर के ही छोड़ने वाली थी पर मैं प्रयास कर रही थी कि ऐसा ना हो। पर मेरा मन भी राजू को या फिर किसी और मर्द को नंगा देखने का हो रहा था।
इसका कारण भी वैसा था, राकेश पिछले दो महीनों से बार बार टूर पर था, एक रात रुकता फिर सुबह गायब हो जाता। ट्रेवल की थकान के वजह से हम ने 2 महीने में एक बार भी सेक्स नहीं किया था। मन करता था किसी को चढ़ा लूं अपने ऊपर… पर हिम्मत नहीं होती थी। दिन तो कट जाता पर रात में बदन बगावत कर देता था।
“चुप… दिल क्या दिल, चलो राजू अपनी धोती उतारो!” राखी बोली। राजू हमेशा कमीज़ और धोती पहनता था। “क… का… बोलत हो मेम साब..” वह डरते हुए बोला। “कुछ नहीं… बस अपनी धोती उतारो!” बोलते हुए राखी वैसे ही ब्रा पैंटी में उसके पास चली गयी। “न… न… नहीं…” वह हकलाने लगा- अ..आ..आपके सामने… वह पूरी तरह से डर गया था।
“क्या हुआ, शर्माते क्यों हो?” रंजू हँसने लगी। उतने में राखी राजू तक पहुँच गयी थी अपनी उंगलियाँ राजू के चेहरे पर घूमाते हुए हाथ नीचे ले जाते हुए धोती तक ले गयी। “नहीं मेम साब… का… कर रही हो?” उसकी आवाज भी उत्तेजित होने लगी थी, हर बीतते पल यह और भी उत्तेजित हो रहा था और मैं भी।
“नहीं… मेमसाब!” वह अभी भी ना कह रहा था। राखी ने अपना हाथ उसकी धोती पर रखा। शायद उसके हाथों में उसका लंड आ गया था तो वह हमें देखकर हँसने लगी। “मेम साब… ऐसा मत…” वो कुछ बोल पाता उसके पहले रंजू बोली- राखी छोड़ो उसे… राजू तुम ही खोल कर दिखाओ ना प्लीज!
राखी ने भी राजू को छोड़ा और बेड पर चेतना के सामने बैठी, चेतना ने भी राखी के बगलों के नीचे से अपना हाथ आगे ले जाते हुए राखी के बूब्स को ब्रा के ऊपर से ही दबाने लगी। राजू भी यह देखकर बहुत उत्तेजित हो गया था, उसका हाथ अपने आप ही उसके लंड पर गया। “चलो राजू फटाफट दिखाओ… हम सिर्फ देखना चाहती हैं.” चेतना राखी के स्तन मसलते हुए बोली।
राजू कुछ पल सोचने लगा। “मेम साब… दिखावत है… पर बाहर निकालने के बाद उसका मक्खन निकालना पड़ेगा.” “हाँ चलो दिखाओ, अगर सही होगा तो ये चेतना निकाल देगी मक्खन, निकालेगी क्या चाट चाट कर खाएगी.” अपने हाथ चेतना के हाथों पर रखके उन्हें अपने स्तनों पर दबाते हुए राखी बोली। “मैं?” चेतना आश्चर्य से बोली। “हाँ तुम… तुमने कबूल किया है कि शर्त हारी तो कुछ भी करोगी.” रंजू उसे बोली। “हाँ पर अगर मैं जीत गयी तो तुम्हें खाना होगा उसका मक्खन!” चेतना रंजू को बोली। “ओके… मुझे मंजूर है!” रंजू ने चेतना की शर्त तुरंत मान ली।
“चलो राजू दिखा ही दो अब!” मुझे भी उसका फड़फड़ाता मूसल देखना था तो मैंने ही उसे बोल दिया। राजू ने हमारी तरफ पीठ कर के अपनी धोती उतार दी, फिर अंदर पहनी चड्डी भी उतार दी। हम चारों सहेलियों को बहुत उत्सुकता थी राजू का लंड देखने की। भांग के नशे में हम क्या कर रहे है हमें भी नहीं पता था, बस उस पल का आनन्द लेना है इतना ही मन में था।
धीरे धीरे राजू हमारी तरफ घूमा, उसका बड़ा लंबा मूसल हमारे सामने आया, जैसे कि कोई काला नाग हो। “ले चेतना तू हार गई… अब बोल!” राखी उसके स्तनों पे रखे चेतना के हाथों पर मारते हुए बोली। “हाँ यार, बहुत ही सॉलिड है.” चेतना के दिमाग में नशा इस तरह हावी हुआ था कि उसने राखी को छोड़ा और बेड से उठी।
चेतना बेड से उठकर राजू के सामने गयी, वह फिर राजू के आगे घुटनों के बल बैठ गयी। राजू का बड़ा लंड उसके चेहरे के आगे झूल रहा था। उसकी आँखें बड़ी हो गयी थी और वह बिना पलक झपके उसके लंड को देख रही थी। “अब देखती ही रहोगी या बेचारे का मक्खन भी खाओगी? बेचारे को और भी बहुत काम होंगे.” रंजू बोली।
“सीमा यार, इस राजू को मेरे घर भेजो न… मेरे घर में थोड़ा काम है. कर देगा.” इस बात पर हम सब हंस पड़ी।
चेतना ने धीरे से अपने हाथों को आगे लेकर राजू के लंड को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी। राजू ने अपने हाथ कमर पर रख लिए और सीधा तन कर खड़ा रहा। चेतना धीरे धीरे राजू के लंड पर मुठ मारने लगी। राजू अब उत्तेजक सिसकारियाँ निकालने लगा ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
चेतना ने अपने हाथ हटाकर राजू के लंड पर पहले एक चुम्बन किया और फिर अपने होंठ खोल कर उसके लंड की सुपारी अपने मुंह में ली। राजू ने उत्तेजना में अपना हाथ चेतना के सिर पर रख दिया। अब तक मेरी सखी चेतना ने राजू का आधा लंड अपने मुँह में ले लिया था। अपनी थूक से उसका लंड भिगोते हुए वह लंड के जड़ तक अपने होंठों को पहुँचा रही थी। राजू भी अपने हाथों का दबाव उसके सिर पे डालते हुए पूरा लंड उसके मुख में डालने का प्रयास कर रहा था।
उसने अब उसका आधे से ज्यादा लंड अपने होंठों से पकड़ते हुए चूसना शुरू कर दिया। उसका लंड इतना बड़ा था कि पूरा उसके मुंह में नहीं समा रहा था।
हम तीनों सहेलियां भी राजू के लन्ड को आँखें फाड़ फाड़ कर देख रही थी। चेतना उस बड़े लंड को मजे से चूस रही थी। उसका मुखमैथुन देख कर हम तीनों के चुत में पानी आ रहा था। रंजू अपने हाथ राखी के ब्रा के अंदर घुसाते हुए उसके बूब्स मसलने लगी तो राखी ने अपना हाथ मेरी जांघ पर रख कर उसे मसलने लगी।
“मेम साब,आप मेरा मक्खन मुंह के अंदर ही ले कर टेसट करत हो ना… या की मैं अपना लंडवा बाहर निकाल लूं?” राजू ने पूछा तो चेतना ने हाथों से ही उसे उसका मुख चोदन जारी रखने का इशारा किया। राजू अब अपनी कमर हिलाते हुए उसके मुंह को चोदने लगा। “ईहह… लो… हम आवत है… ईह लो हमार मक्खन…” ऐसा कहकर उसने अपनी कमर चेतना के मुंह पर दबा दी और सिसकारते हुए शांत हो गया।
उसके शांत होते ही हम तीनों ने चेतना की तरफ देखा उसके मुँह राजू का वीर्य बह रहा था, उसके होठों पे पड़ा उसका वीर्य चमक रहा था। यह देख कर शायद हम तीनों को चेतना के भाग्य से जलन होने लगी थी कि काश यह लंड हमारे मुख में झड़ता.
चेतना अब उठ कर अपने को साफ़ करने बाथरूम चली गयी और राजू भी अपने धोती कपड़े ठीक ठाक करके नीचे चला गया।
जो भी हो… नौकर की लंड चुसाई का शानदार नजारा देखकर हम सब सहेलियों का भांग का नशा डबल हो गया और हम वहीं बेड पर एक दूसरी से चिपक कर सो गई।
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कहानी का अगला भाग: मेरा नौकर राजू और मेरी बहन-4
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