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मेरी गांड की कहानी डांस में गांड हिलाई फैन्स से मरवाई-1 से आगे:
उन भाई साहब का नाम रमेश था, वे गांव के समृद्ध किसान परिवार से थे. शाम को वे शादी में मिले बोले- अच्छा रूके हो, मिलना। मैंने कहा- भाई साहब! आपका घोड़े माफिक हथियार एक बार में ही गांड का भुर्ता बन गया, अब तो मैं तीन चार दिन तक आपकी सेवा नहीं कर पाऊंगा। तब तक चला जाऊंगा। वे हंसने लगे- सुरेन्द्र भाई साहब, आपके मामा जी ने मेरी ड्यूटी लगाई है, मेरी जीप आपको झांसी भेज देगी।
उन्होंने अपने साथ खड़े एक माशूक लड़के को बुला कर उसकी ओर की ओर इशारा कर कहा- ये दिनेश हैं, मेरे छोटे भाई, आप सबको कल जीप से झांसी भेज देंगे। ये जीप के ड्राइवर हैं। मैंने कहा- ठीक है, कल इन्हें मामाजी तलाश लेंगे। रमेश- अरे तलाशने में दिक्कत होगी. “दिनेश तुम!” मेरी ओर इशारा कर बोले- इनके पास ही सो जाना।
दिनेश रात को मेरे साथ सोया. एक तो नमकीन लौंडा, ठंड का मौसम, एक ही कम्बल में हम दोनों चिपक कर सोए, उसका खड़ा लंड मेरे पेट से टकरा रहा था, मैं उसे सहलाने लगा, दिनेश मजा ले रहा था. फिर मैंने लंड उसके अंडरवियर से निकाल कर पकड़ लिया, साथ ही दिनेश का हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रखा, उसने भी मेरा लंड पकड़ लिया.
अब मैं उसका चुम्बन लेने लगा और चिपक गया. दिनेश मजा ले रहा था. फिर मैंने उसका अंडरवियर नीचे खिसकाया, उसने भी मेरा अंडरवियर नीचे खिसकाया. अब हम दोनों नंगे एक दूसरे से चिपके लेटे थे. मैंने हल्के से उसकी पीठ पर हाथ फेरा, उसके चूतड़ सहलाने लगा. उसने खुद ही करवट बदल ली.
अब उसके चूतड़ व पीठ मेरी तरफ थे, मैंने थूक लगाकर उसकी गांड पर अपना लंड टिकाया, लौंडा तैयार था, उसने गांड ढीली कर ली और लंड आसानी से उसकी गांड में घुस गया. मैं कुछ देर ऐसे ही डाले लेटा रहा, जब उसकी गांड कुलबुलाने लगी तो धक्के देना शुरू कर दिए. लौंडा एक्सपर्ट था, गांड चलाने लगा.
मैंने धक्के तेज कर दिए अंदर बाहर… अंदर बाहर… धच्च फच्च धच्चफच्च! उससे मैंने पूछा- लग तो नहीं रही? वह चुप रहा. मैंने कहा- यार ऐसे नहीं, मुस्कराओ… वरना मजा नहीं आएगा। तो उसने दांत निकाल दिए, वह मजे ले रहा था।
हम बीस मिनट में निपट गए। बहुत दिनों बाद एक चिकने माशूक लौंडे की मारने को मिली। इसका असली शुक्रिया तो रमेश भाई साहब को देना था। मैंने लौंडे के भी चुम्बन लेकर उसका शुक्रिया कहा।
पांच बजे करीब बलवीर बोला- मैं लेट्रिन जा रहा हूं. लड़के को भी साथ ले गया.
एक घंटे बाद लौटा, लड़का आकर लेटा, मैंने पूछा- बड़ी देर लगी? तो बोला- भाई साहब दूसरा काम करने लगे। मैंने पूछा तो बोला- उन्होंने वहीं रेत पर लिटा कर पेल दिया। मैंने बलवीर से पूछा- क्यों बे? तो वह हँसने लगा.
मैंने कहा- मैं तेरी मारूंगा। तो वह बोला- मार लो। मैं मिसमिसाया- मादरचोद।
रात को एक और लड़का आया था, बलवीर उसे जानता था। उसे शायद सोने को जगह नहीं मिल रहा थी, बलवीर के पास बगल में सोया था। औंधा लेटा था कुनमुना रहा था। मैंने कहा- अब दिनेश इस लौंडे की मारेगा। बलवीर बोला- यार लफड़ा न हो। मैंने कहा- जो हो… देखेंगे, तू उसे समझाना।
मैंने उस लड़के का अंडरवियर खोल कर नीचे खिसकाया, दिनेश को उस पर बैठने को कहा। दिनेश की भी गांड फट रही थी पर बैठ गया, उसका लंड ढीला हो रहा था। उसने तीन चार अपने हाथ से झटके दिए, अब तना था, उसने थूक लगा कर लौंडे की गांड पर टिकाया तो लौंडा गांड सिकोड़ने लगा, लंड हाथ से पकड़ लिया.
तब मैं अपने बैग में से क्रीम की शीशी लाया, दिनेश के लंड पर मली और लौंडे की गांड में अपनी ही क्रीम वाली उंगली डाल दी. लौंडे की गांड वैसे ही अभी चिकनी थी, गाल भी चिकने थे, लौंडा हाथ पकड़ने लगा पर गांड में से उंगली न निकाल पाया.
उसका मैंने चुम्बन लिया, कहा- थोड़ी देर लेटा रह बस! वह साला लालची था, बोला- मुझे पैसे देना। मैंने कहा- लेटा रह… देंगे।
अब दिनेश ने अपना लंड पेला अच्छा खासा सात-आठ इंची मस्त लम्बा मोटा लंड था। मैंने पहली बार उसका लंड देखा। लौंडे ने टांगें चौड़ी कर लीं थी, लौंडे की गांड पर लंड टिका कर धक्का दिया तो वो आ… आ… करने लगा, उसने आंखें बन्द कर लीं, दांत भींच लिए. पर दिनेश ने जोर लगा कर अपना पूरा लंड पेल ही दिया।
मस्ती से चुदाई की, पंदरह बीस मिनट में झड़ा। लौंडा दस रूपए लेकर खुश हो गया। दिनेश बहुत प्रसन्न था- आज तो आपने मेरे लंड से एक नए लौंडे की गांड का उद्घाटन करवा दिया! मस्त था। बलवीर भाई साहब तो… वह कह कर रूक गया. मैं- उनकी तो खुद ही फट रही थी। हम सब हंसने लगे।
बलवीर भी शान्त था, अब कोई लफड़ा नहीं! लौंडा मान गया वरना उसकी गांड फट रही थी।
अब हम सब लोग तैयार हुए, जीप में बैठे, मौसी मैं व अन्य रिश्तेदार जिन्हें भी झांसी जाना था। हम करीब आठ नौ बजे तक झांसी पहुंच गए, जिनको रेलवे स्टेशन जाना था, उन्हें वहां छोड़ा, बाकी मेहमानों को लेकर हम बस स्टेंड पहुँचे, मौसी को उनके गांव की बस में बिठा दिया, मुझे अब सीधा अपने कॉलेज जाना था, ऐसा मौसी का आदेश था. उनके गांव जाने वाली बस का ड्राइवर उनका परिचित था।
बाकी और लोगों को भी उनकी बसों में बिठाया, इसी काम में ग्यारह बज गए. अब मैंने दिनेश से कहा- लंच लेते हैं! उसकी पसंद के होटल में गए, वहां बढ़िया लंच लिया. फिर वह बोला- पिक्चर देखते हैं! तो सिनेमा देखा.
फिर वह बोला कि आपकी ट्रेन शाम को है. मैं यहां एक वर्कशाप में काम करता था, वहीं गाड़ी चलाना सीखी, वहीं चलते हैं. हम गए वर्कशॉप में, पीछे एक कमरा था, वहीं रूक गए. एक छोटा सा पलंग था, दोनों लेटे, वह सिगंल बेड था, दोनों चिपक कर लेटे.
दिनेश शरारत करने लगा, मेरा लंड पकड़ लिया, पैन्ट में से निकाल लिया, हाथ से सड़का मारने लगा. फिर थोड़ी देर में बोला- पानी नहीं निकल रहा, चूस लूं? मैंने कहा- रहने दे! वह मुंह में लेने लगा, मैंने कहा- यह केवल गांड का आशिक है. फिर कभी, अब छोड़ दे!
उसका न जाने क्या मूड था, जल्दी अपनी पैन्ट खोल दी, अंडरवियर नीचे कर दिया, उसके गोल गोल चूतड़ चमक रहे थे. मैंने उसे औंधा किया और चढ़ बैठा. लंड में थूक लगा कर पेल दिया. वह इस बार और ज्यादा मस्ती में था, उचक उचक कर गांड में पिलवा रहा था.
अभी सवेरे ही तो उसकी मारी थी, लंड खाली था अतः देर तक चुदाई की वह मस्त हो गया। उसका जोरदार चुम्बन लिया, हम अलग हुए. अब हम कपड़े पहन कमरा खोल बाहर निकले तो वर्कशॉप के बॉस आ गए थे, दिनेश ने मेरा परिचय कराया- भाई साहब खान साहब, इन्हीं से मैंने पोलीटेक्निक में डिप्लोमा करने के बाद ड्राइवरी सीखी, व मोटर सुधारने का काम सीखा, अब अपलाई करता रहता हूं, इनटरव्यू देता रहता हूं। तब तक जहाँ काम मिले, कर लेता हूं!
मैं उन्हें देखते ही पहचान गया था, मैंने कहा- जीजाजी सलाम, मुझे आप भूल गए होंगे. मैं अली बख्श का दोस्त दतिया से… अब बहुत दिन हो गए। वे मुझे ध्यान से देखते रहे बोले- हां याद है, कैसे भूल सकता हूं. हां, अब आप बड़े हो गए, ज्यादा तंदरूस्त व ऊंचे हो गए. कैसे हो? मेरा नाम लेकर पुकारा।
वे अब लगभग सत्ताइस अट्ठाइस के होंगे, बोले- अब यही वर्कशॉप डाल ली है, अल्लाह का करम है चल निकली. कभी आओ तो मिलना, रूको। मैंने कहा- जीजा जी! कोई बात हो तो रूकूं। वे बोले- बात? मैं- कुछ करें? वे- नहीं, अब शादी हो गर्इ। मैं जाने लगा- अच्छा जीजाजी।
वे थोड़ा सोच कर बोले- रूको। फिर दिनेश की ओर देखने लगे. मैंने कहा- इसकी कोई बात नहीं… यह देखेगा तो ट्रेन्ड हो जाएगा। जीजाजी- नहीं, मेरी वर्क शॉप में रहा तो ट्रेन्ड तो यारों ने कर दिया होगा। जैसी तुम्हारी इच्छा।
उनका पैन्ट में से उचक रहा था, दिनेश ध्यान से देख रहा था, दिनेश किवाड़ लगाने लगा तो उन्होंने रोक दिया. वे मुझे एक कोने में ले गए, वहां एक छोटी सी टेबल पड़ी थी, उन्होंने ही मेरी पैन्ट पेंट खोली, अंडरवियर नीचे किया और टेबल पर झुका दिया. फिर अपना मशहूर लंड निकाला और दिनेश से कहा- उस ताक से तेल की शीशी ला। वह लाया तो मैंने कहा- दिनेश, तू साहब के लंड पर तेल लगा।
दिनेश हल्के हल्के से लगा रहा था, जीजाजी मुस्कराए, तो मैंने कहा- दिनेश भाई! लंड पर तेल कस कर रगड़ कर लगाते हैं, दो तीन सड़का मार। तब उसने उनका लंड रगड़ा, अब वह तन गया था.
अब जीजाजी ने मेरी गांड में लंड पेला, दिनेश लम्बा मोटा लंड जाता आश्चर्य भरी निगाहों से देख रहा था. वे उसे हैरान देख कर बोले- मेरा थोड़ा बड़ा है पर दूसरे को तकलीफ न हो इसका ख्याल रखता हूं। वे खड़े खड़े ही मेरी मारते रहे, मैं मस्ती से आंख बन्द किये चूतड़ हिलाहिला कर गांड मरवा रहा था।
जीजाजी बोले- इस बार तो मजे ले रहे हो, उस बार तो तुम बहुत फड़फड़ाए थे. मैं- जीजाजी! तब मैं कम उम्र का ही था। आपका जबरदस्त हथियार है, आपने फाड़ कर रख दी थी।
फिर उन्होने दिनेश का एक जोरदार चुम्बन ले लिया व उसके चूतड़ सहलाते रहे, मेरी गांड मारते रहे. वे बीस मिनट में निबटे.
हमने कपड़े पहने और हम कमरे के बाहर खुली जगह में बैठे। तब तक पांच साढ़े पांच बजे होंगे, जीजाजी बोले- अभी टाइम है, आपको नाश्ता मंगाते हैं, अब तो कई गाड़ियां हैं. इन भैया को जाने दो, मैं स्टेशन भिजवा दूंगा! पर दिनेश मुझे छोड़ना नहीं चाहता था, बोला- भाई साहब, इनका गाना सुन लें, गांव में बहुत गाया और लोग इसरार करने लगे!
मैंने गाना गाया, वह एक फ्यूजन सों था जो रैप और हमारी बुंदेली लोक धुन राई को मिला कर बना था. आप सुनें: मोटा मस्त लंड था भारी वो था खेला खाया खिलाड़ी उसने कई लौंडों की मारी उसकी बातों में अय्यारी उसकी आंखों में मक्कारी उसके दिल में थी बदकारी उसने गांड हमारी मारी उसने गांड हमारी मारी
उमर थी कम हमारी अब तक नहीं किसी ने मारी भेाली भाली सूरत प्यारी न कुछ जानें दुनियादारी कोमल चिकनी गांड कुंवारी
उसने गांड हमारी मारी उसने गांड हमारी मारी
फिर मैं एकदम जोर से सारा बदन हिलाने लगा, चूतड़ जल्दी जल्दी मटकाने लगा, तड़पने और भारी कष्ट का अभिनय किया और नीचे वाली लाईन गाई. दिनेश भी मेरे साथ गा रहा था
फट गई फट गई फट गई फट गई गांड हमारी उसने जबर लंड से फाड़ी
उसने जोर जोर से मारी कस के रगड़ी जम के मारी उसने बड़ी देर तक मारी उसने जबर लंड से फाड़ी उसने जबर लंड से फाड़ी
फट गई फट गई फट गई फट गई गांड हमारी
हम यह गीत गाते रहे, साथ के वर्कर को अच्छा लगा, वो और साथियों को भी सुनने बुला लाए. पहले तो केवल मैं और दिनेश ही गा रहे थे, फिर सब सुर मिलाने लगे व साथ में नाचने लगे.
साथी लोग खान साहब की ओर इशारा करके नाच रहे थे, मजा ले रहे थे. पास की एक वर्कशॉप के नफीस भई भी आए थे, यही कोई पच्चीस छब्बीस के होगे, अच्छे हैन्डसम थे, देखते रहे, फिर वे भी नाचने लगे।
दो तीन राउन्ड के बाद मैंने कहा- अब जाना है।
हम और दिनेश गाड़ी में बैठे, जीजाजी धीरे से बोले- तुमने तो उस दिन का गाना ही बना डाला, इतना दर्द हुआ था? मैंने कहा- जीजाजी! गाने का मजा लें, बुरा न मानें, इसमें किसी का नाम नहीं है। फिर कितना दर्द हुआ यह तो जिसे दर्द हुआ वही बता सकता है। सुन कर दिनेश मुसकराया, जीजाजी भी हंसने लगे।
नफीस भाई पास आए ओर बेबाकी से बोले- भाई आज मैं कह सकता हूं कि अपने जो गाने में कहा, ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था आपका शुक्रिया। आपने मेरा दर्द समझा, जिसे मैं नहीं कह पाया। वे सबके आगे जोर से बोले, सबने सुन लिया, तब एक और जवान साथी बोले- अरे नफीस भाई, ऐसा तो मेरे साथ भी और मेरे कई दोस्तों के साथ भी हुआ! उन्होंने मुझे बताया। हकीकत बयानी है। मेरी ओर उन्मुख होकर बोले- आपका शुक्रिया। मैं- यह सबकी कहानी है। केवल कही मेरे द्वारा गई है. पर आाप साहिबान ने सपोर्ट कर मेरा हौसला बढ़ाया, शुक्रिया।
जीजाजी भी सुन रहे थे, मैंने उनकी ओर देखा, मुस्करा दिया।
हम जीप से स्टेशन पंहुचे, मैं उतरा, दिनेश बोला- भाई साहब! आपके साथ दिन गुजरा याद रहेगा। मैं- दिनेश भाई! मुझे भी आप हमेशा याद रहोगे, आपके साथ बहुत मजा आया.
हम अलग हुए कभी न मिलने के लिए! वह जीप लेकर चला गया, मैं स्टेशन की ओर बढ़ा।
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