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“मालकिन… तनिक छुट्टी चाही आठ दिन की!” बद्री चाचा मुझसे छुट्टी मांगते हुए बोले। “क्यों चाचा?” मैंने पूछा। “गांव जाना है, होली आवत है ना…” चाचा बोले। “चाचा आपको तो पता है ना, साहब भी टूर पर गए हैं। इतने बड़े घर का काम मैं अकेले…” मैं बोल ही रही थी कि मुझे टोकते हुए चाचा बोले- मालकिन, पिछले चार साल से घर नहीं गए हैं, घर वाली बुलावत रही है…”
“अभी इस उम्र में घर वाली क्यों” मैं हँसते हुए उससे बोली। “वैसा नहीं मालकिन, पर…” वह भी शर्माते हुए बोले। “चाचा मगर आप को भी पता है ना मैं सबकुछ अकेले नहीं संभाल सकती, और आप ही हो कि अगर पंद्रह दिन के बाद चले जाते तो तब तक साहब भी आ जाते!” मैं बोली।
“आप फिकर मत करो, मैंने घर के काम के लिए अपने भतीजे को बोला है।” वह बोले। चाचा पर तो मुझे भरोसा था पर उसके भतीजे पर? नये आदमी पर एकदम से भरोसा रखना थोड़ा मुश्किल ही था तो मैंने चाचा से पूछा- चाचा भरोसेमंद तो है ना? ऐसे सीधे सीधे पूछना भी अच्छा नहीं लग रहा था। “है मालकिन, मेरी जबान है…” वह बोला।
“तो फिर ठीक है… कब जा रहे हैं आप?” मैंने पूछा। “परसों… कल रात को ही निकलेंगें।” चाचा बोले। “हाँ चलेगा…” ऐसा कहते ही बद्री चाचा निकल गए।
प्रिय पाठको… मैं नीतू, नीतू पाटिल… मेरे पति नितिन। नितिन का खुद का बिज़नेस है। वे स्वभाव से और शरीर से बहुत ही अच्छे हैं पर उनके टूर से मुझे बहुत चिढ़ होती है, महीने के पंद्रह दिन वे टूर पे होते हैं और मैं घर में अकेली ही होती हूँ।
हमारा शहर के बाहर एक बड़ा सा बंगला है, शहर से लगभग 10-15 किलोमीटर दूर है। आजु बाजू सब बड़े बड़े बंगले ही थे, तो किसी से ज्यादा जान पहचान नहीं थी। इसीलिए जब भी नितिन टूर पर चला जाता तो मैं बहुत बोर हो जाती घर में अकेली बैठ कर… और कुछ भी करने को नहीं होता था।
बद्री चाचा हमारे घर में नौकर है। उनकी उम्र लगभग 65 साल थी फिर भी घर के सभी काम कर लेते हैं, मुझे कोई काम नहीं करना पड़ता है। अगर शहर जाना हो तो चाचा ही ड्राइविंग करते थे, तो मैंने कभी ड्राइविंग सीखी ही नहीं।
चाचा छुट्टी पे जा रहे थे तो मुझे डर सा लग रहा था। मेरी शादी होने के बाद पहली बार चाचा छुट्टी ले रहे थे। अब सब काम मुझे करना था इस डर से ही मैं उन्हें ना कह रही थी। पर उन्होंने भी चालाकी से अपने भतीजे को काम पे लगा दिया तो मुझे कोई कारण ही नहीं बचा ना कहने को। दूसरे दिन चाचा अपने भतीजे को ले कर आ गया- मालकिन, यह लो, राजेश को ले आया हूँ” चाचा ने आवाज दी।
मैं उस समय ऊपर के बैडरूम में थी, मैंने ऊपर से देखा तो नीचे चाचा और उनका भतीजा खड़ा था। मैं सीढ़ियों से नीचे आ गयी और सोफे पर बैठ गई। “हा…तो नाम क्या है?” मैंने उसे पूछा। तो उसने हाथ जोड़ते हुए बताया- जी राजेश… “क्या क्या काम आता है?” मैंने पूछा। “जी सबकुछ, जो आप कहेंगे, सब करेगा” चाचा बोले। ” चाचा मैंने सवाल उससे किया है…” मैं बोली। “अच्छा माफी…” ऐसे कहते हुए चाचा चुपचाप खड़े हो गए।
“गाड़ी चला लेते हो…” मैंने पूछा। “जी आवत है!” वह बोला। “लाइसेन्स है?” मैंने पूछा। “हाँ…” उसने अपना लाइसेंस मुझे दिखाया।
“चाचा इसे सब कुछ समझा दो, सब काम वगैरा, मैं बाहर जा रही हूं।” मैंने उन्हें बताया और घर से बाहर निकली। बाहर टैक्सी पकड़कर मैं शहर चली गयी।
होली दो दिन बाद थी तो सारे मार्केट में हलचल थी। सारी दुकानें रंगबिरंगी हो गयी थी। मैंने मॉल में जाकर अपने लिए शॉपिंग की, फिर एटीएम में जाकर पैसे निकाले। बाद में रिक्शा पकड़कर घर आ गयी। घर में आते ही राजेश ने मुझे पानी लाकर दिया। फिर उसे रात का खाना ऊपर बेडरूम में लाने को बोलकर मैं बेडरूम में चली गई।
शाम को मैंने चाचा को पैसे दिए, उसी रात की गाड़ी से चाचा अपने गांव को चले गए। दूसरे दिन सुबह बैडरूम का दरवाजा बजने से मेरी नींद खुली। “कौन है?” मैंने पूछा। “मैं हूँ मेमसाब, चाय!” बाहर से राजेश की आवाज आई।
मैंने उठकर अपना गाउन ठीक किया और दरवाजा खोला, उसने चाय टेबल पर रखी और चला गया।
मैंने चाय पीते पीते पेपर पढ़ा, फिर नहा के नीचे जाने लगी कि तभी फोन की घंटी बजी। “हाँ सीमा बोल?” मेरी बहन सीमा का फ़ोन था। “दीदी आज दोपहर को टाइम है क्या?” उसने मुझे पूछा। “हाँ है ना, क्या बात है?” उसने मुझे पूछा। “कुछ नहीं, बहुत दिन हुए तुमसे मिले हुए, तो सोचा तुमसे मिल लूं।” वह बोली।
“मैं एक फ्रेंड के घर जा रही हूँ दोपहर को, चार बजे तक लौटूंगी, तुम ऐसा करो, चार बजे आ जाओ।” “ओके दीदी, पर तुम चार बजे तक आ जाओगी ना?” वह बोली। “हाँ बाबा, आ जाऊँगी।” मैंने बोला।
मैंने राजेश को बुलाया- राजेश, दोपहर को मेरी बहन आने वाली है, दोपहर को खाना थोड़ा ज्यादा बनाना।” “जी मेमसाब…” राजेश बोला। “मैं बाहर जा रही हूँ, दरवाजा बंद कर लेना।” उसको बोलकर मैं घर से बाहर निकली।
“मेरा काम तीन बजे ही खत्म हो गया, मैं रिक्शा पकड़ कर घर की तरफ निकली। चार बजे सीमा आने वाली थी, उसके साथ क्या क्या बातें करनी है इस बारे में मैं सोचने लगी।
सीमा मेरे से दो साल छोटी थी। सबसे छोटी होने के कारण बड़े ही लाड़ प्यार से पली बढ़ी थी। मैं हर बार उसके स्तनों की तुलना मेरे स्तनों से करती पर हर बार वही जीत जाती, ऐसा ही हाल नितम्बों का था। उसकी फिगर बड़ी ही आकर्षक थी और उसे उसने संभाली भी थी। रंग में गोरी सीमा दिखने में मुझसे ज्यादा अच्छी थी, मुँह फट थी, बिल्कुल बिन्दास रहती थी। शादी के बाद भी उसका स्वभाव नहीं बदला था।
वह बहुत बार मुझे कहती- दीदी, जीजू को तो अपना बिज़नेस प्यारा है, तुम क्यों अपने आप को तड़पा रही हो, कोई जवान मर्द रखो ना अपने यहाँ काम पे, वह दिन में काम करेगा फिर रात को काssssम भी करेगा… पर मैंने कभी उसकी बातें गंभीरता से नहीं ली, मुझे उसमें कोई रस नहीं था। वह हमेशा से ही ऐसे बिन्दास बोलती थी पर मुझे नहीं लगता कि उसने भी कभी ऐसा कुछ किया होगा।
“मैडम आपका घर आ गया!” ऑटो ड्राइवर के बोलते ही मैं विचारों से बाहर आ गयी। ऑटो से उतर कर मैंने उसको पैसे दिए और गेट के अंदर चली गई।
लॉक खोल कर घर के अंदर गयी, राजेश कहीं दिखाई नहीं दे रहा था तो मैंने खुद ही किचन में जा कर फ्रिज में से पानी निकालकर पिया। फिर हॉल में सोफे पर बैठ कर पीछे रेस्ट पे सिर रख कर आंख बंद करके बैठ गई। अचानक ही कुछ आवाज कानों में पड़ी, मैंने आंखें खोल कर देखा तो कुछ भी नहीं था। शायद मुझे वहम हो रहा था… यह सोच कर फिर से आंखें बंद कर लेट गयी। ऊपर पंखा भी पूरी स्पीड में घूम रहा था। कुछ वक्त शांति थी पर फिर से वही आवाज सुनाई पड़ी।
मैंने ध्यान दिया तो पता चला आवाज ऊपर के बेडरूम से आ रही थी। मेरे बैडरूम के पास एक गेस्ट रूम है उसी रूम से। राजेश मेरे न रहते मेरे बैडरूम में जाने की हिम्मत नहीं करेगा। इसलिए थोड़ा डरते हुए मैं ऊपर जाने लगी।
जैसे जैसे मैं रूम के पास जा रही थी वैसे ही आवाजें तेज होने लगी। ये तो सिसकारियों की आवाजें थी, किसी औरत की सिसकारियों की… मगर कौन हो सकता है? राजेश ने कोई लड़की तो नहीं बुलायी ना, या फिर उसकी बीवी हो? मेरे घर में ना रहते हुए उसका यह क्या काम चल रहा था। काम को आये हुए एक ही दिन हुआ था और वह औरतें लाने लगा था।
मुझे तो अब घर में उसके साथ अकेले रहने में भी डर लगने लगा था। “अभी उसे रंगे हाथ पकड़ती हूँ।” उन गरम सिसकारियों की वजह से मेरे अंदर भी हलचल पैदा होने लगी थी। “आहहह… आहहह… और और… आउच…” उस औरत की सिसकारियाँ सुनाई दे रही थी।
“यह ले हमारा बबुआ… यही चाही… था न तुम्हें… ले…हमार… और ले!” मुझे राजेश की आवाज सुनाई दी, तब मुझे पूरा यकीन हुआ। यह तो राजेश ही है… पता नहीं कौन सी छिनाल को लाया है… मेरी इज्जत तो पूरी मिट्टी में मिला दी… पता नहीं किस किस ने देखा उसको उस रंडी को यहां लाते हुए।
मैं खुद ही चौंक गयी ‘रंडी छिनाल’ जैसे शब्द मैंने कभी इस्तमाल नहीं किये थे। कभी किसी के झगड़ों में या फिर शराबी के मुँह से सुने थे। पर आज मन में ही सही मैंने उन शब्दों का इस्तेमाल किया था। वो कुछ भी हो, उन शब्दों की वजह से या फिर उन सिसकारियों की वजह से, मेरी चुत के पानी का स्तर अब बढ़ने लगा था। किधर किधर तो गुदगुदी होनी शुरू हो गयी थी। अंदर ही अंदर चुत के पास के बाल अकड़ने लगे थे। मेरे अंदर की बेचैनी अब बढ़ने लगी थी।
मेरा हाथ अपने आप ही मेरी चुत पर गया और मैंने अपनी चुत अपने कपड़ों के ऊपर से ही दबा दी। मेरे स्पर्श से मेरी चुत में गुदगुदी होने लगी, तन बदन रोमांचित होने लगा।
“हे भगवान, चार बजने को हैं… अगर सीमा ने यह देख लिया तो पहले राजेश को थप्पड़ जड़ देगी, फिर उसे घर से बाहर निकाल देगी। मैं घर में अकेली होती हूँ उसे पता है, मेरी इतनी चिंता तो उसे भी है, आखिरकार मेरी बहन है वह!” मेरे मन में मेरी बहन का खयाल आया। “भाड़ में जाए यह राजेश… बाहर आने के बाद उसे देखती हूं। मैं पहले नीचे जाकर बैठती हूँ, सीमा आ गयी तो गजब हो जाएगा… बहुत ही बिन्दास है वह… मेरे ऊपर भी शक ले सकती है।” मैं नीचे जाने के लिए मुड़ी तभी राजेश की आवाज मेरे कानों में पड़ी।
“ईइह… लो कुतिया… ईइह लो हमार आखरी दाओ… ले.. जोर से… पूरा का पूरा मक्खन छोड़ते हैं तुम्हरे अंदर… ले छिनाल…” उस आवाज ने मुझे फिर से मेरी चुत रगड़ने को मजबूर कर दिया। अंदर इतना पानी था कि मेरी पैंटी पूरी गीली हो गयी थी।
“आह… क्या हो रहा है मुझे… इतना पानी… मैं क्यों गरम हो रही हूँ… और खुशबू भी बहुत मादक है…” अचानक मेरा हाथ मेरे नाक के पास ले जाते हुए मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी। मैं फिर से नीचे जाने को मुड़ी तो मुझे उस औरत का आवाज आई- नहीं राजू… अंदर मत छोड़ना प्लीज… हमेशा की तरह अंदर मत…
वह उतना ही बोली पर मेरे नीचे की जमीन मानो हिलने लगी। “ये… ये… तो सीमा की आवाज है… मतलब सीमा… नहीं नहीं… सीमा ऐसे नहीं करेगी… शायद मुझे ही गलतफहमी हुई होगी!” मन में कह कर मैं नीचे जाने लगी। “क्या मेमसाब… आप भी देरी से बोली… मेरा मक्खन अंदर ही गिर गया ना..” राजेश बोला।
“मेमसाब?!? राजेश उसे मेमसाब बोल रहा है, इसका मतलब यह कोई रंडी नहीं है, कोई घरेलू औरत है, मैं घर में नहीं हूँ यह देख कर उसने इसे बुलाया होगा।” मैं एक एक कदम दूर जा रही थी पर आगे के वाक्य से मैं थम गई। “अरे राजू… कोई बात नहीं… तुम्हारा मक्खन मुझे बहुत पसंद है… मगर उसका टेस्ट मुझे बहुत पसंद है… तुमने तो सारा मेरे नीचे के होठों में डाल दिया… अब मैं टेस्ट कैसे करूँ?”
यह तो पक्का सीमा की आवाज है, और बोलने की स्टाइल भी सीमा जैसी है। मेरा शक सही साबित हो रहा था।
“कोई बात नहीं… ईह लो हमार चम्मच… ले लो मुँह में और टेसट कर लो!” राजेश बोला। बाद में मुझे ‘पुटु’ कर आवाज आई और ‘सुर्र…सुर्र…’ कर चूसने की आवाज।
अब तो मेरे चुत के गीलेपन की हद हो गयी, नीचे जाने के बजाय मैंने अब मेरे रूम में जाकर कपड़े बदलने की सोची और मेरे रूम की तरफ मुड़ी। “चलो अब जल्दी से… यह अब ठीक करो… दीदी के आने का टाइम हो गया है।” उसके शब्दों से मैं चौंक गयी, मुझे अब पक्का यकीन हो गया कि वह सीमा ही थी।
कहानी जारी रहेगी। [email protected]
कहानी का अगला भाग: मेरा नौकर राजू और मेरी बहन-2
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